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बुधवार, 7 अप्रैल 2021

समीक्षा नवगीत संग्रह, पंकज मिश्र ‘अटल’

पुस्तक सलिला-
‘‘बोलना सख्त मना है’’ नवगीत की विसंगतिप्रधान भावमुद्रा
[पुस्तक परिचय- बोलना सख्त मना है, ISBN 978-93-85942-09-9, नवगीत संग्रह, पंकज मिश्र ‘अटल’,वर्ष २०१६, आकार २०.५ से.मी. x ७.५ से.मी., आवरण बहुरंगी पेपरबैक लेमिनेटेड, मूल्य १०० रु., बोधि प्रकाशन एफ ७७ ए सेक्टर ९, मार्ग ११, करतारपुरा औद्योगिक क्षेत्र, बाईस गोदाम, जयपुर ३०२००६, ०१४१ २५०३९८९, bodhiprakashan@gmail.com, कवि संपर्क सृजन, कुमरा गली, रोशनगंज, शाहजहाॅंपुर २४१००१, चलभाष 99366031136 ।] 
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साहित्य को सशक्त हथियार और पारंपरिकता को तोड़ने व वैचारिक क्रांति करने का उद्देश्य मात्र माननेवाले रचनाकार पंकज मिश्र की इस नवगीत संग्रह से पूर्व दो पुस्तकें ‘चेहरों के पार’ तथा ‘नए समर के लिये’ प्रकाशित हो चुकी र्हैं। विवेच्य संकलन की भूमिका में नवगीतकार अपनी वैचारिक प्रतिबद्वता से अवगत कराकर पाठक को रचनाओं में अंतप्र्रवहित भावों का पूर्वाभास करा देता है। उसके अनुसार ‘‘माध्यम महत्वपूर्ण तो है, पर उतना नहीं जितना कि वह विचार, लक्ष्य या मंतव्य जो समाज को चैतन्यता से पूर्ण कर दे, उसे जागृत कर दे और सकारात्मकता के साथ आगे पढ़ने को बाध्य कर दे। मैंने अपने नवगीतों में अपने आस-पास जो घटित हो रहा है, जो मैं महसूस कर रहा हूॅं और जो भोग रहा हूॅं, उस भोगे हुए यथार्थ को कथ्य रूप में अभिव्यक्ति प्रदान की है।’’ इसका अर्थ यह हुआ कि रचनाकार केवल भोगे हुए को अभिव्यक्ति दे सकता है, अनुभूत को नहीं। तब किसी अनपढ, किसी शोषित़ के दर्द की अभ्व्यिक्ति कोई पढ़ा-लिखा यंा अशोषित कैसे कर सकतंा है? तब कोई स्त्रीए पुरुष की, कोई प्रेमचंद किसी धीसू या जालपा की बात नहीं कह सकेगा क्योंकि उसने वह भोगा नहीं, देखा मात्र है। यह सोच एकांगी ही नहीं गलत भी है। वस्तुतः अभिव्यक्त करने के लिये भोगना जरूरी नहीं, अनुभूति को भी अभिव्यक्त किया जा सकता है। अतः भोगे हुए यथार्थ कथ्य रूप में अभिव्यक्त करने का दावा अतिशयोक्ति ही हो सकता है।
कवि के अनुसार उसके आस-पास वर्जनाएॅं, मूल्य नहीं मूल्यों की चर्चाएॅं, खोखलेपन और दंभ को पूर्णता मान भटकती-बिखरती पीढ़ी, तिक्त-चुभते संवाद और कथन, खीझ और बासीपन, अति तार्किकता, दम तोड़ती भावनाएॅं, खुद को खोती-चुकती अवसाद धिरी भीड़ है और इसी को से जन्मे हैं उसके नवगीत। यह वक्तव्य कुछ सवाल खड़े करता है. क्या समाज में केवल नकारात्मकता ही है, कुछ भी-कहीं भी सकारात्मक नहीं है? इस विचार से सहमति संभव नहीं क्योंकि समाज में बहुत कुछ अच्छा भी होता है। यह अच्छा नवगीत का विषय क्यों नहीं होे सकता? किसी एक का आकलन सब के लिये बाध्यता कैसे हो सकता है? कभी एक का शुभ अन्य के लिये अशुभ हो सकता है तब रचनाकार किसी फिल्मकार की तरह एक या दोनों पक्षों की अनुभूतियों को विविध पात्रों के माध्यम से व्यक्त कर सकता है।
कवि की अपेक्षा है कि उसके नवगीत वैचारिक क्रांति के संवाहक बनें। क्रांति का जन्म बदलाव की कामना से होता है, क्रांति को ताकत त्याग-बलिदान-अनुशासन से मिलती है। क्रांति की मशाल आपसी भरोसे से रौशन होती है किंतु इन सबकी कोई जगह इन नवगीतों में नहीं है। गीत से जन्में नवगीत में शिल्प की दृष्टि से मुखड़ा-अंतरा, अंतरों में सामान्यतः समान पंक्ति संख्या और पदभार, हर अंतरे के बाद मुखड़े के समान पदभार व समान तुक की पंक्तियाॅं होती हैं। अटल जी ने इस शिल्पानुशासन से रचनाओं को गति-यति युक्त कर गेय बनाया है। हिंदी में स्नातकोत्तर कवि अभिव्यक्ति सामथ्र्य का धनी है। उसका शब्द-भंडार समृद्ध है। कवि का अवचेतन अपने परिवेश में प्रचलित शब्दों को बिना किसी पूर्वाग्रह के ग्रहण करता है इसलिए भाषा जीवंत है। भाषा को प्राणवान बनाने के लिये कवि गुंफित, तिक्त, जलजात, कबंध, यंत्रवत, वाष्प, वीथिकाएॅं जैसे संस्क्रतनिष्ठ शब्द, दुआरों, सॅंझवाती, आखर आदि देशज शब्द, हाकिम, जि़ंदगी, बदहवास, माफिक, कुबूल, उसूल जैसे उर्दू शब्द तथा फुटपाथ, कल्चर, पेपरवेट, पेटेंट, पिच, क्लासिक, शोपीस आदि अंग्रेजी शब्द यथास्थान स्वाभाविकता के साथ प्रयोग करता है। अहिंदी शब्दों का प्रयोग करतें समय कवि सजगतापूर्वक उन्हें हिंदी शब्दों की तरह वापरता है। पेपरों तथा दस्तावेजों जैसे शब्दरूप सहजता से प्रयोग किये गये हैं।
हिंदी मातृभाषा होने के कांरण कवि की सजगता हटी और त्रुटि हुई। शीष, क्षितज जैसी मुद्रण त्रुटियाॅं तथा अनुनासिक तथा अनुस्वार के प्रयोग में त्रुटि खटकती है। संदर्भ का उच्चारण सन्दर्भ है तो हॅंसकर को अहिंदीभाषी हन्सकर पढ़कर हॅंसी का पात्र बन जाएगा। हॅंस और हंस का अंतर मिट जाना दुखद है। इसी तरह बहुवचन शब्दों में कहीं ‘एॅं’ का प्रयोग है, कहीं ‘यें’ का देखें ‘सभ्यताएॅं’और ‘प्रतिमायें’। कवि ने गणित से संबंधित शब्दों का प्रयौग किया है। ये प्रयोग अभिव्यक्ति को विशिष्ट बनाते हैं किंतु सटीकता भी चाहते हैं। ‘अपनापन /घिर चुका आज / फिर से त्रिज्याओं में’ के संबंध में तथ्य यह है कि त्रिज्या वृत के केंद्र से परिधि तक सीधी लकीर होती है, त्रिज्याएॅं चाप के बिना किसी को घेर नहीे सकतीं। ‘बन चुकी है /परिधि सारी /विवशतायें’, गूॅंगी /चुप्पी में लिपटी /सारी त्रिज्याएॅं हैं’, घुट-घुटकर जीता है नगरीय भूगोल, बढ़ने और घटनें में ही घुटती सीमाएॅं है, रेखाएॅं /घुलकर क्यों /तिरता प्रतिबिंब बनीं?’, ‘धुॅंधलाए /फलकों पर/आधा ही बिंब बनीं’, ‘आकांश बनने /में ही उनके/कट गए डैने’, ‘ड्योढि़याॅं/हॅंसती हैं/आॅंगन को’, इतिहास के /सीने पे सिल/बोते रहे’, ‘लड़ रहीं/लहरें शिलाओं से’, लिपटकर/हॅंसती हवाओं से’, ‘एक बौना/सा नया/सूरज उगाते हम’जैसे प्रयोग ध्यान आकर्षित करते हैं किंतु अधिक सजगता भी चाहते हैं।
अटल जी के ये नवगीत पारंपरिक कथ्य को तोड़ते और बहुत कुछ जोड़ते हैं। वैचारिक प्रतिबद्धता पर सहज अनुभूतिजन्य अभिव्यक्ति को वरीयता होने पर रस औ भाव पक्ष गीत को अधिक प्रभावी होंगे। यह संकलन अटल जी से और अधिक की आशा जगाता है। नवगीतप्रेमी इसे पढ़कर आनंदित होगे। सुरुचिपूर्ण आवरण, मुद्रण तथा उपयुक्त मूल्य के प्रति प्रकाशक का सजग होना स्वागतेय है।
***
- समन्वयम, २०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१, चलभाष ९४२५१८३२४४, salil.sanjiv@gmail.com







 

क्षणिकाएँ

क्षणिकाएँ... 
संजीव 'सलिल' 
कर पाता दिल अगर वंदना 
तो न टूटता यह तय है. 
निंदा करना बहुत सरल है. 
समाधान ही मुश्किल है. 
असंतोष-कुंठा कब उपजे? 
बूझे कारण कौन?
 'सलिल' सियासत स्वार्थ साधती 
जनगण रहता मौन. 
मैं हूँ अदना शब्द-सिपाही. 
अर्थ सहित दें शब्द गवाही..
*

मुक्तक

मुक्तक

दिल लगाकर दिल्लगी हमने न की.
दिल जलाकर बंदगी तुमने न की..
दिल दिया ना दिला लिया, बस बात की-
दिल दुखाया सबने हमने उफ़ न की..
*
दोस्तों की आजमाइश क्यों करें?
मौत से पहले ही बोलो क्यों मरें..
नाम के ही हैं. मगर हैं साथ जो-
'सलिल' उनके बिन अकेले क्यों रहें?.
*
७-४-२०१० 

शब्द सलिला

*शब्दों की खोज*
*पागलपंती*

पागलपंती शब्द का उद्गम पागलपंथी  संप्रदाय से हुआ है। 
यह   आंदोलन 1833 में अंग्रेज सेना की मदद से कुचला गया था।   पागलपंथी आंदोलन  करीम शाह और मुस्लिम फकीर मजनू शाह के अन्य शिष्यों द्वारा स्थापित किया गया था। मदारिया सूफी इस पंथ के नेता थे।  1813 में करीम शाह की मृत्यु के बाद,  इसका नेतृत्व उनके बेटे टीपू शाह ने किया था।  करीम शाह और टीपू शाह की माँ की पत्नी चांद बीबी ने भी समुदाय में एक प्रभावशाली स्थान हासिल किया, जिसे पीर-माता (संत-माता) के नाम से जाना जाता है।
(विकिपीडिया)

गोरखनाथ के बारह पंथ में पागलपंथी का उल्लेख मिलता है।
सत्यनाथी ,धर्मनाथी ,रामपंथी ,नाटेश्वरी, कन्हड़,कपिलानी, वैरागपंथी, माननाथी,आईपंथी, पागलपंथी,धजपंथी  और गंगानाथी । 
(डॉ सत्यप्रकाश सरस्वती)

पागलपंती  हास्यप्रधान हिंदी फिल्म और सोशल मीडिया के व्हाट्सएप्प ग्रुप का नाम भी प्रसिद्ध है।

