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मंगलवार, 12 अक्टूबर 2021

सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्र

नवरात्रि और सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्र (हिंदी काव्यानुवाद सहित)
*
नवरात्रि पर्व में माँ दुर्गा की आराधना हेतु नौ दिनों तक व्रत किया जाता है। रात्रि में गरबा व डांडिया रास कर शक्ति की उपासना तथा विशेष कामनापूर्ति हेतु दुर्गा सप्तशती, चंडी तथा सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ किया जाता है। दुर्गा सप्तशती तथा चंडी पाठ जटिल तथा प्रचण्ड शक्ति के आवाहन हेतु है। लोक-मान्यता है कि इसके अनुष्ठान में अत्यंत सावधानी आवश्यक है, अन्यथा क्षति संभावित हैं। दुर्गा सप्तशती या चंडी पाठ करने में अक्षम भक्तों हेतु प्रतिदिन दुर्गा-चालीसा अथवा सप्तश्लोकी दुर्गा के पाठ का विधान है जिसमें सामान्य शुद्धि और पूजन विधि ही पर्याप्त है। त्रिकाल संध्या अथवा दैनिक पूजा के साथ भी इसका पाठ किया जा सकता है जिससे दुर्गा सप्तशती,चंडी-पाठ अथवा दुर्गा-चालीसा पाठ के समान पुण्य मिलता है।
कुमारी पूजन
नवरात्रि व्रत का समापन कुमारी पूजन से करते हैं। नवरात्रि के अंतिम दिन दस वर्ष से कम उम्र की ९ कन्याओं को माँ दुर्गा के नौ रूप (दो वर्ष की कुमारी, तीन वर्ष की त्रिमूर्तिनी, चार वर्ष की कल्याणी, पाँच वर्ष की रोहिणी, छः वर्ष की काली, सात वर्ष की चण्डिका, आठ वर्ष की शांभवी, नौ वर्ष की दुर्गा, दस वर्ष की सुभद्रा) मान पूजन कर मिष्ठान्न, भोजन के पश्चात् व दान-दक्षिणा भेंट करें।
सप्तश्लोकी दुर्गा
निराकार ने चित्र गुप्त को, परा प्रकृति रच व्यक्त किया।
महाशक्ति ने आत्म रूप दे, जड़-चेतन संयुक्त किया।।
नाद शारदा, वृद्धि लक्ष्मी, रक्षा-नाश उमा-नव रूप-
विधि-हरि-हर हो सके पूर्ण तब, जग-जीवन जी​वंत किया।।
*
जनक-जननि की कर परिक्रमा, हुए अग्र-पूजित विघ्नेश।
आदि शक्ति हों सदय तनिक तो, बाधा-संकट रहें न लेश ।।
सात श्लोक दुर्गा-रहस्य को बतलाते, सब जन लें जान-
क्या करती हैं मातु भवानी, हों कृपालु किस तरह विशेष?
*
शिव उवाच-
देवि त्वं भक्तसुलभे सर्वकार्यविधायिनी।
कलौ हि कार्यसिद्धयर्थमुपायं ब्रूहि यत्नतः॥
शिव बोले: 'सब कार्यनियंता, देवी! भक्त-सुलभ हों आप।
कलियुग में हों कार्य सिद्ध कैसे?, उपाय कुछ कहिये आप।।'
*
देव्युवाच-
श्रृणु देव प्रवक्ष्यामि कलौ सर्वेष्टसाधनम्‌।
मया तवैव स्नेहेनाप्यम्बास्तुतिः प्रकाश्यते॥
देवी बोलीं: 'सुनो देव! कहती हूँ इष्ट सधें कलि-कैसे?
अंबास्तुति बतलाती हूँ मैं, पाकर स्नेह तुम्हारा हृद से।।'
*
विनियोग-
ॐ अस्य श्रीदुर्गासप्तश्लोकीस्तोत्रमन्त्रस्य नारायण ऋषिः​
अनुष्टप्‌ छन्दः, श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवताः
श्रीदुर्गाप्रीत्यर्थं सप्तश्लोकीदुर्गापाठे विनियोगः।
ॐ रचे दुर्गासतश्लोकी स्तोत्र मंत्र नारायण ऋषि ने
छंद अनुष्टुप महा कालिका-रमा-शारदा की स्तुति कर
श्री दुर्गा की प्रीति हेतु सतश्लोकी दुर्गापाठ नियोजित।।
*
ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति॥१॥
ॐ ज्ञानियों के चित को देवी भगवती मोह लेतीं जब।
बल से कर आकृष्ट महामाया भरमा देती हैं मति तब।१।
*
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजंतो:
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्र्‌यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता॥२॥
माँ दुर्गा का नाम-जाप भयभीत जनों का भय हरता है,
स्वस्थ्य चित्त वाले सज्जन, शुभ मति पाते, जीवन खिलता है।
दुःख-दरिद्रता-भय हरने की माँ जैसी क्षमता किसमें है?
सबका मंगल करती हैं माँ, चित्त आर्द्र पल-पल रहता है।२।
*
सर्वमंगलमंगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते॥३॥
मंगल का भी मंगल करतीं, शिवा! सर्व हित साध भक्त का।
रहें त्रिनेत्री शिव सँग गौरी, नारायणी नमन तुमको माँ।३।
*
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तुते॥४॥
शरण गहें जो आर्त-दीन जन, उनको तारें हर संकट हर।
सब बाधा-पीड़ा हरती हैं, नारायणी नमन तुमको माँ ।४।
*
सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तुते॥५॥
सब रूपों की, सब ईशों की, शक्ति समन्वित तुममें सारी।
देवी! भय न रहे अस्त्रों का, दुर्गा देवी तुम्हें नमन माँ! ।५।
*
रोगानशोषानपहंसि तुष्टा
रूष्टा तु कामान्‌ सकलानभीष्टान्‌।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां
त्वामाश्रिता ह्माश्रयतां प्रयान्ति॥६॥
शेष न रहते रोग तुष्ट यदि, रुष्ट अगर सब काम बिगड़ते।
रहे विपन्न न कभी आश्रित, आश्रित सबसे आश्रय पाते।६।
*
सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्र्वरि।
एवमेव त्वया कार्यमस्यद्वैरिविनाशनम्‌॥७॥
माँ त्रिलोकस्वामिनी! हर कर, हर भव-बाधा।
कार्य सिद्ध कर, नाश बैरियों का कर दो माँ! ।७।
*
॥इति श्रीसप्तश्लोकी दुर्गा संपूर्णम्‌॥
।श्री सप्तश्लोकी दुर्गा (स्तोत्र) पूर्ण हुआ।
१२-१०-२०१८ 

बाल गीत, मुक्तक

बाल गीत:
लंगडी खेलें.....
*
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....
*
एक पैर लें
जमा जमीं पर।
रखें दूसरा
थोडा ऊपर।
बना संतुलन
निज शरीर का-
आउट कर दें
तुमको छूकर।
एक दिशा में
तुम्हें धकेलें।
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....
*
आगे जो भी
दौड़ लगाये।
कोशिश यही
हाथ वह आये।
बचकर दूर न
जाने पाए-
चाहे कितना
भी भरमाये।
हम भी चुप रह
करें झमेले।
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....*
हा-हा-हैया,
ता-ता-थैया।
छू राधा को
किशन कन्हैया।
गिरें धूल में,
रो-उठ-हँसकर,
भूलें- झींकेगी
फिर मैया।
हर पल 'सलिल'
ख़ुशी के मेले।
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....
*
बालगीत
(लोस एंजिल्स अमेरिका से अपनी मम्मी रानी विशाल सहित ददिहाल-ननिहाल भारत आई नन्हीं अनुष्का के लिए २०१० में रचा गया था यह गीत)
****************
लो भारत में आई अनुष्का.
सबके दिल पर छाई अनुष्का.
यह परियों की शहजादी है.
खुशियाँ अनगिन लाई अनुष्का..
है नन्हीं, हौसले बड़े हैं.
कलियों सी मुस्काई अनुष्का..
दादा-दादी, नाना-नानी,
मामा के मन भाई अनुष्का..
सबसे मिल मम्मी क्यों रोती?
सोचे, समझ न पाई अनुष्का..
सात समंदर दूरी कितनी?
कर फैला मुस्काई अनुष्का..
जो मन भाये वही करेगी.
रोको, हुई रुलाई अनुष्का..
मम्मी दौड़ी, पकड़- चुपाऊँ.
हाथ न लेकिन आई अनुष्का..
ठेंगा दिखा दूर से हँस दी .
मन भरमा भरमाई अनुष्का..
***************
मुक्तक:
शीत है तो प्रीत भी है.
हार है तो जीत भी है.
पुरातन पाखंड हैं तो-
सनातन शुभ रीत भी है
***
छंद में ही सवाल करते हो
छंद का क्यों बवाल करते हो?
है जगत दन्द-फन्द में उलझा
छंद देकर निहाल करते हो
***
१२-१०-२०१७ 

गीत

गीत: 
सहज हो ले रे अरे मन !
*
मत विगत को सच समझ रे.
फिर न आगत से उलझ रे.
झूमकर ले आज को जी-
स्वप्न सच करले सुलझ रे.

प्रश्न मत कर, कौन बूझे?
उत्तरों से कौन जूझे?
भुलाकर संदेह, कर-
विश्वास का नित आचमन.

सहज हो ले रे अरे मन !
*
उत्तरों का क्या करेगा?
अनुत्तर पथ तू वरेगा?
फूल-फलकर जब झुकेगा-
धरा से मिलने झरेगा.

