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गुरुवार, 7 फ़रवरी 2019

दोहा

दोहा
*
दो ने दो के साथ मिल, कर चारों को एक। 
सारी दुनिया से कहा, हम जैसे हो नेक।।


चित्र पर रचना

चित्र  पर रचना 


दोहे 
'नभ में घूमे मेघ बन, बरसे भू को सींच
पत्ती, कलियों, पुष्प को, ले बाँहों में भींच
*
पौधे-वृक्ष हरे रहें, प्यास बुझाएँ जीव 
'सलिल' धन्य हो कर सके, सकल सृष्टि संजीव
***

कार्यशाला: दोहा में यमक और श्लेष

कार्यशाला: 
दोहा में यमक और श्लेष 
*
नारी पाती दो जगत, जब हो कन्यादान 
पाती है वरदान वह, भले न हो वर-दान 
*

दोहा-यमक

गले मिले दोहा यमक 
*
दिल न मिलाये रह गए, मात्र मिलकर हाथ
दिल ने दिल के साथ रह, नहीं निभाया साथ
*
निर्जल रहने की व्यथा, जान सकेगा कौन?
चंद्र नयन-जल दे रहा, चंद्र देखता मौन
*
खोद-खोदकर थका जब, तब सच पाया जान
खो देगा ईमान जब, खोदेगा ईमान
*
कौन किसी का सगा है, सब मतलब के मीत
हार न चाहें- हार ही, पाते जब हो जीत
*
निकट न होकर निकट हैं, दूर न होकर दूर
चूर न मद से छोर हैं, सूर न हो हैं सूर
*
इस असार संसार में, खोज रहा है सार
तार जोड़ता बात का, डिजिटल युग बे-तार
*
५-२-२०१७

कार्यशाला: वचन दोष

कार्यशाला: वचन दोष 
उदाहरण:
नेता बोले भीड़ से,
तुम हो मेरे साथ।
हम यह वादा कर रहे,
रखें हाथ में हाथ।।
टीप- नेता एकवचन, बोले बहुवचन, भीड़ बहुवचन, तुम एकवचन, हम बहुवचन।

एक रचना राज को पाती

एक रचना 
राज को पाती: 
*
सारा भारत  एक हैं, राज कौन है गैर? 
महाराष्ट्र क्यों राष्ट्र की, नहीं चाहता खैर? 

कौन पराया तू बता?, और सगा है कौन? 
राज हुआ नाराज क्यों ख़ुद से?रह अब मौन. 

उत्तर-दक्षिण शीश-पग, पूरब-पश्चिम हाथ. 
ह्रदय मध्य में ले बसा, सब हों तेरे साथ. 

भारत माता कह रही, सबका बन तू मीत. 
तज कुरीत, सबको बना अपना, दिल ले जीत. 

सच्चा राजा वह करे जो हर दिल पर राज. 
‘सलिल’ तभी चरणों झुकें, उसके सारे ताज.
६.२.२०१० 
***

नवगीत: चले श्वास-चौसर...

चले श्वास-चौसर...
*
चले श्वास-चौसर पर...
आसों का शकुनी नित दाँव.
मौन रो रही कोयल,
कागा हँसकर बोले काँव...
*
संबंधों को अनुबंधों ने
बना दिया बाज़ार.
प्रतिबंधों के धंधों के
आगे दुनिया लाचार.
कामनाओं ने भावनाओं को
करा दिया नीलम.
बद को अच्छा माने दुनिया
कहे बुरा बदनाम.
ठंडक देती धूप
तप रही बेहद कबसे छाँव...
*
सद्भावों की सती नहीं है,
राजनीति रथ्या.
हरिश्चंद्र ने त्याग सत्य
चुन लिया असत मिथ्या.
सत्ता शूर्पनखा हित लड़ते.
हाय! लक्ष्मण-राम.
खुद अपने दुश्मन बन बैठे
कहें विधाता वाम.
भूखे मरने शहर जा रहे
नित ही अपने गाँव...
*
'सलिल' समय पर
न्याय न मिलता,
देर करे अंधेर.
मार-मारकर बाज खा रहे
कुर्सी बैठ बटेर.
बेच रहे निष्ठाएँ अपनी
पल में लेकर दाम.
और कह रहे हैं संसद में
'भला करेंगे राम.'
अपने हाथों तोड़-खोजते
कहाँ खो गया ठाँव?...
१.२.२०१०
********
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम 

