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शुक्रवार, 11 दिसंबर 2020

कुछ वर्णिक छंद 
अठ अक्षरी छंद 
विद्युन्माला छंद  
*
गणसूत्र - म म ग ग , कलबाँट - २२२ २२२ २२ 
उदाहरण -
१. राणा को घेरे में देखा 
    झाला ने होनी को लेखा  
    आगे आ पागा ले धारा 
    राणा पे प्राणों को वारा 
    *
लक्ष्मी छंद  
*
गणसूत्र - र र ग ल , कलबाँट - २१२ २१२ २१  
उदाहरण -
१. चाँद ने चाँदनी संग 
    रंग खेला; पिला भंग 
    हाय रे! भंग में रंग   
    हो गया रंग में भंग 
    *
मल्लिका छंद  
*
गणसूत्र - र ज ग ल , कलबाँट - २१२ १२१ २१  
उदाहरण -
१. कृष्ण का विराट रूप  
    दिव्य भव्यता अनूप 
    पार्थ देख मोह त्याग    
    क्रोध से हुआ विरूप 
    *
नराचिका छंद  
*
गणसूत्र - त र ल ग , कलबाँट - २२१ २१२ १२   
उदाहरण -
१. काँपा नहीं जरा हिया  
    नामो-निशां मिटा दिया  
    ज़िंदा न शत्रु एक था-
    किस्सा लिखा गया नया 
    *
प्रमाणिका छंद  
*
गणसूत्र - ज र ल ग, कलबाँट - १२१ २१२ १२   
उदाहरण -
१. दिखी न प्रेयसी यहाँ   
    छिपी गई कहो कहाँ? 
    न रास-रंग में मजा-  
    चलो चलें गई जहाँ  
    *
चित्रपदा छंद  
*
गणसूत्र - भ भ ग ग, कलबाँट - २११ २११ २२  
उदाहरण -
१. घूँघट आप उठाएँ 
    तो प्रिय-दर्शन पाएँ 
    और नहीं तरसाएँ    
    पास जरा झट आएँ 
    * 
माणवक  छंद  
*
गणसूत्र - भ त ल ग  , कलबाँट - २११ २२१ १२   
उदाहरण -
१. विप्र न था कर्ण; कहा  
    शाप मिला; झूठ कहा  
    मंत्र नहीं याद रहे- 
    द्वेष किया; आप दहा
    *
तुंग छंद  
*
गणसूत्र - न न ग ग, कलबाँट - १११ १११ २२  
उदाहरण -
१. शुभ समय हँसाता 
    अशुभ पल रुलाता  
    मनुज नच रहा है -    
    समय चुप नचाता 
    *
पद्म छंद  
*
गणसूत्र - न स ल ग, कलबाँट - १११ ११२ १२  
उदाहरण -
१. कलकल नदी कहे 
    तृषित न कहीं रहे    
    मलिन न नदी करो-    
    मुकुलित सदी रहे  
    *
नौ अक्षरी छंद 
रलका छंद  
*
गणसूत्र - म स स, कलबाँट - २२२ ११२ ११२ 
उदाहरण -
१. चीनी सैन्य महाकपटी 
    मौका पाकर थी झपटी   
    जूझी भारत-सैन्य; लड़ी-  
    तोड़ी गर्दन; जीत डटी  
    *
वर्ष छंद  
*
गणसूत्र - म त ज , कलबाँट - २२२ २२१ १२१  
उदाहरण -
१. नेताजी आश्वासन भूल  
    आँखों में झोंके हँस धूल   
    धोखे से नाराज किसान-  
    बागी हो जूझे बन शूल  
    *
पाईता छंद  
*
गणसूत्र - म भ स, कलबाँट - २२२ २११ ११२ 
उदाहरण -
१. गंगा कूदी हिमगिरि से 
    मौका पाकर थी झपटी   
    जूझी भारत-सैन्य; लड़ी-  
    तोड़ी गर्दन; जीत डटी  
    *





