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सोमवार, 2 नवंबर 2015

rasanand de chhand narmada : 4 doha

रसानंद दे छंद नर्मदा : ४  

दोहा रचें सुजान 

- आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’


आइये! कुछ दोहों का रसास्वादन कर उनके तत्वों को समझें और नियमों के अनुसार जाँचें:

मन से मन के मिलन हित, दोहा रचें सुजान 
सार सत्य कितना कहाँ, पल में सकें बखान 

१. उक्त दोहे में 'मन से मन के मिलन हित' प्रथम (विषम) चरण, 'दोहा रचें सुजान', दूसरा (सम) चरण, 'सार सत्य कितना कहाँ' तीसरा    (विषम) चरण और 'पल में सकें बखान' चौथा (सम) चरण है पहले तथा दूसरे चरण को मिलाकर प्रथम पद (पंक्ति) तथा तीसरे व        चौथे चरण को मिलाकर द्वितीय पद बनता है। हर दोहे में दो पद होने के कारण इसे द्विपदी, दोपदी और दोहा नाम मिला। 

२. हर पंक्ति या पद में २-२ चरण या अर्धाली हैं जिन्हें अल्प विराम (,) तथा पूर्ण विरामों () से दर्शाया जाता है विषम चरण पूर्ण  होने      को अल्प विराम द्वारा इंगित किया जाता है जबकि सम चरण की पूर्णता प्रथम पदांत में एक तथा द्वितीय पदांत में २ पूर्ण विराम          लगाके इंगित करने की परंपरा है ताकि एक पद उद्धृत होने पर उसका पद क्रम जाना जा सके

३. प्रथम पंक्ति में प्रथम (विषम)) चरण 'मन से मन के मिलन हित' तथा द्वितीय (सम) चरण 'दोहा रचें सुजान है द्वितीय पंक्ति में पहले     विषम चरण 'सार सत्य कितना कहाँ' तथा अंत में सम चरण 'पल में सकें बखान' है  

४. विषम चरणों में १३-१३ मात्राएँ हैं-

    मन से मन के मिलन हित,
    ११   २   ११   २   १११     ११  = १३  

    सार सत्य कितना कहाँ,
    २१     २१    ११२    १२   =  १३ 

५. सम चरणों में ११-११ मात्राएँ हैं-

    दोहा रचें सुजान
    २२   १२   १२१   = ११ 
    पल में सकें बखान
    ११   २   १२   १२१   = ११ 

६. पद के दोनों चरणों को मिलकर २४-२४ मात्राएँ हैं। दोहा की रचना मात्रा गणना के आधार पर की जाती है इसलिए यह मात्रिक छंद है।    दोहा के दो विषम चरणों में समान १३-१३ मात्राएँ तथा दो सम चरणों में भिन्न समान ११-११ मात्राएँ है अर्थात आधे-आधे भागों            (चरणों) में भी समान मात्राएँ हैं इसलिए यह अर्ध सम मात्रिक छंद है। 

    मन से मन के मिलन हित, दोहा रचें सुजान
    ११   २   ११   २   १११     ११ ,  २२   १२   १२१    = १३ + ११  = २४   
    सार सत्य कितना कहाँ, पल में सकें बखान
    २१     २१    ११२    १२  , ११   २   १२   १२१      = १३ + ११  = २४

७. पद के अंतिम शब्दों पर ध्यान दें: 'सुजान' और बखान' ये दोनों शब्द 'जगण' अर्थात जभान १ २ १ = ४ मात्राओं के हैं दोहे के पदांत       में गुरु-लघु अनिवार्य है, इस नियम का यहाँ पालन हुआ है 

८. दोहा का पदारम्भ एक शब्द में 'जगण' जभान १ २ १ से नहीं होना चाहिए। यहाँ प्रथम शब्द क्रमश: मन तथा सार हैं जो इस नियम के     अनुकूल हैं

     १३ - ११ मात्राओं पर यति होने की पुष्टि पढ़ने तथा लिखने में अल्प विराम व पूर्ण विराम से होती है 

     निम्न दोहों को पढ़ें, उक्त नियमों के आधार पर परखें और देखें कि कोई त्रुटि तो नहीं है। 