दस मात्रिक छंद

ॐ 
दस मात्रिक छंद 
१. पदादि यगण 
सुनो हे धनन्जय!
हुआ है न यह जग 
किसी का कभी भी।
तुम्हारा, न मेरा
करो मोह क्यों तुम?
तजो मोह तत्क्षण।
न रिश्ते, न नाते
हमेशा सुहाते।
उठाओ धनुष फिर
चढ़ा तीर मारो।
मरे हैं सभी वे
यहाँ हैं खड़े जो
उठो हे परन्तप!
*
२. पदादि मगण
सूनी चौपालें
सूना है पनघट
सूना है नुक्कड़
जैसे हो मरघट
पूछें तो किससे?
बूझें तो कैसे?
बोया है जैसा
काटेंगे वैसा
नाते ना पाले
चाहा है पैसा
*
३. पदादि तगण
चाहा न सायास
पाया अनायास
कैसे मिले श्वास?
कैसे मिले वास?
खोया कहाँ नेह?
खोया कहाँ हास?
बाकी रहा द्वेष
बाकी रहा त्रास
होगा न खग्रास
टूटी नहीं आस
ऊगी हरी घास
भौंरा-कली-रास
होता सुखाभास
मौका यही ख़ास
*
४. पदादि रगण
वायवी सियासत
शेष ना सिया-सत
वायदे भुलाकर
दे रहे नसीहत
हो रही प्रजा की
व्यर्थ ही फजीहत
कुद्ध हो रही है
रोकिए न, कुदरत
फेंकिए न जुमले
हो नहीं बगावत
भूलिए अदावत
बेच दे अदालत
कुश्तियाँ न असली
है छिपी सखावत
*
५. पदादि जगण
नसीब है अपना
सलीब का मिलना
न भोर में उगना
न साँझ में ढलना
हमें बदलना है
न काम का नपना
भुला दिया जिसको
उसे न तू जपना
हुआ वही सूरज
जिसे पड़ा तपना
नहीं 'सलिल' रुकना
तुझे सदा बहना
न स्नेह तज देना
न द्वेष को तहना
*
६. पदादि भगण
बोकर काट फसल
हो तब ख़ुशी प्रबल
भूल न जाना जड़
हो तब नयी नसल
पैर तले चीटी
नाहक तू न मसल
रूप नहीं शाश्वत
चाह न पाल, न ढल
रूह न मरती है
देह रही है छल
तू न 'सलिल' रुकना
निर्मल देह नवल
*
७. पदादि नगण
कलकल बहता जल
श्रमित न आज न कल
रवि उगता देखे
दिनकर-छवि लेखे
दिन भर तपता है
हँसकर संझा ढल
रहता है अविचल
रहता चुप अविकल
कलकल बहता जल
नभचर नित गाते
तनिक न अलसाते
चुगकर जो लाते
सुत-सुता-खिलाते
कल क्या? कब सोचें?
कलरव कर हर पल
कलरव सुन हर पल
कलकल बहता जल
नर न कभी रुकता
कह न सही झुकता
निज मन को ठगता
विवश अंत-चुकता
समय सदय हो तो
समझ रहा निज बल
समझ रहा निर्बल
कलकल बहता जल
*
८. पदादि सगण
चल पंछी उड़ जा
जब आये तूफां
जब पानी बरसे
मत नादानी कर
मत यूँ तू अड़ जा
पहचाने अवसर
फिर जाने क्षमता
जिद ठाने क्यों तू?
झट पीछे मुड़ जा
तज दे मत धीरज
निकलेगा सूरज
वरने निज मंजिल
चटपट हँस बढ़ जा
***
संपर्क - ९४२५१८३२४४ / salil.sanjiv@gmail.com

मुक्तिका गैट वैल सून

मुक्तिका 
गैट वैल सून
*
गैट वैल सून 
दे दुश्मन को भून 

नेता करते रोज 
लोकतंत्र का खून 

कुछ तो हालत बदल 
कुतर नहीं नाखून 

खा मेहनत के बाद 
हँस रोटी दो जून 

कोशिश बिना सलिल 
मिलता नहीं सुकून 


बन मत अफलातून 
गैट वैल सून 
***
७.२.१९१० 

Haiku from abroad

Haiku from abroad:
Bogdanka Stojanovski
full moon
lantern under the porch
fading
Prem Menon
changing
my timeline photo-
departing winter
.
last rites-
I delete
her texts
.
Emanuela Nicolova
soft breath of spring
night dissolves
in its languor
.
Bill Muise, Guilph Ontario
morning frost
on the window
palm prints
.
Bonnie Gaines
a childlike voice
parents teach maturity
aging gracefully
.
hidden diary
in an old camera case
fading polaroids
.
underground cave
ancient hieroglyphs
burning candles
.