 ध्वनि और भाषा :
सृष्टि की उत्पत्ति नाद अथवा ध्वनि से, सूर्य से नि:सृत ध्वनि तरंगों का रेखांकन कर उसे ॐ के आकार का, 
व्याकरण और पिंगल का विकास
 गीति काव्य में छंद-
गणित के समुच्चय सिद्धांत (सेट थ्योरी) तथा क्रमचय और समुच्चय (परमुटेशन-कॉम्बिनेशन) का प्रयोग कर दोनों वर्गों में छंदों की संख्या का निर्धारण
वैदिक साहित्य में ऋग्वेद एवं सामवेद की ऋचाएँ गीत का आदि रूप हैं। गीत की दो अनिवार्य शर्तें विशिष्ट सांगीतिक लय तथा आरोह-अवरोह अथवा गायन शैली हैं। कालांतर में 'लय' के निर्वहन हेतु छंद विधान और अंत्यानुप्रास (तुकांत-पदांत) का अनुपालन संस्कृत काव्य की वार्णिक छंद परंपरा
वैदिक साहित्य में ऋग्वेद एवं सामवेद की ऋचाएँ गीत का आदि रूप हैं। गीत की दो अनिवार्य शर्तें विशिष्ट सांगीतिक लय तथा आरोह-अवरोह अथवा गायन शैली हैं। कालांतर में 'लय' के निर्वहन हेतु छंद विधान और अंत्यानुप्रास (तुकांत-पदांत) का अनुपालन संस्कृत काव्य की वार्णिक छंद परंपरा
छंदमुक्तता और छंद हीनता 
उर्दू काव्य विधाओं में छंद
उर्दू हिंदी का वह भाषिक रूप है जिसमें अरबी-फ़ारसी शब्दों के साथ-साथ मात्र गणना की पद्धति (तक़्ती) का प्रयोग किया जाता है जो अरबी लोगों द्वारा शब्द उच्चारण के समय पर आधारित हैं। पंक्ति भार गणना की भिन्न पद्धतियाँ, नुक्ते का प्रयोग, काफ़िया-रदीफ़ संबंधी नियम आदि ही हिंदी-उर्दू रचनाओं को वर्गीकृत करते हैं। हिंदी में मात्रिक छंद-लेखन को व्यवस्थित करने के लिये प्रयुक्त गण के समान, उर्दू बहर में रुक्न का प्रयोग किया जाता है। उर्दू गीतिकाव्य की विधा ग़ज़ल की ७ मुफ़र्रद (शुद्ध) तथा १२ मुरक्कब (मिश्रित) कुल १९ बहरें मूलत: २ पंच हर्फ़ी (फ़ऊलुन = यगण यमाता तथा फ़ाइलुन = रगण राजभा ) + ५ सात हर्फ़ी (मुस्तफ़इलुन = भगणनगण = भानसनसल, मफ़ाईलुन = जगणनगण = जभानसलगा, फ़ाइलातुन = भगणनगण = भानसनसल, मुतफ़ाइलुन = सगणनगण = सलगानसल तथा मफऊलात = नगणजगण = नसलजभान) कुल ७ रुक्न (बहुवचन इरकॉन) पर ही आधारित हैं जो गण का ही भिन्न रूप है। दृष्टव्य है कि हिंदी के गण त्रिअक्षरी होने के कारण उनका अधिकतम मात्र भार ६ है जबकि सप्तमात्रिक रुक्न दो गानों का योग कर बनाये गये हैं। संधिस्थल के दो लघु मिलाकर दीर्घ अक्षर लिखा जाता है। इसे गण का विकास कहा जा सकता है।
वर्णिक छंद मुनिशेखर - २० वर्ण = सगण जगण जगण भगण रगण सगण लघु गुरु
चल आज हम करते सुलह मिल बैर भाव भुला सकें
बहरे कामिल - मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन
पसे मर्ग मेरे मज़ार परजो दिया किसी ने जला दिया
उसे आह दामने-बाद ने सरे-शाम से ही बुझा दिया
उक्त वर्णित मुनिशेखर वर्णिक छंद और बहरे कामिल वस्तुत: एक ही हैं।
अट्ठाईस मात्रिक यौगिक जातीय विधाता (शुद्धगा) छंद में पहली, आठवीं और पंद्रहवीं मात्रा लघु तथा पंक्त्यांत में गुरु रखने का विधान है।
कहें हिंदी, लिखें हिंदी, पढ़ें हिंदी, गुनें हिंदी
न भूले थे, न भूलें हैं, न भूलेंगे, कभी हिंदी
हमारी थी, हमारी है, हमारी हो, सदा हिंदी
कभी सोहर, कभी गारी, बहुत प्यारी, लगे हिंदी - सलिल 
*
हमें अपने वतन में आजकल अच्छा नहीं लगता
हमारा देश जैसा था हमें वैसा नहीं लगता
दिया विश्वास ने धोखा, भरोसा घात कर बैठा
हमारा खून भी 'सागर', हमने अपना नहीं लगता -रसूल अहमद 'सागर'
अरकान मफाईलुन मफाईलुन मफाईलुन मफाईलुन से बनी उर्दू बहर हज़ज मुसम्मन सालिम, विधाता छंद ही है। इसी तरह अन्य बहरें भी मूलत: छंद पर ही आधारित हैं।
रुबाई के २४ औज़ान जिन ४ मूल औज़ानों (१. मफ़ऊलु मफ़ाईलु मफ़ाईलु फ़अल, २. मफ़ऊलु मफ़ाइलुन् मफ़ाईलु फ़अल, ३. मफ़ऊलु मफ़ाईलु मफ़ाईलु फ़ऊल तथा ४. मफ़ऊलु मफ़ाइलुन् मफ़ाईलु फ़ऊल) से बने हैं उनमें ५ लय खण्डों (मफ़ऊलु, मफ़ाईलु, मफ़ाइलुन् , फ़अल तथा फ़ऊल) के विविध समायोजन हैं जो क्रमश: सगण लघु, यगण लघु, जगण २ लघु / जगण गुरु, नगण तथा जगण ही हैं। रुक्न और औज़ान का मूल आधार गण हैं जिनसे मात्रिक छंद बने हैं तो इनमें यत्किंचित परिवर्तन कर बनाये गये (रुक्नों) अरकान से निर्मित बहर और औज़ान छंदहीन कैसे हो सकती हैं?
औज़ान- मफ़ऊलु मफ़ाईलुन् मफ़ऊलु फ़अल
सगण लघु जगण २ लघु सगण लघु नगण
सलगा ल जभान ल ल सलगा ल नसल
इंसान बने मनुज भगवान नहीं
भगवान बने मनुज शैवान नहीं 
धरती न करे मना, पाले सबको-
दूषित न करो बनो हैवान नहीं -सलिल

छंद के तत्व :

