सामायिक मुक्तिका :
कहो कौन....
संजीव 'सलिल'
*
कहो कौन नेता है जिसने स्वार्थ-साधना करी नहीं.
सत्ता पाकर सुख-सुविधा की हरी घास नित चरी नहीं..
सरकारी दफ्तर में बैठे बाबू की मनमानी पर
किस अफसर ने अपने हस्ताक्षर की चिड़िया धरी नहीं..
योजनाओं की थाली में रिश्वत की रोटी है लेकिन
जनहित की सब्जी सूखी है, उसमें पाई करी नहीं..
है जिजीविषा अद्भुत अपनी सहे पीठ में लाख़ छुरे
आरक्षण तोड़े समाज को, गहरी खाई भरी नहीं..
विश्वनाथ हों, रामलला हों, या हों नटवर गिरिधारी.
मस्जिद की अजान ने दिल की चोट करी क्या हरी नहीं?
सच है सच, साहस कर सच को समझ-बोलना भी होगा.
समझौतों की राजनीति से सत्य-साधना बरी नहीं..
जनमत की अस्मत पर डाका डाल रहे जनतंत्री ही
किस दल के करतब से आत्मा लोकतन्त्र की मरी नहीं.
घरवाली से ही घर में रौनक होती, सुख-शांति मिले.
'सलिल' न ताक पड़ोसन को, क्या प्रीत भावना खरी नहीं..
काया जो कमनीय न वह हितकर होती है सदा 'सलिल'.
नींव सुदृढ़-स्थूल बनाना, कोमल औ' छरहरी नहीं..
संयम के प्रबलित लोहे पर जंग लोभ-लालच की है.
कल क्या होगा सोच 'सलिल' क्यों होती है झुरझुरी नहीं..
*************************
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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गुरुवार, 21 अक्टूबर 2010
सामायिक मुक्तिका : कहो कौन.... -- संजीव 'सलिल'
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बुधवार, 20 अक्टूबर 2010
दोहा सलिला: सुमन सुरभि सी श्वास संजीव 'सलिल'
दोहा सलिला:
सुमन सुरभि सी श्वास
संजीव 'सलिल'
*
कलियों सा निष्पाप मन, सुमन सुरभि सी श्वास.
वनमाली आशीष में, दे भँवरे सी आस..
रवि-वसुधा के ब्याह में, लाया नभ सौगात.
'सदा सुहागिन' हो वरो, अजर-अमर अहिवात..
सूर्य-धरा के अंक में, खिला चन्द्र सा पूत.
सुतवधु शुभ्रा गोद में, तारक-हार अकूत..
बेलन देवर 'बेल' को, दे बोली: 'ले बेल'.
झुँझला देवर ने कहा: 'भौजी! करो न खेल'..
'दूध-मोगरा' सजन चुप, हँसे देख तकरार.
'सीताफल' देकर कहे, 'मिल, खा, बाँटो प्यार'.
देख 'करेला' जेठ संग, 'नीबू' गुणी हकीम..
'मीठे से मधुमेह हो', बोली सासू 'नीम'.
ननद 'प्याज' से मिल गले, अश्रु भरे ले नैन.
भौजी 'गोभी' ने सुने, 'लाल मिर्च' से बैन..
नन्दोई 'आलू' कहे: 'मत हो व्यर्थ उदास.
तीखापन कम हो अगर, तनिक खिला दो घास..
ठुमक सुता 'चंपा' पुलक, गयी गले से झूम.
हुलसी 'तुलसी' जननि ने, लिया लाड़ से चूम..
दादी 'लौकी' से लिपट, 'बैगन' पौत्र निहाल.
'कद्दू' चच्चा हँस पड़े, ज्यों आया भूचाल..
हँसा 'पपीता' देखकर, जग-जीवन के रंग.'आगी-पानी को रखा, ठीक विधाता संग'..
'स्नेह-साधना से बने, स्वर्गोपम हर गेह'.'पीपल' बब्बा ने कहा, होकर उत्फुल्ल विदेह..
भोले भोले हैं नहीं, लीला करें अनूप.
नाच नचाते सभी को, क्या भिक्षुक क्या भूप?
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सुमन सुरभि सी श्वास
संजीव 'सलिल'
*
कलियों सा निष्पाप मन, सुमन सुरभि सी श्वास.
वनमाली आशीष में, दे भँवरे सी आस..
रवि-वसुधा के ब्याह में, लाया नभ सौगात.
'सदा सुहागिन' हो वरो, अजर-अमर अहिवात..
सूर्य-धरा के अंक में, खिला चन्द्र सा पूत.
सुतवधु शुभ्रा गोद में, तारक-हार अकूत..
बेलन देवर 'बेल' को, दे बोली: 'ले बेल'.
झुँझला देवर ने कहा: 'भौजी! करो न खेल'..
'दूध-मोगरा' सजन चुप, हँसे देख तकरार.
'सीताफल' देकर कहे, 'मिल, खा, बाँटो प्यार'.
देख 'करेला' जेठ संग, 'नीबू' गुणी हकीम..
'मीठे से मधुमेह हो', बोली सासू 'नीम'.
ननद 'प्याज' से मिल गले, अश्रु भरे ले नैन.
भौजी 'गोभी' ने सुने, 'लाल मिर्च' से बैन..
नन्दोई 'आलू' कहे: 'मत हो व्यर्थ उदास.
तीखापन कम हो अगर, तनिक खिला दो घास..
ठुमक सुता 'चंपा' पुलक, गयी गले से झूम.
हुलसी 'तुलसी' जननि ने, लिया लाड़ से चूम..
दादी 'लौकी' से लिपट, 'बैगन' पौत्र निहाल.
'कद्दू' चच्चा हँस पड़े, ज्यों आया भूचाल..
हँसा 'पपीता' देखकर, जग-जीवन के रंग.'आगी-पानी को रखा, ठीक विधाता संग'..
'स्नेह-साधना से बने, स्वर्गोपम हर गेह'.'पीपल' बब्बा ने कहा, होकर उत्फुल्ल विदेह..
भोले भोले हैं नहीं, लीला करें अनूप.
नाच नचाते सभी को, क्या भिक्षुक क्या भूप?
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करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
बाल कविता: कोयल-बुलबुल की बातचीत --- संजीव 'सलिल'
बाल कविता:
कोयल-बुलबुल की बातचीत
संजीव 'सलिल'
*
कुहुक-कुहुक कोयल कहे: 'बोलो मीठे बोल'.
चहक-चहक बुलबुल कहे: 'बोल न, पहले तोल'..
यह बोली: 'प्रिय सत्य कह, कड़वी बात न बोल'.
वह बोली: 'जो बोलना उसमें मिसरी घोल'.
इसका मत: 'रख बात में कभी न अपनी झोल'.
उसका मत: 'निज गुणों का कभी न पीटो ढोल'..
इसके डैने कर रहे नभ में तैर किलोल.
वह फुदके टहनियों पर, कहे: 'कहाँ भू गोल?'..
यह पूछे: 'मानव न क्यों करता सच का मोल.
वह डांटे: 'कुछ काम कर, 'सलिल' न नाहक डोल'..
***************
कोयल-बुलबुल की बातचीत
संजीव 'सलिल'
*
कुहुक-कुहुक कोयल कहे: 'बोलो मीठे बोल'.
चहक-चहक बुलबुल कहे: 'बोल न, पहले तोल'..
यह बोली: 'प्रिय सत्य कह, कड़वी बात न बोल'.
इसका मत: 'रख बात में कभी न अपनी झोल'.
उसका मत: 'निज गुणों का कभी न पीटो ढोल'..
इसके डैने कर रहे नभ में तैर किलोल.
वह फुदके टहनियों पर, कहे: 'कहाँ भू गोल?'..
यह पूछे: 'मानव न क्यों करता सच का मोल.
वह डांटे: 'कुछ काम कर, 'सलिल' न नाहक डोल'..
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हिंदी शब्द सलिला : १३ अख से प्रारंभ शब्द : -- संजीव 'सलिल'
*
संकेत : अ.-अव्यय, अर. अरबी, अक्रि.-अकर्मक क्रिया, अप्र.-अप्रचलित, अर्थ.-अर्थशास्त्र, अलं.- अलंकार, अल्प-अल्प (लघुरूप) सूचक, आ.-आधुनिक, आयु.-आयुर्वेद, इ.-इत्यादि, इब.-इबरानी, उ. -उर्दू, उदा.-उदाहरण, उप.-उपसर्ग, उपनि.-उपनिषद, अं.-अंगिका, अंक.-अंकगणित, इ.-इंग्लिश/अंगरेजी, का.-कानून, काम.-कामशास्त्र, क्व.-क्वचित, ग.-गणित, गी.-गीता, गीता.-गीतावली, तुलसी-कृत, ग्रा.-ग्राम्य, ग्री.-ग्रीक., चि.-चित्रकला, छ.-छतीसगढ़ी, छं.-छंद, ज.-जर्मन, जै.-जैन साहित्य, ज्या.-ज्यामिति, ज्यो.-ज्योतिष, तं.-तंत्रशास्त्र, ति.-तिब्बती, तिर.-तिरस्कारसूचक, दे.-देशज, देव.-देवनागरी, ना.-नाटक, न्या.-न्याय, पा.-पाली, पारा.- पाराशर संहिता, पु.-पुराण, पुल.-पुल्लिंग, पुर्त. पुर्तगाली, पुरा.-पुरातत्व, प्र.-प्रत्यय, प्रा.-प्राचीन, प्राक.-प्राकृत, फा.-फ़ारसी, फ्रे.-फ्रेंच, ब.-बघेली, बर.-बर्मी, बहु.-बहुवचन, बि.-बिहारी, बुं.-बुन्देलखंडी, बृ.-बृहत्संहिता, बृज.-बृजभाषा बो.-बोलचाल, बौ.-बौद्ध, बं.-बांग्ला/बंगाली, भाग.-भागवत/श्रीमद्भागवत, भूक्रि.-भूतकालिक क्रिया, मनु.-मनुस्मृति, महा.-महाभारत, मी.-मीमांसा, मु.-मुसलमान/नी, मुहा. -मुहावरा, यू.-यूनानी, यूरो.-यूरोपीय, योग.योगशास्त्र, रा.-रामचन्द्रिका, केशवदास-कृत, राम.- रामचरितमानस-तुलसीकृत, रामा.- वाल्मीकि रामायण, रा.-पृथ्वीराज रासो, ला.-लाक्षणिक, लै.-लैटिन, लो.-लोकमान्य/लोक में प्रचलित, वा.-वाक्य, वि.-विशेषण, विद.-विदुरनीति, विद्या.-विद्यापति, वे.-वेदान्त, वै.-वैदिक, व्यं.-व्यंग्य, व्या.-व्याकरण, शुक्र.-शुक्रनीति, सं.-संस्कृत/संज्ञा, सक्रि.-सकर्मक क्रिया, सर्व.-सर्वनाम, सा.-साहित्य/साहित्यिक, सां.-सांस्कृतिक, सू.-सूफीमत, स्त्री.-स्त्रीलिंग, स्मृ.-स्मृतिग्रन्थ, ह.-हरिवंश पुराण, हिं.-हिंदी.
अख से प्रारंभ शब्द :
संजीव 'सलिल'
*अखंग - वि. न चुकनेवाला.
अखंड - वि. सं. संपूर्ण, अविकल, पूरा, अटूट, निर्बाध, बाधारहित, जिसका सिलसिला न टूटे. -द्वादशी- स्त्री. मार्गशीर्ष शुक्ला द्वादशी. -पाठ- आदि से अंत तक बिना रुके चलने वाला पाठ. -सौभाग्य- पु. स्त्री के जीवनांत तक पति का जीवित रहना, सधवा, विधवा न होना.
अखंडन - वि. सं. अखंडित, अखंडनीय, समूचा. पु. परमात्मा, काल,समय, स्वीकार, खंडन न करना.
अखंडनीय - वि. सं. जिसका खंडन न किया जा सके, सुदृढ़, अविभाज्य.
अखंडल - वि. अखंड, संपूर्ण. पु. आखण्डल, इंद्र.
अखंडित - वि. सं. अखंड, अटूट, अबाधित, जिसका खंडन न हुआ हो.
अखगरिया - पु. एक तरह का दोष (एब) युक्त घोड़ा.
अखज - वि. अखाद्य, न खाने योग्य, अभक्षणीय, अभोजनीय.
अखट्ट - पु. सं. प्रियाल वृक्ष.
अखट्टि - स्त्री. सं. बाल-कल्पना, असद्व्यवहार.
अखड़ा - पु. दे. ताल के बीच का गड्ढा, जो खड़ा न हो, बैठा / लेटा.
अखड़ैत - पु. पहलवान, मल्ल.
अखती - स्त्री. दे. देखें, अखतीज.
अखतीज - स्त्री. अक्षय तृतीया.
अखनी - स्त्री. यखनी, शोरबा, तरल मसाला, करी इं.
अखबार - पु. अर. खबर का बहुवचन, कई समाचार, समाचारों, समाचार पत्र, न्यूज पेपर इं. -नवीस- अखबार लिखनेवाला, पत्रकार, -नवीसी- स्त्री. पत्रकारी, पत्रकारिता, जर्नलिज्म इं.
अखबारी - वि. समाचार पत्र संबंधी, समाचार पत्र में छपी.
अखय - वि., दे., देखें अक्षय.
अखर - पु., दे., देखें अक्षर.
अखरना - अक्रि., खलना, बुरा लगना, काठी / कष्टप्रद अनुभव होना.
अखरा - पु., बिना कुटे जौ का आटा, अक्षर. वि. जो खरा (सच्चा) न हो, खोता / झूठा.
अखरावट - स्त्री. वर्णमाला, अक्षर क्रम, अल्फाबेट्स इं. अक्षरक्रम के अनुसार पद्य समूह, आद्याक्षरी काव्य, मालिक मुहम्मद जायसी रचित एक लघु ग्रंथ.
अखरावटी- स्त्री. अखरावट में निहित.
अखरोट - एक मेवा, अखरोट का पेड़. -जंगली- पु. जायफल.
अखर्व - वि. सं. जो छोटा या ठिगना न हो, बड़ा, लंबा, दीर्घ, महत.
अखर्वा - स्त्री. सं. एक पौधा.
अख़लाक़ - पु. अर./ वि. शिष्ट / ता, शालीन / ता, सौजन्य / ता, सदाचार / रिता.
अखाड़ा - पु. कुश्ती लड़ने या कसरत करने का स्थान, व्यायामशाला, दंगल, जिम इं., सांप्रदायिक साधुओं की मंडली, साधुओं के रहने का स्थान, मठ, करतब दिखाने या गाने-बजानेवालों की जमात, सभा, दरबार, अड्डा, जमघट, आँगन, -इन्दर का अखाड़ा- नृत्यशाला, रंगशाला. मुहा. -गरम होना- अधिक भीड़ होना. -जमना- खिलाड़ियों व दर्शकों का अखाड़े में जमा होना, भीड़ जुटाना, अनेक व्यक्ति एकत्र होना, -अखाड़े का जवान- कसरती शरीर का व्यक्ति, स्वस्थ्य व्यक्ति, -अखाड़े में आना / उतरना- चुनौती देना, मुकाबले में उतरना, लड़ने के लिए तैयार होना, ललकारना.
अखाड़िया - वि. दंगली, पहलवान, मल्ल, अन्य मल्लों को पछाड़नेवाला, रेस्ट्लर इं.
अखात - पु. सं. प्राकृतिक झील, ताल, खाड़ी.
अखाद्य - वि. सं. अखाद्य, न खाने योग्य, अभक्षणीय, अभक्ष्य, अभोजनीय.
अखानी - स्त्री. कृषि में देंवरी के समय डंठल एकत्र करने का औजार.
अखार - पु. कुम्हार द्वारा मिट्टी का सामान बनाने के लिए चके / चाक पर रखा जानेवाला मिट्टी का लोंदा (चिकनी मिट्टी के महीन चूर्ण को पानी में सानकर बने गया गोला).
