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मंगलवार, 10 फ़रवरी 2015

muktak: sanjiv

मुक्तक :
संजीव
.
जो हुआ अनमोल है बहुमूल्य, कैसे मोल दूँ मैं ?
प्रेम नद में वासना-विषज्वाल कैसे घोल दूँ  मैं?
तान सकता हूँ नहीं मैं तार, संयम भंग होगा-
बजाना वीणा मुझे है कहो  कैसे झोल दूँ मैं ??

मानकर पूजा कलम उठायी है 
मंत्र गायन की तरह चलायी है 
कुछ  न बोले मौन हैं गोपाल मगर 
जानता हूँ कविता उन्हें भायी है   

बेरुखी ज्यों-ज्यों बढ़ी ज़माने की
करी हिम्मत मैंने आजमाने की 
मिटेंगे वे सब मुझे भरोसा है-
करें जो कोशिश मुझे मिटाने की 

सर्द रातें भी कहीं सोती हैं?
हार वो जान नहीं खोती हैं  
गर्म जो जेब उसे क्या मालुम 
भूख ऊसर में बीज बोती हैं 

बताओ तो कौन है वह, कहो मैं किस सा नहीं हूँ 
खोजता हूँ मैं उसे, मैं तनिक भी जिस सा नहीं हूँ 
हर किसी से कुछ न कुछ मिल साम्यता जाती है  मुझको-
इसलिए हूँ सत्य, माने झूठ मैं उस सा नहीं हूँ
.    
राह कितनी भी कठिन हो, पग न रुकना अग्रसर हो  
लाख ठोकर लगें, काँटें चुभें, ना तुझ पर असर हो 
स्वेद से श्लथ गात होगा तर-ब-तर लेकिन न रुकना 
सफल-असफल छोड़ चिंता श्वास से जब भी समर हो  
.  
  

hindi doot dr. usha shukl

विश्व फलक पर हिंदी  

प्रो. उषा शुक्ल (दक्षिण अफ्रीका)
                                 हिंदी तनया प्रो. उषा शुक्ल (पी.एच.डी.)                                                                                                           

                              प्रोफेसर :- क्वाज़ुलु-विश्वविद्यालय, नाटाल 
                             उपाध्यक्ष-हिंदी शिक्षा संघ, दक्षिण अफ्रीका 
                                       shuklau@ukzn.ac.za
                                                                                                 
  विश्व में भारत की पहचान हिंदी से है । दुनिया के अनेक विश्वविद्यालयों में हिंदी का अध्ययन–अध्यापन होता है ।   विदेशों में अनेक लोग ऐसे हैं जो ’हिंदी के विश्वदूत’ बनकर हिंदी और हिन्दुस्तान का परचम फहरा रहे हैं। दुनिया के कोने-     कोने में बसे ऐसे हिंदी-सेवियों के योगदान को रेखांकित करने और उन्हें परस्पर एकजुट करते हुए हिंदी के प्रयोग व प्रसार को आगे बढ़ाने के लिए ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’ द्वारा ‘हिंदी के विश्वदूत’ नामक शृंखला प्रारंभ की जा रही है।

विदेशों में हिंदी के विद्यार्थियों व विदेशी विद्वानों के अतिरिक्त ऐसे भारतीयों ने भी विदेशों में हिंदी का प्रसार किया जो व्यापार – रोजगार आदि के चलते विदेशों में जा बसे। दुनिया में हिंदी के प्रसार में एक बहुत बड़ी भूमिका उन लोगों की है जिनके पूर्वज डेढ़-दो सौ साल पहले अंग्रेजों द्वारा मजदूरी के लिए अपने वतन से बहुत दूर दक्षिण अफ्रीका, मॉरिशस, फिजी, सुरीनाम, वेस्टइंडीज आदि देशों में लाए गए थे और जो गिरमिटिया मजदूर कहलाए । ये वे लोग थे जो अंग्रेजों के जाल में फंसकर अपने वतन से बहुत दूर पहुंच गए थे और फिर उनके लिए वहाँ से लौटना नामुमकिन था। एक अनजानी सी धरती पर अपनी मातृभूमि से मिलने की कसक, अपनों से मिलने की चाह और अपनी मिट्टी की गंध उनके सीने में थी। उसी कसक को सीने में बसाए उन गिरमिटियों के वंशज आज भी पूरे गर्व और गौरव के साथ ‘हिंदी के विश्वदूत’ बनकर खड़े हैं।