छंद शब्द 'चद्' धातु से बना है जिसका अर्थ है 'आह्लादित करना', 'खुश करना'। यह आह्लाद वर्ण या मात्रा की नियमित संख्या के विन्यास से उत्पन्न होता है। 'वर्णों या मात्राओं के नियमित संख्या के विन्यास से यदि आह्लाद पैदा हो, तो उसे छंद कहते हैं'। निश्चित चरण, वर्ण, मात्रा, यति, गति, तुक, गण, आदि के द्वारा नियोजित पद्य रचना को छंद कहते है।
छंद के अंग
मात्रा
वर्ण-मात्रा
पद-चरण  
यति- गति
पदांत-तुकांत 
गण
मात्रा : किसी ध्वनि के उच्चारण में जो समय लगता है, उसकी सबसे छोटी इकाई को मात्रा कहते है। मात्राएँ स्वरों की होती है, व्यंजनों की नही। वर्ण का अर्थ अक्षर से है, इसके दो भेद होते है। ह्रस्व स्वर जैसे ‘अ’ की एक मात्रा और दीर्घस्वर की दो मात्राएँ मानी जाती है । यदि ह्रस्व स्वर के बाद संयुक्त वर्ण, अनुस्वार अथवा विसर्ग हो तब ह्रस्व स्वर की दो मात्राएँ मानी जाती है । पाद का अन्तिम ह्रस्व स्वर आवश्यकता पडने पर गुरु मान लिया जाता है ।
वर्ण 
(१) ह्रस्व या लघु वर्ण-
जिन वर्णो के उच्चारण में कम समय लगता है, उन्हें ह्रस्व वर्ण कहते है। इनकी एक मात्रा होती है। इनका चिह्न '।' है। अ, इ, उ तथा ऋ लघु वर्ण है। 
(२ )दीर्घ या गुरु वर्ण-
जिन वर्णो के उच्चारण में अधिक समय लगता है, उन्हें दीर्घ वर्ण कहते है। इनकी दो मात्राएँ होती है तथा चिह्न 'ऽ' है। आ, ई, ऊ, औ आदि दीर्घ वर्ण है।
पद : छंद में प्रयुक्त पंक्तियों को पद कहते हैं। दोहा को द्विपदी कहा जाता है चूंकि दोहा दो पंक्तियों से बनता है। 
चरण : प्रत्येक पद के मध्य में जहाँ विराम निर्धारित होता है उसके पहले या बाद के भाग को चरण कहते हैं। 
पाद में वर्णों या मात्राओं की संख्या निश्चित होती हैं। चरण दो प्रकार के होते हैं। साधारणतः छंद के चार चरण होते है- पहले, तीसरे, पांचवे आदि चरण 'विषम' चरण तथा दूसरे, चौथे छठवें आदि  चरण को 'सम' चरण कहते हैं।
यति- छंद पढ़ते समय उच्चारण की सुविधा के लिए तथा लय को ठीक रखने के लिए कहीं-कहीं विराम लेना पड़ता है इसी विराम या ठहराव को यति कहते है।
गति- छंद की लय को गति कहते है।
तुक- छंद के चरणों के अंत मे समान वर्णो की आवृत्ति को तुक कहते है
गण- 
संख्या, क्रम तथा गण- छंद में मात्राओं और वर्णो की गिनती को संख्या कहते है तथा छंद में लघु वर्ण और दीर्घ वर्ण की व्यवस्था को क्रम कहते है
तीन वर्णो के समूह को गण कहते है। इनकी संख्या आठ निश्चित की गई है। इनके लक्षण और तालिका निम्न है।

गणचिह्नउदाहरणप्रभाव
यगण (य) ।ऽऽ नहाना, सवेरा शुभ
मगण (मा) ऽऽऽ आजादी, नानाजी शुभ
तगण (ता) ऽऽ। चालाक, आकार अशुभ
रगण (रा) ऽ।ऽ पालना, केतकी अशुभ
जगण (ज) ।ऽ। करील, नरेश अशुभ
भगण (भा) ऽ।। बादल, गायक शुभ
नगण (न) ।।। कमल शुभ
सगण (स) ।।ऽ कमला, रचना अशुभ

(1)मात्रिक छंद- यह छंद मात्रा की गणना पर आधारित होता है, इसलिए इसे मात्रिक छंद कहा जाता है। दोहा, रोला, सोरठा, चौपाई, हरिगीतिका, छप्पय आदि प्रमुख मात्रिक छंद है।

(2) वर्णिक छंद- जिन छन्दों में केवल वर्णो की संख्या और नियमो का पालन किया जाता है, वे वर्णिक छंद कहलाते है। घनाक्षरी, रूपघनक्षरी, देवघनाक्षरी, मुक्तक, दण्डक आदि वर्णिक छंद है

(3) उभय छंद- जिन छन्दों में मात्र और वर्ण दोनी की समानता एक साथ पाई जाती है, उन्हें उभय छंद कहते है।

(4) मुक्तक छंद- इन छन्दों को स्वच्छंद छंद भी कहा जाता है, इनमे मात्रा और वर्ण की संख्या निश्चित नही होती है। 

शिवमय दोहे

शिवमय दोहे
*
डिम-डिम डमरू-नाद है, शिव-तात्विक उद्घोष.
अशुभ भूल, शुभ ध्वनि सुनें, नाद अनाहद कोष.
.
डमरू के दो शंकु हैं, सत्-तम का संयोग.
डोर-छोर श्वासास है, नाद वियोगित योग.
.
डमरू अधर टँगा रहे, नभ-भू मध्य विचार.
निराधार-आधार हैं, शिव जी परम उदार.
.
डमरू नाग त्रिशूल शशि, बाघ-चर्म रुद्राक्ष.
वृषभ गंग गणपति उमा कार्तिक भस्म शिवाक्ष.
.
तेरह तत्व त्रयोदशी, कभी न भूलें भक्त.
कर प्रदोष व्रत, दोष से मुक्त, रहें अनुरक्त.
.
शिव विराग-अनुराग हैं, क्रोधी परम प्रशांत.
कांता कांति अजर शिवा, नमन अमर शिव कांत.
.
गौरी-काली एक हैं, गौरा-काला एक.
जो बतलाए सत्य यह्, वही राह है नेक.
...

गीत

एक गीत  :
*
नूराकुश्ती खेल रहे हो
देश गर्त में ठेल रहे हो
*
तुम ही नहीं सयाने जग में
तुम से कई समय के मग में
धूल धूसरित पड़े हुए हैं
शमशानों में गड़े हुए हैं
अवसर पाया काम करो कुछ
मिलकर जग में नाम करो कुछ
रिश्वत-सुविधा-अहंकार ही
झिल रहे हो, झेल रहे हो
नूराकुश्ती खेल रहे हो
देश गर्त में ठेल रहे हो
*
दलबंदी का दलदल घटक
राजनीति है गर्हित पातक
अपना पानी खून बतायें
खून और का व्यर्थ बहायें
सच को झूठ, झूठ को सच कह
मैली चादर रखते हो तह
देशहितों की अनदेखी कर
अपनी नाक नकेल रहे हो
नूराकुश्ती खेल रहे हो
देश गर्त में ठेल रहे हो
२२-१२-२०१७
*

