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शनिवार, 29 मार्च 2014

chhand salila: manmohan chhand --sanjiv

छंद सलिला:
मनमोहन छंद
संजीव
*
लक्षण: जाति मानव, प्रति चरण मात्रा १४ मात्रा, यति ८-६, चरणांत लघु लघु लघु (नगण) होता है.  

लक्षण छंद:
रासविहारी, कमलनयन
अष्ट-षष्ठ यति, छंद रतन
अंत धरे लघु तीन कदम
नतमस्तक बलि, मिटे भरम.   

उदाहरण:
१.
हे गोपालक!, हे गिरिधर!!
   हे जसुदासुत!, हे नटवर!!
   हरो मुरारी! कष्ट सकल
  
प्रभु! प्रयास हर करो सफल. 


२. राधा-कृष्णा सखी प्रवर
   पार्थ-सुदामा सखा सुघर
   दो माँ-बाबा, सँग हलधर   
   लाड लड़ाते जी भरकर
 

३. कंकर-कंकर शंकर हर
   पग-पग चलकर मंज़िल वर
   बाधा-संकट से मर डर
   नीलकंठ सम पियो ज़हर

  *********************************************
 (अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, नित, निधि, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हंसी)

lekh: doha doha kavya ras -sanjiv

  विशेष आलेख 

दोहा दोहा काव्य रस   

संजीव 

दोहा भास्कर काव्य नभ, दस दिश रश्मि उजास ‌
गागर में सागर भरे, छलके हर्ष हुलास ‌ ‌
रस, भाव, संधि, बिम्ब, प्रतीक, शैली, अलंकार आदि काव्य तत्वों की चर्चा करने का उद्देश्य यह है कि दोहों में इन तत्वों को पहचानने और सराहने के साथ दोहा रचते समय इन तत्वों का यथोचित समावेश कर किया जा सके। ‌
रसः 
काव्य को पढ़ने या सुनने से मिलनेवाला आनंद ही रस है। काव्य मानव मन में छिपे भावों को जगाकर रस की अनुभूति कराता है। भरत मुनि के अनुसार "विभावानुभाव संचारी संयोगाद्रसनिष्पत्तिः" अर्थात् विभाव, अनुभाव व संचारी भाव के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है। रस के ४ अंग स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव व संचारी भाव हैं-
स्थायी भावः मानव ह्र्दय में हमेशा विद्यमान, छिपाये न जा सकनेवाले, अपरिवर्तनीय भावों को स्थायी भाव कहा जाता है।
रस:  १. श्रृंगार, २. हास्य, ३. करुण, ४. रौद्र, ५. वीर, ६. भयानक, ७. वीभत्स,  ८. अद्भुत, ९. शांत,  १०. वात्सल्य, ११. भक्ति।
क्रमश:स्थायी भाव: १. रति, २. हास, ३. शोक, ४. क्रोध, ५. उत्साह, ६. भय, ७. घृणा, ८. विस्मय,  निर्वेद, ९.  १०. संतान प्रेम, ११. समर्पण।
विभावः
किसी व्यक्ति के मन में स्थायी भाव उत्पन्न करनेवाले कारण को विभाव कहते हैं। व्यक्ति, वस्तु या परिस्थिति भी विभाव हो सकती है। ‌विभाव के दो प्रकार आलंबन व उद्दीपन हैं। ‌

आलंबन विभाव के सहारे रस निष्पत्ति होती है। इसके दो भेद आश्रय व विषय हैं ‌
आश्रयः 
जिस व्यक्ति में स्थायी भाव स्थिर रहता है उसे आश्रय कहते हैं। ‌श्रृंगार रस में नायक नायिका एक दूसरे के आश्रय होंगे।‌
विषयः 
जिसके प्रति आश्रय के मन में रति आदि स्थायी भाव उत्पन्न हो, उसे विषय कहते हैं ‌ "क" को "ख" के प्रति प्रेम हो तो "क" आश्रय तथा "ख" विषय होगा।‌
उद्दीपन विभाव: 
आलंबन द्वारा उत्पन्न भावों को तीव्र करनेवाले कारण उद्दीपन विभाव कहे जाते हैं। जिसके दो भेद बाह्य वातावरण व बाह्य चेष्टाएँ हैं। वन में सिंह गर्जन सुनकर डरनेवाला व्यक्ति आश्रय, सिंह विषय, निर्जन वन, अँधेरा, गर्जन आदि उद्दीपन विभाव तथा सिंह का मुँह फैलाना आदि विषय की बाह्य चेष्टाएँ हैं ।
अनुभावः 
आश्रय की बाह्य चेष्टाओं को अनुभाव या अभिनय कहते हैं। भयभीत व्यक्ति का काँपना, चीखना, भागना आदि अनुभाव हैं। ‌
संचारी भावः 
आश्रय के चित्त में क्षणिक रूप से उत्पन्न अथवा नष्ट मनोविकारों या भावों को संचारी भाव कहते हैं। भयग्रस्त व्यक्ति के मन में उत्पन्न शंका, चिंता, मोह, उन्माद आदि संचारी भाव हैं। मुख्य ३३ संचारी भाव निर्वेद, ग्लानि, मद, स्मृति, शंका, आलस्य, चिंता, दैन्य, मोह, चपलता, हर्ष, धृति, त्रास, उग्रता, उन्माद, असूया, श्रम, क्रीड़ा, आवेग, गर्व, विषाद, औत्सुक्य, निद्रा, अपस्मार, स्वप्न, विबोध, अवमर्ष, अवहित्था, मति, व्याथि, मरण, त्रास व वितर्क हैं।
रस
१. श्रृंगार 
अ. संयोग श्रृंगार:
तुमने छेड़े प्रेम के, ऐसे राग हुजूर
बजते रहते हैं सदा, तन-मन में संतूर
- अशोक अंजुम, नई सदी के प्रतिनिधि दोहाकार
आ. वियोग श्रृंगार:
हाथ छुटा तो अश्रु से, भीग गये थे गाल ‌
गाड़ी चल दी देर तक, हिला एक रूमाल
- चंद्रसेन "विराट", चुटकी चुटकी चाँदनी
२. हास्यः
आफिस में फाइल चले, कछुए की रफ्तार ‌
बाबू बैठा सर्प सा, बीच कुंडली मार
- राजेश अरोरा"शलभ", हास्य पर टैक्स नहीं
व्यंग्यः
अंकित है हर पृष्ठ पर, बाँच सके तो बाँच ‌
सोलह दूनी आठ है, अब इस युग का साँच
- जय चक्रवर्ती, संदर्भों की आग
३. करुणः
हाय, भूख की बेबसी, हाय, अभागे पेट ‌
बचपन चाकर बन गया, धोता है कप-प्लेट
- डॉ. अनंतराम मिश्र "अनंत", उग आयी फिर दूब
४. रौद्रः
शिखर कारगिल पर मचल, फड़क रहे भुजपाश ‌
जान हथेली पर लिये, अरि को करते लाश
- संजीव 
५. वीरः
रणभेरी जब-जब बजे, जगे युद्ध संगीत ‌
कण-कण माटी का लिखे, बलिदानों के गीत
- डॉ. रामसनेहीलाल शर्मा "यायावर", आँसू का अनुवाद
६. भयानकः
उफनाती नदियाँ चलीं, क्रुद्ध खोलकर केश ‌
वर्षा में धारण किया, रणचंडी का वेश
- आचार्य भगवत दुबे, शब्दों के संवाद
७. वीभत्सः
हा, पशुओं की लाश को, नोचें कौए गिद्ध ‌
हा, पीते जन-रक्त फिर, नेता अफसर सिद्ध
- संजीव
८. अद्भुतः
पांडुपुत्र ने उसी क्षण, उस तन में शत बार ‌
पृथक-पृथक संपूर्ण जग, देखे विविध प्रकार
- डॉ. उदयभानु तिवारी "मधुकर", श्री गीता मानस
९. शांतः
जिसको यह जग घर लगे, वह ठहरा नादान ‌
समझे इसे सराय जो, वह है चतुर सुजान
- डॉ. श्यामानंद सरस्वती "रौशन", होते ही अंतर्मुखी
१० . वात्सल्यः
छौने को दिल से लगा, हिरनी चाटे खाल ‌
पान करा पय मनाती, चिरजीवी हो लाल
-संजीव 
११. भक्तिः
दूब दबाये शुण्ड में, लंबोदर गजमुण्ड ‌
बुद्धि विनायक हे प्रभो!, हरो विघ्न के झुण्ड
- भानुदत्त त्रिपाठी "मधुरेश", दोहा कुंज
दोहा में हर रस को अभिव्यक्त करने की सामर्थ्य है। आशा है दोहाकार अपनी रुचि के अनुकूल खड़ी बोली या टकसाली हिंदी में दोहे रचने की चुनौती को स्वीकारेंगे। हिंदी के अन्य भाषिक रूपों यथा उर्दू, बृज, अवधी, बुन्देली, भोजपुरी, मैथिली, अंगिका, बज्जिका, छत्तीसगढ़ी, मालवीनिमाड़ी, बघेली, कठियावाड़ी, शेखावाटी, मारवाड़ी, हरयाणवी आदि तथा अन्य भाषाओँ गुजराती, मराठी, गुरुमुखी, उड़िया, बांगला, तमिल, तेलुगुकन्नड़, डोगरी, असमीआदि तथा अभारतीय भाषाओँ अंग्रेजी इत्यादि में दोहा भेजते समय उसका उल्लेख किया जाना उपयुक्त होगा ताकि उस रूप / भाषा विशेष में प्रयुक्त शब्दरूप व क्रियापद को अशुद्धि न समझा जाए।
 