बने मिटकर, मिटे बनकर.
तने झुककर, झुके तनकर.
तितलियाँ-कलियाँ हँसे,
ऋतुराज का हो आगमन.
सहज हो ले रे अरे मन !
*
स्वेद-सीकर से नहा ले.
सरलता सलिला बहा ले.
दिखावे के वसन मैले-
धो-सुखा, फैला-तहा ले.

जो पराया वही अपना.
सच दिखे जो वही सपना.
फेंक नपना जड़ जगत का-
चित करे सत आकलन.
सहज हो ले रे अरे मन !
*
सारिका-शुक श्वास-आसें.
देह पिंजरा घेर-फाँसें.
गेह है यह नहीं तेरा-
नेह-नाते मधुर झाँसे.

भग्न मंदिर का पुजारी
आरती-पूजा बिसारी.
भारती के चरण धो- कर
निज नियति का आसवन.
सहज हो ले रे अरे मन !
*
कैक्टस सी मान्यताएँ.
शूल कलियों को चुभाएँ.
फूल भरते मौन आहें-
तितलियाँ नाचें-लुभाएँ.

चेतना तेरी न हुलसी.
क्यों न कर ले माल-तुलसी?
व्याल मस्तक पर तिलक है-
काल का है आ-गमन.
सहज हो ले रे अरे मन !
१२-१०-२०१० 
*

सोमवार, 11 अक्टूबर 2021

सरस्वती वंदना फ्रेंच

सरस्वती वंदना फ्रेंच
आर. जे. संतोषकुमार
*
रेम्प्लिसे
नू रेस्तोन बेनि
नू रेस्तोन रेम्प्लि
नू रेस्तोन एन्करेजे
नू रेस्तोन प्यूसान
नू रेस्तोन इंफार्मे
लार्सक्क नू वू प्रियोन
नोत्र दीसे सरस्वती।


ल मोन्द ये एक्लातान
ल साइंस द देवलप्पे
ल देवलेपमान पारतू
पार्टिसिपेशन ये मेट्नउ इसी
बेनिसे नू अ ग्रान्डिर प्लू
बेनिसे नू ल दीसे सरस्वती।
***
हिंदी भावार्थ
*
हम आशीष हैं
हम सब सुख से भरे हैं
हम प्रेरणा से भरे
हम शक्ति से भरे हैं
जब भी करते हैं हम तुम्हारी
प्रार्थना सरस्वती माता
दुनिया चमक रही है
विज्ञान बढ़ता जा रहा है
यहाँ हर कहीं उन्नति है
हरेक में आज लगाव है
बढ़ने में हमारी मदद करो
माते सरस्वती! हममे आशीष भरो
*



सरस्वती वंदना जर्मनी

सरस्वती वंदना जर्मनी
आर.जे. संतोषकुमार
*
एडर टाग इस्ट फ्रोलिह
एड नाह्ट इस्ट फ्रीडलिक
एड हांडलुग इस्ट फ्रुटबा
एड माल इस्ट दस लेवन शोन।


देन सीगन इस्ट ढेर स्लुशेल
देन सीगन हाट युन्स आम सीगन
वीर सिंग गेसेगनाट फन दैनर जाड
दास लीबन इस्ट कूल मिट दैनम सीगन।


सै मिट युन्स गोटिन सरस्वती
ब्लस युन्स एडन टाग
वीर सिंगन दैनन नामन
इम्मरसीग इस्ट इम्मर दैन
***
हिंदी भावार्थ:
*
हर दिन उल्लास भरा है
हर रात शांति से भरी है
हर कार्य लाभदायक है
हर रूप से ज़िंदगी सुंदर है
आपका आशीष ही कारण है
आपका आशीष ही हमें जिताता है
हम आपके आशीष से भरे हैं
हमारी ज़िंदगी में पूर्ण आराम है
साथ दीजिए माता सरस्वती
आशीष दीजिए हर दिन हर रूप से
हम आपका नाम जपते हैं
हम विजय आपकी सदा चाहते हैं
*

सरस्वती वंदना मलयालम, सरस्वती वंदना बांग्ला, सरस्वती वंदना नेपाली

सरस्वती वंदना मलयालम
र. ज. संतोषकुमार
*
तन्नीडनं
नानल्ला नीयल्ला नम्मलेल्लावरुम
येनेन्नुम अम्मये वनंगुन्ने।
पाउम पडिच्चवन पडिक्कान मडिच्चवन
एल्लारुम अम्मये भजिक्कुने।
नीयल्ले बुद्धि प्रवाहिनी
एन्नेन्नुम नी विद्याधारिणी।
ऐश्वर्यं नल्किडुम विद्यास्वरूपिनि।
अम्मे सरस्वती स्मरिक्कुन्ने मंगल
अज्ञानं अकट्टि तंदीडनम।
विद्ययुम विजयमुम एनेन्नुम
मंगलकु तंदीडनम।
***
हिंदी भावानुवाद
*
ना ही मैं; ना ही तू; हम सब
हमेशा करते माता की वंदना
जो पाठ पढ़ा है; पढ़ाई से मुँह मोड़ा है
सभी करते हैं माता की वंदना।
तुम ही हो बुद्धिवाहिनी
हमेशा तुम हो विद्याधारिणी
ऐश्वर्य प्रदान करनेवाली विद्यास्वरूपिणी।
माते सरस्वती स्मरण करते हैं हम
अज्ञान दूर करो अब तुम
विद्या और विजय हमेशा हमें प्रदान करो तुम।
***


सरस्वती वंदना बांग्ला
..........जोय माँ सरस्वती............
जोय माँ सरोस्वती,आमरा तोमार सन्तान।
तोमार पूजोर नियमें,आमरा ओज्ञान ।
अंधकारे आछी आमरा,नेई कोनो ज्ञान।
तोमारी कृपाय होबे,आमादेर कोल्याण।
तोमार विनार आवाज़,केड़े नेय ध्यान।
तोमार हातेर बोय,बाडाय आमादेर ज्ञान।
हांस तोमार बाहोन,श्वेत बोस्त्रो पोरिधान।
आमरा चाई तोमार काछे,बुद्धि,विद्यादान।
पद्मासने शोभितो,दाउ एमोन बोरदान।
जीवन काटुक"आनंद"ए,कोरी तोमार गुणोगान।
मैं,देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी" सामान्यतः कलकत्ता में रहता हूँ जो मेरा जन्मस्थान है।पुश्तैनी रूप से झाकरखंड के पाकुड़(ग्राम-डांगापाड़ा, मेरे पिताजी का जन्मस्थान) से और बिहार के बांका(ग्राम-अमरपुर,निवास स्थान)से जुड़ा हूँ।मेरी शिक्षा बीएससी,एलएलबी है।पेशे से आयकर अधिवक्ता हूँ।लेखन और गायन मेरा शौक़ है।
माता--स्व.शीला देवी
पिता--स्व.राम बिलाश साहा
पत्नी--श्रीमती पूनम साहा
पता--823 D, मोतीलाल गुप्ता रोड
मुचिपाड़ा,कलकत्ता-700082
(पुरबाशा अपार्टमेंट,प्रथम तल)
रचोनाकार-देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"
***
सरस्वती वंदना नेपाली
नेपाली सरस्वती वंदना
भक्तवत्सल हँसवाहिनी
*
भक्तवत्सल हंसवाहिनी! तूं है करुणा निधान
बलिहारी म्हैं आपकी, शरण में मांगु वास,
भटक्यो घणो हूं थाकगो,एक है थारी आश,
कुबुद्धी म्हारी मिटाय दे,भर कै ज्ञान सुवास,
छवी न्यारी श्वेताम्बरी, चरण पड्यो है दास।
म्हैं सब रचणाकार की,आप सूं ई है पेचाण,
कोई न दाता जगत में, विणावादिनी समान,
गावै चाव सूं चहूं दिशा,आपको मंगल गान,
विपदा मिनटां में मिटै, धर्यां आपको ध्यान।
कृपा माँ की हुणै सूं,बणज्या बिगड्या काम,
जगतमोहिनी रूप आपको प्रज्ञाग्राममें धाम,
बांटै ज्ञान विज्ञान माता,बिन टकै बिन दाम,
तत्त्व प्रकाशक है सदा, माँ सरस्वती को नाम।
विवेक की हो स्वामिनी,सदैव करो कल्याण,
कलम चलाइ राखज्यो,अमृत वचन लेखाण,
आंगली पकड चलाइज्यो,म्हैं तो हाँ अनजान,
चंद्रवदनि हो पद्मासिनि,कृपाकर लेवो संज्ञान।
अवसाद हरो प्रकाश भरो,विन्ती करो विचार,
अब तो करो उद्धार तम सूं,सुखद् हुवै संसार,
मंगलकारी,हितकारी माँ,आया म्हैं थारे द्वार,
टाबरियां पै उपकार करो, हरो थे म्हारो भार।
एक आस-भरोसो एक, सबको करो उत्थान,
घणा दयालु आप हो, जग कल्याण में ध्यान,
वीणा पुस्तक धारिणी माँ, शारदे देवो वरदान,
भक्त वत्सल हँसवाहिनी तूं है करुणा निधान।
*
=========================
लक्ष्मण कुमार नेवटिया
जन्म - बिराटनगर, नेपाल (मूल निवास शेखावाटी राजस्थान)।
आत्मज - स्व. जयदेवी - स्व. रामस्वरूप नेवटिया।
संप्रति - स्व व्यापार टायर आटोमोबाइल्स।
प्रकाशन - 'लक्ष्मण का कुतकुति' नेपाली हास्य व्यंग्य कविता संग्रह, 'अमृत गीता' (श्रीमद्भगवद्गीता का हिन्दी पद्यानुवाद), 'समाज के गीत', 'थोपा थोपा जिन्दगी' हाइकु संग्रह, 'यो जो संग सम्बन्धित छ' लघुकथा संग्रह, नेपाली कविता संग्रह प्रथम मारवाडी अनुवाद बसन्त चौधरी कृत 'बसंत', 'अग्रभागवत' का नेपाली अनुवाद।
उपलब्धि - संयोजक हासने समाज, मोरंग, विराटनगर।
संपर्क (ठेगाना) - रंगेली रोड, बिराटनगर-९।
चलभाष - , ईमेल - nevatialk@gmail.com

