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मंगलवार, 9 मार्च 2021

षट्पदी

षट्पदी 
करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य 
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश 
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश 
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म 
ज्यों की त्यों चादर रखे, निभा 'सलिल' निज धर्म
*

समीक्षा मन के वातायन नीलमणि दुबे

'मन के  वातायन'  में गूँजते प्रेम गीत  
नीलमणि दुबे:

'प्रेम ' के उच्चारण मात्र से अधरोष्ठ जुड़ जाते हैं; वहीं 'विदायी' के उच्चारण में अधरोष्ठ से लेकर नाभि तक कंपित करती वायु उच्छ् वसित होकर गहरा झटका देती हुयी प्राणों को ही खींच ले जाती है! प्रेम का मूल राग है ¡ राग अर्थात् जुड़ना ¡
मनुष्य विशिष्ट, समशील और इतर से सहज जुड़ जाता है ¡ राग का विलोम वैराग्य या विराग है ;जिसका एक अर्थ विशिष्ट के प्रति राग भी है¡ साहित्य, संगीत व कलाओं का मूल राग -रूप प्रेम ही है ¡ भले ही ज्ञानी जन- "राग रोष इरषा मद मोहू!जनि सपनेहुँ इनके बस होहू!! "- का उपदेश दें ;किंतु सहज मानव-प्रकृति राग से आमूलचूल आबद्ध होकर ही सहज सार्थकता पाती है ¡ "मसि कागद छूयो नहीं, कलम गही ना हाथ"-की उद्घोषणा करने वाले 'प्रेम का ढाई आखर पढ़ कर पंडित हुए' कबीर मनुष्य होने की सार्थकता प्रेम में पाते हैं-" जेहि घट प्रीति न संचरै सो घट जान मसान! "
प्रेम के वशीभूत ब्रह्म 'छछिआ भर छाछ' पर नाचता है, शकुंतला की विदायी में लताएँ पीतपत्र -रूप अश्रु मोचित करती हैं, यक्ष की पीड़ा के शमनार्थ मेघ और नागमती के विरह से द्रवित पक्षी दूत -कर्म स्वीकार करते हैं, राम 'खग, मृग और मधुकर श्रेनी' से सीता का पता पूछते हैं ; तो घनानंद रक्त की अंतिम बूँद से निष्ठुर सुजान को पत्र भेजते हैं ¡
यह प्रेम ही है -"जो चेतन कहँ जड़ करइ, जड़हिं करइ चैतन्य"-की सामर्थ्य रखता है ¡
इस प्रेम का मार्ग इतना सीधा है कि चतुरता का थोड़ा भी टेढ़ापन इसे अस्वीकार्य है! इस मार्ग में होश खो देने वाले चल पाते हैं ;तो होश रखने वाले थक जाते हैं-"सूधे ते चलैं, रहैं सुधि कै थकित ह्वै!" इस गहरे सागर में हजारों रसिकों के मन डूब जाते हैं¡ प्रेम में हार कोटिश: जीत से श्रेयस्कर है ¡ श्री 'श्याम मनोहर सीरोठिया' जी की कृति 'मन के वातायन ' इसी महत्तर प्रेम का महत्तर आख्यान और सुष्ठु गीतों की महत्वपूर्ण कड़ी है ¡ अनेक प्रतिष्ठित सम्मानों से सम्मानित, आजीविका से चिकित्सक श्री सीरोठिया जी शल्यक्रिया और रोगों के निदान में जितने सिद्धहस्त हैं;मनोभावों की पड़ताल और भाव-भंगिमाओं के अंकन में भी उतने ही निष्णात हैं ¡
प्रत्येक गीत गहरे भाव- सागर में पैठकर निकाला गया महार्घ मोती है¡ 
कबीर एकात्मक संबंध को प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति -"हरि मोर पीव, मैं राम की बहुरिया, राम बड़े, मैं छटुक लहुरिया"- कहकर देते हैं!
प्रेम के रस का पान करने के लिए सिर अर्थात् अहं और द्वित्व का विसर्जन करना पड़ता है ¡ प्राण साधना में दीप से जलते हैं; तो कभी सुधियाँ ही दीप बन जाती हैं ¡नारी प्रेरणा मयि ज्योति का प्रतिरूप है और प्रेम गहन तिमिर में उज्ज्वल प्रकाश-
"मन की चौखट पर सुधियों का;
निशदिन मैंने दीप जलाया,
दीप- रश्मियों में स्वर्णिम सा;
रूप तुम्हारा मैने पाया,
तुम जीवन के अँधियारों में;
नये उजाले भर जाती हो! "
किसी शायर ने कहा है-
"दिन अपने चरागों के मानिंद गुज़रते हैं,
हर सुबह को जल जाना, हर शाम को बुझ जाना !"-किंतु सीरोठिया जी के गीतों में निराश -नाकाम उम्मीद नहीं , प्रतीक्षा की अविराम जगमगाहट है ;जो चौंकाती नहीं, आश्वस्त करती है! वह क्षण भी आता है जब पूजा के बाह्य उपादानों की आवश्यकता नहीं रह जाती-
"गीत प्रणय की पूजा थाली,
अक्षत चंदन है ¡
मनुहारों की सजल प्रार्थना,
उर का वंदन है ¡¡"
आतुर -आकुल हृदय निरंतर अवदान में सार्थकता पाता है-"तृप्ति पाने के लिए खुद बूँद से गलते रहें ¡" हलाँकि -"इच्छाओं की दीपशिखा को कुंठाओं ने बुझा दिया"; किंतु कवि की आत्मिक शक्ति उसका अखंड विश्वास है-"मंजिलों के फासले हों ;किंतु हम चलते रहें ¡"
अभाव व्यतीत की महत्ता का बोध कराता है ¡ प्रिय के साथ बिताए गए क्षणों की सुधि कवि का पाथेय है-
"महुआ थे, संदल थे वे क्षण;
जिनमें अपना साथ रहा,
हर मुश्किल आसान हो गयी;
जब हाथों में हाथ रहा,
हमने एक उमर जी ली थी;
पल -दो -पल सँग रह करके ¡"
महुआ वन -प्रांतर को मोहक- मादक और संदल परिवेश को पावन-सौम्य सुरभि से महमहा देते हैं! यह मदिर मादकता और पावन स्पर्श की अनुभूति चेतना में आज भी रची- बसी प्राणों का संचार करती है ¡
स्मृतिकार लिखतीं हैं-
"प्रत्येक वस्तु में सहसा;
स्पर्श जाग उठता है,
मैं यहाँ छिपा हूँ , पा लो,
हँसकर अमूर्त कहता है! "
इसी अमूर्त स्पर्श की अनुभूत संतुष्टि छटपटाहट में परिणत होकर आशा-निराशा के शतरंगे दुकूल बुनती है ¡अदम्य जिजीविषा के केंद्र में स्वस्फूर्त आशा चेतना रूप झरती और जीवन को आलोकित करती है! समूची प्रकृति प्रिय की पुकार बन जाती है-
"घने बादलों के पीछे से;
छुप-छुप कर यह किसे पुकारे,
पहले भी आता था लेकिन;
आज चाँद के तेवर न्यारे,
बजा गया आकर चुपके से;
रजनी के द्वारे की साँकल ¡"
ऐसे सुंदर बिंब कृति में यत्र-तत्र उरेहे गए हैं ¡ अव्याहत कांत कल्पनाएँ और चारु चित्र मुग्ध करते हैं-
"सकुचायी, सिमटी, घबरायी;
रजनी आज लाज से हारी,
चपल चाँद का प्रणय -निवेदन;
ठुकराये अथवा स्वीकारे ¡"
सुख के उपादान विरह में मर्मांतक पीड़ा देते हैं ¡ समूची प्रकृति मनोभावों का दर्पण हो जाती है-
"मेरी आँखों के मोती ही;
सुबह ओस बनकर बिखरे हैं,
पुष्पों के मनमोहक रँग भी;
मेरे सपनों में निखरे हैं ¡"
कवि की पीड़ा ,बेबसी और भावना संकीर्ण सीमाओं को लाँघ समष्टि तक विस्तार पाती हैं ! भाषा और भावों की सूक्ष्मता और सांकेतिकता में मर्यादित गांभीर्य सर्वत्र दिखलायी पड़ता है-
"याद हैं कश्मीर की वे;
बर्फ से भींगी हवाएँ,
किंतु जब छूलें हमें तो;
देह में पावक जगाएँ,
इस दहकती आग को फिर;
शमन करने का इशारा! "
कहीं भी भाव व भाषा संयम की वल्गा नहीं छोड़ते ¡
'मन के वातायन' से अनुभूत मनोभावों के शीतल-सुखद झोंके और अपनी झलक दिखाता विविध वर्णी भाव-भंगिमाओं का दृष्यमान मनमोहक सुंदर संसार आद्यंत बाँधे रहता है ¡ महादेवी वर्मा संबंध को परिभाषित करते हुए लिखती हैं-