मंगलवार, 6 अप्रैल 2021

लघुकथाएँ

लघुकथाएँ -आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

१. एकलव्य
*
- 'नानाजी! एकलव्य महान धनुर्धर था?'
- 'हाँ; इसमें कोई संदेह नहीं है.'
- उसने व्यर्थ ही भोंकते कुत्तों का मुंह तीरों से बंद कर दिया था ?'
-हाँ बेटा.'
- दूरदर्शन और सभाओं में नेताओं और संतों के वाग्विलास से ऊबे पोते ने कहा - 'काश वह आज भी होता.'
*****
२. खाँसी
*
कभी माँ खाँसती, कभी पिता. उसकी नींद टूट जाती, फिर घंटों न आती। सोचता काश, खाँसी बंद हो जाए तो चैन की नींद ले पाए।
पहले माँ, कुछ माह पश्चात पिता चल बसे। उसने इसकी कल्पना भी न की थी.
अब करवटें बदलते हुए रात बीत जाती है, माँ-पिता के बिना सूनापन असहनीय हो जाता है। जब-तब लगता है अब माँ खाँसी, अब पिता जी खाँसे।
तब खाँसी सुनकर नींद नहीं आती थी, अब नींद नहीं आती है कि सुनाई दे खाँसी।
***
३. साँसों का कैदी
*
जब पहली बार डायलिसिस हुआ था तो समाचार मिलते ही देश में तहलका मच गया था। अनेक महत्वपूर्ण व्यक्ति और अनगिनत जनता अहर्निश चिकित्सालय परिसर में एकत्र रहते, डॉक्टर और अधिकारी खबरचियों और जिज्ञासुओं को उत्तर देते-देते हलाकान हो गए थे।
गज़ब तो तब हुआ जब प्रधान मंत्री ने संसद में उनके देहावसान की खबर दे दी, जबकि वे मृत्यु से संघर्ष कर रहे थे। वस्तुस्थिति जानते ही अस्पताल में उमड़ती भीड़ और जनाक्रोश सम्हालना कठिन हो गया। प्रशासन को अपनी भूल विदित हुई तो उसके हाथ-पाँव ठन्डे हो गए। गनीमत हुई कि उनके एक अनुयायी जो स्वयं भी प्रभावी नेता थे, वहां उपस्थित थे, उन्होंने तत्काल स्थिति को सम्हाला, प्रधान मंत्री से बात की, संसद में गलत सूचना हेतु प्रधानमंत्री ने क्षमायाचना की।
धीरे-धीरे संकट टला.… आंशिक स्वास्थ्य लाभ होते ही वे फिर सक्रिय हो गए, सम्पूर्ण क्रांति और जनकल्याण के कार्यों में। बार-बार डायलिसिस की पीड़ा सहता तन शिथिल होता गया पर उनकी अदम्य जिजीविषा उन्हें सक्रिय किये रही। तन बाधक बनता पर मन कहता मैं नहीं हो सकता साँसों का कैदी।
***
४. गुरु जी
*
मुझे आपसे बहुत कुछ सीखना है, क्या आप मुझे शिष्य बना नहीं सिखायेंगे?
बार-बार अनुरोध होने पर न स्वीकारने की अशिष्टता से बचने के लिए सहमति दे दी। रचनाओं की प्रशंसा, विधा के विधान आदि की जानकारी लेने तक तो सब कुछ ठीक रहा।
एक दिन रचनाओं में कुछ त्रुटियाँ इंगित करने पर उत्तर मिला- 'खुद को क्या समझते हैं? हिम्मत कैसे की रचनाओं में गलतियाँ निकालने की? मुझे इतने पुरस्कार मिल चुके हैं। फेस बुक पर जो भी लिखती हूँ सैंकड़ों लाइक मिलते हैं। मेरी लिखे में गलती हो ही नहीं सकती। आइंदा ऐसा किया तो...'
आगे पढ़ने में समय ख़राब करने के स्थान पर शिष्या को ब्लोक कर चैन की सांस लेते कान पकड़े कि अब नहीं बनेंगे किसी के गुरु। ऐसों को गुरु नहीं गुरुघंटाल ही मिलने चाहिए।
***
लघुकथा:
अकल के अंधे
*
२ अप्रैल २०२० एक सामान्य दिन और तारीख, बिलकुल अन्य दिनों की तरह।
पोंगा पंडित को बहुत दिनों से अपने लोगों द्वारा अनदेखा किया जा रहा था। चर्चा में न बने रहना उनका शगल तो था ही, राजनीति में बने रहने के लिए चर्चित होना भी जरूरी था। क्या करें कि नाम चर्चा में आ जाए। कुछ सूझ ही नहीं रहा था, तभी प्रधान मंत्री जी ने ५ अप्रैल को रात ९ बजे ९ मिनिट के लिए बिजली बंद कर बालकनी या दरवाजे पर दिया. मोमबत्ती, लालटेन आदि जलाने की अपील जनता जनार्दन से की।
उन्हें लगा यही मौका है, इसे तुरन्त भुनाना चाहिए पर कैसे?
संयोगवश ५ और ४ का योग ९ होने पर उनका ध्यान गया। दिमाग पर जोर दिया तारीख और माह का योग ९, समय ९ बजे, दिया जलने की अवधि ९ मिनिट, बचपन में शिक्षक द्वारा बताये गए ९ के पहाड़े की विशेषताएं याद हो आईं। पोंगा पंडित मुस्कुराये चलो. काम बन गया। तुरंत एक लेख बनाया। महान पंडितों की गणना के आधार पर घोषणा, ९ पूर्णता का प्रतीक...
रात नौ बजे ९ मिनिट ९ x ९ = ८१ = ८ + १ = ९
माह और तारीख का योग ४ + ५ + ९
तीनों को जोड़ें ९ + ९ + ९ = २७ = २ + ७ = ९
तीनों का गुणा करें ९ x ९ x ९ = ७२९ = ७ + २ + ९ = १ + ८ = ९
महापूर्ण योग , महा मंगलकारी, किस राशि पर कैसा प्रभाव? जानने के लिए संपर्क करें और अपना चलभाष क्रमांक, फीस और एटीएम नंबर दे दिया।
अपने अलग-अलग नंबरों से कई वॉट्सऐप समूहों, फेसबुक पटलों, आदि में डालने में जुट गए।
'निठल्लों की तरह क्या मोबाइल से चिपके हो, कुछ करते क्यों नहीं? चलो झाड़ू ही लगा लो, मैं तब तक बर्तन माँज लूँ। नहीं तो चाय-वाय कुछ नहीं मिलेगी' पंडिताइन ने घुड़की दी।
पंडित जी ने सोचा इसे खुश कर दूँ तो दिन भर चैन रहेगा, सो बोले 'डार्लिंग! देखो तो कितनी बढ़िया गणना की है अब चारों तरफ चर्चा तो होगी ही, कुंडली मिलवाने वालों से कमाई भी हो जाएगी। पंडितानी पंडित जी से ज्यादा पढ़ी-लिखी थीं, तुरंत बोलीं "ये क्या आधा-अधूरा गया बघारते हो? वर्ष २०२० का क्या हुआ? मुहूर्त की बात करते हो चैत्र माह का अंक १ हुआ, विक्रम संवत २०७७ = १६ = ७, तिथि है द्वादशी = ३ सबका योग ११ = २ , सबका गुणा २१ = ३। अब क्या होगा तुम्हारी ९ के फंडे का?"
"ए भागवान! बंद रखो अपनी जबान। भगवान् अक्लमंद पत्नी किसी को न दे। तुम तो मेरी खटिया ही खड़ी करा दोगी। बना बनाया काम बिगाड़ दोगी। तय मानो कमाई तो होंगई ही, नाम भी उछल जायेगा, तुम चाय बनाने का जुगाड़ करों, मैं तुम्हारे हुकुम का पालन करता हूँ। ये भारत है, यहाँ कम नहीं हैं अकल के अंधे।"
***
प्रेषक:
संजीव वर्मा 'सलिल'
विश्व वाणी हिंदी संस्थान,
४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन जबलपुर ४८२००१
चलभाष: ७९९९५५९६१८, ई मेल: salil.sanjiv@gmail.com

