कुल पेज दृश्य

बुधवार, 18 जुलाई 2012

poetry: friendship:

Golden Rules for Life --Liez Jaq


View profile  Liez Jaq




Golden Rules for Life



Be what you want to be not what others want to see. 
 
– Never try to impress others. If you start trying impressing others, you will act (you’re cheating not only yourself but also the persons whom you’re trying to impress). 
 
Life is to live, not to act.

To be happy in life, you must learn the difference between what you want vs need.

If a drop of water falls in lake there is no identity. But if it falls on a leaf of lotus it shines like a pearl. So choose the best place where you would shine.

When you are successful, your well wishers know who you are. 
 
When you are unsuccessful, you know who your well wishers are.

Life is not measured by the breaths we take but by the moments that take our breath away.

It is great confidence in a friend to tell him your faults; greater to tell his/her

Most courageous person is the one who accepts his/her mistakes & weakness.

Effort is important, but knowing where to make an effort in your life makes all the difference.

Never take some one for granted, Hold every person Close to your Heart because you might wake up one day and realize that you have lost a diamond while you were too busy collecting stones." Remember this always in life.

Some people think that to be strong is to never feel pain. In Reality the strong people are the ones who feel it, understand it, and accept it.
My pain may be the reason for somebody’s laugh. But my laugh should never be the reason for somebody’s pain.

Never expect things to happen. Struggle and make them happen. Never expect yourself to be given a good value. Create a value of your own.
Don’t handicap your children by making their lives easy. 
 
*************

मंगलवार, 17 जुलाई 2012

मुक्तिका: अम्मी --संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

अम्मी

संजीव 'सलिल'
*
माहताब की जुन्हाई में, झलक तुम्हारी पाई अम्मी.
दरवाजे, कमरे आँगन में, हरदम पडीं दिखाई अम्मी.

बसा सासरे केवल तन है. मन तो तेरे साथ रह गया.
इत्मीनान हमेशा रखना- बिटिया नहीं पराई अम्मी.

भावज जी भर गले लगाती, पर तेरी कुछ बात और थी.
तुझसे घर अपना लगता था, अब बाकी पहुनाई अम्मी.

कौन बताये कहाँ गयी तू ? अब्बा की सूनी आँखों में,
जब भी झाँका पडी दिखाई तेरी ही परछाँई अम्मी.

अब्बा में तुझको देखा है, तू ही बेटी-बेटों में है.
सच कहती हूँ, तू ही दिखती भाई और भौजाई अम्मी.

तू दीवाली, तू ही ईदी, तू रमजान दिवाली होली.
मेरी तो हर श्वास-आस में तू ही मिली समाई अम्मी.

तू कुरआन, तू ही अजान है, तू आँसू, मुस्कान, मौन है.
जब भी मैंने नजर उठाई, लगा अभी मुस्काई अम्मी.

*********

कविता "आखिर क्यों? " --कुसुम वीर

कविता


"आखिर क्यों? "
 
कुसुम वीर 
*
कुछ वहशी दरिन्दे, निरीह बाला को
सरेबाज़ार पीट रहे थे, नोच रहे थे
और आसपास खड़े लोग
अबला की अस्मत को तार -तार होता देख
तमाशबीन बने मौन खड़े थे
आखिर क्यों ?

दर्द से, पीड़ा से छटपटाती
गुंडों से सरेआम पिटती
असहाय बाला की पुकार,चीत्कार भी
नहीं झकझोर पाई थी
निर्जीव खड़े उन लोगों की चेतना को
आखिर क्यों ?

कहीं भी, कोई भी
घटित होता पाप, अत्याचार
नहीं कचोटता आज हमारी आत्मा को
नहीं खौलता खून
नहीं फड़कती हमारी भुजाएं
 दानवों के दमन को
आखिर क्यों ?

गिर चुके हैं हम,
अपने संस्कारों से, सिद्धांतों से
उसूलों से, मर्यादाओं से
या मार डाला है हमें,हमारी कायरता ने
जिसकी बर्फ तले दुबके,
बेजान, बेअसर,निष्चेत पड़े हैं हम
आखिर क्यों ?

कहने को व्याप्त है, हरतरफ सुरसा सम
शासन - प्रशासन और न्याय
फिर भी,
इन बेगैरत, बेशर्म,बेख़ौफ़ चंद गुंडों से
हम इतने खौफ ज़दा हैं
आखिर क्यों ?

आखिर किस लाचारी और भय के चाबुक से
आदमी इस कदर असहाय हो गया है
कि, सरेआम लूटते -खसोटते, काटते -मारते
दरिंदों की दरिंदगी को देखकर भी
नपुंसकों की भांति, आज वह निष्चेत खड़ा है
आखिर क्यों ?

आज किसी द्रुपदा का चीरहरण
नहीं ललकारता हमारे पौरुष को
क्रूरता और वीभत्सता का तांडव
नहीं झकझोरता हमारे अंतर्मन को
आखिर क्यों ?

गौरवमय भारत के लौहपुरुष
कल क्या थे,आज क्या हो गए
कभी सोचा है तुमने ?
हमारा ये बेबस मौन
किस गर्त में डुबोयेगा हमें, हमारे समाज को
क्या इसपर चिंतन करोगे तुम ?
************
kusumvir@gmail.com

गुवाहाटी की अनाम लड़की के नाम : ब्रह्मपुत्र रो रही है !!! विजय कुमार सपत्ति

गुवाहाटी की अनाम लड़की के नाम : 

ब्रह्मपुत्र रो रही है  !!!