अखारा - पु. दे. देखें अखाड़ा.
अखिन्न - वि ,खेदरहित, क्लेशरहित, अक्लांत, प्रसन्न.
अखिल - वि. सं. सकल, सब, समस्त, संपूर्ण, सारा, कृषि-योग्य / कृष्ट भूमि.
अखिला - वि. अविकसित, अप्रसन्न, मुर्झाया.
अखिलात्मा /त्मन - पु. सं. ईश्वर, चित्रगुप्त, परमात्मा, विश्वात्मा.
अखिलेश - पु. सं. चित्रगुप्त, परमेश्वर, सबका स्वामी.
अखीन - वि. अक्षीण, न छीजनेवाला, अविनाशी.
अखीर - पु. अर. अंत, समाप्ति, खात्मा उ., एंड इं.
अखीरी - वि. अखीरका, अंतिम, आख़िरी, ईश्वरी.
अखुटित - लगातार, निरंतर, बराबर, सतत.
अखूट - वि. अखंड, जो खंडित / क्षतिग्रस्त न हो, जो घटे नहीं, अक्षय, अक्षर, अत्यधिक, अविनाशी, अनंत.
अखेट - पु. देखें आखेट.
अखेटक - पु. देखें आखेटक.
अखेटिक - पु. सं. वृक्ष, वह कुत्ता जिसे शिकार का पीछा करना सिखाया गया हो, शिकारी कुत्ता.
अखेद - पु. सं. दुःख / खेद का अभाव, प्रसन्नता, खुशी, हर्ष. वि. प्रसन्न, खुश, हर्षित, दुःखरहित. अ.प्रसन्नता / हर्ष पूर्वक / सहित.
अखेदी / दिन - वि. सं. अक्लांत, जो थका न हो, स्त्री. अखेदिनी.
अखेलत - जो खेलता न हो, अचंचल, स्थिर, आलस्ययुक्त.
अखै - वि. देखें अक्षय. -बट-, -वट-, -बर-, -वर- अक्षय वट.
अखैनी - स्त्री. सुखाने के लिये डंठल उलटने की लग्गी.
अखोर - वि. निकम्मा, बेकाम, तुच्छ, पु. बेकार वस्तु, कूड़ा-करकट, ख़राब घास, कचरा.
अखोला - पु. अंकोल वृक्ष.
अखोह - पु. ऊबड़-खाबड़ / बंजर / अनूपजाऊ भूमि.
अखौट / अखौटा - चक्की / जाँते की किल्ली, गडारी का डंडा.
अख्खाह - अ. अर. आश्चर्यसूचक उद्गार, बहुत खूब.
अख्ज - पु. अर. ग्रहण करने / लेने / पकड़ने / स्वीकारने का भाव. मुहा.-करना-ग्रहण करना, नतीजा निकालना, बूझना, बात से बात निकलना.
अख्तर - पु. अर. तरा, झंडा,-शुमार- पु. ज्योतिषी.-शुमारी-स्त्री. जन्मपत्री / कुण्डली बनाना, बेकरारी से / जागते हुए रात काटना. मुहा.-चमकना- नसीब जागना, भाग्योदय.
अख्तियार - पु. देखें इख्तियार.
अख्यात - वि. सं. अप्रसिद्ध, अप्रतिष्ठित, अविदित.
अख्यान - पु. देखें आख्यान.
अख्यायिका - स्त्री. देखें आख्यायिका.
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काव्यानुवाद : श्री आदि शंकराचार्य विरचित ॐ निर्वाण षडकम ----मृदुल कीर्ति जी
ॐ
निर्वाण षड्कम
(श्री आदि शंकराचार्य द्वारा विरचित)
हिन्दी काव्यानुवाद : मृदुल कीर्ति जी
*
मैं मन, बुद्धि, न चित्त अहंता, ना मैं धरनि न व्योम अनंता.
मैं जिव्हा ना, श्रोत, न वयना, न ही नासिका ना मैं नयना.
मैं ना अनिल , न अनल सरूपा, मैं तो ब्रह्म रूप, तदरूपा .
चिदानंदमय ब्रह्म सरूपा , मैं शिव-रूपा, मैं शिव-रूपा ------------१
ना गतिशील, न प्राण आधारा, न मैं वायु पांच प्रकारा.
सप्त धातु, पद, पाणि न संगा, अन्तरंग न ही पाँचों अंगा.
पंचकोष ना , वाणी रूपा , मैं तो ब्रह्म रूप, तदरूपा
चिदानंदमय ब्रह्म सरूपा, मैं शिव-रूपा, मैं शिव-रूपा --------------२
ना मैं राग, न द्वेष, न नेहा, ना मैं लोभ, मोह, मन मोहा.
मद-मत्सर ना अहम् विकारा, ना मैं, ना मेरो ममकारा
काम, धर्म, धन मोक्ष न रूपा, मैं तो ब्रह्म रूप तदरूपा,
चिदानंदमय ब्रह्म सरूपा, मैं शिव-रूपा, मैं शिव-रूपा.--------------३
ना मैं पुण्य न पाप न कोई, ना मैं सुख-दुःख जड़ता जोई.
ना मैं तीर्थ, मन्त्र, श्रुति, यज्ञाः, ब्रह्म लीन मैं ब्रह्म की प्रज्ञा.
भोक्ता, भोजन, भोज्य न रूपा, मैं तो ब्रह्म रूप तदरूपा.
चिदानंदमय ब्रह्म सरूपा, मैं शिव-रूपा, मैं शिव रूपा.----------------४
ना मैं मरण भीत भय भीता, ना मैं जनम लेत ना जीता.
मैं पितु, मातु, गुरु, ना मीता. ना मैं जाति-भेद कहूँ कीता.
ना मैं मित्र बन्धु अपि रूपा, मैं तो ब्रह्म रूप तदरूपा.
चिदानंदमय ब्रह्म सरूपा, मैं शिव-रूपा, मैं शिव-रूपा.---------------५
निर्विकल्प आकार विहीना, मुक्ति, बंध- बंधन सों हीना.
मैं तो परमब्रह्म अविनाशी, परे, परात्पर परम प्रकाशी.
व्यापक विभु मैं ब्रह्म अरूपा, मैं तो ब्रह्म रूप तदरूपा.
चिदानंदमय ब्रह्म सरूपा, मैं शिव-रूपा, मैं शिव-रूपा.---------------६
****************************************
निर्वाण षड्कम
(श्री आदि शंकराचार्य द्वारा विरचित)
हिन्दी काव्यानुवाद : मृदुल कीर्ति जी
*
मैं मन, बुद्धि, न चित्त अहंता, ना मैं धरनि न व्योम अनंता.
मैं जिव्हा ना, श्रोत, न वयना, न ही नासिका ना मैं नयना.
मैं ना अनिल , न अनल सरूपा, मैं तो ब्रह्म रूप, तदरूपा .
चिदानंदमय ब्रह्म सरूपा , मैं शिव-रूपा, मैं शिव-रूपा ------------१
ना गतिशील, न प्राण आधारा, न मैं वायु पांच प्रकारा.
सप्त धातु, पद, पाणि न संगा, अन्तरंग न ही पाँचों अंगा.
पंचकोष ना , वाणी रूपा , मैं तो ब्रह्म रूप, तदरूपा
चिदानंदमय ब्रह्म सरूपा, मैं शिव-रूपा, मैं शिव-रूपा --------------२
ना मैं राग, न द्वेष, न नेहा, ना मैं लोभ, मोह, मन मोहा.
मद-मत्सर ना अहम् विकारा, ना मैं, ना मेरो ममकारा
काम, धर्म, धन मोक्ष न रूपा, मैं तो ब्रह्म रूप तदरूपा,
चिदानंदमय ब्रह्म सरूपा, मैं शिव-रूपा, मैं शिव-रूपा.--------------३
ना मैं पुण्य न पाप न कोई, ना मैं सुख-दुःख जड़ता जोई.
ना मैं तीर्थ, मन्त्र, श्रुति, यज्ञाः, ब्रह्म लीन मैं ब्रह्म की प्रज्ञा.
भोक्ता, भोजन, भोज्य न रूपा, मैं तो ब्रह्म रूप तदरूपा.
चिदानंदमय ब्रह्म सरूपा, मैं शिव-रूपा, मैं शिव रूपा.----------------४
ना मैं मरण भीत भय भीता, ना मैं जनम लेत ना जीता.
मैं पितु, मातु, गुरु, ना मीता. ना मैं जाति-भेद कहूँ कीता.
ना मैं मित्र बन्धु अपि रूपा, मैं तो ब्रह्म रूप तदरूपा.
चिदानंदमय ब्रह्म सरूपा, मैं शिव-रूपा, मैं शिव-रूपा.---------------५
निर्विकल्प आकार विहीना, मुक्ति, बंध- बंधन सों हीना.
मैं तो परमब्रह्म अविनाशी, परे, परात्पर परम प्रकाशी.
व्यापक विभु मैं ब्रह्म अरूपा, मैं तो ब्रह्म रूप तदरूपा.
चिदानंदमय ब्रह्म सरूपा, मैं शिव-रूपा, मैं शिव-रूपा.---------------६
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nirvaan shadkam
मंगलवार, 19 अक्टूबर 2010
हिंदी शब्द सलिला : १२ अ से प्रारंभ शब्द : १२ --- संजीव 'सलिल'
*
संकेत : अ.-अव्यय, अर. अरबी, अक्रि.-अकर्मक क्रिया, अप्र.-अप्रचलित, अर्थ.-अर्थशास्त्र, अलं.- अलंकार, अल्प-अल्प (लघुरूप) सूचक, आ.-आधुनिक, आयु.-आयुर्वेद, इ.-इत्यादि, इब.-इबरानी, उ. -उर्दू, उदा.-उदाहरण, उप.-उपसर्ग, उपनि.-उपनिषद, अं.-अंगिका, अंक.-अंकगणित, इ.-इंग्लिश/अंगरेजी, का.-कानून, काम.-कामशास्त्र, क्व.-क्वचित, ग.-गणित, गी.-गीता, गीता.-गीतावली, तुलसी-कृत, ग्रा.-ग्राम्य, ग्री.-ग्रीक., चि.-चित्रकला, छ.-छतीसगढ़ी, छं.-छंद, ज.-जर्मन, जै.-जैन साहित्य, ज्या.-ज्यामिति, ज्यो.-ज्योतिष, तं.-तंत्रशास्त्र, ति.-तिब्बती, तिर.-तिरस्कारसूचक, दे.-देशज, देव.-देवनागरी, ना.-नाटक, न्या.-न्याय, पा.-पाली, पारा.- पाराशर संहिता, पु.-पुराण, पुल.-पुल्लिंग, पुर्त. पुर्तगाली, पुरा.-पुरातत्व, प्र.-प्रत्यय, प्रा.-प्राचीन, प्राक.-प्राकृत, फा.-फ़ारसी, फ्रे.-फ्रेंच, ब.-बघेली, बर.-बर्मी, बहु.-बहुवचन, बि.-बिहारी, बुं.-बुन्देलखंडी, बृ.-बृहत्संहिता, बृज.-बृजभाषा बो.-बोलचाल, बौ.-बौद्ध, बं.-बांग्ला/बंगाली, भाग.-भागवत/श्रीमद्भागवत, भूक्रि.-भूतकालिक क्रिया, मनु.-मनुस्मृति, महा.-महाभारत, मी.-मीमांसा, मु.-मुसलमान/नी, मुहा. -मुहावरा, यू.-यूनानी, यूरो.-यूरोपीय, योग.योगशास्त्र, रा.-रामचन्द्रिका, केशवदास-कृत, राम.- रामचरितमानस-तुलसीकृत, रामा.- वाल्मीकि रामायण, रा.-पृथ्वीराज रासो, ला.-लाक्षणिक, लै.-लैटिन, लो.-लोकमान्य/लोक में प्रचलित, वा.-वाक्य, वि.-विशेषण, विद.-विदुरनीति, विद्या.-विद्यापति, वे.-वेदान्त, वै.-वैदिक, व्यं.-व्यंग्य, व्या.-व्याकरण, शुक्र.-शुक्रनीति, सं.-संस्कृत/संज्ञा, सक्रि.-सकर्मक क्रिया, सर्व.-सर्वनाम, सा.-साहित्य/साहित्यिक, सां.-सांस्कृतिक, सू.-सूफीमत, स्त्री.-स्त्रीलिंग, स्मृ.-स्मृतिग्रन्थ, ह.-हरिवंश पुराण, हिं.-हिंदी.
अ से प्रारंभ शब्द : १२
संजीव 'सलिल'
*
अक्षया - स्त्री. सं. पुण्यतिथि विशेष.अक्षयिणी - वि. स्त्री. सं. देखें अक्षयी, स्त्री. पार्वती.
अक्षयी / यिन - वि. सं. जिसका क्षय / नाश न हो, अविनाशी.
अक्षय्य - वि. सं. क्षय न होने योग्य, कभी न चुकनेवाला, -नवमी- स्त्री. कार्तिक शुक्ल नवमी.
अक्षय्योदक - पु. सं. श्राद्ध में पिंडदान के बाद दिया जानेवाला जल, मधु और तिल का अर्ध्य.
अक्षर - वि. सं. अविनाशी, अपरिवर्तनशील, अच्युत, नित्य, अक्षय. पु. वर्ण, हर्फ़ उ., स्वर, शब्द, चित्रगुप्त, ब्रम्हा, आत्मा, शिव, विष्णु, खड्ग, आकाश, मोक्ष, तपस्या, जल, अपामार्ग. -गणित- पु. बीजगणित. -चंचु / चण / चन / चुंचु- पु. सुलेखक. -च्युतक- एक खेल. -जननी- स्त्री. लेखनी. - जीवक / जीविक, जीवी / जीविन- पु. लिखने का व्यवसाय करनेवाला, मुंशी, लेखक. -ज्ञान- पु. लिख-पढ़ लेने की योग्यता, साक्षरता, -तूलिक- स्त्री., लेखनी. -धाम- पु. ब्रम्ह्लोक, मोक्ष. -न्यास- पु. लिखावट, तन्त्र की एक क्रिया. -पंक्ति- स्त्री., एक वैदिक वृत्त. -पूजक- वि. धार्मिक पुस्तकों में लिखी बातों का अक्षरशः पालन करनेवाला. -बंध- पु. एक वर्णवृत्त. -माला- स्त्री. स्त्री. वर्णमाला, अल्फाबेट्स इं., हरूफ उ. -मुख- पु. विद्यार्थी, छात्र, विद्वान्. 'अ' अक्षर, वि. अक्षर सीखनेवाला, -मुष्टिका- स्त्री. उँगलियों के संकेत द्वारा बोलना, -वर्जित / शत्रु- व-. अपढ़, निरक्षर. -विन्यास- पु. वर्णविन्यास, हिज्जे उ., स्पेलिंग इं., लिपि, स्क्रिप्ट इं., -वृत्त- वर्णवृत्त, -संस्थापन- पु. लिपि, लिखे हुए अक्षर, -समाम्नाय- पु. वर्णमाला, मु. -घोंटना- अक्षर लिखने का अभ्यास करना, -से भेंट न होना- अपढ़ होना, मुहा. -काला अक्षर भैंस बराबर- अक्षर ज्ञान न होना.
अक्षरशः - अ. सं. एक-एक अक्षर, हर्फ़-ब-हर्फ़ उ., सोलहों आने, हू-ब-हू, यथावत, जैसे का तैसा.
अक्षरांग - पु. सं. लिपि, लेखन सामग्री, स्टेशनरी इं.
अक्षरा - स्त्री. सं. शब्द, भाषा, देखें अक्षर.
अक्षराक्षर - पु. सं. एक प्रकार की समाधि.
अक्षरारंभ - पु. सं. एक संस्कार कुल १६, पट्टी पूजन, पहले-पहल अक्षर ज्ञान कराना, विद्यारम्भ.
अक्षरार्थ - पु. सं. शब्दार्थ, संकुचित अर्थ.
अक्षरी - स्त्री. सं. वर्ष ऋतु, वर्तनी, हिज्जे, स्पेलिंग इं.