सरस्वती वंदना अंग्रेजी

सरस्वती वंदना अंग्रेजी 
ब्लस अस
डॉ. अनिल जैन
*
द रीज़न फॉर लेसन्स एंड आल आर्ट्स
द रीज़न फॉर विजडम एंड ग्रेट हार्टस
यू आर द वन रीज़न फॉर क्रिएशन
यू आर द वन रियल एंड इमेजिनेशन।
द मदर ऑफ लेर्निंग एंड द लेर्नट
द फेदर ऑफ इमेजिनेशन एंड क्रिएशन
यूं आर द वन टू लीड द वे एवर
यू आर द वन टू पोर नॉलेज शॉवर।
वी सैल्यूट यू आर मदर बी वित अस
वी सरेंडर आउर्सेलवेस ब्लेस अस
फिल द वर्ल्ड वित पीस एंड प्लेजर
फ्रेम तिस वर्ल्ड अस नॉलेज ट्रेजर सरस्वती मदर।
*
आशीष दो
सारे पाठ और विधाओं का कारण
संपूर्ण ज्ञान और सच्चे दिल का कारण
संपूर्ण सृष्टि का एकमात्र कारण
सच्चाई भी आप हो कल्पना भी।
शिक्षा और शिक्षित सबकी आप माता
कल्पना और नवीन सृष्टि का आप पंख दाता
हमेशा सबको मार्ग दिखाती हो माता
सब में सदा ज्ञान की वर्षा कराती हो माता।
हम तुम्हारे गुण गाते हैं साथ दो माता
हम तेरे चरण ले चुके आशीष दो माता
जगत को शांति और समृद्धि से भरो
जगत को ज्ञान का भंडार तुम करो सरस्वती माता।
*
Bless Us
The reason for lessons and all arts
The reason for wisdom and great hearts
You are the one reason for creation
You are the one real and imagination.
The mother of learning and the learnt
The feather of imagination and creation
You are the one to lead the way ever
You are the one to pour knowledge shower
We salute you our mother be with us
we surrender ourselves bless us
Fill the world with peace and pleasure
frame this world as the knowledge treasure Saraswathy mother

सरस्वती रुहेली

सुरसती वन्दना रुहेली
-डॉ0 सतीश चंद्र शर्मा "सुधांशु"
*
मैया हमैं वरदान दै,
पाँयन तुमारिन सै परैं
मुस्काउ तौ भाती हमैं
उम्मीद दै जाती हमैं।
हौ ज्ञान की देवी तुमई
दै ज्ञान हरसाती हमैं।
मैया हमैं कछु ज्ञान दै,
अज्ञान सागर सै तरैं।।
है हंस बाहन तुमारो
और कमल आसन तुमारो।
हाथन मैं बीना, ज्ञान पै
पूरो है सासन तुमारो
मैया हमैं कछु दान दै,
लै बिना न दर सै टरैं।।
तुम चाहती हौ लिखैं हम
सबसै अलग सै दिखैं
किरपा तुमारी मिलै तौ
पद, छंद, दोहा सिखैँ हम।
मैया हमैं पहचान दै ,
हम सब बिनै तुम सै करैं।।
(रुहेलखण्ड (बरेली) मंडल के चारों तरफ 1-2 जनपदों में बोली जाती है।)
*

दोहा सलिला

 दोहा सलिला

बात बात में बात
* बात करी तो बात से, निकल पड़ी फिर बात
बात कह रही बात से, हो न बात बेबात
*
बात न की तो रूठकर, फेर रही मुँह बात
बात करे सोचे बिना, बेमतलब की बात
*
बात-बात में बढ़ गयी, अनजाने ही बात
किये बात ने वार कुछ, घायल हैं ज़ज्बात
*
बात गले मिल बात से, बन जाती मुस्कान
अधरों से झरता शहद, जैसे हो रस-खान
*
बात कर रही चंद्रिका, चंद्र सुन रहा मौन
बात बीच में की पड़ी, डांट अधिक ज्यों नौन?
*
आँखों-आँखों में हुई, बिना बात ही बात
कौन बताये क्यों हुई, बेमौसम बरसात?
*
बात हँसी जब बात सुन, खूब खिल गए फूल
ए दैया! मैं क्या करूँ?, पूछ रही चुप धूल
*
बात न कहती बात कुछ, रही बात हर टाल
बात न सुनती बात कुछ, कैसे मिटें सवाल
*
बात काट कर बात की, बात न माने बात
बात मान ले बात जब, बढ़े नहीं तब बात
*
दोष न दोषी का कहे, बात मान निज दोष
खर्च-खर्च घटत नहीं, बातों का अधिकोष
*
बात हुई कन्फ्यूज़ तो, कनबहरी कर बात
'आती हूँ' कह जा रही, बात कहे 'क्या बात'
*

रविवार, 10 अक्टूबर 2021

मुक्तिका

मुक्तिका
(१४ मात्रिक मानव जातीय छंद, यति ५-९)
मापनी- २१ २, २२ १ २२
*
आँख में बाकी न पानी
बुद्धि है कैसे सयानी?
.
है धरा प्यासी न भूलो
वासना, हावी न मानी
.
कौन है जो छोड़ देगा
स्वार्थ, होगा कौन दानी?
.
हैं निरुत्तर प्रश्न सारे
भूल उत्तर मौन मानी
.
शेष हैं नाते न रिश्ते
हो रही है खींचतानी
.
देवता भूखे रहे सो
पंडितों की मेहमानी
.
मैं रहूँ सच्चा विधाता!
तू बना देना न ज्ञानी
.
संजीव, १०.१०.२०१८


राजस्थानी मुक्तिका
संजीव
*
घाघरियो घुमकाय
मरवण घणी सुहाय
*
गोरा-गोरा गाल
मरते दम मुसकाय
*
नैणा फोटू खैंच
हिरदै लई मँढाय
*
तारां छाई रात
जाग-जगा भरमाय
*
जनम-जनम रै संग
ऐसो लाड़ लड़ाय
*
देवी-देव मनाय
मरियो साथै जाय
*



3Gajendra Karan, Santosh Bhauwala और 1 अन्य

दुर्गा सप्तशती अर्गला स्तोत्र


।। यह अर्गला स्तोत्र है।।
। ॐ अर्गला स्तोत्र मंत्र यह, विष्णु ऋषि ने रच गाया।
। छंद अनुष्टुप, महालक्ष्मी देव अंबिका-मन भाया ।
। सप्तशती के अनुष्ठान में, भक्त पाठ-विनियोग करें।
।ॐ चण्डिका मातु नमन शत, मारकंडे' नित जाप करें।
*
।ॐ जयंती मंगलाकाली, शांत कालिका कपालिनी।
। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री माँ, सुध-स्वःस्वाहा जय पालागी।१।
*
। जय-जय-जय देवी चामुंडा, दु:खहर्ता हर प्राणी की।
। व्याप्त सभी में रहनेवाली, कालयात्री जय पालागी।२।
*
। मधु-कैटभ वध कर ब्रम्हा को, वर देने वाली मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोह-विजय दो, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।३।
*
। महिषासुर-वधकर्ता माता, भक्तों को सुख दो मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।४।
*
। रक्तबीज संहारकारिणी, चण्ड-मुण्डहंता मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।५।
*
। शुम्भ-निशुम्भ, धूम्रलोचन का वध करनेवाली मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।६।
*
। युग-युग सबके द्वारा वन्दित, हे सब सुखदायिनी मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।७।
*
। रूप-चरित चिंतन से ज्यादा, सब दुश्मननाशक मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।८।
*
। चरणकमल में नत मस्तक जो, पाप हरें उनके मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।९।
*
। भक्तिपूर्वक जो पूजें, उनकी हर व्याधि हरो मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।१०।
*
। उन्हें, तुम्हें जो भक्तिपूर्वक पूजें हे अंबे मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।११।
*
। दो सौभाग्य परमसुख जननी!, दो आरोग्य मुझे मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।१२।
*
। द्वेष रखें जो उन्हें मिटाकर, मेरी शक्ति बढ़ा मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।१३।
*
। देवी माँ! कल्याण करो दे संपति-सुख सब मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।१४।
*
। शीश मुकुटमणि पग-तल घिसते, देव दनुज दोनों मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।१५।
*
। ज्ञान-कीर्ति, धन-धान्य, लक्ष्मी, भक्तजनों को दो मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।१६।
*
। दुर्दान्ती दनुजों का दर्प मिटानेवाली हे मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।१७।
*
। चतुर्भुजी विधि-वंदित हो, हे चौकर परमेश्वरी मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।१८।
*
। कृष्णवर्ण विष्णु स्तुति करते, सदा तुम्हारी ही मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।१९।
*
। हिमगिरि-तनया-पति शिव वंदित, हो तुम परमेश्वरी मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।२०।
*
। इंद्राणी-पति सद्भावित हो, तुम्हें पूजते नित मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।२१।
*
। अति प्रचण्ड दैत्यों को दण्डित, कर; कर दर्प-हरण मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।२२।
*
। सदा-सदा आनंद असीमित, निज भक्तों के दे मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।२३।
*
। मन मोहे मन-माफ़िक जो, वह पत्नि प्रदान करो मैया!।
। श्रेष्ठ-कुला, संसार-समुद दुर्गम से, जो तारे मैया!।२४।
*
। करे अर्गला-स्तोत्र पाठ जो, सप्तशती संग-पढ़ मैया!।
। जप-संख्या अनुसार श्रेष्ठ फल, सुख-सम्पति पाता मैया!।२५।
*
। इति देवी का अर्गला स्तोत्र पूर्ण हुआ।
=========================
संजीव, ७९९९५५९६१८ / ९४२५१८३२४४