कुंडलिया, दोहे, नवगीत, मुक्तक, क्षणिका, सवैया, बाल गीत, षट्पदी, लघुकथा

*
कुंडलिया 
वादे कर जो भुला दे, वह खोता विश्वास.
ऐसे नेता से नहीं, जनता को कुछ आस.
जनता को कुछ आस, स्वार्थ ही वह साधेगा.
भूल देश-हित दल का हित ही आराधेगा.
सलिल कहे क्यों दल-हित को जनता पर लादे.
वह खोता विश्वास भला दे जो कर वादे 
१९-१२-२०१७ 
*
शिवमय दोहे 
लोभ, मोह, मद शूल हैं, शिव जी लिए त्रिशूल.
मुक्त हुए, सब को करें, मनुज न करना भूल.
.
जो त्रिशूल के लक्ष्य पर, निश्चय होता नष्ट.
बाणासुर से पूछिए, भ्रष्ट भोगता कष्ट.
.
तीन लोक रख सामने, रहता मौन त्रिशूल.
अत्याचारी को मिले, दंड हिला दे चूल.
.
जर जमीन जोरू 'सलिल', झगड़े की जड़ तीन.
शिव त्रिशूल छोड़े नहीं, भूल अगर संगीन.
.
शिव-त्रिशूल से काँपते, देव दनुज नर प्रेत.
जो सम्मुख आया, हुआ शिव प्रहार से खेत.
२२-१२-२०१७
शिव न सहज ही रुष्ट हों, लेकिन सहज प्रसन्न.
रुष्ट सहज, खुश हो न जो, उस सा कौन विपन्न?
.
आप अनाहद नाद शिव, जग जाने ओंकार,
जो जपता श्रद्धा सहित, उसके मिटें विकार.
.
नंदी बैठा ताल दे, शिव हों नृत्य-विभोर.
लिपट कंठ से झूमता, नागराज कह और. 
.
शशि सिर पर शशिनाथ के, बैठा ले आनंद.
गणपति रचते नित नए, उमा सुनातीं छ्न्द.
.
अमृत-विष का संतुलन, सुख-दुख सह समभाव.
शिव त्रिशूल ले हाथ में, हँसकर करें निभाव.
१९-१२-२०१७ 
.
शिव को बाहर खोज मत, मन के भीतर झाँक.
सत्-सुंदर ही शिवा हैं, आँक सके तो आँक.
.
शिवा कार्य-कारण बनें, शिव हों सहज निमित्त.
परि-सम्पूरक जानिए, जैसे हों तन-चित्त.
.
शिव तो देहातीत हैं, उन्हें देह मत मान.
शिव से सच कब छिप सका?, तुरत हरें अभिमान.
.
शिव भोले भाले दिखें, किंतु चतुर हैं खूब.
हैं भोले भाले लिए, सजग ध्यान में डूब.
.
अहंकार गिरि पर बसें, शिव रखकर निज पैर,
अहं गला ममता बना, शिवा रहें निर्वैर.
.
१८-१२-२०१७ 
*
नवगीत:
अनेक वर्णा पत्तियाँ हैं
शाख पर तो क्या हुआ?
अपर्णा तो है नहीं अमराई
सुख से सोइये
बज रहा चलभाष सुनिए
काम अपना छोड़कर
पत्र आते ही कहाँ जो रखें
उनको मोड़कर
किताबों में गुलाबों की
पंखुड़ी मिलती नहीं
याद की फसलें कहें, किस नदी
तट पर बोइये?
सैंकड़ों शुभकामनायें
मिल रही हैं चैट पर
सिमट सब नाते गए हैं
आजकल अब नैट पर
ज़िंदगी के पृष्ठ पर कर
बंदगी जो मीत हैं
पड़ गये यदि सामने तो
चीन्ह पहचाने नहीं
चैन मन का, बचा रखिए
भीड़ में मत खोइए
.
३-१२-२०१७ 
*
अपनी अपनी ढपलियाँ, अपने-अपने राग.
कोयल-कंठी मौन है, सुरमणि होते काग.
वैतालिक कवि विचरते, मनोलोक में खूब.
नभ ले आते धरा पर, कर कल्पना अजूब.
*
दोहा 
राम-राम सब से करें,या कहिए जय राम.
कह आ राम विराम तज, काम करें तज काम.
२-१२-२०१७ 
मुक्तक
नमन तुमको कर रहा सोया हुआ ही मैं 
राह दिखाता रहा, खोया हुआ ही मैं 
आँख बंद की तो हुआ सच से सामना 
जाना कि नहीं दूध का धोया हुआ हूँ मैं
१-१२-२०१७ 
*
क्षणिका 
उस्ताद अखाड़ा नहीं,
दंगल हुआ?, हुआ.
बाकी न वृक्ष एक भी,
जंगल हुआ? हुआ.
दस्तूर जमाने का अजब,
गजब ढा रहा 
पूछते- 
हाय-हाय कर 
मंगल हुआ? हुआ.
*
मुक्तक 
घर-घर में गान्धारियाँ हैं, कोई क्या करे?
करती न रफ़ू आरियाँ हैं, कोई क्या करे?
कुन्ती, विदुर न धर्मराज शेष रहे हैं-
शकुनी-अशेष पारियाँ हैं, कोई क्या करे?
३०-११-२०१७ 
*
क्षणिका 
भोर भई जागो
*
चीर तम का चीर आता,
रवि उषा के साथ.
दस दिशाएँ करें वंदन 
भले आए नाथ.
करें करतल-ध्वनि बिरछ मिल,
सलिल-लहर हिलोर.
'भोर भई जागो' गाती है 
प्रात-पवन झकझोर.
१५-११-२०१७ 
*
दोहे 
जब तक मन में चाह थी,
तब तक मिली न राह.
राह मिली अब तो नहीं,
शेष रही है चाह.
.
राम नाम की चाह कर,
आप मिलेगी राह.
राम नाम की राह चल,
कभी न मिटती चाह.
.
दुनिया कहती युक्ति कर,
तभी मिलेगी राह.
दिल कहता प्रभु-भक्ति कर,
मिल मुक्ति बिन चाह.
.
भटक रहे बिन राह ही,
जग में सारे जीव.
राम-नाम की राह पर,
चले जीव संजीव.
.१४-११-२०१७ 
*
जनक छंद 
श्रीगणेश रुचिकर हुआ 
जनकछंद काकातुआ 
कलरव कर मन हर रहा.
८-११-२०१७ 
*
सवैया 
रचना विधान- (गुरु लघु लघु x ७)
.
कार्य व कारण भिन्न दिखें पर भिन्न नहीं दिखते भर हैं 
साध्य व साधन एक नहीं पर एक बने फ़लते तब हैं 
तीर व लक्ष्य न एक हुए यदि तो न धनुर्धर जीत सके 
ज्यों विधि विष्णु व शंकर हैं त्रय एक नहीं पर एक सखे! 
रचना विधान - (लघु लघु गुरु) x ८ 
.
चलते - चलते, घुलते - मिलते, सद्भाव बढ़ा, हम एक बने. 
हर धर्म कहे, यह मर्म सखे!, कर कर्म सभी हम नेक बने. 
मतिमान बने, गुणवान बने, रसखान बने, सुविवेक बने. 
चल यार! चलें, मिल प्यार करें, मनुहार बने, शुभ टेक बने. 
२४-१०-२०१७
*
बाल गीत 
रूठ खीझकर नोचिए 
बाल, लिखें तब गीत.
बाल गीत सुन सहमकर, 
सनम रहें भयभीत.
बाल बाल बचते रहे, 
जो न रच सके गीत.
कलम उठा लो तो करें,
गीत आप आ प्रीत.
श्यामल घुँघताले मिले,
बाल गीत हैं संग.
क्यों भरमाती सलिल को, 
नाहक करती तंग.
१५-१०-२०१७ 
*
मुक्तक 
आह भरें श्रोता सभी कवि जी समझें वाह 
शेष सभी यह देखकर करें आपसे डाह 
करें आपसे डाह, ठठाकर हँसिए जीभर 
चिंता-फ़िक्र न हो बाकी अबसे रत्ती भर
४-१०-२०१७ 
*
षट्पदी 
नित मनमानी कीजिए, तनिक न रहे तनाव 
पागल हों प्राचार्य जी, ऐसा पड़े प्रभाव 
ऐसा पड़े प्रभाव, शिष्य बन माँगे शिक्षा 
करें कृपा यदि आप, मिल सके उनको भिक्षा 
देखें हीरा-प्रखर, तमाशा आप रहें चित 
तनिक न रहे तनाव, कीजिए मनमानी नित. 
*
लघु कथा:
मैया 
*
भिखारियों को दुत्कारकर, संपन्नों को प्रसाद प्रसाद वितरण कर पुजारी ने थाली रखी ही थी कि उसने लाड़ से कहा: 'काए? हमाये पैले आरती कर लई? मैया तनकऊ खुस न हुइहैं। हमाये हींसा का परसाद किते गओ?' 
'हओ मैया! पधारो, कउनौ की सामत आई है जो तुमाए भाग के 
परसाद खों हात लगाए? बिराजो और भोग लगाओ। हम अब्बइ आउत हैं, तब लौं देखत रहियो परसाद की थाली कूकुर न जुठार दे.'
'अइसे कइसे जुठार दैहे हम बाको मूँड न फोर देबी, जा तो धरो है लट्ठ।' कोने में रखी डंडी को इंगित करते हुए बालिका बोली। 
पुजारी गया तो बालिका मुस्तैद हो गयी. कुछ देर बाद भिखारियों का झुण्ड निकला।'काए? दरसन नई किए? चलो, इतै आओ.… परसाद छोड़ कहूँ और 
गए तो लापता हो जैहो जैसे लीलावती-कलावती के घरवारे हो गए हते. पंडत जी सें कथा नई सुनी का?' 
भिखारियों को दरवाजे पर ठिठकता देख उसने फिर पुकार लगाई: 'दरवज्जे पे काए ठांड़े हो? इते लौ आउत मां गोड़ पिरात हैं का?' जा गरू थाल हमसें नई उठात बनें। लेओ' कहते हुए प्रसाद की पुड़िया उठाकर उसने हाथ बढ़ा दिया तो भिखारियों ने हिम्मतकर पुड़िया ली और पुजारी को आते देख दहशत में जाने को उद्यत हुए तो बालिका फिर बोल पड़ी: 'इनखें सींग उगे हैं का जो बाग़ रए हो? परसाद लए बिना कउनौ नें जाए। ठीक है ना पंडज्जी?'
'हओ मैया!' अनदेखी करते हुए पुजारी ने कहा।
२१-९-२०१७ 
*

