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शुक्रवार, 20 अप्रैल 2018

ॐ doha shatak: ram kumar chaturvedi


करते बंदर बाट
दोहा शतक
रामकुमार चतुर्वेदी 


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जन्म: १८-८-१९६७सिवनी।
आत्मज: श्रीमती सरस्वती चतुर्वेदी- श्री डी.पी.चतुर्वेदी।
जीवनसंगिनी:
काव्य गुरु:
शिक्षा: एम.एससी., एम.ए.(हिंदी, भूगोल) एलएल.एम.(पीएच.डी)।
लेखन विधा: दोहा, हास्य-व्यंग्य गद्य-पद्य।
प्रकाशित: हिन्दी वर्णमाला व्यंग्यपरक खण्डकाव्यभारत के सपूत व्यंग्य संग्रह।
प्रकाशनाधीन: चले हैं.. व्यंग्य खण्डकाव्यव्यंग्य लेख संग्रह टारगेट।
संपादन: ज्ञानबोध पत्रिका प्रकाशन-सिवनी(म.प्र.) Email: gyanbodh17@gmail.com
उपलब्धि: हरिशंकर परसाई सम्मान, सारस्वत सम्मानसाहित्य गौरव, हिंदी गौरव, राष्ट्रभाषा गौरव सम्मान, साहित्य शिरोमणि आदि।  
संप्रति: प्रबंधक डी.पी.चतुर्वेदी विधि महाविद्यालय सिवनी, संरक्षक जन चेतना समिति सिवनी।
संपर्क: श्री राम आदर्श विद्यालय, शहीद वार्ड सिवनी ४८०६६१ म.प्र.।
चलभाष: ०९४२५८८८८७६, ७००००४१६१०, ईमेल: rkchatai@gmail
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      राम कुमार चतुर्वेदी जीवट और संघर्ष की मशाल और मिसाल दोनों हैं। ३४ वर्ष की युवावस्था में सड़क दुर्घटना में रीढ़ की हड्डी, कमर की हड्डी, पसली, कोलर बोन, हाथ-पैर आदि को गंभीर क्षति, दो वर्ष तक पीड़ादायक शल्य क्रिया और सतत के बाद भी वे न केवल उठ खड़े हुए अपितु पूर्वापेक्षा अधिक आत्मविश्वास से शैक्षणिक-साहित्यिक उपलब्धियाँ प्राप्त कीं। महाकवि शैली के अनुसार ‘अवर स्वीटैस्ट सोंग्स आर दोज विच टैल ऑफ़ सैडेस्ट थोट, कवि शैलेंद्र के शब्दों में ‘हैं सबसे मधुर वे गीत जिन्हें हम दर्द के सुर में गाते हैं’ को राम कुमार ने चरितार्थ कर दिखाया है और दुनिया को हँसाने के लिए कलम थाम ली है। चमचावली के दोहे लक्षणा और व्यंजन के माध्यम से देश और समाज में व्याप्त विसंगतियों पर चोट करते हैं-  
पढ़कर ये चमचावली, जाने चम्मच ज्ञान।
सफल काज चम्मच करे, कहते संत सुजान।।
      साधु-संतों की कथनी-करनी और भोग-विलास चमचों की दम पर फलते-फूलते हैं किंतु ‘बुरे काम का बुरा नतीजा’ मिल ही जाता है-
बाबा बेबी छेड़कर, पहुँच गये हैं जेल।
कैसे तीरंदाज को, मिल जाती है बेल।।
      चम्मच अपने मालिक को सौ गुनाहों के बाद भी मुक्त कराकर ही दम लेता है-
अपने मालिक के लिए, चम्मच करे उपाय।
हिरन मारकर भी उन्हें, मिल जाता है न्याय।।
      राजनीति चमचों की चारागाह है-
मंत्री का दर्जा मिला, चहके साधु-संत।
डूबे भोग विलास में, चम्मच बने महंत।।
      चमचे सब का हिसाब-किताब माँगते हैं किंतु अपनी बारी आते ही गोलमाल करने से नहीं चूकते-
अपनी पूँजी का कभी, देते नहीं हिसाब।
दूजे के हर टके का, माँगें चीख जवाब।।
       राम कुमार की भाषा सरल, सहज, प्रसंगानुकूल चुटीली और विनोदपूर्ण है। हास्य-व्यंग्य की चासनी में घोलकर कुनैन खिआल देना उनके लिए सहज-साध्य है।
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जीवन चम्मच संग है, चम्मच से पय पान।
चम्मच देता अंत में, गंगा जल का पान।।
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चम्मच जिनके पास है, चम्मच उनके खास।
जिनसे चम्मच दूर है, उनको मिलता त्रास।।
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नित चम्मच सेवा करे, मिलता अंर्तज्ञान।
हिय चम्मच जिनके बसे, रहता अंर्तध्यान।।
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जिनके काम न हो सके, चम्मच करे उपाय।
बदले में मिलती रहे, ऊपर की कुछ आय।।
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आय कमीशन श्रोत है, चम्मच करते पास।
जिसे कमीशन न मिले, घूमें फिरे उदास।।
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चरण पड़ें थक हारकर, मन्नत माँगे भीख।
बैर न चम्मच से,  देते हमको सीख।।
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चम्मच ने चम्मच चुने, जो धरते बहु रूप।
लेकर चम्मच हाथ में, पीते रहते सूप।।
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कामचोर के राज में, चम्मच करते काम।
अपना उल्लू साधते, चम्मच लेकर दाम।।
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घर ही मयखाना बना, पीकर खेले दाँव।
दाँव-पेंच सब जानते, पड़ते रहते पाँव।।
राज
पाँव पकड़ विनती करें, सिद्ध करो सब काम।
अपना हिस्सा तुम रखो, कुछ अपने भी नाम।।
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बिगड़े तो कुछ सोच लो, काम बिगाडे़ आप।
नागों के हम नाग है, बिषधर के भी बाप।।
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चम्मच कोई काम लें, करना मत इंकार।
बैठें पाँव पसारकर, सज जाते दरबार।।
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नेता संग अवार्ड ले, चम्मच खेलें दाँव।
अगर-मगर होता नहीं, हो जाता अलगाव।।
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भैयाजी के दाम पर, लगती बोली बोल।
चम्मच मुँह जब खोलता, खोले सबकी पोल।।
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राज रखे सब पेट में, नहीं खोलता राज।
राज कर रहे राज से, नेता-चमचे आज।।
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पोल खोलता जब कभी, हो जाती हड़कंप।
कुर्सी डोले डोलती, हो जाता भूकंप।।
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सेवा में सरकार के, करते बंदर बाट।
अच्छे पद की चाह में, देश बाँटकर चाट।। 
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राजनीति के मंच से, चम्मच चलते चाल।
लक्ष्मी पूजा-पाठ की, सजती रहती थाल।।
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चम्मच बदले भेष को, बदले बेचे देश।
बस उसको मिलता रहे, बदले में कुछ कैश।।
व्यापम
चम्मच वश चलता रहे, काम करे भरपूर।
उसके बदले नोट से, करें सदा दस्तूर।।
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चम्मच इस संसार में, बाँट लिए हैं क्षेत्र।
अपने कौशल काम से, खोलें सबके नेत्र।।
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शिक्षा पूरी है नहीं, रखते पूरा ज्ञान।
चम्मच अपनी पैठ से, करवाता सम्मान।।
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डिग्री धारी सोचते, पद पाते हैं चोर।
कैसे चम्मच के बिना, लगे न कोई जोर।।
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साथ साधु सेवक रहे, फल पाओ श्रीमान्।
चम्मच नेकी कर्म में, रमा हुआ तू जान।।
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साक्षर करते देश में, शिक्षा के अभियान।
चम्मच भी भर्ती करें, व्यापम का संज्ञान।।
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कितने तो मरकर हुए, राजनीति के खेल।
कुछ चम्मच की शरण, कुछ को होती जेल।।
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पास-फेल के खेल में, दाँव-पेंच की जंग।
कला कुशलता के धनी, चम्मच जिनके संग।।
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विषय परक के क्षेत्र में, गाए अपनी राग।
कौआ छीने कान को, कहते भागमभाग।।
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ठेका है जनतंत्र का, ठेके की सरकार।
चम्मच तेरे देश में, होता हिरण शिकार।।  
न्याय
बाबा बेबी छेड़कर, पहुँच गये हैं जेल।
कैसे तीरंदाज को, मिल जाती है बेल।।
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चम्मच ने सौदा करे, न्याय तंत्र है मौन।
जज की बदली कर रहा, देर रात में कौन।।
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हसरत उनकी साफ थी, साफ हुआ है देश।
चम्मच साहब ठाट से, बदल चुके हैं भेष।।
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अपने मालिक के लिए, चम्मच करे उपाय।
हिरन मारकर भी उन्हें, मिल जाता है न्याय।।
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भेदभाव से दूर रह, चम्मच करता काम।
सेवा करे समाज की, रहे बॉस के धाम।।
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आबंटन के काम में, चम्मच दें आवास।
उद्घाटन करते समय, करता है उल्लास।।
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न्याय किसी को चाहिए, पकड़ो चम्मच हाथ।
बन जाता है सारथी, लक्ष्य साधते पार्थ।।
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चम्मच प्रिय इस देश में, रिश्वत है आहार।
न्याय माँगने दुखी भी, आते चम्मच द्वार।। 
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चम्मच अपने साथ है, मानो अपना भाग्य।
पुरखा उनको मानकर, धन्य हुए सौभाग्य।।
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चम्मच से चम्मच जलें,रखते मन में क्लेष।
चम्मच देते फोन से, मिलने का संदेश।।  
वैद्य
धमकी पाकर आपके, उड़ जाएँगे केश।
