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सोमवार, 1 जुलाई 2013

doha salila : pratinidhi dohe 2- purnima barman, sharjah






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pratinidhi doha kosh 2-  

purnima barman, sharjah  

प्रतिनिधि दोहा कोष:2

 इस स्तम्भ के अंतर्गत आप पढ़ चुके हैं श्री नवीन सी. चतुर्वेदी के दोहे। आज अवगाहन कीजिए पूर्णिमा रचित दोहा सलिला में :       
    
पूर्णिमा बर्मन, शारजाह  
नाम- पूर्णिमा वर्मन

माता- श्रीमती सरोज प्रभा वर्मन।

पिता- श्री आदित्यकुमार वर्मन।

पति- श्री प्रवीण सक्सेना।

जन्मतिथि व स्थान- २७ जून १९५५ पीलीभीत, उत्तर प्रदेश, भारत।

शिक्षा-         साहित्य में स्नातकोत्तर उपाधि, स्वातंत्र्योत्तर संस्कृत साहित्य पर शोध, पत्रकारिता और वेब डिजाइनिंग में डिप्लोमा।
प्रकाशित साहित्य- दो कविता संग्रह 'पूर्वा' और 'वक्त के साथ'।

संपर्क: पी.ओ.बाक्स- 25450, शारजाह, यू.ए.ई. चलभाष- 0509857675।
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दोहे-


होली के दोहे (नौ दोहे)


रंग-रंग राधा हुई, कान्हा हुए गुलाल
वृंदावन होली हुआ, सखियाँ रचें धमाल

होली राधा श्याम की, और न होली कोय

जो मन राँचे श्याम रंग, रंग चढ़े ना कोय


नंदग्राम की भीड़ में, गुमे नंद के लाल

सारी माया एक है, क्या मोहन क्या ग्वाल                    



आसमान टेसू हुआ, धरती सब पुखराज



मन सारा केसर हुआ, तन सारा ऋतुराज

बार-बार का टोंकना, बार-बार मनुहार

धूम-धुलेंडी गाँवभर, आँगनभर त्योहार


फागुन बैठा देहरी, कोठे चढ़ा गुलाल

होली टप्पा दादरा, चैती सब चौपाल


सरसों पीली चूनरी, कहे हवा संग छंद

नयी धूप में खुल रहे, मन के बाजूबंद


महानगर की व्यस्तता, मौसम घोले भंग

इक दिन की आवारगी, छुट्टी होली रंग


अंजुरी में भरपूर हों, सदा रूप रस गंध

जीवन में अठखेलियाँ, करती रहे सुगंध


गरमी के दोहे (पाँच दोहे)















       


गरमी ने खटका दिये, फिर वैशाखी द्वार
विष की बुझी कटार सी, चलने लगी बयार


छाँह लुकी बेबस हुई, आँख दिखाये जेठ
प्रियतम गुलमोहर हुए, देख जेठ की हेठ


भठ्ठी जैसा आँगना, जलते हुए दलान

खस से भीगी कोठरी, रखे बिजैना मान


मौसम के बाज़ार में, धूप दोपहर ताप

लू में गिरें टिकोरियाँ, ज्यों घोड़े की टाप
                                                                                                    नीम उदासी दोपहर, कच्ची अमिया धूप                                           
देह -द्वार अन्होंरियाँ लगीं फटकने सूप


बरसाती दोहे (बारह दोहे)



भादों आया देख कर, हुई सुहानी शाम

मौसम भी लिखने, लगा पत्तों पर पैगाम



चादर ओढ़ी सुरमई, छोड़ सिंदूरी गाम

बात-बात में बढ़ गई, बारिश से पहचान



गलियारे पानी भरे, आँगन भरे फुहार

सावन बरसा झूम के, भादों बही बयार



छम-छम बाजे पायली, रूके नहीं बरसात

हरी मलमली चूनरी, तितली चूड़ा सात



बादल में मादल बजे, नभ गूँजे संतूर

मन में बिच्छू सा चुभे, घर है कितनी दूर



कच्ची-पक्की मेड़ पर, बस छाते का साथ

हवा मनचली खींचती, पकड़-पकड़ कर हाथ



बरसी बरखा झूम के, सबके मिटे मलाल

खेतों में हलचल बढ़ी, खाली हैं चौपाल



गड़ गड़ बाजी बादरी, भिगो गई दालान

खट्टे मन मीठे हुए, क्या जामुन क्या आम

     