शिवमय दोहे

 शिवमय दोहे

लोभ, मोह, मद शूल हैं, शिव जी लिए त्रिशूल.
मुक्त हुए, सब को करें, मनुज न करना भूल.
.
जो त्रिशूल के लक्ष्य पर, निश्चय होता नष्ट.
बाणासुर से पूछिए, भ्रष्ट भोगता कष्ट.
.
तीन लोक रख सामने, रहता मौन त्रिशूल.
अत्याचारी को मिले, दंड हिला दे चूल.
.
जर जमीन जोरू 'सलिल', झगड़े की जड़ तीन.
शिव त्रिशूल छोड़े नहीं, भूल अगर संगीन.
.
शिव-त्रिशूल से काँपते, देव दनुज नर प्रेत.
जो सम्मुख आया, हुआ शिव प्रहार से खेत.
२२-१२-२०१७
शिव न सहज ही रुष्ट हों, लेकिन सहज प्रसन्न.
रुष्ट सहज, खुश हो न जो, उस सा कौन विपन्न?
.
आप अनाहद नाद शिव, जग जाने ओंकार,
जो जपता श्रद्धा सहित, उसके मिटें विकार.
.
नंदी बैठा ताल दे, शिव हों नृत्य-विभोर.
लिपट कंठ से झूमता, नागराज कह और.
.
शशि सिर पर शशिनाथ के, बैठा ले आनंद.
गणपति रचते नित नए, उमा सुनातीं छ्न्द.
.
अमृत-विष का संतुलन, सुख-दुख सह समभाव.
शिव त्रिशूल ले हाथ में, हँसकर करें निभाव.
१९-१२-२०१७
.
शिव को बाहर खोज मत, मन के भीतर झाँक.
सत्-सुंदर ही शिवा हैं, आँक सके तो आँक.
.
शिवा कार्य-कारण बनें, शिव हों सहज निमित्त.
परि-सम्पूरक जानिए, जैसे हों तन-चित्त.
.
शिव तो देहातीत हैं, उन्हें देह मत मान.
शिव से सच कब छिप सका?, तुरत हरें अभिमान.
.
शिव भोले भाले दिखें, किंतु चतुर हैं खूब.
हैं भोले भाले लिए, सजग ध्यान में डूब.
.
अहंकार गिरि पर बसें, शिव रखकर निज पैर,
अहं गला ममता बना, शिवा रहें निर्वैर.
.
१८-१२-२०१७