अक्षरौटी - स्त्री. सं. वर्णमाला, लिपि का ढंग, लिखने का तरीका, सितार पर बोल निकलने की क्रिया.
अक्षर्य - वि. सं. अक्षर संबंधी, पु. एक साम.
अक्षान्ति - स्त्री. सं. ईर्ष्या, अधीरता, असहिष्णुता.
अक्षांश - पु. सं. भूमध्य रेखा से उत्तर या दक्षिण का अंतर, पृथ्वी की सतह पर स्थित बिंदु की भू केंद्र पर नापी गयी कोणीय दूरी, जबकि यह दूरी विषुवत रेखा से उत्तर या दक्षिण को ली जाती है. विषुवत रेखा पर स्थित सभी स्थलों का अक्षांश शून्य अंश / डिग्री है, ज्यों-ज्यों उत्तर या दक्षिण की ओर हटते हैं त्यों-त्यों अक्षां बढ़कर अंततः ध्रुवों पर ९० अंश हो जाता है.
अक्षाग्र - पु. सं. धुर, धुरे का छोर. -कील- स्त्री. / कीलन पु.- चक्र्रोध के लिये लगाई जानेवाली खूंटी, लट्ठे और जुए को जोड़नेवाली खूंटी.
अक्षार - वि. सं. क्षाररहित, -लवण- पु. खाररहित प्राकृतिक नमक, नमकरहित हविष्यान्न.
अक्षावाप - पु. सं. जारी. जुआ खेलनेवाला.
अक्षि - स्त्री. सं. आँख, २ / दो संख्या, -कंप- पु. पलक झपकाना, आँख मारना. -कूट / कूटक- पु. आँख की पुतली, नेत्र-गोलक. -गत- वि. दृष्ट, देखा हुआ, विद्यमान, द्वेष्य. -गोलक- आँख की पुतली. -तारक / तारा- आँख का तारा, लाड़ला, अति प्यारा, -निमेश- पु. पल, क्षण. -पक्ष्म / न- पु.बरौनी, भौंह. -पटल- पु. आँख का पर्दा, आँख की पुतली के पीछे की झिल्ली. -भू- वि. दृश्य, सत्य, यथार्थ. -भेषज- पट्टिकालोध्र, आँख पर पट्टी रखना / बाँधना. -लोम / न- पु. बरौनी, भौंह. -विकूणित / विकूशित / विक्षेप - पु. कटाक्ष, चितवन, तिरछी नजर उ., यथार्थ.
अक्षिक / अक्षीक - पु. सं. वृक्ष विशेष, रंजन वृक्ष.
अक्षित - वि. सं. जिसका क्षय न हुआ हो, न छीजने / कम होने / घटने वाला, जिसे चोट न लगी हो, पु. जल, दस लाख की संख्या, मिलियन इं., -वसु- पु. इंद्र, सहस्त्रलोचन.
अक्षितर - पु. सं. जल.
अक्षिब / अक्षिव - पु.. सं. देखें अक्षीब.
अक्षीण - वि. सं. क्षीण / नष्ट न होनेवाला, अनश्वर.
अक्षीब - पु. सं. सहिजन, समुद्र-लवण. वि. अमत्त.
अक्षीय - वि. अक्ष /धुरी संबंधी, एक्सिअल इं.
अक्षीव - पु. सं. देखें अक्षीब.
अक्षुण / akshunna - वि सं. अखंडित, अभग्न, अभंग, अन्यून, अपराजित, कुशल.
अक्षुद्र - वि. सं. जो नीच / छोटा / तुच्छ न हो, पु. शिव.
अक्षुध्य - वि. सं. भूख नष्ट करने / मिटाने वाला, जिसे भूख न लगती हो.
अक्षुब्ध - वि. सं. क्षोभरहित, अनुत्तेजित, शांत.
अक्षेत्र - वि. सं. क्षेत्ररहित, कृषि के अयोग्य, अनुपजाऊ / परती / बंजर. पु. बुरी / ख़राब जमीन, ज्यामिती का अशुद्ध चित्र, मंदबुद्धि छात्र. -ज्ञ / विद- आध्यात्मिक ज्ञान से शून्य, जिसे शरीर की प्रकृति का ज्ञान न हो.
अक्षेत्री / त्रिन - वि. जिसके पास खेत / कृषि-भूमि न हो.
अक्षोट - पु. सं. पर्वतीय पीलू वृक्ष, अखरोट का पेड़.
अक्षोड / अक्षोडक - पु. सं. देखें अक्षोट.
अक्षोधुक - वि. सं. जो भूखा न हो.
अक्षोनि - स्त्री. देखें अक्षौहिणी.
अक्षोभ - पु. सं. क्षोभ / विकार का अभाव, शांति, हाथी बांधने का खूंटा. वि. शांत, धीर, अविचलित, शिव.
अक्षोभ्य - वि. सं. धीर, गंभीर, अशांत न होनेवाला, पु. वृद्ध, एक बड़ी संख्या, -कवच- पु. एक तंत्रोक्त कवच.
अक्षौहिणी - स्त्री. सं. चतुरंगिणी सेना का एक परिमाण या विभाग, (१.०९,३५० पैदल, ६५,६१० घोड़े, २१,८७० रथ और इतने ही हाथी).
अक्ष्ण - वि. सं. अखंड. पु. समय, काल.
अक्स - पु. अ. परछाईं, छाया, चित्र, तस्वीर उ., फोटो इं., मुहा. -उतारना- हू-ब-हू नकल करना, जैसा का तैसा बनाना, फोटो खींचना. -छाना- रंग हल्का / फीका पड़ जाना / उतर जाना. -लेना- तस्वीर पर पतला झिल्ली कागज रखकर खाका उतारना.
अक्सर - अ. देखें अकसर, प्रायः, बहुधा, एकाकी.
अक्सी - वि. छाया संबंधी, अक्स के जरिये लिया जानेवाला चित्र, फोटोग्राफ. -तसवीर- स्त्री. फोटो, छायाचित्र. -- क्रमशः
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करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
लेख : मुक्तिका क्या है? --संजीव 'सलिल'
लेख : मुक्तिका क्या है?
संजीव 'सलिल'
*
- मुक्तिका वह पद्य रचना है जिसका-
१. प्रथम, द्वितीय तथा उसके बाद हर सम या दूसरा पद पदांत तथा तुकांत युक्त होता है.
२. हर पद का पदभार हिंदी मात्रा गणना के अनुसार समान होता है. यह मात्रिक छन्द में निबद्ध पद्य रचना है.
३. मुक्तिका का कोई एक या कुछ निश्चित छंद नहीं हैं. इसे जिस छंद में रचा जाता है उसके शैल्पिक नियमों का पालन किया जाता है.
४.हाइकु मुक्तिका में हाइकु के सामान्यतः प्रचलित ५-७-५ मात्राओं के शिल्प का पालन किया जाता है, दोहा मुक्तिका में दोहा, सोरठा मुक्तिका में सोरठा, रोला मुक्तिका में रोला छंदों के नियमों का पालन किया जाता है.
५. मुक्तिका का प्रधान लक्षण यह है कि उसकी हर द्विपदी अलग-भाव-भूमि या विषय से सम्बद्ध होती है अर्थात अपने आपमें मुक्त होती है. एक द्विपदी का अन्य द्विपदीयों से सामान्यतः कोई सम्बन्ध नहीं होता.
६. किसी विषय विशेष पर केन्द्रित मुक्तिका की द्विपदियाँ केन्द्रीय विषय के आस-पास होने पर भी आपस में असम्बद्ध होती हैं.
७. मुक्तिका को अनुगीत, तेवरी, गीतिका, हिन्दी ग़ज़ल आदि भी कहा गया है.
गीतिका हिन्दी का एक छंद विशेष है अतः, गीत के निकट होने पर भी इसे गीतिका कहना उचित नहीं है.
तेवरी शोषण और विद्रूपताओं के विरोध में विद्रोह और परिवर्तन की भाव -भूमि पर रची जाती है. ग़ज़ल का शिल्प होने पर भी तेवरी के अपनी स्वतंत्र पहचान है.
हिन्दी ग़ज़ल के विविध रूपों में से एक मुक्तिका है. मुक्तिका उर्दू गजल की किसी बहर पर भी आधारित हो सकती है किन्तु यह उर्दू ग़ज़ल की तरह चंद लय-खंडों (बहरों) तक सीमित नहीं है.
इसमें मात्रा या शब्द गिराने अथवा लघु को गुरु या गुरु को लघु पढने की छूट नहीं होती.
संजीव 'सलिल'
*
- मुक्तिका वह पद्य रचना है जिसका-
१. प्रथम, द्वितीय तथा उसके बाद हर सम या दूसरा पद पदांत तथा तुकांत युक्त होता है.
२. हर पद का पदभार हिंदी मात्रा गणना के अनुसार समान होता है. यह मात्रिक छन्द में निबद्ध पद्य रचना है.
३. मुक्तिका का कोई एक या कुछ निश्चित छंद नहीं हैं. इसे जिस छंद में रचा जाता है उसके शैल्पिक नियमों का पालन किया जाता है.
४.हाइकु मुक्तिका में हाइकु के सामान्यतः प्रचलित ५-७-५ मात्राओं के शिल्प का पालन किया जाता है, दोहा मुक्तिका में दोहा, सोरठा मुक्तिका में सोरठा, रोला मुक्तिका में रोला छंदों के नियमों का पालन किया जाता है.
५. मुक्तिका का प्रधान लक्षण यह है कि उसकी हर द्विपदी अलग-भाव-भूमि या विषय से सम्बद्ध होती है अर्थात अपने आपमें मुक्त होती है. एक द्विपदी का अन्य द्विपदीयों से सामान्यतः कोई सम्बन्ध नहीं होता.
६. किसी विषय विशेष पर केन्द्रित मुक्तिका की द्विपदियाँ केन्द्रीय विषय के आस-पास होने पर भी आपस में असम्बद्ध होती हैं.
७. मुक्तिका को अनुगीत, तेवरी, गीतिका, हिन्दी ग़ज़ल आदि भी कहा गया है.
गीतिका हिन्दी का एक छंद विशेष है अतः, गीत के निकट होने पर भी इसे गीतिका कहना उचित नहीं है.
तेवरी शोषण और विद्रूपताओं के विरोध में विद्रोह और परिवर्तन की भाव -भूमि पर रची जाती है. ग़ज़ल का शिल्प होने पर भी तेवरी के अपनी स्वतंत्र पहचान है.
हिन्दी ग़ज़ल के विविध रूपों में से एक मुक्तिका है. मुक्तिका उर्दू गजल की किसी बहर पर भी आधारित हो सकती है किन्तु यह उर्दू ग़ज़ल की तरह चंद लय-खंडों (बहरों) तक सीमित नहीं है.
इसमें मात्रा या शब्द गिराने अथवा लघु को गुरु या गुरु को लघु पढने की छूट नहीं होती.
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सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
सोमवार, 18 अक्टूबर 2010
स्वास्थ्य सलिला: मात्र एक रुपये में स्वच्छ करें अपनी किडनी ---विजय कौशल
मात्र एक रुपये में स्वच्छ करें अपनी किडनी
विजय कौशल
| * |
बरसों हो गये हमारी किडनियाँ लगातार बिना थके, बिना रुके, हमारे खून से नमक, विषैले और अवांछित तत्व निकल कर उसे शुद्ध करती आ रही हैं. समय के साथ एकत्रित होते रहने वाला लवण बहुत सरलता से निकाला जा सकता है.
एक गुच्छा धनिया (पार्सले / मल्ली लीव्स / कोथिम्बिर) की पत्तियों को अच्छी तरह धोकर छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लें.इसे पानी में १० मिनिट उबालकर ठंडा होने दें. अब इसे छानकर एक शीशी में भरकर फ्रिज में ठंडा होने दें.
हर दिन सवेरे एक गिलास पियें. आप देखेंगे कि शरीर में एकत्रित लवण तथा अन्य घातक तत्व मूत्र के साथ बाहर निकल जायेगा तथा आप खुद को तरोताजा अनुभव करेंगे.
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हिंदी शब्द सलिला : ११ अ से प्रारंभ शब्द : ११ --- संजीव 'सलिल'
हिंदी शब्द सलिला : ११ संजीव 'सलिल'
*
संकेत : अ.-अव्यय, अर. अरबी, अक्रि.-अकर्मक क्रिया, अप्र.-अप्रचलित, अर्थ.-अर्थशास्त्र, अलं.- अलंकार, अल्प-अल्प (लघुरूप) सूचक, आ.-आधुनिक, आयु.-आयुर्वेद, इ.-इत्यादि, इब.-इबरानी, उ. -उर्दू, उदा.-उदाहरण, उप.-उपसर्ग, उपनि.-उपनिषद, अं.-अंगिका, अंक.-अंकगणित, इ.-इंग्लिश/अंगरेजी, का.-कानून, काम.-कामशास्त्र, क्व.-क्वचित, ग.-गणित, गी.-गीता, गीता.-गीतावली, तुलसी-कृत, ग्रा.-ग्राम्य, ग्री.-ग्रीक., चि.-चित्रकला, छ.-छतीसगढ़ी, छं.-छंद, ज.-जर्मन, जै.-जैन साहित्य, ज्या.-ज्यामिति, ज्यो.-ज्योतिष, तं.-तंत्रशास्त्र, ति.-तिब्बती, तिर.-तिरस्कारसूचक, दे.-देशज, देव.-देवनागरी, ना.-नाटक, न्या.-न्याय, पा.-पाली, पारा.- पाराशर संहिता, पु.-पुराण, पुल.-पुल्लिंग, पुर्त. पुर्तगाली, पुरा.-पुरातत्व, प्र.-प्रत्यय, प्रा.-प्राचीन, प्राक.-प्राकृत, फा.-फ़ारसी, फ्रे.-फ्रेंच, ब.-बघेली, बर.-बर्मी, बहु.-बहुवचन, बि.-बिहारी, बुं.-बुन्देलखंडी, बृ.-बृहत्संहिता, बृज.-बृजभाषा बो.-बोलचाल, बौ.-बौद्ध, बं.-बांग्ला/बंगाली, भाग.-भागवत/श्रीमद्भागवत, भूक्रि.-भूतकालिक क्रिया, मनु.-मनुस्मृति, महा.-महाभारत, मी.-मीमांसा, मु.-मुसलमान/नी, मुहा. -मुहावरा, यू.-यूनानी, यूरो.-यूरोपीय, योग.योगशास्त्र, रा.-रामचन्द्रिका, केशवदस-कृत, राम.- रामचरितमानस-तुलसीकृत, रामा.- वाल्मीकि रामायण, रा.-पृथ्वीराज रासो, ला.-लाक्षणिक, लै.-लैटिन, लो.-लोकमान्य/लोक में प्रचलित, वा.-वाक्य, वि.-विशेषण, विद.-विदुरनीति, विद्या.-विद्यापति, वे.-वेदान्त, वै.-वैदिक, व्यं.-व्यंग्य, व्या.-व्याकरण, शुक्र.-शुक्रनीति, सं.-संस्कृत/संज्ञा, सक्रि.-सकर्मक क्रिया, सर्व.-सर्वनाम, सा.-साहित्य/साहित्यिक, सां.-सांस्कृतिक, सू.-सूफीमत, स्त्री.-स्त्रीलिंग, स्मृ.-स्मृतिग्रन्थ, ह.-हरिवंश पुराण, हिं.-हिंदी.
अ से प्रारंभ शब्द : ११
संजीव 'सलिल'
*
अक्षण - पु. सं. असामयिक. अक्षणिक - पु. सं. स्थिर, दृढ़, जो क्षणिक न हो.
अक्षत - वि. सं. अखंडित, समूचा, क्षतहीन, जिसे चोट न आयी हो, जो घायल न हो. पु. शिव, अखंडित चावल, लावा, जाऊ, धान / धान्य, हैं का अभाव, कल्याण, हिंजड़ा. -योनि- वि. स्त्री. जिसका कौमाँर्य भंग न हुआ हो, अविवाहित / कुँवारी / कुमारी कन्या, -वीर्य- वि. पु. अच्युत वीर्य, ब्रम्हचारी, जिसका वीर्य स्खलन न हुआ हो, क्षयाभाव, शिव, नपुंसक.
