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शुक्रवार, 22 मार्च 2013

आओ! देखें दुर्लभ चित्र:

समय-पृष्ठ पलटें :
समय के पन्नों को पलटकर कुछ अजाना, कुछ अबूझा, करें साझा ...
उपन्यास सम्राट 



सितम्बर1936 उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद का रामकटोरा, बनारस स्थित घर में रोगशैय्या पर अंतिम चित्र। 'अज्ञेय' द्वारा इस चित्र को लेने के एक माह पश्चात प्रेमचंद का देहावसान हुआ।अज्ञेय की पहली कहानी 'अमर-वल्लरी' प्रेमचंद ने 5 अक्तूबर, 1932के  'जागरण' में  प्रकाशित की थी। अज्ञेय तब, अन्य क्रांतिकारियों के साथ, दिल्ली षड्यंत्र मुकदमे में जेल काट रहे थे, जहाँ से तीन साल बाद छूटे।
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संविधान निर्माता 
 
राष्ट्रकवि और राष्ट्रपति  

 
देशरत्न डॉ। राजेंद्र प्रसाद तत्कालीन राष्ट्रपति को 'संस्कृति के चार अध्याय' की प्रति भेंट करते हुए राष्ट्रकवि दिनकर।
 

सबसे बाएंफणीश्वरनाथ रेणु, रामधारी सिंह दिनकर (वक्ता)। आभार: अखिलेश शर्मा, रांची। 
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सुभाषद्रोही या देशद्रोही?

 

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को विश्व युद्ध अपराधी के रूप में अंग्रेजों को सौंपने पर गाँधी, नेहरु, जिन्ना एकमत: भारत की एकमात्र विश्वस्नीय समाचार सेवा PTI द्वारा दिए समाचार के अनुसार नेताजी के लापता होने संबंधी दुर्घटना की जाँच हेतु गठित खोसला आयोग के समक्ष बयां देते हुए नेताजी के अंगरक्षक रहे उस्मान पटेल ने बताया कि मोहनदास करमचंद गांधी, जवाहरलाल नेहरू, मोहम्मद अली जिन्ना और मौलाना आज़ाद ने अंग्रेज जज से समझौता किया था की नेताजी के मिलने पर उन्हें अंग्रेजोन को सौंपा जायेगा।
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स्वतंत्रता का सच 


 

कृपया निम्न तथ्यों को ध्यान से पढ़िये:-
1. 1942 : ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन ब्रिटिश सरकार ने कुछ हफ्तों में कुचला।2. 1945 : ब्रिटेन ने विश्वयुद्ध में ‘विजयी’ देश के रूप सिंगापुर को वापस अपने कब्जे में लिया। उसका भारत से लेकर सिंगापुर तक जमे रहने का इरादा था। दिल्ली के ‘संसद भवन’ से लेकर अण्डमान के ‘सेल्यूलर जेल’ तक- हर निर्माण 500 से 1000 वर्षों तक सत्ता बनाये रखने के इरादे से किया गया था
3. 1945 - 1946 ब्रिटेन ने हड़बड़ी में भारत छोड़ने का निर्णय लिया? क्यों? क्या घटा इस बीच जिसने अंग्रेजों को पलायन करने पर मजबूर किया?
4. बचपन से सुने - 'दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढाल, साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल' को भुला कर सच जानें इस काल में ‘नेताजी और आजाद हिन्द फौज की सैन्य गतिविधियों के कारण’ ही 1947   में आजादी मिली। विश्वास न हो नीचे दिए गए तथ्य देखें:
***
ब्रिटिश संसद में विपक्षी सदस्य द्वारा प्रश्न पूछने पर कि ब्रिटेन भारत को क्यों छोड़ रहा है, ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली जवाब
दो विन्दुओं में देते हैं:
1. भारतीय मर्सिनरी (वेतनभोगी पेशेवर
सेना) ब्रिटिश राजमुकुट के प्रति वफादार नहीं रही और
2. इंग्लैण्ड इस स्थिति में नहीं है कि वह अपनी खुद की सेना को इतने बड़े पैमाने पर संगठित कर सके कि वह भारत पर नियंत्रण रख सके।
अंग्रेजी इतिहासकार माईकल एडवर्ड के शब्दों में ब्रिटिश राज के अन्तिम दिनों का आकलन:
“भारत सरकार ने आजाद हिन्द सैनिकों पर मुकदमा चलाकर भारतीय सेना के मनोबल को मजबूत बनाने की आशा की थी। इसने उल्टे अशांति पैदा कर दी- जवानों के मन में कुछ-कुछ शर्मिन्दगी पैदा होने लगी कि उन्होंने विदेशियों का साथ दिया। अगर सुभाषचन्द्र बोस और उनके आदमी सही थे- जैसाकि सारे देश ने माना कि वे सही थे भी- तो सेना के भारतीय जरूर गलत थे। भारत सरकार को धीरे-धीरे यह दीखने लगा कि ब्रिटिश राज की रीढ़- भारतीय सेना- अब भरोसे के लायक नहीं रही। सुभाष बोस का भूत, हैमलेट के पिता की तरह, लालकिले (जहाँ आजाद हिन्द सैनिकों पर मुकदमा चला) के कंगूरों पर चलने-फिरने लगा, और उनकी अचानक विराट बन गयी छवि ने उन बैठकों को बुरी तरह भयाक्रान्त कर दिया, जिनसे आजादी का रास्ता प्रशस्त होना था।”
***
निष्कर्ष के रुप में यह कहा जा सकता है कि:-
1. अँग्रेजों के भारत छोड़ने के हालाँकि कई कारण थे, मगर प्रमुख कारण यह था कि भारतीय थलसेना एवं जलसेना के सैनिकों के मन में ब्रिटिश राजमुकुट के प्रति राजभक्ति में कमी आ गयी थी और- बिना राजभक्त भारतीय सैनिकों के- सिर्फ अँग्रेज सैनिकों के बल पर सारे भारत को नियंत्रित करना ब्रिटेन के लिए सम्भव नहीं था।
2. सैनिकों के मन में राजभक्ति में जो कमी आयी थी, उसके कारण थे- नेताजी का सैन्य अभियान, लालकिले में चला आजाद हिन्द सैनिकों पर मुकदमा और इन सैनिकों के प्रति भारतीय जनता की सहानुभूति।
3. अँग्रेजों के भारत छोड़कर जाने के पीछे गाँधीजी या काँग्रेस की अहिंसात्मक नीतियों का योगदान नहीं के बराबर रहा। --जय हिन्द ।
 आभार :- गौरी राय
 

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उन्नीस वर्ष में विश्व विजय:
 
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नेहरु - शास्त्री मूल्यांकन 
 
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सनातन सत्य 
 
 

फागुन त्रिभंगी छंद: संजीव 'सलिल'

फागुन
त्रिभंगी छंद:
 संजीव 'सलिल'
*
ऋतु फागुन आये, मस्ती लाये, हर मन भाये, यह मौसम।
अमुआ बौराये, महुआ भाये, टेसू गाये, को मो सम।।
होलिका जलायें, फागें गायें, विधि-हर शारद-रमा मगन-
बौरा सँग गौरा, भूँजें होरा, डमरू बाजे, डिम डिम डम।।
*
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in

गुरुवार, 21 मार्च 2013

होरी के जे हुरहुरे संजीव 'सलिल' *

होरी के जे हुरहुरेसंजीव 'सलिल'

होरी के जे हुरहुरे, लिये स्नेह-सौगात,
कौनौ पढ़ मुसक्या रहे, कौनौ दिल सहलात।
कौनौ दिल सहलात, किन्हउ  खों चढ़ि गओ पारा,
जिन खों पारा चढ़े, होय उनखों मूं कारा।   
*
मुठिया भरे गुलाल से, लै पिचकारी रंग। 
रंग भ्रमर खों मूं-मले, कमल करि रह्यो दंग।। 
कि बोलो सा रा रा रा.....
*
सुमिरों मैं परताप खों, मानो मम परताप।
फागुन-भरमायो शिशिर, आग रह्यो है ताप।। 
कि बोलो सा रा रा रा.....
*
गायें संग महेस के, किरण-नीरजा फाग।
प्रणव-दीप्ति-आतिश जुरे, फूल-धतूरा पाग।। 
कि बोलो सा रा रा रा.....
*
भूटानी-छबि बनी है, नेपाली सी आज।
भंग पिलातीं इंदिरा, कुसुम-किन्शुकी ताज।। 
कि बोलो सा रा रा रा.....
*
महिमा की महिमा 'सलिल', मो सें बरनि न जाय।
तज दीन्यो संतोष- पी,  भंग गजब इठलाय ।। 
कि बोलो सा रा रा रा.....
*
नभ का रंग परकास के, चेहरे-छाया खूब।
श्यामल घन घनश्याम में, जैसे जाए डूब।। 
कि बोलो सा रा रा रा.....
*
गूझों का आनंद लें, लुक-छिप पाठक भाग। 
ओम व्योम से झाँककर, माँग रहे हैं भाग।। 
कि बोलो सा रा रा रा.....
*
काट लिए वनकोटि फिर, चाहें पुष्प पलाश। 
ममता औ समता बिना, फगुआ हुआ हताश।। 
कि बोलो सा रा रा रा.....
*