बादल की अठखेलियाँ, बारिश का उत्पात

ऐसा दोनों का मिलन, सूखे को दी मात



ताल-तलैया भर गये, झरनों की भरमार

मन-खिड़की से झाँकता, हरा-भरा व्यापार।



हरी नीम से झर रही, मीठी-मीठी धूप,

सावन की तनहाई में, काटे कटे न ऊब



छप्पर पिछले बरस का, इस मौसम की धार,

मन ही मन इस दर्द का, हर पल चढ़े उधार


फागुन के दोहे (दस दोहे)




ऐसी दौड़ी फगुनहट, ढाणी चौक फलाँग

फागुन आया खेत में, भर फसलों की माँग



आम बौरता आँगना, कोयल चढ़ी अटार

चंग द्वार दे दादरा, मौसम हुआ बहार



दूब फूल की गुदगुदी, बतरस चढ़ी मिठास

मुलके दादी भामरी, मौसम को है आस



वर गेहूँ बाली सजा, खड़ी फ़सल बारात

सुग्गा छेड़े पी कहाँ, सरसों पीली गात



ऋतु के मोखे सब खड़े, पाने को सौगात

मानक बाँटे छाँटकर, टेसू ढाक पलाश



ढीठ छोरियाँ तितलियाँ, रोकें राह वसंत

धरती सब क्यारी हुई, अम्बर हुआ पतंग



मौसम के मतदान में, हुआ अराजक काम

पतझर में घायल हुए, निरे पात पैगाम



दबा बनारस पान को, पीक दई यौं डार

चैत गुनगुनी दोपहर, गुलमोहर कचनार



सजे माँडने आँगने, होली के त्योहार

बुरी बलायें जल मरें, शगुन सजाये द्वार



मन-आँगन कुंकुम रचे, गाल अबीर गुलाल

लाली फागुन माह की, बढ़े साल दर साल



उदास गाँव (छह दोहे)


कहते-कहते रुक गयी, पीपलवाली छाँव

क्यों उदास होने लगे, उत्सववाले गाँव



आसमान में भर गयी, कर्फ्यूवाली धूप

सहमा-सहमा सा लगे, गुलमोहर का रूप



सोनेवाली बज रही, दोपहरी की झाँझ

अमलतास पर झूलता, मौन अगोरे साँझ



दिन पछाँह की हेठियाँ, लू लश्कर के साथ

चाँदीवाला मन लिये, रात फेरती हाथ



धूल-धूल होता रहा, पगडंडी का नेह

मृगतृष्णा गढ़ती रही, सड़कोंवाली देह



शहरों में बसने लगे, सुविधावाले लोग

माटीवाले प्यार में, लिखा रहा बस जोग



हुरियारों की भीड़ (दस दोहे)


 
भोर जली होली सखी, दिन भर रंग फुहार
टेसू की अठखेलियाँ, पूर गयीं घर-द्वार


जोश, -जश्न, -पिचकारियाँ,  -अंबर उड़ा गुलाल
हुरियारों -की -भीड़ में, जमने लगा धमाल