नवगीत: कौन कहे?

नवगीत:
कौन कहे? 
*
कल क्या होगा? 
कौन बचेगा? कौन मरेगा?
कौन कहे?

आज न डरकर 
कल की खातिर
शिव मस्तक से फिर 
बहे बहे 
.
कल क्या थे?
यह सोच-सोचकर
कल कैसे गढ़ पाएंगे?
.
दादा चढ़े
हिमालय पर
क्या हम भी कदम बढ़ाएंगे?
.
समय
सवाल कर रहा
मिलकर उत्तर दें
.
चुप रहने से
प्रश्न न हल
हो पाएंगे।

***
७.२.२०१५ 

सामयिक कविता: बूझ पहेली

सामयिक कविता: 
बूझ पहेली
संजीव 'सलिल' 
*
हर चेहरे की अलग कहानी, अलग रंग है. 
अलग तरीका, अलग सलीका, अलग ढंग है... 
*
छोटी दाढ़ीवाला यह नेता तेजस्वी.
कम बोले करता ज्यादा है श्रमी-मनस्वी.
नष्ट प्रांत को पुनः बनाया, जन-मन जीता.
मरू-गुर्जर प्रदेश सिंचित कर दिया सुभीता.
गोली को गोली दे, हिंसा की जड़ खोदी.
कर्मवीर नेता है भैया......................?
*
डर से डरकर बैठना सही न लगती राह.
हिम्मत गजब जवान की, मुँह से निकले वाह.
घूम रहा है प्रांत-प्रांत में नाम कमाता.
गाँधी कुल का दीपक, नव पीढ़ी को भाता.
जन-मत परिवर्तन करने की लाता आँधी.
बूझो-बूझो नाम बताओ ......................
*
चचा-बाप को लगा पटकनी साइकिल पाई
नूरा-कुश्ती पिता पुत्र की जन-मन भाई
थाम विरोधी-हाथ दाँव मारा है जमकर
ठगा रह गया हाथी, चूक न जाए अवसर
संगी रहा न कमल का, इतनी बात विशेष
डिंपल-पति है तिकड़मी, कहो-कहो........
*
गोरी परदेसिन की महिमा कही न जाए.
सास और पति के पथ पर चल सत्ता पाए.
बिखर गया परिवार मगर क्या खूब सम्हाला?
देवरानी से मन न मिला यह गड़बड़ झाला.
इटली में जन्मी, भारत का ढंग ले लिया.
बहू फिरंगन भारत माँ की नाम? .........
*
चेली कांसीराम की,चतुर तेज तर्रार
दलित वर्ग को मोहती, बाकी को फटकार
करे सियासत सिया-सत तज अद्भुत स्फूर्ति
मोहित होती देखकर पार्क और निज मूर्ति
आरक्षण के नाम पर जनगण है बौराया
सत्ता की दावेदारी करती फिर ............
*
मध्य प्रदेशी जनता के मन को था भाया.
दोबारा सत्ता पाकर जो था इतराया.
जिसे लाड़ली बेटी पर आता दुलार था
व्यापम से बदनाम हुआ, आया निखार था
भोजन बाँट, बना है जन-मन का जो तारा.
जल्दी नाम बताओ वह .............  बिचारा।
*
तेजस्वी वाचाल साध्वी पथ भटकी है.
कौन बताये किस मरीचिका में अटकी है?
ढाँचा गिरा अवध में उसने नाम कमाया.
बनी मुख्य मंत्री, सत्ता सुख अधिक न भाया.
बड़बोलापन ले डूबा, अब है गुहारती.
शिव-संगिनी का नाम मिला, है ...............
*
यह नेता भैंसों को, ब्लैक बोर्ड बनवाता.
कुर्सी पड़े छोड़ना, बीबी को बैठाता.
घर में रबड़ी रही, मगर खाता था चारा.
जनता ने ठुकराया, अब तड़पे बेचारा.
मोटा-ताज़ा लगे, अँधेरे में वह भालू.
जल्द पहेली बूझो नाम बताओ........?
*
बूढ़ा शेर बैठ मुम्बई में चीख रहा था .
देश बाँटता, हाय! भतीजा दीख रहा था.
पहलवान था नहीं मुलायम दिल कठोर था.
धनपति नेता डूब गया ले, कटी डोर था.
शुगर किंग मँहगाई अब तक रोक न पाया.
रबर किंग पगड़ी बाँधे, पहचानो भाया.
*
रंग-बिरंगे नेता करते बात चटपटी.
ठगते सबके सब जनता को बात अटपटी.
लोकतंत्र को लोभतंत्र में, बदल हँस रहे.
कभी फाँसते हैं औरों को, कभी फँस रहे.
ढंग कहो, बेढंग कहो, चल रही जंग है.
हर चहरे की अलग कहानी, अलग रंग है.
**************************************

