भोर पर दोहे
*
भोर भई, पौ फट गई, स्वर्ण-रश्मि ले साथ।
भुवन भास्कर आ रहे, अभिनंदन दिन-नाथ।।
*
नीलाभित अंबर हुआ, रक्त-पीत; रतनार।
निरख रूप-छवि; मुग्ध है, हृदय हार कचनार।।
*
पारिजात शीरीष मिल, अर्पित करते फूल।
कलरव कर स्वागत करें, पंछी आलस भूल।।
*
अभिनंदन करता पवन, नमित दिशाएँ मग्न।
तरुवर ताली बजाते, पुनर्जागरण-लग्न।।
*
छत्र छा रहे मेघ गण, दमक दामिनी संग।
आतिशबाजी कर रही, तिमिरासुर है तंग।।
*
दादुर पंडित मंत्र पढ़, पुलक करें अभिषेक।
उषा पुत्र-वधु से मिली, धरा सास सविवेक।।
*
कर पल्लव पल्लव हुए, ननदी तितली झूम।
देवर भँवरों सँग करे, स्वागत मचती धूम।।
*
नव वधु जब गृहणी हुई, निखरा-बिखरा तेज।
खिला विटामिन डी कहे, करो योग-परहेज।।
*
प्रात-सांध्य नियमित भ्रमण, यथासमय हर काम।
जाग अधिक सोना तनिक, शुभ-सुख हो परिणाम।।
*
स्वेद-सलिल से कर सतत, निज मस्तक-अभिषेक।
हो जाएँ संजीव हम, थककर तजें न टेक।।
*
नव आशा बन मंजरी, अँगना लाए बसंत।
मन-मनोज हो मग्न बन, कीर्ति-सफलता कंत।।
*
दशरथ दस इंद्रिय रखें, सिया-राम अनुकूल।
निष्ठा-श्रम हों दूर तो, निश्चय फल प्रतिकूल।।
*
इंद्र बहादुर हो अगर, रहे न शासक मात्र।
जय पा आसुर वृत्ति पर, कर पाए दशगात्र।।
*
धूप शांत प्रौढ़ा हुई, श्रांत-क्लांत निस्तेज।
तनया संध्या ने कहा, खुद को रखो सहेज।।
*
दिनकर को ले कक्ष में, जा करिए विश्राम।
निशा-नाथ सुत वधु सहित, कर ले बाकी काम।।
*
वानप्रस्थ-सन्यास दे, गौरव करे न दीन।
बहुत किया पुरुषार्थ हों, ईश-भजन में लीन।।
***
salil.sanjiv@gmail.com
16.7.2018, 7999559618.
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भोर भई, पौ फट गई, स्वर्ण-रश्मि ले साथ।
भुवन भास्कर आ रहे, अभिनंदन दिन-नाथ।।
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नीलाभित अंबर हुआ, रक्त-पीत; रतनार।
निरख रूप-छवि; मुग्ध है, हृदय हार कचनार।।
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पारिजात शीरीष मिल, अर्पित करते फूल।
कलरव कर स्वागत करें, पंछी आलस भूल।।
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अभिनंदन करता पवन, नमित दिशाएँ मग्न।
तरुवर ताली बजाते, पुनर्जागरण-लग्न।।
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छत्र छा रहे मेघ गण, दमक दामिनी संग।
आतिशबाजी कर रही, तिमिरासुर है तंग।।
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दादुर पंडित मंत्र पढ़, पुलक करें अभिषेक।
उषा पुत्र-वधु से मिली, धरा सास सविवेक।।
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कर पल्लव पल्लव हुए, ननदी तितली झूम।
देवर भँवरों सँग करे, स्वागत मचती धूम।।
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नव वधु जब गृहणी हुई, निखरा-बिखरा तेज।
खिला विटामिन डी कहे, करो योग-परहेज।।
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प्रात-सांध्य नियमित भ्रमण, यथासमय हर काम।
जाग अधिक सोना तनिक, शुभ-सुख हो परिणाम।।
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स्वेद-सलिल से कर सतत, निज मस्तक-अभिषेक।
हो जाएँ संजीव हम, थककर तजें न टेक।।
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नव आशा बन मंजरी, अँगना लाए बसंत।
मन-मनोज हो मग्न बन, कीर्ति-सफलता कंत।।
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दशरथ दस इंद्रिय रखें, सिया-राम अनुकूल।
निष्ठा-श्रम हों दूर तो, निश्चय फल प्रतिकूल।।
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इंद्र बहादुर हो अगर, रहे न शासक मात्र।
जय पा आसुर वृत्ति पर, कर पाए दशगात्र।।
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धूप शांत प्रौढ़ा हुई, श्रांत-क्लांत निस्तेज।
तनया संध्या ने कहा, खुद को रखो सहेज।।
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दिनकर को ले कक्ष में, जा करिए विश्राम।
निशा-नाथ सुत वधु सहित, कर ले बाकी काम।।
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वानप्रस्थ-सन्यास दे, गौरव करे न दीन।
बहुत किया पुरुषार्थ हों, ईश-भजन में लीन।।
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salil.sanjiv@gmail.com
16.7.2018, 7999559618.
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