"मैं हूँ तुमसे एक, एक हैं जैसे रश्मि-प्रकाश!
मैं हूँ तुमसे भिन्न, भिन्न ज्यों घन से तड़ित -विलाश!! "
निराला जी लिखते हैं-
"तुम तुंग हिमालय- शृंग और मैं चंचल जल सुरसरिता!
तुम विमल हृदय उच्छ् वास और मैं कांत कामिनी कविता!! "
उसी महाभाव में अवस्थित कवि कहता है-
"बरसाने की व्यथा-कथा मैं;
वृंदावन का महारास तुम,
मैं मीरा का छंद वियोगी;
रसिक बिहारी का विलास तुम ,
शकुंतला का व्यथित हृदय मैं;
तुम पुरुवंशी उर-वसंत हो ¡"
हृदय के समर्पण, प्रिय के वैराट्य और स्व के लघुत्व का यह दिग्दर्शन प्रेम को उस उच्च भूमि पर प्रतिष्ठित करता है ;जहाँ वियोग भी योग बन जाता है ;बकौल गोस्वामी तुलसीदास-
"राम सों बड़ो है कौन;मोसों कौन छोटो!
राम सों खरो है कौन; मोसों कौन खोटो!! "
कवि का प्रिय अभौतिक,अमांशल या अशरीरी नहीं , वह उसका अनेकशः स्पष्ट उल्लेख करता है-
"समय लिए अपने हाथों में;
बीते जीवन की किताब को,
चुपके से रख देते थे हम;
खिले हुए मन के गुलाब को,
अपनेपन की गंध आज भी;
इसमें शेष हमें बहलाने ¡
साँझ ढले फिर याद तुम्हारी;
आयी चुपके से सिरहाने! "
मीर का शेर है-
"तुम मेरे पास होते हो;
गोया जब कोई दूसरा नहीं होता"! "एकांत क्षणों में हम अपने पास या अपनों के पास होते हैं --
" मन के सूने घर में अक्सर;
तुम चुपचाप चली आती हो,
मुझे अचानक छू जाती हो;
कभी- कभी शीतल समीर सी! "
हलचल भरे उर की अनुभूत कथा लिखने में अक्षर बौने हो जाएँ तो क्या आश्चर्य? किसी के होने का सुख हर मुश्किल आसान कर देता है! प्रिय का आभास हर पल मिलता है-
"तुम ही हो मुसकान हृदय की;
तुम ही रहती आभासों में,
कभी विरह के पतझर में तुम;
कभी मिलन के मधुमासों में,
× × ×
इंद्रधनुष मेरे सपनों में
चुपके से तुम भर जाती हो! "
ये भाव पीड़ा की अतल गहरायी और सघन -सांद्र अनुभूति से छन-छन कर निथरे हैं ¡ पीड़ा का उत्ताप और लंबी प्रतीक्षा प्रेम को तप बना देते हैं ¡ नागमती के प्राण भाड़ में भुनते , उस तप्त अनाज की तरह हैं ;जो गर्म रेत में उछलता तो है पर पुन: उसी में गिर पड़ता है- "लागेउँ जरैं, जरै जस भारू!
फिरि-फिरि भूँजेसि तजेसि न बारू!! "
आशा के दीप की लौ कभी मंद
नहीं होती-
"सपनों की चौखट पर अब भी;
आशाओं का दीप जल रहा,
शायद कभी लौट आओ तुम;
मन में यह संघर्ष चल रहा ¡"
कवि को दीप का उपमान अत्यंत प्रिय है ¡
पारिवारिक परिवेश और अपनेपन की ऊष्मा तथा गरिमामय आत्मीयता सबको अपने में समा लेती है-
"आंगन के तुलसी चौरा पर ;
आशीषों की गंध महकती ,
रहे सदा परिवार सुरक्षित;
मंदिर में सौगंध चहकती,
× × ×
भीतर-भीतर स्वयं टूटकर;
बाहर कौन बचाता है घर ¡"
प्रकृति सुख-दु:ख में सहभागी
आदि सहचरी है ¡संध्या, चाँदनी, बसंत, खिलते पुष्प सभी सुधियों के वाहक हैं ¡ उपमा, रूपक, सांगरूपक,रूपकातिशयोक्ति,
मानवीकरण, प्रतीकविधान, बिंब विधान,विशेषण-विपर्यय ,मनोवै-ज्ञानिक चित्रण आदि के द्वारा प्रकृति के सुंदर चित्र खींचे गए हैं-
" टेसू , गुलमोहर बौराये;
वाचाल हुयी अरुणाई है,
महुए की छाँव पवन बैठा;
लो मचल गयी तरुणाई है,
ऋतुराज कर रहा अश्वमेध;
चर्चा फैली यह दिग् दिगंत ¡"
सांकेतिक प्रकृति -चित्रण का एक उदाहरण दृष्टव्य है-
"शकुन लिए कागा मुँड़ेर पर;
ललित पुष्प अभिसार खिलेगा,
पतझर से बीमार विपिन को ;
मधुमासी उपचार मिलेगा ¡"
प्रकृति का उद्दीपक रूप देखें-
"बूँदों की वाणी में मुखरित;
मन के सब संवाद रसीले,
फिर से कसने लगे हृदय को;
सुधियों के भुजपाश गठीले,
मधुर मिलन की घड़ी आ गयी;
समय गया अब इंतजार का ¡"
× × ×
आज देह के चंदन वन में;
मचल उठीं मादक सरिताएँ;
संयम के दादुर पढ़ते हैं;
आदर्शों की वेद ऋचाएँ ¡ "
मानवीकरण-
"दिन बैठे हैं सन्यासी से,
जोगन सी रातें ¡"
मिथकीय प्रकृति -चित्रण-
मेघदूत लेकर आया है ;
नेह -निमंत्रण की पाती ¡"
रूपक-
"बाँच रही है घटा देह की;
छिपकर मन में सकुचाती ¡"
गीत को परिभाषित करते हुए महादेवी वर्मा कहती हैं-"सुख-दु:ख की भावावेश मयी अवस्था स्वरसाधना के अनुकूल गिने-चुने शब्दों में चित्रित करना गीतिकाव्य है ¡ " अर्थगांभीर्य, स्वानुभूति, आत्माभिव्यक्ति, संक्षिप्तता,सारल्य,आलंकारिकता, संगीतात्मकता, गेयता भावप्रवणताआदि गीतिकाव्य के प्रमुख तत्व हैं! इन सभी तत्वों से समृद्ध आलोच्य कृति के गीत हिंदी -गीत -परंपरा को समृद्ध करेंगे और सुधीजनों द्वारा समादृत होंगे इसी शुभाशंसा एवं मंगलाशा के साथ-
नीलमणि दुबे: महादेवी के आकुल प्राण पुकार उठते हैं-
"पर शेष नहीं होगी यह;
मेरे प्राणों की व्रीड़ा,
तुमको पीड़ा में ढूँढ़ा;
तुममें ढूढ़ूँगी पीड़ा ¡"
प्रीति वही सत्य है; जो प्रिय से विलग होते ही प्राणों का परित्याग कर दे-"बिछुरत दीन दयाल, प्रिय तन तृन इव परिहरेउ"-किंतु घनानंद कहते हैं वह मीन मेरी प्रीति की समानता को कैसे पा सकती है ;जो नीर के स्नेह को कलंकित कर निराश होकर प्राण त्याग देती है-
"हीन भये जल मीन अधीन; कहा भो मो अकुलान समानै,
नीर सनेही को लाय कलंक;
निरास ह्वै कायर त्यागत प्रानै!"
प्रीति की सार्थकता विश्वास बनाए रखकर पीड़ा के उत्ताप में मौन तपने में है-
"चुपचाप कहीं छिपकर मन में;
जब बरसों विरह दहकता है,
तब कहीं प्रीति का चंदन वन;
साँसों के बीच महकता है ¡
शब्दों तक सीमित नहीं कभी;
अपने पन की परिभाषा है,
यह भाव चेतना संवेदन;
सुख-दु:ख में आस-निराशा है ¡
उर भूमि डोलती घबराकर;
सुधियों के ज्वालामुखी फटे---"
विस्फोट के परिणामों का आकलन किया जा सकता है¡
कभी सुधियों के ज्वालामुखी विस्फोट करते हैं; तो कभी मन- मृग सुधियों की कस्तूरी में मग्न मरुथल में भटकता है-
"सुधियों की कस्तूरी ,मन मृग;
रिश्तों के मरुथल में भटका,
बचा नहीं हम सके अचानक;
विश्वासों का दर्पण चटका ¡"
किंतु आस्था और आशा की डोर हृदय नहीं छोड़ता-
"खंडित है मन लेकिन 
विश्वास नहीं टूटा ¡"
ज्योति रूप प्रिय की छवि अंधकार को दलमल देती है-
"तिमिर तिरोहित हुआ;
ज्योति तुम धन्य धवल हो! "
भले ही पीड़ाएँ हैं पर-"तुमको पा लेने का संकल्प नहीं छूटा" क्योंकि-
"बौराया मन नहीं सुन रहा:
मंत्र कहीं कोई सुधार का ¡"
यह मन बेमोल बिक गया है-
"बिना मोल के मन बिकता है;
निज के अर्पण में ¡"
*
प्रो.नीलमणि दुबे
विभागाध्यक्ष-हिंदी,
पं.एस.एन.शुक्ला वि.वि., शहडोल, म.प्र.
484001