 

विजय कुमार सपत्ति
*

भाग एक :

हे बाला [श्री भूपेन हजारिका अक्सर उत्तर-पश्चिम  की लडकियों को बाला कहते थे]; तो हे बाला! हमें माफ़ करना, क्योंकि इस बार हम तुम्हारे लिये किसी कृष्ण को इस बार  धरती पर अवतरित नहीं कर सके.असच यह है कि कृष्ण भी हम से डर गए है. उनका कहना है कि वो दैत्य से लड़ सकते है, देवताओं से लड़ सकते है;जानवरों से लड़ सकते है; लेकिन इस आदमी का क्या करें......!!! वे जान गये हैं कि हम आदमी इस जगत के सबसे बुरी कौम है. न हमारा नाश होंगा और न ही हम आदमियों का नाश होने देंगे. कृष्ण चाहते थे कि वहाँ कोई आदमी कृष्ण बन जाए. लेकिन वे भूल गये, धोखे में आ गये. वहाँ हर कोई सिर्फ और सिर्फ आदमी ही था सिर्फ दु:शासन ही बनना चाहता था. कोई भी कृष्ण नहीं बनना चाहता था. सच यह है कि  अब कृष्ण कालबाह्य हो गये है. वहाँ उन लडको में सिर्फ आदमी ही था. वहाँ जो भीड़ खड़ी होकर तमाशा देख रही थी, वो भी आदमियों से ही भरी हुई थी. हे बाला! हमें माफ़ करना. क्योंकि  हम आदमी बस गोश्त को ही देखते है, हमें उस गोश्त में हमारी बेटी, बहन या हमारी कोई अपनी ही सगी औरत नज़र नहीं आती है.

भाग दो :

दोष किसका है? मीडिया का... जो आये दिन अपने चैनेल्स पर दुनिया की गंदगी परोसकर युवा-मन को उकसाती  है  या इस सूचना क्रांति का जिसका दुरूपयोग होता है और युवा मन बहकते रहता हैं या हमारे गुम होते संस्कारों का जो हमें स्त्रियों का आदर करना सिखाते थे  या हम माता-पिता का जो कि अपने बच्चो को ठीक शिक्षा नहीं  दे पा रहे हैं  या युवाओं का जो अब स्त्रियों को सिर्फ एक  भोग की वस्तु ही समझ रहे हैं.  टी.वी. में आये दिन वो सारे विज्ञापन क्या युवाओं को और उनके मन को नहीं उकसाते होंगे? फिल्मों में औरतों का चरित्र जिन तरीकों से, जिन कपड़ो में दर्शाया जा रहा है क्या वह इस युवा पीढ़ी को  इस अपराध के लिये नहीं उकसाते होंगे? कहाँ गलत हो रहा है? किस बात की कुंठा है? तन का महत्व कैसे हमारे युवाओं के मन में गलत जगह बना रहा है?  माता-पिता का दोष इन युवाओ से कम नहीं? क्यों उन्होंने इतनी छूट दे रखी है. कुछ तो गलत हो रहा है, हमारी सम्पूर्ण सोच में. अब  हम सभी को एक मज़बूत सोच और पुनर्विचार की जरुरत है.

भाग तीन :

तो बाला, हमें इससे क्या लेना-देना कि अब सारा जीवन तुम्हारे मन में हम आदमियों को लेकर किस तरह की सोच उभरे, कि तुम सोचो कि आदमी से बेहतर तो जानवर ही होते होंगे. हमें इससे क्या लेना-देना कि तुम्हारे घरवालों  पर इस बात का क्या असर होगा? हमें इससे क्या लेना-देना कि तुम्हारी माँ कितने आंसू रोयेंगी? हमें इससे भी क्या लेना- देना कि तुम्हारे पिता या भाई  को हम आदमी और हम आदमियों की कुछ  औरतें पीठ पीछे कहा करेंगी कि ये उस लड़की के पिता या भाई हैं. हमें इस बात से क्या लेना-देना  कि अगर तुम्हारी कोई छोटी  बहन हो तो हम आदमी उसे भी सहज उपलब्ध समझेंगे. इससे भी क्या लेना-देना कि अब तुम्हारी ज़िन्दगी नरक बन गयी है और जीवन भर अपने मरने तक तुम इस घटना को नहीं भुला पाओगी और कि अब इस ज़िन्दगी में कोई भी पुरुष अगर तुम्हे प्रेम से भी छुए तो तुम सिहर-सिहर जाओगी और अंत यह भी कि तुम यह सब कुछ सहन नहीं कर पाओ और आत्महत्या ही कर लो. हमें क्या करना है बेटी? हम आदमी हैं. ये हमारा ही समाज है.