९. इन दोहों में लघु-गुरु मात्राओं को गणना करें। सभी दोहों में कुल मात्राओं की संख्या सामान होने पर भी पदों या चरणों में लघु - गुरु      मात्राओं की संख्या तथा स्थान समान नहीं हैं। इस भिन्नता के कारण उन्हें पढ़ने की 'लय' में भिन्नता आती है। इस भिन्नता के        आधार पर दोहों को २३ विविध प्रकारों में विभक्त किया गया है। 

दोहा मात्रिक छंद है, तेईस विविध प्रकार

तेरह-ग्यारह दोपदी, चरण समाहित चार

१०. दोहे के विषम (पहले, तीसरे) चरण के आरंभ में एक शब्द में जगण = जभान = लघु गुरु लघु वर्जित है किन्तु शुभ शब्दों यथा            गणेश, महेश, रमेश, विराट आदि अथवा  दो शब्दों में विभाजित कर जगण का प्रयोग किया जा सकता है।  

विषम चरण के आदि में, 'जगण' विवर्जित मीत

दो शब्दों में मान्य है, यह दोहा की रीत

     विषम (प्रथम, तृतीय) चरण के अंत में 'सनर' अर्थात सगण = सलगा = लघु लघु गुरु, नगण = नसल = लघु लघु लघु अथवा रगण = राजभा = गुरु लघु गुरु होना चाहिए सम (दूसरे, चौथे) चरण के अंत में 'जतन' अर्थात जगण = जभान = लघु गुरु लघु,  तगण = ताराज = गुरु गुरु लघु या  नगण = नसल = लघु लघु लघु में से कोई एक रखा जा सकता। 

विषम चरण के अंत में, 'सनर' सुशोभित खूब

सम चरणान्त 'जतन' रहे, पाठक रस ले डूब

११. एक और बात पर ध्यान दें- लघु-गुरु मात्राओं का क्रम बदलने अर्थात शब्दों को आगे-पीछे करने पर कभी-कभी दोहा लय में पढ़ा जा सकता है अर्थात उसका मात्रा विभाजन (मात्रा बाँट) ठीक होता है, कभी-कभी दोहा लय में नहीं पढ़ा जा सकता अर्थात उसका मात्रा विभाजन (मात्रा बाँट) ठीक नहीं होता। 


कवि कविता से छल करे, क्षम्य नहीं अपराध
ख़ुद को ख़ुद ही मारता, जैसे कोई व्याध

इस दोहे के प्रथम चरण में शब्दों को आगे-पीछे कर 'छल कवि कविता से करे,  कवि छल कविता से करे, कविता से छल कवि करे. छल से कवि कविता करे' आदि लिखने पर लय तथा सार्थकता बनी रहती है किंतु कवि, कविता और छल में से किस पर जोर दिया जा रहा है यह तत्व बदलता हैदोहाकार जिस शब्द पर जोर देना चाहे उसे चुन सकता है, इससे कथ्य के अर्थ और प्रभाव में परिवर्तन होगा। 

इसी चरण को 'करे कवि कविता से छल, कविता से करे कवि छल, छल करे कविता से कवि' आदि करने पर लय सहज प्रवाहमयी नहीं रह जाती अर्थात लय-भंग हो जाती है। ऐसे परिवर्तन नहीं किये जा सकते या उस तरह से दोहा में लय-भंग को दोष कहा जाता है। आरंभ में यह कठिन तथा दुष्कर प्रतीत हो सकता है किन्तु क्रमश: दोहाकार इसे समझने लगता है। 

इसी तरह 'ख़ुद को ख़ुद ही मारता' के स्थान पर 'खुद ही खुद को मारता' तो किया जा सकता है किन्तु 'मारता खुद खुद को ही', खुद ही मारता खुद को' जैसे बदलाव नहीं किये जा सकते

दोहा 'सत्' की साधना, करें शब्द-सुत नित्य.

दोहा 'शिव' आराधना, 'सुंदर' सतत अनित्य.

तप न करे जो सह तपन, कैसे पाये सिद्धि?
तप न सके यदि सूर्ये तो, कैसे होगी वृद्धि?