शनिवार, 9 अक्टूबर 2021

गीत, नवगीत, बालगीत

बाल गीत / नव गीत:
खोल झरोखा....
संजीव 'सलिल'
*
खोल झरोखा, झाँक-
ज़िंदगी के मानी मिल जायेंगे.
मेघ बजेंगे, पवन बहेगा,
पत्ते नृत्य दिखायेंगे.....
*
बाल सूर्य के संग ऊषा आ,
शुभ प्रभात कह जाएगी.
चूँ-चूँ-चूँ-चूँ कर गौरैया
रोज प्रभाती गायेगी..
टिट-टिट-टिट-टिट करे टिटहरी,
करे कबूतर गुटरूं-गूं-
कूद-फांदकर हँसे गिलहरी
तुझको निकट बुलायेगी..
आलस मत कर, आँख खोल,
हम सुबह घूमने जायेंगे.
खोल झरोखा, झाँक-
ज़िंदगी के मानी मिल जायेंगे.....
*
आई गुनगुनी धूप सुनहरी
माथे तिलक लगाएगी.
अगर उठेगा देरी से तो
आँखें लाल दिखायेगी..
मलकर बदन नहा ले जल्दी,
प्रभु को भोग लगाना है.
टन-टन घंटी मंगल ध्वनि कर-
विपदा दूर हटाएगी.
मुक्त कंठ-गा भजन-आरती,
सरगम-स्वर सध जायेंगे.
खोल झरोखा, झाँक-
ज़िंदगी के मानी मिल जायेंगे.....
*
मेरे कुँवर कलेवा कर फिर,
तुझको शाला जाना है.
पढ़ना-लिखना, खेल-कूदना,
अपना ज्ञान बढ़ाना है..
अक्षर,शब्द, वाक्य, पुस्तक पढ़,
तुझे मिलेगा ज्ञान नया.
जीवन-पथ पर आगे चलकर
तुझे सफलता पाना है..
सारी दुनिया घर जैसी है,
गैर स्वजन बन जायेंगे.
खोल झरोखा, झाँक-
ज़िंदगी के मानी मिल जायेंगे.....
****
नवगीत:
महका... महका...
संजीव 'सलिल'
*
महका... महका...
मन-मन्दिर रख सुगढ़-सलौना
चहका...चहका...
*
आशाओं के मेघ न बरसे,
कोशिश तरसे.
फटी बिमाई, मैली धोती
निकली घरसे..
बासन माँजे, कपड़े धोये,
काँख-काँखकर.
समझ न आये पर-सुख से
हरषे या तरसे?
दहका...दहका...
बुझा हौसलों का अंगारा
लहका...लहका...
*
एक महल, सौ यहाँ झोपड़ी
कौन बनाये?
ऊँच-नीच यह, कहो खोपड़ी
कौन बताये?
मेहनत भूखी, चमड़ी सूखी,
आँखें चमकें.
कहाँ जाएगी मंजिल?
सपने हों न पराये.
बहका...बहका..
सम्हल गया पग, बढ़ा राह पर
ठिठका-ठहका...
****
नव गीत:
कैसी नादानी??...
संजीव 'सलिल'
*
मानव तो रोके न अपनी मनमानी.
'रुको' कहे प्रकृति से कैसी नादानी??...
*
जंगल सब काट दिये
दरके पहाड़.
नदियाँ भी दूषित कीं-
किया नहीं लाड़..
गलती को ले सुधार, कर मत शैतानी.
'रुको' कहे प्रकृति से कैसी नादानी??...
*
पाट दिये ताल सभी
बना दीं इमारत.
धूल-धुंआ-शोर करे
प्रकृति को हताहत..

घायल ऋतु-चक्र हुआ, जो है लासानी...
'रुको' कहे प्रकृति से कैसी नादानी??...
*
पावस ही लाता है
हर्ष सुख हुलास.
तूने खुद नष्ट किया
अपना मधु-मास..
मेघ बजें, कहें सुधर, बचा 'सलिल' पानी.
'रुको' कहे प्रकृति से कैसी नादानी??...
****
नवगीत:
समय पर अहसान अपना...
संजीव 'सलिल'
*
समय पर अहसान अपना
कर रहे पहचान,
हम न होते तो समय का
कौन करता गान?.....
*
हम समय का मान करते,
युगों पल का ध्यान धरते.
नहीं असमय कुछ करें हम-
समय को भगवान करते..
अमिय हो या गरल- पीकर
जिए मर म्रियमाण.
हम न होते तो समय का
कौन करता गान?.....
*
हमीं जड़, चेतन हमीं हैं.
सुर-असुर केतन यहीं हैं..
कंत वह है, तंत हम हैं-
नियति की रेतन नहीं हैं.
गह न गहते, रह न रहते-
समय-सुत इंसान.
हम न होते तो समय का
कौन करता गान?.....
*
पीर हैं, बेपीर हैं हम,
हमीं चंचल-धीर हैं हम.
हम शिला-पग, तरें-तारें-
द्रौपदी के चीर हैं हम..
समय दीपक की शिखा हम
करें तम का पान.
हम न होते तो समय का
कौन करता गान?.....
****
बाल गीत:
माँ-बेटी की बात
संजीव 'सलिल'
*
रानी जी को नचाती हैं महारानी नाच.
झूठ न इसको मानिये, बात कहूँ मैं साँच..

बात कहूँ मैं साँच, रूठ पल में जाती है.
पल में जाती बहल, बहारें ले आती है..

गुड़िया हाथों में गुड़िया ले सजा रही है.
लोरी गाकर थपक-थपक कर सुला रही है.

मारे सिर पर हाथ कहे: ''क्यों तंग कर रही?
क्यों न रही सो?, क्यों निंदिया से जंग कर रही?''

खीज रही है, रीझ रही है, हो बलिहारी.
अपनी गुड़िया पर मैया की गुड़िया प्यारी..

रानी माँ हैरां कहें: ''महारानी सो जाओ.
आँख बंद कर अनुष्का! सपनों में मुस्काओ.

तेरे पापा आ गए, खाना खिला, सुलाऊँ.
जल्दी उठाना है सुबह, बिटिया अब मैं जाऊँ?''

बिटिया बोली ठुमक कर: ''क्या वे डरते हैं?'
क्यों तुमसे थे कह रहे: 'तुम पर मरते हैं?

जीते जी कोई कभी कैसे मर सकता?
बड़े झूठ कहते तो क्यों कुछ फर्क नहीं पड़ता?''

मुझे डांटती: ''झूठ न बोलो तुम समझाती हो.
पापा बोलें झूठ, न उनको डांट लगाती हो.

मेरी गुड़िया नहीं सो रही, लोरी गाओ, सुलाओ.
नाम न पापा का लेकर, तुम मुझसे जान बचाओ''..

हुई निरुत्तर माँ गोदी में ले बिटिया को भींच.
लोरी गाकर सुलाया, ममता-सलिल उलीच..
****
नवगीत:
उत्सव का मौसम
-- संजीव 'सलिल'
*
उत्सव का मौसम
बिन आये ही सटका है...
*
मुर्गे की टेर सुन
आँख मूँद सो रहे.
उषा की रूप छवि
बिन देखे खो रहे.
ब्रेड बटर बिस्कुट
मन उन्मन ने
गटका है.....
*
नाक बहा, टाई बाँध
अंगरेजी बोलेंगे.
अब कान्हा गोकुल में
नाहक ना डोलेंगे..
लोरी को राइम ने
औंधे मुँह पटका है...
*
निष्ठा ने मेहनत से
डाइवोर्स चाहा है.
पद-मद ने रिश्वत का
टैक्स फिर उगाहा है..
मलिन बिम्ब देख-देख
मन-दर्पण चटका है...
*
देह को दिखाना ही
प्रगति परिचायक है.
राजनीति कहे साध्य
केवल खलनायक है.
पगडंडी भूल
राजमार्ग राह भटका है...
*
मँहगाई आयी
दीवाली दीवाला है.
नेता है, अफसर है
पग-पग घोटाला है.
अँगने को खिड़की
दरवाजे से खटका है...
****

बुंदेली गीत

बुंदेली गीत:
हाँको न हमरी कार.....
संजीव 'सलिल'
*
पोंछो न हमरी कार
ओ बलमा! हाँको न हमरी कार.....
हाँको न हमरी कार,
ओ बलमा! हाँको न हमरी कार.....
*
नाज़ुक-नाज़ुक मोरी कलाई,
गोरी काया मक्खन-मलाई.
तुम कागा से सुघड़,
कहे जग-
'बिजुरी-मेघ' पुकार..
ओ सैयां! पोछो न हमरी कार.
पोछो न हमरी कार,
ओ बलमा! हाँको न हमरी कार.....
*
संग चलेंगी मोरी गुइयां,
तनक न हेरो बिनको सैयां.
भरमाये तो कहूँ राम सौं-
गलन ना दइहों दार..
ओ सैयां! पोछो न हमरी कार.
पोछो न हमरी कार,
ओ बलमा! हाँको न हमरी कार.....
*
बनो डिरेवर, हाँको गाड़ी.
कैहों सबसे 'बलम अनाड़ी'.
'सलिल' संग केसरिया कुल्फी-
खैहों, न करियो रार..
ओ सैयां! पोछो न हमरी कार.
पोछो न हमरी कार,
ओ बलमा! हाँको न हमरी कार.....
९-१०-२०१० 
*
९४२५१८३२४४ 

शुक्रवार, 8 अक्टूबर 2021

दोहा सलिला, दोहा गीत

दोहा सलिला-
तन मंजूषा ने तहीं, नाना भाव तरंग
मन-मंजूषा ने कहीं, कविता सहित उमंग
*
आत्म दीप जब जल उठे, जन्म हुआ तब मान
श्वास-स्वास हो अमिय-घट, आस-आस रस-खान
*
सत-शिव-सुंदर भाव भर, रचना करिये नित्य
सत-चित-आनन्द दरश दें, जीवन सरस अनित्य
*
दोहा गीत
*
ब्रम्ह देव बरगद बसें, देवी नीम निवास
अतिप्रिय शिव को धतूरा, बेलपत्र भी ख़ास
*
देवी को जासौन प्रिय,
श्री गणेश को दूब
नवमी पूजें आँवला
सुख बढ़ता है खूब
हरसिंगार हरि को चढ़े,
हो मनहर श्रृंगार
अधर रचाए पान से
राधा-कृष्ण निहार
पुष्प कदंबी कह रहा, कृष्ण कहीं हैं पास
*
कौआ कोसे ढोर कब,
मरते छोड़ो फ़िक्र
नाशुकरों का क्यों करें
कहो जरा भी जिक्र
खिलता लाल पलाश हो,
महके महुआ फूल
पीपल कहता डाल पर
डालो झूला, झूल
भुनती बाली देख हो, होली का आभास
*
धान झुका सरसों तना,
पर नियमित संवाद
सीताफल से रामफल,
करता नहीं विवाद
श्री फल कदली फल नहीं,
तनिक पलते बैर
पुंगी फल हँस मनाता सदा
सभी की खैर
पीपल ऊँचा तो नहीं, हो जामुन को त्रास
***
८.१०.२०१८

आदि शक्ति वंदना

आदि शक्ति वंदना
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
आदि शक्ति जगदम्बिके, विनत नवाऊँ शीश.
रमा-शारदा हों सदय, करें कृपा जगदीश....
*
पराप्रकृति जगदम्बे मैया, विनय करो स्वीकार.
चरण-शरण शिशु, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....
*
अनुपम-अद्भुत रूप, दिव्य छवि, दर्शन कर जग धन्य.
कंकर से शंकर रचतीं माँ!, तुम सा कोई न अन्य..

परापरा, अणिमा-गरिमा, तुम ऋद्धि-सिद्धि शत रूप.
दिव्य-भव्य, नित नवल-विमल छवि, माया-छाया-धूप..

जन्म-जन्म से भटक रहा हूँ, माँ ! भव से दो तार.
चरण-शरण जग, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....
*
नाद, ताल, स्वर, सरगम हो तुम. नेह नर्मदा-नाद.
भाव, भक्ति, ध्वनि, स्वर, अक्षर तुम, रस, प्रतीक, संवाद..

दीप्ति, तृप्ति, संतुष्टि, सुरुचि तुम, तुम विराग-अनुराग.
उषा-लालिमा, निशा-कालिमा, प्रतिभा-कीर्ति-पराग.

प्रगट तुम्हीं से होते तुम में लीन सभी आकार.
चरण-शरण शिशु, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....
*
वसुधा, कपिला, सलिलाओं में जननी तव शुभ बिम्ब.
क्षमा, दया, करुणा, ममता हैं मैया का प्रतिबिम्ब..

मंत्र, श्लोक, श्रुति, वेद-ऋचाएँ, करतीं महिमा गान-
करो कृपा माँ! जैसे भी हैं, हम तेरी संतान.

ढाई आखर का लाया हूँ,स्वीकारो माँ हार.
चरण-शरण शिशु, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....
**************

परिचय सूक्ष्म

नाम:- संजीव, कुलनाम - वर्मा, उपनाम - 'सलिल' ।

पिताश्री :- स्मृतिशेष राजबहादुर वर्मा।

माताश्री :- स्मृतिशेष शांति देवी वर्मा।

जीवनसंगिनी :- डॉ. साधना वर्मा।

जन्म :- २० अगस्त २०२१।

शिक्षा :- डी.सी.ई., बी.ई., विशारद, एम्. ए. (अर्थशास्त्र, दर्शन शास्त्र), विधि स्नातक, प्रमाणपत्र कंप्यूटर एप्लिकेशन, एम्. आई. ई., एम्. आई. जी. एस.।

विधा :- गद्य (कहानी, लघुकथा, व्यंग्य लेख, तकनीकी लेख, निबंध, समीक्षा, संस्मरण, यात्रा वृत्तांतआदि ), पद्य (कविता, गीत-नवगीत, हिंदी ग़ज़ल/मुक्तिका, मुक्तक, घनाक्षरी, सवैया, हाइकु, माहिया, ५०० से अधिक प्रकार के छंद आदि), संपादन।

प्रकाशन :- १. कलम के देव (भक्ति गीत), २. लोकतंत्र का मकबरा (काव्य संग्रह), ३. मीत मेरे (काव्य संग्रह), ४. भूकंप के साथ जीना सीखें (लोकोपयोगी), ५. सौरभ: (संस्कृत हिंदी दोहानुवाद), ६. काल है संक्रांति का (गीत-नवगीत संग्रह), ७. सड़क पर (गीत-नवगीत संग्रह), ८. जंगल में जनतंत्र (लघुकथाएँ), ९.आदमी जिन्दा है (लघुकथाएँ) 
पुस्तक समीक्षा ३०० से अधिक, भूमिका लेखन ७५ पुस्तकें, साप्ताहिक कॉलम कई वर्षों तक।  

सम्प्रति :- पूर्व कार्यपालन यंत्री लोक निर्माण विभाग मध्य प्रदेश, अधिवक्ता मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय, सभापति विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर, संयोजक विश्व कायस्थ समाज। चेयरमैन इंडियन जिओटेक्नीकल सोसायटी जबलपुर चैप्टर।

सम्मान :- २०० से अधिक, प्रमुख हैं -कायस्थ भूषण, चित्रांश गौरव, कायस्थ कीर्तिध्वज, उत्कृष्टता प्रमाण पत्र ५ व सर्टिफिकेट ऑफ़ एक्सीलेंस ३ इंजीनियर्स फोरम (इंडिया), सर्टिफिकेट ऑफ़ ऑनर ए.के.एस. यूनिवर्सिटी सतना, अभियंता रत्न, विज्ञान रत्न, वस्तु गौरव, साहित्य श्री ३, आचार्य, संपादक रत्न, साहित्य भारती, साहित्य दीप, बीसवीं शताब्दी रत्न, शारदासुत, सरस्वती रत्न, साहित्यवारिधि, शायर वाक़िफ़ सम्मान, काव्य श्री, रासिख सम्मान, रोहित कुमार सम्मान, भाषा भूषण, मानसरोवर साहित्य सम्मान, पाथेय सम्मान, साहित्य शिरोमणि २, नोबल इंसान, सतसंग शिरोमणि, हरि ठाकुर स्मृति सम्मान, बैरिस्टर छेदीलाल सम्मान, सारस्वत साहित्य सम्मान २, कविगुरु रविंद्र नाथ ठाकुर सम्मान, बृजबिहारी लाल श्रीवास्तव सम्मान, युगपुरुष विवेकानंद सम्मान, कामता प्रसाद गुरु सम्मान, भारतीय भाषा सेवा सम्मान, डॉ. पूरनचंद श्रीवास्तव लोक साहित्य अलंकरण, साहित्य रत्न, साहित्य संवर्धक, भारत गौरव २, वातायन सौरभ सम्मान, रंकबंधु साहित्य शिरोमणि सम्मान, पर्यावरण मित्र, वृक्ष बंधु सम्मान, हरिशंकर श्रीवास्तव सम्मान, तरु मीडिया गौरव सम्मान, जिओ हेरिटेज सम्मान, गुरु द्रोणाचार्य अलंकरण, श्रेष्ठता सम्मान, गायत्री सृजन सम्मान, सारस्वत सम्मान, छंद श्री सम्राट, सृजन सम्मान, साहित्य गौरव, भवानी प्रसाद तिवारी सम्मान, 
अनेक अभिनंदन पत्र तथा अलंकरण        

पत्राचार :- विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन जबलपुर ४८२००१। 

चलभाष :- ९४२५१ ८३२४४ वॉट्सऐप, ७९९९५५९६१८ जिओ, ईमेल :- salil.sanjiv@gmail.com . 