दक्षिण अफ्रीका का डरबन शहर जो कि ऐसे ही भारतवंशियों का शहर है। इनके चेहरे-मोहरे से यहाँ इन्हें अलग से पहचाना जा सकता है। इस शहर के कण-कण में भारतीयता बसती है । हिंदी के भजनों और भक्ति संगीत में इनकी श्रद्धा पलती है और हिंदी फिल्मी गीतों में इनका दिल धड़कता है। आज सुबह ही वहाँ की बहन सुरीटा, जो बहुत अच्छी हिंदी नहीं जानती उसने सुबह-सुबह व्हाट्सऐप पर एक ऑडियो संदेश भेजा, सुना तो उसमें रामचरित मानस की संगीतमय चौपाइयाँ थीं। आज तक किसी भारतीय से मुझे ऐसा संदेश नहीं मिला। यहाँ का ‘हिंदी शिक्षा संघ’ इन लोगों के लिए हिंदी और हिंदुस्तान का मंदिर है। हिंदवाणी रेडियो स्टेशन के जरिए यहीं से ये हिंद और हिंदी को अपनी श्रद्धा के और अपनी वाणी के पुष्प अर्पित करते हैं।

‘हिंदी के विश्वदूत’ के अंतर्गत सर्वप्रथम आज हम इसी शहर की रहनेवाली प्रो० उषा शुक्ल के हिंदी के प्रति योगदान की चर्चा करेंगे। प्रो० उषा शुक्ल दक्षिण अफ़्रीका में एक कुशल, समर्पित एवं लोकप्रिय हिन्दी प्रचारक हैं। उनकी मान्यता है कि हिन्दी जीवन में उत्कर्ष लाती है। हिन्दी भाषा, साहित्य तथा गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरितमानस इनके हिन्दी-प्रेम के अभिन्न अंग हैं। उषा शुक्ल की हिन्दी सेवा यात्रा तीन मुख्य भागों में विभाजित की जा सकती है। बचपन से हिन्दी अध्ययन, हिन्दी का अध्यापन एवं विश्वविद्यालय में हिंदी की प्राध्यापिका और राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी तथा रामचरितमानस पर शोध, गोष्ठियों/सम्मेलनों में सहभागिता और योगदान (विशेषत: हिन्दी डायस्पोरा में) इस यात्रा के प्रमुख अंग हैं।

प्रो.उषा शुक्ल जब छोटी थी तब वहाँ हिन्दी शिक्षा संघ द्वारा हिंदी की कक्षाएँ चलाई जाती थीँ और उन कक्षाओं में हिंदी प्रचार सभा वर्धा(भारत) का पाठ्यक्रम चलाया जाता था। बचपन में यहीं से उनके हृदय में हिन्दी प्रेम का जन्म हुआ । हिन्दी सीखने और सिखाने की ललक उस समय से आज तक अनवरत विद्यमान है।


वैश्विक हिंदी सम्मेलन में प्रो. उषा शुक्ल का संबोधन धन 
वैश्विक हिंदी सम्मेलन में प्रो. उषा शुक्ल का संबोधन
 प्रो. उषा शुक्ल ने डरबन विश्वविद्यालय- वेस्टविले, नाटाल, दक्षिण अफ्रीका से हिन्दी में स्नातक तथा स्नातकोत्तर    स्तर पर अध्ययन किया । अपनी प्रतिभा के  चलते इन्हें जल्द ही डरबन विश्वविद्यालय में हिन्दी प्राध्यापक का पद  मिला और इनकी इच्छा के अनुसार इन्हें हिन्दी की प्रगति में योगदान देने के लिए स्वर्णिम अवसर प्राप्त हुआ। इनका  हिंदी प्रेम व हिंदी सेवा केवल कॉलेज की चारदीवारी तक सीमित नहीं थी, विश्वविद्यालय के बाहर भी वे हिन्दी सेवा में  लगी रहीं।  विश्वविद्यालय में हिन्दी प्राध्यापक होने के कारण प्रो० शुक्ल को स्नातकोत्तर शोध कार्य करने का अवसर  मिला और साथ ही अन्य हिन्दी विद्यार्थियों के स्नातकोत्तर  शोध कार्य में निर्देशन करने का मौका भी मिला। प्रो० शुक्ल  ने (एम.ए. तथा पीएच.डी. के लिए) रामचरितमानस संबंधी शोध से यह तथ्य प्रतिपादित किया कि हिन्दी  और  रामचरितमानस में परस्पर गहरा संबंध है। रामचरितमानस को पढ़ने और समझने के लिए बड़ी संख्या में हिन्दी–भाषी  हिन्दू हिन्दी सीखने के इच्छुक हैं। प्रो०  शुक्ल ने दो स्तरों पर महत्वपूर्ण सफलता पायी, पहली यह यह कि  रामचरितमानस के प्रति लोगों की रुचि बढ़ाई और दूसरी यह कि रामचरितमानस और हिन्दी  साहित्य के विशाल भंडार  के रत्नों से परिचय प्राप्त करने की प्रेरणा दी।