अक्षता - स्त्री. सं. कुमारी, अक्षतयोनि, कर्कटश्रृंगी, काकड़ासिंगी.
अक्षत्र - वि. सं. क्षत्रियों / वीरों से रहित.
अक्षम - वि. सं. क्षमा-रहित, असहिष्णु, ईर्ष्या करनेवाला, क्षमता-रहित, असमर्थ.
अक्षमा - स्त्री. सं. अधीरता, क्रोध, ईर्ष्या, असमर्थता.
अक्षम्य - वि. सं. क्षमा न करने योग्य.
अक्षय - वि. सं. क्षयरहित, अविनाशी, निर्धन, पु. परमात्मा. -गुण- पु., शिव. -तृतीया- स्त्री. वैशाख शुक्ल तृतीया. -धाम- पु. वैकुण्ठ, मोक्ष. -नवमी- स्त्री. कार्तिक शुक्ला नवमी. -नीवी- स्त्री. स्थाई दान / निधि बौ. -पद- पु. मोक्ष. -लोक- पु. स्वर्ग. -वट / वृक्ष- पु. प्रयाग और गया के वट वृक्ष विशेष जो प्रलय में भी नष्ट नहीं होते.
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दोहा सलिला: जिज्ञासा ही धर्म है संजीव 'सलिल'
दोहा सलिला:
जिज्ञासा ही धर्म है
संजीव 'सलिल'
*
धर्म बताता है यही, निराकार है ईश.
सुनते अनहद नाद हैं, ऋषि, मुनि, संत, महीश..
मोहक अनहद नाद यह, कहा गया ओंकार.
सघन हुए ध्वनि कण, हुआ रव में भव संचार..
चित्र गुप्त था नाद का. कण बन हो साकार.
परम पिता ने किया निज, लीला का विस्तार..
अजर अमर अक्षर यही, 'ॐ' करें जो जाप.
ध्वनि से ही इस सृष्टि में, जाता पल में व्याप..
'ॐ' बना कण फिर हुए, ऊर्जा के विस्फोट.
कोटि-कोटि ब्रम्हांड में, कण-कण उसकी गोट..
चौसर पाँसा खेल वह, वही दाँव वह चाल.
खिला खेलता भी वही, होता करे निहाल..
जब न देख पाते उसे, लगता भ्रम जंजाल.
अस्थि-चर्म में वह बसे, वह ही है कंकाल.
धूप-छाँव, सुख-दुःख वही, देता है पोशाक.
वही चेतना बुद्धि वह, वही दृष्टि वह वाक्..
कर्ता-भोक्ता भी वही, हम हैं मात्र निमित्त.
कर्ता जानें स्वयं को, भरमाता है चित्त..
जमा किया सत्कर्म जो, वह सुख देता नित्य.
कर अकर्म दुःख भोगती, मानव- देह अनित्य..
दीनबन्धु वह- आ तनिक, दीनों के कुछ काम.
मत धनिकों की देहरी, जा हो विनत प्रणाम..
धन-धरती है उसी की, क्यों करता भण्डार?
व्यर्थ पसारा है 'सलिल', ढाई आखर सार..
ज्यों की त्यों चादर रहे, लगे न कोई दाग.
नेह नर्मदा नित नहा, तज सारा खटराग..
जिज्ञासा ही धर्म है, ज्ञान प्राप्ति ही कर्म.
उसकी तनिक प्रतीति की, चेतनता का मर्म..
*******************
जिज्ञासा ही धर्म है
संजीव 'सलिल'
*
धर्म बताता है यही, निराकार है ईश.
सुनते अनहद नाद हैं, ऋषि, मुनि, संत, महीश..
मोहक अनहद नाद यह, कहा गया ओंकार.
सघन हुए ध्वनि कण, हुआ रव में भव संचार..
चित्र गुप्त था नाद का. कण बन हो साकार.
परम पिता ने किया निज, लीला का विस्तार..
अजर अमर अक्षर यही, 'ॐ' करें जो जाप.
ध्वनि से ही इस सृष्टि में, जाता पल में व्याप..
'ॐ' बना कण फिर हुए, ऊर्जा के विस्फोट.
कोटि-कोटि ब्रम्हांड में, कण-कण उसकी गोट..
चौसर पाँसा खेल वह, वही दाँव वह चाल.
खिला खेलता भी वही, होता करे निहाल..
जब न देख पाते उसे, लगता भ्रम जंजाल.
अस्थि-चर्म में वह बसे, वह ही है कंकाल.
धूप-छाँव, सुख-दुःख वही, देता है पोशाक.
वही चेतना बुद्धि वह, वही दृष्टि वह वाक्..
कर्ता-भोक्ता भी वही, हम हैं मात्र निमित्त.
कर्ता जानें स्वयं को, भरमाता है चित्त..
जमा किया सत्कर्म जो, वह सुख देता नित्य.
कर अकर्म दुःख भोगती, मानव- देह अनित्य..
दीनबन्धु वह- आ तनिक, दीनों के कुछ काम.
मत धनिकों की देहरी, जा हो विनत प्रणाम..
धन-धरती है उसी की, क्यों करता भण्डार?
व्यर्थ पसारा है 'सलिल', ढाई आखर सार..
ज्यों की त्यों चादर रहे, लगे न कोई दाग.
नेह नर्मदा नित नहा, तज सारा खटराग..
जिज्ञासा ही धर्म है, ज्ञान प्राप्ति ही कर्म.
उसकी तनिक प्रतीति की, चेतनता का मर्म..
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हिंदी शब्द सलिला : १० अ से प्रारंभ होनेवाले शब्द : १० संजीव 'सलिल'
हिंदी शब्द सलिला : १० संजीव 'सलिल'
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संकेत : अ.-अव्यय, अर. अरबी, अक्रि.-अकर्मक क्रिया, अप्र.-अप्रचलित, अर्थ.-अर्थशास्त्र, अलं.- अलंकार, अल्प-अल्प (लघुरूप) सूचक, आ.-आधुनिक, आयु.-आयुर्वेद, इ.-इत्यादि, इब.-इबरानी, उ. -उर्दू, उदा.-उदाहरण, उप.-उपसर्ग, उपनि.-उपनिषद, अं.-अंगिका, अंक.-अंकगणित, इ.-इंग्लिश/अंगरेजी, का.-कानून, काम.-कामशास्त्र, क्व.-क्वचित, ग.-गणित, गी.-गीता, गीता.-गीतावली, तुलसी-कृत, ग्रा.-ग्राम्य, ग्री.-ग्रीक., चि.-चित्रकला, छ.-छतीसगढ़ी, छं.-छंद, ज.-जर्मन, जै.-जैन साहित्य, ज्या.-ज्यामिति, ज्यो.-ज्योतिष, तं.-तंत्रशास्त्र, ति.-तिब्बती, तिर.-तिरस्कारसूचक, दे.-देशज, देव.-देवनागरी, ना.-नाटक, न्या.-न्याय, पा.-पाली, पारा.- पाराशर संहिता, पु.-पुराण, पुल.-पुल्लिंग, पुर्त. पुर्तगाली, पुरा.-पुरातत्व, प्र.-प्रत्यय, प्रा.-प्राचीन, प्राक.-प्राकृत, फा.-फ़ारसी, फ्रे.-फ्रेंच, ब.-बघेली, बर.-बर्मी, बहु.-बहुवचन, बि.-बिहारी, बुं.-बुन्देलखंडी, बृ.-बृहत्संहिता, बृज.-बृजभाषा बो.-बोलचाल, बौ.-बौद्ध, बं.-बांग्ला/बंगाली, भाग.-भागवत/श्रीमद्भागवत, भूक्रि.-भूतकालिक क्रिया, मनु.-मनुस्मृति, महा.-महाभारत, मी.-मीमांसा, मु.-मुसलमान/नी, मुहा. -मुहावरा, यू.-यूनानी, यूरो.-यूरोपीय, योग.योगशास्त्र, रा.-रामचन्द्रिका, केशवदस-कृत, राम.- रामचरितमानस-तुलसीकृत, रामा.- वाल्मीकि रामायण, रा.-पृथ्वीराज रासो, ला.-लाक्षणिक, लै.-लैटिन, लो.-लोकमान्य/लोक में प्रचलित, वा.-वाक्य, वि.-विशेषण, विद.-विदुरनीति, विद्या.-विद्यापति, वे.-वेदान्त, वै.-वैदिक, व्यं.-व्यंग्य, व्या.-व्याकरण, शुक्र.-शुक्रनीति, सं.-संस्कृत/संज्ञा, सक्रि.-सकर्मक क्रिया, सर्व.-सर्वनाम, सा.-साहित्य/साहित्यिक, सां.-सांस्कृतिक, सू.-सूफीमत, स्त्री.-स्त्रीलिंग, स्मृ.-स्मृतिग्रन्थ, ह.-हरिवंश पुराण, हिं.-हिंदी.
अ से प्रारंभ होनेवाले शब्द : १०
संजीव 'सलिल'
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अक्ष - पु. सं. खेलनेका पाँसा, पांसों का खेल, चौसर, पहिया, चक्र, पहिये का धुरा, एक्सेल इं., गाड़ी, भूमध्य रेखा के उत्तर या दक्षिण किसी स्थान का गोलीय अन्तर, रुद्राक्ष, सर्प, सोलह माशे की एक तौल, कर्ष, एक पैमाना १०४ अंगुल, तराजू की डांडी, कानून, लेन-देन का मुक़दमा, ज्ञान, ज्ञानेन्द्रिय, आँख, जन्मांध, आत्मा गरुड़, तूतिया, सोचर नमक, सुहागा, बहेड़ा. -कर्ण- पु. समकोण त्रिभुज की सबसे लंबी भुजा, -काम- वि. द्यूतप्रिय, -कुमार- रावण का पुत्र, जिसे हनुमान ने पुष्पवाटिका में मारा, -कुशल / कोविद / शौड-वि. जुआ खेलने में चतुर, -कूट- पु., आँख की पुतली, -क्रीड़ा- स्त्री. पाँसों का खेल, जुआ. -ज- पु. हीरा, वज्र, विष्णु, प्रत्यक्ष ज्ञान. -दर्शक- पु. न्यायाधीश, धर्माध्यक्ष, जुए का निरीक्षक, -देवी/देविन- पु. जारी. -द्यूत- पु. जुआ. -द्यूतिक- जुए में होनेवाला झगड़ा,-धर- धुरे को धारण करनेवाला, पु. विष्णु, पहिया, शाखोट वृक्ष. -धुर- पु. पहिए का धुरा.-धूर्त- वि. जुआ खेलने में कुशल, -पटल- पु. न्यायालय, मुकदमे के कागज़ रखने का स्थान, -पाट / वाट- पु. अखाड़ा, जुआखाना. -पाटक- पु.धर्माध्यक्ष. -पीड़ा- स्त्री. इन्द्रियों / अंगों की क्षति, यवतिक्ता लता. -बंध- पु. दृष्टि-बंधन की विद्या, नजरबन्दी, -मात्र- पु. निमिष, -मापक- पु. ग्रह-नक्षत्र देखने का यंत्र, -माला- स्त्री. रुद्राक्ष की माला, वर्णमाला, वशिष्ठ की पत्नी अरुंधति.-माली / मालिन- पु. रुद्राक्ष की माला धारण करनेवाला, शिन का एक नाम. -रेखा- स्त्री. धुरी की रेखा. -वाम- जुए में कपट करनेवाला, -विक्षेप- पु. कटाक्ष, -विद- वि.द्यूतज्ञ.-विद्या- स्त्री. द्यूतविद्या, -वृत्त- पु. अक्षांश-दर्शक वृत्त, राशिचक्र. वि. जुए का आदी, जुआ खेलते समय घटित होनेवाला. -सूत्र- पु. रुद्राक्ष की माला, जपमाला, -सेन- पु. एक प्राचीन राजा. -हीन- अंधा. -हृदय- द्यूतकुशल.
अक्षक - पु. सं. वृक्ष विशेष, तिनिश वृक्ष.
विशेष लेख- भारत में उर्दू : संजीव 'सलिल'
विशेष लेख-
भारत में उर्दू :
भारत में उर्दू :
संजीव 'सलिल'
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भारत विभिन्न भाषाओँ का देश है जिनमें से एक उर्दू भी है. मुग़ल फौजों द्वारा आक्रमण में विजय पाने के बाद स्थानीय लोगों के कुचलने के लिये उनके संस्कार, आचार, विचार, भाषा तथा धर्म को नष्ट कर प्रचलित के सर्वथा विपरीत बलात लादा गया तथा अस्वीकारने पर सीधे मौत के घाट उतारा गया ताकि भारतवासियों का मनोबल समाप्त हो जाए और वे आक्रान्ताओं का प्रतिरोध न करें. यह एक ऐतिहासिक सत्य है जिसे कोई झुठला नहीं सकता. पराजित हतभाग्य जनों को मुगल सिपाहियों ने अरबी-फ़ारसी के दोषपूर्ण रूप (सिपाही शुद्ध भाषा नहीं जानते थे) को स्थानीय भाषा के साथ मिलावट कर बोला. उनके गुलामों को भी वही भाषा बोलने के लिये विवश होना पड़ा.
भारतीयों को भ्रान्ति है कि उर्दू पाकिस्तान की राष्ट्र या राजकीय भाषा है जबकि यह पूरी तरह गलत है. न्यूज़ इंटरनॅशनल के अनुसार लाहौर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति ख्वाजा मुहम्मद शरीफ ने १३ अक्टूबर २०१० को एक परमादेश याचिका को इसलिए खारिज कर दिया कि याचिकाकर्ता सना उल्लाह और उसके वकील यह प्रमाणित करने में असफल हुए कि उर्दू पाकिस्तान की सरकारी काम-काज की भाषा है. याचिकाकर्ता ने दवा किया था कि १९४८ में पाकिस्तान के राष्ट्रपिता कायदे-आज़म मुहम्मद अली जिन्ना ने ढाका में विद्यार्थियों को सम्बोधत करते हुए उर्दू को पाकिस्तान की सरकारी काम-काज की भाषा बताया था तथा संविधान में भी एक निर्धारित समयावधि में ऐसा किये जाने को कहा गया है लेकिन पाकिस्तान की आज़ादी के ६२ साल बाद तक ऐसा नहीं किया गया.
हरकादास वासन, लीड्स अमेरिका के अनुसार-- ''उर्दू संसार की सर्वाधिक खूबसूरत भाषा है जिसे बोलते समय आप खुद को दुनिया से ऊँचा अनुभव करते है तथा इसे भारत की सरकारी काम-काज की भाषा बनाया जाना चाहिए.वासन के अनुसार उर्दू अरबी-फारसी प्रभाव से हिन्दी का उन्नत रूप है. तुर्की मूल के शब्द 'उर्दू' का अर्थ सेना या तंबू है. उर्दू ने व्यावहारिक रूप से हिन्दी की शब्दवाली को उसी तरह दोगुना किया है जैसे फ्रेंच ने अंग्रेजी को. उर्दू ने भारतीय कविता विशेषकर श्रंगारिक कविता में बहुत कुछ जोड़ा है. मेहरबानी तथा तशरीफ़ रखिए जैसे शब्द उर्दू के हैं.'' उर्दू की एक खास नजरिये से की जा रही इस पैरवी के पीछे छिपी भावना छिपाए नहीं छिपती. हिन्दी को कमतर और उर्दू को बेहतर बताने का ऐसा दुष्प्रयास उर्दूदां अक्सर करते रहे हैं औए इसी कारण हिन्दी व्याकरण और पिंगल के आधार पार रची गयी गजलों को खारिज करते रहे हैं जबकि खुद हर्फ़ गिराकर लिखे गये दोषपूर्ण दोहे थोपते आये हैं.
वस्तुतः उर्दू एक गड्ड-मड्ड भाषा या यूँ कहें कि हिन्दी भाषा ही एक रूप है जो अरबी अक्षरों से लिखी जाती है. भाषा विज्ञान के अनुसार उर्दू वास्तव में एक भाषा है ही नहीं. फारस, अरब तथा तुर्की आदि देशों के सिपाहियों की मिश्रित बोली ही उर्दू है. किसी पराजित देश में विजेताओं की भाषा का प्रयोग करने की प्रवृत्ति होती है. इसी कारण भारत में पहले उर्दू तथा बाद में अंग्रेजी बोली गयी. उर्दू तथा अंग्रेजी के प्रचार-प्रसार तथा हिन्दी की उपेक्षा के पीछे अखबारी समाचार माध्यम तथा प्रशासनिक अधिकारियों की महती भूमिका है.व्यक्ति चाहें भी तो भाषा को प्रचलन में नहीं ला सकते जब तक कि अख़बार तथा प्रशासन न चाहें.
उर्दू का सौन्दर्य विष कन्या के रूप की तरह मादक किन्तु घातक है. उर्दू अपने उद्भव से आज तक मुस्लिम आक्रमणकारियों और मुस्लिम आक्रामक प्रवृत्ति की भाषा है.८० से अधिक वर्षों तक उर्दू उत्तर तथा उत्तर-पश्चिम भारत की सरकारी काम-काज की भाषा रही है किन्तु यह उत्तर तथा हैदराबाद के मुसलमानों को छोड़कर अन्य वर्गों (यहाँ तक कि मुसलमानों में भी)में अपनी जड़ नहीं जमा सकी. अंग्रेजी राज्य में उत्तर भारत में उर्दू शिक्षण अनिवार्य किये जाने के कारण पुरुष वर्ग उर्दू जान गया था किन्तु घरेलू महिलाएँ हिन्दी ही बोलती रहीं.यहाँ तक कि केवल ५०% मुसलमान ही उर्दू को अपनी मातृभाषा कहते हैं. मुसलमानों की मातृभाषा बांगला देश में बंगाली, केरल मे मलयालम, तमिलनाडु में तमिल आदि हैं. यह भी सत्य है कि मुसलमानों की धार्मिक भाषा उर्दू नहीं अरबी है. आरम्भ में मुस्लिम लीग ने भी उर्दू को मुसलमानों की दूसरी भाषा ही कहा था.
मुस्लिम काल में उर्दू सरकारी काम-काज की भाषा थी इसलिए सरकारी काम-काज से प्रमुखतः जुड़े कायस्थों, ब्राम्हणों और क्षत्रियों को इसका प्रयोग करने के लिये बाध्य होना पड़ा. जो गरीब हिन्दू बलात मुसलमान बनाये गए वे किसान-सिपाही थे जिन्हें भाषिक विकास से कोई सीधा सरोकार नहीं था. उर्दू के विकास में सर्वाधिक प्रभावी भूमिका दिमाग से तेज और सरकारी बन्दोबस्त से जुड़े कायस्थों ने निभाई जिसका लाभ उन्हें राजस्व से जुड़े महकमों में मिला. उर्दू संस्कृत, प्राकृत, अरबी, फ़ारसी तथा स्थानीय बोलिओं के शब्दों का सम्मिश्रण अर्थात चूँ-चूँ का मुरब्बा हो गई.
उर्दू का छंद शास्त्र यद्यपि अरबी-फारसी से उधार लिया गया किन्तु मूलतः वहाँ भी यह संस्कृत से ही गया था, इसलिए उर्दू के रुक्न और बहरें संस्कृत छंदों पर ही आधारित मिलती हैं. फारस और अरब की भौगोलिक परिस्थितियों और निवासियों को कुछ शब्दों के उच्चारण में अनुभूत कठिनाई के कारण वही प्रभाव उर्दू में आया. कवियों ने बहरों में कई जगहों पर भारतीय भाषाओँ के शब्दों के प्रयोग में बाहर के अनुकूल नहीं पाया. फल यह हुआ कि शब्दों को तोड़-मरोड़कर या उसका कोई अक्षर अनदेखा -अन उच्चारित कर (हर्फ़ गिराकर) उपयोग करना और उसे सही साबित करने के लिये उसके अनुसार नियम बनाये गये. और के स्थान पर औ', मंदिर के स्थान पर मंदर, जान के स्थान पर जां, माकन के स्थान पर मकां आदि ऐसे ही प्रयोग हैं. इनसे कई जगह अर्थ के अनर्थ हो गये. मंदिर को मंदर करने पर उसका अर्थ देवालय से बदल कर गुफा हो गया.
स्वतंत्रता के बाद अपने वर्चस्व को स्थापित करने के लिये उर्दू प्रेमियों ने उर्दू को हिन्दी से अधिक प्राचीन और बेहतर बताने की जी तोड़ कोशिश की किन्तु आम भारतवासियों को अरबी-फ़ारसी शब्दों से बोझिल भाषा स्वीकार न हुई. फलतः, उर्दू के श्रेष्ठ कहे जा रहे शायरों का वह कलाम जिसे उन्होंने श्रेष्ठ माना जनता के दिल में घर नहीं कर सका और जिसे उन्होंने चलते-फिरते लिखा गया या सतही माना था वह लोकप्रिय हुआ. मिर्ज़ा ग़ालिब ने अपनी जिन पद्य रचनाओं को पूरी विद्वता से लिखा वे आज किसे याद हैं जबकि जिस गजल को 'तंग रास्ता' और 'कोल्हू का बैल' कहा गया था उसने उन्हें अमर कर दिया. ऐसा ही अन्यों के साथ हुआ. दाल न गलती देख मजबूरी में उर्दू लिपि के स्थान पर देवनागरी को अपनाकर हिन्दी के बाज़ार से लाभ कमाने की कोशिश की गयी जो सफल भी हुई.
उदार हिन्दीभाषियों ने उर्दू को गले लगाने में कोई कसर न छोड़ी किन्तु उर्दू दां हिन्दी के व्याकरण-पिंगल को नकारने के दुष्प्रयास में जुट गये. हिन्दी गजलों को खारिज करने का कोई अधिकार न होने पर भी उर्दूदां ऐसा करते रहे जबकि उर्दू में समालोचना शास्त्र का हिन्दी की तुलना में बहुत कम विकास हो सका. उर्दू गजल को इश्क-मुश्क की कैद से आज़ाद कर आम अवाम के दुःख-दर्द से जोड़ने का काम हिन्दी ने ही किया. उर्दू को आक्रान्ता मुसलमानों की भाषा से जन सामान्य की भाषा का रूप तभी मिला जब वह हिन्दी से गले मिली किन्तु हिन्दी की पीठ में छुरा भोंकने से उर्दूदां बाज़ न आये. वे हिन्दी के सर्वमान्य दुष्यंत कुमार की सर्वाधिक लोकप्रिय ग़ज़लों को भी खारिज करार देते रहे. आज भी हिन्दी कवि सम्मेलनों में उर्दू की रचनाओं को पूरी तरह न समझने के बावजूद सराहा ही जाता है किन्तु उर्दू के मुशायरों में हिन्दी कवि या तो बुलाये ही नहीं जाते या उन्हें दाद न देकर अपमानित किया जाता है. इसमें कोई शक नहीं कि इस बेहूदा हरकत में उर्दू भाषा का कोई दोष नहीं है किन्तु उर्दूभाषियों को हिन्दी को अपमानित करने की मनोवृत्ति तो उजागर होती ही है.
भारत में उर्दू का सीधा विरोध न होने पर भी स्वतंत्रता के वर्षों बाद मुस्लिम आतंकवाद ने एक बार फिर उर्दू को अपना औजार बनाने की कोशिश की है. भारत सरकार ने हिंदीभाषियों के धन से उर्दू विश्वविद्यालय स्थापित करने में संकोच नहीं किया. भारत के हिन्दी विश्व विद्यालयों में उर्दू के पठन-पाठन की व्यवस्था है किन्तु हिन्दी भाषियों के करों से हिन्दी भाषी सरकार द्वारा स्थापित किये गाये उर्दू मदरसों और विश्व विद्यालयों में हिन्दी-शिक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है.
बांग्ला देश ने उर्दू के घातक सामाजिक दुष्प्रभाव को पहचानकर सांस्कृतिक आधार पर उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया. यहाँ तक कि पाकिस्तान में भी पंजाबियों, सिंधियों बलूचोंऔर पठानों ने भी उर्दू को अपनी सभ्यता-संस्कृति के लिये घातक पाया और अब उर्दू पाकिस्तान में भी सिर्फ मुहाजिरों (भारत से भाग कर पहुँचे मुसलमान) की भाषा है. अमेरिका, जापान, रूस, या चीन कहीं भी उर्दू मुसलमानों की भाषा नहीं है पर भारत में उर्दू पर यह ठप्पा लगाया जाता रहा है. क्या आपने किसी मौलवी, मौलाना को हिन्दी में बोलते सुना है? राम कथा और कृष्ण कथा के प्रवचनकार या हिन्दीभाषी राजनेता पूरी उदारता से संस्कृत और हिन्दी के उद्धरण होते हुई भी उर्दू के शे'र कहने में कोई संकोच नहीं करते किन्तु मजहबी या सियासी तकरीरों में आपको संस्कृत, हिन्दी ही नहीं किसी भी भारतीय भाषा के उद्धरण नहीं मिलते. अपनी इस संकीर्णता के लिये शर्मिंदा होने और सुधारने / बदलने की बजाय उर्दूदां इसे अपनी जीत और उर्दू की ताकत बताते हैं. उर्दू के पीछे छिपी इस संकीर्ण, आक्रामक और बहुत हद तक सांप्रदायिक मनोवृत्ति ने उर्दू का बहुत नुक्सान भी किया है.
भारत में जन्म लेने ओर पोसी जाने के बाद भी उर्दू अबाधी, भोजपुरी, बृज, बुन्देली, छत्तीसगढ़ी, मालवी, निमाड़ी, मेवाड़ी, मारवाड़ी और ऐसी ही अन्य भाषाओँ की तरह आम आदमी की भाषा नहीं बन सक़ी और आज भी यह अधिकांश लोगों के लिये पराई भाषा है बावजूद इसके कि इसके कुछ शब्द प्रेस द्वारा लगातार उपयोग में लाये जाते हैं तथा इसे देवनागरी में लिखा जाता है जिससे इसके हिन्दी होने का भ्रम होता है. वस्तुतः उर्दू के पीछे सांप्रदायिक हिन्दी द्रोही मानसिकता को देखते हुए इसे हिन्दी से इतर पहचान दिया जाना बंद कर हिन्दी में ही समाहित होने दिया जाना चाहिए अन्यथा व्यावसायिक तथा तकनीकी बाध्यताओं के तहत अंग्रेजीभाषी बनती जा रही नई पीढ़ी इससे पूरी तरह दूर हो जाएगी. आज मैं अपने पूर्वजों के पुराने कागज़ नहीं पढ़ पाता चुकी वे उर्दू लिपि में लिखे गये हैं. उर्दू जाननेवालों से पढवाए तो उनमें इस्तेमाल किये गये शब्द ही समझ में नहीं आये.
तकनीकी कामों में रोजगार पाये नवयुवक गैर अंग्रेजी बहुत कम और सिर्फ मनोरंजन के लिये पढ़ते हैं... उनके बच्चों और परिवारजनों की भी यही स्थिति है. दिन-ब-दिन इनकी तादाद बढ़ती जा रही है. इन्हें भारतीयता से जोड़े रखने में सिर्फ हिन्दी ही समर्थ है. इस वर्ग में विविध प्रान्तों के रहवासियों जिनकी मूल भाषाएँ अलग-अलग हैं विवाह कर रहे हैं... इनकी भाषा क्यों हो? एक प्रान्त की भाषा दूसरे को नहीं आती... विकल्प मात्र यह कि वे अंग्रेजी बोलें या हिन्दी. वे बच्चों को भारतीयत से जोड़े रखना चाहते हैं. भोजपुरी पति की तमिल पत्नि भोजपुरी बोल सकेगी क्या? बंगाली पति अपनी अवधी पत्नि की भाषा समझ सकेगा क्या? पश्तो, डोगरी, मेवाड़ी, मारवाड़ी, बुन्देली, मैथिली, अंगिका, बज्जिका, मालवी, निमाड़ी, हल्बी, गोंडी, कैथी, कोरकू, मराठी, गुजराती, तमिल, तेलुगु, कन्नड़ आदि हर भाषा पूज्य है किन्तु अपने मूल रूप में सभी उसे अपना नहीं सकते. एक सीमा तक अंग्रेजी या हिन्दी ने अन्य भाषाओँ से अधिक अपनी पहुँच बनाई है. अंग्रेजी के विदेशी मूल तथा भारतीय सामान्य जनों से दूरी के कारण हिन्दी एकमात्र भाषा है जो आम भारतीयों, अनिवासी भारतीयों, आप्रवासी भारतीयों तथा विदेशियों को एक सूत्र में जोड़कर संवाद का माध्यम बन सकती है.
हमें सत्य से साक्षात करन ही होगा अन्यथा हम अपने ही वंशजों से दूर हो जायेंगे या वे ही हमें समझ नहीं सकेंगे. उर्दूभाषियों तथा उर्दूप्रेमियों को भी इस परिदृश्य में अपनी संकीर्ण भावना छोड़कर हिन्दी के साथ गंगा-यमुना की तरह मिलना होगा अन्यथा हिन्दीभाषी भले ही मौन रहें समय हिन्दी से गैरियत और दूरी रखने की मानसिकता को उसके अंजाम तक पहुँचा ही देगा.
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रविवार, 17 अक्टूबर 2010
विशेष लेख- भारत में उर्दू :
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भारत में उर्दू :
भारत में उर्दू :
भारत विभिन्न भाषाओँ का देश है जिनमें से एक उर्दू भी है. मुग़ल फौजों द्वारा आक्रमण में विजय पाने के बाद स्थानीय लोगों के कुचलने के लिये उनके संस्कार, आचार, विचार, भाषा तथा धर्म को नष्ट कर प्रचलित के सर्वथा विपरीत बलात लादा गया तथा अस्वीकारने पर सीधे मौत के घाट उतारा गया. यह एक ऐतिहासिक सत्य है जिसे कोई झुठला नहीं सकता. पराजित हतभाग्य जनों को मुगल सिपाहियों द्वारा अरबी-फ़ारसी के दोषपूर्ण रूप (सिपाही शुद्ध भाषा नहीं जानते थे) को स्थानीय भाषा के साथ मिलावट कर बोलते देख गुलामों को भी वही भाषा बोलने के लिये विवश होना पड़ा.
भारतीयों को भ्रान्ति है कि उर्दू पाकिस्तान की राष्ट्र या राजकीय भाषा है जबकि यह पूरी तरह गलत है.
न्यूज़ इंटरनॅशनल के अनुसार लाहौर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति ख्वाजा मुहम्मद शरीफ ने १३ अक्टूबर २०१० को एक परमादेश याचिका को इसलिए खारिज कर दिया कि याचिकाकर्ता सना उल्लाह और उसके वकील यह सीध करने में असफल हुए कि उर्दू पाकिस्तान की सरकारी काम-काज की भाषा है. याचिकाकरता के अनुसार १९४८ में पाकिस्तान के राष्ट्रपिता कायदे-आज़म मुहम्मद अली जिन्ना ने ढाका में विद्यार्थियों को सम्बोधत करते हुए उर्दू को पाकिस्तान की सरकारी काम-काज की भाषा बताया था तथा संविधान में भी एक निर्धारित अवधी में ऐसा किये जाने को कहा गया है लेकिन पाकिस्तान की आज़ादी के ६२ साल बाद तक ऐसा नहीं किया गया.
