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मंगलवार, 10 जनवरी 2017

doha, soratha, mukatak

दोहा सलिला 
*
मन मीरां तन राधिका,तरें जपें घनश्याम।
पूछ रहे घनश्याम मैं जपूँ कौन सा नाम?
*
जिसको प्रिय तम हो गया, उसे बचाए राम।
लक्ष्मी-वाहन से सखे!, बने न कोई काम।।
*
प्रिय तम हो तो अमावस में मत बालो दीप।
काला कम्बल ओढ़कर, काजल नैना लीप।।
*
प्रियतम बिन कैसे रहे, मन में कहें हुलास?
विवश अधर मुस्का रहे, नैना मगर उदास।।
*
चाह दे रही आह का, अनचाहा उपहार।
वाह न कहते बन रहा, दाह रहा आभार।।
*
बिछुड़े आनंदकंद तो, छंद आ रहा याद।
बेचारा कब से करे, मत भूलो फरियाद।।
*
निठुर द्रोण-मूरत बने, क्यों स्नेहिल संजीव। 
सलिल सलिल सा तरल हो, मत करिए निर्जीव।।  
*
सोरठा 
मन बैठा था मौन, लिखवाती संगत रही। 
किसका साथी कौन?, संग खाती पंगत रही।।
*  
मुक्तक 
मन जी भर करता रहा, था जिसकी तारीफ 
उसने पल भर भी नहीं, कभी करी तारीफ
जान-बूझ जिस दिन नहीं, मन ने की तारीफ 
उस दिन वह उन्मन हुई, कर बैठी तारीफ   
*

lekh

आलेख-
मत करें उपयोग इनका 
हम जाने-अनजाने ऐसी सामग्री का उपयोग करते रहते हैं जो हमारे स्वस्थ्य, पर्यावरण और परिवेश के लिए घातक होती है. निम्न वस्तुएँ ऐसी ही हैं, इनका प्रयोग बंद कर हम आप तथा समाज और पर्यावरण को बेहतर बना सकते हैं.

१. प्लास्टिक निर्मित सामान- मनुष्य द्वारा किसी सामान का उपयोग किये जाने के बाद बचा निरुपयोगी कचरा कूड़े के ढेर, नाली, नाला, नदी से होते हुए अंतत: समुद्र में पहुँचकर 'रत्नाकर' को 'कचराघर' बना देता है.  समुद्र को प्रदूषित करते कचरे में ८०% प्लास्टिक होता है. प्लास्टिक सड़ता, गलता नहीं, इसलिए वह मिट्टी में नहीं बदलता. भूमि में दबाये जाने पर बरसों बाद भी ज्यों का त्यों रहता है. प्लास्टिक जलने पर ओषजन वजू नष्ट होती है और प्रदूषण फैलानेवाली हानिप्रद वायु निकलती है. प्लास्टिक की डब्बियाँ, चम्मचें, प्लेटें, बर्तन, थैलियाँ, कुर्सियाँ आदि का कम से कम प्रयोग कर हम प्रदूषण कम कर सकते हैं.

प्लास्टिक के सामान मरम्मत योग्य नहीं होते. इनके स्थान पर धातु या लकड़ी का सामान प्रयोग किया जाए तो उसमें टूट-फूट होने पर मरम्मत तथा रंग-रोगन करना संभव होता है. इससे स्थानीय बेरोजगारों को आजीविका मिलती है जबकि प्लास्टिक सामग्री पूंजीपतियों का धन बढ़ाती है.

२. दन्तमंजन- हमने बचपन में कंडों या लकड़ी की राख में नमक-हल्दी मिले मंजन या दातौन का प्रयोग वर्षों तक किया है जिससे दांत मुक्त रहे. आजकल रसायनों से बने टूथपेस्ट का प्रयोग कर शैशव और बचपन दंत-रोगों से ग्रस्त हो रहा है. टूथपेस्ट कंपनियाँ ऐसे तत्वों (माइक्रोबीड्स) का प्रयोग करती हैं जिन्हें सड़ाया नहीं जा सकता. कोयले को घिसकर अथवा कोयले की राख से दन्तमंजन का काम लिया का सकता है. वनस्पतियों से बनाये गए दंत मंजन का प्रयोग बेहतर विकल्प है. 