 जब अपने देश में हम अपनी भाषाओं को उचित स्थान नहीं दे रहे और इन्हें अवांछित सा बना दिया है तो इसका प्रभाव विदेशों तक भी पहुंच रहा है। डरबन  विश्वविद्यालय जिसका नाम अब क्वाज़ुलु- नाटाल विश्वविद्यालय (University of KwaZulu-Natal) है, वहाँ से अब भारतीय भाषाओं को हटा दिया गया और  स्कूलों में भारतीय भाषाओं के अध्ययन/अध्यापन में भी अनिश्चितता की स्थिति है। अत: प्रो० शुक्ल अब क्वाज़ुलु- नाटाल विश्वविद्यालय में अंग्रेज़ी पढ़ाने के साथ  प्रशासनिक कार्यों में हाथ बंटाती हैं । लेकिन वहाँ के भारतीयों के मन में हिंदी-प्रेम बरकरार है। इसके परिणामस्वरूप स्वैच्छिक संस्थाओं की भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण हो गयी है। प्रो. उषा शुक्ल अब हिन्दी शिक्षा संघ, दक्षिण अफ़्रीका और उसके रेडियो स्टेशन “हिन्दवाणी” के सान्निध्य में हिन्दी, रामचरितमानस तथा भारतीय संस्कृति को जनता तक पहुँचाने में लगी हुई है। ‘हिन्दी शिक्षा संघ’ की उपाध्यक्ष तथा शैक्षणिक समिति (Academic Committee) की अध्यक्ष के रूप में वे संघ के मूल उद्देश्यों की पूर्ति में प्रयासरत होने के साथ-साथ वे वहाँ ऊँची कक्षाओं में पढ़ाती हैं और अपने पड़ोस में वयस्कों तथा बच्चों के लिए हिन्दी पाठशाला भी चलाती हैं।

देश–विदेश में हिन्दी, रामचरितमानस तथा भारतीय संस्कृति के प्रसंग में संपर्क स्थापित करके प्रो० शुक्ल दक्षिण अफ़्रीका में हिन्दी सीखने/ सिखाने की नवीन उद्भावनाएँ एवं प्रेरणाएँ प्रदान कर रही हैं।


  हिंदी-प्रेम और हिदी के प्रसार को लेकर भारतीय मूल की ये दक्षिण अफ्रीकी विदूषी, प्रो. उषा शुक्ल भारत सहित अनेक     देशों की यात्राएँ करती रही हैं। दुनिया के कोने-कोने में और भारत की धरती पर आकर भी ये हिंदी का बिगुल बजाती      रही   हैं।10 सितंबर 2014 को जब ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’, द्वारा मुंबई में “वैश्विक हिंदी सम्मेलन- 2014” आयोजित   किया तो दक्षिण अफ्रीका हिंदी शिक्षा संघ के प्रतिनिधिमंडल में प्रो.उषा शुक्ल ने सक्रिय भागीदारी की और सम्मेलन    को  संबोधित करते हुए अपने ज्ञान व प्रयासों की एक छाप भी छोड़ी।

  एक शोधार्थी, एक प्रोफेसर और एक रचनाकार के रूप में उन्होंने हिंदी भाषा व साहित्य को बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान  दिया है। प्रो.उषा शुक्ल के हिंदी और हिंदी साहित्य संबंधी शोध प्रकाशनों का विवरण निम्नानुसार है।

पुस्तकें:-

• "Ramcharitmanas in South Africa" - BOOK - Motlial Banarsidass - Delhi, 2002.
• “Ramcharitmanas in the Diaspora: Trinidad, Mauritius and South Africa”, BOOK, Star Publications Pvt, Ltd.,  New Delhi-11.


शोध-पत्रिकाओं में हाल ही में छपे महत्वपूर्ण लेख/ Most Resent Journal Articles:-
• “दक्षिण अफ्रीका में रामचरित मानस की भूमिका” सृजन समिति, वाराणसी द्वारा प्रकाशित अनुकृति (एक बहु-विषयी अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान पत्रिका) भाग-2-स.6,जुलाई-सितंबर 2012 में पृष्ठ 1-4. पर प्रकाशित
• “Ramayana as the Gateway to Hindu Religious Expression among South African Hindi Speakers”, in Journal of Sociology and Social Anthropology, Special Volume, Vol. 4, No. 1-2, January & April 2013, Kamla-Raj Enterprises, Delhi, India, pp. 83-91.
• “Pilgrimage to India: Experiences of South African Hindi Speaking Hindus” in Nidan, Vol. 25, No.1. December 2013, pp 1-20.
• “Issues in the Rama Story: Genesis, Impact and Resolution” in Nidan, Vol. 21, December 2009, pp 69-91.
• “दक्षिण अफ्रीका में हिंदी की संघर्ष गाथा” ” विश्व हिंदी सचिवालय, मॉरिशस की विश्व हिंदी पत्रिका- 2009 में प्रकाशित
• “हिंदी शिक्षा संघ: दक्षिण अफ्रीका” विश्व हिंदी सचिवालय, मॉरिशस का ‘विश्व हिंदी समाचार , सितंबर – 2009
• “Empowerment of Women in the Ramayana: Focus on Sita” in Nidan, Vol. 22, December 2010, pp 22-39.