भाग चार :
 
चंद आदमी कहेंगे कि उस लड़की को इतनी रात को उस पब में क्या करना था? क्या यह उस लड़की की गलती नहीं है?, कि आजकल लडकियां  भी तो कम नहीं है, कि उस लड़की ने उत्तेजक पोषाक पहन रखी थी. लडकियाँ अपने वस्त्रों और बातों से लडकों/आदमियों [?] को उकसाती हैं . चंद आदमी यह भी कहेंगे कि उस लड़की के माँ-बाप को समझ नहीं है क्या जो इतनी रात को उसे पब भेज रहे हैं, वह भी ११ वीं पढनेवाली लड़की को. चंद आदमी यह  भी कहेंगे कि उस लड़की का चरित्र ठीक नहीं होगा या कि देश सिर्फ ऐसी लडकियों और औरतो की वजह से ही ख़राब हो रहा है. मतलब यह कि ये चंद आदमी पूरी तरह से सारा दोष उस लड़की पर ही डाल देंगे. ये चंद आदमी यह भी नहीं सोचेंगे कि उत्तर-पश्चिम हमारे देश का सबसे अधिक प्रगतिशील राज्य है और वहाँ ज्यादा लिंग पूर्वाग्रह   की घटनाएं नहीं होती हैं. [सिवाय इसके जब हमारी तथाकथित सेना के चंद जवान वहाँ की औरतों का जब-तब  दोहन करते रहते हैं] और अब ये चंद आदमी इस देश में तय करेंगे कि औरतें ख़राब होती  हैं.

भाग पाँच  :

हे बाला! हम सब का क्या? हम थोड़ा लिखना-पढना जानते हैं  इसीलिए हम थोड़ा लिख/ पढ़/ बोलकर अपना गुस्सा जाहिर करते हैं. उस तरह के लिखने-पढने-बोलनेवाले अब नहीं रह गये है जिनके कहे से क्रान्ति आ जाती थी... और न ही उनकी बातों को सुनकर जोश में कुछ करनेवाले बन्दे रह गये हैं. तुम समझ लो कि हम सबका खून ठंडा हो चला है. और... और... हम एक तरह से नपुंसक ही हैं. हाँ, हमें दुःख है कि तुम्हारे साथ यह हुआ. ये तुम्हारे साथ तो क्या, किसी के भी साथ नहीं होना था. हमें दुःख है कि आदमी नाम से तुम्हारा परिचय इस तरह से हुआ है. लेकिन हम यह भी कहना चाहते हैं कि सारे आदमी ख़राब भी नहीं होते, जिस पत्रकार  ने हम तक यह खबर पहुंचाई वह भी एक भला आदमी ही है. बेटी! तुम इतनी सी बात याद रखो  कि ये बातें भी एक आदमी ही लिख  रहा है. ईश्वर तुम्हे मन की शान्ति दे.  हाँ, एक बात और मुझे नहीं पता कि यह समाज कब बदलेंगा लेकिन मैं एक बात तुमसे और सारी औरतों से कहना चाहता हूँ कि " अबला तेरी यही कहानी, आँचल में है दूध और  आँखों में पानी" वाली स्त्रियों का ज़माना नहीं रहा. समाज ऐसे ही घृणित जानवरों से भरा पड़ा है. इनसे तुन्हें और सभी स्त्रियों को खुद ही लड़ना होंगा... खुद को तैयार करो और इतनी सक्षम बनो कि हर मुसीबत का सामना कर सको. ईश्वर से प्रार्थना है कि तुम्हें जीवन में कोई ऐसा आदमी जरूर दे जो तुम्हारे मन से आदमी के नाम पर बैठ गए डर को ख़त्म कर सके, उसे जड़ से निकाल दे.  आमीन !!

भाग छह :

ब्रह्मपुत्र की लहरों को सबसे ज्यादा गुस्सैल और उफनती कहा गया है. आज ब्रम्हपुत्र जरूर रो रही होगी कि वह एक नदी है और उसीकी धरती पर उसीकी एक बच्ची के साथ  ऐसा घृणित कार्य हुआ. हे ब्रम्हपुत्र! मैं सारे आदमियों की तरफ से तुमसे माफ़ी माँगता हूँ.  इतना ही मेरे बस में है और यह भी कि मैं एक कोशिश करूँ कि  अपने आसपास के समाज को दोबारा ऐसा करने से रोकूँ और अपने दूसरे सारे बच्चो को बताऊँ कि औरत एक माँ होती है और उन्हें जन्म देनेवाली भी एक औरत ही है यह भी कि मैं उन सभी को  औरत की इज्जत  करना सिखाऊँ (और यह कि मैं ऐसी दुर्घटना का शिकार हुई किसी लडकी को अपनी पुत्रवधू बनाने से मन ना करूँ). हे ब्रम्हपुत्र! मुझे इतनी शक्ति जरूर देना कि मैं यह कर सकूँ.

भाग सात :  एक कविता

:
दुनिया की उन  तमाम औरतो के नाम, उन आदमियों  कि तरफ से जो ये सोचते हैं कि  औरतों का  बदन उनके जिस्म से ज्यादा नहीं होता है:
 
जानवर

अक्सर शहर के जंगलों में;
मुझे जानवर नज़र आतें है!
आदमी की शक्ल में,
घूमते हुए;
शिकार को ढूंढते हुए;
और झपटते हुए...
फिर नोचते हुए...
और खाते हुए !

और फिर
एक और शिकार के तलाश में,
भटकते हुए..!

और क्या कहूँ,
जो जंगल के जानवर है;वे परेशान है!
हैरान है!!
आदमी की भूख को देखकर!!!

मुझसे कह रहे थे..
तुम आदमियों  से तो 
हम जानवर अच्छे !
हम कभी, किसीसे 
बलात्कार नहीं करते!!

उन जानवरों के सामने;
मैं निशब्द था,
क्योंकि;
मैं भी एक आदमी  था!!!

*****
 - vksappatti@gmail.com 

बाल गीत चूँ चूँ चिड़िया चुन दाना --संजीव 'सलिल'

बाल गीत
चूँ चूँ चिड़िया चुन दाना
संजीव 'सलिल'
*

*
चूँ-चूँ चिड़िया चुन दाना.
मुझे सुना मीठा गाना..