**********

शुक्रवार, 28 मार्च 2014

gazal: r.p. ghayal

ग़ज़ल:
राजेंद्र पासवान 'घायल'
*
उसका  लिया  जो  नाम  तो  ख़ुशबू  बिखर गयी
तितली    मेरे    करीब   से  होकर   गुज़र  गयी

अधखुली आँखों  से  उसने  जब कभी  देखा मुझे
मेरे  मन  की हर उदासी  हर  ख़ुशी  से भर गयी

फूल  जब  दामन से  उसके  गुफ़्तगू  करने लगे
देह की ख़ुशबू से  उनकी अपनी  ख़ुशबू डर गयी

हुस्न है तो इश्क है कितना ग़लत कहते हैं लोग
लैला मजनूं की मोहब्बत  नाम रोशन कर गयी

उसकी आँखों  की चमक  से  या  वफ़ा के नूर से
रात  काली  थी  मगर  वो  रोशनी  से  भर गयी

याद है  उसकी  कि 'घायल'  भोर  की  ठंडी  हवा
गुदगुदाकर जो मुझे फिर आज  तन्हा कर गयी

आर पी 'घायल'

muktika: main -sanjiv

चित्र पर कविता;
मुक्तिका 
मैं
संजीव
*


मुझमें कितने 'मैं' बैठे हैं?, किससे आँख मिलाऊँ मैं?
क्या जाने क्यों कब किस-किससे बरबस आँख चुराऊँ मैं??
*
खुद ही खुद में लीन हुआ 'मैं', तो 'पर' को देखे कैसे?
बेपर की भरता उड़ान पर, पर को तौल न पाऊँ मैं.
*
बंद करूँ जब आँख, सामना तुमसे होता है तब ही
कहीं न होकर सदा यहीं हो, किस-किस को समझाऊँ मैं?
*
मैं नादां बाकी सब दाना, दाना रहे जुटाते हँस
पाकर-खोया, खोकर-पाया, खो खुद को पा जाऊँ मैं
*
बोल न अपने ही सुनता मन, व्यर्थ सुनाता औरों को
भूल कुबोल-अबोल सकूँ जब तब तुमको सुन पाऊँ मैं
*
देह गेह है जिसका उसको, मन मंदिर में देख सकूँ
ज्यों कि त्यों धर पाऊँ चादर, तब तो आँख उठाऊँ मैं.
*
आँख दिखाता रहा जमाना, बेगाना है बेगाना
अपना कौन पराया किसको, कह खुद को समझाऊँ मैं?
***




gazal: abhishek kumar 'abhi'

एक ग़ज़ल :
—अभिषेक कुमार ''अभी''
(बहर:मुसतफइलुन/मुसतफइलुन/मुफाईलुन/मुफाईलुन)
.
इस ज़िंदगी को, हम यहाँ, अकेले ही गुज़ारे हैं
कोई न आए साथ को, यहाँ जब जब पुकारे हैं
.
हालात ऐसे आज हैं, कि सब, शब में समाए हैं
देखे सहर मुद्दत बिता, सुबह भी निकले तारे हैं
.
कुश्ती मची इक-दूजे में,हराए कौन किसको अब
घूमा नज़र, देखो जहाँ, वहीं दिखते अखाड़े हैं
.
दोनों जहाँ जिसने बनाया, वो भी देख हँसता है
जिन्हें सजाने को कहा, वही इन्हें उजाड़े हैं
.
अब तो सभी पूजे उसे, न दौलत की कमी जिसको
कोई न सुनता उनका अब, 'अभी' जो बे-सहारे हैं