चम्मच संत सामान हैं, देते नित उपदेश।।
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भेष बदलकर आजकल, रौब जमाते खूब।
चम्मच फर्जी लोन लें, बैंक गए हैं डूब।।
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वैद्य विशारद जानिए, चम्मच हरता रोग।
काजू पिस्ता सूँघकर, करवाता है भोग।।
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नब्ज पकड़ना जानता, हरता मनोविकार।
जटि समस्या जटिल है बहुत, कैसे हो उपचार।।
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चम्मच नेता सूरमा, देते है संदेश।
लिंक करें आधार से, पूँजी करें निवेश।।
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मंत्री का दर्जा मिला, चहके साधु-संत।
डूबे भोग विलास में, चम्मच बने महंत।।
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संत समागम जब करें, चम्मच देते संग।
ले प्रसाद पत्रक चले, डूबे अपने रंग।।
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बीच-बीच में नाचते, भजन बीच उपदेश। 
ढ़ोंगी बाबा-साध्वियाँ, बदल-बदल परिवेश।।
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चेहरा देख प्रसाद दें, कहें पुण्य का काम।
संत चरण-चम्मच बसे, रहते चारों धाम।।
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भक्ति भाव में रमें हैं, मंदिर के बलधाम।
चंदा पुण्य प्रताप से, चम्मच करते काम।।
धर्म
मौला चंदा मांगते, जब मस्जिद के नाम।
चम्मच मौला साथ में, चलें साधते काम।।
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कौमी कहते कौम में, दंगा हो न फसाद।
उनके अपने धर्म में, कहीं नहीं अवसाद।।
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मजहब में आतंक का, डाल जिहादी जंग।
नेता चम्मच बताते, अलग धर्म के रंग।।
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विषय वासना में फँसे, मुल्ला साधू संत।
जनता इस अंधेर का, कर देती है अंत।।
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बेटी घर में लुट रही, होती है हैरान।
राजा जी लेते शरण, बन जाते हैवान।।
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सिसक रही इंसानियत, देते गजब बयान।
चम्मच अपनी धौंस से, बनते रहे महान।।
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चम्मच अपने पक्ष में, करे सभी को दक्ष।
खाली करना जेब हर, एकमात्र है लक्ष्य।।
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समझ बड़ी है भाँपते, चम्मच उनके दूत।
बिना मोल अनमोल है, कहते उनके पूत।।
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जल्दी भारत स्वच्छ हो, चला रहे अभियान।
चम्मच झाड़ू थामकर, मार रहे मैदान।। 
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गंग-सफाई नाम से, हुआ बड़ा व्यापार।
नीलामी की कोट की, बिके सभी उपहार।।
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चम्मच अपने बॉस का, करते है गुणगान ।
बदले में उनको मिले, समय समय पर मान।।
धर्म
साधू चम्मच साथ हैं, नेता चम्मच साथ।
अधिकारी चम्मच बिना, देंगे थामें हाथ।।
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बाबू पान दुकान में, देता चम्मच साथ।
फाईल बढ़ती है तभी, मिलते दोनों हाथ।।
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हाथों हाथ कार रहे, काम करे सरकार।
चम्मच काज रुकें नहीं, कितनी हो दरकार।।
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जनता बेबस है नहीं, चम्मच कहें महान।
धर्म जाति की बात से, लेते हैं संज्ञान।।
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धरम करम के भेद को, देते जमकर तूल।
मतभेदों की मौत में, चढ़ते रहते फूल।।
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भेंट दरिंदो की चढ़ी, मानवता निरुपाय।
चम्मच जी रच दिए, ढाढस के अध्याय।।
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हर विपदा में साथ है, चम्मच जैसा वीर।
देखें चम्मच त्याग को, होते बहुत अधीर।।
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समय बदलते देर क्या, चम्मच बदलें बॉस।
बॉस बदलकर संग में, करते हैं उपवास।।
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दलाल
अपनी पूँजी का कभी, देते नहीं हिसाब।
दूजे के हर टेक का, माँगें चीख जवाब।। 
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रखते हैं तीखी नजर, चम्मच देखे माल।
अपना हक के वास्ते, घूमें रोज दलाल।।
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चम्मच शेयर बेचते, बैठे खेलें खेल।
लुढ़के शेयर धडाधड, बिगड़े सारे खेल।।
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घर से शोभा आपकी, संसद तक है पैठ।
मन-मंथन करते यही, कैसे हो घुसपैठ।।
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नीलामी के बोल में, टेंडर मिलते साफ।
चम्मच की बोली लगी, चम्मच का इंसाफ।।
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जल पानी की धार को,  देखे बैठे मौन।
गहराई क्या नापते, चम्मच जैसा कौन।।
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टेंडर मिलते उन्हीं को, देयक होते पास।
चम्मच उनके पालतू, रुपया उनको घास।।
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शूरवीर चम्मच जहाँ, धमक पड़े खुद आप।
आनन फानन में खड़े, सुनते ही पदचाप।।
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आम आदमी जी रहे, हो बेबस मजबूर।
होती चम्मच की कृपा, हो जाते मशहूर।।
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गधे भर रहे चौकड़ी, कुत्ते मारे लात।
दबी फाईलें खोल दे, चम्मच में औकात।।
चम्मच के रूप
चम्मच के इस देश में, बहुतेरे हैं नाम।  
कहलाते पीए कहीं, कहीं सचिव का काम।।
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कहते इन्हें दलाल भी, चम्मच हैं ऐजेंट।
शेयर होल्डर नाम के, लगा रहे हैं टैंट।।
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रहते है गुमनाम पर, नजर रखे सब ओर।
जाम उठाकर शाम को, करते चम्मच शोर।।
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नित चम्मच पूजा करो, जोड़ो दोनों हाथ।
सेवा खुद की कर सफल, कहे किया परमार्थ।।
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भाषण दें तैयार कर, पढ़ते नेता मंच।
ताली सुनकर भाँपते, चम्मच उनका टंच।।
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हँसी उड़े यदि बॉस की, चम्मच देते तूल।
चाल विपक्षी कह गलत, भूले अपनी भूल।।
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भूल-चूक की देन का, दोष मढ़े उस ओर।
श्री लेन का आप लें, कहें विपक्षी चोर।।
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दूजे का भाषण पढ़े, मंत्री थे नाराज।
अपनी पर्ची छोड़कर,पढ़े और की आज।।
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मंत्री की सेवा लगे, संत्री दाबे पाँव।
चम्मच से चम्मच लड़े, चले दाँव पे दाँव।।
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शिक्षा
शिक्षा कैसे बिक रही, चम्मच बेचें खास।
पेपर अब बिकने लगे, क्रय कर हो जा पास।।
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साथ-साथ में मिल गए, चम्मच संग दलाल।
ट्यूशन में कैसे पके, देखो इनकी दाल।।
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कोचिंग सेंटर नाम के, लुटते है माँ-बाप।
करते है सेटिंग सभी, नाम कमाये आप।।
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खोले बंद जुबान तो, माने उनकी कौन।
सत्ता में मदचूर हैं,चम्मच बाबा मौन ।।
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पेपर देता कौन हैं ,पत्रक किसके नाम।
चम्मच इन सबके लिए, लेते ऊँचे दाम।।
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इसमें भी कोटा लिए, पाते है कम अंक।
उनको पहले पद मिले, डसते तीखे डंक।।
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दूषित शिक्षा ही नहीं, दूषित सकल समाज।
आरक्षण के नाम से, नाकाबिल का राज।।
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मेहनत करना भूलकर, पूतें-खा बिन तोल।
बिना चबाए निगलते, मुँह तक रहे न खोल।।
वोट
वादा कर जुमला कहे, चमचों की सरकार।
वोट पिटारा खोलते, जनजन में गद्दार।।
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धरना देते बैठकर,चम्मच उनके पास।
भोजन करके बाद में, रखते हैं उपवास।।
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धरना में शामिल हुए, चम्मच जैसे वीर।
घड़ियाली आँसू बहा, कहें नर्मदा नीर।।
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बंदर कुर्सी ताकते , चम्मच है बैचेन।
हथियाने की होड़ में,अपलक देखें नैन।। १०१
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गुरुवार, 19 अप्रैल 2018