तुझको मित्र  बनाऊँगा
मैंने मन में है ठाना..

कौन-कौन तेरे घर में
मम्मी, पापा या नाना?

क्या तुझको भी पड़ता है
पढ़ने को शाला जाना?

दाल-भात है गरम-गरम
जितना मन-मर्जी खाना..

मुझे पूछना एक सवाल
जल्दी उत्तर बतलाना..

एक सरीखी चिड़ियों में
माँ को कैसे पहचाना?

सावधान रह इंसां से.
बातों में मत आ जाना..

जब हो तेरा जन्मदिवस
मुझे निमंत्रण भिजवाना..

अपनी गर्ल फ्रेंड से भी
मेरा परिचय करवाना..

बातें हमने बहुत करीं
चल अब तो चुग ले दाना..
****

आज का विचार today's thought: मित्र TRUE FRIEND

आज का विचार today's thought: 
मित्र TRUE FRIEND
संजीव 'सलिल'
*
मित्र मेरे!
किया जीवन धनी तुमने
हम मिले 
यह ईश्वर की चाह थी.
दोस्ती की राह 
बेहद खुशनुमा है.
मित्र के संग टहलना 
कितना मधुर है.
हाथ को छूकर ह्रदय तक 
पहुँचता है मित्र सच्चा.
 
Photobucket                                

Photobucket













रही मीलों तक हमारी मित्रता 
प्रिय मुझे बेहद.
भावनाओं से भरे सन्देश पाकर 
तृप्त, लगता ही नहीं देखूं तुम्हें मैं.
आत्मा तेरी धड़कती 
हृद-पटल पर-
भेजते हो जब 
मुझे सन्देश कोई.

Photobucket

Photobucket

ख्याल तेरा गर्मजोशी, 
मित्रता का भाव लाया.
काश, मिल सकते अभी हम 
किन्तु तुम हो दूर बेहद.
दूरियों को मिटाती हैं 
बात तेरी याद आकर.

Photobucket

Photobucket 









***

सोमवार, 16 जुलाई 2012

मौसमी कविता: झम झम बरसै पानी - एस. एन. शर्मा 'कमल'

मौसमी कविता: 
 
 
झम झम बरसै पानी
 




- एस. एन. शर्मा 'कमल'

बदरा आये वर्षा लाये चलै पवन मस्तानी
दामिनि दमकै हियरा दरकै झम झम बरसै  पानी
                                  
हाय,  झम झम बरसै पानी

धरती की छाती गदराई लखि पावस की तरुणाई

पात पात डोलै पुरवाई डार डार कोयल बौराई
बुलबुल चहकै बेला महकै नाचै मुदित मोर अभिमानी
                                    हाय , झम झम बरसै पानी

कलियन पर अलियन की गुन गुन सरगम छाये बगियन में
झूम झूम कजरी गाने की होड़ मचि रही सखियन में
उनके  अल्हड़पन  पर  चुपके आई  उतर  जवानी
                                  हाय झम झम बरसै पानी

बाग़ बगीचे हुए पल्लवित वन उपवन हरियाली छाई
ताल तलैयाँ उफनाये सब बाँस बाँस नदिया गहराई
दादुर मोर पपीहा बोलै  कोयल कूकै बनी दीवानी                                 
                               हाय, झम झम बरसै पानी

ठौर ठौर पर आल्हा जमते बजते ढोल नगाड़े
रस फुहार में नाच नाच रसिया गाते मतवारे
खनक उठी गगरी पनघट पर बोलैं बोल सयानी
                                हाय, झम झम बरसै पानी

पायल बिछिया कंगना बिंदिया कब से कहा था लाने
पर तुम टस से मस न हुए बस करते रहे बहाने
मैं मर गई निहोरे कर कर तुमने एक न मानी
                             हाय झम झम बरसै पानी

कनखी मारै लाज न आवै मटकै सांझ सबेरे
दैय्या रे दैय्या हाय रे मैय्या कागा बैठ मुंडेरे 
बार बार चितवै हरजाई बोलै बानि  अजानी
                           हाय, झम झम बरसै पानी

           बदरा आये वर्षा लाये चलै पवन मस्तानी
           दामिनि दमकै हियरा दरकै  झमझम बरसै पानी


************
- sn Sharma  ahutee@gmail.com

ग़ज़ल: जब जब.... --मैत्रयी अनुरूपा

ग़ज़ल:

जब जब....

मैत्रयी अनुरूपा
*

जब जब उनसे बातें होतीं
बेमौसम बरसातें होतीं
 
जब भी खेले खेल किसी ने
केवल अपनी मातें होतीं
 
सपने सुख के जिनमें आते
काश कभी वो रातें होती
 
कुर्सी को तो मिलती आईं
हमको भी सौगातें होती
 
अनुरूपा की कलम चाहती
कभी दाद की पांतें होती
*******************
maitreyi_anuroopa@yahoo.com 

स्मरण: साहिल सहरी --आदिल रशीद

स्मरण:

