दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
बुधवार, 29 नवंबर 2017
गीत, नवगीत और छंद
samasyapurti: naak
नाक
*
नाक के बाल ने, नाक रगड़कर, नाक कटाने का काम किया है
नाकों चने चबवाए, घुसेड़ के नाक, न नाक का मान रखा है
नाक न ऊँची रखें अपनी, दम नाक में हो तो भी नाक दिखा लें
नाक पे मक्खी न बैठन दें, है सवाल ये नाक का, नाक बचा लें
नाक के नीचे अघट न घटे, जो घटे तो जुड़े कुछ राह निकालें
नाक नकेल भी डाल सखे हो, न कटे जंजाल तो बाँह चढ़ा लें
*
doha- nar-naree ke
.
नारी के दो-दो जगत,
वह दोनों की शान.
पाती है वरदान वह,
जब हो कन्यादान.
.
नारी को माँगे बिना,
मिल जाता नर-दास.
कुल-वधु ले नर दान में,
सहता जग-उपहास.
.
दल-बल सह जा दान ले,
भिक्षुक नर हो दीन.
नारी बनती स्वामिनी,
बजा चैन से बीन.
.
चीन्ह-चीन्ह आदेश दे,
हक लेती है छीन.
कोशिश नाहक कीन.
.
दो-दो मात्रा अधिक है,
नारी नर से जान.
कुशल चाहता तो कभी,
बैर न उससे ठान.
.
यह उसका रहमान है,
वह इसकी रसखान.
उसमें इसकी जान है,
इसमें उसकी जान.
...
मंगलवार, 28 नवंबर 2017
navgeet
मरे नहीं
अब भी जीवित हैं.
अब मूर्त हुई हैं
संकल्पना अल्पनाओं की
कोमल-रेशम सी रचना की
छुअन अनसजी वनिताओं सी
गेहूँ, आटा, रोटी है परिवर्तन यात्रा
लेकिन सच भी
संभावनाऐं शेष जीवन की
चाहे थोड़ी पर जीवित हैं.
वसन बदले हैं
अलंकार भी बदल गए हैं.
लय, रस, भाव अभी भी जीवित
रचनाएँ हैं कविताओं सी
लज्जा, हया, शर्म की मात्रा
घटी भले ही
संभावनाऐं प्रणय-मिलन की
चाहे थोड़ी पर जीवित हैं.
गृह नौ के नौ
किन्तु दशाएँ वही नहीं हैं
इस पर उसकी दृष्टि जब पडी
मुदित मग्न कामना अनछुई
कौन कहे है कितनी पात्रा
याकि अपात्रा?
मर्यादाएँ शेष जीवन की
चाहे थोड़ी पर जीवित हैं.
शुक्रवार, 24 नवंबर 2017
navgeet
नवगीत
.
बसर ज़िन्दगी हो रही है
सड़क पर.
.
बजी ढोलकी
गूंज सोहर की सुन लो
टपरिया में सपने
महलों के बुन लो
दुत्कार सहता
बचपन बिचारा
सिसक, चुप रहे
खुद कन्हैया सड़क पर
.
लत्ता लपेटे
छिपा तन-बदन को
आसें न बुझती
समर्पित तपन को
फ़ान्से निबल को
सबल अट्टहासी
कुचली तितलिया मरी हैं
सड़क पर
.
मछली-मछेरा
मगर से घिरे हैं
जबां हौसले
चल, रपटकर गिरे हैं
भँवर लहरियों को
गुपचुप फ़न्साए
लव हो रहा है
ज़िहादी सड़क पर
.
कुचल गिट्टियों को
ठठाता है रोलर
दबा मिट्टियों में
विहँसता है रोकर
कालिख मनों में
डामल से ज्यादा
धुआँ उड़ उड़ाता
प्रदूषण सड़क पर
.