doha salila

दोहा सलिला:
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स्मित की रेखा अधर पर, लोढ़ा थामे हाथ।
स्वागत अद्भुत देखकर, लोढ़ा जी नत-माथ।।
*
है दिनेश सँग चंद्र भी, देख समय का फेर
धूप-चाँदनी कह रहीं, यह कैसा अंधेर?
*
एटीएम में अब नहीं, रहा रमा का वास
खाली हाथ रमेश भी, शर्मा रहे उदास
*
वास देव का हो जहाँ, दानव भागें दूर
शर्मा रहे हुजूर क्यों? तजिए अहं-गुरूर
*
किंचित भी रीता नहीं, कभी कल्पना-कोष
जीव तभी संजीव हो, जब तज दे वह रोष
*
दोहा उनका मीत है, जो दोहे के मीत
रीत न केवल साध्य है, सदा पालिए प्रीत
*
असुर शीश कट लड़ी हैं, रामानुज को देख
नाम लड़ीवाला हुआ, मिटी न लछमन-रेख? 
*
आखा तीजा में बिका, सोना सोनी मस्त
कर विनोद खुश हो रहे, नोट बिना हम त्रस्त
*
अवध बसे या बृज रहें, दोहा तजे न साथ
दोहा सुन वर दें 'सलिल' खुश हो काशीनाथ
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दोहा सुरसरि में नहा, कलम कीजिए धन्य
छंद-राज की जय कहें, रच-पढ़ छंद अनन्य
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शैल मित्र हरि ॐ जप, काट रहे हैं वृक्ष 
श्री वास्तव में खो रही, मनुज हो रहा रक्ष
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बिरज बिहारी मधुर है, जमुन बिहारी मौन
कहो तनिक रणछोड़ जू, अटल बिहारी कौन?
*
पंचामृत का पान कर, गईं पँजीरी फाँक। 
संध्या श्री ऊषा सहित, बगल रहे सब झाँक।
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मगन दीप सिंह देखकर, चौंका सुनी दहाड़
लौ बेचारी काँपती, जैसे गिरा पहाड़
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श्री धर रहे प्रसाद में, कहें चलें जजमान
विष्णु प्रसाद न दे रहे, संकट में है जान
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१९.४.२०१८ 
श्रीधर प्रसाद द्विवेदी 
सुरसरि सलिल प्रवाह सम, दोहा सुरसरि धार।
सहज सरल रसमय विशद, नित नवरस संचार।।
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शैलमित्र अश्विनी कुमार
आधा वह रसखान है,आधा मीरा मीर।
सलिल सलिल का ताब ले,पूरा लगे कबीर।
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कवि ब्रजेश 
सुंदर दोहे लिख रहे, भाई सलिल सुजान।
भावों में है विविधता, गहन अर्थ श्रीमान।।
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रमेश शर्मा 
लिखें "सलिल" के नाम से, माननीय संजीव!
छंदशास्त्र की नींव हैं, हैं मर्मज्ञ अतीव!!
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बुधवार, 18 अप्रैल 2018