chitr-chitr sandesh

 
 
 
 
 
 


 

बुधवार, 20 मार्च 2013

चित्र पर कविता:

चित्र पर कविता:


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    १. एस.एन. शर्मा 'कमल'
       विधि के हाथों खींची  लकीरें         
           नहीं  मिटी  है नहीं मिटेंगी

लाख जतन कर लिखो भाल पर
तुम कितनी ही अपनी भाषा
होगा वही जो विधि रचि राखा
शेष बनेगी  मात्र दुराशा 
            साधू संत फ़कीर सभी पर
             हावी  भाग्य  लकीर रहेंगी

बलि ने घोर तपस्या की थी
पाने को गद्दी इन्द्रलोक की
छला गया बावन अंगुल से
मिली सजा पाताल भोग  की
              बस न चलेगा होनी पर कुछ
              बात बनी बन कर बिगड़ेगी

कुंठित  हुए कुलिश,गाण्डीव
योधा तकते रहे भ्रमित  से
रहा अवध सिंहासन खाली
चौदह वर्ष नियति की गति से 
             भाग्य-रेख पढ़ सका न कोई
              वह अबूझ  ही बनी  रहेगी


sn Sharma <ahutee@gmail.com>
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 २. संजीव 'सलिल'

कर्म प्रधान विश्व है,
बदलें चलो भाग्य की रेख ...
*
विधि जो जी सो चाहे लिख दे, करें न हम स्वीकार,
अपना भाग्य बनायेंगे हम, पथ के दावेदार।
मस्तक अपना, हाथ हमारे, घिसें हमीं चन्दन,
विधि-हरि-हर उतरेंगे भू पर, करें भक्त-वंदन।
गल्प नहीं है सत्य यही
तू देख सके तो देख ...
*
पानी की प्राचीर नहीं है मनुज स्वेद की धार,
तोड़ो कारा तोड़ो मंजिल आप करे मनुहार।
चन्दन कुंकुम तुलसी क्रिसमस गंग-जमुन सा मेल-
छिड़े राग दरबारी चुप रह जनगण देखे खेल।
भ्रान्ति-क्रांति का सुफल शांति हो,
मनुज भाल की रेख… 
*
है मानस का हंस, नहीं मृत्युंजय मानव-देह,
सबहिं नचावत राम गुसाईं, तनिक नहीं संदेह।    
प्रेमाश्रम हो जीवन, घर हो भू-सारा आकाश,
सतत कर्म कर काट सकेंगे मोह-जाल का पाश।
कर्म-कुंडली में कर अंकित
मानव भावी लेख ...
__________________   
पथ के दावेदार, उपन्यास, शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय 
पानी की प्राचीर, उपन्यास, रामदरस मिश्र 
तोड़ो कारा तोड़ो, उपन्यास, नरेन्द्र कोहली 
राग दरबारी, उपन्यास, श्रीलाल शुक्ल 
मानस का हंस, उपन्यास, अमृतलाल नागर 
मृत्युंजय, उपन्यास, शिवाजी सावंत
सबहिं नचावत राम गुसाईं, उपन्यास, भगवतीचरण वर्मा 
प्रेमाश्रम, उपन्यास, मुंशी प्रेमचंद 
सारा आकाश, उपन्यास, राजेन्द्र यादव 

message

विवेकानंद सन्देश


बाल कविता: जल्दी आना ... संजीव 'सलिल'

बाल कविता:

जल्दी आना ...