कार्य शाला - कुण्डलिया

कुण्डलिया
कार्य शाला
*
*
कुंडलिया
वादे कर जो भुला दे, वह खोता विश्वास.
ऐसे नेता से नहीं, जनता को कुछ आस.
जनता को कुछ आस, स्वार्थ ही वह साधेगा.
भूल देश-हित दल का हित ही आराधेगा.
सलिल कहे क्यों दल-हित को जनता पर लादे.
वह खोता विश्वास भला दे जो कर वादे
१९-१२-२०१७
तन की मनहर बाँसुरी, मन का मधुरिम राग।
नैनों से मुखरित हुआ, प्रियतम का अनुराग।। -मिथिलेश बड़गैयाँ
प्रियतम का अनुराग, सलिल सम प्रवहित होता।
श्वास-श्वास में प्रवह, सतत नव आशा बोता।।
जान रहे मिथिलेश, चाह सिय-रघुवर-मन की।
तज सिंहासन राह, गहेंगे हँसकर वन की।। - संजीव
***
११.१२.२०१८

तीन काल खंड तीन लघु कथाएँ



तीन काल खंड तीन लघु कथाएँ : 
१. जंगल में जनतंत्र 
जंगल में चुनाव होनेवाले थे।
मंत्री कौए जी एक जंगी आमसभा में सरकारी अमले द्वारा जुटाई गयी भीड़ के आगे भाषण दे रहे थे।- ' जंगल में मंगल के लिए आपस का दंगल बंद कर एक साथ मिलकर उन्नति की रह पर कदम रखिये। सिर्फ़ अपना नहीं सबका भला सोचिये।'
' मंत्री जी! लाइसेंस दिलाने के लिए धन्यवाद। आपके कागज़ घर पर दे आया हूँ। ' भाषण के बाद चतुर सियार ने बताया। मंत्री जी खुश हुए।
तभी उल्लू ने आकर कहा- 'अब तो बहुत धाँसू बोलने लगे हैं। हाऊसिंग सोसायटी वाले मामले को दबाने के लिएरखिए' और एक लिफाफा उन्हें सबकी नज़र बचाकर दे दिया।
विभिन्न महकमों के अफसरों उस अपना-अपना हिस्सा मंत्री जी के निजी सचिव गीध को देते हुए कामों की जानकारी मंत्री जी को दी।समाजवादी विचार धारा के मंत्री जी मिले उपहारों और लिफाफों को देखते हुए सोच रहे थे - 'जंगल में जनतंत्र जिंदाबाद। '
१९९४ 
***
२. समरसता 
*
भृत्यों, सफाईकर्मियों और चौकीदारों द्वारा वेतन वृद्धि की माँग मंत्रिमंडल ने आर्थिक संसाधनों के अभाव में ठुकरा दी।
कुछ दिनों बाद जनप्रतिनिधियों ने प्रशासनिक अधिकारियों की कार्य कुशलता की प्रशंसा कर अपने वेतन भत्ते कई गुना अधिक बढ़ा लिये।
अगली बैठक में अभियंताओं और प्राध्यापकों पर हो रहे व्यय को अनावश्यक मानते हुए सेवा निवृत्ति से रिक्त पदों पर नियुक्तियाँ न कर दैनिक वेतन के आधार पर कार्य कराने का निर्णय सर्व सम्मति से लिया गया और स्थापित हो गयी समरसता।
७-१२-२०१५ 
***
३. मी टू 
वे लगातार कई दिनों से कवी की रचनाओं की प्रशंसा कर रही थीं। आरंभ में अनदेखी करने करने के बाद कवि ने शालीनतावश उत्तर देना आवश्यक समझा। अब उन्होंने कवि से कविता लिखना सिखाने का आग्रह किया। कवि जब भी भाषा के व्याकरण या पिंगल की बात करता वे अपने नए चित्र के साथ अपनी उपेक्षा और शोषण की व्यथा-कथा बताने लगतीं।
एक दिन उन्होंने कविता सीखने स्वयं आने की इच्छा व्यक्त की। कवि ने कोई उत्तर नहीं दिया। इससे नाराज होकर उन्होंने कवि पर स्त्री की अवमानना करने का आरोप जड़ दिया। कवि फिर भी मौन रहा। 
ब्रम्हास्त्र का प्रयोग करते हुए उन्होंने अपने निर्वसन चित्र भेजते हुए कवि को अपने निवास पर या कवि के चाहे स्थान पर रात गुजारने का आमंत्रण देते हुए कुछ गज़लें देने की माँग कर दी, जिन्हें वे मंचों पर पढ़ सकें। 
कवि ने उन्हें प्रतिबंधित कर दिया। अब वे किसी अन्य द्वारा दी गयीं ३-४ गज़लें पढ़ते हुए मंचों पर धूम मचाए हुए हैं। कवि स्तब्ध जब एक साक्षात्कार में उन्होंने 'मी टू' का शिकार होने की बात कही। कवि समय की माँग पर लिख रहा है स्त्री-विमर्श की रचनाएँ पर उसका जमीर चीख-चीख कर कह रहा है 'मी टू'।
११.१२.२०१८ 
***