muktak

मुक्तक
बहुत नचाया तूने मुझको, आ मैं तुझको आज नचाऊँ
कठपुतली की तरह नचाकर, तेरी ही औकात दिखाऊँ
तू विधायिका मैं जनता हूँ, आयेगा मेरे ही द्वारे-
मत लेने जब, तब जुमलों कह तुझको तेरी जात दिखाऊँ.
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ऐ! मेरी तकदीर नचा ले, जैसा चाहे वैसा मुझको.
हार नहीं मानी है मैंने, जीत नचाऊँगा मैं तुझको.
हाथों की रेखाओं में तू कैद, बदल दूँगा जब चाहूँ-
बाधाओं से जूझ कहूँगा, हार गयी हो जल्दी खिसको.
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गए हमारे बीच से, लेकिन बदला रंग.
अपने होकर भी करें अपनों को ही तंग
देख इन्हें शरमा रहा गिरगिट माने हार 
खुद ही खुद से कर रहे दिशा भूलकर जंग
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मुक्तक सलिला 
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मुक्त विचारों को छंदों में ढालो रे! 
नित मुक्तक कहने की आदत पालो रे!!
कोकिलकंठी होना शर्त न कविता की-
छंदों को सीखो निज स्वर में गा लो रे!!
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मुक्तक-मुक्तक मणि-मुक्ता है माला का। 
स्नेह-सिंधु है, बिंदु नहीं यह हाला का।  
प्यार करोगे तो पाओगे प्यार 'सलिल'
घृणा करे जो वह शिकार हो ज्वाला का

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जीवन कहता है: 'मुझको जीकर देखो'
अमृत-विष कहते: 'मुझको पीकर देखो'
आँसू कहते: 'मन को हल्का होने दो-
व्यर्थ न बोलो, अधरों को सीकर देखो"

अफसर करे न चाकरी, नेता करे न काम। 
सेठ करोड़ों लूटकर, करें योग-व्यायाम
कृषक-श्रमिक भूखे मरें, हुआ विधाता वाम- 
सरहद पर सर कट रहे, कुछ करिए श्री राम

छप्पन भोग लगाकर नेता मिल करते उपवास। 
नैतिकता नीलाम करी, जग करता है उपहास
चोर-चोर मौसेरे भाई, रोज करें नौटंकी-
मत लेने आएँ, मत देना, ठेंगा दिखा सहास
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hindi shabda salila

हिंदी शब्द सलिला
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१.
अ - देवनागरी तथा संस्कृत कुल की अन्य वर्ण मालाओं का प्रथम अक्षर और स्वर वर्ण, उच्चारण स्थान कंठ, व्यजन वर्णों का उच्चारण इसे मिलाकर ही किया जा सकता है क, ख आदि समस्त वर्ण 'अकार' मिलकर ही बोले जाते हैं अव्यय, उपसर्ग के रूप में प्रयुक्त होने पर अर्थ रहित, हीन, बुरा, उल्टा, विपरीत, भिन्न आदि अचल जो चलता न हो, स्थिर हो
२. 
अंक- पु., सं., चिन्ह, छाप, संख्या का चिन्ह १ २ ३ आदि, अदद, पत्र-पत्रिकाओं की निर्धारित समयावधि बाद प्रकाशित होनेवाली प्रति, लिखावट, अक्षर, 'तुम सन मिटहिं कि विधि के अंका' रा, कलंक, दाग, डिठौना, तप्त मुद्रा का सांप्रदायिक चिन्ह, भूषण, नाटक का एक खंड या सर्ग, रूपक का एक प्रकार, हुक जैसा टेढ़ा औजार, वक्र रेखा, झुकाव, मोड़, गोद, क्रोड, बगल, नकली लड़ाई, चित्रयुद्ध, स्थान, देह, दफा* बार, पाप, अपराध, पर्वत, एक संख्या -करण पु. चिन्ह लगाने की क्रिया -कार पु. बाजी आदि का निर्णायक, नाटक के भाग का प्रस्तोता या निदेशक, वह योद्धा जिसके हरने या जीतने से हार-जीत मान्य हो -गणित पु. संख्याओं का हिसाब, संख्याओं को जोड़ने-घटाने, गुणा-भाग आदि करने की क्रिया व विषय -गत वि. पकड़ में आया हुआ -तंत्र पु. अंकशास्त्र, पाटी गणित. -धारण पु. देह या ध्वज पर संप्रदाय का चिन्ह (शंख, चक्र, त्रिशूल, विशेष तिलक आदि) छपवाना -धारी वि. सम्प्रदाय के चिन्ह धारण करनेवाला -पत्र -पु. पत्रित -वि. दे. क्रम में -परिवर्तन पु. करवट बदलना, बच्चे का गोद में इधर-उधर होना, नाटक का अगला भाग आरंभ होना -पलई दे. अँकपलई -पाद्व्रत पु. एक व्रत -पालि /पालिका स्त्री. परिचारिका, गोद, दाई, धाय, पालनेवाली, अंग लगनेवाली, आलिंगन करनेवाली -पाली स्त्री. परिचारिका, सेविका, वेदिका नामक गंधद्रव्य, आलिंगन -पाश पु. गणित की एक क्रिया, आलिंगन की मुद्रा, गोद में लेना -पूरण पु. गुणन -बंध पु. झुककर गोद का आकार बनाना, सरविहीन मनुष्य का चित्र बनाना -भाक वि. गोद में बैठा हुआ, अति निकट -माल पु. आलिंगन, अँकवार -मालिका स्त्री. अंकमाल, छोटी माला -मुख नाटक का आरंभिक भाग जिसमें कथानक बीज रूप में हो, नाटक का सारांश -लोड्य पु. वृक्ष विशेष -विद्या स्त्री., अंकगणित, ज्योतिष -शायिनी वि. बगल में सोनेवाली, पत्नी, भोग्या -शायी/यिन वि. बगल में सोनेवाला, पति -शास्त्र पु. दे. सांख्यिकी मु.-देना/भरना गले लगाना, लिपटाना
अंकक- पु. सं. हिसाब लिखनेवाला, चिन्ह लगानेवाला, चिन्हित करनेवाला, स्त्री. अंकिका 
अँकटा- पु. छोटा कंकड़, कंकड़ी, कंकड़ का टुकड़ा 
अँकटी- स्त्री.छोटा कंकड़, कंकड़ी
अँकड़ी- स्त्री. टेढ़ी कँटिया, लग्गी, टेढ़ी गाँसी, लता 
अँकति- पु. सं. हवा, अग्नि, ब्रम्हा, अग्निहोत्री
अँकना- अ.क्रि. आँका जाना, लिखा जाना, अंकित होना, स.क्रि. आँकना
३.
अंकन- पु. सं. चिन्ह करना, लेखन, चित्रण, शरीर पर शंख, चक्र आदि छपवाना, गिनती करना, चिन्ह बनाने का साधन।
अंकनी- स्त्री. पेंसिल, लेखनी जो सीसा (लैड) की पतली छड़ पर लकड़ी, धातु या अन्य पदार्थ चढ़ाकर बनाई जाती है
अंकनीय- वि. सं. अंकन के योग्य, मुद्रित करने योग्य।
अंकपत्र- पु. स्टांप पेपर, शासन द्वारा जरी किया गया निर्धारित मूल्य पर उपलब्ध कागज जो विधिक कार्यवाही में प्रयुक्त होता है।
अंकपत्रित- पु. स्टांप्ड, अंकपत्र (स्टांप या मुहर) लगा हुआ कागज / लिफाफा
अँकपलई- स्त्री. अंकों को अक्षरों के रूप में उपयोग करने की कूट विद्या, कूट भाषा, कोड लैंग्वेज।
अंकम- पु. अंक, गोद
अँकरा- पु. एक घास, अंकुर, कंकर का टुकड़ा
अँकरास- पु. देह टूटना, आलस्य, शैथिल्य
अँकरी- स्त्री. लघु/छोटा अँकरा
अँकरोरी, अँकरौरी- स्त्री. कंकड़ी, छोटा कंकड़
अँकवाई- स्त्री. अँकवाने की क्रिया, अँकवने का पारिश्रमिक
अँकवाना- स.क्रि. अंकित करना, जँचवाना, मूल्य निर्धारित करना, अंक डोलना, आँकने हेतु प्रेरित करना, अँकाना
अँकवार- स्त्री. गोद, अंक, आलिंगन, मु. -देना- गले लगाना. -भरना- गोद में भरना/लेना, गोद में रहना
अँकवारना- स.क्रि. आलिंगन करना, भेंटना, गले मिलना
अँकवारी- स्त्री. गोद
निरंतर ....

