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बुधवार, 7 अप्रैल 2021

क्षणिकाएँ

क्षणिकाएँ... 
संजीव 'सलिल' 
कर पाता दिल अगर वंदना 
तो न टूटता यह तय है. 
निंदा करना बहुत सरल है. 
समाधान ही मुश्किल है. 
असंतोष-कुंठा कब उपजे? 
बूझे कारण कौन?
 'सलिल' सियासत स्वार्थ साधती 
जनगण रहता मौन. 
मैं हूँ अदना शब्द-सिपाही. 
अर्थ सहित दें शब्द गवाही..
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