संजीव 'सलिल'
*
मैं घर में सब बाहर जाते,
लेकिन जल्दी आना…
*
भैया! शाला में पढ़-लिखना
करना नहीं बहाना.
सीखो नई कहानी जब भी
आकर मुझे सुनाना.
*
दीदी! दे दे पेन-पेन्सिल,
कॉपी वचन निभाना.
सिखला नच्चू , सीखूँगी मैं-
तुझ जैसा है ठाना.
*
पापा! अपनी बाँहों में ले,
झूला तनिक झुलाना.
चुम्मी लूँगी खुश हो, हँसकर-
कंधे बिठा घुमाना.

माँ! तेरी गोदी आये बिन,
मुझे न पीना-खाना.
कैयां में ले गा दे लोरी-
निन्नी आज कराना.
*
दादी-दादा हम-तुम साथी,
खेल करेंगे नाना.
नटखट हूँ मैं, देख शरारत-
मंद-मंद मुस्काना.
***



 

मंगलवार, 19 मार्च 2013

geet faguni purwaee sanjiv verma 'salil'

गीत:
फागुनी पुरवाई
संजीव 'सलिल'
*
फागुनी पुरवाई में महुआ मदिर जब-जब महकता
हवाओं में नाम तब-तब सुनाई देता गमककर.....

टेरती है, हेरती है पुनि लुका-छिपि खेलती है.
सँकुचती है एक पल फिर निज पगों को ठेलती है.
नयन मूंदो तो दिखे वह, नयन खोलो तो छिपे वह
परस फागुन का अनूठा प्रीत-पापड़ बेलती है.

भाविता-संभाविता की भुलैयां हरदम अबूझी
करे झिलमिल, हँसे खिलखिल, ठगे मन रसना दिखाकर.....

थिर, क्षितिज पर टिकी नज़रें हो सुवासित घूमती हैं.
कोकिला के कंठ-स्वर सी ध्वनि निरंतर चूमती हैं.
भुलावा हो या छलावा, लपक लेतीं हर बुलावा-
पेंग पुरवैया के संग, कर थाम पछुआ लूमती हैं.

उहा-पोही धूप-छाँही निराशा-आशा अँजुरी में
लिए तर्पण कर रहा कोई समर्पण की डगर पर.....

फिसलकर फिर-फिर सम्हलता, सम्हलकर फिर-फिर फिसलता.
अचल उन्मन में कहाँ से अवतरित आतुर विकलता.
अजाना खुद से हुआ खुद, क्या खुदी की राह है यह?
आस है या प्यास करती रास, तज संयम चपलता.

उलझ अपने आपसे फिर सुलझने का पन्थ खोजे
गगनचारी मन उतरता वर त्वरा अधरा धरा पर.....

क्षितिज के उस पार झाँके, अदेखे का चित्र आँके.
मिट अमिट हो, अमिट मिटकर, दिखाये आकार बाँके.
चन्द्रिका की चमक तम हर दमक स्वर्णिम करे सिकता-
सलिल-लहरों से गले मिल, षोडशी सी सलज झाँके.

विमल-निर्मल प्राण-परिमल देह नश्वर में विलय हो
पा रही पहचान खोने के लिए मस्तक नवाकर.....
*
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in

सोमवार, 18 मार्च 2013

fact of the day

Photo: GOOD NIGHT ALL FRIEND,S KAL SUBAH MILAGA
भारत माँ के लाल बहादुर ने जीता लाहौर.
अमर शहीदों का अब तक है यह नन्हा सिरमौर।।

Photo: ये वही शास्त्री जी है जिन्होंने अपने प्रधानमंत्री रहते समय लाहौर पे ऐसा कब्ज़ा जमाया था की पुरे विश्व ने जोर लगा लिया लेकिन लाहौर देने से इनकार कर दिया था | आख़िरकार उनकी एक बड़ी साजिस के तहत हत्या कर दी गयी | जिसका आज तक पता नहीं लगाया जा सका है |

1. जब इंदिरा शाश्त्रीजी के घर (प्रधान मंत्री आवास ) पर पहुची तो कहा कि यह तो चपरासी का घर लग रहा है, इतनी सादगी थी हमारे शास्त्रीजी में...