साहिल सहरी

आदिल रशीद
 



Aadil Rasheed

*
मैं लौटने के इरादे से जा रहा हूँ मगर 
सफ़र सफ़र है मेरा इंतज़ार मत करना ..  साहिल सहरी
हिंदी उर्दू साहित्य मे दिलचस्पी रखने वाला शायद ही कोई  शख्स हो जिस ने ये शेर न सुना हो ये मशहूर शेर साहिल सहरी नैनीताली का है जिन्होंने कभी दिमाग  का कहना नहीं माना, हमेशा दिल का कहना ही किया उसी दिल ने आज उनके साथ बेवफाई की और धड़कन बंद हो जाने के सबब आज सुब्ह ८.30 बजे  उनका निधन हो गया... अल्लाह उन्हें जन्नत मे ऊँचा  मुकाम अता फरमाए.
साहिल सहरी का जन्म 4  नवम्बर 1949   को नैनीताल में हुआ उनका असली नाम रहीम खान था. उनके पिता रहमत अली खान भी एक उस्ताद शायर थे और अह्कर देहलवी तखल्लुस फरमाते थे. उनकी माँ और साहिल सहरी की दादी पुरानी दिल्ली के एक इल्मी अदबी बाजौक घराने से तआल्लुक रखती थी. इसलिए उन्होंने अपने तखल्लुस में नैनीताल के होते हुए भी दिल्ली की निस्बत को प्राथमिकता दी. इस तरह ये बात दलील के साथ कही जा सकती है कि साहिल सहरी को शायरी का ज्ञान विरासत में मिला और शायरी उनके खून में शामिल थी.
साहिल सहरी के लिए यह बात कही जा सकती है की जो लोग उनके पास उठे-बैठे वो शायर हो गए तो भला साहिल सहरी साहिब की पत्नि उनके प्रभाव से कैसे बचतीं साहिल सहरी की पत्नि निशात साहिल ने भी उनके रहनुमाई में बड़ी पुख्ता शायरी की है. उनकी औलादों में 6   बेटियां, 1 बेटा है. एक बहुत पुरानी कहावत है कि  मछली के बच्चों को तैराकी सीखनी नहीं पड़ती, ये हुनर उनमें  पैदाइशी होता है. साहिल सहरी की औलादों में भी शायरी के गुण पाये गये. उनकी बेटियों ने वालिद के नक़्शे-क़दम पर चलते हुए हमेशा मेआरी शायरी की है. उनकी एक बेटी तरन्नुम निशात ने अपने मेंआरी कलाम से अदब की खूब खिदमत की और शादी के बाद अपने परिवार को समय देने के  कारण खुद को मुशायरों से दूर कर लिया लेकिन शेर अब भी कहती हैं. उनकी छोटी बेटी नाजिया सहरी इस समय  मुशायरों में बहुत कामयाब शायरा है तथा पूरे भारत में उनको पसंद किया जाता है.
मरहूम साहिल सहरी से मेरी बड़ी कुर्बत थी. वे हमेशा मेरा हौसला बढ़ाते थे और जब देहली आते तो ज़रूर मुलाक़ात करते. उनसे मेरी  पहली मुलाक़ात तब हुई थी जब मैंने और हामिद अली अख्तर ने एक कुल हिंद मुशायरा बा उनवान "एक शाम डाक्टर ताबिश मेहदी के नाम" दिल्ली में कराया था. इसमें साहिल सहरी के शागिर्द मशहूर शायर और नाज़िमे मुशायरा एजाज़ अंसारी ने उन्हें आमंत्रित किया था. वे अपने बेहद अज़ीज़ शागिर्द जदीद लहजे के मुनफ़रिद शायर व् कवि और उत्तरांचल पावर कारपोरेशन में  DGM  के पद पर कार्यरत जनाब इकबाल आज़र के साथ तशरीफ़ लाये थे. इकबाल आज़र साहेब में एक खास बात यह है की वे ब यक वक़्त उर्दू और हिंदी भाषा में शायरी करते हैं जो की एक व्यक्ति का दायें और बाएं हाथ से लिखने जैसा बेहद कठिन काम है लेकिन इकबाल आज़र  साहेब उसको उतनी ही आसानी से कर लेते है जितनी आसानी से नट रस्सी पर सीधा चलता है.
साहिल सहरी साहब ने मुझे बहुत से मुशायरों में खुद भी बुलाया और  दूसरी जगह भी प्रमोट किया, यह कह कर कि   "अच्छी शायरी  को अच्छे  लोगों तक पहुंचना चाहिए. यह हम अदीबों की ज़िम्मेदारी है. मैं स्वयं  भी और मेरी टूटी-फूटी शायरी भी उनके इस सच्चे जज्बे की हमेशा ममनून रहेगी. मरहूम बड़े साफ़ दिल, बड़ी साफ़-साफ़ बात करने वाले इंसान थे किसी तरह की मसलहत और गीबत को बिलकुल पसंद नहीं करते थे.
एक बार उनका यही मिसरा " सफ़र सफ़र है मेरा इंतज़ार मत करना" तरही के तौर पर दिया गया जिस पर मैं ने कुछ यूँ गिरह लगायी जो उनके इस बड़े शेर से बिलकुल उलट थी के
ये बात सच है मगर कह के कौन जाता है 
" सफ़र सफ़र है मेरा इंतज़ार मत करना"
                                                                                                               - आदिल रशीद,2005
 कुछ "अजब से लोगों ने"  कुछ "अजब से अंदाज़" में उनको ये शेर सुनाया और उनको "कुछ अजब" से मतलब समझाने चाहे. उन्होंने उन्हें कोई भी उत्तर दिए बिना जेब से मोबाइल निकालकर उन लोगों के सामने ही मुझे फ़ोन लगाया और आदत अनुसार हँसते हुए कहा "बरखुरदार मुबारक हो हमारा रिकॉर्ड तोड़ दिया". मैं सटपटा गया और घबराते हुए मैं ने कहा  "उस्ताद मैं समझा नहीं" तो उन्होंने हँसते हुए बगैर किसी का नाम लेते हुए कहा "कुछ लोग मुझे  तुम्हारा ये शेर सुना रहे हैं जो तुमने मेरे मिसरे पर मिसरा लगाया है, मैं ने सोचा के तुमने अच्छा काम किया है तो इनके सामने ही तुम्हें  मुबारकबाद दे दूँ". मेरे उस वक़्त भी और बाद में भी कई कई बार इल्तिजा करने पर भी उन्होंने मुझे उन "अजीब से लोगों" के नाम कभी नहीं बताये और अब अगर वो उनके नाम बताना भी चाहें तो बता नहीं सकते क्योंकि रूहें बोलती नहीं. उनको  अपनी बात कहने के लिये जिस्म  की ज़रुरत होती है और जिस्म तो आज सुपुर्दे खाक हो गया.
मैं ने जब-जब उनसे ऐसे "अजीब आदमी नुमा प्राणियों" के विषय में बात की उन्होंने यही कहा 'आदिल मियां तुम अपना काम {साहित्य सेवा} करते रहो इस साहित्य के सफ़र में तुमको अभी बहुत से अजीब अजीब प्राणी मिलेंगे'.