स्टीरोफोम
३.  स्टिरोफोम से बने समान- आजकल तश्तरी, कटोरी, गिलास और चम्मच न सड़नेवाले (नॉन बायोडिग्रेडेबल) तत्वों से बनाये जाते हैं. हल्का और सस्ता होने पर भी यह गंभीर रोगों को जन्म दे सकता है. इसके स्थान पर बाँस, पेड़ के पत्तों, लकड़ी या छाल से बने समान का प्रयोग करें तो वह सड़कर मिटटी बन जाता है तह स्थानीय रोजगार का सर्जन करता है. इनकी उपलब्धता के लिए पौधारोपण बड़ी संख्या में करना होगा जिससे वन बढ़ेंगे और वायु प्रदूषण घटेगा.
***

रविवार, 8 जनवरी 2017

laghukatha

लघुकथा-
गुरु जी
*
मुझे आपसे बहुत कुछ सीखना है, क्या आप मुझे शिष्य बनाकर नहीं सिखायेंगे?
बार-बार अनुरोध होने पर न स्वीकारने की अशिष्टता से बचने के लिए
सहमति दे दी. रचनाओं की प्रशंसा, विधा के विधान आदि की जानकारी लेने तक तो सब कुछ ठीक रहा.
एक दिन रचनाओं में कुछ त्रुटियाँ इंगित करने पर उत्तर मिला- 'खुद को क्या समझते हैं? हिम्मत कैसे की रचनाओं में गलतियाँ निकालने की? मुझे इतने पुरस्कार मिल चुके हैं. फेस बुक पर जो भी लिखती हूँ सैंकड़ों लाइक मिलते हैं. मेरी लिखे में गलती हो ही नहीं सकती. आइंदा ऐसा किया तो...' आगे पढ़ने में समय ख़राब करने के स्थान पर शिष्या को ब्लोक कर चैन की सांस लेते कान पकडे कि अब नहीं बनायेंगे किसी को शिष्या और नहीं बनेंगे किसी के गुरु.
***

laghukatha

लघुकथा 
खाँसी 
*
कभी माँ खाँसती, कभी पिता. उसकी नींद टूट जाती, फिर घंटों न आती. सोचता काश, खाँसी बंद हो जाए तो चैन की नींद ले पाए. 
पहले माँ, कुछ माह पश्चात पिता चल बसे. मैंने इसकी कल्पना भी न की थी.
अब करवटें बदलते हुए रात बीत जाती है, माँ-पिता के बिना सूनापन असहनीय हो जाता है. जब-तब लगता है अब माँ खाँसी, अब पिता जी खाँसे.
तब खाँसी सुनकर नींद नहीं आती थी, अब नींद नहीं आती है कि सुनाई दे खाँसी.
***

शनिवार, 7 जनवरी 2017

navgeet

नवगीत
क्यों?
*
मेहनतकश को मिले
मजूरी में गिनती के रुपये भाई
उस पर कर है.
*
जो न करे उत्पादन कुछ भी
उस अफसर को
सौ सुविधाएँ और हजारों
भत्ते मिलते.
पदोन्नति पर उसका हक है
कभी न कोई
अवसर छिनते
पाँच अँगुलियाँ
उसकी घी में और
कढ़ैया में सिर तर है.
*
प्रतिनिधि भूखे-नंगे जन का
हर दिन पाता इतना
जिसमें बरस बिताता आम आदमी.
मुफ्त यात्रा,
गाडी, बंगला,
रियायती खाना, भत्ते भी
उस पर रिश्वत और कमीशन
गिना न जाए.
माँग- और दो
शेष कसर है.
*
पूँजीपति का हाल न पूछो
धरती, खनिज, ऊर्जा, पानी
कर्जा जितना चाहे, पाए.
दरें न्यूनतम
नहीं चुकाए.
खून-पसीना चूस श्रमिक का
खूब मुटाये.
पोल खुले हल्ला हो ज्यादा
झट विदेश
हो जाता फुर्र है.
*
अभिनेता, डॉक्टर, वकील,
जज,सेठ-खिलाड़ी
कितना पाएँ?, कौन बताए?
जनप्रियता-ईनाम आदि भी
गिने न जाएँ.
जिसको चाहें मारे-कुचलें
सजा न पाएँ.
भूल गए जड़
आसमान पर
जमी नजर है .
*
गिनी कमाईवाले कर दें
बेशुमार जो कमा रहे हैं
बचे रहें वे,
हर सत्ता की यही चाह है.
किसको परवा
करदाता भर रहा आह है
चूसो, चूसो खून मगर
मरने मत देना.
बाँट-बाँट खैरात भिखारी
बना रहे कह-
'नहीं मरेगा लोक अमर है'.
*
मेहनतकश को मिले
मजूरी में गिनती के रुपये भाई
उस पर कर है.
*****
७-१-२०१६