2.जब 1965 मे पाकिस्तान से युद्ध हुआ था तो शासत्री जी ने भारतीय सेना का मनोबल इतना बड़ा दिया था की भारतीय सेना पाकिस्तानी सेना को गाजर मूली की तरह काटती चली गयी थी और पाकिस्तान का बहुत बड़ा हिस्सा जीत लिया था ।

3.जब भारत पाकिस्तान का युद्ध चल रहा तो अमेरिका ने भारत पर दबाव बनाने के लिए कहाथा की भारत युद्ध खत्मकर दे नहीं तो अमेरिकाभारत को खाने के लिए गेहू देना बंद कर देगातो इसके जवाब मे शास्त्री जी ने कहाकीहम स्वाभिमान से भूखे रहना पसंद करेंगे किसी के सामने भीख मांगने की जगह । और शास्त्री जी देशवासियों से निवेदन किया की जब तक अनाज की व्यवस्था नहीं हो जाती तब तक सब लोग सोमवार का व्रत रखना चालू कर दे और खाना कम खाया करे ।

4.जब शास्त्री जी तस्केंत समझोते के लिए जा रहे थे तो उनकी पत्नी के कहा की अब तो इस पुरानी फटी धोती कीजगह नई धोती खरीद लीजिये तो शास्त्री जी ने कहा इस देश मे अभी भी ऐसे बहुत से किसान है जो फटी हुई धोती पहनते है इसलिए मै अच्छे कपडे कैसे पहन सकता हु क्योकि मै उन गरीबो का ही नेता हूँ अमीरों का नहीं और फिरशास्त्री जी उनकी फटी पुरानी धोती को अपने हाथ से सिलकर तस्केंत समझोते के लिए गए ।

5. जब पाकिस्तान से युद्ध चल रहा था तो शास्त्री जी ने देशवासियों से कहा की युद्ध मे बहुत रूपये खर्च हो सकते है इसलिएसभी लोग अपने फालतू केखर्च कम कर देऔर जितना हो सके सेना को धन राशि देकर सहयोगकरें । और खर्च कम करने वाली बात शास्त्री जी ने उनके खुद के दैनिक जीवन मे भी उतारी । उन्होने उनके घर के सारे काम करने वाले नौकरो को हटा दिया था और वो खुद ही उनके कपड़े धोते थे, और खुद ही उनके घर की साफ सफाई और झाड़ू पोंछा करते थे ।

6. शास्त्री जी दिखन?े मे जरूर छोटे थे पर वो सच मे बहुत बहादुर और स्वाभिमानी थे ।

7. जब शास्त्री जी की मृत्यु हुई तो कुछ नीचलोगों ने उन पर इल्ज़ाम लगाया की शास्त्री जी भ्रस्टाचारी थे पर जांच होने के बाद पता चला की शास्त्री जी केबैंक के खाते मे मात्र365/- रूपये थे । इससे पता चलता है की शास्त्री जी कितने ईमानदार थे ।

8. शास्त्री जी अभी तक के एक मात्र ऐसे प्रधान मंत्री रहे हैं जिनहोने देश के बजट मे से 25 प्रतिशत सेना के ऊपर खर्च करनेका फैसला लिया था । शास्त्री जी हमेशा कहते थे की देश का जवान और देश का किसान देश के सबसे महत्वपूर्ण इंसान हैं इसलिए इन्हे कोई भी तकलीफ नहीं होना चाहिए और फिर शास्त्री जी ने 'जय जवान जय किसान' का नारा दिया ।

9.जब शास्त्रीजि तस्केंत गए थे तो उन्हे जहर देकर मार दिया गया था और देश मे झूठी खबर फैला दी गयी थी की शास्त्री जी की मृत्यु दिल का दौरा पड़ने से हुई । और सरकार ने इस बात पर आज तक पर्दा डाल रखा है ।

10 शास्त्री जी जातिवाद के खिलाफ थे इसलिए उन्होने उनके नाम के आगे श्रीवास्तव लिखना बंद कर दिया था ।

हम धन्य हैं की हमारी भूमि पर ऐसे स्वाभिमानी और देश भक्त इंसान ने जन्म लिया । यह बहुत गौरव की बात है की हमे शास्त्री जी जैसे प्रधान मंत्री मिले ।
जय जवान जय किसान !
शास्त्री जी ज़िंदाबाद !
इंकलाब ज़िंदाबाद !.

apna apna zameer

Photo: 1-> मुझे 2 लाख रुपये नहीं अपने शहीद पति का कटा हुआ सर चाहिए : हेमराज की पत्नी
2-> मुझे डिएसपी पद से नीचे कुछ भी मंजूर नहीं : UP DSP की पत्नी
अब बतायेँ देशभक्त कौन ? मुवावब्जे का असली हकदार कौन ?

Photo: 1-> मुझे 2 लाख रुपये नहीं अपने शहीद पति का कटा हुआ सर चाहिए : हेमराज की पत्नी
2-> मुझे डिएसपी पद से नीचे कुछ भी मंजूर नहीं : UP DSP की पत्नी
अब बतायेँ देशभक्त कौन ? मुवावब्जे का असली हकदार कौन ?

joke of the day

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thought of the day dr. a.p.j.abdulkalam

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स्त्री - पुरुष के संपत्ति अधिकार -तसलीमा नसरीन

बांगला देश में मुस्लिम उत्तराधिकार: शरिया के अनुसार स्त्री - पुरुष के संपत्ति अधिकार 
सन्दर्भ: छोटे-छोटे दुःख, तसलीमा नसरीन, २४-२८. 

= मृत औरत को कोई संतान या संतान की संतान न हो तो औरत की जायदाद का १/२  हिस्सा उसके पति को मिलता है. मृत औरत की कोई संतान हो (पति की जायज़ सन्तान न हो तो भी) पति को १/४  हिस्सा मिलेगा. मृत पति की सन्तान या संतान की संतान हो तो पति की संपत्ति में बीबी को १/४ हिस्सा तथा पति की संतान होने पर १/८ हिस्सा मिलता है. 

= किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर उसकी संपत्ति का  १/३ हिस्सा माँ को तथा २/३ हिस्सा पिता को मिलता है. २ या २ से अधिक भाई-बहिन हों तो  माँ को १/६ भाग तथा  पिता को ५/६ भाग मिलता है. भाई-बहिनों को कुछ नहीं मिलता क्योंकि उनके माँ-बाप मौजूद होते हैं. 

= उत्तराधिकार-लाभ के मामले में  बेटी का भाग १/२, दो से अधिक बेटियां हों तो सबको मिलकर २/३ भाग  मिलता है. बेटा भी हो तो हर बेटे को बेटी से दोगुना भाग मिलता है. 

= काका और फूफी को २/३ तथा मामा और खाला को १/३ भाग मिलता है. 
(सार: सुन्नी उत्तराधिकार कानून में माता-पिता, बेटे-बेटी के हक समान नहीं हैं.) 
बांगला देश में हिन्दू उत्तराधिकार : (मिताक्षरा तथा दायभाग प्रणाली )

= दायभाग प्रणाली के अनुसार व्यक्ति स्वार्जित संपत्ति मनमर्जी से हस्तांतरित कर सकता है. मृत व्यक्ति के उत्तराधिकारियों के ३ वर्ग- सपिंड जो पिंडदान में भाग लें, साकुल्य जो श्राद्ध के समय पिंड पर लेप करें तथा समानोदक जो श्राद्ध में पिंड पर जल चढ़ाएं हैं. मातृ-पितृकुल की ३ पीढ़ी (नाना, नाना के पिता, नाना के पिता के पिता - पिता, पितामह, प्रपितामह) सपिंड मान्य हैं चूंकि मृत व्यक्ति अपने जीवन-काल में उन्हें पिंडदान करता. मृत व्यक्ति के श्राद्ध में जो व्यक्ति पिंड दान करते हैं वे सब (पुत्र, पोत, पड़पोता, नाती, पोते/पोती के पुत्र ) तथा मृतक के पूर्वजों को पिंड दान करते रहे व्यक्ति मृतक के सपिंड होते हैं.