साहिल सहरी भी पेशे से घडी साज़ थे और मैं भी पेशे से घडी साज़. एक बार जब  मैं ने उन्हें अपना ये शेर सुनाया
''औरों की घड़ियाँ हमने संवारी हैं रात दिन -
और अपनी इक घडी की हिफाज़त न कर सके"
तो उनकी आँख नम हो गई और उन्होंने मेरे सर पर हाथ रख कर मुबारकबाद दी और कहा मुझे ख़ुशी के साथ अफ़सोस है  आदिल रशीद कि यह शेर मुझे कहना चाहिए था.
मरहूम साहिल सहरी सच्चे शायर सच्चे इंसान थे उन्होंने कभी मुशायरे पढने के लिए जोड़-तोड़ की राजनीती नहीं की, कभी दाद हासिल करने के लिए अपने ही बन्दों द्वारा फरमाइश की पर्ची भेजने का भोंडा ढोंग भी नहीं किया. वे अपने आपको संतुष्ट करने के लिए शेर कहते थे. अच्छे शेर कहने और सुनने का उन्हें जूनून था. अक्सर रात के पिछले पहर उनका फोन आ जाता और हमेशा की तरह  वही एक जुमला होता "भाई, कोई अच्छा शेर सुना दो". जब  मैं अपना या अपने हाफ़िज़े में से किसी और का कोई अच्छा शेर उन्हें सुना देता तो एक लम्बी ठंडी सांस लेते हुए कहते अब नींद आ जायेगी. वे  अक्सर शेर कहने के लिए पूरी-पूरी रात जागते  इसीलिए उन्होंने कहा
''ये हमसे पूछो के किस तरह शेर होते हैं
के हम सहर की अजानो के बाद सोते हैं''
साहिल सहरी के उस्ताद कुंवर महिंदर सिंह बेदी "सहर" थे, इसीलिए वे सहरी लिखते थे. साहिल सहरी कुंवर महिंदर सिंह बेदी "सहर" जिन्हें सब "आली जा " कहते थे के बेहद अज़ीज़ शागिर्द थे, जिसका ज़िक्र आली जा ने 'यादों का जश्न' में बड़ी ही मुहब्बत से किया है, जो लोग आली जा की ज़िदगी में आली जा से एक मुलाक़ात करने या आली जा का शागिर्द होने के लिए साहिल सहरी के आगे-पीछे घूमते थे आली जा की आँखे बंद होते ही उन्हीं लोगों ने उनके पीछे से गाल बजाने शुरू कर दिए लेकिन उनके मरते दम तक उनके सामने नज़रें उठाने की हिम्मत न कर सके.
उन्हें हमेशा इस बात का गिला रहा कि लोगों ने उनसे लिया तो बहुत कुछ मगर उन्हें उसका सिला जो उनका  हक था वो तक  कभी नहीं दिया. कच्ची मिटटी के ऐसे कई दिये हैं जिन्हें साहिल सहरी ने आफ़ताब किया था, लेकिन मौक़ा पड़ने पर उन्होंने अपने मुहसिन का हाथ जलाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी.
साहिल सहरी साहिब से मशवरा करनेवालों की गिनती यूँ तो बहुत ही जियादा है लेकिन चन्द शागिर्द जिनका नाम साहिल सहरी साहिब बड़े ही फख्र से लेते थे उनमें ख्याल खन्ना कानपुरी, मशहूर नाजिम ऐ मुशायरा एजाज़ अंसारी दिल्ली, इकबाल आजर देहरादून, वसी अहमद वसी फरुखाबाद, अबसार सिद्दीकी खटीमा, शकील सहर एटवी के नाम काबिले ज़िक्र हैं.
उनका एक ग़ज़ल संग्रह "सफ़र सफर है" 2005 में प्रकाशित होकर मशहूर हो चुका था और उनकी ज़िन्दगी में ही उनके अज़ीज़ शागिर्द इकबाल आजर साहेब के हाथों उनकी दूसरी किताब पर काम शुरू हो चुका था जिसे अब जनाब इकबाल आजर "कुल्लियाते साहिल सहरी " के नाम से मुरत्तब कर रहे हैं जो जल्द प्रकाशित होगा.
साहिल सहरी को अनेको सम्मान मिले. दूरदर्शन, आकाशवाणी, ऍफ़ एम् चैनलों पर उनका कलाम प्रसारित हुआ तथा भारत और भारत से बाहर पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ.       
एक समय पर मुशायरों पर राज करने वाला बड़ा शायर, मुशायरे के माईक से शेर की तरह दहाड़ने वाला शायर {जिसकी नकल करके बहुत से शायर मुशायरों में बहुत कामयाब हुए} अपनी बढ़ती उम्र के साथ रफ्ता-रफ्ता मुशायरों से दूर होता गया और आखिरकार आज दुनिया से भी दूर हो गया लेकिन अगर वो चाहे भी तो साहित्य और साहित्य प्रेमियों के दिल से दूर नहीं हो सकता उनके कहे अशआर अदब पारों में हमेशा महफूज़ रहेंगे.
--
aadil.rasheed1967@gmail.com