७.२.१०१७ 
भगवा कमल चढ़ा, सत्ता पर जिसको लेकर 
गया पाक बस में, आया था असफल होकर. 
भाषण लच्छेदार सुनाए, कविता गाए. 
धोती कुरता गमछा धारे, सबको भाए. 
बरस-बरस उसकी छवि, हमने विहँस निहारी. 
ताली पीटो, नाम बताओ-...........
७.२.२०१० 

विमर्श: सृजन और प्रणय

विमर्श: सृजन और प्रणय 
*
लिखता नहीं हूँ, 
लिखाता है कोई
*
वियोगी होगा पहला कवि
आह से उपजा होगा गान
*
शब्द तो शोर हैं तमाशा हैं
भावना के सिंधु में बताशा हैं
मर्म की बात होंठ से न कहो
मौन ही भावना की भाषा है
*
अवर स्वीटेस्ट सांग्स आर दोज विच टेल ऑफ़ सैडेस्ट थॉट.
*
हैं सबसे मधुर वो गीत जिन्हें हम दर्द के सुर में गाते हैं,
*
जितने मुँह उतनी बातें के समान जितने कवि उतनी अभिव्यक्तियाँ
प्रश्न यह कि क्या मनुष्य का सृजन उसके विवाह अथवा प्रणय संबंधों से प्रभावित होता है? क्या अविवाहित, एकतरफा प्रणय, परस्पर प्रणय, वाग्दत्त (सम्बन्ध तय), सहजीवी (लिव इन), प्रेम में असफल, विवाहित, परित्यक्त, तलाकदाता, तलाकगृहीता, विधवा/विधुर, पुनर्विवाहित, बहुविवाहित, एक ही व्यक्ति से दोबारा विवाहित, निस्संतान, संतानवान जैसी स्थिति सृजन को प्रभावित करती है?
यह प्रभाव कब, कैसे, कितना और कैसा होता है? इस पर विचार दें.
आपके विचारों का स्वागत और प्रतीक्षा है.
*

कुण्डलिया

कुण्डलिया 
जल-थल हो जब एक तो, कैसे करूँ निबाह
जल की, थल की मिल सके, कैसे-किसको थाह?
कैसे-किसको थाह?, सहायक अगर शारदे 
संभव है पल भर में, भव से विहँस तार दे 
कहत कवि संजीव, हरेक मुश्किल होती हल
करें देखकर पार, एक हो जब भी जल-थल
*

७.२.२०१७ 

muktak

मुक्तक 
मेटते रह गए कब मिटीं दूरियाँ? 
पीटती ही रहीं, कब पिटी दूरियाँ?
द्वैत मिटता कहाँ, लाख अद्वैत हो 
सच यही कुछ बढ़ीं, कुछ घटीं दूरियाँ 
*

नवगीत कल-आज

नवगीत
कल-आज 
*
तू कल था 
मैं आज हूं
*
उगते की जय बोलना
दुनिया का दस्तूर।
ढलते को सब भूलते,
यह है सत्य हुजूर।।
तू सिर तो
मैं ताज हूं
*
मुझको भी बिसराएंगे,
कहकर लोग अतीत।
हुआ न कोई भी यहां,
जो हो नहीं व्यतीत।।
तू है सुर
मैं साज हूं।।
*
नहीं धूप में किए हैं,
मैंने बाल सफेद।
कल बीता हो तजूंगा,
जगत न किंचित खेेद।।
क्या जाने
किस व्याज हूं?
***
७.२.२०१८