चौपाल चर्चा: दिल्ली चुनाव -संजीव

दिल्ली दंगल एक विश्लेषण:
संजीव
.

- सत्य:  आप व्यस्त, बीजेपी त्रस्त, कोंग्रेस अस्त.
= सबक: सब दिन जात न एक समान, जमीनी काम करो मत हो संत्रस्त.

- सत्य: आम चुनाव के समय किये वायदों को राजनैतिक जुमला कहना.
= सबक: ये पब्लिक है, ये सब जानती है. इसे नासमझ समझने के मुगालते में मत रहना.

- सत्य: गाँधी की दुहाई, दस लखटकिया विदेशी सूट पहनकर सादगी का मजाक.
= सबक: जनप्रतिनिधि की पहचान जन मत का मान,  न शान न धाक.

- सत्य: प्रवक्ताओं का दंभपूर्ण आचरण और दबंगपन.
= सबक: दूरदर्शनी बहस नहीं जमीनी संपर्क से जीता जाता है अपनापन.

- सत्य: कार्यकर्ताओं द्वारा अधिकारियों पर दवाब और वसूली.
= सबक: जनता रोज नहीं टकराती, समय पर दे ही देती है सूली.

- सत्य: संसदीय बहसों के स्थान पर अध्यादेशी शासन.
= सबक: बंद न किया तो जनमत कर देगा निष्कासन.

- सत्य: विपक्षियों पर लगातार आघात.
= सबक: विपक्षी शत्रु नहीं होता, सौजन्यता न निबाहें तो जनता देगी मात.

- सत्य: प्रवक्ताओं का दंभपूर्ण आचरण और दबंगपन.
= सबक: दूरदर्शनी बहस नहीं जमीनी संपर्क से जीता जाता है अपनापन.

- सत्य: आर एस एस की बैसाखी नहीं आई काम.
= सबक: जनसेवा का न मोल न दाम, करें निष्काम.

- सत्य: पूरा मंत्रीमंडल, संसद, मुख्यमंत्री तथा प्रधान मंत्री को उताराकर अत्यधिक ताकत झोंकना.
= सबक: नासमझी है बटन टाँकने के लिये वस्त्र में सुई के स्थान पर तलवार भोंकना.

- सत्य: प्रधानमंत्री द्वारा दलीय हितों को वरीयता देना, विकास के लिए अपने दल की सरकार जरूरी बताना.
= सबक: राज्य में सरकार किसी भी दल की हो, जरूरी है केंद्र का सबसे समानता जताना. अपना खून औरों का खून पानी मानना सही नहीं.

- सत्य: पूरा मंत्रीमंडल, संसद, मुख्यमंत्री तथा प्रधान मंत्री को उताराकर अत्यधिक ताकत झोंकना.
= सबक: नासमझी है बटन टाँकने के लिये वस्त्र में सुई के स्थान पर तलवार भोंकना.

- सत्य: हर प्रवक्ता, नेता तथा प्रधान मंत्री का केजरीवाल पर लगातार आरोप लगाना.
= सबक: खुद को खलनायक, विपक्षी को नायक बनाना या कंकर को शंकर बनाकर खुद बौना हो जाना.

- सत्य: चुनावी नतीजों का आकलन-अनुमान सत्य न होना.
= सबक: प्रत्यक्ष की जमीन पर अतीत के बीज बोना अर्थात आँख देमने के स्थान पर पूर्व में घटे को अधर बनाकर सोचना सही नहीं, जो देखिये कहिए वही.

- सत्य: आप का एकाधिकार-विपक्ष बंटाढार.
= सबक: अब नहीं कोई बहाना, जैसे भी हो परिणाम है दिखाना. केजरीवाल ने ठीक कहा इतने अधिक बहुमत से डरना चाहिए, अपेक्षा पर खरे न उतरे तो इतना ही विरोध झेलना होगा.

***





    

faag-navgeet: sanjiv

फाग-नवगीत
संजीव
.
राधे! आओ, कान्हा टेरें
लगा रहे पग-फेरे,
राधे! आओ कान्हा टेरें
.
मंद-मंद मुस्कायें सखियाँ
मंद-मंद मुस्कायें
मंद-मंद मुस्कायें,
राधे बाँकें नैन तरेरें
.
गूझा खांय, दिखायें ठेंगा,
गूझा खांय दिखायें
गूझा खांय दिखायें,
सब मिल रास रचायें घेरें
.
विजया घोल पिलायें छिप-छिप
विजया घोल पिलायें
विजय घोल पिलायें,
छिप-छिप खिला भंग के पेड़े
.
मलें अबीर कन्हैया चाहें
मलें अबीर कन्हैया
मलें अबीर कन्हैया चाहें
राधे रंग बिखेरें

.  