लीड्स अमेरिका निवासी हरकादास वासन के अनुसार उर्दू संसार की सर्वाधिक खूबसूरत भाषा है जिसे बोलते समय आप खुद को दुनिया से ऊँचा अनुभव करते है तथा इसे भारत की सरकारी काम-काज की भाषा बनाया जाना चाहिए.वासन के अनुसार उर्दू अरबी-फारसी प्रभाव से हिन्दी का उन्नत रूप है. तुर्की मूल के शब्द -उर्दू- का अर्थ सेना या तंबू है. उर्दू ने व्यवहारिक रूप से हिन्दी की शब्दवाली को उसी तरह दोगुना किया है जैसे फ्रेंच ने अंग्रेजी को. उर्दू ने भारतीय कविता विशेषकर श्रंगारिक कविता में बहुत कुछ जोड़ा है. मेहरबानी तथा तशरीफ़ रखिए जैसे शब्द उर्दू के हैं.
वस्तुतः उर्दू एक गड्ड-मड्ड भाषा या यूँ कहें कि उर्दू हिन्दी भाषा ही है जो अरबी अक्षरों से लिखी जाती है. उर्दू वास्तव में एक भाषा है ही नहीं. फारस, अरब तथा तुर्की आदि देशों के सिपाहियों की मिश्रित बोली ही उर्दू है. किसी पराजित देश में विजेताओं की भाषा का प्रयोग करने की प्रवृत्ति होती है. इसी कारण भारत में पहले उर्दू तथा बाद में अंग्रेजी बोली गयी. उर्दू तथा अंग्रेजी के प्रचार-प्रसार तथा हिन्दी की उपेक्षा के पीछे अखबारी समाचार माध्यम तथा प्रशासनिक अधिकारियों की महती भूमिका है.व्यक्ति चाहें भी तो भाषा को प्रचलन में नहीं ला सकते जब तक कि अख़बार तथा प्रशासन न चाहें.
उर्दू का सौदर्य विष कन्या के रूप की तरह मादक किन्तु घातक है. उर्दू अपने उद्भव से आज तक मुस्लिम आक्रमणकारियों और मुस्लिम आक्रामक प्रवृत्ति की भाषा है.८० से अधिक वर्षों तक उर्दू उत्तर तथा उत्तर-पश्चिम भारत की सरकारी काम-काज की भाषा रही है किन्तु यह उत्तर तथा हैदराबाद के मुसलमानों को छोड़कर अन्य वर्गों (यहाँ तक कि मुसलमानों में भी)में अपनी जड़ नहीं जमा सकी. अंग्रेजी राज्य में उत्तर भारत में उर्दू शिक्षण अनिवार्य किये जाने के कारण पुरुष वर्ग उर्दू जान गया था किन्तु घरेलू महिलाएं हिन्दी ही बोलती रहीं.यहाँ तक कि केवल ५०% मुसलमान ही उर्दू को अपनी मातृभाषा कहते है. यह भी सत्य है कि मुसलमानों की धार्मिक भाषा उर्दू नहीं अरबी है. आरम्भ में मुस्लिन लीग ने भी उर्दू को मुसलमानों की दूसरी भाषा ही कहा था.
भारत में उर्दू का सीधा विरोध न होने पर भी स्वतंत्रता के वर्षों बाद मुस्लिम आतंकवाद ने एक बार फिर उर्दू को अपना औजार बनाने की कोशिश की है. भारत सरकार ने हिंदीभाषियों के धन से उर्दू विश्वविद्यालय स्थापिय करने में संकोच नहीं किया. बांग्ला देश ने उर्दू के घातक प्रभाव को पहचानकर सांस्कृतिक आधार पर उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया.यहाँ तक कि पाकिस्तान में भी पंजाबियों, सिंधियों बलूचोंऔर पठानों ने भी उर्दू को अपनी सभ्यता-संस्कृति के लिये घातक पाया और अब उर्दू पाकिस्तान में भी सिर्फ मुहाजिरों (भारत से भाग कर पहुँचे मुसलमान) की भाषा है.
भारत में जन्म लेने ओर पोसी जाने के बाद भी उर्दू अबाधी, भोजपुरी, बृज, बुन्देली, छत्तीसगढ़ी, मालवी, निमाड़ी, मेवाड़ी, मारवाड़ी और ऐसी ही अन्य भाषाओँ की तरह आम आदमी की भाषा नहीं बन सक़ी और आज भी यह अधिकांश लोगों के लिये परी भाषा है बव्जीद इसके कि इसके कुछ शब्द प्रेस द्वारा लगातार उपयोग में लाये जाते हैं तथा इसे देवनागरी में लिखा जाता है जिससे इसके हिन्दी होने का भ्रम होता है. वस्तुतः उर्दू के पीछे सांप्रदायिक हिन्दी द्रोही मानसिकता को देखते हुए इसे हिन्दी से इतर पहचान दिया जाना बंद कर हिन्दी में ही विलीन होने दिया जाना चाहिए.
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मुक्तिका : बन-ठन कर संजीव 'सलिल'
मुक्तिका :
बन-ठन कर
संजीव 'सलिल'
*
बन-ठन कर निकले हो घर से किसका चित्त लुभाना है
अधर-बाँसुरी, मन-मैया, राधा संग रास रचाना है.
प्रिय-दर्शन की आस न छूटे, कागा खाले सारा तन.
तुझको सौं दो नैन न छुइयो, पी की छवि झलकाना है..
नगर ढिंढोरा पीट-पीटकर, साँच कहूँ मैं हार गई.
रे घनश्याम सलोने तुझको पाना, खुद खो जाना है..
कुब्जा, कृष्णा, कुंती, विदुरानी जैसे मन-बस छलिये!
मुझे न लम्बी पटरानी-सूची में नाम लिखाना है..
खलिश दर्द दुःख पीर, स्वजन बन तेरी याद कराते हैं.
सिर-आँखों पर विहँस चढ़ाऊँ, तुझको नहीं भुलाना है..
मेरा क्या बदनामी तो तेरी ही होगी सब जग में.
दर्शन दे, ना दे मुझको तुझमें ही ध्यान लगाना है..
शीत, ग्रीष्म, बरसात कोई मौसम हो मुझको क्या लेना?
मन धरती पर प्रीत-बेल बो अश्रु-'सलिल' छलकाना है..
बन-ठन कर
संजीव 'सलिल'
*
बन-ठन कर निकले हो घर से किसका चित्त लुभाना है
अधर-बाँसुरी, मन-मैया, राधा संग रास रचाना है.
प्रिय-दर्शन की आस न छूटे, कागा खाले सारा तन.
तुझको सौं दो नैन न छुइयो, पी की छवि झलकाना है..
नगर ढिंढोरा पीट-पीटकर, साँच कहूँ मैं हार गई.
रे घनश्याम सलोने तुझको पाना, खुद खो जाना है..
कुब्जा, कृष्णा, कुंती, विदुरानी जैसे मन-बस छलिये!
मुझे न लम्बी पटरानी-सूची में नाम लिखाना है..
खलिश दर्द दुःख पीर, स्वजन बन तेरी याद कराते हैं.
सिर-आँखों पर विहँस चढ़ाऊँ, तुझको नहीं भुलाना है..
मेरा क्या बदनामी तो तेरी ही होगी सब जग में.
दर्शन दे, ना दे मुझको तुझमें ही ध्यान लगाना है..
शीत, ग्रीष्म, बरसात कोई मौसम हो मुझको क्या लेना?
मन धरती पर प्रीत-बेल बो अश्रु-'सलिल' छलकाना है..
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शनिवार, 16 अक्टूबर 2010
हिंदी शब्द सलिला : ९ अ से प्रारंभ होनेवाले शब्द : ९ --- संजीव 'सलिल'
हिंदी शब्द सलिला : ९ संजीव 'सलिल'
*
संकेत : अ.-अव्यय, अर. अरबी, अक्रि.-अकर्मक क्रिया, अप्र.-अप्रचलित, अर्थ.-अर्थशास्त्र, अलं.- अलंकार, अल्प-अल्प (लघुरूप) सूचक, आ.-आधुनिक, आयु.-आयुर्वेद, इ.-इत्यादि, इब.-इबरानी, उ. -उर्दू, उदा.-उदाहरण, उप.-उपसर्ग, उपनि.-उपनिषद, अं.-अंगिका, अंक.-अंकगणित, इ.-इंग्लिश/अंगरेजी, का.-कानून, काम.-कामशास्त्र, क्व.-क्वचित, ग.-गणित, गी.-गीता, गीता.-गीतावली, तुलसी-कृत, ग्रा.-ग्राम्य, ग्री.-ग्रीक., चि.-चित्रकला, छ.-छतीसगढ़ी, छं.-छंद, ज.-जर्मन, जै.-जैन साहित्य, ज्या.-ज्यामिति, ज्यो.-ज्योतिष, तं.-तंत्रशास्त्र, ति.-तिब्बती, तिर.-तिरस्कारसूचक, दे.-देशज, देव.-देवनागरी, ना.-नाटक, न्या.-न्याय, पा.-पाली, पारा.- पाराशर संहिता, पु.-पुराण, पुल.-पुल्लिंग, पुर्त. पुर्तगाली, पुरा.-पुरातत्व, प्र.-प्रत्यय, प्रा.-प्राचीन, प्राक.-प्राकृत, फा.-फ़ारसी, फ्रे.-फ्रेंच, ब.-बघेली, बर.-बर्मी, बहु.-बहुवचन, बि.-बिहारी, बुं.-बुन्देलखंडी, बृ.-बृहत्संहिता, बृज.-बृजभाषा बो.-बोलचाल, बौ.-बौद्ध, बं.-बांग्ला/बंगाली, भाग.-भागवत/श्रीमद्भागवत, भूक्रि.-भूतकालिक क्रिया, मनु.-मनुस्मृति, महा.-महाभारत, मी.-मीमांसा, मु.-मुसलमान/नी, मुहा. -मुहावरा, यू.-यूनानी, यूरो.-यूरोपीय, योग.योगशास्त्र, रा.-रामचन्द्रिका, केशवदस-कृत, राम.- रामचरितमानस-तुलसीकृत, रामा.- वाल्मीकि रामायण, रा.-पृथ्वीराज रासो, ला.-लाक्षणिक, लै.-लैटिन, लो.-लोकमान्य/लोक में प्रचलित, वा.-वाक्य, वि.-विशेषण, विद.-विदुरनीति, विद्या.-विद्यापति, वे.-वेदान्त, वै.-वैदिक, व्यं.-व्यंग्य, व्या.-व्याकरण, शुक्र.-शुक्रनीति, सं.-संस्कृत/संज्ञा, सक्रि.-सकर्मक क्रिया, सर्व.-सर्वनाम, सा.-साहित्य/साहित्यिक, सां.-सांस्कृतिक, सू.-सूफीमत, स्त्री.-स्त्रीलिंग, स्मृ.-स्मृतिग्रन्थ, ह.-हरिवंश पुराण, हिं.-हिंदी.
अ से प्रारंभ होनेवाले शब्द : ९
संजीव 'सलिल'
अक्ल - स्त्री. अ. बुद्धि, समझ,-मंद- चतुर, बुद्धिमान, होशियार उ., -की दुम- मूर्ख व्यंग, -मंदी- स्त्री. चतुराई, बुद्धिमानी, -क्ले-इंसानी- स्त्री. मानव बुद्धि उ., -कुल- पु. सर्वाधिक बुद्दिमान सलाहकार जिसकी सलाह बिना कोई काम न किया जाए उ., -हैवानी- स्त्री. पशुबुद्धि उ., मु. -आना- समझ होना, -औंधी होना- नासमझी करना, -का कसूर- बुद्धि का दोष, समझ की कमी, -का काम न करना- कुछ समझ में न आना, -का चकराना / का चक्कर में आना- चकित / भ्रमित होना, हैरान होना उ., -चरने जाना- समझ न रहना, -का चिराग गुल होना- समझ समाप्त होना, -का दुश्मन- नासमझ, मूर्ख. -का पुतला- बहुत बुद्धिमान, -का पूरा- मूर्ख, बुद्धू व्यंग, -का फतूर- बुद्धि की कमी, -का मारा- मूर्ख, -की पुड़िया- स्त्री. बुद्धिमती, -के घोड़े दौड़ाना- कल्पना करना, अनुमान लगाना, -के तोते उड़ जाना- होश ठिकाने न रहना, -के नाखून लेना- समझकर बात करना, -के पीछे लट्ठ लिये फिरना- नासमझी के काम करना, -के बखिये उधेड़ना, - बुद्धि नष्ट करना, -खर्च करना- सोचना-समझना, -गुम होना- समझ न रहना, -चकराना- चकित होना, -जाती रहना- समझ न रहना, -ठिकाने आना- होश में आना, समझ का होना, -देना- समझाना, सिखाना,
-दौड़ाना, भिड़ना, लड़ना- मन लगाकर सोचना, गौर करना, -पर पत्थर पड़ना / पर पर्दा पड़ना- समझ न रहना, -मारी जाना- हतबुद्धि रहना, -सठियाना- बुद्धि नष्ट होना, -से दूर / बहार होना- समझ में न आना.
अक्लम - पु. सं. क्लान्तिहीनता, वि. न थकनेवाला.
अक्लांत- वि. जो थका न हो, क्लान्तिरहित.
अक्लिका- स्त्री. सं. नील का पौधा.
अक्लिन्न- वि. सं. जो आर्द्र या गीला न हो, सूखा. -वर्त्म / वर्त्मन- पु. नेत्र-रोग जिसमें पलकें चिपकती हैं.
अक्लिष्ट- वि. सं. क्लेशरहित, अक्लान्न, जो शांत न हो, अनुद्विग्न, जो क्लिष्ट न हो, सरल, -कर्मा / कर्मन- वि. जो काम करने से थके नहीं.
अक्ली- बुद्धिसंबंधी, अक्ल में आनेवाली बात, बुद्धिकृत. वि. बुद्धिमान. मु. -गद्दा लगाना- अटकलबाजी करना.
अक्लेद- पु. सं. सूखापन, रुक्षता.
अक्लेद्य- वि. सं. जो भिगाया या गीला न किया जा सके.
अक्लेश - पु. सं. क्लेशहीनता. वि. क्लेशरहित.
अक्षंतव्य- वि. सं. अक्षम्य.
*
संकेत : अ.-अव्यय, अर. अरबी, अक्रि.-अकर्मक क्रिया, अप्र.-अप्रचलित, अर्थ.-अर्थशास्त्र, अलं.- अलंकार, अल्प-अल्प (लघुरूप) सूचक, आ.-आधुनिक, आयु.-आयुर्वेद, इ.-इत्यादि, इब.-इबरानी, उ. -उर्दू, उदा.-उदाहरण, उप.-उपसर्ग, उपनि.-उपनिषद, अं.-अंगिका, अंक.-अंकगणित, इ.-इंग्लिश/अंगरेजी, का.-कानून, काम.-कामशास्त्र, क्व.-क्वचित, ग.-गणित, गी.-गीता, गीता.-गीतावली, तुलसी-कृत, ग्रा.-ग्राम्य, ग्री.-ग्रीक., चि.-चित्रकला, छ.-छतीसगढ़ी, छं.-छंद, ज.-जर्मन, जै.-जैन साहित्य, ज्या.-ज्यामिति, ज्यो.-ज्योतिष, तं.-तंत्रशास्त्र, ति.-तिब्बती, तिर.-तिरस्कारसूचक, दे.-देशज, देव.-देवनागरी, ना.-नाटक, न्या.-न्याय, पा.-पाली, पारा.- पाराशर संहिता, पु.-पुराण, पुल.-पुल्लिंग, पुर्त. पुर्तगाली, पुरा.-पुरातत्व, प्र.-प्रत्यय, प्रा.-प्राचीन, प्राक.-प्राकृत, फा.-फ़ारसी, फ्रे.-फ्रेंच, ब.-बघेली, बर.-बर्मी, बहु.-बहुवचन, बि.-बिहारी, बुं.-बुन्देलखंडी, बृ.-बृहत्संहिता, बृज.-बृजभाषा बो.-बोलचाल, बौ.-बौद्ध, बं.-बांग्ला/बंगाली, भाग.-भागवत/श्रीमद्भागवत, भूक्रि.-भूतकालिक क्रिया, मनु.-मनुस्मृति, महा.-महाभारत, मी.-मीमांसा, मु.-मुसलमान/नी, मुहा. -मुहावरा, यू.-यूनानी, यूरो.-यूरोपीय, योग.योगशास्त्र, रा.-रामचन्द्रिका, केशवदस-कृत, राम.- रामचरितमानस-तुलसीकृत, रामा.- वाल्मीकि रामायण, रा.-पृथ्वीराज रासो, ला.-लाक्षणिक, लै.-लैटिन, लो.-लोकमान्य/लोक में प्रचलित, वा.-वाक्य, वि.-विशेषण, विद.-विदुरनीति, विद्या.-विद्यापति, वे.-वेदान्त, वै.-वैदिक, व्यं.-व्यंग्य, व्या.-व्याकरण, शुक्र.-शुक्रनीति, सं.-संस्कृत/संज्ञा, सक्रि.-सकर्मक क्रिया, सर्व.-सर्वनाम, सा.-साहित्य/साहित्यिक, सां.-सांस्कृतिक, सू.-सूफीमत, स्त्री.-स्त्रीलिंग, स्मृ.-स्मृतिग्रन्थ, ह.-हरिवंश पुराण, हिं.-हिंदी.
