क्षणिकाएँ...
संजीव 'सलिल'
*
कर पाता दिल अगर वंदना
तो न टूटता यह तय है.
*
निंदा करना बहुत सरल है.
समाधान ही मुश्किल है.
*
असंतोष-कुंठा कब उपजे?
बूझे कारण कौन?
'सलिल' सियासत स्वार्थ साधती
जनगण रहता मौन.
*
मैं हूँ अदना शब्द-सिपाही.
अर्थ सहित दें शब्द गवाही..
*
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें