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शनिवार, 22 अगस्त 2015

muktika

मुक्तिका:
*
तन माटी सा, मन सोना हो
नभ चादर, धरा बिछौना हो

साँसों की बहू नवेली का
आसों के वर सँग गौना हो

पछुआ लय, रस पुरवैया हो
मलयानिल छंद सलोना हो

खुशियाँ सरसों फूलें बरसों
मृग गीत, मुक्तिका छौना हो

मधुबन में कवि मन झूम उठे
करतल ध्वनि जादू-टोना हो
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