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बुधवार, 14 नवंबर 2012

दोहा सलिला हंसा ऊपर जा बसा संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला
हंसा ऊपर जा बसा
संजीव 'सलिल'
**
हंसा ऊपर जा बसा, किन्तु नाम है शेष।
मूल्य सनातन दे गया, जो वे रहे अशेष।।
*
सूरत की सीरत नहीं, बिसराते हैं लोग।
कल्पों पहले जो गए, उनका करते सोग।।
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हल न महल ने यदि दिया, कुटिया देती तोड़।
मह-मह हरियाली करे, हल बंजरता छोड़।।
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चैन न पाया इसलिए, चाहें तजना प्राण।
तब भी गर बेचैन तो, कैसे हों संप्राण।।
*
हर दिल में हैं प्रतिष्ठित, गौतम ईसा राम।
कृष्ण मुहम्मद दे रहे, सुन लें हम पैगाम।।
*
मन मन्दिर में भवानी, श्रृद्धा का है वास।
मिल ले 'सलिल' महेश से, हैं वे ही विश्वास।।
*

5 टिप्‍पणियां:

kamlesh kumar diwan ने कहा…

kamlesh kumar diwan

hansa upar ja basa ... sundar doha hai 

madhuvmsd@gmail.com ने कहा…

- madhuvmsd@gmail.com
संजीव जी
बहुत बहुत सही कहा

सूरत की सीरत नहीं बिसराते हैं लोग
वास्तव में जो बिसर् जातें है उनकी किस कदर बातें करते हैं, उनके बारें में आदि-आदि ---
सुन्दर चित्रावली
मधु

- madhuvmsd@gmail.com ने कहा…

- madhuvmsd@gmail.com

संजीव जी बहुत बहुत सही कहा
सूरत की सीरत नहीं बिसराते हैं लोग

वास्तव में जो बिसर् जातें है उनकी किस कदर बातें करते हैं, उनके बारें में आदि-आदि ---------
सुन्दर चित्रावली
मधु

- murarkasampatdevii@yahoo.co.in ने कहा…

- murarkasampatdevii@yahoo.co.in

आ. सलील जी, बहुत सुन्दर दोहें हैं, बधाई.
सादर,
संपत

श्रीमती संपत देवी मुरारका
Smt. Sampat Devi Murarka
लेखिका, कवयित्री, पत्रकार
Writer,Poetess, Journalist
Hand Phone +91 94415 11238 / +91 93463 93809
Home +91 (040) 2475 1412 / Fax +91 (040) 4017 5842
http://bahuwachan.blogspot.com

Sanjiv verma 'Salil' ने कहा…

आपका आभार शत-शत।