लघुकथा



लघुकथा - 
समरसता 
*
भृत्यों, सफाईकर्मियों और चौकीदारों द्वारा वेतन वृद्धि की माँग मंत्रिमंडल ने आर्थिक संसाधनों के अभाव में ठुकरा दी।
कुछ दिनों बाद जनप्रतिनिधियों ने प्रशासनिक अधिकारियों की कार्य कुशलता की प्रशंसा कर अपने वेतन भत्ते कई गुना अधिक बढ़ा लिये।
अगली बैठक में अभियंताओं और प्राध्यापकों पर हो रहे व्यय को अनावश्यक मानते हुए सेवा निवृत्ति से रिक्त पदों पर नियुक्तियाँ न कर दैनिक वेतन के आधार पर कार्य कराने का निर्णय सर्व सम्मति से लिया गया और स्थापित हो गयी समरसता।
७-१२-२०१५ 
***

मुक्तक

 मुक्तक

चोट खाते हैं जवांदिल, बचाते हैं और को
खुद न बदलें, बदलते हैं वे तरीके-तौर को
मर्द को कब दर्द होता, सर्द मौसम दिल गरम
आजमाते हैं हमेशा हालतों को, दौर को
९.१२.२०१६
***
शब्दों का जादू हिंदी में अमित सृजन कर देखो ना
छन्दों की महिमा अनंत है इसको भी तुम लेखो ना
पढ़ो सीख लिख आत्मानंदित होकर सबको सुख बाँटो
मानव जीवन कि सार्थकता यही 'सलिल' अवरेखो ना
१०.१२.२०१६
***

दोहा दुनिया

 दोहा दुनिया

*
आलम आलमगीर की, मर्जी का मोहताज
मेरे-तेरे बीच में, उसका क्या है काज?
*
नयन मूँद देखूं उसे, जो छीने सुख-चैन
गुम हो जाता क्यों कहो, ज्यों ही खोलूँ नैन
*
पल-पल बीते बरस सा, अपने लगते गैर
खुद को भूला माँगता, मन तेरी ही खैर
*
साया भी अपना नहीं, दे न तिमिर में साथ
अपना जीते जी नहीं, 'सलिल' छोड़ता हाथ
*
रहे हाथ में हाथ तो, उन्नत होता माथ
खुद से आँखे चुराता, मन तू अगर न साथ
*
११-१२-२०१६

नवगीत

नवगीत:
जिजीविषा अंकुर की
पत्थर का भी दिल
दहला देती है
*
धरती धरती धीरज
बनी अहल्या गुमसुम
बंजर-पड़ती लोग कहें
ताने दे-देकर
सिसकी सुनता समय
मौन देता है अवसर
हरियाती है कोख
धरा हो जाती सक्षम
तब तक जलती धूप
झेलकर घाव आप
सहला लेती है
*
जग करता उपहास
मारती ताने दुनिया
पल्लव ध्यान न देते
कोशिश शाखा बढ़ती
द्वैत भुला अद्वैत राह पर
चिड़िया चढ़ती
रचती अपनी सृष्टि आप
बन अद्भुत गुनिया
हार न माने कभी
ज़िंदगी खुद को खुद
बहला लेती है
*
छाती फाड़ पत्थरों की 
बहता है पानी 
विद्रोहों का बीज 
उठाता शीश, न झुकता 
तंत्र शिला सा निठुर 
लगे जब निष्ठुर चुकता 
याद दिलाना तभी
जरूरी उसको नानी 
जन-पीड़ा बन रोष 
दिशाओं को भी तब 
दहला देती है
*

लघुकथा: जंगल में जनतंत्र

लघुकथा: 
जंगल में जनतंत्र 
-आचार्य संजीव 'सलिल'
*
जंगल में चुनाव होनेवाले थे।
मंत्री कौए जी एक जंगी आमसभा में सरकारी अमले द्वारा जुटाई गयी भीड़ के आगे भाषण दे रहे थे।- ' जंगल में मंगल के लिए आपस का दंगल बंद कर एक साथ मिलकर उन्नति की रह पर कदम रखिये। सिर्फ़ अपना नहीं सबका भला सोचिये।'
' मंत्री जी! लाइसेंस दिलाने के लिए धन्यवाद। आपके कागज़ घर पर दे आया हूँ। ' भाषण के बाद चतुर सियार ने बताया। मंत्री जी खुश हुए।
तभी उल्लू ने आकर कहा- 'अब तो बहुत धांसू बोलने लगे हैं। हाऊसिंग सोसायटी वाले मामले को दबाने के लिए रखी' और एक लिफाफा उन्हें सबकी नज़र बचाकर दे दिया।
विभिन्न महकमों के अफसरों उस अपना-अपना हिस्सा मंत्री जी के निजी सचिव गीध को देते हुए कामों की जानकारी मंत्री जी को दी।
समाजवादी विचार धारा के मंत्री जी मिले उपहारों और लिफाफों को देखते हुए सोच रहे थे - 'जंगल में जनतंत्र जिंदाबाद। '
********************

द्विपदियाँ - दोहे चाँद

द्विपदियाँ - दोहे 
चाँद 
संजीव 
*
सुबह के इन्तिज़ार में बेकल
चाँदनी रात चाँद साथ लिए
*
चाँद आकाश में घूँघट में भी 
कौन ज्यादा हसीन?; कौन कहे?
*
चाँद ने चाँद में चेहरा देखा 
खोपड़ी आइना है मान लिया 
*
चाँद पर चाँद हाथ फेर रहा 
चाँद खिड़की से झाँक देख रहा 
*
चाँद पे यान चीन का जो गया 
चाँद दहशत में हो न कोरोना 
*
ग्रहण लग गया चाँद को राहु-केतु को देख 
डाइवोर्स ले चाँदनी,हुई दूर दुःख लेख 
छप् -छपाक् अवगाहते चाँद-चाँदनी संग 
आग लगी जलधार में, देख गगन है दंग 
*