नवगीत पकौड़ा-चाय

नवगीत
पकौड़ा-चाय
*
तलो पकौड़ा
बेचो चाय
*
हमने सबको साथ ले,
सबका किया विकास।
'बना देश में' का दिया,
नारा खासुलखास।
नव धंधा-आजीविका
रोजी का पर्याय
तलो पकौड़ा
बेचो चाय
*
सब मिल उत्पादन करो,
साधो लक्ष्य अचूक।
'भारत में ही बना है'
पीट ढिंढोरा मूक।।
हम कुर्सी तुम सड़क पर
बैठो यही उपाय
तलो पकौड़ा
बेचो चाय
*
लाइसेंस-जीएसटी,
बिना नोट व्यापार।
इनकम कम, कर दो अधिक,
बच्चे भूखे मार।।
तीन-पांच दो गुणित दो
देशभक्ति अध्याय
तलो पकौड़ा
बेचो चाय
***
छंद: दोहा
७-२-२०१८

तांडव छंद

छंद सलिला :
ताण्डव छंद
संजीव
*
(अब तक प्रस्तुत छंद: अग्र, अचल, अचल धृति, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, कीर्ति, घनाक्षरी, छवि, ताण्डव, तोमर, दीप, दोधक, निधि, प्रेमा, मधुभार,माला, वाणी, शक्तिपूजा, शाला, शिव, शुभगति, सार, सुगति, सुजान, हंसी)
*
तांडव रौद्र कुल का बारह मात्रीय छंद है जिसके हर चरण के आदि-अंत में लघु वर्ण अनिवार्य है.
उदाहरण:
१. भर जाता भव में रव, शिव करते जब ताण्डव
शिवा रहित शिव हों शव, आदि -अंत लघु अभिनव
बारह आदित्य मॉस राशि वर्ण 'सलिल' खास
अधरों पर रखें हास, अनथक करिए प्रयास
२. नाश करें प्रलयंकर, भय हरते अभ्यंकर
बसते कंकर शंकर, जगत्पिता बाधा हर
महादेव हर हर हर, नाश-सृजन अविनश्वर
त्रिपुरारी उमानाथ, 'सलिल' सके अब भव तर
३. जग चाहे रहे वाम, कठिनाई सह तमाम
कभी नहीं करें डाह, कभी नहीं भरें आह
मन न तजे कभी चाह, तन न तजे तनिक राह
जी भरकर करें काम, तभी भला करें राम
३०.१.२०१४ ---------------------------
salil.sanjiv@gmail.com / divyanarmada.blogspot.in

बुधवार, 6 फ़रवरी 2019

नवगीत:

एक रचना
*
चौकीदार
मछलियों के
मछुआरे बन बैठे।
*
मगर कह रहा
मेंढक-मुक्त
कराना है तालाब।
खतरा बहुत
झींगुरों से कह
मार-मार ऐंठे।
*
प्रभु तंबू में
आश्रम में
भगतन करती है मौज।
देख प्रसाद
मंदिरों में
मूषक पंडे पैठे।
*
'मी टू' करे
शिकायत रजनी
सूरज थाने में।
थानेदार
बना बादल
धमकाता है ठें-ठें।
*
संजीव, ६.२.२०१८

गीत: माटी

एक रचना
माटी
*
उमर बिताई सोते-सोते,  काश सके मन जाग।
नेह नर्मदा नहाकर, झूमे गाए फाग।।
*
माटी से माटी मिली,
माटी जन्मी हर्ष।
माटी में माटी मिली,
दुख क्यों? करें विमर्श।।
माटी से माटी कहे, सम है राग-विराग।
उमर बिताई सोते-सोते, काश सके मन जाग।।
*
माटी बिछा, ओढ़ ले माटी,
माटी की माटी परिपाटी।
माटी लूट रही माटी को,
माटी लुटा रही है माटी।
माटी को मत रौंदो लोगो, माटी मानो पाग।
उमर बिताई सोते-सोते, काश सके मन जाग।।
*
माटी मोह न करती किंचित्,
माटी हक से करे न वंचित।
माटी जोड़े तिनका-तिनका,
माटी बन माटी कर सिंचित।।
माटी सच का करे सामना, बन माटी मत भाग।
उमर बिताई सोते-सोते, काश सके मन जाग।।
***
संजीव, ६-२-२०१९