शहर रंग से भर गया, चेहरों पर उल्लास
गली-गली में टोलियाँ, बाँटें हास-हुलास


हवा-हवा केसर उड़ा, टेसू बरसा देह
बातों में किलकारियाँ, मन में मीठा नेह


ढोलक से मिलने लगे,--चौताले के बोल
कंठों में खिलने लगे, राग बसंत हिंदोल


मंद पवन में-उड़ रहे, होलीवाले छंद
ठुमरी,-टप्पा,,-दादरा, -हारमोनियम, -चंग


नदी चल पड़ी रंग की, थामे सबका हाथ
जिसको रंग पसंद हो, चले हमारे साथ


घर-घर में तैयारियाँ, ठंडाई पकवान
दर-देहरी पर रौनकें, सजे-धजे मेहमान


होली की दीवानगी, फगुआ का संदेश
ढाई आखर-प्रेम के, द्वेष बचे ना शेष


मन के तारों पर बजे, सदा सुरीली मीड़
शहरों में सजती रहे,--हुरियारों -की -भीड़

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poetry : Nicely behave hasmukh amatahlal

Nicely behave

I am simple and villager
But good to ears as manager
Can listen to natural music
Understand its language and basic

It is not difficult to understand or oblige
We feel very much part and realize
That we belong to nature
And there is surely a bright future

God too is happy with this formula
Floral beauty can be expressed in no stanzas
The flowers can be seen from distance
Its fragrance can be smelt at once

Nature only teaches us to love
Have firm faith and believe
That primarily we are human
We can’t be hunter or gunman

Cuckoo has no business to air melody
Sing in the praise of world and almighty
We can pick the thread of humanity
That world belongs to all with certainty

Try to speak in right way even if it is wrong
You may still feel closer and among
The approach may force you to change style
It is commended and felt worthwhile

We remain attached to worldly things
That forces us to crush nature’s wings
Block the river flow and remove forests
The greenery can provide us very best

Nature is never different
Was not in past or remain so in present
We got be tolerant about natural existence
That should be the approach and insistence

If we can’t make heaven
Let that remain hygienic even
Let birds fly freely and animals move
Let us behave nicely and improve
*

रविवार, 30 जून 2013

pratinidhi dohe 1: navin c. chaturvedi, mumbai


इस स्तम्भ के अंतर्गत आप पढ़ेंगे विविध दोहाकारों के प्रतिनिधि दोहे:       
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प्रतिनिधि दोहा कोष : १

नवीन सी. चतुर्वदी, मुंबई  के दोहे :


सजल दृगों से कह रहा, विकल हृदय का ताप।
मैं जल-जल कर त्रस्त हूँ, बरस रहे हैं आप।१।

झरनों से जब जा मिला, शीतल मंद समीर।
कहीं लुटाईं मस्तियाँ, कहीं बढ़ाईं पीर।२।

निखर गईं तनहाइयाँ, बिखर गये हालात।
तरु को तनहा कर गये, झर-झर झरते पात।३।

अपनी मरज़ी से भला, हुई कभी बरसात?
नाहक उस से बोल दी, अपने दिल की बात।४।

झगड़े का मुद्दा बनी, बस इतनी सी बात।
हमने माँगी थी मदद, उस ने दी ख़ैरात।५।

जिन के तलुवों ने कभी, छुई न गीली घास।
वो क्या समझेंगे भला, माटी की सौंधास।६।

बित्ते भर की बात है, लेकिन बड़ी महान।
मानव के संवाद ही, मानव की पहिचान।७।

भरे पड़े हैं हर सू यहाँ, ऐसे भी इन्सान।
फुस्सी बम जैसा जिगर, रोकिट से अरमान।८।

बुधिया को सुधि आ गयी,अम्मा की वह बात।
मन में रहे उमंग तो, दीवाली दिन रात।९।

मातु-पिता, भाई-बहन, सजनी – बच्चे – यार।
जब-जब ये सब साथ हों, तब-तब है त्यौहार।१०।

चायनीज़ बनते नहीं, चायनीज़ जब खाएँ।
फिर इंगलिश के मोह में, क्यूँ फ़िरंग बन जाएँ।११।

