गीत-
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भूल नहीं पल भर को भी यह चेतन का संक्रान्तिकाल है
राकेशी ज्योत्सना न शीतल, लिये क्रांति की नव मशाल है 
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अचल रहे संकल्प, विकल्पों पर विचार का समय नहीं है 
हुई व्यवस्था ही प्रधान, जो करे व्यवस्था अभय नहीं है
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कल तक रही विदेशी सत्ता, क्षति पहुँचाना लगा सार्थक
आज स्वदेशी चुने हुए से टकराने का दृश्य मार्मिक 
कुरुक्षेत्र की सीख यही है, दु:शासन से लड़ना होगा 
धृतराष्ट्री है न्याय व्यवस्था मिलकर इसे बदलना होगा 
वादों के अम्बार लगे हैं, गांधारी है न्यायपीठ पर
दुर्योधन देते दलील, चुक गये भीष्म, पर चलना होगा 
आप बढ़ा जी टकराने अब उसका तिलकित नहीं भाल है 
भूल नहीं पल भर को भी यह चेतन का संक्रान्तिकाल है
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हाथ हथौड़ा तिनका हाथी लालटेन साइकिल पथ भूले 
कमल मध्य को कुचल, उच्च का हाथ थाम सपनों में झूले 
निम्न कटोरा लिये हाथ में, अनुचित-उचित न देख पा रहा 
मूल्य समर्थन में, फंदा बन कसा गले में कहर ढा रहा 
दाल टमाटर प्याज रुलाये, खाकर हवा न जी सकता जन 
पानी-पानी स्वाभिमान है, चारण सत्ता-गान गा रहा 
छाते राहत-मेघ न बरसें, टैक्स-सूर्य का व्याल-जाल है 
भूल नहीं पल भर को भी यह चेतन का संक्रान्तिकाल है
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महाकाल जा कुंभ करायें, क्षिप्रा में नर्मदा बहायें 
उमा बिना शिव-राज अधूरा, नंदी चैन किस तरह पायें 
सिर्फ कुबेरों की चाँदी है, श्रम का कोई मोल नहीं है
टके-तीन अभियंता बिकते, कहे व्यवस्था झोल नहीं है 
छले जा रहे अपनों से ही, सपनों- नपनों से दुःख पाया
शानदार हैं मकां, न रिश्ते जानदार कुछ तोल नहीं है 
जल पलाश सम 'सलिल', बदल दे अब न सहन के योग्य हाल है 
भूल नहीं पल भर को भी यह चेतन का संक्रान्तिकाल है
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१८-६-२०१६
 
 
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