बुधवार, 22 नवंबर 2017
kundaliya
कवि- भाऊ राव महंत ०१ सड़कों पर हो हादसे, जितने वाहन तेज उन सबको तब शीघ्र ही, मिले मौत की सेज। मिले मौत की सेज, बुलावा यम का आता जीवन का तब वेग, हमेशा थम ही जाता। कह महंत कविराय, आजकल के लड़कों पर चढ़ा हुआ है भूत, तेज चलते सड़कों पर।।
१. जितने वाहन तेज होते हैं सबके हादसे नहीं होते, यह तथ्य दोष है. 'हो' एक वचन, हादसे बहुवचन, वचन दोष. 'हों' का उपयोग कर वचन दोष दूर किया जा सकता है।
२. तब के साथ जब का प्रयोग उपयुक्त होता है, सड़कों पर हों हादसे, जब हों वाहन तेज।
३. सबको मौत की सेज नहीं मिलती, यह भी तथ्य दोष है। हाथ-पैर टूटें कभी, मिले मौत की सेज
४. मौत की सेज मिलने के बाद यम का बुलावा या यम का बुलावा आने पर मौत की सेज?
५. जीवन का वेग थमता है या जीवन (साँसों) की गति थमती है?
६. आजकल के लड़कों पर अर्थात पहले के लड़कों पर नहीं था,
७. चढ़ा हुआ है भूत... किसका भूत चढ़ा है?
सुझाव
सड़कों पर हों हादसे, जब हों वाहन तेज हाथ-पैर टूटें कभी, मिले मौत की सेज। मिले मौत की सेज, बुलावा यम का आता जीवन का रथचक्र, अचानक थम सा जाता। कह महंत कविराय, चढ़ा करता लड़कों पर जब भी गति का भूत, भागते तब सड़कों पर।।
०२ बन जाता है हादसा, थोड़ी-सी भी चूक जीवन की गाड़ी सदा, हो जाती है मूक। हो जाती है मूक, मौत आती है उनको सड़कों पर जो मीत, चलें इतराकर जिनको। कह महंत कविराय, सुरक्षित रखिए जीवन चलकर चाल कुचाल, मौत का भागी मत बन।।
१. हादसा होता है, बनता नहीं। चूक पहले होती है, हादसा बाद में क्रम दोष
२. सड़कों पर जो मीत, चलें इतराकर जिनको- अभिव्यक्ति दोष
३. रखिए, मत बन संबोधन में एकरूपता नहीं
हो जाता है हादसा, यदि हो थोड़ी चूक जीवन की गाड़ी कभी, हो जाती है मूक। हो जाती है मूक, मौत आती है उनको सड़कों पर देखा चलते इतराकर जिनको। कह महंत कवि धीरे चल जीवन रक्षित हो चलकर चाल कुचाल, मौत का भागी मत हो। *
मंगलवार, 21 नवंबर 2017
doha-yamak
.
बिल्ली जाती राह निज, वह न काटती राह
होते हैं गुमराह हम, छोड़ तर्क की थाह
जो जग मग का तम हरे, छिड़क उसी पर जान
तिल-तिल कर तिल जल रहा, बैठ अधर पर मौन
hindi sahitya men hasya ras
kshanika
१. क्षितिज
.
क्षितिज
यदि हाथ आता तो
बनाते हम तवा उसको
जला सूरज का नित चूल्हा
बनाते समय की रोटी
मिटाते भूख दुनिया की,
क्षितिज
यदि हाथ आता तो
*
२. हुकुम
.
हुकुम
देना अगर होता
विधाता को हुकुम देते
मिटा दे भूख दुनिया से,
न बाकी स्वार्थ ही छोड़े.
भले पूजे न कोई भी
उसे तब,
हम तभी पूजें.
*
३.