द्वै पस्से भर चून अरु, बस चुल्लू भर आब।
फिर भी आटा गुंथ गया, पूछे कौन हिसाब।१२।

अब तक है उस दौर की, आँखों में तस्वीर।
बचपन बीता चैन से, कालिन्दी के तीर।१३।

तमस तलाशें तामसी, ख़ुशियाँ खोजें ख़्वाब।
दरे दर्द दिलदार ही, सही कहा ना साब?१४।

सजनी सजना से कहे, सजन सजाओ साज।
मुझे लादिये प्रीत से, धनतेरस है आज।१५।
प्रीतम पाती पढ़ रहे
, प्रीत-पारखी नैन।
शब्दों में ही ढूँढते, दीप-अवलि सुख-दैन।१६।

कल-कल कहते कट गया, कितना काल-कराल।
जीवन में इक बार तो, कर मुझ को ख़ुशहाल।१७।

अनुभव, ज्ञान, उपाधियाँ, रिश्ते, नफ़रत, प्रीत।
बिन मर्ज़ी मिलते नहीं, यही सदा की रीत।१८।

जीते जी पूछें नहीं, चलें निगाहें फेर।
आँख मूँदते ही मगर, तारीफ़ों के ढेर।१९।

उन्नत धारा प्रेम की, बहे अगर दिन-रैन।
तो मानव-मन को मिले, मन-माफ़िक सुख-चैन।२०।

सीधी चलते राह जो, रहते सदा निशंक।
जो करते विप्लव, उन्हें, 'हरि' का है आतंक।२१।

घी घटता ही जाय ज्यों, बाती जलती जाय।
नव यौवन सी झूमती, दीपाशिखा बल खाय।२२।

डग, मग महिं डगमग करत, मन बिसरत निज करम।
तन तरसत, झुरसत हृदय, इतिक बिरह कर मरम।२३।

अचल, अटल, अनुपम, अमित, अजगुत, अगम, अपार।
शुचिकर सुखद सुफल सरस; दियनि-अवलि त्यौहार।२४।

अक्सर ऐसे भी दिखें, कुछ मोड्रन परिवार।
मिल-जुल कर ज्यों चल रही, गठबंधन सरकार।२५।

अब ताईं है मोहि, वा – भोजन सों अनुराग।
फुलका मिस्से चून के, करकल्ले कौ साग।२६।

सचिन सचिन सच्चिन सचिन, सचिन सचिन सच्चिन्न।
दुनिया की किरकेट का, तुम हो भाग अभिन्न।२७।

चल फिर हम तुम प्रेम से, करें प्रेम की बात।
प्रेम सगाई विश्व में, सर्वोत्तम सौगात ।२८।

ताव भूल कर भाव जब, सहज पूछता क्षेम।
अनुभावों की कोख से,पुलक जन्मता प्रेम ।२९।

लाला लाला लालला, लाला लाला लाल।
दोहा लिखने के लिये, उत्तम यही मिसाल।३०।

science: manav kloning dr. deepti gupta

विज्ञान सलिला :
मानव क्लोनिंग
डॉ. दीप्ति गुप्ता 
*
मनुष्य बहुत कुछ करना  चाहता है,  कर्म भी करता है भरसक प्रयास  भी  करता है लेकिन  कुछ काम हो पाते हैं और शेष नहीं हो पाते! जैसे  अनेक समृद्ध व संपन्न होने का प्रयास  करते है लेकिन  नहीं हो पाते! जो बिज़नेस करना चाहता  है, वह उसमें असफल होकर अध्यापक बन जाता है, जो संगीतज्ञ  बनना चाहताहै, वह डाक्टर बन जाता है, तमाम आई.पी. एस. अधिकारी और प्रशासनिक अधिकारी  अपनी  अफसरी छोडकर विश्वविद्यालय  प्रोफैसर बने! जिससे सिद्ध होता है कि ईश्वरेच्छा सर्वोपरि है!  इसी प्रकार, बहुत से जोड़े चाहते हुए भी  माता-पिता  ही नहीं बन पाते !