सोमवार, 9 फ़रवरी 2015

मुक्तक: संजीव

मुक्तक :
संजीव
.
जो हुआ अनमोल है बहुमूल्य, कैसे मोल दूँ मैं ?
प्रेम नद में वासना-विषज्वाल कैसे घोल दूँ मैं?
तान सकता हूँ नहीं मैं तार, संयम भंग होगा-
बजाना वीणा मुझे है कहो कैसे झोल दूँ मैं ??
.
मानकर पूजा कलम उठायी है
मंत्र गायन की तरह चलायी है
कुछ न बोले मौन हैं गोपाल मगर
जानता हूँ कविता उन्हें भायी है
.
बेरुखी ज्यों-ज्यों बढ़ी ज़माने की
करी हिम्मत मैंने आजमाने की
मिटेंगे वे सब मुझे भरोसा है-
करें जो कोशिश मुझे मिटाने की
.
सर्द रातें भी कहीं सोती हैं?
हार वो जान नहीं खोती हैं
गर्म जो जेब उसे क्या मालुम
जाग ऊसर में बीज बोती हैं
.
बताओ तो कौन है वह, कहो मैं किस सा नहीं हूँ?
खोजता हूँ मैं उसे, मैं तनिक भी जिस सा नहीं हूँ
हर किसी से कुछ न कुछ मिल साम्यता जाती है मुझको-
इसलिए हूँ सत्य, माने झूठ मैं उस सा नहीं हूँ
.
राह कितनी भी कठिन हो, पग न रुकना अग्रसर हो
लाख ठोकर लगें, काँटें चुभें, ना तुझ पर असर हो
स्वेद से श्लथ गात होगा तर-ब-तर लेकिन न रुकना
सफल-असफल छोड़ चिंता श्वास से जब भी समर हो

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भारतीय कुबेर: विदेशी खाते

भारतीय कुबेर : विदेशी खाते

इंडियन एक्सप्रेस ने 1195 उन भारतीयों के नाम का खुलासा किया है जिनका HSBC बैंक में खाता है. यह संख्या 2011 में फ्रांसीसी अधिकारियों द्वारा भारत को सौंपी गई 628 नामों से लगभग दोगुना है. लिस्ट में वो 628 नाम भी शामिल हैं जो फ्रांस की सरकार से भारत सरकार को 2011 में मिले थे. इन सबके खाते में कुल 25 हजार 420 करोड रुपये जमा हैं लेकिन ये रकम 2006 -2007 तक की जानकारी के आधार पर हैं.

एक्सप्रेस के खुलासे में जिन नामों का खुलासा हुआ है उसमें मुकेश अंबानी, अनिल अंबानी, कांग्रेस की पूर्व सांसद अनु टंडन, पूर्व विदेश राज्य मंत्री परणीत कौर, स्मिता ठाकरे, अभिनेत्री ऋतु महिमा चौधरी, नारायण राणे, नीलम राणे और नीलेश राणे के नाम शामिल हैं.

बड़े कारोबारियों में जेट के नरेश गोयल, डाबर का बर्मन परिवार, डालमिया ग्रुप के अनुराग डालमिया, मनु छाबड़िया, एम्मार एमडीएफ के श्रवण और शिल्पी गुप्ता, सोना कोयो के सुरिंदर कपूर, खेतान के प्रदीप और हैग्रीव खेतान, यशोवर्धन बिड़ला के नाम शामिल हैं. ज्यादातर नाम ऐसे हैं जिनके बारे में चर्चा होती रही है.

आपको बताते हैं कि इंड़ियन एक्सप्रेस ने जिन नामों का खुलासा किया है उनके खाते में कितनी रकम है.

1. मुकेश अंबानी, RIL- 164.92 करोड़ रूपये
2. अनिल अंबानी, ADAG- 164.92 करोड़ रूपये
3. नरेश गोयल, JET AIRWAYS- 116 करोड़ रूपये
4. वर्मन परिवार, DABUR- 77.5 करोड़ रूपये
5. अनुराग डालमिया, DALMIA- 59.5 करोड़ रूपये
6. मनु छाबरिया परिवार- 874 करोड़ रूपये
7. महेश टीकमदास थरानी- 251.7 करोड़ रूपये
8. अनु टंडन, पूर्व कांग्रेस सांसद
9. संदीप टंडन, पूर्व आईआरएस- 166.1 करोड़ रूपये
10. श्रवण-शिल्पी गुप्ता- 209.56 करोड़ रूपये
11. एडमि. एस एम नंदा, सुरेश नंदा-14.2 करोड़ रूपये
12. भद्र श्याम कोठारी परिवार- 195.6 करोड़ रूपये
13. सुभाष वसंत साठे, इंद्राणी साठे- 4.64 करोड़ रूपये
14. स्मिता ठाकरे, बाल ठाकरे की बहू- 64 लाख रूपये
15. परनीत कौर, पूर्व केंद्रीय मंत्री- रकम का खुलासा नहीं
16. नीलम नारायण राणे, नीलेश राणे
17. सुरिंदर कपूर, SONA KOYO- 2.51 करोड़ रूपये
18. यशोवर्धन बिड़ला, चेयरमैन, यश बिड़ला ग्रुप
19. प्रदीप खेतान, हैग्रीव खेतान, (खेतान कंपनी के मालिक)
20. ऋतु (महिमा) चौधरी, बॉलीवुड अभिनेत्री