(शब=रात)
.
Is zindgi ko, ham yhan, akele hi guzare hain
Koi n aaye sath ko, yhan jab jab pukare hain
.
Halat aise aaj hen,ki sb, shb me smaye hain
Dekhe sahar muddt bita, subah bhi nikle tare hain
.
Kushti machi ik-duje me, haraye kaun kisko ab
Ghuma nazar, dekho jahan, whin dikhte akhade hain
.
Dono jahan jisne banaya, wo bhi dekh hansta hai
Jinhen sajaane ko k'ha, wahi inhain ujade hain
.
Ab to sabhi pooje use, n daulat ki kami jis ko
Koyi n sunta un ka ab, 'abhi' jo be-sahare hain.
-Abhishek Kumar ''Abhi''
(Shb=Raat)

awadhi geet: omprakash tiwari

अवधी गीत:

पप्पू के पापा तुहूँ लड़ा

- ओमप्रकाश तिवारी

पप्पू के पापा तुहूँ लड़ा
अबकिन चुनाव मा हुअव खड़ा।

निरहू-घुरहू अस कइव जने
सब दावं इलेक्सन मा जीते,
संसद का समझिन समधियान
सब जने देस का लइ बीते ;
न केहू कै वै भला किहिन
न केहू कै कल्यान किहिन,
सीना फुलाय घूमैं जइसे
वै हुवैं सिकंदर जग जीते।

टुटहा घर बनिगा महल अइस,
हैं छापिन नोटव कड़ा-कड़ा।
पप्पू के पापा -------

न काम किहिन न काज किहिन
सोने के भाव अनाज किहिन,
बभनौटन से तुहंका लड़ाय
अपुना दिल्ली मा राज किहिन ;
वै कहिन जाय निपटाउब हम
दुख-दर्द सकल भयवादी कै,
लेकिन सत्ता की गल्ली मा
वै जाय कोढ़ मा खाज किहिन।

खद्दर कै रंग चढ़ा अस की,
होइ गवा करैला नीम चढ़ा ।
पप्पू के पापा ---------

उनकी थइली मा माल भवा
तौ झूर गलुक्का लाल भवा,
मोटर पै बिजुली लाल जरै
हारन जिउ कै जंजाल भवा ;
सब गांव खड़ंजा का तरसै
वै घर तक रोड बनाय लिहिन,
जे तनिकौ मूड़ उठाय दिहिस
ऊ पिपरे कै बैताल भवा ।

केहू गड़ही मा परा मिला,
केहू पै मोटर जाय चढ़ा ।
पप्पू के पापा --------

मँगनी कै धोती पहिर-पहिर
वै नात-बाँत के जात रहीं,
घर मा यक जून जरै चूल्हा
वै भौंरी-भाँटा खात रहीं  ;
अब नेता कै मेहरि बनि के
गहना से लदी-फँदी घूमै,
सोझे मुँह बात न चीत करैं
नखरा नकचढ़ा अमात नहीं।

काने में झुमकी हीरा कै,
नेकुना पै सब्जा बड़ा-बड़ा ।
पप्पू के पापा -------

उनके लरिका कै सुनौ हाल
किरवा झरि जइहैं काने कै,
वकरे चपरहपन के किस्सा से
रंगा रजिस्टर थाने कै ;
बिटिया-पतुअह घर बंद भईं
पहरा लागै डड़वारे पै,
सगरौ पवस्त ऊबा वहसे
चक्कर काटै देवथान्हे कै ।

है गाँव-देस मा अब चर्चा,
इनके पापन कै भरा घड़ा ।
पप्पू के पापा -------
*
 Om Prakash Tiwari
Chief of Mumbai Bureau Dainik Jagran Jagran Prakashan Ltd., Peninsula Center, Dr. S.S.Rao Road, Opp. Mahatma Gandhi Hospital, Parel (E), Mumbai- 400012
Tel : 022 24197171, Fax : 022 24112009, M : 098696 49598
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गुरुवार, 27 मार्च 2014

chhand salila: madhumalti chhand -sanjiv

छंद सलिला:
मधुमालती छंद
संजीव
*
लक्षण: जाति मानव, प्रति चरण मात्रा १४ मात्रा, यति ७-७, चरणांत गुरु लघु गुरु (रगण) होता है.  

लक्षण छंद:
मधुमालती आनंद दे
ऋषि साध सुर नव छंद दे 
चरणांत गुरु लघु गुरु रहे
हर छंद नवउत्कर्ष दे।   

उदाहरण:
१.
माँ भारती वरदान दो
   सत्-शिव-सरस हर गान दो
   मन में नहीं अभिमान हो
  
घर-अग्र 'सलिल' मधु गान हो।


२. सोते बहुत अब तो जगो
   खुद को नहीं खुद ही ठगो 
   कानून को तोड़ो नहीं-    
   अधिकार भी छोडो नहीं 

  *********************************************
 (अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, नित, निधि, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हंसी)

chhand salila: mohan / saras chhand

छंद सलिला:
मोहन (सरस) छंद
संजीव
*
लक्षण: जाति मानव, प्रति चरण मात्रा १४ मात्रा, यति ७-७, चरणांत लघु लघु लघु (नगण) होता है.  

लक्षण छंद:
शुभ छंद रच मोहन-सरस 

चौदह सुकल यति सात पर
प्रभु सुयश गा, नित कर नमन
चरणान्त में लघु तीन धर। 

उदाहरण:
१.
मोहो नहीं मोहन विनय 
   स्वीकार लो करुणा-अयन
   छोडो नहीं भव पार कर
  
निज शरण लो राधारमण।

२. जिसका दरस इतना सरस
   भज तो मिले पारस परस
   मिथ्या अहम् तजकर विहँस
   पा मुक्ति मत नाहक तरस।

३. छोड़ दल-हित, साध जन-हित
   त्याग दल-मत, पूछ जनमत
   छोड़ दुविधा, राज-पथ तज-
   त्याग सुविधा, वरो जन-पथ।

४. छोडो न रण वर लो विजय 
   धरती-गगन-नभ हो अभय
   मतिमान हो इंसान अब-
   भी हो नहीं वीरान अब।
 *********************************************
 (अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, नित, निधि, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मधुभार, मनहरण घनाक्षरी, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हंसी)

chhand salila: manoram chhand -sanjiv

छंद सलिला:
मनोरम छंद
संजीव
*
लक्षण: समपाद मात्रिक छंद, जाति मानव, प्रति चरण मात्रा १४ मात्रा, चरणारंभ गुरु, चरणांत गुरु लघु लघु या लघु गुरु गुरु होता है.  
लक्षण छंद:
हैं भुवन चौदह मनोरम 
आदि गुरु हो तो मिले मग
हो हमेश अंत में अंत भय  