शिव

शिव
"...कालिदास ने मालविकाग्निमित्र में शिव के नृत्य को देवताओं की आंखों को सुहाने वाला यज्ञ कहा है। तण्ड मुनि द्वारा प्रचारित होने से यह ताण्डव कहलाया। तण्डु ने अभिनय निमित्त इसे भरतमुनि को दिया। अभिनवगुप्त की टीका मंे तण्डु ही शिव के गण नन्दी हैं।
शिव का रूद्रावतार संगीत कला का पर्याय है। इसी अवतार में उन्होंने नारद को संगीत का ज्ञान दिया। ‘संगीत मकरंद’ में शिव की कला का ही गान है।..."

कृष्ण चिंतन ७

विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर 
*
कृष्ण-चिंतन ७
कृष्ण चिंतन के गत छ: सत्रों में आप सबकी बढ़ती रुचि और सहभागिता हेतु हृदय से धन्यवाद। 
अगले सत्र का विषय है 'कृष्ण नीति'।
कृष्ण ने अनेक समस्याओं और शत्रुओं का सामना असाधारण योग्यता के साथ कर अपने शत्रुओं को अवाक किया। आपकी दृष्टि में कृष्ण के जीवन में कौन सी समस्या महत्वपूर्ण और जटिल है जिस के समाधान हेतु उन्होंने विशिष्ट नीति का अनुसरण किया?, उसकी उस समय में क्या उपादेयता थी? इस काल में वह नीति कितनी अनुकरणीय है? आदि बिंदुओं पर आलेख यूनीकोड में टंकित कर, रविवार रात तक संयोजक आचार्य संजीव वर्मा सलिल ९४२५१८३२४४ व संचालक सरला वर्मा ९७७०६७७४५४ को भेजिए।
आलेखों की जीवंत प्रस्तुति करने हेतु आप सोमवार अपराह्न चार बजे से छै बजे के मध्य गूगलमीट पर आमंत्रित हैं, लिंक सोमवार दोपहर को मिलेगी।
चयनित आलेख divyanarmada.in पर प्रकाशित किए जाएँगे।
*

अमृत महोत्सव ५ वंदना भारत माता की

अमृत महोत्सव ५ 
*
स्वतंत्रता अमृत महोत्सव गीत ५
*
वंदना भारत माता की
जगद्गुरु भाग्य विधाता की
*
लहर साबरमती की कहती
शक्ति के हाथ मुक्ति रहती
बढ़े दाण्डी पथ पर गाँधी
साथ ले जनगण की आँधी
नमक मुट्ठी में जब तोला
विदेशी शासन तब डोला
देश आजाद सुहाता की
अमृत उत्सव मन भाता की
वंदना भारत माता की
जगद्गुरु भाग्य विधाता की
*
तिरंगा थाम बढ़े हो एक
देश हित काम किया हर नेक
सैन्य ताकत उद्योग विकास 
लोक कल्याण लक्ष्य ले खास
समुद भू अंतरिक्ष को नाप
सका यश सकल विश्व  में व्याप
कोरोना टीका दाता की
योग आरोग्य प्रदाता की
वंदना भारत माता की
जगद्गुरु भाग्य विधाता की
*
हिमालय शीश मुकुट सोहे
हिंद सागर हँस पग धोए 
द्वीप जंबू छवि मनहारी
छटा आर्यावर्ती प्यारी
गोंडवाना है हिंदुस्तान 
इंडिया भारत देश महान 
लोक आनंद मनाता की
सत्य शिव सुंदर दाता की
वंदना भारत माता की
जगद्गुरु भाग्य विधाता की
*

सोमवार, 8 मार्च 2021

द्विपदी / अश'आर

 द्विपदी / अश'आर 

मेरी माशूक के चेहरे पे जो प्यारा सा तिल है,
ध्यान से देखिए वो तिल नहीं है, मेरा दिल है।
*
बाद मरने के मेरी कब्र पे बोना बैगन,
ताकि माशूक मेरी भून के भरता खाए।
*