कैसे सामने आए ये नाम
फ्रेंच अखबार Le Monde को फ्रांस सरकार से सूची मिली. ये खुफिया सूत्रों से सूची वहां तक पहुंची. एचएफबीसी बैंक के एक लाख से ज्यादा खातादारों की सूची मिली. Le Monde ने 45 देशों के पत्रकारों की सहायता से इस सूची की जांच को आगे बढ़ाया. भारत में इंडियन एक्सप्रेस ने इसकी तहकीकत की. इसके बाद इंडियन एक्सप्रेस ने इन नामों का खुलासा किया. इसके बाद इंडियन एक्सप्रेस ने दावा किया है कि इस सूची में 1195 भारतीयों के नाम है जिनके खातों में 25 हजार 400 करोड़ रूपये जमा हैं. इंडिनय एक्सप्रेस द्वारा प्रकाशित किए गए नामों में वे 628 नाम भी हैं जिन्हें सरकार पहले ही उजागर कर चुकी है.

जिन लोगों के नाम इंडियन एक्सप्रेस ने दिए हैं उनका पक्ष भी दिया है. कुछ लोगों से एबीपी न्यूज ने भी बात की और उनका पक्ष लिया.

रिलायंस- दुनिया में कही भी RIL या मुकेश अंबानी का गैरकानूनी बैंक अकाउंट नहीं है. वहीं अनिल अंबनी की तरफ से कहा गया है कि उनका कोई ओवरसीज अकाउंट है ही नहीं.

नरेश गोयल- नरेश गोयल एनआरआई है. दुनिया में कहीं भी वैध अकाउंट रख सकते हैं. वो टैक्स नियमों का भारत और विदेश में पालन करते हैं.

आनंद बर्मन- 1999 में एऩआरआई हूं और यूके में टैक्स भरता हूं. रीमिटंस स्कीम के तहत पैसे जमा किए गए और जानकारी दी गई.

अनु टंडन- भारत के अलावा कहीं अकाउंट नहीं है. मेरे पति अब जीवित नहीं हैं. अगर उन्होंने अकाउंट खोला होगा तो मुझे कैसे पता होगा?

परनीत कौर- मेरा विदेश में कोई अकाउंट नहीं है. अगर मेरी जन्मतिथि और नाम मैच करता हैं तो मैं नहीं जानती कैसे.

केजरीवाल की प्रतिक्रिया
इंडियन एक्सप्रेस के खुलासे के बाद अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि वही नाम सामने आए हैं जिनका खुलासा उन्होंने 2012 में किया था. केजरीवाल ने सवाल उठाया है कि पहले कांग्रेस ने कुछ नहीं किया. अब बीजेपी सरकार भी कुछ नहीं कर रही है.

karyashala:

कार्यशाला : सूचना 
विषय: भाषा व्याकरणों का तुलनात्मक अध्ययन


Yashbhansingh Tomar
फेसबुक पर मेरे 4000 से अधिक मित्र हैं, जिनमें हजारों साहित्य धर्मी हैं; आई.आई.टी.( भारतीय प्राद्यौगिकी संस्थान ) कानपुर में एयरोस्पेस विभाग के उड़िया भाषी प्रोफेसर डॅा. डी.पी.मिश्रा जी, जो स्वयं एक अच्छे कवि, रचनाकार, चिंतक, दार्शनिक व राष्ट्रवादी भावना से ओतप्रोत व्यक्तित्व के धनी हैं, से भाषा व्याकरणों के तुलनात्मक अध्ययन पर एक कार्यशाला के आयोजन पर सहमति बनी है। आप में से सहभागिता के इच्छुक महानुभाव मुझसे सीधे मेरे सचलभाष 09336454204 पर सम्पर्क कर लें। मैं स्वयं भी उन सभी मित्रों से, जिनके सचलभाष फेसबुक पर उपलब्ध हैं, से सम्पर्क करने की कोशिश करूँगा। आई.आई.टी.में ठहराने व भोजन का उत्तरदायित्व हमारा रहेगा। इस हेतु आपके सुझाव भी आमंत्रित हैं।

navgeet: sanjiv

नवगीत:
संजीव
.
'नेकी कर
दरिया में डालो'
कह गये पुरखे
.
याद न जिसको
रही नीति यह
खुद से खाता रहा
भीती वह
देकर चाहा
वापिस ले ले
हारा बाजी
गँवा प्रीति वह
कुछ भी कर
आफत को टालो
कह गये पुरखे
.
जीती-हार
जो हो, होने दो
भाईचारा
मत खोने दो
कुर्सी आएगी
जाएगी
जनहित की
फसलें बोने दो
लोकतंत्र की
नींव बनो रे!
कह गए पुरखे
***    