अ से प्रारंभ होनेवाले शब्द : ९
संजीव 'सलिल'
अक्ल - स्त्री. अ. बुद्धि, समझ,-मंद- चतुर, बुद्धिमान, होशियार उ., -की दुम- मूर्ख व्यंग, -मंदी- स्त्री. चतुराई, बुद्धिमानी, -क्ले-इंसानी- स्त्री. मानव बुद्धि उ., -कुल- पु. सर्वाधिक बुद्दिमान सलाहकार जिसकी सलाह बिना कोई काम न किया जाए उ., -हैवानी- स्त्री. पशुबुद्धि उ., मु. -आना- समझ होना, -औंधी होना- नासमझी करना, -का कसूर- बुद्धि का दोष, समझ की कमी, -का काम न करना- कुछ समझ में न आना, -का चकराना / का चक्कर में आना- चकित / भ्रमित होना, हैरान होना उ., -चरने जाना- समझ न रहना, -का चिराग गुल होना- समझ समाप्त होना, -का दुश्मन- नासमझ, मूर्ख. -का पुतला- बहुत बुद्धिमान, -का पूरा- मूर्ख, बुद्धू व्यंग, -का फतूर- बुद्धि की कमी, -का मारा- मूर्ख, -की पुड़िया- स्त्री. बुद्धिमती, -के घोड़े दौड़ाना- कल्पना करना, अनुमान लगाना, -के तोते उड़ जाना- होश ठिकाने न रहना, -के नाखून लेना- समझकर बात करना, -के पीछे लट्ठ लिये फिरना- नासमझी के काम करना, -के बखिये उधेड़ना, - बुद्धि नष्ट करना, -खर्च करना- सोचना-समझना, -गुम होना- समझ न रहना, -चकराना- चकित होना, -जाती रहना- समझ न रहना, -ठिकाने आना- होश में आना, समझ का होना, -देना- समझाना, सिखाना,
-दौड़ाना, भिड़ना, लड़ना- मन लगाकर सोचना, गौर करना, -पर पत्थर पड़ना / पर पर्दा पड़ना- समझ न रहना, -मारी जाना- हतबुद्धि रहना, -सठियाना- बुद्धि नष्ट होना, -से दूर / बहार होना- समझ में न आना.
अक्लम - पु. सं. क्लान्तिहीनता, वि. न थकनेवाला.
अक्लांत- वि. जो थका न हो, क्लान्तिरहित.
अक्लिका- स्त्री. सं. नील का पौधा.
अक्लिन्न- वि. सं. जो आर्द्र या गीला न हो, सूखा. -वर्त्म / वर्त्मन- पु. नेत्र-रोग जिसमें पलकें चिपकती हैं.
अक्लिष्ट- वि. सं. क्लेशरहित, अक्लान्न, जो शांत न हो, अनुद्विग्न, जो क्लिष्ट न हो, सरल, -कर्मा / कर्मन- वि. जो काम करने से थके नहीं.
अक्ली- बुद्धिसंबंधी, अक्ल में आनेवाली बात, बुद्धिकृत. वि. बुद्धिमान. मु. -गद्दा लगाना- अटकलबाजी करना.
अक्लेद- पु. सं. सूखापन, रुक्षता.
अक्लेद्य- वि. सं. जो भिगाया या गीला न किया जा सके.
अक्लेश - पु. सं. क्लेशहीनता. वि. क्लेशरहित.
अक्षंतव्य- वि. सं. अक्षम्य.
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करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
शुक्रवार, 15 अक्टूबर 2010
हिंदी शब्द सलिला : ८ अ से प्रारंभ होनेवाले शब्द : ८ --संजीव 'सलिल'
हिंदी शब्द सलिला : ८
संजीव 'सलिल'
*
संकेत : अ.-अव्यय, अर. अरबी, अक्रि.-अकर्मक क्रिया, अप्र.-अप्रचलित, अर्थ.-अर्थशास्त्र, अलं.- अलंकार, अल्प-अल्प (लघुरूप) सूचक, आ.-आधुनिक, आयु.-आयुर्वेद, इ.-इत्यादि, इब.-इबरानी, उ. -उर्दू, उदा.-उदाहरण, उप.-उपसर्ग, उपनि.-उपनिषद, अं.-अंगिका, अंक.-अंकगणित, इ.-इंग्लिश/अंगरेजी, का.-कानून, काम.-कामशास्त्र, क्व.-क्वचित, ग.-गणित, गी.-गीता, गीता.-गीतावली, तुलसी-कृत, ग्रा.-ग्राम्य, ग्री.-ग्रीक., चि.-चित्रकला, छ.-छतीसगढ़ी, छं.-छंद, ज.-जर्मन, जै.-जैन साहित्य, ज्या.-ज्यामिति, ज्यो.-ज्योतिष, तं.-तंत्रशास्त्र, ति.-तिब्बती, तिर.-तिरस्कारसूचक, दे.-देशज, देव.-देवनागरी, ना.-नाटक, न्या.-न्याय, पा.-पाली, पारा.- पाराशर संहिता, पु.-पुराण, पुल.-पुल्लिंग, पुर्त. पुर्तगाली, पुरा.-पुरातत्व, प्र.-प्रत्यय, प्रा.-प्राचीन, प्राक.-प्राकृत, फा.-फ़ारसी, फ्रे.-फ्रेंच, ब.-बघेली, बर.-बर्मी, बहु.-बहुवचन, बि.-बिहारी, बुं.-बुन्देलखंडी, बृ.-बृहत्संहिता, बृज.-बृजभाषा बो.-बोलचाल, बौ.-बौद्ध, बं.-बांग्ला/बंगाली, भाग.-भागवत/श्रीमद्भागवत, भूक्रि.-भूतकालिक क्रिया, मनु.-मनुस्मृति, महा.-महाभारत, मी.-मीमांसा, मु.-मुसलमान/नी, मुहा. -मुहावरा, यू.-यूनानी, यूरो.-यूरोपीय, योग.योगशास्त्र, रा.-रामचन्द्रिका, केशवदस-कृत, राम.- रामचरितमानस-तुलसीकृत, रामा.- वाल्मीकि रामायण, रा.-पृथ्वीराज रासो, ला.-लाक्षणिक, लै.-लैटिन, लो.-लोकमान्य/लोक में प्रचलित, वा.-वाक्य, वि.-विशेषण, विद.-विदुरनीति, विद्या.-विद्यापति, वे.-वेदान्त, वै.-वैदिक, व्यं.-व्यंग्य, व्या.-व्याकरण, शुक्र.-शुक्रनीति, सं.-संस्कृत/संज्ञा, सक्रि.-सकर्मक क्रिया, सर्व.-सर्वनाम, सा.-साहित्य/साहित्यिक, सां.-सांस्कृतिक, सू.-सूफीमत, स्त्री.-स्त्रीलिंग, स्मृ.-स्मृतिग्रन्थ, ह.-हरिवंश पुराण, हिं.-हिंदी.
अ से प्रारंभ होनेवाले शब्द : ८
संजीव 'सलिल'
अक्टूबर - पु. ईस्वी साल का दसवां महीना.
अक्त - वि. सं. अंजन लगा हुआ, लिप्त, छिपा हुआ, व्याप्त, व्यक्त, भरा हुआ, युक्त (समासांत में- तैलाक्त), हाँका हुआ, चलाया हुआ.
अक्ता - स्त्री. सं. रात्रि.
अक्त्र - पु.. सं. वर्म, कवच.
अकद - पु. अ. प्रतिज्ञा, इकरार, विवाह, निकाह. -नामा- पु. विवाह का प्रतिज्ञा पत्र. -बंदी- स्त्री. विवाह सूत्र में बँधना.
अक्र - वि. सं. निष्क्रिय.
अक्रम - वि. सं. क्रमरहित, अव्यवस्थित, बेसिलसिला, गतिहीन, आगे बढ़ने में असमर्थ. पु.क्रम का अभाव, बेतरतीबी, अव्यवस्था, गतिहीनता, -सन्यास- पु. सन्यास जो आश्रम व्यवस्था के अनुसार धारण न किया गया हो.
अक्रमातिशयोक्ति - स्त्री. सं. अतिशयोक्ति अलंकर का एक भेद जहाँ कार्य और कारण का एक साथ ही होना वर्णित हो.
अक्रव्याद - वि. सं. निरामिषभोजी, शाकाहारी, जो मांसादि न खाता हो.
अक्रांत - वि. सं. अपराजित, जिससे कोइ आगे न निकल सका हो.
अक्रांता - स्त्री. सं. बृहती, कंटकारि.
अक्रिय - वि. सं. निष्क्रिय, काहिल, निकम्मा, जो कुछ न करे, कर्मशून्य, परमात्मा.
अक्रिया - स्त्री. सं. निष्क्रियता, कर्त्तव्य न करना, दुष्कर्म.
अक्रूर - वि. सं. दयालु, कोमल चित्त. पु. एक यादव जो श्री कृष्ण के चाचा और भक्त थे.
अक्रोध - पु. सं. क्रोध का नियंत्रण या अभाव, सहिष्णुता. वि. क्रोधरहित.
अक्रोधन - वि. सं. देखें अक्रोध. पु. एक रजा, अयुतायु का पुत्र.
अक्रोधमय - वि. सं.क्रोधरहित, बिना नाराजी का.
संजीव 'सलिल'
*
संकेत : अ.-अव्यय, अर. अरबी, अक्रि.-अकर्मक क्रिया, अप्र.-अप्रचलित, अर्थ.-अर्थशास्त्र, अलं.- अलंकार, अल्प-अल्प (लघुरूप) सूचक, आ.-आधुनिक, आयु.-आयुर्वेद, इ.-इत्यादि, इब.-इबरानी, उ. -उर्दू, उदा.-उदाहरण, उप.-उपसर्ग, उपनि.-उपनिषद, अं.-अंगिका, अंक.-अंकगणित, इ.-इंग्लिश/अंगरेजी, का.-कानून, काम.-कामशास्त्र, क्व.-क्वचित, ग.-गणित, गी.-गीता, गीता.-गीतावली, तुलसी-कृत, ग्रा.-ग्राम्य, ग्री.-ग्रीक., चि.-चित्रकला, छ.-छतीसगढ़ी, छं.-छंद, ज.-जर्मन, जै.-जैन साहित्य, ज्या.-ज्यामिति, ज्यो.-ज्योतिष, तं.-तंत्रशास्त्र, ति.-तिब्बती, तिर.-तिरस्कारसूचक, दे.-देशज, देव.-देवनागरी, ना.-नाटक, न्या.-न्याय, पा.-पाली, पारा.- पाराशर संहिता, पु.-पुराण, पुल.-पुल्लिंग, पुर्त. पुर्तगाली, पुरा.-पुरातत्व, प्र.-प्रत्यय, प्रा.-प्राचीन, प्राक.-प्राकृत, फा.-फ़ारसी, फ्रे.-फ्रेंच, ब.-बघेली, बर.-बर्मी, बहु.-बहुवचन, बि.-बिहारी, बुं.-बुन्देलखंडी, बृ.-बृहत्संहिता, बृज.-बृजभाषा बो.-बोलचाल, बौ.-बौद्ध, बं.-बांग्ला/बंगाली, भाग.-भागवत/श्रीमद्भागवत, भूक्रि.-भूतकालिक क्रिया, मनु.-मनुस्मृति, महा.-महाभारत, मी.-मीमांसा, मु.-मुसलमान/नी, मुहा. -मुहावरा, यू.-यूनानी, यूरो.-यूरोपीय, योग.योगशास्त्र, रा.-रामचन्द्रिका, केशवदस-कृत, राम.- रामचरितमानस-तुलसीकृत, रामा.- वाल्मीकि रामायण, रा.-पृथ्वीराज रासो, ला.-लाक्षणिक, लै.-लैटिन, लो.-लोकमान्य/लोक में प्रचलित, वा.-वाक्य, वि.-विशेषण, विद.-विदुरनीति, विद्या.-विद्यापति, वे.-वेदान्त, वै.-वैदिक, व्यं.-व्यंग्य, व्या.-व्याकरण, शुक्र.-शुक्रनीति, सं.-संस्कृत/संज्ञा, सक्रि.-सकर्मक क्रिया, सर्व.-सर्वनाम, सा.-साहित्य/साहित्यिक, सां.-सांस्कृतिक, सू.-सूफीमत, स्त्री.-स्त्रीलिंग, स्मृ.-स्मृतिग्रन्थ, ह.-हरिवंश पुराण, हिं.-हिंदी.
अ से प्रारंभ होनेवाले शब्द : ८
संजीव 'सलिल'
अक्टूबर - पु. ईस्वी साल का दसवां महीना.
अक्त - वि. सं. अंजन लगा हुआ, लिप्त, छिपा हुआ, व्याप्त, व्यक्त, भरा हुआ, युक्त (समासांत में- तैलाक्त), हाँका हुआ, चलाया हुआ.
अक्ता - स्त्री. सं. रात्रि.
अक्त्र - पु.. सं. वर्म, कवच.
अकद - पु. अ. प्रतिज्ञा, इकरार, विवाह, निकाह. -नामा- पु. विवाह का प्रतिज्ञा पत्र. -बंदी- स्त्री. विवाह सूत्र में बँधना.
अक्र - वि. सं. निष्क्रिय.
अक्रम - वि. सं. क्रमरहित, अव्यवस्थित, बेसिलसिला, गतिहीन, आगे बढ़ने में असमर्थ. पु.क्रम का अभाव, बेतरतीबी, अव्यवस्था, गतिहीनता, -सन्यास- पु. सन्यास जो आश्रम व्यवस्था के अनुसार धारण न किया गया हो.
अक्रमातिशयोक्ति - स्त्री. सं. अतिशयोक्ति अलंकर का एक भेद जहाँ कार्य और कारण का एक साथ ही होना वर्णित हो.
अक्रव्याद - वि. सं. निरामिषभोजी, शाकाहारी, जो मांसादि न खाता हो.
अक्रांत - वि. सं. अपराजित, जिससे कोइ आगे न निकल सका हो.
अक्रांता - स्त्री. सं. बृहती, कंटकारि.
अक्रिय - वि. सं. निष्क्रिय, काहिल, निकम्मा, जो कुछ न करे, कर्मशून्य, परमात्मा.
अक्रिया - स्त्री. सं. निष्क्रियता, कर्त्तव्य न करना, दुष्कर्म.
अक्रूर - वि. सं. दयालु, कोमल चित्त. पु. एक यादव जो श्री कृष्ण के चाचा और भक्त थे.
अक्रोध - पु. सं. क्रोध का नियंत्रण या अभाव, सहिष्णुता. वि. क्रोधरहित.
अक्रोधन - वि. सं. देखें अक्रोध. पु. एक रजा, अयुतायु का पुत्र.
अक्रोधमय - वि. सं.क्रोधरहित, बिना नाराजी का.