मंगलवार, 17 अप्रैल 2018

लघुकथा: आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

दिन भर कार्यालय में व्यस्त रहने के बाद थका-हारा घर पहुँचा तो पत्नी ने किराना न लाने का उलाहना दिया। उलटे पैर बाजार भागा, किराना लेकर लौटा तो बिटिया रानीशिकायत लेकर आ गई "मम्मी पिकनिक नहीं जाने दे रही।" जैसे-तैसे  श्रीमती जी के मानकर अनुमति दिलवाई तो मुँह लटकाए बेटे ने बताया कोचिंग जाना है,  फीस चाहिए। जेब खाली देख, अगले माह से जाने के लिए  कहा और सोचने लगा कि धन कहाँ से जुटाए? माँ के खाँसना और पिता के कराहना की आवाज़ सुनकर उनसे हाल-चाल पूछा तो पता चला कि दवाई  खत्म हो गई और शाम की चाय भी नहीं मिली। बिटिया को चाय बनाने के लिए कहकर बेटे को दवाई लाने भेजा ही था कि मोबाइल बजा। जीवनबीमा एजेंट ने  बताया किस्त तुरंत न चुकाई तो पॉलिसी लैप्स हो जाएगी। एजेंट से शिक्षा ऋण पॉलिसी की बात कर कपड़े बदलने जा ही रहा था कि दृष्टि आलमारी में रखे,  बचपन के खिलौनों पर पड़ी।
पल भर ठिठककर उन पर हाथ फेरा तो लगा खिलौने कह रहे हैं "तुम्हें ही जल्दी पड़ी थी बड़ा होने की, अब भुगतो। छोटे थे तो हम तुम्हारे हाथों के खिलौने थे,  बड़े होकर तुम हो गए हो दूसरों के हाथों के खिलौने।
***
संपर्क: विश्व वाणी हिंदी संस्थान, 401 विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर 482001।
चलभाष़:7999559618, 9425183244
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सोमवार, 16 अप्रैल 2018

निमाड़ी लघुकथा

निमाड़ी लघुकथाएँ 
१. खिलौने 
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
दिन भर कार्यालय में व्यस्त रहने के बाद थका-हारा घर पहुँचा तो पत्नी ने किराना न लाने का उलाहना दिया। उलटे पैर बाजार भागा, किराना लेकर लौटा तो बिटिया रानीशिकायत लेकर आ गई "मम्मी पिकनिक नहीं जाने दे रही।" जैसे-तैसे  श्रीमती जी के मानकर अनुमति दिलवाई तो मुँह लटकाए बेटे ने बताया कोचिंग जाना है,  फीस चाहिए। जेब खाली देख, अगले माह से जाने के लिए  कहा और सोचने लगा कि धन कहाँ से जुटाए? माँ के खाँसना और पिता के कराहना की आवाज़ सुनकर उनसे हाल-चाल पूछा तो पता चला कि दवाई  खत्म हो गई और शाम की चाय भी नहीं मिली। बिटिया को चाय बनाने के लिए कहकर बेटे को दवाई लाने भेजा ही था कि मोबाइल बजा। जीवनबीमा एजेंट ने  बताया किस्त तुरंत न चुकाई तो पॉलिसी लैप्स हो जाएगी। एजेंट से शिक्षा ऋण पॉलिसी की बात कर कपड़े बदलने जा ही रहा था कि दृष्टि आलमारी में रखे,  बचपन के खिलौनों पर पड़ी।
पल भर ठिठककर उन पर हाथ फेरा तो लगा खिलौने कह रहे हैं "तुम्हें ही जल्दी पड़ी थी बड़ा होने की, अब भुगतो। छोटे थे तो हम तुम्हारे हाथों के खिलौने थे,  बड़े होकर तुम हो गए हो दूसरों के हाथों के खिलौने।
***
संपर्क: विश्व वाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१ 
चलभाष़:७९९९५५९६१८ /९४२५१८३२४४, ईमेल: salil.sanjiv@gmail.com 
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२. बीच सड़क पर
-मोहन परमार मोहन
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खरगोन शहर, तपती दुपहरी,  आती-जाती भीड़ पर कोई असर नहीं,  न जाने कहाँ से आते इतने लोग और न जाने कहाँ जाते,  डाकघर चौराहे पर दो चौड़े रास्ते एक दूसरे को काटकर सँकरी राह में बदल जाते हैं। दिन भर लगा रहता जाम, आठ-आठ घंटे खड़े यातायात पुलिसवालों की कड़ी परीक्षा होती हर समय, जब लोग यातायात  नियमों की धज्जियाँ उड़ाते। चौराहे के बीच में लगी छतरी की छाया कभी पुलिसकर्मी को नहीं मिलती। धूप असह्य होने पर पुलिसकर्मी किनारे पर पान की दूकान पर जा खड़ा हुआ।

उसी समय तेजी से साइकिल चलाकर आता एक लड़का अधेड़ महिला से टकरा गया। पुलिसवाला जोर से चिल्लाया- "क्यों बे! सड़क पर चलना नहीं आता? बाएँ हाथ से चलने का नियम नहीं जानता क्या?"
लड़के ने उठते हुए उत्तर  दिया- "तू वहाँ क्यों खड़ा है?, तू भी नियम नहीं जानता क्या?" भीड़ ठठाकर हँस पड़ी, पुलिसवाला कभी भागता हुए लड़के को देखता,  कभी हँसी हुई भीड़ को। उसे लगा वह छत्री भी उसकी हँसी उड़ी रही है।
***
संपर्क: ए २२ गौरीधाम,  खरगोन ४४५००१. चलभाष: ९८२६७४४८३७ 
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३. रोटियाँ
अशोक  गर्ग "असर"
*
माँ-बाप ने शहर में पढ़ रही बेटी के पास जाने का सोचा। बेटी को शहर में ढंग का खाना नहीं मिलता होगा सोचकर माँ ने जल्दी-जल्दी रोटी-सब्जी बनाकर, बाप ने जरूरी सामान समेटा और सुबह ६ बजे वाली बस से लंबा सफर तयकर बेटी के पास पहुँचे। सफर की थकान मिटाकर माँ-बाप, बेचारा साथ खाना खाने बैठे। थाली पर नजर पड़ते ही बेटी गुस्सा कर माँ से बोली "यह क्या ले आई? ठंडी रोटियाँ और बेस्वाद सब्जी,  कौन खाएगा?" 
बेटी तनतनाते हुए बगैर रोटी खाए अपने कमरे में चली गई। माँ को अपनी माँ याद आ गई,  जब वह शहर में पढ़ती थी तो अपनी माँ की दी रोटियाँ २-३ दिन तक बचा-बचाकर खाती थी, उसे उन रोटियों में अपनी माँ की असीम ममता नजर आती थी। माँ की आँखें डबडबा रही थीं और पिता की भी।
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द्वारा: आर. के. महाजन, २६ विवेकानंद कॉलोनी,  खरगोन। चलभाष: ९४२५९ ८१२१३ 
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४. फोर जी
शरदचंद्र त्रिवेदी 
*
"मम्मी! हम छुट्टियों में कहाँ जाएंगे?"
"बेटा! हम नाना जी के घर चलेंगे।"
"वहाँ क्या है?" चिंटू ने मम्मी से पूछा।
"वहाँ नाना - नानी हैं,  मामा-मामी और उनके बच्चे हैं। नाना जी की बड़ी सी बखरी है,  आम का बाग, खेलने के लिए खलिहान, तैरने के लिए तालाब सब कुछ है। नानी बता रही थीं इस साल आमों पर बहार आई है। हम पूरी गर्मी वहीं रहेंगे,  खूब मजे करेंगे।"
"मम्मी मुझे नहीं जाना वहाँ।"
माँ ने चौंकते हुए पूछा "क्यों?"
"क्योंकि वहाँ फोर जी नहीं मिलता।
*
संपर्क: ए ४५ गौरी धाम,  खरगौन, चलभाष:९४०६८१६४११   
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५. वापसी
ब्रजेश बड़ोले
*
पति-पत्नी के बीच घरेलू काम-काज को लेकर आए दिन झगड़े होते रहते थे। पत्नी चूल्हा-चौका कर जताती कि वह पूरे परिवार पर अहसान कर रही है। वह अकसर कहती- "मैं यदि घर छोड़कर चली जाऊँ तो सबको मालूम पड़ जाए, सुबह से उठकर चाय भी नहीं मिल पाएगी।"
पत्नी आखिर एक दिन अपना बोरिया-बिस्तर बाँधकर मायके चली गई। माता-पिता,  भाई-भाभी, भरा-पूरा परिवार था उसका,  सबने उसका स्वागत किया। आठ-दस दिनों तक तो सब ठीक  चलता रहा,  फिर गड़बड़ होने लगी। उसका बैठे-बैठे खाना सबको अखरने लगा, खासकर भाभियों को। सबका लाड़-प्यार कुछ ही दिनों में काफूर हो गया। अब उसे भी काम करना पड़ता था। परिवार बड़ा होने के कारण काम भी अधिक था, भाभियाँ आए दिन मायके जाने लगीं। जिस काम से बचने के लिए वह भागता यहाँ आई थी,  उसने यहाँ भी  पीछा नहीं छोड़ा था। 
अब वह पुन: घर जाने की तैयारी कर रही थी।
*
संपर्क: ए १३ गौरीधाम, खरगोन चलभाष: ९९७७०७२८६४ 
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६. मोक्ष

सुनील गीते
*
ससुर के श्राद्ध दिवस पर ब्रम्हभोज का आयोजन चल रहा था। वृद्ध सास स्वयं अपने हाथों से ब्राह्मणों को परोसने के उद्देश्य से खड़ी हुई तो पानी के गिलास से टकरा गई।
बिखरा पानी देख बहू बिफरी- "मांजी! आप चुपचाप एक जगह बैठी क्यों नहीं रहती?" फिर  बुदबुदाई, " न जाने कब इनसे मुक्ति मिलेगी?"
मकान की छत पर बैठे एक कौवे ने यह बात सुनी और अपना हिस्सा लिए बिना, दूर आकाश में उड़ गया।
संपर्क: वयम, १०२ आदर्श नगर, खंडवा रोड़, खरगोन ४५१००१, चलभाष ९८२७२३१३१६  
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७. बासी-ताजी सब्जी 
सुरेश कुशवाहा 'तन्मय' 
*
रात के १० बजे ठेकेदार के चंगुल से छूट कर घर की ओर लौटते हुए वे दिहाड़ी मजदूर रास्ते में खड़े एक सब्जी वाले से सब्जी के भाव कम करने की मिन्नतें कर रहे थे: "भैया! थोड़ा कम दाम लगा लो न, हम सब को मिल कर ज्यादा भी तो लेना है।"
सब्जी वाले द्वारा भाव कम नहीं करने पर अंतिम कोशिश  के रूप में पुनः मजदूर आग्रह के स्वर में कहने लगे: "भैया! वैसे भी सब्जी बासी हो कर सड़ने गलने लगी है, सुबह तक तो ये किसी के भी खाने लायक नहीं रहेगी। अब इतनी रात को अब दूसरे ग्राहक तुम्हें कौन मिलेंगे?"
"देखो भाई लोगो! जैसे आप लोग अपने परिवार का पेट पालने के लिए इतनी रात तक काम करते रहे हो , वैसे ही मैं भी यहाँ किसी उम्मीद से ही खड़ा हूँ। और ये तो कहो मत कि, सब्जियाँ खराब हो गई तो फेंकने में जाएगी। आगे वे चमचमाती होटलें दिख रही है न, थोड़ी देर बाद थोड़ा सुनसान होने पर मेरी और मेरे जैसे और ठेलों की पूरी सब्जियाँ खुशी-खुशी वहाँ खप जाएगी। रात भर उनके फ़्रिज में आराम कर, चटपटे मसलों के साथ यही सब्जियाँ  फिर से ताजी हो कर मँहगी प्लेटों में सज कर बड़े-बड़े रईस लोगों को परोस दी जाएगी।
यह जानने के बाद जरूरत की सब्जी ले कर मजदूर आपस में बातें करते अपने मुकाम की ओर लौट चले: "यार! हम तो अभी तक सोचते थे कि, तंगी की वजह से हमारी किस्मत में ही ताजी सब्जियाँ नहीं है, पर आज पता चला कि, पैसे वाले इन बड़े लोगों की किस्मत भी इस मामले में अपने से अच्छी नहीं है।
*
संपर्क: २२६ नर्मदे नगर, बिलहरी, जबलपुर,चलभाष: ९८९३२६६०१४, ,ईमेल: sureshnimadi@gmail.com
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८. दो भाई 
स्व. राम नारायणजी उपाध्याय.  
पद्मश्री, साहित्य वाचस्पति  
विचार तथा आचार  दोनों सगे भाई थे, दोनों एक ही दिन पैदा हुए, विचार पहले आचार उसके बाद में। उम्र में बड़ा होने पर भी विचार चंचल स्वभाव का था। वह कभी एक जगह टिकता नहीं था, हमेशा दूर-दूर की सोचता रहता था। आयु में छोटा होने पर भी आचार गंभीर स्वभाव का था। उसके मुखमण्डल पर सदा शालीनता उभरती थी, वह हमेशा कुछ न कुछ करता रहता था। शरीर से भारी-भरकम और सदा काम-धंधे से लदे  होने के कारण वह मन होने के बाद भी विचार के साथ खेल-कूद नहीं पाता था।    
एक दिन न जाने किस बात पर दोनों भाइयों में कहा-सूनी और मन-मुटाव हो गया। विचार गुस्सा होकर अपने घर से इतनी दूर निकल गया कि आचार उसे खोज ही नहीं सका। विचार के अभाव में आचार सूखने लगा, बहुत दुबला हो गया। अब उसका मन किसी काम में नहीं लगता था। वह करना कुछ चाहता हो और कुछ जाता। लोगों की निगाह में उसका कोई महत्व नहीं रह गया, वह एकदम भावशून्य हो गया।
घर से भागकर विचार ने सीधा रास्ता पकड़ा किन्तु बाद में वह तर्क-कुतर्क के आड़े-टेढ़े रास्ते पर भटकता रहा। आचार का घर छोड़ने के बाद से कोई विचार की बात का भरोसा नहीं करता था। वह जहाँ भी जाता लोग उसे आचारहीन कहकर उसकी उपेक्षा करते थे। आखिर में एक दिन अपने उजड्डपन से थक-हार कर विचार अपने घर वापिस आ गया। 
आचार ने दौड़कर उसकी आवभगत की। तब दोनों भाइयों में समझौता हुआ कि विचार जहाँ भी जाएगा अपने छोटे भाई आचार को भी साथ ले जाएगा। आचार जो भी करेगा अपने बड़े भाई विचार को साथ में लेकर करेगा। इस तरह मिल-जल कर दोनों भी सुखी-संपन्न हो गए। 
*
संपर्क: साहित्य कुटीर  पं . राम नारायण उपाध्याय वार्ड, खण्डवा म.प्र. 
चलभाष: ९४२५० ८६२४६, ९४२४९४९८३९,  ७९९९७४९१२५ gangourknw@gmail.com lekhakhemant17@gmail.com 
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९.  सही कौन? 
हेमंत उपाध्याय
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एक दावत में बहुत स्वादिष्ट पकवान बने थे । नगर सेठ से पूछा कि भोजन कैसा बना है तो उसने कहा: 'दाल में नमक अधिक है।'                        
कालेज के  प्राचार्य साहब से  पूछ तो वे बोले: 'भात में नमक काम है।     
गाँव के दाजी से पूछा तो उन्होंने दाल-भात मिलकर कहते हुए कहा: सब एकदम बढ़िया बना है, अन्नपूर्णा माँ की साक्षात कृपा है तुम पर।                                   
*
संपर्क: साहित्य कुटीर  पं . राम नारायण उपाध्याय वार्ड, खण्डवा म.प्र. 
चलभाष: ९४२५० ८६२४६, ९४२४९४९८३९,  ७९९९७४९१२५ gangourknw@gmail.com lekhakhemant17@gmail.com 
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६. मोक्ष 

सुनील गीते 
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ससुर जी का सराध का दिन बाम्हण म्हाराज न ख$ जिमाड़न$ की तैयारी चली रइ थी। 
डोकरी सासु मांय अपणा हात सी बामण न$ख भोजन परसण$ ख उठी। कांपता हात-पाँय न$ बूढ़ापा को सरीर। पाणी को एक गिल्लास टकरयी न पाणी फैली गयो। बगळेल पाणी देखी न$ ववड़ी को पारो चयड़ी गयो न$ बड़बड़ाण$ लगी----" पतो नी ई बुड्ढी सासु मांय सी कवँ मुक्ति मिलग$।
ई वात मुंडेर प बठेल हड्या(कौआ) का कान न म$ पड़ी।   सुणी न$ अपणा हिस्सा की धरेल सराध की पातळ छोड़ि न दूर अकास म$ उड़ी गयो।
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७. बासी-ताजी सब्जी 
सुरेश कुशवाहा 'तन्मय 
*