इन दोहों में यत्किंचित परिवर्तन भी लय भंग की स्थिति बना देता है

दोहा में कल-क्रम (मात्रा बाँट) : 

अ. विषम चरण: 

क. विषम मात्रिक आरम्भ- दोहे के प्रथम या तृतीय अर्थात विषम चरण का आरम्भ यदि विषम मात्रिक शब्द (जिस शब्द का मात्रा योग विषम संख्या में हों) से हो तो चरण में कल-क्रम ३ ३ २ ३ २  रखने पर लय सहज तथा प्रवाहमय होती है। चरणान्त में रगण या नगण स्वतः स्थान ग्रहण कर लेगा। सहज सरल हो कथन यदि, उसे नहीं दें मत कभी आदि में यह कल-क्रम देखा जा सकता है।  

ख. सम मात्रिक आरम्भ- दोहे के प्रथम या तृतीय अर्थात विषम चरण का आरम्भ यदि सम मात्रिक शब्द (जिस शब्द का मात्रा योग सम संख्या में २ या ४ हों) से हो तो चरण में कल-क्रम ४ ४ ३ २  रखने पर लय सहज तथा प्रवाहमय होती है। चरणान्त में रगण या नगण स्वतः स्थान ग्रहण कर लेगा। दोहा रोला रचें हँस, आश्वासन दे झूठ जो वह आदि में यह कल-क्रम दृष्टव्य है  

आ. सम चरण: 

ग. विषम मात्रिक आरम्भ- दोहे के द्वितीय या चतुर्थ अर्थात सम चरण का आरम्भ यदि विषम मात्रिक शब्द (जिस शब्द का मात्रा योग विषम संख्या में हों) से हो तो चरण में कल-क्रम ३ ३ २ ३  रखने पर लय निर्दोष होती है। यहाँ त्रिमात्रिक शब्द गुरु लघु  है, वह लघु गुरु नहीं हो सकता। चरणान्त में जगण, तगण या नगण रखना श्रेयस्कर है समय न जाए व्यर्थ, वह भटकाता राह आदि में ऐसी मात्रा बाँट देखिए


घ. सम मात्रिक आरंभ- दोहे के द्वितीय या चतुर्थ अर्थात सम चरण का आरम्भ यदि सम मात्रिक शब्द (जिस शब्द का मात्रा योग सम संख्या में हों) से हो तो चरण में कल-क्रम ४ ४ ३  रखने पर लय मधुर होती है। यहाँ त्रिमात्रिक शब्द गुरु लघु  है, वह लघु गुरु नहीं हो सकता। चरणान्त में तगण या जगण रखना श्रेयस्कर है।  पाठक समझें अर्थ, जिसकी करी न चाह आदि में मात्राओं का क्रम इसी प्रकार है

सहज सरल हो कथन यदि, पाठक समझें अर्थ 
दोहा रोला रचें हँस, समय न जाए व्यर्थ 

उसे नहीं दें मत कभी, जिसकी करी न चाह 
आश्वासन दे झूठ जो, वह भटकाता राह 

दोहा रचना में शिल्पगत उक्त विधानों के साथ कथ्यगत विशिष्टताएँ संक्षिप्तता, लाक्षणिकता, सार्थकता, मर्मबेधकता तथा सरसता के पंच तत्व होना भी आवश्यक है। 

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रविवार, 1 नवंबर 2015

navgeet

एक रचना:
चाकरी
*
कर रहा हूँ
चाकरी चुप, दर्द की.
यही है पहचान
सच्चे मर्द की
.
कंकरों पर चोट कर निष्ठुर समय
तोड़ शंकर बोल माँगे जब अभय
यदि उन्हें मैं मौन रह सहला रहा
कह रहे तुम व्यर्थ मन बहला रहा
गर्मियों को क्या पता
कैसी तपिश
हुआ करती असह
मौसम सर्द की?
कर रहा हूँ
चाकरी चुप, दर्द की.
.
हथौड़ों के कौन छाले देखता
रास्ते की पीर कोई लेखता?
सफलता की बोलकर जय शब्द भी
क्या नहीं खुद को रहा है बेचता?
मलिन होता
है कलश वह
जो नहीं किया करता
फ़िक्र उड़ती गर्द की
कर रहा हूँ
चाकरी चुप, दर्द की.
.
सेज सुमनों की नहीं है ज़िंदगी
शूल की जिसने नहीं की बंदगी
वह करेगा स्वच्छ दुनिया क्या कभी
निकट जा जिसने न देखी गंदगी
गीत रचते वक़्त
सुन भी लो कभी
नींव में दब गयी
पत्ती ज़र्द की
कर रहा हूँ
चाकरी चुप, दर्द की.
***
Sanjiv verma 'Salil', 94251 83244
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in
facebook: sahitya salila / sanjiv verma 'salil'