गुरुवार, 5 जनवरी 2017

muktak

मुक्तक-
बिखर जाओ फिजाओं में चमन को आज महाकाओ 
​बजा वीणा निगम-आगम ​कहें जो सत्य वह गाओ 
​अनिल चेतन​ हुआ कैलाश पर ​श्री वास्तव में पा 
बनो​ हीरो, तजो कटुता, मधुर मन मंजु ​हो जाओ
*

laghukatha

​​लघुकथा- 
कतार 
*
दूरदर्शनी बहस में नोटबन्दी के कारण लग रही लंबी कतारों में खड़े आम आदमियों के दुःख-दर्द का रोना रो रहे नेताओं के घड़ियाली आँसुओं से ऊबे एक आम आदमी ने पूछा- 
'गरीबी रेखा के नीचे जी रहे आम मतदातों के अमीर जनप्रतिनिधियों जब आप कुर्सी पर होते हैं तब आम आदमी को सड़कों पर रोककर काफिले में जाते समय, मन्दिरों में विशेष द्वार से भगवान के दर्शन करते समय, रेल और विमान यात्रा के समय विशेष द्वार से प्रवेश पाते समय क्या आपको कभी आम आदमी की कतार नहीं दिखी? यदि दिखी तो अपने क्या किया? क्या आपको अपने जीवन में रुपयों की जरूरत नहीं होती? होती है तो आप में से कोई भी बैंक की कतार में क्यों नहीं दिखता?
आप ऐसा दोहरा आचरण कर आम आदमी का मजाक बनाकर आम आदमी की बात कैसे कर सकते हैं? कालाबाजारियों, तस्करियों और काला धन जुटाते व्यापारियों से बटोर चंदा उपयोग न कर पाने के कारण आप जन गण द्वारा चुनी सरकार से सहयोग न कर जनमत का अपमान करते हैं तो जनता आप के साथ क्यों जुड़े?
सकपकाए नेता को कुछ उत्तर न सूझा तो जन समूह से आवाज आई 'वहां मत बैठे रहो, हमारे दुःख से दुखी हो तो हमारा साथ दो। तुम सबको बुला रही है कतार।
*

muktika

मुक्तिका  
*
नेह नर्मदा बहने दे 
मन को मन की कहने दे 
*
बिखरे गए रिश्ते-नाते 
फ़िक्र न कर चुप तहने दे 
*
अधिक जोड़ना क्यों नाहक 
पीर पुरानी सहने दे 
*
देह सजाते उम्र कटी 
'सलिल' रूह को गहने दे 
*
काला धन जिसने जोड़ा 
उसको थोड़ा दहने दे
*

मंगलवार, 3 जनवरी 2017

muktak

मुक्तक
आस का, विश्वास का हम, नित नया सूरज उगायें
दूरियों को दूर कर दें, हाथ हाथों से मिलायें
ताल के सँग झूम ले मन, नाद प्राणों में समाये
पूर्ण हों अद्वैत को वर, विहँस मन नाच  गायें
*
शून्य से प्रगटे स्वयंभू, कहो कण-तृण या कि कंकर
नष्ट कर शंकाएँ सारी, शक्ति वरकर दे रहे वर
काट सर जोड़ा तभी हर विघ्न हर विघ्नेश पुजते
गुप्त था जो चित्र प्रगटा, हुए खुद परमात्म अक्षर       
*
मन की भी ऑंखें होती हैं आँख मूँदकर देखो तो
अदिख दिखेगा आसानी से, लेख सको तो लेखो तो
अंतरिक्ष है मन, भावों की बहा नर्मदा, मौन रहो
आवेगों को संवेगों से मुक्त करो, मत व्यर्थ तहो 
*
नृत्य-गायन वन्दना है, प्रार्थना है, अर्चना है
मत इसे तुम बेचना परमात्म की यह साधना है
मर्त्य को क्यों करो अर्पित, ईश को अर्पित रहे यह
राग है, वैराग है, अनुराग कि शुभ कामना है
***

do pad

दो पद 
चंचल कान्हा, चपल राधिका, नाद-ताल सम, नाच नाचे 
रस-ली, जंग-जमुन सम लहर, संगम अद्भुत द्वैत तजे 
ब्रम्ह-जीव सम, हाँ-ना, ना हाँ, देखें सुर-नर वेणु बजे  
नूपुर पग, पग-नूपुर, छू म छन, वर अद्वैत न तनिक लजे
श्री वीरेंद्र सिद्धराज के नृत्य पर 
***
नाद-ताल में, ताल नाद में, रास लास में, लास रास में 
भाव-भूमि पर, भूमि भाव पर, हास पीर में, पीर हास में 
बिंदु सिंधु मिल रेखा वर्तुल, प्रीत-रीत मिल, मीत! गीत बन 
खिल महकेंगे, महक खिलेंगे, नव प्रभात में, नव उजास ले 
***

सोमवार, 2 जनवरी 2017

abhiyanta kavi sammelan

नववर्ष २०१७ : प्रथम अभियंता कवि सम्मेलन, IEI जबलपुर में संपन्न 


जबलपुर, १-१-२०१७। नव वर्ष के उपलक्ष्य में आज संध्या ७ बजे से इंस्टीट्यूशन ऑफ़ इंजीनियर्स के सभागार में प्रथम अभियंता कवि सम्मेलन ज्ञान गंगा तकनीकी शिक्षा समूह के निदेशक अभियंता डी. सी. जैन की अध्यक्षता तथा अभियंता कोमल चंद जैन के मुख्यातिथ्य में संपन्न हुआ। नव निर्वाचित अध्यक्ष अभियंता वीरेंदर साहू तथा मानदसचिव अभियंता तरुण भनोट ने इस अवसर पर आमंत्रित अभियंता कवियों का  स्वागत करते हुए तकनीकी शिक्षा में हिंदी का महत्व प्रतिपादित किया। आचार्य अभियंता संजीव वर्मा 'सलिल' के सरस सञ्चालन में आमंत्रित कवियों सर्व अभियंता अमरेन्द्र नारायण, रामराज फौजदार 'फौजी', गोपालकृष्ण चौरसिया 'मधुर', विवेकरंजन श्रीवास्तव 'विनम्र', सुधीर पाण्डेय, सुरेन्द्र पवार, अवधेश दुबे, राकेश राठौड़, हेमंत जैन, संजय वर्मा, बसंत शर्मा, गजेन्द्र कर्ण, जे. पी. अवस्थी, कोमल चंद जैन तथा डी.सी.जैन ने सारगर्भित रचनाओं का पाठ किया। 

सरस्वती वन्दना तथा अतिथि स्वागत के पश्चात् आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने निम्न पंक्तियों के साथ काव्य पाठ सत्र को आगे बढ़ाया-
हम अभियंता, हम अभियंता / मानवता के भाग्य नियंता 
माटी से मूरत गढ़ते हैं / कंकर को शंकर करते हैं 
वामन सम संकल्पित पग धर / हिमगिरी को बौना करते हैं 
नियति नाती के शिलालेख पर / अदिख लिखा जो वह पढ़ते हैं 
असफलता का फ्रेम बनाकर / चित्र सफलता का मढ़ते हैं 
श्रम-कोशिश दो हाथ हमारे / फिर भविष्य की क्यों हो चिंता?
*
अभियंता कवियों की काव्य पंक्तियाँ उन्हीं की हस्तलिपि में प्रस्तुत हैं- 
=============================== 