कृष्ण-मृग हत्याकांड

त्वरित प्रतिक्रिया

कृष्ण-मृग हत्याकांड
*
मुग्ध हुई वे हिरन पर, किया न मति ने काम।
हरण हुआ बंदी रहीं, कहा विधाता वाम ।।
*
मुग्ध हुए ये हिरन पर, मिले गोश्त का स्वाद।
सजा हुई बंदी बने, क्यों करते फ़रियाद?
*
देर हुई है अत्यधिक, नहीं हुआ अंधेर।
सल्लू भैया सुधरिए, अब न कीजिए देर।।
*
हिरणों की हत्या करी, चला न कोई दाँव।
सजा मिली तो टिक नहीं, रहे जमीं पर पाँव।।
*
नर-हत्या से बचे पर, मृग-हत्या का दोष।
नहीं छिप सका भर गया, पापों का घट-कोष।।
*
आहों का होता असर, आज हुआ फिर सिद्ध।
औरों की परवा करें, नर हो बनें न गिद्ध।।
*
हीरो-हीरोइन नहीं, ख़ास नागरिक आम।
सजा सख्त हो तो मिले, सबक भोग अंजाम ।।
*
अब तक बचते रहे पर, न्याय हुआ इस बार।
जो छूटे उन पर करे, ऊँची कोर्ट विचार।।
*
फिर अपील हो सभी को, सख्त मिल सके दंड।
लाभ न दें संदेह का, तब सुधरेंगे बंड।।
*
न्यायपालिका से विनय करें न इतनी देर।
आम आदमी को लगे, होता है अंधेर।।
*
सरकारें जागें न दें, सुविधा कोई विशेष।
जेल जेल जैसी रहे, तनहा समय अशेष।।
**
६-४-२०१८

दोहा-दोहा खेलिए

दोहा-दोहा खेलिए 
*
समय बिताने के लिए यह एक रोचक क्रीड़ा है। इसमें कितने भी प्रतिभागी भाग ले सकते हैं। आरंभक एक दोहा प्रस्तुत करे जिसका प्रथम चरण गुरु लघु से आरम्भ हो। दोहे के अंतिम शब्द से आरंभ कर अगला प्रतिभागी दोहा प्रस्तुत करे। यह क्रम चलता रहेगा। खेल के दो प्रकार हैं - १. प्रतिभागियों का क्रम तय हो, जिसकी बारी हो वही दोहा प्रस्तुत करे। २. क्रम अनिश्चित हो, जो पहले दोहा बना ले प्रस्तुत कर दे। किसी दोहे के अंत में पहले दोहे का पहला शब्द आने पर खेल ख़त्म हो जाएगा। इसे निरंतर कई दिनों तक खेला जा सकता है।
उदाहरण
दोहा-सलिला
बोल रहे सब सगा पर, सगा न पाया एक
हैं अनेक पर एक भी, मिला न अब तक नेक
नेक नेकियत है कहाँ, खोज खोज हैरान
अपने भीतर झाँक ले, बोल पड़ा मतिमान
मान न मान मगर करे, मन ही मन तू गान
मौन न रह पाए भले, मन में ले तू ठान
ठान अगर ले छू सके, हाथों से आकाश
पैर जमकर धरा पर, तोड़ मोह का पाश
पाश न कोई है जिसे, मनुज न सकता खोल
कर ले दृढ़ संकल्प यदि, मन ही मन में बोल
***
नियम
१. आखिरी दोहे के अंतिम शब्द/अक्षर से अगला दोहा आरंभ करें।
२. दोहा खुद का लिखा न हो तो दोहे के साथ दोहाकार का नाम अवश्य दें।
३. किसी अन्य के दोहे पर टीका-टिप्पणी न करें।
४. दोहे के कथ्य की पूरी जवाबदारी प्रस्तुतकर्ता की होगी।
५. प्रबंधक का आदेश / निर्णय सब पर बंधनकारी होगा।
६. एक शब्द या अक्षर पर एक से अधिक दोहे आने पर जो दोहा सबसे पहले आया हो, उसे आधार मानकर आगे बढ़ा जाए।
७. बीच के किसी दोहे पर टिप्पणी या उससे जुड़ा दोहा, मूल दोहे के साथ ही जवाब में दें ताकि संदर्भ सहित पढ़ा जा सके।
*
सदय रहें माँ शारदा, ऋिद्धि सिद्धि गणराज
हिंदी के सिर सज सके, जगवाणी का ताज
अगला दोहा ज से आरंभ करें।

आव्हान गीत जागो माँ

आव्हान गीत 
जागो माँ
*
जागो माँ! जागो माँ!!
*
सीमा पर अरिदल ने भारत को घेरा है
सत्ता पर स्वार्थों ने जमा लिया डेरा है
जनमत की अनदेखी, चिंतन पर पहरा है
भक्तों ने गाली का पढ़ लिया ककहरा है
सैनिक का खून अब न बहे मौन त्यागो माँ
जागो माँ! जागो माँ!!
*
जनगण है दीन-हीन, रोटी के लाले हैं
चिड़ियों की रखवाली, बाज मिल सम्हाले हैं
नेता के वसन श्वेत, अंतर्मन काले हैं
सेठों के स्वार्थ भ्रष्ट तंत्र के हवाले हैं
रिश्वत-मँहगाई पर ब्रम्ह अस्त्र दागो माँ
जागो माँ! जागो माँ!!
*
जन जैसे प्रतिनिधि को औसत ही वेतन हो
मेहनत का मोल मिले, खुश मजूर का मन हो
नेता-अफसर सुत के हाथों में भी गन हो
मेहनत कर सेठ पले, जन नायक सज्जन हो
राजनीति नैतिकता एक साथ पागो माँ
*
सीमा पर अरिदल ने भारत को घेरा है
सत्ता पर स्वार्थों ने जमा लिया डेरा है
जनमत की अनदेखी, चिंतन पर पहरा है
भक्तों ने गाली का पढ़ लिया ककहरा है
सैनिक का खून अब न बहे मौन त्यागो माँ
जागो माँ! जागो माँ!!
*
संवस
नवसंवत्सर, ५.४.२०१९

दुर्गा वंदन

दुर्गा वंदन




सिंहस्था शशिशेखरा मरकतप्रख्यैश्चतुर्भिर्भुजैः
शंखं चक्रधनुः शरांश्च दधती नेत्रैस्त्रिभिः शोभिता।
आमुक्तांगदहारकंकणरणत्काञ्चीरणन्नूपुरा
दुर्गा दुर्गतिहारिणी भवतु नो रत्नोल्लसत्कुण्डला॥
*
सिँहारूढ़ शशि सिर सजा, मरकत मणि सी आभ।
शंख चक्र धनु शर भुजा, तीन नयन अरुणाभ।।
कंगन बाजूबंद नथ, कुंडल करधन माल।
भूषित दुर्गा दूर कर, दुर्गति रहें दयाल।।
*
सिंह पर सवार, मस्तक पर चन्द्र मुकुट सजाए, मरकत मणि के समान कांतिनय, चार करों में शंख, चक्र, धनुष और बाण धारण किए, त्रिनेत्री नेत्रो बाजूबंद ,हार, खनखन करती करधन, रुनझुन करते नूपुरों से विभूषित,कानों में रत्नजटित झिलमिलाते कुंडल पहने
माँ दुर्गा हमारी दुर्गति दूर करें।
*
संवस
नवसंवत्सर २०७६


माखनलाल चतुर्वेदी

जयंती पर विशेष
क्रांतिकारी, स्वतंत्रता सत्याग्रही और  पत्रकार माखनलाल चतुर्वेदी 
*
देश के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान आजादी की लड़ाई और पत्रकारिता दोनों क्षेत्रों में जिन लोगों ने अद्भुत काम किया उनमें माखनलाल चतुर्वेदी व गणेश शंकर विद्यार्थी अग्रणी हैं। खासकर हिंदी पट्टी की पत्रकारिता में इनका काम काफी महत्वपूर्ण है।
माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म 4 अप्रैल 1889 को मध्यप्रदेश के होशंगाबाद में हुआ था। माखनलाल जब 16 वर्ष के हुए तब ही स्कूल में अध्यापक बन गए थे. उन्होंने 1906 से 1910 तक एक विद्यालय में अध्यापन का कार्य किया. लेकिन जल्द ही माखनलाल ने अपने जीवन और लेखन कौशल का उपयोग देश की स्वतंत्रता के लिए करने का निर्णय ले लिया.
उन्होंने असहयोग आन्दोलन और भारत छोड़ो आन्दोलन जैसी कई गतिविधियों में भाग लिया. इसी क्रम में वो कई बार जेल भी गए और जेल में कई अत्याचार भी सहन किए,लेकिन अंग्रेज उन्हें कभी अपने मार्ग से विचलित नहीं कर सके।
अध्यापन किया
1910 में अध्यापन का कार्य छोड़ने के बाद माखन लाल राष्ट्रीय पत्रिकाओं में सम्पादक का काम देखने लगे थे. उन्होंने प्रभा” और “कर्मवीर” नाम की राष्ट्रीय पत्रिकाओं में सम्पादन का काम किया
माखनलाल ने अपनी लेखन शैली से देश के एक बहुत बड़े वर्ग में देश-प्रेम भाव को जागृत किया. उनके भाषण भी उनके लेखो की तरह ही ओजस्वी और देश-प्रेम से ओत-प्रोत होते थे.
उन्होंने 1943 में “अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलन” की अध्यक्षता की. उनकी कई रचनाए तब देश के युवाओं में जोश भरने और उन्हें जागृत करने के लिए बहुत सहायक सिद्ध हुई.
नव छायावादी शैली
माखनलाल की लेखन शैली नव-छायावाद का एक नया आयाम स्थापित करने वाली थी. जिनमे भी चतुर्वेदी की कुछ रचनाए “हिम-तरंगिनी, कैसा चाँद बना देती हैं,अमर राष्ट्र और पुष्प की अभिलाषा तो हिंदी साहित्य में सदियों तक तक अमर रहने वाली रचनाएँ हैं, और कई युगों तक यह आम-जन को प्रेरित करती रहेगी।
हिंदी साहित्य को योगदान
माखनलाल की कुछ प्रमुख कालजेयी रचनाए हैं – हिम तरंगिनी,समर्पण,हिम कीर्तनी,युग चरण,साहित्य देवता दीप से दीप जले,कैसा चाँद बना देती हैं और पुष्प की अभिलाषा. जिनमें से वेणु लो गूंजे धरा’,हिम कीर्तिनी,हिम तरंगिणी,युग चरण,साहित्य देवता तो सुप्रसिद्ध लेख हैं।
इसके अलावा कुछ कविताएं जैसे अमर राष्ट्र, अंजलि के फूल गिरे जाते हैं, आज नयन के बंगले में, इस तरह ढक्कन लगाया रात ने, उस प्रभात तू बात ना माने, किरणों की शाला बंद हो गई छुप-छुप, कुञ्ज-कुटीरे यमुना तीरे, गाली में गरिमा घोल-घोल, भाई-छेड़ो नहीं मुझे, मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक, संध्या के बस दो बोल सुहाने लगते।
साहित्य एकेडमी का अवार्ड जीतने वाले पहले व्यक्ति
माखनलाल 1955 में साहित्य एकेडमी का अवार्ड जीतने वाले पहले व्यक्ति हैं। हिंदी साहित्य में अभूतपूर्व योगदान देने के कारण ही पंडितजी को 1959 में सागर यूनिवर्सिटी से डी.लिट् की उपाधि भी प्रदान की गयी।
पद्म भूषण सम्मान मिला
1963 में माखनलाल चतुर्वेदी को साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में अपूर्व योगदान के कारण पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया।
माखनलाल चतुर्वेदी के साहित्य की विधा में दिए योगदान के सम्मान में बहुत सी यूनिवर्सिटी ने विविध अवार्ड्स के नाम उनके नाम पर रखे.मध्य प्रदेश सांस्कृतिक कौंसिल द्वारा नियंत्रित मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी देश की किसी भी भाषा में योग्य कवियों को “माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार” देती हैं. पंडितजी के देहांत के 19 वर्ष बाद 1987 से यह सम्मान देना शुरू किया गया।
उनके नाम पर पत्रकारिता विश्वविद्यालय बना
भोपाल,मध्य प्रदेश में स्थित माखन लाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय पूरे एशिया में अपने प्रकार का पहला विश्व विद्यालय हैं. इसकी स्थापना पंडितजी के राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम में पत्रकारिता और लेखन के द्वारा दिए योगदान को सम्मान देते हुए 1991 में हुई.
साहित्य जगत का यह अनमोल हीरा 30 जनवरी 1968 को खो दिया. पंडितजी उस समय 79 वर्ष के थे,और देश को तब भी उनके लेखन से बहुत उम्मीदें थी.
पंडित माखन लाल चतुर्वेदी को सम्मान देते हुए पोस्टेज स्टाम्प की शुरुआत की. यह स्टाम्प पंडितजी के 88वें जन्मदिन 4 अप्रैल 1977 को ज़ारी हुआ।
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देवी स्तवन

 देवी स्तवन









तव च का किल न स्तुतिरंबिके सकल शब्दमयी किल ते तनु:।
निखिलमूर्तिषु मे भवदन्वयोमनसिजासु बहि: प्रसरासु च।।
इति विचिंत्य शिवे! शमिताशिवे! जगति जातमयत्नवशादिदिम्।
स्तुतिजपार्चनचिंतनवर्जिता न खलु काचन कालकलास्ति मे।।
*
भावानुवाद
किस ध्वनिस्तवन में न माँ, सकल शब्दमय देह।
मन-अंदर-बाहर तुम्हीं, निखिल मूर्ति भव गेह।।
सोच-असोचे भी रहे, शिवे तुम्हारा ध्यान।
स्तुति-जप पूजार्चन रहित, पल न एक भी मान।।
*
कौन वांग्मय जो नहीं, करे तुम्हारा गान।
सकल शब्दमय मातु तुम, तुम्हीं तान सुर गान।।
हर संकल्प-विकल्प में, मातु मिले दीदार।
हो भीतर-बाहर तुम्हीं, तुम ही बिंदु प्रसार।।
बिन प्रयास चिंतन बिना, शिवे! तुम्हारा ध्यान।
करे अमंगल ध्वंस हर, हो कल्याण सुजान।।
बिन प्रयास पल-पल रहे, मातु! तुम्हारा ध्यान।
पूजन चिंतन-मनन जप, स्तवन सतत तव गान।।
***
संवस
शक संवत् २०७६
५-४-२०१९

शिव

विमर्श 
शिव 
* विश्वनाथ भी हैं, महाकाल भी। 
* शिव निराकार हैं, ज्योति पुंज हैं। 
* शिव ही सत्य, शिव और सुन्दर हैं।
* शिव निराकार ब्रह्म और साकार देव हैं।
* शिव की शरण में ही सत्, चित्, आनंद है।
* शिव सूक्ष्म से सूक्ष्म हैं, हर काया में उनका निवास है।
* शिव सूक्ष्म से सूक्ष्म, विशाल से विशाल, निराकार परमात्मा हैं।  
* सिख धर्म कहता है-  एको जपो एको सालाहि ! 
                                  एको सिमरि एको मन आहि,!!
                                  ऐकस के गन गाऊ अनंत !,
                                  मनि तनि जापि एक भगवंत !!
* शिव की मक्का में मुसलमान 'संगे अस्वद' कहकर परिक्रमा करते हैं।
* शिव ही "देवनामधा" समस्त देवताओं के नाम को धारण करता है। -ऋग्वेद 
* शिव ही सत्य है जिसे मानने से पूरी मानव जाति ईश्वर के नाम पर एक होगी। 
* ॐ को ९० अंश घडी की दिशा में घुमाने पर इसको अल्लाह भी पढ़ा जा सकता है।
* जैन धर्म का महामंत्र शिव वंदन कर कहता है- "ओमणमो" निराकार ओम को नमन।
* शिव का अंडाकार (लिंगाकार) रूप ब्रह्माण्ड का पर्याय है जिसमें समस्त सृष्टि समाई है।  
* शिव का एकाक्षरी का नाम ॐ  है। यह पृथ्वी व अन्य ग्रहों के घूर्णन उत्पन्न ध्वन्यात्मक नाद है। 
* शिव ही शंकर (शंकारि = शंका का शत्रु =विश्वास, विष वास नहीं) हैं। उनकी अर्धांगिनी श्रद्धा स्वरूपा उमा हैं।
* शिव विश्व अध्यात्म का केंद्र बिंदु हैं।  वे सर्वज्ञ (OMNICIENT), सर्वशक्तिशाली (OMNIPOTENT), सर्व व्यापी (OMNIPRESENT),       प्रभु की ख़ुशी (OMEGA), भोला (OMAR) हैं। 

 
 
  
 

अर्गला स्तोत्र

।। यह अर्गला स्तोत्र है।।
। ॐ अर्गला स्तोत्र मंत्र यह, विष्णु ऋषि ने रच गाया।
। छंद अनुष्टुप, महालक्ष्मी देव अंबिका-मन भाया ।
। सप्तशती के अनुष्ठान में, भक्त पाठ-विनियोग करें।
।ॐ चण्डिका मातु नमन शत, मारकंडे' नित जाप करें।
*
।ॐ जयंती मंगलाकाली, शांत कालिका कपालिनी।
। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री माँ, सुध-स्वःस्वाहा जय पालागी।१।
*
। जय-जय-जय देवी चामुंडा, दु:खहर्ता हर प्राणी की।
। व्याप्त सभी में रहनेवाली, कालयात्री जय पालागी।२।
*
। मधु-कैटभ वध कर ब्रम्हा को, वर देने वाली मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोह-विजय दो, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।३।
*
। महिषासुर-वधकर्ता माता, भक्तों को सुख दो मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।४।
*
। रक्तबीज संहारकारिणी, चण्ड-मुण्डहंता मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।५।
*
। शुम्भ-निशुम्भ, धूम्रलोचन का वध करनेवाली मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।६।
*
। युग-युग सबके द्वारा वन्दित, हे सब सुखदायिनी मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।७।
*
। रूप-चरित चिंतन से ज्यादा, सब दुश्मननाशक मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।८।
*
। चरणकमल में नत मस्तक जो, पाप हरें उनके मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।९।
*
। भक्तिपूर्वक जो पूजें, उनकी हर व्याधि हरो मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।१०।
*
। उन्हें, तुम्हें जो भक्तिपूर्वक पूजें हे अंबे मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।११।
*
। दो सौभाग्य परमसुख जननी!, दो आरोग्य मुझे मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।१२।
*
। द्वेष रखें जो उन्हें मिटाकर, मेरी शक्ति बढ़ा मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।१३।
*
। देवी माँ! कल्याण करो दे संपति-सुख सब मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।१४।
*
। शीश मुकुटमणि पग-तल घिसते, देव दनुज दोनों मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।१५।
*
। ज्ञान-कीर्ति, धन-धान्य, लक्ष्मी, भक्तजनों को दो मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।१६।
*
। दुर्दान्ती दनुजों का दर्प मिटानेवाली हे मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।१७।
*
। चतुर्भुजी विधि-वंदित हो, हे चौकर परमेश्वरी मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।१८।
*
। कृष्णवर्ण विष्णु स्तुति करते, सदा तुम्हारी ही मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।१९।
*
। हिमगिरि-तनया-पति शिव वंदित, हो तुम परमेश्वरी मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।२०।
*
। इंद्राणी-पति सद्भवित हो, तुम्हें पूजते नित मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।२१।
*
। अति प्रचण्ड दैत्यों को दण्डित, कर-कर दर्प-हरण मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।२२।
*
। सदा-सदा आनंद असीमित, निज भक्तों के दे मैया!।
। शत्रु-नाश कर मोहजयी कर, आत्म ज्ञान यश दो मैया!।२३।
*
। मन मोहे मन-माफ़िक जो, वह पत्नि प्रदान करो मैया!।
। श्रेष्ठ-कुला, संसार-समुद दुर्गम से, जो तारे मैया!।२४।
*
। करे अर्गला-स्तोत्र पाठ जो, सप्तशती संग-पढ़ मैया!।
। जप-संख्या अनुसार श्रेष्ठ फल, सुख-सम्पति पाता मैया!।२५।
*
। इति देवी का अर्गला स्तोत्र पूर्ण हुआ।
६-४-२०१९
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गीत

गीत -
अपने सपने कहाँ खो गये?
*
तुमने देखे,
मैंने देखे,
हमने देखे।
मिल प्रयास कर
कभी रुदन कर
कभी हास कर।
जाने-अनजाने, मन ही मन, चुप रह लेखे।
परती धरती में भी
आशा बीज बो गये।
*
तुमने खोया,
मैंने खोया ,
हमने खोया।
कभी मिलन का,
कभी विरह का,
कभी सुलह का।
धूप-छाँव में, नगर-गाँव में पाया मौक़ा।
अंकुर-पल्लव ऊगे
बढ़कर वृक्ष हो गये।
*
एक दूजे में,
एक दूजे को,
हमने पाया।
तुमने पाया,
मैंने पाया,
गले लगाया।
हर बाधा-संकट को, जीता साथ-साथ रह।
पुष्पित-फलित हुए तो
हम ही विवश हो गये।
६-४-२०१६
***

हाइकु मुक्तिका

 हाइकु मुक्तिका-

संजीव
नव दुर्गा का, हर नव दिन हो, मंगलकारी
नेह नर्मदा, जन-मन रंजक, संकटहारी
मैं-तू रहें न, दो मिल-जुलक,र एक हो सकें
सुविचारों के, सुमन सुवासित, जीवन-क्यारी
गले लगाये, दिल को दिल खिल, गीत सुनाये
हों शरारतें, नटखटपन मन,-रञ्जनकारी
भारतवासी, सकल विश्व पर, प्यार लुटाते
संत-विरागी, सत-शिव-सुंदर, छटा निहारी
भाग्य-विधाता, लगन-परिश्रम, साथ हमारे
स्वेद बहाया, लगन लगाकर, दशा सुधारी
पंचतत्व का, तन मन-मंदिर, कर्म धर्म है
सत्य साधना, 'सलिल' करे बन, मौन पुजारी
(वार्णिक हाइकु छन्द ५-७-५)
६-४-२०१६
***

दोहा

दोहा दुनिया
*
सगा कह रहे सब मगर, सगा पाया एक
हैं अनेक पर एक भी मिला न अब तक नेक
*
६-४-२०१०

रविवार, 4 अप्रैल 2021

लघुकथा

लघुकथा
*
अँधा बाँटे रेवड़ी
संजीव
*
जंगल में भीषण गर्मी पड़ रही थी। नदियों, झरनों, तालाबों, कुओं आदि में पानी लगातार कम हो रहा था। दोपहर में गरम लू चलती तो वनराज से लेकर भालू और लोमड़ी तक गुफाओं और बिलों में घुसकर ए.सी., पंखे आदि चलाते रहते। हाथी और बंदर जैसे पशु अपने कानों और वृक्षों की पत्तियों से हवा करते रहते फिर भी चैन न पड़ता।
जंगल के प्रमुख विद्युत् मंत्री चीते की चिंता का ठिकाना नहीं था। हर दिन बढ़ता विद्युत् भार सम्हालते-सम्हालते उसके दल को न दिन में चैन था, न रात में। लगातार चलती टरबाइनें ओवरहालिंग माँग रही थीं। विवश होकर उसने वनराज शेर से परामर्श किया। वनराज ने समस्या को समझा पर समस्या यह थी कोई भी वनवासी सुधार कार्य के लिए स्वेच्छा से बिजली कटौती के लिए तैयार नहीं था और जबरदस्ती बिजली बंद करने पर जन असंतोष भड़कने की संभावना थी।
महामंत्री गजराज ने गहन मंथन के बाद एक समाधान सुझाया। तदनुसार एक योजना बनाई गयी। वनराज ने जंगल के सभी निवासियों से अपील की कि वे एक दिन निर्धारित समय पर बिजली बंद कर सिर्फ मोमबत्ती, दिया, लालटेन, चिमनी आदि जलाकर इंद्र देवता को प्रसन्न करें ताकि आगामी वर्ष वर्षा अच्छी हो। संचार मंत्री वानर सब प्राणियों को सूचित करने के लिए अपने दल-बल के साथ जुट गए।
वनराज के साथ के साथ विद्युत् मंत्री, विद्युत सचिव, प्रमुख विद्युत् अभियंता आदि कार्य योजना को अंतिम रूप देनेके लिए बैठे। अभियंता के अनुसार गंभीर समस्या यह थी कि जंगल के भिन्न-भिन्न हिस्सों में बिजली प्रदाय ग्रिड बनाकर किया जा रहा था। एकाएक ग्रिडों में बिजली की माँग घटने के कारण फ्रीक्वेंसी संतुलन बिगड़ने, रिले , कंडक्टर आदि पर असामान्य विद्युत् भार के कारण प्रणाली जर्क और ग्रिड फेल होने की संभावना थी। ऐसा होने पर सुधार कार्य में अधिक समय लगता। मंत्री, सचिव आदि घंटों सिर खपकर भी कोई समाधान नहीं निकल सके। प्रमुख अभियंता के साथ आये एक फील्ड इंजीनियर ने सँकुचाते हुए कुछ कहने के लिए हाथ उठाया। सचिव ने उसे घूरकर देखा तो उसने झट हाथ नीचे कर लिया पर वनराज ने उसे प्रोत्साहित करते हुए कहा 'रुक क्यों गए? बेझिझक कहो, जो कहना है।"
फील्ड इंजीनियर ने कहा यदि हम लोगों को केवल बल्ब-ट्यूबलाइट आदि बंद करने के लिए कहें और पंखे, ए.सी. आदि बंद न करने के लिए कहें तो ग्रिड में फ्रीक्वेंसी संतुलन बिगड़ने की संभावना न्यूनतम हो जायेगी। विचार-विमर्श के बाद इस योजना को स्वीकार कर तदनुसार लागू किया गया। वन्य प्रजा को बिजली कम खर्च करने की प्रेरणा मिली। ग्रिड फेल नहीं हुआ। इस सफलता के लिए मंत्री और सचिव को सम्मान मिले, किसी को याद न रहा कि अभियंता की भी कोई भूमिका था। सम्मान समारोह में आया काला कौआ बोलै पड़ा 'अँधा बाँटे रेवड़ी"
***
४-४-२०२०
- विश्व वाणी हिंदी संस्थान,
४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१
९४२५१८३२४४

