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शनिवार, 3 नवंबर 2012

गीत: समाधित रहो .... संजीव 'सलिल'

गीत:
समाधित रहो ....







संजीव 'सलिल'
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चाँद ने जब किया चाँदनी दे नमन,
कब कहा है उसी का क्षितिज भू गगन।
दे रहा झूमकर सृष्टि को रूप नव-
कह रहा देव की भेंट ले अंजुमन।।

जो जताते हैं हक वे न सच जानते,
जानते भी अगर तो नहीं मानते।
'स्व' करें 'सर्व' को चाह जिनमें पली-
रार सच से सदा वे रहे ठानते।।

दिन दिनेशी कहें, जल मगर सर्वहित,
मौन राकेश दे, शांति सबको अमित।
राहु-केतु ग्रसें, पंथ फिर भी न तज-
बाँटता रौशनी, दीप होता अजित।।

जोड़ता जो रहा, रीतता वह रहा,
भोगता सुर-असुर, छीजता ही रहा।
बाँट-पाता मनुज, ज़िन्दगी की ख़ुशी-
प्यास ले तृप्ति दे, नर्मदा सा बहा।।

कौन क्या कह रहा?, कौन क्या गह रहा?
किसकी चादर मलिन, कौन स्वच्छ तह रहा?
तुम न देखो इसे, तुम न लेखो इसे-
नित नया बन रहा, नित पुरा ढह रहा।।

नित निनादित रहो, नित प्रवाहित रहो।
सर्व-सुख में 'सलिल', चुप समाहित रहो।
शब्द-रस-भावमय छन्द अर्पित करो-
शारदी-साधना में समाधित रहो।।

***

8 टिप्‍पणियां:

Rakesh Khandelwal ने कहा…

Rakesh Khandelwal

आदरणीय

इन पंक्तियों के लिये आप स्तुत्य हैं:

नित निनादित रहो, नित प्रवाहित रहो।
सर्व-सुख में 'सलिल', चुप समाहित रहो।
शब्द-रस-भावमय छन्द अर्पित करो-
शारदी-साधना में समाधित रहो।।

सादर

राकेश

seema agrawal ने कहा…

seema agrawal

आदरणीय सलिल जी,
गीत की प्रशंसा करूँ या गीत में समाहित भाव की... एक-एक शब्द सरलता से अंतर को स्पंदित कर रहा है. भाव शुभ और अनुकरणीय.. सन्देश की पावन सरिता समान प्रवाहित हो रहे हैं... इतने सुन्दर गीत के लिए ह्रदय से धन्यवाद

नित निनादित रहो, नित प्रवाहित रहो।
सर्व-सुख में 'सलिल', चुप समाहित रहो।
शब्द-रस-भावमय छन्द अर्पित करो-
शारदी-साधना में समाधित रहो।

Saurabh Pandey ने कहा…

Saurabh Pandey

आदरणीय आचार्यवर,
अरसे बाद आपकी अति विशिष्ट रचना से मन मुग्ध है. क्या शिल्प, क्या भाव और क्या ही प्रस्तुति! वाह-वाह!

२१२ २१२ २१२ २१२ की आवृति पर जिस तरह से शब्द नृत्य कर रहे हैं और सटीक भाव संप्रेषित हो रहे हैं, यह सार्थक अभ्यास की सहज परिणति है. सादर बधाइयाँ स्वीकारें आचार्यवर.. .



एक बात : राहु-केतु ग्रसें, को हमने राहु-केतू ग्रसें, की तरह पढ़ा है. ग्रसे के ग्र से केतु क्यों प्रभावित हो .. :-))))

Dr.Prachi Singh ने कहा…

Dr.Prachi Singh

आदरणीय संजीव 'सलिल' जी,

सादर नमन!

इस रचना में निहित भावों को बार बार नमन, आपकी रचनाएं इतनी उच्च होती है, कि मै शब्द्विहीन हो जाती हूँ. सादर आभार इस प्रस्तुति के लिए.

rajesh kumari ने कहा…

rajesh kumari

कौन क्या कह रहा?, कौन क्या गह रहा?
किसकी चादर मलिन, कौन स्वच्छ तह रहा?
तुम न देखो इसे, तुम न लेखो इसे-
नित नया बन रहा, नित पुरा ढह रहा।।
----आदरणीय सलिल जी वैसे तो पूरा गीत ही अचंभित करता है परन्तु ये पंक्तियाँ तो बहुत प्रभावित करती हैं. बस इंसान अपने लक्ष्य की और बढ़ता रहे अपने कर्म को करता रहे बहुत सुन्दर भाव बहुत बधाई आपको इस उत्कृष्ट गीत के लिए

sanjiv verma salil ✆ ने कहा…

उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार सहित समर्पित -

गीत प्राची लिखे, मीत सीमा बने
रीत राजेश सी, सौरभी सच बुने।
अंकुरित पल्लवित किसलयित हो सकें-
प्रीत-कर नीत-हल्दी से रखिये सने।।

Laxman Prasad Ladiwala ने कहा…

Laxman Prasad Ladiwala

गीत -"समाधित रहो" सर्व श्रेष्ठ कार्य रचनाओं में से एक, जिसमे समपर्ण लय, बढ़िया भवभ्व्यक्ति और एक उत्कृष्ट गीत
पढने को मिला इस के लिए हार्दिक बधाई भी और आभार भी आदरणीय श्री संजीव वर्मा 'सलिल' जी

rajesh kumari ने कहा…

rajesh kumari

सादर आभार सलिल जी :):)