navgeet: sanjiv

नवगीत:
संजीव
.
जब जग मुझ पर झूम हँसा 
मैं दुनिया पर खूब हँसा
.
रंग न बदला, ढंग न बदला 
अहं वहं का जंग न बदला 
दिल उदार पर हाथ हमेशा 
ज्यों का त्यों है तंग न बदला 
दिल आबाद कर रही यादें 
तूल विरह का खूब धँसा 
.
मैंने उसको, उसने मुझको 
ताँका-झाँका किसने-किसको 
कौन कहेगा दिल का किस्सा?
पूछा तो दिल बोला खिसको 
जब देखे दिलवर के तेवर 
हिम्मत टूटी कहाँ फँसा?
*** 

navgeet: sanjiv

नवगीत:
संजीव
.
मन की
मत ढीली लगाम कर
.
मन मछली है फिसल जायेगा
मन घोड़ा है मचल जायेगा
मन नादां है भटक जाएगा
मन नाज़ुक है चटक जायेगा
मन के
संयम को सलाम कर
.
तन माटी है लोहा भी है
तन ने तन को मोहा भी है
तन ने पाया - खोया भी है
तन विराग का दोहा भी है
तन की
सीमा को गुलाम कर
.
धन है मैल हाथ का कहते
धन को फिर क्यों गहते रहते?
धनाभाव में जीवन दहते
धनाधिक्य में भी तो ढहते
धन को
जीते जी अनाम कर
.
जीवन तन-मन-धन का स्वामी
रखे समन्वय तो हो नामी
जो साधारण वह ही दामी
का करे पर मत हो कामी
जीवन
जी ले, सुबह-शाम कर
***  
९-२-२०१५  

मोगरे के फूल पर थी चांदनी


भोर की ले पालकी आते दिशाओं के कहारों 
के पगों की चाप सुनते स्वप्न में खोई हुई 
नीम की शाखाओं से झरती तुहिन की बूँद पीकर 
मोगरे के फूल पर थी चांदनी सोई हुई 
 
पूर्णिमा में ताज पर हो 
छाँह तारों की थिरकती 
याकि जमाना तीर पर हो 
आभ रजती रास करती 
झील नैनी में निहारें 
हिम शिखर प्रतिबिम्ब अपना 
हीरकणियों में जड़ित 
इक रूप की छाया दमकती 
 
दूध से हो एक काया संदली धोई हुई 
मोगरे के फूल पर थी चांदनी सोई हुई 
 
वर्ष के बूढ़े थके हारे 
घिसटते पाँव रुककर 
देखते थे अधनिमीलित 
आँख से वह रूप अनुपम
आगतों की धुन रसीली 
कल्पना के चढ़ हिंडोले
छेड़ती थी सांस की 
सारंगियों पर कोई सरगम
 
मोतियों की क्यारियों में रागिनी बोई हुई 
मोगरे के फूल पर थी चांदनी सोई हुई 
एक पंकज पर सिमट कर 
क्षीर सागर आ गया हो 
खमज,जयवंती कोई
हिंडोल के सँग गा गया हो 
देवसलिला  तीर पर 
आराधना में हो निमग्ना 
श्वेत आँचल ज्योंकि  प्राची का 
तनिक लहरा गया हो 
 
या कहारों ने तुषारी, कांवरी ढोई  हुई 
मोगरे के फूल पर थी चांदनी सोई हुई 
सो, का हो अर्क आकर
घुल गया वातावरण में
कामना की हों उफानें 
कुछ नै अंत:करण  में 
विश्वमित्री भावनाओं का
करे खण्डन  समूचा 
रूपगर्वित मेनका के 
आचरण के अनुकरण में 
 
पुष्पधन्वा के शरों  में टाँकती कोई सुई 
मोगरे के फूल पर है चांदनी सोई हुई 
 
राकेश खंडेलवाल

navgeet: sanjiv

नवगीत:
संजीव
.

गयी भैंस
पानी में भाई!
गयी भैंस पानी में
.
पद-मद छोड़ त्याग दी कुर्सी
महादलित ने की मनमर्जी
दाँव मुलायम समझा-मारा
लालू खुश चार पायें चारा
शरद-नितिश जब पीछे पलटे
पाँसे पलट हो गये उलटे
माँझी ने ही
नाव डुबोई
लगी सेंध सानी में
.
गाँधी की दी खूब दुहाई
कहा: 'सादगी है अपनाई'
सत्तर लाखी सूट हँस रहा
फेंक लँगोटी  तंज कस रहा
'सब का नेता' बदले पाला
कहे: 'चुनो दल मेरा वाला'
जनगण ने
जब भौंहें तानीं
गया तेल घानी में
.
८-२-२०१५
  

