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शनिवार, 29 अगस्त 2015

doha salila

दोहा सलिला:
संजीव 
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कर न अपेक्षा मूढ़ मन, रख मन में संतोष 
कर न उपेक्षा किसी की, हो तो मत कर रोष
*
बुरा न इतना बुरा है, अधिक बुरा है अन्य
भला भले से भी अधिक, खोजे-मिले अनन्य
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जो न भलाई देखता, उसका मन है हीन
जो न सराहे अन्य को, उस सा कोई न दीन
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कभी न कल पर छोड़िए, आज कीजिए काज
कल क्या जाने क्या घटे, कहाँ और किस व्याज
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अघट न घटता है कभी, घटित हुआ जो ठीक
मीन-मेख मत कर'सलिल', छोड़ पुरानी लीक
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भीख याचना अपेक्षा, नाम तीन-हैं एक
साथ न उनके हो कभी, गौरव बुद्धि विवेक
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खरे-खरे व्यवहार कर, तजकर खोटे काम
चाम चाहता काम पर, चाम न चाहे काम
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ममता संता विषमता, जग-जीवन के रंग
होते हैं सबरंग भी, कभी-कभी बदरंग
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देख कीर्ति-यश अन्य का, होता जो न प्रसन्न
उससे बढ़कर है नहीं, दूजा कोई विपन्न
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सोच सकारात्मक रखें, जब भी करें विरोध
स्वस्थ्य विरोध करे वही, जो हो नहीं अबोध
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शमशानी वैराग का, 'सलिल' न कोई अर्थ
दृढ़ विशवास किये बिना, कार्य सभी हो व्यर्थ
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गरल-पान कर जो करे,सतत सुधा का दान
उसको सब जग पूजता, कह शंकर भगवान
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सत-शिव-सुंदर का करें, मन में सदा विचार
सत-चित-आनंद दे 'सलिल', मन को विमल विचार 
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सूर्य कान्त सब तिमिर हर, देता रहा प्रकाश 
सलिल तभी ज्योतित हुआ, आशा का आकाश
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निवेदिता निष्ठा रही, प्रार्थी था विश्वास 
श्री वास्तव में पा सका, सत शिव जनित प्रयास
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