गुरुवार, 7 अक्टूबर 2021

विमर्श दुर्गा पूजा में सरस्वती

विमर्श
दुर्गा पूजा में सरस्वती की पूजा का विधान ?
संजीव
*
बंगला भाषी समाज में दुर्गा पूजा में माँ दुर्गा की प्रतिमा के साथ भगवान शिव,गणेशजी,लक्ष्मीजी, सरस्वतीजी और कार्तिक जी की पूजा पूरे विधि-विधान के साथ की जाती है। मध्य तथा उत्तर भारत यह प्रथा नहीं है।

श्रीदुर्गासप्तशती पाठ (गीताप्रेस, गोरखपुर) के पंचम अध्याय, श्लोक १ के अनुसार -

ॐ घण्टाशूलहलानि शंखमूसले चक्रं धनुसायकं हस्ताब्जैर्धतीं घनान्तविलसच्छीतांशुतुल्य प्रभां।
गौरीदेहसमुद्भवां त्रिजगतामाधारभूतां महापूर्वामत्र सरस्वतीमनुभजे शुंभादिदैत्यार्दिनीं।।

अर्थात महासरस्वती अपने कर कमलों घण्टा, शूल, हल,शंख,मूसल,चक्र,धनुष और बाण धारण करती हैं। शरद ऋतु के शोभा सम्पन्न चन्द्रमा के समान जिनकी मनोहर कांति है, जो तीनों लोकों की आधारभूता और शुम्भ आदि दैत्यों का नाश करने वाली हैं तथा गौरी के शरीर से जिनका प्राकट्य हुआ है। पंचम अध्याय के प्रारम्भ में ही निम्नलिखित एक श्लोक के द्वारा इस बात का ध्यान किया गया है।

पंचम अध्याय के ऋषि रूद्र, देवता महासरस्वती, छंद अनुष्टुप, शक्ति भीमा, बीज भ्रामरी, तत्व सूर्य है। यह अध्याय सामवेद स्वरूप कहा गया है। दुर्गा स्पृशति के उत्तर चरित्र के पथ में इसका विनियोग माता सरस्वती की प्रसन्नता के लिए ही किया जाता है।

ईश्वर की स्त्री प्रकृति के तीन आयाम दुर्गा(तमस-निष्क्रियता), लक्ष्मी(रजस-जुनून,क्रिया) तथा सरस्वती (सत्व-सीमाओं को तोड़ना,विलीन हो जाना) है।जो ज्ञान की वृद्धि के परे जाने की इच्छा रखते हैं, नश्वर शरीर से परे जाना चाहते हैं, वे सरस्वती की पूजा करते हैं। जीवन के हर पहलू को उत्सव के रूप में मनाना महत्वपूर्ण है। हर अच्छे भावों से जुड़े रहना अच्छी बात है।

विभिन्न मतों में कहीं न कहीं कुछ समानताएँ भी हैं। दुर्गापूजा में माँ के साथ उनकी सभी सन्तानों और पति की भी पूजा होती है। इसका कारण यह है कि दैत्यों के विनाश में इनका तथा अन्य देवी-देवताओं का भी साथ था। सभी देवताओं की एक साथ पूजा होने के कारण ही इस पूजा को 'महापूजा' कहा गया है। साधारणतः इसे महाषष्ठी, महासप्तमी, महाष्टमी, महानवमी, महादशमी के नाम से जाना जाता है।

वस्तुत: लंका युद्ध के समय भगवान राम ने सिर्फ माँ दुर्गा की पूजा की थी। कालांतर में ऐसा माना गया कि माँ दुर्गा अपने मायके आती हैं तो साथ में अपने संतान और पति को भी लातीं हैं या संतान उनसे मिलने आतीहैं, इसलिए सबकी पूजा एक साथ की जाने लगी। यह पूजा बहुत बड़ी पूजा है और इतनी बड़ी पूजा में देवी-देवताओं के आवाहन के लिए बुद्धि, ज्ञान, वाकशक्ति, गायन, नर्तन आदि की आवश्यकता होती है। इनकी अधिष्ठात्री शक्ति होने के नाते भी माँ सरस्वती की पूजा की जाती है।

स्पष्ट है कि माँ दुर्गा की पूजा में अन्य देवी-देवताओं के साथ सरस्वती जी की पूजा बहुत ही महत्वपूर्ण और सार्थक है। इस स्वस्थ्य परंपरा को अन्यत्र भी अपनाया जाना चाहिए।

यह भी उल्लेखनीय है कि कुछ सरस्वती मंदिरों को शक्ति पीठ की मान्यता प्राप्त है। वहाँ सरस्वती पूजन दुर्गा पूजन की ही तरह किया जाता है और बलि भी दी जाती है। ऐसे मंदिरों में मैहर का शारदा मंदिर प्रमुख है जिन्हें एक ओर आल्हा-ऊदल ने शक्ति की रूप में आराधा तो दूसरी ओर उस्ताद अलाउद्दीन खान ने सारस्वत रूप में उपासा।
***

मुक्तक, भारत की भाषाएँ

मुक्तक
*
चुप्पियाँ बहुधा बहुत आवाज़ करती हैं
बिन बताये ही दिलों पर राज करती हैं
बनीं-बिगड़ी अगिन सरकारें कभी कोई
आम लोगों का कहो क्या काज करती हैं?
७-१०-२०१८
*

मुक्तक
अधर मौन पर नयन बोलते, अनकहनी भी कहते हैं।
हँसी-ठहाकों के मन में भी, आँसू-झरने बहते हैं।
फूल-शूल जन्मों के साथी, धूप-छाँव, पग-डग सहचर-
'सलिल' निरुपमा चाह-राह पा, संजीवित मन रहते हैं।
***
भारत की भाषाएँ
आधिकारिक भाषाएँ
संघ-स्तर पर हिन्दी, अंग्रेज़ी
भारत का संविधान आठवीं अनुसूची
असमिया, बंगाली, बोडो, डोगरी, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मैथिली, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, सिंधी, संथाली,तमिल, तेलुगू, उर्दू
केवल राज्य-स्तर
गारो, गुरुंग, खासी, कोकबोरोक, लेप्चा, लिंबू, मंगर, मिज़ो, नेवारी, राइ, शेर्पा, सिक्किमी, सुनवार, तमांग
प्रमुख अनौपचारिक भाषाएँ दस लाख से ऊपर बोली जाने वाली
अवधी, बघेली, बागड़ी, भीली, भोजपुरी, बुंदेली, छत्तिसगढ़ी, ढूंढाड़ी, गढ़वाली, गोंडी, हाड़ौती, हरियाणवी, हो, कांगडी, खानदेशी, खोरठा, कुमाउनी, कुरुख, लम्बाडी, मगही, मालवी, मारवाड़ी, मेवाड़ी, मुंडारी, निमाड़ी, राजस्थानी, सदरी, सुरुजपुरी, तुलु, वागड़ी, वर्हाड़ी
१ लाख – १० लाख बोली जाने वाली
आदी, अंगामी, आओ, दिमशा, हाल्बी, कार्बी, खैरिया, कोडावा, कोलामी, कोन्याक, कोरकू, कोया, कुई, कुवी, लद्दाखी, लोथा, माल्टो, मिशिंग, निशी, फोम, राभा, सेमा, सोरा, तांगखुल, ठाडो
***

नवगीत: समय पर अहसान

नवगीत:
समय पर अहसान अपना...
संजीव 'सलिल'
*
समय पर अहसान अपना
कर रहे पहचान,
हम न होते तो समय का
कौन करता गान?.....
*
हम समय का मान करते,
युगों पल का ध्यान धरते.
नहीं असमय कुछ करें हम-
समय को भगवान करते..
अमिय हो या गरल-
पीकर जिए मर म्रियमाण.
हम न होते तो समय का
कौन करता गान?.....
*
हमीं जड़, चेतन हमीं हैं.
सुर-असुर केतन यहीं हैं..
कंत वह है, तंत हम हैं-
नियति की रेतन नहीं हैं.
गह न गहते, रह न रहते-
समय-सुत इंसान.
हम न होते तो समय का
कौन करता गान?.....
*
पीर हैं, बेपीर हैं हम,
हमीं चंचल-धीर हैं हम.
हम शिला-पग, तरें-तारें-
द्रौपदी के चीर हैं हम..
समय दीपक की शिखा हम
करें तम का पान.
हम न होते तो समय का
कौन करता गान?.....
*
७-१०-२०१० 

बुधवार, 6 अक्टूबर 2021

लेख : हिंदी कहानी कल, आज और कल

लेख  : 
हिंदी कहानी कल, आज और कल 
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
कहानी क्या है?
मनुष्य के जन्म के साथ ही साथ कहानी का भी जन्म हुआ और कहानी कहना तथा सुनना मानव का आदिम स्वभाव बन गया। इसी कारण से प्रत्येक सभ्य तथा असभ्य समाज में कहानियाँ पाई जाती हैं। हमारे देश में कहानियों की बड़ी लंबी और संपन्न परंपरा रही है। कहानी, हिन्दी में गद्य लेखन की एक विधा है। कहानी का आरंभ मनुष्य के जन्म से ही माना जाता है। कहानी उपन्यास की तरह लम्बी तथा लघुकथा की तरह छोटी नहीं होती। कहानी कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाओं पर आधारित होती है।

कहानी गद्य साहित्य की वह सबसे अधिक रोचक एवं लोकप्रिय विधा है, जो जीवन के किसी विशेष पक्ष का मार्मिक, भावनात्मक और कलात्मक वर्णन करती है, जिसमें लेखक किसी घटना, पात्र अथवा समस्या का क्रमबद्ध ब्यौरा देता है, जिसे पढ़कर एक समन्वित प्रभाव उत्पन्न होता है, उसे कहानी कहते हैं। कहानी वह विधा है जो लेखक के किसी उद्देश्य, किसी एक मनोभाव को पुष्ट करती है। 

प्राचीनकाल में प्रचलित वीरों तथा राजाओं के शौर्य, प्रेम, न्याय, ज्ञान, वैराग्य, साहस, समुद्री यात्रा, अगम्य पर्वतीय प्रदेशों में प्राणियों का अस्तित्व आदि की कथाएँ, जिनका कथानक घटना प्रधानहोता था, भी कहानी के ही रूप हैं।

