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रविवार, 19 जुलाई 2020

लघुकथा साथ

लघुकथा
साथ 
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दो विरागी,  गुरु और एक शिष्य कहीं जा रहे थे। मार्ग में एक सुन्दर तरुणी मिली, पैर में चोट के कारण वह चल नहीं पा रही थी। उसके अनुरोध पर गुरु जी ने उसे सहारा देकर, चिकित्सक के पास तक पहुँचा दिया।  
शिष्य पीछे पीछे चलता रहा पर उसके मन में प्रश्न उठा कल तो गुरु जी उपदेश दे रहे थे कि कामिनी और कंचन से दूर रहना चाहिए, इनका सामीप्य वैराग्य पथ में बाधक है और आज अवसर मिलते ही गुरु जी ने खुद अपनई बात भुला दी। एक बार मना तक नहीं किया, न ही मुझसे कहा जबकि मैं अधिक शक्तिवान हूँ। 
शिष्य बार-बार प्रश्न पूछ्ना चाहता पर गुरु जी की नाराज न हो जाएँ, सोचकर साहस न जुटा पाता। गुरु जी ने उसके चेहरे पर प्रसन्नता के स्थान पर उलझना के चिन्ह देखकर पूछा कि किस उलझन में पड़े हो? की जानना है? 
अब शिष्य ने अपनी शंका सामने रखी। गुरु जी पहले तो ठहाका लगाकर हँसे फिर बोले 'मुझे तो घायल इंसान दिखा और उसे सहारा देने के बाद भी सही स्थान पर पहुँचाकर, उसके संपर्क से मुक्त हो गया पर तू तो बिना उसे स्पर्श किये अब तक उसी के साथ है।
इसीलिये तो कामिनी कंचन के संपर्क दे दूर रहने को कहा था पर तू कहाँ दूर रह पाया? अब भी है उसी के साथ।  

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