= सपिंडों के अग्राधिकार: आधार क्रम १. पुत्र, २. पौत्र, ३. प्रपौत्र, ४. विधवा पत्नी (पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र जिन्दा न हों तो) ५. बेटी (पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र, विधवा पत्नी जिन्दा न हों तो) बदचलन/पुत्रहीना बेटी उत्तराधिकारी नहीं हो सकती. ६. नाती (बेटी की मौत के बाद सपिंड के नाते), ७. पिता, ८. माँ (बदचलन न हो तो), ९. भाई, १०. भाई का बेटा, ११. भाई के बेटे का बेटा, १२. बहिन का बेटा, १३. पितामह, १४.पितामही, १५. पिता का भाई, १६. चचेरा/तयेरा भाई, १७.चचेरे/तयेरे भाई का बेटा, १८. फुफेरा भाई, १९. पिता के पिता के पिता, २०. पिता के पिता की माँ, २१. पिता का फूफा, २२. उसका बेटा, २३. उसका पौत्र, २४. पिता के पिता की बहिन का पुत्र, २५. पुत्र की कन्या का पुत्र, २६. पुत्र के पुत्र की कन्या का पुत्र, २७. भाई के पुत्र की कन्या का पुत्र, २८. फूफा की कन्या का पुत्र, २९. फूफा के पुत्र की कन्या का पुत्र, ३०. पिता के फूफा की कन्या का पुत्र, ३०. पिता के फूफा की कन्या का पुत्र, ३१. पिता के फूफा के पुत्र की बेटी का पुत्र, ३२. माँ का पिता, ३३. माँ का भाई, ३४.उसका पुत्र, ३५. उसका पौत्र, ३६. माँ की बहिन का पुत्र, ३७. माँ के पिता का पिता, ३८. उसका पुत्र, ३९. उसका पौत्र, ४०. उसका प्रपौत्र, ४१. उसकी बेटी का बेटा, ४२. माता के पिता के पिता का पिता, ४३. उसका पुत्र, ४४. उसका पौत्र, ४५. उसका प्रपौत्र , ४६. उसकी बेटी का पुत्र, ४७. माँ के पिता के पुत्र की बेटी का पुत्र, ४८. उसके पुत्र के पुत्र की बेटी का पुत्र, ४९. माँ के पिता के पिता के बेटे की बेटी का पुत्र, ५०उसके पुत्र के पुत्र की बेटी का पुत्र उसके पुत्र के पुत्र की बेटी का पुत्र,५१.माँ के पिता के पिता के पिता की बेटी का पुत्र, ५२. उसके पुत्र के पुत्र की बेटी का पुत्र.

सार: वरीयता पिता, पुत्र, पुत्र, प्रपौत्र वर्ग को. बीबी, बेटी, माँ को मर्द उत्तराधिकारी न होने पर भी सशर्त (बदचलन/पुत्रहीन न हो तो ही). नाती तथा भांजा सूची में बाद में ही सही किन्तु हैं पर बहिन, उसकी बेटी, बहिन की नातिन सूची में नहीं हैं। पिता के भाई-भतीजे तथा उनके पोते सूची में सम्मिलित किन्तु पिता की बहिन तथा उसकी बेटी सूची में नहीं हैं. पिता के फूफा-काका, उनके बेटे-पोते, पिता के पिता की बहिन का बेटा, उसकी बेटी का पुत्र भी सूची में है किन्तु काका-फूफा की बेटी, पितामह की बहिन की बेटी या बेटे की बेटी की बेटी नहीं है. माँ के भाई-पिता, मामा का बेटा, पोता, पड़पोता हिस्सेदार हैं किन्तु माँ की बहिन-माँ, मामा की बेटी-नातिनों का कोई हक नहीं है. माँ की बहिन हिस्सेदार नहीं है पर उसी बहिन का पुत्र हिस्सेदार है. माँ के प्रपिता के पुत्र की बेटी हिस्सेदार नहीं है पर उसी का पुत्र हिस्सेदार है. सार यह की जायदाद भिन्न गोत्र में भले ही चली जाए पर स्त्री को न मिले. स्त्री का हिस्सा इस तरह है कि उससे बाद की पुरुष पीढ़ी को पहले पात्रता है, अपना क्रम आने तक स्त्री जीवित ही नहीं रह पाती और वंचित हो जाती है.   

साकुल्य और समानोदक भी पिता के पिता, तस्य पिता, बेटे के बेटे, उसके बेटे, उसके पोते-प्द्पोते ही हकदार हैन. इस तालिका में स्त्री का नामोनिशान  नहीं है. 

रविवार, 17 मार्च 2013

गीति रचना: पाती लिखी संजीव 'सलिल'

गीति रचना:
पाती लिखी
संजीव 'सलिल'
*
पाती लिखी तुम्हारे नाम...
*
गीत, गजल, कविताएँ, छंद,
अनगिन रचे मिला आनंद.
क्षणभंगुर अनुभूति रही,
स्थिर नहीं प्रतीति रही.
वाह, वाह की चाह छले
डाह-आह भी व्यर्थ पले.
कैसे मिलता कभी सुनाम?
पाती लिखी तुम्हारे नाम...
*
नाम हुए बदनाम सभी,
और हुए गुमनाम कभी.
बिगड़े, बनते काम रहे,
गिरते-बढ़ते दाम रहे.
धूप-छाँव के पाँव थके,
लेकिन तनिक न गाँव रुके.
ठाँव दाँव के मेटो राम!
पाती लिखी तुम्हारे नाम...
*
सत्य-शील का अंत समीप,
घायल संयम की हर सीप.
मोती-शंख न शेष रहे,
सिकता अश्रु अशेष बहे.
मिटे किनारे सूखी धार,
पायें न नयना नीर उधार.
नत मस्तक कर हुए अनाम
पाती लिखी तुम्हारे नाम...
*
लिखता कम, समझो ज्यादा,
राजा बना मूढ़ प्यादा.
टेढ़ा-टेढ़ा चलता है
दाल वक्ष पर दलता है.
दु:शासन नित चीर हरे
सेवक सत्ता-खेत चरे.
मन सस्ता मँहगा है चाम
पाती लिखी तुम्हारे नाम...
*

एक ग़ज़ल : कोई नदी जो उनके......... आनन्द पाठक






एक ग़ज़ल : 
कोई नदी जो उनके.........
आनन्द पाठक
*
कोई नदी जो उनके घर से गुज़र गई है
चढ़ती हुई जवानी पल में उतर गई है
 
बँगले की क्यारियों में पानी तमाम पानी
प्यासों की बस्तियों में सूखी नहर गई है
 
परियोजना तो वैसे हिमखण्ड की तरह थी
पिघली तो भाप बन कर जाने किधर गई है
 
हर बूँद बूँद तरसी मेरी तिश्नगी लबों की
आई लहर तो उनके आँगन ठहर गई है
 
"छमिया’ से पूछना था ,थाने बुला लिए थे
’साहब" से पूछना है ,सरकार घर गई है
 
वो आम आदमी है हर रोज़ लुट रहा है
क्या पास में है उसके सरकार डर गई है !
 
ख़ामोश हो खड़े यूँ क्या सोचते हो "आनन’?
क्योंकर नहीं गये तुम दुनिया जिधर गई है ?
 anand pathak akpathak317@yahoo.co.in

शुक्रवार, 15 मार्च 2013

muktika, andheron ko raushan... sanjiv 'salil'

मुक्तिका :
अंधेरों को रौशन ...
संजीव 'सलिल'
*
अंधेरों को रौशन किया, पग बढ़ाया
उदासी छिपाकर फलक मुस्कुराया

बेचैनी दिल की न दिल से बताई
आँसू छिपा लब विहँस गुनगुनाया

निराशा के तूफां में आशा का दीपक
सही पीर, बन पीर मन ने जलाया

पतझड़ ने दुःख-दर्द सहकर तपिश की
बखरी में बदरा को पाहुन बनाया

घटायें घुमड़ मन के आँगन में नाचीं
न्योता बदन ने सदन खिलखिलाया

धनुष इंद्र का सप्त रंगी उठाकर
सावन ने फागुन को दर्पण दिखाया

सीरत ने सूरत के घर में किया घर
दुःख ने लपक सुख को अपना बनाया

'सलिल' स्नेह संसार सागर समूचा
सतत सर्जना स्वर सुना-सुन सिहाया

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hindi kavita manoshi chatterji

कविता 
मानोशी चटर्जी
* 
मैं जब शाख़ पर घर बसाने की बात करती हूँ  
पसंद नहीं आती 
उसे मेरी वह बात, 
जब आकाश में फैले   
धूप को बाँधने के स्वप्न देखती हूँ,  
तो बादलों का भय दिखा जाता है वह,  
उड़ने की ख़्वाहिश से पहले ही   
वह चुन-चुन कर मेरे पंख गिनता है,  
धरती पर भी दौड़ने को मापता है पग-पग,  
और फिर जब मैं भागती हूँ,  
तो पीछे से आवाज़ देता है,  
मगर मैं नहीं सुनती  
और अकेले जूझती हूँ...  
पहनती हूँ दोष,  
ओढ़ती हूँ गालियाँ,  
और फिर भी सर ऊँचा कर  
खु़द को पहचानने की कोशिश करती हूँ  
क्या वही हूँ मैं?   
चट्टान, पत्थर, दीवार ...  
अब कुछ असर नहीं करता...  
मगर मैंने तय किये हैं रास्ते  
पाई है मंज़िल  
जहाँ मैं उड़ सकती हूँ,   
शाख़ पर घर बसाया है मैंने  
और धूप मेरी मुट्ठी में है...  
Manoshi Chatterjee <cmanoshi@gmail.com>