‘क्लोन’शब्द प्राचीन ग्रीक शब्द Klon, twig से व्युत्पन्न हुआ जो पेड़ की शाख से  नया पौधा पैदा किया जाने की प्रकिया के लिए प्रयुक्त किया जाता था! धीरे-धीरे यह शब्दकोष में सामान्य सन्दर्भ में प्रयुक्त होने लगा! ‘ईव’ सबसे पहली मानव क्लोन थी! जब वह जन्मी तो, उसने अपने साथ  वैज्ञानिक और राजनीतिक बहस को भी जन्म दिया! इस विषय पर आगे बढ़ने से पहले हमें मानव क्लोनिंग  को एक बार अच्छी तरह समझ लेना चाहिए! समान जीवो को उत्पन्न करने की  प्रक्रिया ‘प्रतिरूपण’ (क्लोनिंग) कहलाती है अर्थात प्रतिरूपण (क्लोनिंग) आनुवांशिक रूप से ‘समान दिखने’ वाले  प्राणियों को जन्म देने वाली ऐसी प्रकिया है जो विभिन्न जीवों से खास प्रक्रिया से प्रजनन करने पर घटित होती है! जैसे फोटोकापी मशीन से अनेक छायाप्रतियां बना लेते हैं उसी तरह  डी.एन.ए. खंडों (Molecular cloning) और कोशिकाओं (Cell Cloning) के भी प्रतिरूप बनाए जाते हैं!  बायोटेक्नोलौजी में  डी.एन.ए. खण्डों  के  प्रतिरूपण  की प्रक्रिया को  ‘क्लोनिंग’  कहते हैं ! यह टर्म किसी भी चीज़ की अनेक  प्रतिरूप (से डिजिटल मिडिया) बनाने  के लिए भी  प्रयुक्त होता है !
 
'प्रतिरूपण'   की  पद्धति - 

          जेनेटिक तौर पर अभिन्न पशुओं के निर्माण के लिए प्रजननीय प्रतिरूपण आमतौर पर "दैहिक कोशिका परमाणु हस्तांतरण" (SCNT = Somatic-cell nuclear transfer) का प्रयोग करता है !  इस प्रक्रिया में एक 'दाता (Donar) वयस्क कोशिका' (दैहिक कोशिका) से किसी नाभिक-विहीन अण्डे में नाभिक (nucleus) का स्थानांतरण  शामिल करना होता है !  यदि अण्डा सामान्य रूप से विभाजित हो जाए, तो इसे   'प्रतिनिधि  माँ ' (surrogate mother) के गर्भाशय में स्थानांतरित कर दिया जाता है ! फिर धीर-धीरे  उसका विकास होता जाता है !

       इस प्रकार के प्रतिरूप पूर्णतः समरूप नहीं होते क्योंकि दैहिक कोशिका के नाभिक डी.एन.ए में कुछ परिवर्तन हो सकते हैं !  किन्ही  विशेष कारणों से वे  अलग भी  दिख  सकते हैं !   surrogate माँ के हार्मोनल प्रभाव भी  इसका एक कारण माना जाता है ! यूं तो स्वाभाविक रूप से पैदा हुए  जुडवां बच्चो के भी उँगलियों के निशान भिन्न  होते है , स्वभाव अलग होते हैं, रंग फर्क  होते हैं !