सुधारानी श्रीवास्तव

बहुमुखी प्रतिभा की धनी विधि पंडिता सुधारानी श्रीवास्तव
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' 
*
श्रीमती सुधारानी श्रीवास्तव का महाप्रस्थान रंग पर्व के रंगों की चमक कम कर गया है। इल बहुमुखी बहुआयामी प्रतिभा का सम्यक् मूल्यांकन समय और समाज नहीं कर सका। वे बुंदेली और भारतीय पारंपरिक परंपराओं की जानकार, पाककला में निष्णात, प्रबंधन कला में पटु, वाग्वैदग्धय की धनी, शिष्ट हास-परिहासपूर्ण व्यक्तित्व की धनी, प्रखर व्यंग्यकार, प्रकांड विधिवेत्ता, कुशल कवयित्री, संस्कृत, हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू साहित्य की गंभीर अध्येता, संगीत की बारीकियों को समझनेवाली सुरुचिपूर्ण गरिमामयी नारी हैं। अनेकरूपा सुधा दीदी संबंधों को जीने में विश्वास करती रहीं। उन जैसे व्यक्तित्व काल कवलित नहीं होते, कालातीत होकर अगणित मनों में बस जाते हैं।
सुधा दीदी १९ जनवरी १९३२ को मैहर राज्य के दीवान बहादुर रामचंद्र सहाय व कुंतीदेवी की आत्मजा होकर जन्मीं। माँ शारदा की कृपा उन पर हमेशा रही। संस्कृत में विशारद, हिंदी में साहित्य रत्न, अंग्रेजी में एम.ए.तथा विधि स्नातक सुधा जी मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में अधिवक्ता रहीं। विधि साक्षरता के प्रति सजग-समर्पित सुधा जी १९९५ से लगातार दो दशकों तक मन-प्राण से समर्पित रहीं। सारल्य, सौजन्य, ममत्व और जनहित को जीवन का ध्येय मानकर सुधा जी ने शिक्षा, साहित्य और संगीत की त्रिवेणी को बुंदेली जीवनशैली की नर्मदा में मिलाकर जीवनानंद पाया-बाँटा।
वे नारी के अधिकारों तथा कर्तव्यों को एक दूसरे का पूरक मानती रहीं। तथाकथित स्त्रीविमर्शवादियों की उन्मुक्तता को उच्छृंखलता को नापसंद करती सुधा जी, भारतीय नारी की गरिमा की जीवंत प्रतीक रहीं। सुधा दीदी और उन्हें भौजी माननेवाले विद्वान अधिवक्ता राजेंद्र तिवारी की सरस नोंक-झोंक जिन्होंने सुनी है, वे आजीवन भूल नहीं सकते। गंभीरता, विद्वता, स्नेह, सम्मान और हास्य-व्यंग्य की ऐसी सरस वार्ता अब दुर्लभ है। कैशोर्य में
संस्कारधानी के दो मूर्धन्य गाँधीवादी हिंदी प्रेमी व्यक्तित्वों ब्यौहार राजेंद्र सिंह व सेठ गोविंददास द्वारा संविधान में हिंदी को स्थान दिलाने के लिए किए गए प्रयासों में सुधा जी ने निरंतर अधिकाधिक सहयोग देकर उनका स्नेहाशीष पाया।
अधिवक्ता और विधिवेत्ता -
१३ अप्रैल १९७५ को महान हिंदी साहित्यकार, स्त्री अधिकारों की पहरुआ,महीयसी महादेवी जी लोकमाता महारानी दुर्गावती की संगमर्मरी प्रतिमा का अनावरण करने पधारीं। तब किसी मुस्लिम महिला पर अत्याचार का समाचार सामने आया था। महादेवी जी ने मिलने पहुँची सुधा जी से पूछा- "सुधा! वकील होकर तू महिलाओं के लिए क्या कर रही है?" महीयसी की बात मन में चुभ गयी। सुधा दीदी ने इलाहाबाद जाकर सर्वाधिक लोकप्रिय पत्रिका मनोरमा के संपादक को प्रेरित कर महिला अधिकार स्तंभ आरंभ किया। शुरू में ४ अंकों में पत्र और उत्तर दोनों वे खुद ही लिखती रहीं। बाद में यह स्तंभ इतना अधिक लोकप्रिय हुआ कि रोज ही पत्रों का अंबार लगने लगा। यह स्तंभ १९८१ तक चला। विधिक प्रकरणों, पुस्तक लेखन तथा अन्य व्यस्तताओं के कारण इसे बंद किया गया। १९८६ से १९८८ तक दैनिक नवीन दुनिया के साप्ताहिक परिशिष्ट नारी निकुंज में "समाधान" शीर्षक से सुधा जी ने विधिक परामर्श दिया।
स्त्री अधिकार संरक्षक -
सामान्य महिलाओं को विधिक प्रावधानों के प्रति सजग करने के लिए सुधा जी ने मनोरमा, धर्मयुग, नूतन कहानियाँ, वामा, अवकाश, विधि साहित्य समाचार, दैनिक भास्कर आदि में बाल अपराध, किशोर न्यायालय, विवाह विच्छेद, स्त्री पुरुष संबंध, न्याय व्यवस्था, वैवाहिक विवाद, महिला भरण-पोषण अधिकार, धर्म परिवर्तन, नागरिक अधिरार और कर्तव्य, तलाक, मुस्लिम महिला अधिकार, समानता, भरण-पोषण अधिकार, पैतृक संपत्ति अधिकार, स्वार्जित संपत्ति अधिकार, विधिक सहायता, जीवनाधिकार, जनहित विवाद, न्याय प्रक्रिया, नागरिक अधिकार, मताधिकार, दुहरी अस्वीकृति, सहकारिता, महिला उत्पीड़न, मानवाधिकार, महिलाओं की वैधानिक स्थिति, उपभोक्ता संरक्षण, उपभोक्ता अधिकार आदि ज्वलंत विषयों पर शताधिक लेख लिखे। कई विषयों पर उन्होंने सबसे पहले लिखा।
विधिक लघुकथा लेखन-
१९८७ में सुधा जी ने म.प्र.राज्य संसाधन केंद्र (प्रौढ़ शिक्षा) इंदौर के लिए कार्यशालाओं का आयोजन कर नव साक्षर प्रौढ़ों के लिए न्याय का घर, भरण-पोषण कानून, अमन की राह पर, वैवाहिक सुखों के अधिकार, सौ हाथ सुहानी बात, माँ मरियम ने राह सुझाई, भूमि के अधिकार आदि पुस्तकों में विधिक लघुकथाओं के माध्यम से हिंदू, मुस्लिम, ईसाई कानूनों का प्राथमिक ग्यान दिया।
उपभोक्ता हित संरक्षण
१९८६ में उपभोक्ता हित संरक्षण कानून बनते ही सुधा जी ने इसका झंडा थाम लिया और १९९२ में "उपभोक्ता संरक्षण : एक अध्ययन" पुस्तक लिखी। भारत सरकार के नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता मामले मंत्रालय ने इसे पुरस्कृत किया।
मानवाधिकार संरक्षण
वर्ष १९९३ में मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम बना। सुधा जी इसके अध्ययन में जुट गईं। भारतीय सामाजिक अनुसंधान परिषद दिल्ली के सहयोग से शोध परियोजना "मानवाधिकार और महिला उत्पीड़न" पर कार्य कर २००१ में पुस्तकाकार में प्रकाशित कराया। इसके पूर्व म.प्र.हिंदी ग्रंथ अकादमी ने सुधा जी लिखित "मानवाधिकार'' ग्रंथ प्रकाशित किया।
विधिक लेखन
सुधा दीदी ने अपने जीवन का बहुमूल्य समय विधिक लेखन को देकर ११ पुस्तकों (भारत में महिलाओं की वैधानिक स्थिति, सोशियो लीगल अास्पेक्ट ऑन कन्ज्यूमरिज्म, उपभोक्ता संरक्षण एक अध्ययन, महिलाओं के प्रति अपराध, वीमेन इन इंडिया, मीनवाधिकार, महिला उत्पीड़न और मानवाधिकार, उपभोक्ता संरक्षण, भारत में मानवाधिकार की अवधारणा, मानवाधिरार और महिला शोषण, ह्यूमैनिटी एंड ह्यूमन राइट्स) का प्रणयन किया।
सशक्त व्यंग्यकार -
सुधा दीदी रचित वकील का खोपड़ा, दिमाग के पाँव तथा दिमाग में बकरा युद्ध तीन व्यंग्य संग्रह तथा ग़ज़ल-ए-सुधा (दीवान) ने सहृदयों से प्रशंसा पाई।
नर्मदा तट सनातन साधनास्थली है। सुधा दीदी ने आजीवन सृजन साधना कर हिंदी माँ के साहित्य कोष को समृद्ध किया है। दलीय राजनीति प्रधान व्यवस्था में उनके अवदान का सम्यक् मूल्यांकन नहीं हुआ। उन्होंने जो मापदंड स्थापित किए हैं, वे अपनी मिसाल आप हैं। सुधा जी जैसे व्यक्तित्व मरते नहीं, अमर हो जाते हैं। मेरा सौभाग्य है कि मुझे उनका स्नेहाशीष और सराहना निरंतर मिलती रही।
***

क्षणिका महिला

क्षणिका
महिला
*
खुश हो तो
खुशी से दुनिया दे हिला
नाखुश हो तो
नाखुशी से लोहा दे पिघला
खुश है या नाखुश
विधाता को भी न पता चला
अनबूझ पहेली
अनन्य सखी-सहेली है महिला
*
८-३-२०२०

मुक्तिका

मुक्तिका
*
झुका आँखें कहर ढाए
मिला नज़रें फतह पाए
चलाए तीर जब दिल पर
न कोई दिल ठहर पाए
गहन गंभीर सागर सी
पवन चंचल भी शर्माए
धरा सम धैर्य धारणकर
बदरियों सी बरस जाए
करे शुभ भगवती हो यह
अशुभ हो तो कहर ढाए
कभी अबला, कभी सबला
बला हर पल में हर गाए
न दोधारी, नहीं आरी
सुनारी सभी को भाए
***
संजीव
८-३-२०२०

माँ

एक रचना
महिला दिवस
*
एक दिवस क्या
माँ ने हर पल, हर दिन
महिला दिवस मनाया।
*
अलस सवेरे उठी पिता सँग
स्नान-ध्यान कर भोग लगाया।
खुश लड्डू गोपाल हुए तो
चाय बनाकर, हमें उठाया।
चूड़ी खनकी, पायल बाजी
गरमागरम रोटियाँ फूली
खिला, आप खा, कंडे थापे
पड़ोसिनों में रंग जमाया।
विद्यालय से हम,
कार्यालय से
जब वापिस हुए पिताजी
माँ ने भोजन गरम कराया।
*
ज्वार-बाजरा-बिर्रा, मक्का
चाहे जो रोटी बनवा लो।
पापड़, बड़ी, अचार, मुरब्बा
माँ से जो चाहे डलवा लो।
कपड़े सिल दे, करे कढ़ाई,
बाटी-भर्ता, गुझिया, लड्डू
माँ के हाथों में अमृत था
पचता सब, जितना जी खा लो।
माथे पर
नित सूर्य सजाकर
अधरों पर
मृदु हास रचाया।
*
क्रोध पिता का, जिद बच्चों की
गटक हलाहल, देती अमृत।
विपदाओं में राहत होती
बीमारी में माँ थी राहत।
अन्नपूर्णा कम साधन में
ज्यादा काम साध लेती थी
चाहे जितने अतिथि पधारें
सबका स्वागत करती झटपट।
नर क्या,
ईश्वर को भी
माँ ने
सोंठ-हरीरा भोग लगाया।
*
आँचल-पल्लू कभी न ढलका
मेंहदी और महावर के सँग।
माँ के अधरों पर फबता था
बंगला पानों का कत्था रँग।
गली-मोहल्ले के हर घर में
बहुओं को मिलती थी शिक्षा
मैंनपुरी वाली से सीखो
तनक गिरस्थी के कुछ रँग-ढंग।
कर्तव्यों की
चिता जलाकर
अधिकारों को
नहीं भुनाया।
***

धरती

एक कविता महिला दिवस पर :
धरती
संजीव 'सलिल'
*
धरती काम करने
कहीं नहीं जाती
पर वह कभी भी
बेकाम नहीं होती.