लक्ष्य वर लो बढ़ाओ पग
उदाहरण:
१.
साया भी साथ न देता
   जाया भी साथ न देता
   माया जब मन भरमाती
  
काया कब साथ निभाती

२. सत्य तज मत 'सलिल' भागो
   कर्म कर फल तुम न माँगो
   प्राप्य तुमको खुद मिलेगा
   धर्म सच्चा समझ जागो

३. लो चलो अब तो बचाओ
   देश को दल बेच खाते
   नीति खो नेता सभी मिल
   रिश्वतें ले जोड़ते धन

४. सांसदों तज मोह-माया
   संसदीय परंपरा को 
   आज बदलो, लोक जोड़ो-
   तंत्र को जन हेतु मोड़ो
 *********************************************
 (अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, नित, निधि, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मधुभार, मनहरण घनाक्षरी, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शिव, शुभगति, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हंसी)

बुधवार, 26 मार्च 2014

chhand salila: pratibha chhand -sanjiv

छंद सलिला:
प्रतिभा छंद
संजीव
*
लक्षण: मात्रिक छंद, जाति मानव, प्रति चरण मात्रा १४ मात्रा, चरणारंभ लघु, चरणांत गुरु
लक्षण छंद:
लघु अारंभ सुअंत बड़ा
प्रतिभा ले मनु हुआ खड़ा
कण-कण से संसार गढ़ा
पथ पर पग-पग 'सलिल' बढ़ा
उदाहरण:
१. प्रतिभा की राह न रोको 

   बढ़ते पग बढ़ें, न टोको
   लघु कोशिश अंत बड़ा हो
   निज पग पर व्यक्ति खड़ा हो

२. हमारी आन है हिंदी
   हमारी शान है हिंदी
   बनेगी विश्व भाषा भी
   हमारी जान है हिंदी
३. प्रखर है सूर्य नित श्रम का
   मुखर विश्वास निज मन का
   प्रयासों का लिए मनका
   सतत फेरे- बढ़े तिनका
 *********************************************
 (अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, नित, निधि, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मधुभार, मनहरण घनाक्षरी, मानव, माली, माया, माला, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शिव, शुभगति, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हंसी)

chhand salila: kajjal chhand -sanjiv

छंद सलिला:
कज्जल छंद
संजीव
*
लक्षण: सममात्रिक छंद, जाति मानव, प्रति चरण मात्रा १४ मात्रा, चरणांत लघु-गुरु
लक्षण छंद:
कज्जल कोर निहार मौन,
चौदह रत्न न चाह कौन?
गुरु-लघु अंत रखें समान,
रचिए छंद सरस सुजान
उदाहरण:
१. देव! निहार मेरी ओर,
रखें कर में जीवन-डोर
शांत रहे मन भूल शोर,
नयी आस दे नित्य भोर

२. कोई नहीं तुमसा ईश
तुम्हीं नदीश, तुम्ही गिरीश।
अगनि गगन तुम्हीं पृथीश
मनुज हो सके प्रभु मनीष।
३. करेंगे हिंदी में काम
तभी हो भारत का नाम
तजिए मत लें धैर्य थाम
समय ठीक या रहे वाम
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, नित, निधि, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मधुभार, मनहरण घनाक्षरी, मानव, माली, माया, माला, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शिव, शुभगति, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हंसी)

renu khatod:

 उपलब्धि:रेणु खटोड़

News.jpg दिखाया जा रहा है
उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले में हिंदी माध्यम से शालेय शिक्षा प्राप्त रेणु खटोड़ युनिवर्सिटी ऑफ़ ह्यूस्टन अमेरिका सिस्टम कि चांसलर (कुलपति) पद पर सुशोभित हुई हैं. विश्ववाणी हिंदी को अपनी इस बिटिया पर गर्व है.
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'

samayik kavita: kare faisla kaun? -sanjiv

सामयिक रचना :
करे फैसला कौन?
संजीव
*
मन का भाव बुनावट में निखरा कढ़कर है
जो भीतर से जगा,  कौन उससे बढ़कर है?
करे फैसला कौन?, कौन किससे बढ़कर है??
*जगा जगा दुनिया को हारे खुद सोते ही रहे
गीत नर्मदा के गाये पर खुद ही नहीं बहे
अकथ कहानी चाह-आह की किससे कौन कहे
कर्म चदरिया बुने कबीरा गुपचुप बिना तहे
निज नज़रों में हर कोई सबसे चढ़कर है
जो भीतर से जगा,  कौन उससे बढ़कर है?

करे फैसला कौन?, कौन किससे बढ़कर है??
*
निर्माता-निर्देशक भौंचक कितनी पीर सहे
पात्र पटकथा लिख मनमानी अपने हाथ गहे
मण्डी में मंदी, मानक के पल में मूल्य ढहे
सोच रहा निष्पक्ष भाव जो अपनी आग दहे
माटी माटी से माटी आयी गढ़कर है
जो भीतर से जगा,  कौन उससे बढ़कर है?
करे फैसला कौन?, कौन किससे बढ़कर है??
*

मंगलवार, 25 मार्च 2014

chitragupt rakasya -sanjiv

चित्रगुप्त-रहस्य

संजीव
*
चित्रगुप्त पर ब्रम्ह हैं, ॐ अनाहद नाद
योगी पल-पल ध्यानकर, कर पाते संवाद
निराकार पर ब्रम्ह का, बिन आकार न चित्र
चित्र गुप्त कहते इन्हें, सकल जीव के मित्र
नाद तरंगें संघनित, मिलें आप से आप
सूक्ष्म कणों का रूप ले, सकें शून्य में व्याप
कण जब गहते भार तो, नाम मिले बोसॉन
प्रभु! पदार्थ निर्माण कर, डालें उसमें जान
काया रच निज अंश से, करते प्रभु संप्राण
कहलाते कायस्थ- कर, अंध तिमिर से त्राण
परम आत्म ही आत्म है, कण-कण में जो व्याप्त
परम सत्य सब जानते, वेद वचन यह आप्त
कंकर कंकर में बसे, शंकर कहता लोक
चित्रगुप्त फल कर्म के, दें बिन हर्ष, न शोक
मन मंदिर में रहें प्रभु!, सत्य देव! वे एक
सृष्टि रचें पालें मिटा, सकें अनेकानेक
अगणित हैं ब्रम्हांड, है हर का ब्रम्हा भिन्न
विष्णु पाल शिव नाश कर, होते सदा अभिन्न
चित्रगुप्त के रूप हैं, तीनों- करें न भेद
भिन्न उन्हें जो देखता, तिमिर न सकता भेद
पुत्र पिता का पिता है, सत्य लोक की बात
इसी अर्थ में देव का, रूप हुआ विख्यात
मुख से उपजे विप्र का, आशय उपजा ज्ञान
कहकर देते अन्य को, सदा मनुज विद्वान
भुजा बचाये देह को, जो क्षत्रिय का काम
क्षत्रिय उपजे भुजा से, कहते ग्रन्थ तमाम
उदर पालने के लिये, करे लोक व्यापार
वैश्य उदर से जन्मते, का यह सच्चा सार
पैर वहाँ करते रहे, सकल देह का भार
सेवक उपजे पैर से, कहे सहज संसार
दीन-हीन होता नहीं, तन का कोई भाग
हर हिस्से से कीजिये, 'सलिल' नेह-अनुराग
सकल सृष्टि कायस्थ है, परम सत्य लें जान
चित्रगुप्त का अंश तज, तत्क्षण हो बेजान
आत्म मिले परमात्म से, तभी मिल सके मुक्ति
भोग कर्म-फल मुक्त हों, कैसे खोजें युक्ति?
सत्कर्मों की संहिता, धर्म- अधर्म अकर्म
सदाचार में मुक्ति है, यही धर्म का मर्म
नारायण ही सत्य हैं, माया सृष्टि असत्य
तज असत्य भज सत्य को, धर्म कहे कर कृत्य
किसी रूप में भी भजे, हैं अरूप भगवान्
चित्र गुप्त है सभी का, भ्रमित न हों मतिमान

*

सोमवार, 24 मार्च 2014

khushwant singh on religion


अपना धर्म खुद चुनने की आजादी होनी चाहिए
स्रोतः स्व. खुशवंत सिंह, स्थानः नई दिल्ली
प्रस्तुति: गुड्डो दादी
*
खास दिनों पर व्रत रख लेना है। सेक्स से दूर रहना है। कुछ खास किस्म के खाने और पीने से परहेज करना है। उस हाल में मेरा जवाब ठोस ना में होगा। मेरे ख्याल से इन्हें मान लेने या करने से आप बेहतर शख्स नहीं हो सकते।
महान मनोविज्ञानी सिग्मंड फ्रायड ने ठीक ही कहा था, 'जब आदमी धर्म से मुक्त हो जाता है, तब उसके बेहतर जिंदगी जीने की उम्मीदें बढ़ जाती हैं।' महान गैलीलियो ने कई सदी पहले तकरीबन यही कहा था, 'मैं नहीं मानता कि जो भगवान हमें बुद्धि, तर्क और विवेक देता है, वहीं हमें उन्हें भुला देने को कहेगा।' अब्राहन लिंकन का कहना था, 'जब मैं अच्छा काम करता हूं तो मुझे अच्छा लगता है। जब मैं बुरा काम करता हूं तो बुरा लगता है। यही मेरा धर्म है।' कितना सही कहा है लिंकन ने।
हर किसी को अपना धर्म खुद चुनना चाहिए। सिर्फ इसलिए किसी धर्म को नहीं मान लेना चाहिए क्योंकि उसमें उसका जन्म हुआ है। हम नहीं जानते कि कहां से आए हैं? सो, अपनी रचना के लिए भगवान को मान भी सकते हैं और नहीं भी, लेकिन उसे परम मान लेना या करुणामय मान लेने के पीछे कोई सबूत नहीं है। असल में भूकंप, तूफानों और सुनामी में वह अच्छे और बुरे में फर्क नहीं करता। धार्मिक−अधार्मिक और छोटे−बड़े में कोई भेदभाव नहीं करता। आखिर इन सबको हम भगवान का किया ही मानते हैं न। हम धरती पर क्यों आए? इसका जवाब भी तय नहीं है। हम ज्यादा से ज्यादा यह कर सकते हैं कि अपने सबक सीखते रहें। हम कैसे शांति से रह सकें? कैसे अपनी काबलियत का सही इस्तेमाल कर सकें। कैसे सब लोगों के साथ मिलजुल कर रहा जाए। हम सबके लिए कोई बड़ा काम करने की जरूरत नहीं है। काफी लोग इस तरह की जिंदगी जी रहे हैं। मरने के बाद हमारा क्या होता है? उसके लिए बहुत परेशान होने की जरूरत नहीं है। आखिरकार स्वर्ग, नरक और पुनर्जन्म के बारे में कोई सबूत हमारे पास नहीं है। ये सब लोगों ने ही किया है। शायद खुद को ही बरगलाने के लिए।
मनोहर श्याम जोशी
कुमाऊं की पहाडि़यों में अल्मोड़ा के रास्ते में एक गांव पड़ता है सनौलीधार। बस स्टॉप पर ही एक किराना की दुकान है जिसमें डाकघर भी चलता है। वहीं चायवाला है जो गरमागरम चाय, बिस्कुट और पकोड़ा भी दे देता है। उस गांव की खासियत एक स्कूल है। उसकी शुरुआत तो प्राइमरी से हुई थी, लेकिन धीरे−धीरे वह हाईस्कूल हो गया। वहां हेडमास्टर है जो खुद को प्रिंसिपल कहलाना पसंद करता है। अंग्रेजी टीचर है जो प्रोफेसर कहलाना चाहता है। एक अर्ध चीनी लड़की हे कलावती येन। वह नर्सरी क्लास देखती है। एक संगीत की महिला टीचर है और एक मैनेजर है।
इसी गांव में युवा मनोहर श्याम जोशी आते है। कॉलेज से हाल में पढ़ कर निकले और हिंदी के बड़े लेखक बनने की ओर। वह खुराफाती शख्स हैं। अपने साथियों के सेक्स से जुड़े किस्सों को इधर-उधर करने वाले। उनके सबसे बड़े शिकार बनते हैं खष्टीवल्लभ पंत। अंग्रेजी के टीचर हैं। उन्हें प्रोफेसर टटा कहा जाता है। वह 19 साल की कलावती येन के स्वयंभू गार्जिन हो जाते हैं। वही लड़की लेखक को भी बेहद पसंद है। सो, नजदीक रहने के लिए गणित और विज्ञान वगैरह पढ़ाते रहते हैं।
प्रोफेसर टटा और प्रिंसिपल में लड़ाई चलती रहती है। ज्यादातर लड़ाई अंग्रेजी शब्दों मसलन हैंकी पैंकी, होकस−पोकस और कोइटस इंटरोप्टस पर होती है। उन दोनों के बीच-बचाव बेचारी पॉकेट ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी करती है। वहाँ हमेशा अंग्रेजी के लिए अंग्रेजों की तरह काला कोट और पैंट पहननी जरूरी है। वह खुद टाटा की जगह टटा बोलते हैं, लेकिन दूसरों से बिल्कुल सही उच्चारण चाहते हैं।
मनोहर श्याम जोशी मशहूर लेखक और टीवी सीरियल के प्रोड्यूसर थे। उनका व्यंग्य कमाल का था। उसकी मिसाल आप पेंगुइन वाइकिंग से आई 'टटा प्रोफेसर' में देख सकते हैं। इस किताब के लिए उन्हें इरा पांडे के तौर पर बेहतरीन अनुवादक मिली हैं। अपनी मां उपन्यासकार शिवानी पर उनकी किताब 'दिद्दीः माई मदर्स वॉयस' को क्लासिक माना जाता है। कुमाऊंनी बोली को उन्होंने खुब पकड़ा है। शायद इसलिए वह अनुवाद जैसा नहीं लगता। हिंदुस्तानी व्यंग्य की एक मिसाल है यह किताब।
टिप्पणीः यह आलेख स्व. खुशवंत सिंह के पुरालेखों में से एक है- संपादक

रविवार, 23 मार्च 2014

vigyapan ya thagi ?????????