             हाँलाकि  १९९७ तक  प्रतिरूपण साइंस फिक्शन की चीज़  था ! लेकिन  जब ब्रिटिश शोधकर्ता ने ‘डौली’ नामकी  भेड का क्लोन  प्रस्तुत किया (जो २७७ बार प्रयास करने के बाद सफल हुआ और डौली का जन्म हो पाया) तो तब से जानवरों - बंदर, बिल्ली, चूहे आदि पर  इस प्रक्रिया के  प्रयोग किए गए !  वैज्ञानिको  ने  मानव प्रतिरूपण का अधिक स्वागत नहीं किया  क्योकि  बच्चे के बड़े होने पर, उसके कुछ  नकारात्मक परिणाम सामने आए ! इसके आलावा, दस में से एक या दो भ्रूण ही सफलतापूर्वक विकसित  हो पाते हैं ! जानवरों पर किए  गए प्रयोगों से सामने आया कि २५  से ३० प्रतिशत जानवरों में  अस्वभाविकतएं आ जाती हैं ! इस दृष्टि से क्लोनिंग  खतरनाक है !
        वस्तुत; क्लोनिंग प्रतिरूपण के कुछ  ही सफल प्रयोगों पर हम खुश हो जाते है लेकिन यह  ध्यान देने योग्य बात है कि बड़ी संख्या में अनेक प्रयास  असफल ही रह जाते हैं ! जो सफल होते हैं उनमें बाद में  कोई  प्राणी बड़ा होता जाता है, उसकी अनेक शारीरिक स्वास्थ्य संबंधी सामने आने लगती हैं ! अब तक जानवरों के जो प्रतिरूपण बनाए गए उनसे निम्नलिखित समस्याएं
 सामने आई  -
१)       परिणाम असफल रहे ! यह प्रतिशत ०.१ से ३ तक ही रहा ! मतलब कि यदि १००० प्रयास  किए गए तो उनमें ३०   प्रतिरूपण ही सफल हुए ! क्यों ?
   *    नाभिक-विहीन अण्डे  और स्थानांतरित नाभिक (nucleus)  में   अनुकूलता (compatibility) न बैठ पाना  !
 
   *   अंडे का विभाजित न होना और विकसित  होने में बाधा  आना !
           *   प्रतिनिधि (Surrogate )  माँ के गर्भाशय में अंडे को स्थापित करने पर , स्थापन का असफल हो जाना
 
       *  बाद के विकास  काल में समस्याएं आना !


 २) जो  जानवर  जीवित रहे वे आकार में सामान्य से  काफी बड़े थे ! वैज्ञानिको ने इसे "Large Offspring Syndrome" (LOS) के नाम से अभिहित किया ! इसी  तरह उनके ऊपरी आकार ही नहीं अपितु, शिशु जानवरों के अंदर के अंग भी विशाल आकार के पाए गए ! जिसके करण उन्हें साँस लेने, रक्त संचालन व  अन्य समस्याएं हुई ! लेकिन ऐसा  हमेशा  नहीं भी घटता है ! कुछ  क्लोन प्राणियों की किडनी  और मस्तिष्क के आकार विकृत पाए गए तथा  इम्यून सिस्टम भी  अशक्त  था ! 

३)    जींस के (एक्सप्रेशन) प्रस्तुति सिस्टम का  असामान्य होना भी सामने आया ! यद्यपि क्लोन मौलिक  देहधारियो जैसे ही दिखते है और उनका डी एन ए  sequences क्रम भी समान होता है ! लेकिन वे सही समय पर सही जींस को  प्रस्तुत कर पाते हैं ? यह सोचने का विषय है !
४ )     Telomeric विभिन्नताएँ - जब कोशिका या कोशाणु (cells )विभाजित होते हैं तो, गुण सूत्र (chromosomes) छोटे होते जाते हैं! क्योकि डी.एन.ए क्रम (sequences) गुण सूत्रों के दोनों ओर- जो टेलोमियर्स – कहलाते हैं वे हर बार डी.एन.ए के प्रतिरूपण प्रक्रिया के तहत लम्बाई में सिकुडते जाते हैं !  प्राणी उम्र में जितना बड़ा होगा टेलीमियर्स उतने ही छोटे होगें ! यह उम्रदर प्राणियों के साथ एक सहज प्रक्रिया है ! ये भी समस्या का विषय निकला !

           इन कारणों से विश्व के वैज्ञानिक मानव प्रतिरूपण के पक्ष में नहीं  हैं! वैसे भी कहा यह जाता है कि इस तरह बच्चा प्राप्त करने कि प्रक्रिया उन लोगों के लिए सामने  लाई  गई, जो चाहते हुए भी माता-पिता  नहीं बन पाते! 

