घनाक्षरी - कवित्त
बिहार में विहार.
रामबाबू
गौतम
चमके लली
चमके लली ललाम, गाल-लाल अभिराम,
कमरि- कटीली तन, चले तन-तनके।
तनके अनंग-अंग, मन में उमंग-संग,
चले-चाल ये भुजंग, बड़े बन ठनके।
ठनके मांथा वैरियों, का देखि लली ये रूप,
नैनन से करे वार, बड़े जम-जमके।
जमके ये वार-बार, हारे वैरी की कतार,
हाथ की कटार-ढाल, लली हाथ चमके।
है बिहार में विहार, गढ़-वैशाली वहार,
राजा विशाल-महल, भव्यता- परतीक है।
है ये नर्तकी
की भूमि, आम्रपाली रही झूमि,
बुद्ध-प्रबुद्ध पधारे, स्वागत सटीक है।
है घन्य-भाग्यशाली ये, भूमि-वैशाली
विस्तार,
चलके पधारे
बुद्ध, धन्य ये अतीत है।
है विहार का प्रचार, विचार गढ़-विशाल,
त्यागा
भिक्षा-पात्र बुद्ध, दान का प्रतीक है।
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न्यू जर्सी
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