विज्ञापन या ठगी ??????

1) घोटालों से परेशान ना हों, Tata की चाय पीयें, इससे देश बदल
जाएगा|

2) पानी की जगह Coca Cola और Pepsi पीयें और प्यास बुझायें|

3) Lifebuoy और Dettol 99.9% कीटाणु मारते है पर 0.1 %
पुनः प्रजनन के लिए छोड़ ही देते हैं|

4) महिलाओं को बचाने और बटन खुले होने
की चेतावनी देने का ठेका केवल Akshay Kumar ने लिया है|

5) अगर आप Sprite पीते हैं तो लड़की पटाना आपके बाये हाँथ
का खेल है|

6) Salman Khan के अनुसार
महीने भर का Wheel Detergent ले आओ
और कई किलो सोने के मालिक बन जाओ.
आपको नौकरी करने की कोई जरुरत नहीं|

7) Saif Ali Khan और Kreena Kapoor ने शादी एक दुसरे के सर
का Dandruff देख कर की है|

8)यदि किसी के Toothpaste में नमक है तो; यह पूछने के लिए आप
किसी के भी घर का बाथरूम तोड़ सकते हैं|

9) Samsung Galaxy S3 फोन के
अलावा बाकी सभी फोन बंदरों के लिए बने हैं| केवल यही फ़ोन
इंसानों के लिए है!

10) Mountain Dew पीकर पहाड़ से कूद जाइये, कुछ नहीं होगा|

11) Cadbury Dairy Milk Silk Chocolate खाएं कम और मुंह
पर ज्यादा लगायें|

12) Happident चबाइए और बिजली का कनेक्शन कटवा लीजिये|

13) आपके insurance Agents को अपने पापा से
ज्यादा आपकी फ़िक्र रहती हैं|

14) फलमंडी से ज्यादा फल आपके Shampoo में होते हैं|

15) अपने घर का Toilet सदा साफ़ रखें अन्यथा एक Handsome
सा लड़का Harpic और Camera लेकर आपकेToilet की सफाई
का Live Broadcast
करने लगेगा|

16) अगर आपने घर में Asian Paints किया है तो आप दुनिया के
सबसे Intelligent इन्सान हैं|

17) अगर आपने Lux Cozy Big Shot
नहीं पहनी तो आपको मर्द कहलाने काकोई हक़ नहीं|

18) अगर तुम्हारा बेटा Bournvita
नहीं पीता तो वो मंदबुद्धि हो जायेगा|

शनिवार, 22 मार्च 2014

world sparrow day: Save gauraiyaa



"विश्व गौरैया दिवस" पर विशेष:

चूँ-चूँ करती आयी चिड़िया 

प्रस्तुति: संजीव  

कुछ वर्ष पूर्व तक पहले हमारे घर-आँगन में फुदकनेवाली नन्हीं गौरैया आज विलुप्ति के कगार पर है। इस नन्हें परिंदे को बचाने हेतु २०१० से हर वर्ष 20 मार्च "विश्व गौरैया दिवस" के रूप में मनाया जा रहा है ताकि आम जन गुरैया के संरक्षण के प्रति जागरूक हों। भारत में गौरैया की संख्या घटती ही जा रही है। महानगरों में गौरैया के दर्शन दुर्लभ हैं. वर्ष 2012 में दिल्ली सरकार ने इसे राज्य-पक्षी घोषित कर दिया है।
भारतीय डाक विभाग द्वारा 9 जुलाई, 2010 को गौरैया पर जारी किये गये डाक टिकट का चित्र :-

गौरैया के विनाश के जिम्मेदार हम मानव ही है। इस नन्हें पक्षी की सुरक्षा  की ओर कभी ध्यान नहीं दिया। अब हमें गौरैया को बचाने के लिये हर दिन जतन करना होगा । गौरैया महज एक पक्षी नहीं, हमारे जीवन का अभिन्न अंग भी है। इनकी संगत पाने के लिए छत पर किसी खुली छायादार जगह पर कटोरी या किसी मिट्टी के बर्तन में चावल और साफ़ पानी रखें फिर देखिये हमारा रूठा दोस्त कैसे वापस आता है।

उत्तर भारत में गौरैया को गौरा, चटक, उर्दू में चिड़िया, सिंधी भाषा में झिरकी, भोजपुरी में चिरई तथा बुन्देली में चिरैया कहते हैं। इसे जम्मू-कश्मीर में चेर, पंजाब में चिड़ी, पश्चिम बंगाल में चरूई, ओडिशा (उड़ीसा) में घरचटिया, गुजरात में चकली, महाराष्ट्र में चिमानी,  कर्नाटक में गुब्बाच्ची, आन्ध्र प्रदेश में पिच्चूका तथा केरल-तमिलनाडु में कूरूवी कहा जाता है.

  
गौरेया पासेराडेई परिवार की सदस्य है, कुछ लोग इसे वीवरफिंच परिवार की सदस्य मानते हैं। इनकी लम्बाई 14 से 16 सेंटीमीटर तथा वजन 25 से 32 ग्राम तक होता है। एक समय में इसके कम से कम तीन बच्चे होते है। गौरेया अधिकतर झुंड में ही रहती है। भोजन तलाशने के लिए गौरेया का एक झुंड अधिकतर दो मील की दूरी तय करते हैं। यह पक्षी कूड़े में भी अपना भोजन तलाश लेते है।

रेडिएशन का कुप्रभाव:

विश्व में तेज़ी से दुर्लभ हो रही गौरेया आज संकट ग्रस्त पक्षी है। खुद को परिस्थितियों के अनुकूल ढाल सकनेवाली गौरैया भारत, यूरोप, ब्रिटेन, इटली, फ्रांस, जर्मनी और चेक गणराज्य आदि देशों में भी तेज़ी से लापता हो रही है, नीदरलैंड में गौरैया को "दुर्लभ प्रजाति" वर्ग में रखा गया है।