अब आप खुद  ही सोचिए कि  ईश्वर  प्रदत्त  मानव  ज्यादा बेहतर कि इस तरह के कृत्रिम विधि से पैदा  मानव..... जिनमे तमाम विकृतियां अधिक और सामान्य - स्वस्थ शरीर  कम मिलेगे ! प्रकति पर विजय प्राप्त करने के नतीजे अभी केदारनाथ-बद्रीनाथ की प्रलय में देख ही लिए हैं ! आने वाले समय में ९० प्रतिशत  विकृत शरीर, विकृत मनों-मस्तिष्क वाले अक्षम मनुष्य  और देखने को मिलेगें  ! इसलिए प्रकृति  के खिलाफ जाना   श्रेयस्कर  नहीं ! प्रकृति यानी ईश्वर का प्रतिरूप - उसके  अनुरूप ही अपने को ढाल कर चलना  चहिए  क्योंकि  हम उसका सहज- स्वाभाविक हिस्सा है !
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शनिवार, 29 जून 2013

geet pahale bhee... acharya sanjiv verma 'salil'

गीत:
पहले भी
संजीव
*
पहले भी बहु बार घटा है,
आगे भी बहु बार घटेगा।
बन-बन कर मिटता है मानव-
मिट-मिटकर बहु बार बनेगा...
*
माटी के पुतले हैं हम-तुम, माटी में ही खिल पाते हैं।
माटी में उगते-फलते हैं, माटी में ही मिल जाते हैं।।
माटी अपना दीन-धरम है, माटी ही पहचान हमारी।
माटी मिली विरासत हमको, माटी ही परिपाटी प्यारी।।
माटी चन्दन अक्षत रोली,
मस्तक तिलक सुदीर्घ सजेगा।
माटी का हर कंकर शंकर-
प्रलयंकर नव सृष्टि रचेगा...
*
पानी तलवारों का अरि से, पूछो जो मँग सके न पानी।
पानीदार नयन में डूबी जब-जब, मारी गयी जवानी।।
माँ के आँचल के पानी की सौं, आँखों से बहे न पानी-
पानी मांगें अच्छे-अच्छे, चुल्लू भर ले सकें न पानी।।
पानी नेह-नर्मदा पावन,
सलिल-धार बन तार-तरेगा।
वह संजीव, वही सोहन है-
वाष्प मेघ बन वृष्टि बहेगा...
*
हवा हो गया पल में वह, जो चाहे हवा हमारी रोके।
हवा बंद हो गयी उन्हीं की, जो आये थे बनकर झोंके।।
हवा बिगाड़े प्रकृति उन्हीं की, हवा करें जो सतत प्रदूषित-
हवा हवाई बात न हो अब, पग न प्रगति का कोई रोके।।
चुटकी में चुटका के पथ का,
अनचाहा अवरोध हटेगा।
पानी अमरकंटकी पावन,
बिजली दे सागर पहुँचेगा ...
*
आग लगाकर ताप रहे हो, आग लगी तो नहीं बचोगे।
नाम पाक नापाक हरकतें, दाल वक्ष पर दल न सकोगे।।
आग उगलते आतंकी शोलों में आग लगेगी पल में-
चरण चाप चीनी चुरकट के, पछताओगे प्राण तजोगे।।
आग खेलते, चलें आग पर,
आग दिलों में, दिल न जलेगा।
बचे दिलजला नहीं आग से,
आगसात हो हाथ मलेगा...
*
गगन चूमते जंगल काटे, पत्थर तोड़े, माटी खोदी।
गगन-वृष्टि को रोक सके जो, ऐसी सकल सुरक्षा खो दी।।
महाकाल को पूज रहे पर, नहीं काल-पदचाप सुन सके-
गगन बहता रहा अश्रु तुम, कह बरसात न स्वप्न बुन सके।।
देखें चुप केदारनाथ क्यों?,
कौन कोप को झेल सकेगा?

अगर न धारा को आराधा 
तो राधा को कौन भजेगा?...

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