कहानी के प्रकार -

अ. पारंपरिक कहानी 
गप्प/गल्प - कहानी में काल्पनिकता का समावेश अधिक हो तो वह 'गप्प' हो जाती है। बांग्ला में इसे 'गल्प' कहा जाता है। मिथ्या प्रलाप, डींग या शेखी गल्प के पर्याय हैं। गल्प   

किस्सा - 'किस्सा' वह रोचक मजेदार कहानी है जिसमें घटनाक्रम व चरित्रों को निरंतरता दी गयी हो। किस्सा-ए-शीरीं फरहाद, लैला-मजनू का किस्सा, किस्सा-ए-तोता मैना आदि कालजयी हैं।  मनगढंत घटना (फेबल) किस्सा का मुख्य घटक है। 'किस्सागो' कहानी सुननेवाला और 'किस्सागोई' कहानी सुनाने की कला है। परिवारों में दादी-नानी द्वारा सुनाई जानेवाली कहानियाँ किस्सों की पहुँच और पैठ की मिसाल 
है। किस्सागोई वह कला है, जो इंसानों को दूसरे जीवों से जुदा करती है। एक हम ही हैं, जो इतिहास को याद करते हैं और अपने मूल्यों को बखानते हैं।

दास्तां - 'जो हमने दास्तां अपनी सुनाई आप क्यों रोए?' यह चित्रपटीय गीत सभी को पसंद है। बकौल शायर 'तुम्हारी दास्तां तक भी न होगी दास्तानों में' लेकिन 'साहित्य में दास्ताँ का अर्थ अतीत में घटी घटनाओं का विस्तृत वर्णन करना है। 

लोककथा - लोक में चिरकाल से प्रचलित कहानी जिसमें लोक  में प्रचलित प्रथाओं, मूल्यों, जीवन पद्धति आदि का चित्रण हो 'लोककथा' कही जाती है। 

कथा - 'कथा' उपदेशात्मक अथवा बोधात्मक कहानियों को कहा गया है। इनमें संकट आने पर धीरज और सदाचार के साथ सामना कर विजयी होने का अंतर्भाव होता है। दैविक अथवा चमत्कारिक घटनाएँ कथा का अभिन्न अन्न होती हैं। हर देवी-देवता, पर्व-त्यौहार आदि से संबंधित कथाएँ लोक में आदिकाल से कही-सुनी जाती रही हैं। सत्यनारायण की कथा, करवाचौथ की कथा, सुहागिलों की कथा आदि भारतीय लोक मानस में अमर हैं।   

लोक गाथा - प्राचीनकाल में लोकनायकों, वीरों तथा राजाओं के शौर्य, प्रेम, न्याय, ज्ञान, वैराग्य, साहस, समुद्री यात्रा, अगम्य पर्वतीय प्रदेशों में प्राणियों का अस्तित्व आदि की कथाएँ, भी कहानी के ही रूप हैं। कहानी की पद्यात्मक प्रस्तुति ही 'गाथा' है। 

आख्यान - आख्यान का अर्थ 'कहना' (नरेशन) या सूचित करना है। सूचना या वर्णन प्रधान कहानियों को आख्यान कहा जाता है। आख्यानक और व्याख्यान शब्द आख्यान से ही बने हैं। भामह ने काव्यालंकार (१.२५, २८) में सुंदर गद्य में रचित सरस कहानी को "आख्यायिका" कहा है। डॉ. शंभुनाथ सिंह के अनुसार आख्यानों का वस्तुतत्व पौराणिक, निजंधरी, समसामयिक तथा कल्पित; इन चार प्रकार के पात्रों, घटनाओं और परिस्थितियों को लेकर गठित हुआ है। (हिंदी महाकाव्य का स्वरूपविकास, पृ. ६)

वृत्तांत - वृत्तांत में मुख्य बातों का विस्तृत वर्णन किया जाता है। यह दास्तां से इस अर्थ में भिन्न है कि दास्तां-चढ़ाकर बात कही जाती है जबकि वृत्तांत में यथावत, दोनों में समानता विस्तार होना है। वृत्तांत में क्रमबद्ध वर्णन किया जाता है जबकि दास्तां में ऐसा कोइ बंधन नहीं होता। 

इतिवृत्त - घटना अथवा कहानी (क्रॉनिकल, मेमोरिअल्स) को आदि से अंत तक कहना इतिवृत्त है। भूतकालिक घटनाओं का कालक्रमानुसार लिखा हुआ विवरण इतिवृत्त है।

(आ)  आधुनिक कहानी 

उन्नीसवीं सदी में गद्य में एक नई विधा का विकास हुआ जिसे आधुनिक (नई) कहानी दिया गया। आधुनिक कहानी ने अंग्रेजी से हिंदी तक की यात्रा बंगला के माध्यम से की। पारंपरिक कहानी में मनोरंजकता तथा लोक कल्याण को प्रधानता दी गयी थी। इसका उद्देश्य दुराचार पर सदाचार की विजय दिखाकर, किसी असाधारण व्यक्ति के अवदान और चरित्र की चर्चा कर, उसके जीवन संघर्षों तथा जीवट को दिखाकर पाठक / श्रोता को प्रेरणा देना होता था।   

आधुनिक कहानी में यथार्थ तथा विसंगति को केंद्र में रखा गया है। आधुनिक कहानी शिल्प प्रधान है। इसका उद्देश्य विडम्बनाओं को उद्घाटित करना है, उसका निराकरण करना नहीं।इसीलिए आधुनिक कहानी में  प्राय: प्रेरणा का अभाव होता है। विसंगति और विडंबना मात्र का चित्रण समाज की आधी-अधूरी और नकारात्मक छवि प्रस्तुत करती है। आधुनिक कहानी आदर्श स्थापित नहीं करती अपितु आदर्श छवियों को ध्वस्त करती है।    
   
कहानी की परिभाषा-

प्रेमचन्द - कहानी वह ध्रुपद की तान है, जिसमें गायक महफिल शुरू होते ही अपनी संपूर्ण प्रतिभा दिखा देता है, एक क्षण में चित्त को इतने माधुर्य से परिपूर्ण कर देता है, जितना रात भर गाना सुनने से भी नहीं हो सकता।
कहानी (गल्प) एक रचना है जिसमें जीवन के किसी एक अंग या किसी एक मनोभाव को प्रदर्शित करना ही लेखक का उद्देश्य रहता है। उसके चरित्र, उसकी शैली, उसका कथा-विन्यास, सब उसी एक भाव को पुष्ट करते हैं। उपन्यास की भाँति उसमें मानव-जीवन का संपूर्ण तथा बृहत रूप दिखाने का प्रयास नहीं किया जाता। वह ऐसा रमणीय उद्यान नहीं जिसमें भाँति-भाँति के फूल, बेल-बूटे सजे हुए हैं, बल्कि एक गमला है जिसमें एक ही पौधे का माधुर्य अपने समुन्नत रूप में दृष्टिगोचर होता है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल - " कहानी साहित्य का वह रूप है, जिसमें कथा प्रवाह एवं कथोपकथन में अर्थ अपने प्रकृत रूप में अधिक विद्यमान रहता है। 

एडगर एलिन पो - “कहानी वह छोटी आख्यानात्मक रचना है, जिसे एक बैठक में पढ़ा जा सके, जो पाठक पर एक समन्वित प्रभाव उत्पन्न करने के लिये लिखी गई हो, जिसमें उस प्रभाव को उत्पन्न करने में सहायक तत्वों के अतिरिक्‍त और कुछ न हो और जो अपने आप में पूर्ण हो।”

जान फास्टर - "असाधारण घटनाओं की वह श्रृंखला जो परस्पर सम्बद्ध होकर एक चरम परिणाम पर पहुँचाने वाली हो।"

विलियम हेनरी - "लघुकथा में केवल एक ही मूलभाव होना चाहिए. उस मूलभाव का विकास केवल एक ही उद्देश्य को ध्यान मे रखते हुए सरल ढंग से तर्कपूर्ण निस्कर्षो के साथ करना चाहिए."

कहानी के लक्षण -

इन परिभाषाओं के आधार पर कहानी के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित रूप से निर्धारित किए गए हैं :-
कहानी मानवीय संवेदनाओ की अभिव्यक्ति है। 
कहानी में कथावस्तु का आकार लघु होता है। 
कहानी का एक निश्चित उद्देश्य होता है। 
मनोरंजन के साथ- साथ जीवन की समस्याओं का चित्रण करना भी कहानी का लक्ष्य होता है। 
कहानी का आकार ऐसा हो कि उसे सरलता से एक बैठक मे पढ़ा जा सके। 
कहानी में एक ही केंद्रीय संवेदना होती है तथा उसके सभी तत्व इसी संवेदना को उभारने में सहायता देते हैं। 
कहानी मूलतः मानव जीवन से सम्बद्ध होती है. उसमें केवल कल्पनिकता न होकर यथार्थ का भी पुट रहता हैं। 

आज कहानी में मानवीय संवेदना के साथ लेखक की प्रतिभा और कारीगरी का सामंजस्य है। आधुनिक कहानी साहित्य का सर्वाधिक स्वभाविक और स्वछंद रूप है।
 
कहानी के तत्व

कहानी के मुख्य तत्व १ कथावस्तु, २ पात्र अथवा चरित्र-चित्रण, ३ कथोपकथन अथवा संवाद, ४ देशकाल अथवा वातावरण, ५  भाषा-शैली तथा ६  उद्देश्य हैं। 