doha
रविवार, 19 नवंबर 2017
chanchareek
काव्य सृजन सामर्थ्य के, नित्य-सनातन पात्र
*
'नारायण' सा 'रूप' पा, 'जगमोहन' शुभ नाम
कर्म कुशल कायस्थ हो, हरि को हुए प्रणाम
*
'नारायण' ने 'सूर्य' हो, प्रगटाया निज अंश
कुक्षि 'वासुदेवी' विमल, प्रमुदित पा अवतंश
*
सात नवंबर का दिवस, उन्निस-तेइस वर्ष
पुत्र-रुदन का स्वर सुना, खूब मनाया हर्ष
*
भक्ति-सृजन पथ-पथिक से, कहें न नत हो माथ
*
रवि उजास, शशि विमलता, बुध दे भक्ति प्रणम्य
शनि बाधा-संकट हरे, लक्ष्य न रहे अगम्य
*
'विष्णु-प्रकाश-स्वरूप' से, अनुज हो गए धन्य
राखी बाँधें 'बसंती', तुलसी' स्नेह अनन्य
*
कीचड़ में भी कमलवत, निर्मल ही तू दीख
*
रथखाना में प्राथमिक, शिक्षा के पढ़ पाठ
दरबार हाइ स्कूल में, पढ़े हो सकें ठाठ
*
भक्ति-भाव स्वाध्याय में, लीन निभाई रीत
*
'मंदिर डिग्गी कल्याण' में, जमकर बँटा प्रसाद
भोज सहस्त्रों ने किया, पा श्री फल उपहार
*
'गोविंदी' विधवा बहिन, भुला सकें निज शोक
'जगमोहन' ने भक्ति का, फैलाया आलोक
*
पाठक सोहनलाल से, ली दीक्षा सविवेक
धीरज से संकट सहो, तजना मूल्य न नेक
*
चित्र गुप्त है ईश का, निराकार सच मान
हो साकार जगत रचे, निर्विकार ले जान
*
काया स्थित ब्रम्ह ही, है कायस्थ सुजान
माया की छाया गहे, लेकिन नहीं अजान
*
पूज किसी भी रूप में, परमशक्ति है एक
भक्ति-भाव, व्रत-कथाएँ, कहें राह चल नेक
*
'रामकिशोरी' चंद दिन, ही दे पाईं साथ
दे पुत्री इहलोक से, गईं थामकर हाथ
*
महाराज कॉलेज से, इंटर-बी. ए. पास
किया, मिले आजीविका, पूरी हो हर आस
*
धर्म-पिता भव त्याग कर, चले गए सुर लोक
धैर्य-मूर्ति बन दुःख सहा, कोई सका न टोंक
*
रचा पिता की याद में, 'मथुरेश जीवनी' ग्रंथ
'गोविंदी' ने साथ दे, गहा सृजन का पंथ
*
'विद्यावती' सुसंगिनी, दो सुत पुत्री एक
दे, असमय सुरपुर गयीं, खोया नहीं विवेक
*
महाराजा कॉलेज से, एल-एल. बी. उत्तीर्ण
कर आभा करने लगे, अपनी आप विकीर्ण
*
मिली नौकरी किंतु वह, तनिक न आयी रास
जुड़े वकालत से किये, अनथक सतत प्रयास
*
प्रगटीं माता शारदा, स्वप्न दिखाया एक
करो काव्य रचना सतत, कर्म यही है नेक
*
'एकादशी महात्म्य' रच, किया पत्नि को याद
व्यथा-कथा मन में राखी, भंग न हो मर्याद
*
रच कर 'माधव-माधवी', 'रुक्मिणी मंगल' काव्य
बता दिया था कलम ने, क्या भावी संभाव्य
*
संतानों-हित तीसरा, करना पड़ा विवाह
संस्कार शुभ दे सकें, निज दायित्व निबाह
*
पा 'शकुंतला' हो गया, घर ममता-भंडार
पाँच सुताएँ चार सुत, जुड़े हँसा परिवार
*
सावित्री सी सुता पा, पितृ-ह्रदय था मुग्ध
पाप-ताप सब हो गए, अगले पल ही दग्ध
*
अधिवक्ता के रूप में, अपराधी का साथ
नहीं दिया, सच्चाई हित, लड़े उठाकर माथ
*
दर्शन 'गलता तीर्थ' के, कर भूले निज राह
'पयहारी' ने हो प्रगट, राह दिखाई चाह
*
मन वृंदावन हो चला, भरकर भक्ति-उड़ान
*
'पुरुषोत्तम श्री राम चरित', रामायण-अनुवाद
