मुक्तिका
खुशबू
संजीव 'सलिल'
कहीं है प्यार की खुशबू, कहीं तकरार की खुशबू..
कभी इंकार की खुशबू, कभी इकरार की खुशबू..
सभी खुशबू के दीवाने हुए, पीछे रहूँ क्यों मैं?
मुझे तो भा रही है यार के दीदार की खुशबू..
सभी कहते न लेकिन चाहता मैं ठीक हो जाऊँ.
उन्हें अच्छी लगे है दिल के इस बीमार की खुशबू.
तितलियाँ फूल पर झूमीं, भ्रमर यह देखकर बोला.
कभी मुझको भी लेने दो दिले-गुलज़ार की खुशबू.
'सलिल' थम-रुक न झुक-चुक, हौसला रख हार को ले जीत.
रहे हर गीत में मन-मीत के सिंगार की खुशबू..
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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मंगलवार, 19 जनवरी 2010
मुक्तिका: खुशबू -संजीव 'सलिल'
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4 टिप्पणियां:
एक सुन्दर , तरूण रचना के लिए बधाई |
मुक्तक सुना है लेकिन मुक्तिका क्या है ?
अवनीश तिवारी
सभी खुशबू के दीवाने हुए, पीछे रहूँ क्यों मैं?
मुझे तो भा रही है यार के दीदार की खुशबू..
तितलियाँ फूल पर झूमीं, भ्रमर यह देखकर बोला.
कभी मुझको भी लेने दो दिले-गुलज़ार की खुशबू.
roomaniyat aur darshan dono ka bhandaar hai gazal aapki..
बसंत पंचमी की शुभकामनाएं
बहुत खूब , आपके इन शब्दों की खुशबू के लिए आपका धन्यवाद !
PS:कृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा दें , इसका कोई उपयोग नहीं है केवल प्रतिक्रिया देने वाले को बेहद असुविधा होती है ! शुभकामनायें !
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