कविता सब से मधुर संगीत ---लक्ष्मीनारायण गुप्त

कविता 




सब से मधुर संगीत

 
---लक्ष्मीनारायण गुप्त
*
सुने हैं मैंने बहुत सारे वाद्य
बहुत सारे संगीत
हिन्दुस्तानी, कर्नाटक
पाश्चात्य पक्का संगीत
ऑपेरा, राक
जैज़ और लोक संगीत
बोलीवुड ,होलीवुड
ग़ज़ल और गीत
मन को सब भाए हैं 
सुन-गुनकर 
बहुत सुख पाए हैं
किन्तु सब से मधुर संगीत
मैं ने जो पाया है
धेवतों की किलकारियों ने
मन भरमाया है
रेशम और एका के सुनहरे बोल
नाना के कानों को 
लगते अनमोल
कृतज्ञ हूँ 
मैंने बहुत कुछ पाया है
सबसे मधुर संगीत 
नातियों ने सुनाया है


Laxmi Gupta  lngsma@rit.edu

रविवार, 15 जुलाई 2012

The real story: Paid in full --Narayanan kutty.

View profile
  Narayanan...

One day, a poor boy called Howard Kelly, who was selling goods from door to door to pay his way through school, found he had only one thin dime left, and he was hungry.

He decided he would ask for a meal at the next house. However, he lost his nerve when a lovely young woman opened the door.

Instead of a meal he asked for a glass of water! . She looked at him and thought he looked hungry so brought him a large glass of milk. He drank it so slowly, and then asked, "How much do I owe you madam?"

You don't owe me anything," she replied. "Mother has taught us never to accept pay for a kindness."

He was so grateful and said ... "Then I thank you from my heart."

As Howard Kelly left that house, he not only felt stronger physically, but hisfaith in God and man was strong also. He had been ready to give up and quit.

Many year's later that same young woman became critically ill. The local doctors were baffled. They finally sent her to the big city, where they called in specialists to study her rare disease.

Dr.Howard Kelly was called in for the consultation. When he heard the name of the town she came from, a strange light filled his eyes.

Immediately he rose and went down the hall of the hospital to her room. Dressed in his doctor's gown he went in to see her. He recognized her at once.
He went back to the consultation room determined to do his best to save her life. From that day he gave special attention to her case.

After a long struggle, the battle was won.

Dr. Kelly requested the business office to pass the final bill to him for approval. He looked at it, then wrote something on the edge, and the bill was sent to her room. She feared to open it, for she was sure it would take the rest of her life to pay for it all. Finally she looked, and something caught her attention on the side of the bill. She read these words ...

"Paid in full with one glass of milk"

(Signed) 
Dr. Howard Kelly.

Tears of joy flooded her eyes as her happy heart prayed: "Thank You, God, that Your love has spread broad through human hearts and hands."
There's a saying which goes something like this: Bread cast on the water comes back to you. The good deed you do today may benefit you or someone you love at the least expected time. If you never see the deed again at least you will have made the world a better place - And, after all, isn't that what life is all about?

Now you have two choices.

1. You can send this page on and spread a positive message.

Or 
 
2. Ignore it and pretend it never touched your heart.

The hardest thing to learn in life is which bridge to cross and who to cross with.....
 
***

गद्य गीत: वर्षा -- किरण







*
हर किसी ने मन रूपी नेत्रों से तुम्हे अलग-अलग रूपों में देखा.
 
कहीं किसी ने प्रेम का प्रतीक मान प्रेम बांटते देखा,  तो कहीं किसी ने वियोग में विरहनी बन अश्रु धारा बहाते देखा!

कभी किसी ने हर्षित चंचला बन मचलते देखा, तो कहीं रूद्र रूप धारण कर साधारण जन को अपनी शक्ति से डराते देखा !

किसी ने इन नन्ही नन्ही बूंदों में  जीवन के हर पड़ाव को आते-जाते देखा, कहीं किसी ने चातक बन अपने सपनों को पूरा होते देखा !
मैंने अपने जीवन में तुम्हें को मन का अवसाद धोते देखा, माँ बन कर तन को, मन को, धोते-स्वच्छ करते देखा! 
माँ वर्षा तुम हर वर्ष विभिन्न रूपों में ऐसे ही आते रहना भीगा-भीगा, प्यारा-प्यारा खुशहाली बरसाता आशीर्वाद देते रहना !
*
"kiran" <kiran5690472@yahoo.co.in>

गजल: बारिश --मदन मोहन शर्मा







*
या तो अवधूतों की बारिश
या फिर मजबूतों की बारिश.

जिंदा लाशों की बस्ती में 
अब जैसे भूतों की  बारिश.
चंद सवालों की रिमझिम सी 
फिर  चप्पल-जूतों की बारिश.

उजले मुंह काले कर देगी 
काली करतूतों की बारिश.

सबके द्वार कहाँ होती है 
अपने बल-बूतों की बारिश.
*
Madan Mohan Sharma  madanmohanarvind@gmail.com

POEM: THE FINAL INSPECTION


POEM:

THE FINAL INSPECTION



 *

सच्चा मित्र:real friend --सलिल

सच्चा मित्र: सलिल 


उन्नति करते आप, जानते मित्र तुरत ही आप कौन-क्या?
अवनति में यह आप जानते, कौन मित्र पाया है सच्चा??
भले समय में साथ कई दें, उन्हें न अपना मित्र मानिये.
बुरे समय में साथ रहें जो, उनको सच्चा मित्र जानिए..
समय और संसाधन अपने देकर मित्र बढ़ाते आगे.
मदद हेतु वे आते आगे, तभी नया जब पीठ दिखाते..



*****
real friend 

 


 *

आज का विचार, Thought of the Day, salil

 
आज का विचार: 
 सलिल
विधि की कैसी विडंबना है?
जो करते हैं कद्र हमारी 
उनकी करी उपेक्षा हमने.
जो करते हैं हमें उपेक्षित 
उन्हें बिठाया सर पर हमने.
जिसने आहत किया उसी पर 
हमने खुद को वार दिया है.
उसको आहत किया हमेंशा 
जिसने हमको प्यार किया है। 
*
Thought of the Day:









 *

शनिवार, 14 जुलाई 2012

गीत: हारे हैं... संजीव 'सलिल'

गीत:

हारे हैं...





संजीव 'सलिल'
*
कौन किसे कैसे समझाए
सब निज मन से हारे हैं?.....
*



इच्छाओं की कठपुतली हम
बेबस नाच दिखाते हैं.
उस पर भी तुर्रा यह खुद को
तीसमारखाँ पाते हैं.
रास न आये सच कबीर का
हम बुदबुद गुब्बारे हैं...
*


बिजली के जिन तारों से
टकरा पंछी मर जाते हैं.
हम नादां उनसे बिजली ले
घर में दीप जलाते हैं.
कोई न जाने कब चुप हों
नाहक बजते इकतारे हैं...
*


पान, तमाखू, जर्दा, गुटका,
खुद खरीदकर खाते हैं.
जान हथेली पर लेकर
वाहन जमकर दौड़ाते हैं.
'सलिल' शहीदों के वारिस,
या दिशाहीन गुब्बारे हैं...
*



करें भोर से भोर शोर हम,
चैन न लें, ना लेने दें.
अपनी नाव डुबाते, औरों को
नैया ना खेने दें.
वन काटे, पर्वत खोदे,
सच हम निर्मम हत्यारे है...
*




नदी-सरोवर पाट दिये,
जल-पवन प्रदूषित कर हँसते.
सर्प हुए हम खाकर अंडे-
बच्चों को खुद ही डंसते.
चारा-काँटा फँसा गले में
हम रोते मछुआरे हैं...
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in



मुक्तिका: मुहब्बत संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

मुहब्बत




संजीव 'सलिल'
*
खुदा की हसीं दस्तकारी मुहब्बत,
इन्सां की है ह्स्तकारी मुहब्बत।
*



चक्कर पे चक्कर लगाकर थको जब,
तो बोलो उसे लस्तकारी मुहब्बत।
*
 


भेजे संदेशा, न मन में भरोसा,
कहें क्यों करें? कष्टकारी मुहब्बत।
*


दुनिया को जीता मगर दिल को हारा,
दिलवर यही पस्तकारी मुहब्बत।
*



रखे एक पर जब नजर दूसरा तो,
कहते उसे गश्तकारी मुहब्बत।
*



छिपे धूप से रवि, शशि चांदनी से,
यही है यही अस्तकारी मुहब्बत।
*



मन से मिले मन, न मिलकर हो उन्मन,
मन न भरे, मस्तकारी मुहब्बत।
*



'सलिल' एक रूठे, मनाये न दूजा,
समझिए हुई ध्वस्तकारी मुहब्बत।
*

मिलकर बिछड़ते, बिछड़कर मिलें जो,
करते 'सलिल' किस्तकारी मुहब्बत।
*




Acharya Sanjiv verma 'Salil'

http://divyanarmada.blogspot.com

http://hindihindi.in



मुक्तिका: कैसे-कैसे लोग---- डॉ. अ. कीर्तिवर्धन

मुक्तिका: 

कैसे-कैसे लोग---- 

डॉ. अ. कीर्तिवर्धन
*
अक्सर उनसे डरते लोग, 
महज दिखावा करते लोग| 

हम भी यह सब खूब समझते, 
चापलूसी क्यूँ करते लोग? 

वो हैं चोरों के सरदार, 
कहने से क्यूँ डरते लोग? 

सफ़ेद भेडिये खुले घूमते, 
क्यूँ नहीं उन्हें पकड़ते लोग? 

कहते हैं सब बे ईमान , 
क्यूँ नहीं उन्हें बदलते लोग? 

अबकी बार चुनाव होगा , 
फिर से उन्हें चुनेंगे लोग| 

लूट रहे जो अपने देश को 
कहते देश भक्त हैं लोग|
****