बादल बरसता है
चुक जाता है.
सूरज सुलगता है
ढल जाता है.

समंदर गरजता है
बँध जाता है.
पवन चलता है
थम जाता है.

न बरसती है,
न सुलगती है,
न गरजती है,
न चलती है

लेकिन धरती
चुकती, ढलती,
बंधती या थमती नहीं.

धरती जन्म देती है
सभ्यता को,
धरती जन्म देती है
संस्कृति को.
तभी ज़िंदगी
बंदगी बन पाती है.

धरती कामगार नहीं
कामगारों की माँ होती है.
इसीलिये इंसानियत ही नहीं
भगवानियत भी
उसके पैर धोती है..
***

मुक्तिका

मुक्तिका
*
भुज पाशों में कसता क्या है?
अंतर्मन में बसता क्या है?
*
जितना चाहा फेंक निकालूँ
उतना भीतर धँसता क्या है?
*
ऊपर से तो ठीक-ठाक है
भीतर-भीतर रिसता क्या है?
*
दिल ही दिल में रो लेता है.
फिर होठों से हँसता क्या है?
*
दाने हुए नसीब न जिनको
उनके घर में पिसता क्या है?
*
'सलिल' न पाई खलिश अगर तो
क्यों है मौन?, सिसकता क्या है? 
**

अमृत महोत्सव ४

अमृत महोत्सव ४
आजादी का अमृत महोत्सव
*
आजादी का अमृत महोत्सव मिलकर आज मनाना है।
बहा पसीना भारत की माटी पर स्वर्ग बसाना है।। 
*
साबरमती पुकार रही है दांडी यात्रा मत भूलो। 
एक साथ मिल, कदम बढ़ाओ अपनी मंज़िल को छू लो।.
चंद्र और मंगल को छू, नभ पर परचम लहराना है। 
आजादी का अमृत महोत्सव मिलकर आज मनाना है।।
*
बापू का सपना पूरा हो, बने आत्म निर्भर हर गाँव। 
श्रम-कौशल से रोजगार पा, युवा जमाएँ अपने पाँव।।
नर-नारी सम मान पा सकें, शिक्षा श्रेष्ठ दिलाना है। 
आजादी का अमृत महोत्सव मिलकर आज मनाना है।।
*
अभियंता-वैज्ञानिक मिलकर करें देश का नव निर्माण। 
योग-चिकित्सा स्वास्थ्य सुधारे, पर्यावरण करे संप्राण।।
देशभक्ति का भाव हमें, जनगण-मन में विकसाना है। 
आजादी का अमृत महोत्सव मिलकर आज मनाना है।।
*
बलशाली हो सेना इतनी, दुश्मन डर से काँप उठे। 
कभी कृष्ण की मुरली गूँजे, कभी राम का चाप उठे।।
शिव बन विष पी, अमृत बाँटे, वह पीढ़ी उपजाना है। 
आजादी का अमृत महोत्सव मिलकर आज मनाना है।।
सारी दुनिया है कुटुंब, सब सबका ध्यान रखें मिलकर। 
हर मानव की उन्नति हो, हर सुख पाएँ सब मिल-जुलकर।।
जगद्गुरु बन सबसे सबका हित हमको करवाना है। 
आजादी का अमृत महोत्सव मिलकर आज मनाना है।।
*

अमृत महोत्सव २ सारी दुनिया देख रही है

भारत का प्रगति गान २
सारी दुनिया देख रही है
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
सारी दुनिया देख रही है अब भारत की ओर।
विश्वगुरु फिर आए आगे थामे जग की डोर।।
सारी दुनिया देख रही है.......
*
आजादी का अमृत महोत्सव, याद रखो बलिदान।
'मन की बात' फूँक दो अपने सपनों में नव जान।।
बने आत्म निर्भर भारत है दांडी का संदेश।
मौलिक अधिकारों की रक्षा, है कर्तव्य विशेष।।
हम मेहनतकश उगा रहे हैं नित्य सुनहरी भोर
सारी दुनिया देख रही है अब भारत की ओर।
विश्वगुरु फिर आए आगे थामे जग की डोर।।
सारी दुनिया देख रही है.......
*
हिंद महासागर से हिमगिरि तक भारत है एक।
अंतरिक्ष नापे इसरो, अद्भुत तकनीक विवेक।।
सिंधु नर्मदा कावेरी गंगा यमुना के तीर।
बनें रेल पुल मार्ग सुरंगें, रक्षा की प्राचीर।।
मेट्रो आयुध यान आई टी का दस दिश है जोर
सारी दुनिया देख रही है अब भारत की ओर।
विश्वगुरु फिर आए आगे थामे जग की डोर।।
सारी दुनिया देख रही है.......
*
हैं भविष्य उज्जवल ताकत अपनी मजदूर-किसान।
ऊँच-नीच मिट गई साथ हैं अब जवान विज्ञान।।
योग सीखता सब जग हमसे, करता जय-जयकार।
कोरोना टीका भारत का मानव को उपहार।
कंकर से शंकर रच दें हम, आशा नई अँजोर
सारी दुनिया देख रही है अब भारत की ओर।
विश्वगुरु फिर आए आगे थामे जग की डोर।।
सारी दुनिया देख रही है.......
*

अमृत महोत्सव १ अगिन नमन गणतंत्र महान

आजादी का अमृत महोत्सव १ 

*
दांडी मार्च साबरमती
भारत का प्रगति गान
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' 
अगिन नमन गणतंत्र महान,
जनगण गाए मंगलगान। 
अमृत महोत्सव स्वतंत्रता का 
महके लोकतंत्र उद्यान।।  
*
दसों दिशाएँ लिए आरती,
नजर उतारे मातु भारती। 
भारत वर्ष बन रहा जगगुरु 
नेह नर्मदा पुलक तारती। । 
नीलगगन विस्तीर्ण वितान 
अगिन नमन गणतंत्र महान
*
ध्वजा तिरंगी फहरा फरफर, 
जनगण की जय बोले फिर फिर।  
इसरो रवि बन नापे नभ नित 
तम घिर विकल न हो मन्वन्तर।।  
सत्-शिव-सुंदर मूल्य महान
अगिन नमन गणतंत्र महान
*
नीव सुदृढ़ मजदूर-किसान,
रक्षक हैं सैनिक बलवान।  
अभियंता निर्माण करें नव-
मूल्य सनातन गढ़ इंसान।।  
सत्साहित्य रचें रस-खान
अगिन नमन गणतंत्र महान 
*
केसरिया बलिदान-क्रांति है,
श्वेत स्नेह सद्भाव शांति है। 
हरी जनाकांक्षा नव सपने-
नील चक्र निर्मूल भ्रांति है।। 
रज्जु बंध, निर्बंध उड़ान
अगिन नमन गणतंत्र महान 
*
कंकर हैं शंकर बन पाएँ
मानवता की जय जय गाएँ
अडिग अथक निष्काम काम कर
बिंदु सिंधु बनकर लहराएँ 
करे समय अपना जयगान
अगिन नमन गणतंत्र महान 
****