पर्यावरण मंत्रालय के मुताबिक मोबाइल टावर के रेडिएशन से पक्षियों और मधुमक्खियों पर बहुत ही बुरा असर पड़ रहा है। इसलिए इस मंत्रालय ने टेलिकॉम मिनिस्ट्री को एक सुझाव भेजा है। जिसमे एक किमी के दायरे में दूसरा टावर ना लगाने की अनुमति देने को कहा गया है और साथ ही साथ टावरों की लोकेशन व इससे निकलने वाले रेडिएशन की जानकारी सार्वजनिक करने को भी कहा गया है जिससे इनका रिकॉर्ड रखा जा  सके। इन  पक्षियों  की  प्रजातियों  पर  है सबसे   अधिक खतरा गौरेया, मैना, तोता, कौआ, उच्च हिमालयी प्रवासी पक्षी आदि। मोबाइल टावर के रेडिएशन से मधु- मक्खियों  में कॉलोनी कोलेप्स डिसऑर्डर पैदा हो जाता है। इस  डिसऑर्डर  में  मधुमक्खियाँ  छत्तों  का  रास्ता  भूल जाती है।
रेडिएशन से वन्य जीवों के  हार्मोनल बैलेंस पर  हानिकारक  असर  होता  है  जिन  पक्षियों  में  मैग्नेटिक  सेंस  होता है और जब ये पक्षी विद्युत मैग्नेटिक तरंगों के इलाक़े में आते हैं तो  इन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। रंगों की  ओवरलेपिंग  के कारण पक्षी अपने प्रवास का रास्ता भटक जाते हैं. वैज्ञानिकों  के  मुताबिक  मोबाइल  टावर  के  आसपास  पक्षी  बहुत  ही  कम मिलते हैं। वैज्ञानिको  के  अनुसार  रेडिएशन  से  पशु-पक्षियों  की प्रजनन शक्ति  के साथ-साथ नर्वस  सिस्टम पर विपरीत असर होता है।

कुछ महत्वपूर्ण तथ्य :-
भारत में ४.४ लाख से ज्यादा मोबाइल टावर तथा पक्षियों की १३०१ प्रजातियाँ हैं जिनमें से ४२ लुफ्त होने की कगार पर हैं। भारत में १00 से ज्यादा प्रवासी पक्षी आते हैं। गौरेया(SPARROW) है! आजकल गौरैया महानगरों ही नहीं कस्बों और गाँवों में बिजली के तारों, घास के मैदानोंघर के आँगन में और खिड़कियों पर कम ही दिखती है! भारत सरकार तथा राज्य सरकारों को बाघों(Tigers) और शेरो(Lions) की तरह इन्हें बचाने के लिये आगे आना होगा, आम लोग आँगन, छत या छज्जे पर छायादार स्थान में मध्यम आकार के दीये में चावल के छोटे--छोटे दाने तथा मिटटी के एक बर्तन में पीने  योग्य  पानी  रख दे! गौरैया की घटती संख्या का मुख्य कारण भोजन और जल की कमी, घोसलों के लिये उचित स्थानों की कमी तथा तेज़ी से कटते पेड़-पौधे हैं।
 
हमारे धर्म ग्रंथों के अनुसार पीपल, बरगद, आँवला, बेल, तुलसी, जासौन, धतूरा आदि अनेक पेड़-पौधे  देवता तुल्य है। हमारे पर्यावरण में भी इनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। पीपल-बरगद कभी सीधे अपने बीजो से नही लगते, इनके बीजों को गौरैया खाती है और उसके पाचन तंत्र से होकर बीट (मल) में निकलने पर ही उनका अंकुरण होता है। इसीलिए ये वृक्ष  मंदिरों और खंडहरों के नजदीक अधिक उगते है चूँकि इनके आसपास गौरैया का जमावडा होता है। मोरिशस और मेडागास्कर में पाया जानेवाला पेड़ सी० मेजर लुप्त होने कगार पर है क्योंकि उसे खाकर अपने पाचनतंत्र से गुजरने वाला पक्षी डोडो विलुप्त हो चुका है. यही स्थिति गौरैया और पीपल की हो रही है।
 
गौरैया के बच्चों का भोजन शुरूआती दस-पन्द्रह दिनों में सिर्फ कीड़े-मकोड़े ही होते हैं लेकिन आजकल हम लोग खेतों से लेकर अपने गमले के पेड़-पौधों में भी रासायनिक पदार्थों का उपयोग करते है जिससे पौधों में  कीड़े नहीं लगते तथा अपने भोजन से वंचित हो जाती है.  इसलिए गौरैया समेत दुनिया भर के हजारों पक्षी लगभग विलुप्त हो चुके है या फिर किसी कोने में अपनी अन्तिम सांसे गिन रहे हैं। हम सबको मिलकर गौरैया का संरक्षण करना ही होगा वरना यह भी मॉरीशस के डोडो पक्षी और गिद्ध की तरह पूरी तरह से विलुप्त हो जायेंगे। इसलिए जागिए और बचाइये गौरैया को ताकि बच्चे गा सकें: 'राम जी की चिड़िया, राम जी का खेत. खाओ री चिड़ियों भर-भर पेट' तथा 'चूँ-चूँ करती आयी चिड़िया, दाल का दाना लायी चिड़िया।' 
बाल गीत:

"कितने अच्छे लगते हो तुम "

संजीव वर्मा 'सलिल'
*
कितने अच्छे लगते हो तुम |
बिना जगाये जगते हो तुम ||
नहीं किसी को ठगते हो तुम |
सदा प्रेम में पगते हो तुम ||
दाना-चुग्गा मंगते हो तुम |
चूँ-चूँ-चूँ-चूँ  चुगते हो तुम ||
आलस कैसे तजते हो तुम?
क्या प्रभु को भी भजते हो तुम?
चिड़िया माँ पा नचते हो तुम |
बिल्ली से डर बचते हो तुम ||
क्या माला भी जपते हो तुम?
शीत लगे तो कँपते हो तुम?
सुना न मैंने हँसते  हो तुम |
चूजे भाई! रुचते हो तुम |

***************************
 
__________

सोमवार, 17 मार्च 2014

vyangikayen: -ompraksh tiwari

ऊँ
व्यङ्गिकाएं 
ओमप्रकाश तिवारी
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नरेंद्र मोदी
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गंगा जी में घोलकर टेसू वाला रंग,
सिलबट्टे पर पीसकर असी घाट की भंग।
असी घाट की भंग मिठाई उस पर सोंधी,
आज बनारस बीच कहें सब मोदी - मोदी। 
हर हर बम बम बोल कीजिए मन को चंगा,
बाकी नैया पार करेंगी मैया गंगा। 

एन.डी.तिवारी
--------------
पिचकारी ले हाथ में चाची हैं तैनात, 
तारकोल की बाल्टी है बेटे के हाथ। 
है बेटे के हाथ घात में हैं माँ-बेटा,
बुढ़ऊ को किस भांति जाय इस बार लपेटा। 
छुपे-छुपे हैं घूम रहे श्रीमान तिवारी,
कहीं न जाए छूट उज्ज्वला की पिचकारी। 

ममता बनर्जी- अन्ना
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साड़ी इधर सफेद है कुर्ता उधर सफेद,
शुद्ध-सात्विक प्रेम का यही अनोखा भेद।
यही अनोखा भेद मिल गए बन्नी-बन्ना,
जोड़ी सीता-राम लग रही ममता-अन्ना। 
दुनिया का दुख ओढ़ रह गए आप अनाड़ी,
अब तो दे दो गिफ्ट बनारसवाली साड़ी। 

नीतीश कुमार
-------------
फागुन का रंग देखने आओ चलें बिहार,
जहां बैठकर कुढ़ रहे हैं नीतीश कुमार।
हैं नीतीश कुमार संभाले अपना कुर्ता,
मोदी यहां न आय बना दें अपना भुर्ता।
रहें संभलकर आप गाइए अपनी ही धुन,
जो खुद ही बदरंग करे क्या उसका फागुन। 

राखी सावंत
-----------
बीजेपी दफ्तर गईं जब राखी सावंत,
उन्हें देख फगुवा गए कई संघ के संत। 
कई संघ के संत छोड़कर भगवा चोला,
गावैं अरर कबीर भांग का खाकर गोला। 
छोड़ि चुनावी जंग आपके रंग में बेबी,
रंग न जाए आज यहां पूरी बीजेपी। 

अखिलेश यादव
---------------
होली में हैरान से दिखते हैं अखिलेश,
शायद फिर से खो गई है चच्चू की भैंस।
है चच्चू की भैंस यहां हर हफ्ते खोती,
उनको करके याद बिचारी चाची रोती।
चापलूस की फौज साथ में है हमजोली,
बापू जी नाराज राम निपटाएं होली। 

रामविलास पासवान
-------------------
पीकर बारह साल तक सेक्युलरिज़्म की भांग,
भगवा रंग के हौज में कूदे लगा छलांग।
कूदे लगा छलांग दिलाए जो भी सत्ता,
बोलें रामविलास टेकिए उसको मत्था।
फूले इनकी सांस बिना सत्ता के जीकर,
ग़र सत्ता हो हाथ मस्त ठंडाई पीकर। 

लालू यादव
-----------
चारा खाकर घर पड़े लड़ ना सकें चुनाव,
लालू जी की आज तो दिखे अधर में नाव।
दिखे अधर में नाव आज होली की बेला,
गायब उनके द्वार कार्यकर्ता का मेला। 
भौजी लेकर हाथ खड़ीं गोबर का गारा,
लालू गावै फाग अकेले ही बे-चारा। 

आम आदमी पार्टी
------------------
दिल्लीवाले हाथ में लेकर सूखा रंग,
ढूंढ रहे हैं ‘आप’ को करें उसे बदरंग।
करें उसे बदरंग किया पानी का वादा,
बोलो कहां नहायं आज मिलता ना आधा। 
होली के दिन आज हुए सब पीले-काले,
हैं यमुना की ओर भागते दिल्लीवाले। 

डिनर डिप्लोमेसी
----------------
भोजन करवाएं इन्हें जा फाइव स्टार,
फिर दें इनको दक्षिणा वह भी कई हजार।
वह भी कई हजार अजब हैं अपने नेता,
भर पाएंगे आप अगर ये बने विजेता। 
अगर गरम है जेब कीजिए आप प्रयोजन,
नेता हैं तैयार करेंगे आकर भोजन। 

- ओमप्रकाश तिवारी

रविवार, 16 मार्च 2014

chhand salila: rajiv chhand -sanjiv


छंद सलिला:
होली रंग : छंद के संग 
 
संजीव   
* 
राजीव (माली) छंद
लक्षण: जाति मानव, प्रति चरण मात्रा १८ मात्रा, यति ९ - ९ 
लक्षण छंद:
प्रति चरण मात्रा, अठारह रख लें
नौ-नौ पर रहे, यति यह परख लें
राजीव महके, परिंदा चहके
माली-भ्रमर सँग, तितली निरख लें

उदाहरण:
१. आ गयी होली, खेल हमजोली 
   भीगा दूं चोली, लजा मत भोली

    भरी पिचकारी, यूँ न दे गारी,
    फ़िज़ा है न्यारी, मान जा प्यारी    


    खा रही टोली, भांग की गोली 
    मार मत बोली,व्यंग्य में घोली
   
   
तू नहीं हारी, बिरज की नारी 
    हुलस मतवारी, डरे बनवारी

    पोल क्यों खोली?, लगा ले रोली
    प्रीती कब तोली, लग गले भोली
२. कर नमन हर को, वर उमा वर को
    जीतकर डर को, ले उठा सर को
    साध ले सुर को, छिपा ले गुर को
    बचा ले घर को, दरीचे-दर को
३. सच को न तजिए, श्री राम भजिए
    सदग्रन्थ पढ़िए, मत पंथ तजिए
    पग को निरखिए, पथ भी परखिए
    कोशिशें करिए, मंज़िलें वरिये

(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, नित, निधि, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मधुभार, मनहरण घनाक्षरी, मानव, माली, माया, माला, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शिव, शुभगति, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हंसी)
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'

fguaa geet : bramhani veena

, होली का फगुआ गीत
ब्रह्माणी वीणा

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फगुआ में छाई बहार आली
आई बसंत बहार आली ।
धरती ने ली अंगड़ाई,
मधुर मधुर सपनों में खोई
हरीतिमा का अनुपम श्रंगार
गगन देता धरणी को प्यार,
संग मे बासंती उपहार आली ,
फगुआ में छाई बहार आली,,,,,,,,,,,,,,,,,
कण कण में जगी उमंगें
नव पराग कण नई तरंगें
भौंरे गूँज रहे फूलों पर ,
खिले पलाश , कचनार आली
फगुआ में छाई बहार आल,,,,,,,, ,,,,,,,,,,,
नीले पीले रंग बसंती
उड़े रंग गुलाल मधुमती
कृष्ण राधिका छक छक भीजैं
सब गोपियन के तन मन भीजै
पिचकारी छोड़ें सखियन पर ,
ग्वालन की तकरार आली ,
फगुआ में छाई बहार आली,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
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