द्विपदियाँ और दोहे
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बसा लो दिल में, दिल में बस जाओ
फिर भुला दो तो कोई बात नहीं
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खुद्कुशी अश्क की कहते हो जिसे
वो आँसुओं का पुनर्जन्म हुआ
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अल्पना कल्पना की हो ऐसी
द्वार जीवन का जरा सज जाये.
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गौर गुरु! मीत की बातों पे करो
दिल किसी का दुखाना ठीक नहीं
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श्री वास्तव में हो वहीं, जहाँ रहे श्रम साथ
जीवन में ऊँचा रखे, श्रम ही हरदम माथ
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खरे खरा व्यवहार कर, लेते हैं मन जीत
जो इन्सान न हो खरे, उनसे करें न प्रीत.
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गौर करें मन में नहीं, 'सलिल' तनिक हो मैल
कोल्हू खीन्चे द्वेष का, इन्सां बनकर बैल
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काया की माया नहीं जिसको पाती मोह,
वही सही कायस्थ है, करे गलत से द्रोह.
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२१-७-२०१४
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