laghukatha

लघुकथा:
अर्थ
*
हमने बच्चे को पढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। बिहार के छोटे से कसबे से बेंगलोर जैसे शहर में आया। इतने साल पढ़ाई की। इतनी अच्छी कंपनी में इतने अच्छे वेतन पर है, देश-विदेश घूमता है। गाँव में खेती भी हैं और यहाँ भी पिलोट ले लिया है। कितनी ज्यादा मँहगाई है, १ करोड़ से कम में क्या बनेगा मकान? बेटी भी है ब्याहने के लिये, बाकी आप खुद समझदार हैं।
आपकी बेटी पढ़ी-लिखी है,सुन्दर है, काम करती है सो तो ठीक है, माँ-बाप पैदा करते हैं तो पढ़ाते-लिखाते भी हैं। इसमें खास क्या है? रूप-रंग तो भगवान का दिया है, इसमें आपने क्या किया? ईनाम - फीनाम का क्या? इनसे ज़िंदगी थोड़े तेर लगती है। इसलिए हमने बबुआ को कुछ नई करने दिया। आप तो समझदार हैं, समझ जायेंगे।
हम तो बाप-दादों का सम्मान करते हैं, जो उन्होंने किया वह सब हम भी करेंगे ही। हमें दहेज़-वहेज नहीं चाहिए पर अपनी बेटी को आप दो कपड़ों में तो नहीं भेज सकते? आप दोनों कमाते हैं, कोई कमी नहीं है आपको, माँ-बाप जो कुछ जोड़ते हैं बच्चियों के ही तो काम आता है। इसका चचेरा भाई बाबू है ब्याह में बहुरिया कर और मकान लाई है। बाकी तो आप समझदार हैं।
जी, लड़का क्या बोलेगा? उसका क्या ये लड़की दिखाई तो इसे पसंद कर लिया, कल दूसरी दिखाएंगे तो उसे पसंद कर लेगा। आई. आई. टी. से एम. टेक. किया है,इंटर्नेशनल कंपनी में टॉप पोस्ट पे है तो क्या हुआ? बाप तो हमई हैं न। ये क्या कहते हैं दहेज़ के तो हम सख्त खिलाफ हैं। आप जो हबी करेंगे बेटी के लिए ही तो करेंगे अब बेटी नन्द की शादी में मिला सामान देगई तो हम कैसे रोकेंगे? नन्द तो उसकी बहिन जैसी ही होगी न? घर में एक का सामान दूसरे के काम आ ही जाता है। बाकि तो आप खुद समझदार हैं।
मैं तो बहुत कोशिश करने पर भी नहीं समझ सका, आप समझें हों तो बताइये समझदार होने का अर्थ।
***

शनिवार, 31 अक्टूबर 2015

smaran alankar

अलंकार सलिला: २७ 

स्मरण अलंकार
*
















*
बीती बातों को करें, देख आज जब याद 
गूंगे के गुण सा 'सलिल', स्मृति का हो स्वाद।।

स्मरण करें जब किसी का, किसी और को देख
स्मित अधरों पर सजे, नयन अश्रु की रेख
करें किसी की याद जब, देख किसी को आप
अलंकार स्मरण 'सलिल', रहे काव्य में व्याप

जब काव्य पंक्तियों को पढ़ने या सुनने पहले देखी-सुनी वस्तु, घटना अथवा व्यक्ति की, उसके समान वस्तु, घटना अथवा व्यक्ति को देखकर याद ताजा हो तो स्मरण अलंकार होता है
जब किसी सदृश वस्तु / व्यक्ति को देखकर किसी पूर्व परिचित वस्तु / व्यक्ति की याद आती है तो वहाँ स्मरण अलंकार होता है स्मरण स्वत: प्रयुक्त होने वाला अलंकार है कविता में जाने-अनजाने कवि इसका प्रयोग कर ही लेता है।
स्मरण अलंकार से कविता अपनत्व, मर्मस्पर्शिता तथा भावनात्मक संवगों से युक्त हो जाती है

स्मरण अलंकार सादृश्य (समानता) से उत्पन्न स्मृति होने पर ही होता है। किसी से संबंध रखनेवाली वस्तु को देखने पर स्मृति होने पर स्मरण अलंकार नहीं होता। 

स्मृति नामक संचारी भाव सादृश्यजनित स्मृति में भी होता है और संबद्ध वस्तुजनित स्मृति में भी। पहली स्थिति में स्मृति भाव और स्मरण अलंकार दोनों हो सकते हैं। देखें निम्न उदाहरण ६, ११, १२ 

उदाहरण:

१. देख चन्द्रमा
    चंद्रमुखी को याद 
    सजन आये      - हाइकु 

२. श्याम घटायें
    नील गगन पर 
    चाँद छिपायें।
    घूँघट में प्रेमिका
    जैसे आ ललचाये।  -ताँका      

३. सजी सबकी कलाई
    पर मेरा ही हाथ सूना है

    बहिन तू दूर है मुझसे
    हुआ यह दर्द दूना है

४. धेनु वत्स को जब दुलारती
    माँ! मम आँख तरल हो जाती
    जब-जब ठोकर लगती मग पर
    तब-तब याद पिता की आती

५. प्राची दिसि ससि उगेउ सुहावा 
    सिय-मुख सुरति देखि व्है आवा 

६. बीच बास कर जमुनहिं आये
    निरखिनीर लोचन जल छाये 

७. देखता हूँ जब पतला इन्द्र धनुषी हल्का,
    रेशमी घूँघट बादल का खोलती है कुमुद कला
   तुम्हारे मुख का ही तो ध्यान
   मुझे तब करता अंतर्ध्यान

८. ज्यों-ज्यों इत देखियत मूरख विमुख लोग
    त्यों-त्यों ब्रजवासी सुखरासी मन भावै है

    सारे जल छीलर दुखारे अंध कूप देखि,
    कालिंदी के कूल काज मन ललचावै है

    जैसी अब बीतत सो कहतै ना बैन
    नागर ना चैन परै प्राण अकुलावै है

    थूहर पलास देखि देखि कै बबूर बुरे,
    हाय हरे हरे तमाल सुधि आवै है


९. श्याम मेघ सँग पीत रश्मियाँ देख तुम्हारी
    याद आ रही मुझको बरबस कृष्ण मुरारी
    पीताम्बर ओढे हो जैसे श्याम मनोहर.
    दिव्य छटा अनुपम छवि बांकी प्यारी-प्यारी


१०. सघन कुञ्ज छाया सुखद, सीतल मंद समीर
     मन व्है जात अजौं वहै, वा जमुना के तीर   

११. जो होता है उदित नभ में कौमुदीनाथ आके
     प्यारा-प्यारा विकच मुखड़ा श्याम का याद आता

१२. छू देती है मृदु पवन जो पास आ गाल मेरा 
     तो हो आती परम सुधि है श्याम-प्यारे-करों की 

१३. जब जब बहार आयी और फूल मुस्कुराए
     मुझे तुम याद आये

     जब-जब ये चाँद निकला और तारे जगमगाए 
     मुझे तुम याद आये
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laghukatha

लघुकथा:
मानवाधिकार 
*


राजमार्ग से आते-जाते विभाजक के एक किनारे पर उसे अक्सर देखते हैं लोग। किसे फुर्सत है जो उसकी व्यथा-कथा पूछे। कुछ साल पहले वह अपने माता-पिता, भाई-बहिन के साथ गरीबी में भी प्रसन्न हुआ करता था। एक रात वे यहीं सो रहे थे कि एक मदहोश रईसजादे की लहराती कार सोते हुई ज़िन्दगियों पर मौत बनकर टूटी। पल भर में हाहाकार मच गया, जब तक वह जागा उसकी दुनिया ही उजड़ गयी थी। कैमरों और नेताओं की चकाचौंध १-२ दिन में और साथ के लोगों की हमदर्दी कुछ महीनों में ख़त्म हो गयी।
एक पडोसी ने कुछ दिन साथ में रखकर उसे बेचना सिखाया और पहचान के कारखाने से बुद्धि के बाल दिलवाये। आँखों में मचलते आँसू, दिल में होता हाहाकार और दुनिया से बिना माँगे मिलती दुत्कार ने उसे पेट पालना तो सीखा दिया पर जीने की चाह नहीं पैदा कर सके। दुनियावी अदालतें बचे हुओं को कोई राहत न दे पाईं। रईसजादे को पैरवीकारों ने मानवाधिकारों की दुहाई देकर छुड़ा दिया लेकिन किसी को याद नहीं आया निरपराध मरने वालों का मानवाधिकार।
*

मुक्तक

मुक्तक:












*
चाँद हो साथ में चाँदनी रात हो
चुप अधर, नैन की नैन से बात हो 
पानी-पानी हुई प्यास पल में 'सलिल'
प्यार को प्यार की प्यार सौगात हो 
*
चाँद को जोड़कर कर मनाती रही
है हक़ीक़त सजन को बुलाती रही 
पी रही है 'सलिल' हाथ से किन्तु वह 
प्यास अपलक नयन की बुझाती रही 
*
चाँद भी शरमा रहा चाँदनी के सामने
झुक गया है सिर हमारा सादगी के सामने
दूर रहते किस तरह?, बस में में न था सच मान लो 
आ गया है जल पिलाने ज़िन्दगी के सामने 
*
गगन का चाँद बदली में मुझे जब भी नज़र आता
न दीखता चाँद चेहरा ही तेरा तब भी नज़र आता 
कभी खुशबू, कभी संगीत, धड़कन में कभी मिलते-
बसे हो प्राण में, मन में यही अब भी नज़र आता 
*

शुक्रवार, 30 अक्टूबर 2015

laghu katha

लघु कथा:
सच्चा उत्सव
*
उपहार तथा शुभकामना देकर स्वरुचि भोज में पहुँचा, हाथों में थमी प्लेटों में कहीं मुरब्बा दही-बड़े से गले मिल रहा था, कहीं रोटी पापड़ के गाल पर दाल मल रही थी, कहीं भटा भिन्डी से नैन मटक्का कर रहा था और कहीं इडली-सांभर को गुत्थमगुत्था देखकर डोसा मुँह फुलाये था।

इनकी गाथा छोड़ चले हम मीठे के मैदान में वहाँ रबड़ी के किले में जलेबी सेंध लगा रही थी, दूसरे दौने में गोलगप्पे आलूचाप को ठेंगा दिखा रहे थे। 

जितने अतिथि उतने प्रकार की प्लेटें और दौने, जिस तरह सारे धर्म एक ईश्वर के पास ले जाते हैं वैसे ही सब प्लेटें और दौने कम खाकर अधिक फेंके गये स्वादिष्ट सामान को वेटर उठाकर बाहर कचरे के ढेर पर पहुँचा रहे थे।  

हेलो-हाय करते हुए बाहर निकला तो देखा चिथड़े पहने कई बड़े-बच्चे और श्वान-शूकर उस भंडारे में अपना भाग पाने में एकाग्रचित्त निमग्न थे, उनके चेहरों की तृप्ति बता रही थी की यही है सच्चा उत्सव। 

***

navgeet

:एक रचना:
राम रे! 
*
राम रे!
तनकऊ नई मलाल???
*
भोर-साँझ लौ
गोड़ तोड़ रै
काम चोर बे कैते
पसरे रैत
ब्यास गादी पे
भगतन संग लपेटे
काम-पुजारी
गीता बाँचे
हेरें गोप निहाल।
आँधर ठोकें ताल
राम रे!
बारो डाल पुआल।
राम रे!
तनकऊ नई मलाल???
*
झिमिर-झिमिर-झम
बूँदें टपकें
रिस रए छप्पर-छानी
मैली कर दई रैटाइन की
किन्नें धोती धानी?
लज्जा ढाँपे
सिसके-कलपे
ठोंके आप कपाल
मुए हाल-बेहाल
राम रे!
कैसा निर्दय काल?
राम रे!
तनकऊ नई मलाल???
*
भट्टी-देह न देत दबाई
पैले मांगें पैसा
अस्पताल मा
घुसे कसाई
ठाणे-अरना भैंसा
काले कोट
कचैरी घेरे
बकरा करें हलाल
नेता भए बबाल
राम रे!
लूट बजा रए गाल
राम रे!
तनकऊ नई मलाल???
*