गुरुवार, 10 दिसंबर 2020

मुक्तिका

मुक्तिका
*
जो है अपना, वही पराया है? १८  
ठेंगा सबने हमें बताया है     १८ 
*
वक्त पर याद किया शिद्दत से १७ 
बाद में झट हमें भुलाया है
*
पाक दामन जो कह रहा खुदको 
पंक में वह मिला नहाया है
*
जोड़ लीं दौलतें ज़माने ने
अंत में संग कुछ न पाया है
*
श्वास चलती रहे संजीव तभी 
पाठ सच ने यही पढ़ाया है
***
१०-१२-२०१६

मुक्तक सलिला

मुक्तक सलिला:

शब्दों का जादू हिंदी में अमित सृजन कर देखो ना
छन्दों की महिमा अनंत है इसको भी तुम लेखो ना 
पढ़ो सीख लिख आत्मानंदित होकर सबको सुख बाँटो
मानव जीवन कि सार्थकता यही 'सलिल' अवरेखो ना
*
नारी अबला हो या सबला, बला न उसको मानो रे
दो-दो मात्रा नर से भारी, नर से बेहतर जानो रे
जड़ हो बीज धरा निज रस से, सिंचन कर जीवन देती-
प्रगटे नारी से, नारी में हो विलीन तर-तारो रे
*
उषा दुपहरी संध्या रजनी जहाँ देखिए नारी है
शारद रमा शक्ति नारी ही नर नाहर पर भारी है
श्वास-आस मति-गति कविता की नारी ही चिंगारी हैं-
नर होता होता है लेकिन नारी तो अग्यारी है
*
नेकी-बदी रूप नारी के, धूप-छाँव भी नारी है
गति-यति पगडंडी मंज़िल में नारी की छवि न्यारी है
कृपा, क्षमा, ममता, करुणा, माया, काया या चैन बिना
जननी, बहिना, सखी, भार्या, भौजी, बिटिया प्यारी है
*
१०-१२-२०१३ 

बुधवार, 9 दिसंबर 2020

घुटना वंदन

एक रचना
घुटना वंदन
*
घुटना वंदन कर सलिल, तभी रहे संजीव।
घुटने ने हड़ताल की, जीवित हो निर्जीव।।
जीवित हो निर्जीव, न बिस्तर से उठने दे।
गुड न रेस्ट; हो बैड, न चलने या झुकने दे।।
छौंक-बघारें छंद, न कवि जाए दम घुट ना।
घुटना वंदन करो, किसी पर रखो न घुटना।।
*
मेदांता अस्पताल दिल्ली में डॉ. यायावर के घुटना ऑपरेशन पर भेंट
९.१२.२०१८

दोहा, द्विपदी, मुक्तक

दोहा सलिला 
सबखों कुरसी चाइए,बिन कुरसी जग सून.
राजनीति खा रई रे, आदर्सन खें भून.
*
करें वंदना शब्द की ले अक्षर के हार 
सलिल-नाद सम छंद हो, जैसे मंत्रोच्चार
*
पौधों, पत्तों, फूल को, निगल गया इंसान
मैं तितली निज पीर का, कैसे करूँ बखान?
*
मन में का? के से कहें? सुन हँस लैहें लोग.
मन की मन में ही धरी नदी-नाव संजोग.
*
लोकतंत्र का हो रहा, भरी दुपहरी खून.
सद्भावों का निगलते, नेता भर्ता भून.
*
द्विपदी,  
जितने भी दाना हैं, स्वार्थ घिरे बैठे हैं 
नादां ही बेहतर जो, अहं से न ऐंठे हैं.
*
मुक्तक 
शिखर पर रहो सूर्य जैसे सदा तुम
हटा दो तिमिर, रौशनी दो जरा तुम
खुशी हो या गम देन है उस पिता की
जिसे चाहते हम, जिसे पूजते तुम
*




क्षणिका

क्षणिका
*
बहुत सुनी औरों की
अब तो
मनमानी कुछ की जाए.
दुनिया ने परखा अब तक
अब दुनिया भी परखी जाए
*

कार्यशाला

कार्यशाला
छंद बहर दोउ एक है - ९
रगण यगण गुरु = २१२ १२२ २
सात वार्णिक उष्णिक जातीय, बारह मात्रिक आदित्य जातीय छंद
बहर- फाइलुं मुफाईलुं
*
मुक्तक
मेघ ने लुभाया है
मोर नाच-गाया है
जो सगा नहीं भाया
वह गया भुलाया है
*
मौन मौन होता है
शोर शोर बोटा है
साफ़-साफ़ बोले जो
जार-जार रोता है
*
राजनीति धंधा है
शीशहीन कंधा है
न्याय कौन कैसे दे?
क्यों प्रतीक अँधा है
*
सूर्य के उजाले हैं
सेठ के शिवाले हैं
काव्य के सभी प्रेमी
आदमी निराले हैं
*
आपने बिसरा है
या किया इशारा है?
होंठ तो नहीं बोला
नैन ने पुकारा है
*
कौन-कौन आएगा?
देश-राग गायेगा
शीश जो कटाएगा
कीर्ति खूब पायेगा
*
नवगीत
क्यों नहीं कभी देखा?
क्यों नहीं किया लेखा??
*
वायवी हुए रिश्ते
कागज़ी हुए नाते
गैर बैर पाले जो
वो रहे सदा भाते
संसदीय तूफां की
है नहीं रही रेखा?
क्यों नहीं कभी देखा?
क्यों नहीं किया लेखा??
*
लोकतंत्र पूछेगा
तंत्र क्यों दरिंदा है?
जिंदगी रही जीती
क्यों मरी न जिंदा है?
आनुशासिकी कीला
क्यों यहाँ नहीं मेखा?
क्यों नहीं कभी देखा?
क्यों नहीं किया लेखा??
*
क्यारियाँ कभी सींचें
बागबान ही भूले
फूल को किया रुस्वा
शूल को मिले झूले
मौसमी किए वादे
फायदा नहीं सदा पेखा
क्यों नहीं कभी देखा?
क्यों नहीं किया लेखा??
***
मेखा = ठोंका, पेखा = देखा