कथावस्तु / कथानक 

प्रत्येक कहानी के लिये कथावस्तु का होना अनिवार्य है क्योंकि इसके अभाव में कहानी की रचना की कल्पना भी नहीं की जा सकती। कथा को सुनते या पढ़ते समय श्रोता अथवा पाठक के मन में आगे आनेवाली घटनाओं को जानने की जिज्ञासा रहती है अर्थात्‌ वह बार-बार यही पूछता या सोचता है कि फिर क्या हुआ, जबकि कथानक में वह ये प्रश्न भी उठाता है कि “ऐसा क्यों हुआ?’ “यह कैसे हुआ?’ आदि। अर्थात्‌ आगे घटनेवाली घटनाओं को जानने की जिज्ञासा के साथ-साथ श्रोता अथवा पाठक घटनाओं के बीच कार्य-कारण-संबंध के प्रति भी सचेत रहता है।
कथानक के चार अंग १ आरम्भ, २ आरोह, ३ चरम स्थिति एवं ४ अवरोह हैं।

पात्र अथवा चरित्र-चित्रण

कहानी का संचालन उसके पात्रों के द्वारा ही होता है तथा पात्रों के गुण-दोष वर्णन को उनका ‘चरित्र चित्रण’ कहा जाता है। चरित्र चित्रण से विभिन्न चरित्रों में स्वाभाविकता उत्पन्न की जाती है। कहानी के पात्र वास्तविक, सजीव, स्वाभाविक तथा विश्वसनीय लगते हैं। पात्रों का चरित्र आकलन लेखक दो प्रकार से करता है -
१. प्रत्यक्ष या वर्णात्मक शैली द्वारा - इसमें लेखक स्वयं पात्र के चरित्र में प्रकाश डालता है। 
२. परोक्ष या नाट्य शैली द्वारा - इसमें पात्र स्वयं अपने वार्तालाप और क्रियाकलापों द्वारा अपने गुण दोषों का संकेत देते चलते हैं। 
कहानीकार कहानी के विषय तथा घटनाक्रम के अनुकूल शैली को अपनाए इससे कहानी में विश्वसनीयता एवं स्वाभाविकता आ जाती है।

कथोपकथन अथवा संवाद

संवाद कहानी का प्रमुख अंग होते हैं। इनके द्वारा पात्रों के मानसिक अन्तर्द्वन्द एवं अन्य मनोभावों को प्रकट किया जाता है। कहानी में स्थगित कथन लंबे चौड़े भाषण या तर्क-वितर्क पूर्ण संवादों के लिए कोई स्थान नहीं होता। नाटकीयता लाने के लिए छोटे-छोटे संवादों का प्रयोग किया जाता है। संवाद किसी भी किरदार के द्वारा बोली जाने वाली और न बोली जाने वाली बातों के जरिए काफी कुछ उजागर कर सकता है। आपको कुछ ऐसे संवाद की तलाश करना चाहिए, जो बनावटी लगने के बजाय, असल में लोगों के द्वारा बोले जाते हों। इन्हें असली दुनिया के लोगों के द्वारा बोला जाता है या नहीं, ये जानने के लिए अपने सारे डाइलॉग को ज़ोर-ज़ोर से पढ़ें।

देशकाल अथवा वातावरण

कहानी में वास्तविकता का पुट देने के लिये देशकाल अथवा वातावरण का प्रयोग किया जाता है।कहानी में भौतिक वातावरण के लिए विशेष स्थान नहीं होता फिर भी इनका संक्षिप्त वर्णन पात्र के जीवन को उसकी मनः स्थिति को समझने में सहायक होता है। मानसिक वातावरण कहानी का परम आवश्यक तत्व है।

भाषा-शैली

प्रस्तुतीकरण के ढंग में कलात्मकता लाने के लिए उसको अलग-अलग भाषा व शैली से सजाया जाता है। लेखक का भाषा पर पूर्ण अधिकार हो कहानी की भाषा सरल , स्पष्ट व विषय अनुरूप हो। उसमें दुरूहता ना होकर प्रभावी होना चाहिए , कहानीकार अपने विषय के अनुरूप ही शैली का चयन कर सकता है।

उद्देश्य

कहानी लेखन का उद्देश्य केवल मनोरंजन ही नहीं होता, अपितु उसका उद्‍देश्य समाज सुधर या लोक कल्याण भी होता। वर्तमान में विविध सामाजिक परिस्थितियों का विश्लेषण,  जीवन के प्रति स्वस्थ्य दृष्टिकोण, किसी समस्या का समाधान, जीवन मूल्यों का उद्घाटन, विसंगतियों की  ध्यानाकर्षण  आदि भी कहानी के उद्देश्य हैं।

कहानी कैसे लिखें

कहानी लिखते समय हमें निम्न बातें ध्यान में रखनी होगी -

अध्ययन 
लिखने से पहले पढ़ना अच्छा और आवश्यक होता है। पढ़ने से आप जान सकेंगे कि अन्य कहानीकार क्या लिख रहे हैं? उसमें  खूबी और खामी क्या है? तब आप अपनी कहानी को पढ़कर उसकी कमजोरियों  कर सकते हैं। अधिकाधिक अध्ययन से आपका शब्द भंडार बढ़ता है। शब्द प्रयोग सीखकर आप बेहतर भावाभिव्यक्ति कर सकते हैं। 

लोकदृष्टि      
हमेशा दुनिया की बातों को सुनें और प्रेरणा लें। आपकी कहानी आपके मस्तिष्क से बाहर निकलकर  लोगों के बीच पहुँचनेवाली है, इसलिए अपनी कहानी को सिर्फ अपने खुद के विचारों से ही नहीं बल्कि दूसरे लोगों की दृष्टि से भी सोचकर लिखना चाहिए। लोक के नजरिए से लिखी गई कहानी अधिक लोगों को अपनी खुद की प्रतीत होंगे। 

अंतर्दृष्टि 
आप अपने और अन्यों के जीवन में घट रही घटनाओं के कारण, प्रभाव और परिणाम को ज़िंदगी के अंदर झाँककर देखने की कोशिश करें।  घटनाओं के अंदर झाँकने से उसके अनछुए-अनकहे पहलू सामने आते हैं और एक सशक्त कहानी बन जाती है।

बाह्यदृष्टि
आप जब कहानी लिखना शुरू करते हैं, तब जरूरी नहीं है, कि आपको आपकी कहानी का अंत मालूम ही हो। कहानी लिखना शुरू करते वक़्त ही, कहानी के बारे में सब-कुछ नहीं मालूम होता, जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ती है आपको और रचनात्मक संभावना नज़र आती जाती है। आप सजग और सतर्क रहकर कहानी को बेहतर रूप दे सकते हैं।सामान्य मत है कि  कि “आपको सिर्फ वही लिखना चाहिए, जिसके बारे में आपकोजानते हैं।”

चिंतन दृष्टि 
सुनी अथवा पढ़ी हुई कहानियों पर जरूर गौर करें, इनसे आपको कल्पना के घोड़े दौड़ाने का अवसर ('फिक्शन') मिल सकता है। अगर आपकी माँ या दादी/नानी माँ हमेशा आपको उनके बचपन की कहानियाँ सुनाया करती हैं, तो उन्हें और उनके असर को याद करना शुरू कर दें। आप जो भी लिखें, आपके पाठक उसे समझ और स्मरण रख सकें यह आवश्यक है।

प्रतिबद्धता / जूनून 
यदि आप लेखन के प्रति प्रतिबद्ध हैं या लिखना ही आपका जुनून है तो एक सच्चे कहानीकार की तरह आपको जो भी कुछ पसंद है, जिसे आप अपनी कहानी के लिए सही समझते हैं, उसे ही लिखें। दिमाग से सोचकर, दिल से लिखने का अभ्यास करें।  आप जहाँ भी जाएँ, अपने साथ में हमेशा एक नोटबुक लेकर जाएँ, ताकि आप के मन में जब भी कोई 'विचार' (आइडिया) आए, तो आप उसे तुरंत लिख सकें।
आपने अपनी गलती को सुधारने के लिए जो भी लिखा है, उसे एक बार फिर से देखें। आप अपनी कहानी को दुनिया के सामने निकालने के पहले अपने साथी कहानीकारों के साथ बाँट  सकते हैं। प्रतिक्रिया (फीडबैक)  तभी उपयोगी होती है जब इसे स्वस्थ्य मन से लिखा और ग्रहण किया जाए।
अपनी कहानी लिखने से पहले, चरित्रों (किरदारों) के नाम, व्यक्तित्व (पर्सनालिटी), विचार, परिधान, भाषा, आदतों, व्यवहार आदि  पर चिंतन कर लें।

मौलिकता 
अपनी कहानी को रुचिकर बनाने के लिए स्वतंत्र प्रयास करें, किसी अन्य कहानी का अनुकरण न करें। याद रखें अच्छे से अच्छी नकल भी असल से अच्छी नहीं होती। 

धीरज 
एक अच्छी कहानी लिखने में समय लगता है, धैर्य रखकर प्रयास करते रहिए। 
साहित्य की सभी विधाओ में कहानी सबसे पुरानी विधा है। जनजीवन में यह सबसे लोकप्रिय विधा है।  आज के समय में कहानी सबसे अधिक प्रचलित है। साहित्य में कहानी का स्थान प्रमुख था, प्रमुख है और हमेशा प्रमुख रहेगा। कहानी का कल, आज और कल उसमें हो रहे प्रयोग थे, हैं और रहेंगे। इसलिए, किसी को आदर्श मत मानिए, अपनी रह खुद बनाइए।
६-१०-२०२१ 
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 संपर्क - विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२१००१, चलभाष ९४२५१८३२४४, ईमेल salil.sanjiv@gmail.com