रविवार, 7 मार्च 2021

भारत का प्रगति गान ३

भारत का प्रगति गान ३ 
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

जग गुरु भारत बने हमारा, 
साबरमती तीर से गूँजा 
जनगण का जयकारा। 
अमृत महोत्सव आज़ादी का 
मना देश हुंकारा।। 
जग गुरु भारत बने हमारा
जनगण का जयकारा।......
*
'मन की बात' करें हिल-मिलकर। 
भारत 'स्वच्छ' रखें मिल-जुलकर।।
'जनारोग्य-जन औषधि' सस्ती-
'ऋण' लें युवा उद्यमी हँसकर।।  
'एम्स' ने स्वास्थ्य सुधारा।
जग गुरु भारत बने हमारा
जनगण का जयकारा।......
*  
नीति 'उज्ज्वला' से विकास है,
'रक्षा बीमा' शुभ प्रयास है। 
गाँव-गाँव 'बिजली-मकान' से-
आया जीवन में उजास है। 
'शिक्षा' ने भाग्य सँवारा 
जग गुरु भारत बने हमारा
जनगण का जयकारा।......
अपराधी को 'सख्त सजा' है, 
करो 'परिश्रम' तभी मजा है। 
'तीन तलाक' न रस्ता रोके-
'शोषक' को कानून कजा है।।
'कृषि कानून' सुधारा 
जग गुरु भारत बने हमारा
जनगण का जयकारा।......
'अंत्योदय' योजना सुहाई,
'मुद्रा योजना' उन्नति लाई। 
'मैटरनिटी लीव' अब ज्यादा 
'कनेक्टिविटी डिजिटल' मन भाई।।
'जन धन खाता' हुआ सहारा 
जग गुरु भारत बने हमारा
जनगण का जयकारा।......
*
मित्रों को 'कोरोना टीका',
बाँट रहे है कारज नीका। 
'स्ट्राइक सर्जिकल' शौर्य है-
बिना पराक्रम जीवन फीका। 
दिया 'योग' जग को उपकारा 
जग गुरु भारत बने हमारा
जनगण का जयकारा।......
*

आजादी का अमृत महोत्सव


आजादी का अमृत महोत्सव
भारत की आजादी की ७५ वीं वर्षग्रंथि पर तीन सप्ताह तक चलनेवाले ‘भारत का अमृत महोत्सव’ पर्व का आयोजन पूरे देश में १२ मार्च २०२१ से प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी साबरमती द्वारा आरंभ किया जाएगा। इसके अंतर्गत देश के सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में भारत के ऐतिहासिक वैभव, सांस्कृतिक धरोहर, प्रौद्योगिकी विकास एवं डिजिटल पहल को प्रदर्शित किया जायेगा । केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला ने मंगलवार को राज्य सरकारों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासन के अधिकारियों के साथ चर्चा कर १२ मार्च से ५ अप्रैल तक आयोजित होने वाले इस महोत्सव की तैयारियों का जायजा जिया । यह कार्यक्रम साल २०२२ में देश की आजादी की ७५ वीं वर्षगांठ से ७५ सप्ताह पूर्व आयोजित की जा रही है । देश की आजादी की ७५ वीं वर्षगांठ से जुड़े विभिन्न कार्यक्रम साल २०२२ से साल २०२३ के स्वतंत्रता दिवस तक मनाया जायेगा । इस महोत्सव का उद्देश्य वर्ष १९४७ में स्वतन्त्रता के बाद की विभिन्न उपलब्धियों को प्रदर्शित कर जनगण के मन में गर्व की अनुभूति करना है। केंद्रीय गृह सचिव ने राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों से विभिन्न गतिविधियों को लेकर योजना तैयार करने को कहा। इस अवसर पर गुरू तेग बहादुर, श्री अरविंदो, सुभाष चंद्र बोस जैसे विभूतियों और स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े महान नेताओं पर कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे । इसके अलावा साइकिल रैलियां, प्रदर्शनी, योग शिविर, लेख प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जायेगा ।
अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में विभिन्न मंत्रालयों से आयोजित कार्यक्रमों के बारे में मार्गदर्शन के लिए राष्ट्रीय कार्यान्वयन समिति पहले ही गठित कर ली गई है। वर्ष २०१७ में स्वतंत्रता दिवस पर अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि यदि हममें से प्रत्येक व्यक्ति, यह ध्यान दिए बिना कि वह कहाँ से जुडा है, एक नए संकल्प, नई ऊर्जा, नई शक्ति के साथ प्रयास करे, तो हम अपनी सामूहिक शक्ति से आजादी के ७५वें वर्ष २०२२ में पूरे देश का परिदृश्य बदल सकते हैं। यह भारत, एक नया भारत होगा- यह सुरक्षित समृद्ध और सुदृढ भारत होगा। सरकार ने २५९ सदस्यों के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय समिति का गठन किया है जिसके लिए एक राजपत्रित अधिसूचना जारी की गई है। इस राष्ट्रीय समिति में केंद्रीय मंत्रियों के अलावा सभी क्षेत्रों के गणमान्य नागरिक शामिल हैं। समिति राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय स्वतंत्रता की ७५वीं वर्षगांठ की स्मृति के लिए कार्यक्रमों के निर्माण के लिए नीति निर्देश और दिशा निर्देश प्रदान करेगी।

भारत सरकार ने १५ अगस्त, २०२२ से ७५ सप्ताह पहले भारतीय स्वतंत्रता के ७५ वर्षों का जश्न शुरू करने का फैसला किया है। इस महोत्सव का उद्देश्य India@2047 के लिए विज़न बनाना है। इस महोत्सव में तकनीकी और वैज्ञानिक उपलब्धियों के प्रदर्शन के साथ विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे। इसके अलावा, इस इवेंट में कुछ अज्ञात स्थानों और कुछ स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान को ही प्रदर्शित किया जायेगा। इस मौके पर सरकार विभिन्न मेगा परियोजनाओं को राष्ट्र को समर्पित करेगी। अलग-अलग मंत्रालयों को अलग-अलग महत्वपूर्ण परियोजनाओं की पहचान करने के लिए कहा गया है और सभी मंत्रालयों को अगले महीने से India@ 75 समारोह शुरू करने के लिए कहा गया है। इस सप्ताह से अंतर-मंत्रालयी बैठकें और समीक्षा बैठकें होंगी। सचिवों के समूह को गतिविधियों/इवेंट के लिए विस्तृत योजना तैयार करने और ७५ सप्ताह में से प्रत्येक के लिए एक साप्ताहिक विषय तैयार करने के लिए कहा गया है। सूचना और प्रसारण मंत्रालय जल्द ही समयसीमा के साथ इवेंट का एक कैलेंडर जारी करेगा। है।

सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग उच्च अनुसूचित जाति की आबादी वाले १०,०००  गाँवों में ‘मॉडल गाँव’ सुविधाएँ लाएगा। अल्पसंख्यक मंत्रालय जियारत और उमराह तीर्थयात्रियों को मक्का के अलावा पवित्र स्थलों के लिए हज समिति अधिनियम २००२ में संशोधन पर विचार करेगा। इसी अवधि में १०० शहरों में सीवर सफाई का पूर्ण मशीनीकरण किया जाएगा।
२०१५-१६ में किए गए 13 वादे होंगे पूरे
बजट २०१५-१६ १३ वादे हैं, जिन्हें देश की आजादी के ७५वें वर्ष यानी २०२२ के अमृत महोत्सव के दौरान पूरे किए जाएँगे। ये सभी वादे भी आत्मनिर्भरता के विजन के अनुरूप हैं। 
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के अध्यक्ष प्रो. डी.पी. सिंह ने इस संबंध में राज्यों, विश्वविद्यालयों और सभी उच्च शिक्षण संस्थानों को पत्र में लिखा है कि समारोह का शुभारंभ १५ अगस्त २०२२ से ७५ सप्ताह पूर्व यानी १२ मार्च २०२१ को प्रस्तावित है। इस दिन महात्मा गांधी के नेतृत्व में किए गए ऐतिहासिक ‘नमक सत्याग्रह’ की ९१वीं वर्षगांठ भी है। इसी के तहत आईआईटी, आईआईएम, एनआईटी और देश के सभी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ नामक कार्यक्रम १२ मार्च २०२१ से १५ अगस्त २०२२ तक चलेंगे।कार्यक्रम में भारत के अपरिचित स्थानों और स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान का उल्लेख किया जाएगा। सभी संस्थानों को इसके तहत योजना बनानी होगी। इसमें १९४७ की उपलब्धियों को कार्यक्रमों में शामिल कर २०४७ से जोड़ा जाएगा। समारोह के माध्यम से भारत के स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान की याद दिलाना और संबंधित अपरिचित स्थानों की छात्रों को जानकारी देना होगा। यह आयोजन हमारे देश की तकनीकी और वैज्ञानिक उपलब्धियों के प्रदर्शन के साथ सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों को भी देखेगा. यूजीसी ने कहा - कार्यक्रम में भारत के कुछ अज्ञात स्थानों और स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा किए गए योगदान पर प्रकाश डाला जाएगा। कालेज महोत्सव के अंतर्गत १९४७ के बाद से देश की उपलब्धियों को प्रदर्शित करने के लिए गतिविधियों का आयोजन करेंगे। उन स्वतंत्रता सेनानियों और स्थानों के योगदान की याद दिलाने के लिए समारोह आयोजित करेंगे जो अस्पष्टता में बने हुए हैं और उन्हेंं प्रचारित करें ताकि आम जनता को जागरूक किया जा सके।
भारत सरकार भारत ने अमृत महोत्सव के लिए एक लोगो डिजाइन प्रतियोगिता का आयोजन किया जिसमें २८ फरवरी भाग लेने की अंतिम तिथि थी. विजेताओं को पुरस्कार राशि में 1 लाख रुपये तक मिलेंगे.
मध्य प्रदेश लोक शिक्षण संचालनालय आयुक्त ने प्रदेश भर के स्कूलों में भारत की स्वतंत्रता के ७५ वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में 'आजादी का अमृत महोत्सव' आयोजन करने को लेकर आदेश जारी किया है. इस आदेश का पालन राज्य के सभी स्कूलों को करना होगा. सभी स्कूलों में संबंधित विभिन्न कार्यक्रम १५ अगस्त २०२२ के ७५ सप्ताह पूर्व प्रारंभ होंगे तथा १५ अगस्त २०१३ तक मनाए जाएंगे. सभी विद्यालयों एवं जिला पुस्तकालयों में १२ मार्च को लगभग १ घंटे का कार्यक्रम किया जाएगा. इन कार्यक्रम में किसी ज्ञानी वक्ता को आमंत्रित कर उन्हें १८५७ के स्वतंत्रता संग्राम से लेकर १९४७ में स्वतंत्रता प्राप्त तक उस जिले अथवा तहसील या ग्राम में जो घटनाएं हुई तथा स्थानीय नायक उभर कर आए उनके बारे में स्टूडेंट्स को बताया जाए. स्कूलों में "आजादी के अमृत महोत्सव" में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों पर प्रदर्शनियों/चलचित्र तथा निबंध लेखन, एकांकियों तथा स्वतंत्रता संग्राम से संबंधित देश भक्ति गीतों का भी आयोजन किया जा सकता है. साथ ही अपने जिले अथवा आस पास के क्षेत्र के स्वतंत्रता संग्राम की जानकारी भी स्टूडेंट्स को विभिन्न माध्यमों से दी जाएगी. स्टूडेंट्स को इन योगदानों की जानकारी मिलने से उनके अंदर गौरव तथा प्रेरणा का भाव आएगा.विद्यालय प्रशासन को इन कार्यक्रमों का आयोजन कर उसका प्रतिवेदन और फोटो १५ मार्च तक ई-मेल आई.डी dpi75yearsuzadia gmail.com पर भेजने को कहा गया है. इस महोत्सव को मनाने के पीछेेे भारत को २०४७ के लिए एक दृष्टिकोण पैदा करना है। इसमें विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से देश को तकनीकी और वैज्ञानिक प्रगति को दर्शाया जाएगा।
मध्य प्रदेश लोक शिक्षण संचालनालय आयुक्त ने प्रदेश भर के स्कूलों में भारत की स्वतंत्रता के ७५ वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ आयोजन करने को लेकर आदेश जारी किया है. इस आदेश का पालन राज्य के सभी स्कूलों को करना होगा. सभी स्कूलों में संबंधित विभिन्न कार्यक्रम १५ अगस्त २०२२ के ७५ सप्ताह पूर्व प्रारंभ होंगे तथा १५ अगस्त २०१३ तक मनाए जाएंगे. आदेश के अनुसार, सभी विद्यालयों एवं जिला पुस्तकालयों में १२ मार्च को लगभग १ घंटे का कार्यक्रम किया जाएगा. इन कार्यक्रम में किसी ज्ञानी वक्ता को आमंत्रित कर उन्हें १८५७ के स्वतंत्रता संग्राम से लेकर १९४७ में स्वतंत्रता प्राप्त तक उस जिले अथवा तहसील या ग्राम में जो घटनाएं हुई तथा स्थानीय नायक उभर कर आए उनके बारे में छात्रों को बताया जाए.
स्कूलों में “आजादी के अमृत महोत्सव” में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों पर प्रदर्शनियों/चलचित्र तथा निबंध लेखन, एकांकियों तथा स्वतंत्रता संग्राम से संबंधित देश भक्ति गीतों का भी आयोजन किया जा सकता है. साथ ही अपने जिले अथवा आस पास के क्षेत्र के स्वतंत्रता संग्राम की जानकारी भी स्टूडेंट्स को विभिन्न माध्यमों से दी जाएगी. स्टूडेंट्स को इन योगदानों की जानकारी मिलने से उनके अंदर गौरव तथा प्रेरणा का भाव आएगा.विद्यालय प्रशासन को इन कार्यक्रमों का आयोजन कर उसका प्रतिवेदन और फोटो 15 मार्च तक ई-मेल आई.डी dpi75yearsuzadia gmail.com पर भेजने को कहा गया है.
जम्मू कश्मीर दे हर हिस्से च ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ दे सरबंधै च केंई भांती दे कार्यक्रम लौआये जांगन RNU Jammu भारत दी आजादी दे 75 ब‘रे पूरे होने सरबंधै च मनाये जा‘रदे ‘आजादी का अमृत महोत्सव‘ दियें तैयारियें दा जायजा लैने लेई लैफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा होरें कल इक बैठक सद्दी। इत्त सरबंधै च इस महिने दी 12 तारीख गी स्वतंत्रता सैनानियें ते शहीदें जिआं ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह, मकवूल शेरवानी हुंदी जन्म आहली थाहरें उप्पर केंई समारोह लौआये जांगन। इस मौके उप्पर लैफ्टिनेंट गवर्नर होरें सब्बने प्रशासनिक सचिवें गी हिदायतां दितियां जे ओ ‘आजादी का अमृत महोत्सव‘ गी लेईये प्रदेश दे सारे हिस्सें च केंई समारोह लौआये जाने गी यकीनी बनान। इस दरान केंई भांती दे कार्यक्रम जिआं नमैशा, रैलियां, सैमिनार ते होर केंई चाल्ली दे सांस्कृतिक कार्यक्रम लौआये जांगन।

