दोहा सलिला:
धारण करने योग्य जो, शुभ सार्थक वह धर्म
जाति कुशलता कर्म की, हैं जीवन का मर्म
*
सूर्य कान्त सब तिमिर हर, देता रहा प्रकाश
सलिल तभी ज्योतित हुआ, आशा का आकाश
*
भट नागर संघर्ष कर, रच दे मंजुल मूल्य
चित्र गुप्त तब प्रगट हो, मिलता सत्य अमूल्य
*
निवेदिता निष्ठा रही, प्रार्थी था विश्वास
श्री वास्तव में पा सका, सत शिव जनित प्रयास.
*
धारण करने योग्य जो, शुभ सार्थक वह धर्म
जाति कुशलता कर्म की, हैं जीवन का मर्म
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सूर्य कान्त सब तिमिर हर, देता रहा प्रकाश
सलिल तभी ज्योतित हुआ, आशा का आकाश
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भट नागर संघर्ष कर, रच दे मंजुल मूल्य
चित्र गुप्त तब प्रगट हो, मिलता सत्य अमूल्य
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निवेदिता निष्ठा रही, प्रार्थी था विश्वास
श्री वास्तव में पा सका, सत शिव जनित प्रयास.
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