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करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
विजयादशमी पर विशेष : आओ हम सब राम बनें --- डॉ. अ. कीर्तिवर्धन
विजयादशमी पर विशेष :
आओ हम सब राम बनें
डॉ. अ. कीर्तिवर्धन, मुजफ्फरपुर
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त्रेता युग मे राम हुए थे
रावण का संहार किया
द्वापर मे श्री कृष्ण आ गए
कंस का बंटाधार किया ।
कलियुग भी है राह देखता
किसी राम कृष्ण के आने की
भारत की पावन धरती से
दुष्टों को मार भगाने की।
आओ हम सब राम बनें
कुछ लक्ष्मण सा भाव भरें
नैतिकता और बाहुबल से
आतंकवाद को खत्म करें।
एक नहीं लाखों रावण हैं
जो संग हमारे रहते
दहेज -गरीबी- अ शिक्षा का
कवच चढाये बैठे हैं।
कुम्भकरण से नेता बैठे
स्वार्थों की रुई कान मे डाल
मारीच से छली अनेकों
राष्ट्र प्रेम का नही है ख्याल ।
शीघ्र एक विभिक्षण ढूँढो
नाभि का पता बताएगा
देश भक्ति के एक बाण से
रावण का नाश कराएगा।
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रावण का संहार किया
द्वापर मे श्री कृष्ण आ गए
कंस का बंटाधार किया ।
कलियुग भी है राह देखता
किसी राम कृष्ण के आने की
भारत की पावन धरती से
दुष्टों को मार भगाने की।
आओ हम सब राम बनें
कुछ लक्ष्मण सा भाव भरें
नैतिकता और बाहुबल से
आतंकवाद को खत्म करें।
एक नहीं लाखों रावण हैं
जो संग हमारे रहते
दहेज -गरीबी- अ शिक्षा का
कवच चढाये बैठे हैं।
कुम्भकरण से नेता बैठे
स्वार्थों की रुई कान मे डाल
मारीच से छली अनेकों
राष्ट्र प्रेम का नही है ख्याल ।
शीघ्र एक विभिक्षण ढूँढो
नाभि का पता बताएगा
देश भक्ति के एक बाण से
रावण का नाश कराएगा।
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दशहरे पर विशेष प्रस्तुति : दोहा सलिला ---- - आचार्य संजीव वर्मा "सलिल"
दशहरे पर विशेष प्रस्तुति : दोहा सलिला
रावण बाहर है नहीं, मन में रावण मार- आचार्य संजीव वर्मा "सलिल"
रचनाकार परिचय:-आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' नें नागरिक अभियंत्रण में त्रिवर्षीय डिप्लोमा. बी.ई.., एम. आई.ई., अर्थशास्त्र तथा दर्शनशास्त्र में एम. ऐ.., एल-एल. बी., विशारद,, पत्रकारिता में डिप्लोमा, कंप्युटर ऍप्लिकेशन में डिप्लोमा किया है।
आपकी प्रथम प्रकाशित कृति 'कलम के देव' भक्ति गीत संग्रह है। 'लोकतंत्र का मकबरा' तथा 'मीत मेरे' आपकी छंद मुक्त कविताओं के संग्रह हैं। आपकी चौथी प्रकाशित कृति है 'भूकंप के साथ जीना सीखें'। आपनें निर्माण के नूपुर, नींव के पत्थर, राम नम सुखदाई, तिनका-तिनका नीड़, सौरभ:, यदा-कदा, द्वार खड़े इतिहास के, काव्य मन्दाकिनी २००८ आदि पुस्तकों के साथ साथ अनेक पत्रिकाओं व स्मारिकाओं का भी संपादन किया है।
आपको देश-विदेश में १२ राज्यों की ५० सस्थाओं ने ७० सम्मानों से सम्मानित किया जिनमें प्रमुख हैं : आचार्य, २०वीन शताब्दी रत्न, सरस्वती रत्न, संपादक रत्न, विज्ञानं रत्न, शारदा सुत, श्रेष्ठ गीतकार, भाषा भूषण, चित्रांश गौरव, साहित्य गौरव, साहित्य वारिधि, साहित्य शिरोमणि, काव्य श्री, मानसरोवर साहित्य सम्मान, पाथेय सम्मान, वृक्ष मित्र सम्मान, आदि।
आपकी प्रथम प्रकाशित कृति 'कलम के देव' भक्ति गीत संग्रह है। 'लोकतंत्र का मकबरा' तथा 'मीत मेरे' आपकी छंद मुक्त कविताओं के संग्रह हैं। आपकी चौथी प्रकाशित कृति है 'भूकंप के साथ जीना सीखें'। आपनें निर्माण के नूपुर, नींव के पत्थर, राम नम सुखदाई, तिनका-तिनका नीड़, सौरभ:, यदा-कदा, द्वार खड़े इतिहास के, काव्य मन्दाकिनी २००८ आदि पुस्तकों के साथ साथ अनेक पत्रिकाओं व स्मारिकाओं का भी संपादन किया है।
आपको देश-विदेश में १२ राज्यों की ५० सस्थाओं ने ७० सम्मानों से सम्मानित किया जिनमें प्रमुख हैं : आचार्य, २०वीन शताब्दी रत्न, सरस्वती रत्न, संपादक रत्न, विज्ञानं रत्न, शारदा सुत, श्रेष्ठ गीतकार, भाषा भूषण, चित्रांश गौरव, साहित्य गौरव, साहित्य वारिधि, साहित्य शिरोमणि, काव्य श्री, मानसरोवर साहित्य सम्मान, पाथेय सम्मान, वृक्ष मित्र सम्मान, आदि।
वर्तमान में आप अनुविभागीय अधिकारी मध्य प्रदेश लोक निर्माण विभाग के रूप में कार्यरत हैं।
भक्ति शक्ति की कीजिये, मिले सफलता नित्य.
स्नेह-साधना ही 'सलिल', है जीवन का सत्य..
आना-जाना नियति है, धर्म-कर्म पुरुषार्थ.
फल की चिंता छोड़कर, करता चल परमार्थ..
मन का संशय दनुज है, कर दे इसका अंत.
हरकर जन के कष्ट सब, हो जा नर तू संत..
शर निष्ठां का लीजिये, कोशिश बने कमान.
जन-हित का ले लक्ष्य तू, फिर कर शर-संधान..
राम वही आराम हो. जिसको सदा हराम.
जो निज-चिंता भूलकर सबके सधे काम..
दशकन्धर दस वृत्तियाँ, दशरथ इन्द्रिय जान.
दो कर तन-मन साधते, मौन लक्ष्य अनुमान..
सीता है आस्था 'सलिल', अडिग-अटल संकल्प.
पल भर भी मन में नहीं, जिसके कोई विकल्प..
हर अभाव भरता भरत, रहकर रीते हाथ.
विधि-हरि-हर तब राम बन, रखते सर पर हाथ..
कैकेयी के त्याग को, जो लेता है जान.
परम सत्य उससे नहीं, रह पता अनजान..
हनुमत निज मत भूलकर, करते दृढ विश्वास.
इसीलिये संशय नहीं, आता उनके पास..
रावण बाहर है नहीं, मन में रावण मार.
स्वार्थ- बैर, मद-क्रोध को, बन लछमन संहार..
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-Acharya Sanjiv Verma 'Salil',
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मशीन पठनीय शब्दकोश [तकनीकी आलेख] - डॉ. काजल बाजपेयी
मशीन पठनीय शब्दकोश [तकनीकी आलेख] - डॉ. काजल बाजपेयी
सभ्यता और संस्कृति के उदय से ही मानव जान गया था कि भाव के सही संप्रेषण के लिए सही अभिव्यक्ति आवश्यक है। सही अभिव्यक्ति के लिए सही शब्द का चयन आवश्यक है। सही शब्द के चयन के लिए शब्दों के संकलन आवश्यक हैं। शब्दों और भाषा के मानकीकरण की आवश्यकता समझ कर आरंभिक लिपियों के उदय से बहुत पहले ही आदमी ने शब्दों का लेखाजोखा रखना शुरू कर दिया था। इस के लिए उस ने कोश बनाना शुरू किया। कोश में शब्दों को इकट्ठा किया जाता है।
शब्दकोश एक बड़ी सूची होती है जिसमें शब्दों के साथ उनके अर्थ व व्याख्या लिखी होती है। शब्दकोश एक भाषीय हो सकते हैं द्विभाषिक हो सकते हैं या बहुभाषिक हो सकते हैं। अधिकतर शब्दकोशों में शब्दों के उच्चारण के लिये भी व्यवस्था होती है जैसे अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक लिपि में देवनागरी में या आडियो संचिका के रूप में। कुछ शब्दकोशों में चित्रों का सहारा भी लिया जाता है। अलग अलग कार्य क्षेत्रों के लिये अलग अलग शब्दकोश हो सकते हैं जैसे विज्ञान शब्दकोश चिकित्सा शब्दकोश विधिक ;कानूनी शब्दकोश गणित का शब्दकोश आदि।
शब्दकोशों के अनेक रूप आज विकसित हो चुके हैं और हो रहे हैं। वैज्ञानिक और शास्त्रीय विषयों के सामूहिक और उस विषय के अनुसार शब्दकोश भी आज सभी समृद्ध भाषाओं में बनते जा रहे हैं । शास्त्रों और विज्ञानशाखाओं के परिभाषिक शब्दकोश भी निर्मित हो चुके हैं और हो रहे हैं । इन शब्दकोशों की रचना एक भाषा में भी होती है और दो या अनेक भाषाओं में भी । कुछ में केवल पर्याय शब्द रहते हैं और कुछ में व्याख्याएँ अथवा परिभाषाएँ भी दी जाती है। विज्ञान और तकनीकी या प्रविधिक विषयों से संबद्ध नाना पारिभाषिक शब्दकोशों में व्याख्यात्मक परिभाषाओं तथा कभी कभी अन्य साधनों की सहायता से भी बिलकुल सही अर्थ का बोध कराया जाता है । दर्शन भाषाविज्ञान मनोविज्ञान समाजविज्ञान और समाजशास्त्र राजनीतिशास्त्र अर्थशास्त्र आदि समस्त आधुनिक विद्याओं के कोश विश्व की विविध संपन्न भाषाओं में विशेषज्ञों की सहायता से बनाए जा रहे हैं और इस प्रकृति के सैकडों हजारों कोश भी बन चुके हैं । शब्दार्थकोश संबंधी प्रकृति के अतिरिक्त इनमें ज्ञानकोशात्मक तत्वों की विस्तृत या लघु व्याख्याएँ भी संमिश्रित रहती है । प्राचीन शास्त्रों और दर्शनों आदि के विशिष्ट एवं पारिभाषिक शब्दों के कोश भी बने हैं और बनाए जा रहे हैं ।
मशीन पठनीय शब्दकोश ;एमआरडी कागज पर मुद्रित करने के बजाय एक मशीन; कंप्यूटर डेटा के रूप में संग्रहित शब्दकोश है । यह एक इलेक्ट्रॉनिक शब्दकोश और शाब्दिक डेटाबेस है।
मशीन पठनीय शब्दकोश इलेक्ट्रॉनिक रूप में शब्दकोश है जोकि डेटाबेस में लोड किया जा सकता और अनुप्रयोग सॉफ्टवेयर के माध्यम से पूछा जा सकता है। यह दो या अधिक भाषाओं को या दोनों के संयोजन के बीच अनुवाद का समर्थन देने के लिए एक भाषा व्याख्यात्मक शब्दकोश या बहु भाषा शब्दकोश हो सकते हैं। एकाधिक भाषाओं के बीच अनुवाद सॉफ्टवेयर आमतौर पर द्विदिशात्मक शब्दकोशों पर लागू होते हैं। एमआरडी शब्दकोश एक ट्रेडमार्क युक्त संरचना हो सकती है जोकि एक ही कार्य करने में सक्षम सॉफ्टवेयर; उदाहरण के लिए इंटरनेट के माध्यम से ऑनलाइन द्ध के द्वारा पूछे जा सकते हैं या यह एक शब्दकोश भी हो सकता है जिसकी खुली संरचना है और कंप्यूटर डेटाबेस में लोड करने के लिए उपलब्ध है और इस प्रकार विभिन्न सॉफ्टवेयर अनुप्रयोगों के जरिए प्रयोग किया जा सकता है । पारम्परिक शब्दकोशों में विभिन्न विवरण के साथ लैमा होते हैं। मशीन पठनीय शब्दकोश में अतिरिक्त क्षमताएँ हो सकती हैं और इसलिए कभी कभी इसे अच्छा शब्दकोश भी कहा जाता है।
इलेक्ट्रॉनिक शब्दकोश या शब्दावली के प्रयोग के रूप में उदाहरण के लिए वर्तनी जाँचकर्ता में उद्घृत करने के लिए शब्दकोश का भी प्रयोग किया जाता है। यदि शब्दकोश अवधारणाओं के उपप्रकार महाप्रकार पदानुक्रम में व्यवस्थित होते हैं तो इसे वर्गीकरण विज्ञान कहा जाता है। यदि इसमें अवधारणाओं के बीच अन्य संबंध भी होए तो इसे वस्तुरूप विज्ञान कहा जाता है। खोज इंजन या तो शब्दावलीए वर्गीकरण विज्ञान या वस्तुरूप विज्ञान का उपयोग करने के लिए खोज परिणामों को अनुकूलित कर सकते हैं। विशेष इलेक्ट्रॉनिक शब्दकोश आकृति संबंधी शब्दकोश या वाक्यात्मक शब्दकोश हैं।
मशीन पठनीय शब्दकोशों में निम्ननिर्दिष्ट बातों का अनुयोग आवश्यक है
देवनागरी लिपि के लिए यूनीकोड फॉन्ट
खोजे गये शब्द का उच्चारण
स्पष्ट लेआउट / जी यू आई प्रयोग में आसान
तीन अक्षरों पर शब्द सूची
पूर्ण शब्द खोज
द्विआयामी खोज
शब्दों की सूची में से खोजने की सुविधा
सही मौखिक उच्चारण और संबंधित जानकारी
अर्थ एवं संबंधित जानकारी
शब्द पदबंध का प्रयोग
शब्द पदबंध का सचित्र चित्रण ;जहॉं उचित हो
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डॉ. काजल बाजपेयी, संगणकीय भाषावैज्ञानिक, सी.डैक पुणे, साभार : साहित्य शिल्पी.
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मुक्तिका: कुछ पड़े हैं ----संजीव 'सलिल'
मुक्तिका:
कुछ पड़े हैं
संजीव 'सलिल'
*
कुछ पड़े हैं, कुछ खड़े हैं.
ऐंठकर कुछ चुप अड़े हैं..
बोल दो, कुछ भी कहीं भी.
ज्यों की त्यों चिकने घड़े हैं..
चमक ऊपर से बहुत है.
किन्तु भीतर से सड़े हैं..
हाथ थामे, गले मिलते.
किन्तु मन से मन लड़े हैं..
ठूंठ को नीरस न बोलो.
फूल-फल लगकर झड़े हैं..
धरा के मालिक बने जो.
वह जमीनों में गड़े हैं..
मैल गर दिल में नहीं तो
प्रभु स्वयम बन नग जड़े हैं..
दिख रहे जो 'सलिल' लड़ते.
एक ही दल के धड़े हैं.
**************
कुछ पड़े हैं
संजीव 'सलिल'
*
कुछ पड़े हैं, कुछ खड़े हैं.
ऐंठकर कुछ चुप अड़े हैं..
बोल दो, कुछ भी कहीं भी.
ज्यों की त्यों चिकने घड़े हैं..
चमक ऊपर से बहुत है.
किन्तु भीतर से सड़े हैं..
हाथ थामे, गले मिलते.
किन्तु मन से मन लड़े हैं..
ठूंठ को नीरस न बोलो.
फूल-फल लगकर झड़े हैं..
धरा के मालिक बने जो.
वह जमीनों में गड़े हैं..
मैल गर दिल में नहीं तो
प्रभु स्वयम बन नग जड़े हैं..
दिख रहे जो 'सलिल' लड़ते.
एक ही दल के धड़े हैं.
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