शनिवार, 6 मार्च 2021

आओ! कविता करना सीखें १

आओ! कविता करना सीखें १
संजीव
यह स्तंभ उनके लिए है जो काव्य रचना करना बिलकुल नहीं जानते किन्तु कविता करना चाहते हैं। हम सरल से सरल तरीके से कविता के तत्वों पर प्रकाश डालेंगे। जिन्हें रूचि हो वे अपने नाम सूचित कर दें। केवल उन्हीं की शंकाओं का समाधान किया जाएगा जो गंभीर व नियमित होंगे। जानकार और विद्वान साथी इससे जुड़कर अपने समय का अपव्यय न करें।
*
कविता क्यों?
अपनी अनुभूतियों को विचारों के माध्यम से अन्य जनों तक पहुँचाने की इच्छा स्वाभाविक है। सामान्यत: बातचीत द्वारा यह कार्य किया जाता है। लेखक गद्य (लेख, निबंध, कहानी, लघुकथा, व्यंग्यलेख, संस्मरण, लघुकथा आदि) द्वारा, कवि पद्य (गीत, छंद, कविता आदि) द्वारा, गायक गायन के माध्यम से, नर्तक नृत्य द्वारा, चित्रकार चित्रों के माध्यम से तथा मूर्तिकार मूर्तियों के द्वारा अपनी अनुभूतियों को अभिव्यक्त करते हैं। यदि आप अपने विचार व्यक्त करना नहीं चाहते तो कविता करना बेमानी है। 
कविता क्या है?
मानव ने जब से बोलना सीखा, वह अपनी अनुभूतियों को इस तरह अभिव्यक्त करने का प्रयास करता रहा कि वे न केवल अन्यों तक संप्रेषित हों अपितु उसे और उन्हें दीर्घकाल तक स्मरण रहें। इस प्रयास ने भाषिक प्रवाह संपन्न कविता को जन्म दिया। कविता में कहा गया कथ्य गद्य की तुलना में सुबोध और सहज ग्राह्य होता है। इसीलिये माताएँ शिशुओं को लोरी पहले सुनाती हैं, कहानी बाद में। अबोध शिशु न तो भाषा जानता है न शब्द और उनके अर्थ तथापि माँ के चेहरे के भाव और अधरों से नि:सृत शब्दों को सुनकर भाव हृदयंगम कर लेता है और क्रमश: शब्दों और अर्थ से परिचित होकर बिना सीखे भाषा सीख लेता है। 
आचार्य विश्वनाथ के अनुसार 'वाक्यम् रसात्मकं काव्यम्' अर्थात रसमय वाक्य ही कविता है। पंडितराज जगन्नाथ कहते हैं, 'रमणीयार्थ-प्रतिपादकः शब्दः काव्यम्' यानि सुंदर अर्थ को प्रकट करनेवाली रचना ही काव्य है। पंडित अंबिकादत्त व्यास का मत है, 'लोकोत्तरानन्ददाता प्रबंधः काव्यानाम् यातु' यानि लोकोत्तर आनंद देने वाली रचना ही काव्य है। आचार्य भामह के मत में "शब्दार्थौ सहितौ काव्यम्" अर्थात कविता शब्द और अर्थ का उचित मेल" है। 
आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार ''जब कवि 'भावनाओं के प्रसव' से गुजरते हैं, तो कविताएँ प्रस्फुटित होती हैंं।'' महाकवि जयशंकर प्रसाद ने सत्य की अनुभूति को ही कविता माना है।
मेरे विचार में कवि द्वारा अनुभूत सत्य की शब्द द्वारा सार्थक-संक्षिप्त लयबद्ध अभिव्यक्ति कविता है। कविता का गुण गेयता मात्र नहीं अपितु वैचारिक संप्रेषणीयता भी है। कविता देश, काल, परिस्थितियों, विषय तथा कवि के अनुसार रूप-रंग आकार-प्रकार धारण कर जन-मन-रंजन करती है।
कविता के तत्व 
विषय 
कविता करने के लिए पहला तत्व विषय है। विषय न हो तो आप कुछ कह ही नहीं सकते। आप के चारों और दिख रही वस्तुएँ प्राणी आदि, ऋतुएँ, पर्व, घटनाएँ आदि विषय हो सकते हैं। 
विचार 
विषय का चयन करने के बाद उसके संबंध में अपने विचारों पर ध्यान दें। आप विषय के संबंध में क्या सोचते हैं? विचारों को मन में एकत्र करें। 
अभिव्यक्ति 
विचारों को बोलकर या लिखकर व्यक्त किया जा सकता है। इसे अभिव्यक्त करना कहते हैं।जब विचारों को व्याकरण के अनुसार वाक्य बनाकर बोला या लिखा जाता है तो उसे गद्य कहते हैं। जब विचारों को छंद शास्त्र के नियमों के अनुसार व्यक्त किया जाता है तो कविता जन्म लेती है। 
लय 
कविता लय युक्त ध्वनियों का समन्वय-सम्मिश्रण करने से बनती है। मनुष्य का जन्म प्रकृति की गोद में हुआ। मनुष्य की ज्ञानेन्द्रियाँ प्रकृति के उपादानों के साहचर्य में विकसित हुई हैं। प्रकृति में बहते पानी की कलकल, पक्षियों का कलरव, मेघों का गर्जन, बिजली की तडकन, सिंह आदि की दहाड़, सर्प की फुफकार, भ्रमर की गुंजार आदि में ध्वनियों तथा लय खण्डों की विविधता अनुभव की जा सकती है। पशु-पक्षियों की आवाज सुनकर आप उसके सुख या दुःख का अनुमान कर सकते हैं। माँ शिशु के रोने से पहचान जाती है कि वह भूखा है या उसे कोई पीड़ा है।
कविता और लोक जीवन 
कविता सामान्य जान द्वारा अपने विचारों और अनुभूतियों को लयात्मकता के साथ व्यक्त करने से उपजाति है। कविता करने के लिए शिक्षा नहीं समझ आवश्यक है। कबीर आदि अनेक कवि निरक्षर थे। शिक्षा काव्य रचना में सहायक होती है। शिक्षित व्यक्ति को भाषा के व्याकरण व् छंद रचना के नियमों की जानकारी होती है। उसका शब्द भंडार भी अशिक्षित व्यक्ति की  तुलना में अधिक होता है। इससे उसे अपने विचारों को बेहतर तरीके से अभिव्यक्त करने में आसानी होती है। 
आशु कविता 
ग्रामीण जन अशिक्षित अथवा अल्प शिक्षित होने पर भी लोक गीतों की रचना कर लेते हैं। खेतों में मचानों पर खड़े कृषक फसल की रखवाली करते समय अकेलापन मिटाने के लिए शाम के सुनसान सन्नाटे को चीरते हुए गीत गाते हैं। एक कृषक द्वारा गाई गई पंक्ति सुनकर दूर किसी खेत में खड़ा कृषक उसकी लय ग्रहण कर अन्य पंक्ति गाता है और यह क्रम देर रात  रहता है। वे कृषक एक दूसरे को नहीं जानते पर गीत की कड़ी जोड़ते जाते हैं। बंबुलिया एक ऐसा ही लोक गीत है। होली पर कबीरा, राई, रास आदि भी आकस्मिक रूप से रचे और गाए जाते हैं। इस तरह बिना पूर्व तैयारी के अनायास रची गई कविता आशुकविता कहलाती है। ऐसे कवी को आशुकवि कहा जाता है। 
कविता करने की प्रक्रिया 
कविता करने के लिए विषय का चयन कर उस पर विचार करें। विचारों को किसी लय में पिरोएँ। पहली पंक्ति में ध्वनियों के उतार-चढ़ाव को अन्य पंक्तियों में दुहराएँ। 
अन्य विधि यह कि पूर्व ज्ञान किसी धुन या गीत को गुनगुनाएँ और उसकी लय में अपनी बात कहने का प्रयास करें। ऐसा करने के लिए मूल गीत के शब्दों को समान उच्चारण शब्दों से बदलें। इस विधि से पैरोडी (प्रतिगीत) बनाई जा सकती है। 
हमने बचपन में एक बाल गीत मात्राएँ सीखते समय पढ़ा था। 
राजा आ राजा।  
मामा ला बाजा।।  
कर मामा ढमढम। 
नाच राजा छमछम।।  
अब इस गीत का प्रतिगीत बनाएँ -
गोरी ओ गोरी।  
तू बाँकी छोरी।। 
चल मेले चटपट।  
खूब घूमें झटपट।।
लोकगीतों और भजनों की लय का अनुकरण कर प्रतिगीत की रचना करना आसान है। 
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भजन शांति देवी वर्मा

मातुश्री स्व. शांति देवी रचित एक भजन 
गिरिजा कर सोलह सिंगार
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गिरिजा कर सोलह सिंगार
चलीं शिव शंकर हृदय लुभांय...

माँग में सेंदुर, भाल पे बिंदी,
नैनन कजरा लगाय.
वेणी गूँथ मोतियन के संग,
चंपा-चमेली महकाय.
गिरिजा कर सोलह सिंगार...

बाँह बाजूबंद, हाथ में कंगन,
नौलखा हार सुहाय.
कानन झुमका, नाक नथनिया,
बेसर हीरा भाय.
गिरिजा कर सोलह सिंगार...

कमर करधनी, पाँव पैजनिया,
घुँघरू रतन जडाय.
बिछिया में मणि, मुंदरी मुक्ता,
चलीं कमर बल खाय.
गिरिजा कर सोलह सिंगार...

लँहगा लाल, चुनरिया पीली,
गोटी-जरी लगाय.
ओढे चदरिया पञ्च रंग की ,
शोभा बरनि न जाय.
गिरिजा कर सोलह सिंगार...

गज गामिनी हौले पग धरती,
मन ही मन मुसकाय.
नत नैनों मधुरिम बैनों से
अनकहनी कह जांय.
गिरिजा कर सोलह सिंगार...

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दोहा-दोहा अलंकार

दोहा-दोहा अलंकार

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होली हो ली अब नहीं, होती वैसी मीत
जैसी होली प्रीत ने, खेली कर कर प्रीत
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हुआ रंग में भंग जब, पड़ा भंग में रंग
होली की हड़बोंग है, हुरियारों के संग
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आराधा चुप श्याम को, आ राधा कह श्याम
भोर विभोर हुए लिपट, राधा लाल ललाम
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बजी बाँसुरी बेसुरी, कान्हा दौड़े खीझ
उठा अधर में; अधर पर, अधर धरे रस भीज
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'दे वर' देवर से कहा, कहा 'बंधु मत माँग,
तू ही चलकर भरा ले, माँग पूर्ण हो माँग
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'चल बे घर' बेघर कहे, 'घर सारा संसार'
बना स्वार्थ दे-ले 'सलिल', जो वह सच्चा प्यार
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जितनी पायें; बाँटिए, खुशी आप को आप।
मिटा संतुलन अगर तो, होगा पश्चाताप।।
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संजीव