कविता कोरोना

एक रचना
*
रक्तबीज था हुआ कभी जो
लौट आया है।
राक्षस ने कोरोना का
नाम पाया है।
गिरेगी विष बूँद
जिस भी सतह पर
उसे छूकर मनुज जो
आगे बढ़ेगा
उसीको माध्यम बनाकर
यह चढ़ेगा
बढ़ा तन का ताप
देगा पीर थोड़ी
किन्तु लेगा रोक श्वासा
आस छोड़ी
अंतत: स्वर्गीय हो
चाहे न भाया है।
सीख दुर्गा माई से
हम भी तनिक लें
कोरोना जी बच सकें
वह जगह मत दें
रहें घर में, घर बने घर
कोरोना से कहें: 'जा मर'
दूरियाँ मन में न हों पर
बदन रक्खें दूर ही हम
हवा में जो वायरस हैं
तोड़ पंद्रह मिनिट में दम
मर-मिटें मानव न यदि
आधार पाया है।
जलाएँ मिल दीप
आशा के नए हम
भगाएँ जीवन-धरा से
भय, न हो तम
एकता की भावधारा
हो सबल अब
स्वच्छता आधार
जीवन का बने अब
न्यून कर आवश्यकताएँ
सर तनें सब
विपद को जय कर
नया वरदान पाया है
रक्तबीज था हुआ कभी जो
लौट आया है।
राक्षस ने कोरोना का
नाम पाया है।
*
संजीव
४.४.२०२०
९४२५१८३२४४ 

व्यंग्यपरक दोहे

व्यंग्यपरक दोहे
*
गुरु को धता बताइए, गुरु के गुरु बन आप
जिससे सीखें नापना, प्रथम उसी को नाप
*
माँ ने बेटी से कहा, तू चेरी पति नाथ
बेटी झट स्वामिनि हुई, पति को किया अनाथ
*
बहुएँ कवयित्री हुईँ, सासें पीटें माथ
बना-खिला निंदा सुनें, कविताओं में साथ
*
पति बच्चे घर त्याज्य हैं, अब वरेण्य है मंच
डिनर एक के साथ लें, अन्य कराता लंच
*
वजन प्रसाधन का अधिक, और देह का न्यून
जेब कटा हसबैंड जी, मुँह लटकाए प्यून
*
तनिक न निज भाषा रुचे, परभाषा का मोह
पेट पाल हिंदी रही, फिर भी हिंदी-द्रोह
*
काम पड़े पर कह रहे, आप गधे को बाप
काम नहीं तो लग रहा, गधा पूत को बाप
*
संजीव
४-४-२०२०
९४२५१८३२४४

गीत - पैरोडी

एक गीत -एक पैरोडी
*
ये रातें, ये मौसम, नदी का किनारा, ये चंचल हवा ३१
कहा दो दिलों ने, कि मिलकर कभी हम ना होंगे जुदा ३०
*
ये क्या बात है, आज की चाँदनी में २१
कि हम खो गये, प्यार की रागनी में २१
ये बाँहों में बाँहें, ये बहकी निगाहें २३
लो आने लगा जिंदगी का मज़ा १९
*
सितारों की महफ़िल ने कर के इशारा २२
कहा अब तो सारा, जहां है तुम्हारा २१
मोहब्बत जवां हो, खुला आसमां हो २१
करे कोई दिल आरजू और क्या १९
*
कसम है तुम्हे, तुम अगर मुझ से रूठे २१
रहे सांस जब तक ये बंधन न टूटे २२
तुम्हे दिल दिया है, ये वादा किया है २१
सनम मैं तुम्हारी रहूंगी सदा १८
फिल्म –‘दिल्ली का ठग’ 1958
*****
पैरोडी
है कश्मीर जन्नत, हमें जां से प्यारी, हुए हम फ़िदा ३०
ये सीमा पे दहशत, ये आतंकवादी, चलो दें मिटा ३१
*
ये कश्यप की धरती, सतीसर हमारा २२
यहाँ शैव मत ने, पसारा पसारा २०
न अखरोट-कहवा, न पश्मीना भूले २१
फहराये हरदम तिरंगी ध्वजा १८
*
अमरनाथ हमको, हैं जां से भी प्यारा २२
मैया ने हमको पुकारा-दुलारा २०
हज़रत मेहरबां, ये डल झील मोहे २१
ये केसर की क्यारी रहे चिर जवां २०
*
लो खाते कसम हैं, इन्हीं वादियों की २१
सुरक्षा करेंगे, हसीं घाटियों की २०
सजाएँ, सँवारें, निखारेंगे इनको २१
ज़न्नत जमीं की हँसेगी सदा १७
४-४-२०१९ 
*****