रात ख 10 बजे ठेकेदार का चंगुल सी छुटी न$ 3-4 दिहाड़ी मजूर अपणा मुकाम प जात$जात$ एक साग-भाजी का ठेला प मोल-भाव करण$ लग्या । मोठा भाई -जरा हिसाब सी लगई ल$भाव तो हम सबइ जोण लेइ लेवांगा। पण सब्जी वाळो ठांय नि पसीजी रयो थो।
एक आखरी कोशिस मं मजूर न$न कयो कि भायजी वसी बी तमारी ई सब सब्जी वासी हुई गइज। सुभो तक तो ई सब सड़ी बी जायगा।आवँ यत्री रात मं कोई ग्राहक बी तो नी आवग$ ?
देखो भाई न होण!  - जसा तुम लोग पेट का लेण$ यत्ति रात तक खटी रयाज वसोज हंवू बी उम्मीद सी यहां उब्यौज।
न$ तुम ई तो मत कओ कि, ई सब्जी सड़ी जायगा।
वू वल्याङ्ग चमचमाती दुइ-तीन होटल देखी रयाज नी तुम, जरा देर बाद सुनसान होयग कि ई हमरी सब सब्जी का साथ दूसरा ठेला न खी सब वासी सब्जी न$ बी व्हां खपि जायग$। वू दुकान मं रात भर फिरिज मं रयि न सुभो  चटपटी मसालेदार ताजी सब्जी बणी न मयंगी प्लेट न$म सज$ग, फिरि यखज बड़ा बड़ा रईस लोग चटखारा लइ-लइ न खायग।
                 जरा-भौत सब्जी लइ न मजूर व्हां सी हंसता-बोलता,  वाट$ लग्या--यार भाई, हम तो सोचता था कि, तंगयी की वजह सी हमरीज किस्मत मं ताजी सब्जी न$ नी हंई, पण आज पतो चल्यो कि, ई बड़ा लोग न खि किस्मत बी इना मामला म अपणाज सरी खी छेज, अपुण तो फिरि बी भाव-ताव करी लेवांज। ई बिचारा तो वासी ख ताजी समझी न पैसा उड़ावज।
  खुश होण$ का बी सब का अपणा-अपणा तरीका छे
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८. दो भाई 
रामनारायण उपाध्याय, पद्म श्री, विद्या वाचस्पति 
*
विचार न आचर दुई सग्गा भाई  था ।  दुवई एकज  दिन पैदा हुया था। विचार पयळ पैदा हुयो ओका  बाद आचार पैदा हुयो।  उमर मs बड़ो होणs का बाद भी विचार चंचल सुभाव को थो । उ कभी  स्थिर हुई कर एक जगह टिकतो नहीं थो । सदा कंई नकंई स़ोचतो रह्यतो न दूर -दूर की सोचतो रह्यतो थो । उमर मs छोटो  होणs पर भी आचार गंभीर सुभाव को थो । ओका मुख पर सदा सालीनता उभरती अरु उ सदा कंई न कंई करतो रह्यतो थो । 
शरीरसी उ भारी भरकम अनs सदा काम धंधा सी लदेल होणs का कारण उ मन होणs का बाद भी  विचार का साथ खेली -कुदी नी पावतो थो। 
एक दिन जाणs  काई हुयो कि दुवइ भाईनमs कहा सुणी हुई गई न मनमुटाव हुई गयो। विचार घुस्सो खाई कर  अपणा घरसी येतरी दूर निकलई  गयो कि आचार ओखs ढुंढी नी सक्यो। विचार का आभाव मs अचार सुखाणs लग्यो। घणो दुबलो हुई गयो। अब ओको मन कोई भी काम मs लगी नहीं पावतो थो । उ करतो कंई न होतो कंई  थो। लोग नs की निगाह मs ओका काम को कोई भी  दाम नहीं रह्ई गयो अरु उ एकदम भावशून्य हुई गयो।              
इधर घरसी भागीकर विचार नs सीधो रास्तो पकड्यो ।  बाद मs उ तर्क कुतर्क का आड़ा -तेड़ा रास्ता मs गुतातोज   रह्यो । आचार खs घरजs छोड़ी आवणsसी  कोई विचार की वात पर भरोसो नी करता थो और उ जहाँ भी जातो लोग ओखs आचारहीन बोली करनs ओकी अनदेखी करता था। आखरी मs अपना इनाज उजाड़्यापण सी हरी-थकी करनs एक दिन विचार पछो अपणा घर आई गयो । आचार नs दौड़ीकर ओकी  खूब आवभगत करी और तब दुवई भाईनमs यो समझोतो हुयो कि विचार जलेंग भी जाय वलेंग अपणा छोटा भाई आचार खs साथ मs लईकर जाय. असोज आचार जी भी करs अपणा मोठा भाई विचार का साथ करs । आसाज मिलीजुली कर एक दूसरा की मदत सी दुई भाई सुखी सम्पन्न हुई गया ।                      
संपर्क: साहित्य कुटीर  पं . राम नारायण उपाध्याय वार्ड, खण्डवा म.प्र. 
चलभाष: ९४२५० ८६२४६, ९४२४९४९८३९,  ७९९९७४९१२५ gangourknw@gmail.com lekhakhemant17@gmail.com 
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९.   सही कुण?
हेमंत.उपाध्याय
*
एक पंगत मs घणा  स्वादिष्ट पकवान बण्या था । नगर सेठ सी पूछ्यो कि रशोई कसी बणीज  तो उन्नs कयो - " दाल मs  लोण ज्यादा  छे ।"                        
कालेज का  प्राचार्य साहब सी  पूछ्यो  तो उ बोल्या   - " भात  मs लोण कम छे । "   गाँव का दाजी सी पूछ्यो तो  उन्नs  भात मs दाल मिलई कर  दाल भात को फूडको लइकर  कयो - सब घणो  चोखो एकदम सइसाट एक नम्बर बण्योज । अन्नपूर्णा माता की साक्षात कृपा छे , तुमारा पर ।                                      
*
संपर्क: साहित्य कुटीर  पं . राम नारायण उपाध्याय वार्ड, खण्डवा म.प्र. 
चलभाष: ९४२५० ८६२४६, ९४२४९४९८३९,  ७९९९७४९१२५ gangourknw@gmail.com lekhakhemant17@gmail.com 
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१० उपवास 

निमाड़ की औरत का व्रत 😜
पति-. कईआज रोटी नी बनानी कई।
पत्नी, - आज म्हारो उपास हे नी ..
पति-कई खायो की भुकी ज हे
कई खाई लेती?
पत्नी-, आसोज, जरासो.. खायो..
4-5 केला
2अनार
3-4 सेवफल
आलु पपड़ी
साबुदाणा की खिचड़ी
. सिंगोड़ा को परसाद
. सुबह ऐक गिलास दुध
दो कप चाय पी ली थी
. ने अब मोसंबी को रस पी री
आज ऊपास हे नी,और कई तो खाई नी सका नी।
पति- थोड़ी रबड़ी न पपीता खाई लेती ।
पत्नी -ई सब रात क खाऊगा नी ..
पति-तु भोत मुश्किल ऊपास करज।
कोई का बाप सी भी नी रवाय.. एतरो भूखो
देखजे कई कमजोरी नी आईजाय..
पत्नी-नई जी नी आवगी।
आज तो सुबह बदाम काजु खाई लिया था..
पति, फिर बी ध्यान राखजे..
११. 
अगर पाकिस्तान की बॉर्डर अपणा निमाड़ से लगती ,
तो अपणा याँ की बाई न होण आधो पाकिस्तान तो कंडा थेपी थेपी न कब्ज़ा म लई लेती 😂😀😁
न उनख भी निमाड़ी सिखाई देती। टोला मारी मारी ख।
"मरी का गया पाकिस्ताण्या होण".

रविवार, 15 अप्रैल 2018

श्री श्री चिंतन : दोहा मंथन 1

उत्सव
एकाकी रह भीड़ का अनुभव है अग्यान।
छवि अनेक में एक की,  मत देखो मतिमान।।
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दिखा एकता भीड़ में, जागे बुद्धि-विवेक।
अनुभव दे एकांत का,  भीड़ अगर तुम नेक।।
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जीवन-ऊर्जा ग्यान दे, अमित आत्म-विश्वास।
ग्यान मृत्यु का निडरकर, देता आत्म-उजास।।
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शोर-भीड़ हो चतुर्दिक, या घेरे एकांत।
हर पल में उत्सव मना, सज्जन रहते शांत।।
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जीवन हो उत्सव सदा,  रहे मौन या शोर।
जन्म-मृत्यु उत्सव मना,  रहिए भाव-विभोर।।
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12.4.2018