बुंदेली लोकगीत
*
कोऊ इतै आओ री!, कोऊ उतै जाओ री!!
नौनी दुलहनिया ए समझाओ री!!
*
संझा परै से जा तो सोबे खों जुटी
सूरज निकर आओ, अबै नें उठी
तन्नक सों कोई टेर आओ री!
कोई संगे लाओ री!
नौनी दुलहनिया ए समझाओ री!!
*
जैसें-तैसें तो अब सो के जा उठी
काम-धंधा छोर कै खाबै खों जुटी
जो कछु रसोई में परोस आओ री!
कोई जल लाओ री!
नौनी दुलहनिया ए समझाओ री!!
*
चूल्हे पे धर के जा तो बैठ गई पटा
घर भर को ख्वा दै जाने अलौने भटा
चौके सें कौनउ नौन लाओ री!
तुरतई जाओ री!
नौनी दुलहनिया ए समझाओ री!!
*
झींक-झींक बैठी बनाबै खों दार
खीर में लगा दओ जाने हींग खों बघार
काम-काज तन्नक सिखा जाओ री!!
कोई संगे आओ री!
नौनी दुलहनिया ए समझाओ री!!
*
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
गुरुवार, 10 जून 2021
बुंदेली लोकगीत नौनी दुलहनिया
चिप्पियाँ Labels:
नौनी दुलहनिया,
बुंदेली लोकगीत
आचार्य संजीव वर्मा सलिल
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें