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दो ने दो के साथ मिल, कर चारों को एक।
सारी दुनिया से कहा, हम जैसे हो नेक।।
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
एक रचना
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चौकीदार
मछलियों के
मछुआरे बन बैठे।
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मगर कह रहा
मेंढक-मुक्त
कराना है तालाब।
खतरा बहुत
झींगुरों से कह
मार-मार ऐंठे।
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प्रभु तंबू में
आश्रम में
भगतन करती है मौज।
देख प्रसाद
मंदिरों में
मूषक पंडे पैठे।
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'मी टू' करे
शिकायत रजनी
सूरज थाने में।
थानेदार
बना बादल
धमकाता है ठें-ठें।
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संजीव, ६.२.२०१८
एक रचना
माटी
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उमर बिताई सोते-सोते, काश सके मन जाग।
नेह नर्मदा नहाकर, झूमे गाए फाग।।
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माटी से माटी मिली,
माटी जन्मी हर्ष।
माटी में माटी मिली,
दुख क्यों? करें विमर्श।।
माटी से माटी कहे, सम है राग-विराग।
उमर बिताई सोते-सोते, काश सके मन जाग।।
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माटी बिछा, ओढ़ ले माटी,
माटी की माटी परिपाटी।
माटी लूट रही माटी को,
माटी लुटा रही है माटी।
माटी को मत रौंदो लोगो, माटी मानो पाग।
उमर बिताई सोते-सोते, काश सके मन जाग।।
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माटी मोह न करती किंचित्,
माटी हक से करे न वंचित।
माटी जोड़े तिनका-तिनका,
माटी बन माटी कर सिंचित।।
माटी सच का करे सामना, बन माटी मत भाग।
उमर बिताई सोते-सोते, काश सके मन जाग।।
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संजीव, ६-२-२०१९