रविवार, 8 फ़रवरी 2015

चन्द माहिया : क़िस्त 15


:1:
ये रात ये तनहाई
सोने नहीं देती
वो तेरी अँगड़ाई

;2:
जो तूने कहा ,माना
तेरी निगाहों में 
फिर भी हूँ बेगाना

:3:
कुछ दर्द-ए-ज़माना है
और ग़म-ए-जानाँ
जीने का बहाना है

:4:
कूचे जो गये तेरे
सजदे से पहले 
याद आए गुनह मेरे

:5:
इक वो भी ज़माना था
रूठे वो हँस कर
मुझको ही मनाना था

-आनन्द.पाठक
09413395592


navgeet; sanjiv

नवगीत:
संजीव
.
तह करके 
रख दिये ख्वा सब 
धू दिखाकर 
मर्तबान में  

कोशिश-फाँकें 
बाधा-राई-नोन 
समय ने रखा अथाना 
धूप सफलता 
मिल न सकी तो 
कैसा गना, किसे गलाना?
कल ही  
कल को कल गिरवी रख  
मोल पा रहा वर्तमान में  
. 
सत्ता सूप  
उठाये घूमे  
कह जनगण से 'करो सफाई'  
पंजा-झाड़ू
संग नहीं तो 
किसने बाती कहो मिलायी?
सबने चुना 
हो गया दल का  
पान गया ज्यों पीकदान में.
.
८-२-२०१५ 

कार्य शाला:

कार्यशाला
आइये! कविता करें १० :
संजीव
.
लता यादव
राह कितनी भी कठिन हो, दिव्य पथ पर अग्रसर हो ।
हारना हिम्मत न अपनी कितनी भी टेढ़ी डगर हो ।
कितनी आएं आँधी या तूफान रोकें मार्ग तेरा, .
तू अकेला ही चला चल पथ प्रदर्शक बन निडर हो ।
कृपया मात्रा भार से भी अवगत करायें गणना करने में कठिनाई का अनुभव करती हूँ , धन्यवाद
संजीव:
राह कितनी भी कठिन हो, दिव्य पथ पर अग्रसर हो ।
21 112 2 111 2, 21 11 11 2111 2 = 14, 14 = 28 हारना हिम्मत न अपनी, कितनी भी टेढ़ी डगर हो ।
212 211 1 112, 112 2 22 111 2 = 14. 15 = 29 कितनी आएं आँधी या, तूफान रोकें मार्ग तेरा, .
112 22 22 2, 221 22 21 22 = 14, 16 = 30 तू अकेला ही चला चल, पथ प्रदर्शक बन निडर हो । 2 122 2 12 11, 11 1211 11 111 2 = 14, 14 = 28
दूसरी पंक्ति में एक मात्रा अधिक होने के कारण 'कितनी' का 'कितनि' तथा तीसरी पंक्ति में २ मात्राएँ अधिक होने के कारण 'कितनी' का 'कितनि' तथा आँधी या का उच्चारण 'आंधियां' की तरह होता है.
इसे सुधारने का प्रयास करते हैं:
राह कितनी भी कठिन हो, दिव्य पथ पर अग्रसर हो ।
21 112 2 111 2, 21 11 11 2111 2 = 14, 14 = 28
हारना हिम्मत न अपनी, भले ही टेढ़ी डगर हो ।
212 211 1 112, 112 2 22 111 2 = 14. 14 = 28
आँधियाँ तूफान कितने, मार्ग तेरा रोकते हों
२१२ ११२ ११२, २१ २२ २१२ २ = 14, 14 = 28
तू अकेला ही चला चल, पथ प्रदर्शक बन निडर हो ।
2 122 2 12 11, 11 1211 11 111 2 = 14, 14 = 28
लता जी! विचार करिए. उचित लगे तो अपना लें अन्यथा कुछ अन्य सोचें.

शनिवार, 7 फ़रवरी 2015

navgeet: sanjiv

नवगीत:
यह कैसा मेहमान?
संजीव
.
यह कैसा मेहमान हमारा?
यह कैसा विश्वास??
.
अपना वाहन साथ लाये हैं 
सैनिक बल भी साथ आये हैं
हम पर अविश्वास, अक्षम हम या
खो बैठे आस??
.
करें प्रशंसा का अभिनय मिल
भार देश पर अरबों का बिल
नहीं सादगी तनिक कहीं भी
गाँधी का उपहास
.
फ़िक्र गरीबों की भारी है
सूट विदेशी अय्यारी है
पंक्तिबद्ध धन्नासेठों से
जनहित की ना आस
.
बनी छावनी सारी दिल्ली
घुस न सके चिड़िया या बिल्ली
आम आदमी है प्रतिबंधित
सहे मौन संत्रास
.
सिर्फ प्रदर्शन और दिखावा
राजनीति हो गयी छलावा
भोज किया बिन भोग लगाये
हैं खासों के ख़ास
२६-१-२०१५ 
***