कर 'श्री कृष्ण चरित' रचा, सुना अनाहद नाद
*
'कल्कि विष्णु के चरित' को, किया कलम ने व्यक्त
पुलकित थे मन-प्राण-चित, आत्मोल्लास अव्यक्त
*
शंकर सम अमृत लुटा, पिया गरल विकराल
*
मोहन सोहन विमल या, वृन्दावन रत्नेश
मधुकर सरस उमेश या , थे मुचुकुंद उमेश
*
प्रेमी गुरु प्रणयी वही, अंबु सुनहरी लाल
थे भगवती प्रसाद वे, भगवद्भक्त रसाल
*
सत्ताईस तारीख थी, और दिसंबर माह
दो हजार तेरह बरस, त्यागा श्वास-प्रवाह
*
चंचरीक भू लोक तज, चित्रगुप्त के धाम
जा बैठे दे विरासत, अभिनव ललित ललाम
*
उनमें प्रभु संजीव थे, भक्ति-सलिल में डूब
सफल साधना कर तजा, जग दे रचना खूब
*
निर्मल तुहिना दूब पर, मुक्तामणि सी देख
मन्वन्तर कर कल्पना, करे आपका लेख
*
जगमोहन काया नहीं, हैं हरि के वरदान
कलम और कवि धन्य हो, करें कीर्ति का गान
*
pad
अभी न दिन उठने के आये
चार लोग जुट पायें देनें कंधा तब उठना है
तब तक शब्द-सुमन शारद-पग में नित ही धरना है
मिले प्रेरणा करूँ कल्पना ज्योति तिमिर सब हर ले
मन मिथिलेश कभी हो पाए, सिया सुता बन वर ले
कांता हो कैकेयी सरीखी रण में प्राण बचाए
अपयश सहकर भी माया से मुक्त प्राण करवाए
श्वास-श्वास जय शब्द ब्रम्ह की हिंदी में गुंजाये
अभी न दिन उठने के आये
doha
शब्द-सुमन शत गूंथिए, ले भावों की डोर
गीत माल तब ही बने, जब जुड़ जाएँ छोर
kundlini
मन मनमानी करे यदि, कस संकल्प नकेल
मन को वश में कीजिए, खेल-खिलाएँ खेल
खेल-खिलाएँ खेल, मेल बेमेल न करिए
व्यर्थ न भरिए तेल, वर्तिका पहले धरिए
तभी जलेगा दीप, भरेगा तम भी पानी
कसी नकेल न अगर, करेगा मन मनमानी
doha
ज्योति बिना चलता नहीं, कभी किसी का काम
प्राण-ज्योति बिन शिव हुए, शव फिर काम तमाम
*
बहिर्ज्योति जग दिखाती, ठोकर लगे न एक
अंतर्ज्योति जगे 'सलिल', मिलता बुद्धि-विवेक
*
आत्मज्योति जगती अगर, मिल जाते परमात्म
दीप-ज्योति तम-नाशकर, करे प्रकाशित आत्म
*
फूटे तेरे भाग यदि, हुई ज्योति नाराज
हो प्रसन्न तो समझ ले, 'सलिल' मिल गया राज
*
स्वर्णप्रभा सी ज्योति में, रहे रमा का वास
श्वेत-शारदा, श्याम में काली करें प्रवास
*
रक्त-नयन हों ज्योति के, तो हो क्रांति-विनाश
लपलप करती जिव्हा से, काटे भव के पाश
*
ज्योति कल्पना-प्रेरणा, कांता, सखी समान
भगिनी, जननी, सुता भी, आखिर मिले मसान
*
नमन ज्योति को कीजिए, ज्योतित हो दिन-रात
नमन ज्योति से लीजिए, संध्या और प्रभात
*
कहें किस समय था नहीं, दिव्य ज्योति का राज?
शामत उसकी ज्योति से, होता जो नाराज
***
नाम से, काम से प्यार कीजै सदा
प्यार बिन जिंदगी-बंदगी कब हुई? -संजीव
*
बन्दगी कब हुई प्यार बिन जिंदगी
दिल्लगी बन गई आज दिल की लगी
रंग तितली के जब रँग गयीं बेटियाँ
जा छुपी शर्म से आड़ में सादगी -मिथलेश
*
छोड़ घर मंडियों में गयी सादगी
भेड़िये मिल गए तो सिसकने लगी
याद कर शक्ति निज जब लगी जूझने
भीड़ तब दुम दबाकर खिसकने लगी -संजीव
*