रविवार, 1 जनवरी 2017

kavita

नए साल की पहली रचना-
कलह कथा 
*
कुर्सी की जयकार हो गयी, सपा भाड़ में भेजें आज 
बेटे के अनुयायी फाड़ें चित्र बाप के, आये न लाज 

स्वार्थ प्रमुख, निष्ठा न जानते, नारेबाजी शस्त्र हुआ 
भीड़तंत्र ही खोद रहा है, लोकतंत्र के लिए कुआं 

रंग बदलता है गिरगिट सम, हुआ सफेद पूत का खून
झुका टूटने के पहले ही बाप, देख निज ताकत न्यून   

पोल खुली नूरा कुश्ती की, बेटे-बाप हो गए एक 
चित्त हुए बेचारे चाचा, दिए गए कूड़े में फेंक 

'आजम' की जाजम पर बैठे, दाँव आजमाते जो लोग 
नींव बनाई जिनने उनको ठुकराने का पाले रोग 

'अमर' समर में हों शहीद पछताएँ, शत्रु हुए वे ही
गोद खिलाया जिनको, भोंका छुरा पीठ में उनने ही 

जे.पी., लोहिया, नरेन्द्रदेव की, आत्माएँ करतीं चीत्कार 
लालू, शरद, मुलायम ने ही सोशलिज्म पर किया प्रहार 

घर न घाट की कोंग्रेस के पप्पू भाग चले अवकाश 
कहते थे भूकम्प आएगा, हुआ झूठ का पर्दाफाश 

अम्मा की पादुका उठाये हुईं शशिकला फिर आगे 
आर्तनाद ममता का मिथ्या, समझ गए जो हैं जागे  

अब्दुल्ला कर-कर प्रलाप थक-चुप हो गए, बोलती बन्द 
कमल कर रहा आत्मप्रशंसा, चमचे सुना रहे हैं छंद 

सेनापति आ गए नए हैं, नया साल भी आया है 
समय बताएगा दुश्मन कुछ काँपा या थर्राया है?

इनकी गाथा छोड़ चलें हम,घटीं न लेकिन मिटीं कतार 
बैंकों में कुछ बेईमान तो मिले मेहनती कई हजार

श्री प्रकाश से नया साल हो जगमग करिये कृपा महेश 
क्यारी-क्यारी कुसुम खिलें नव, काले धन का रहे न लेश 

गुप्त न रखिये कोई खाता, खुला खेल खेलें निर्भीक 
आजीवन अध्यक्ष न होगा, स्वस्थ्य बने खेलों में लीक 

*** 

शनिवार, 31 दिसंबर 2016

गीत

एक रचना
*
नए साल!
आजा कतार में
आगे मत जा।
*
देश दिनों से खड़ा हुआ है,
जो जैसा है अड़ा हुआ है,
किसे फ़िक्र जनहित का पेड़ा-
बसा रहा है, सड़ा हुआ है।
चचा-भतीजा ताल ठोंकते,
पिता-पुत्र ज्यों श्वान भौंकते,
कोई काट न ले तुझको भी-
इसीलिए
कहता हूँ-
रुक जा।
नए साल!
आजा कतार में
आगे मत जा।
*
वादे जुमले बन जाते हैं,
घपले सारे धुल जाते हैं,
लोकतंत्र के मूल्य स्वार्थ की-
दीमक खाती, घुन जाते हैं।
मौनी बाबा बोल रहे हैं
पप्पू जहँ-तहँ डोल रहे हैं
गाल बजाते जब-तब लालू
मत टकराना
बच जा झुक जा।
नए साल!
आजा कतार में
आगे मत जा।
*
एक आदमी एक न पाता,
दूजा लाख-करोड़ जुटाता,
मार रही मरते को दुनिया-
पिटता रोये, नहीं सुहाता।
हुई देर, अंधेर यहाँ है,
रही अनसुनी टेर यहाँ है,
शुद्ध दलाली, न्याय कहाँ है?
जलने से
पहले मत
बुझ जा।
नए साल!
आजा कतार में
आगे मत जा।
*****

abhiyanta kavi sammelan

स्वागत नववर्ष २०१७ 
प्रसंग- ''काव्य में अभियांत्रिकी'' 
अभियंताओं का, अभियंताओं द्वारा, अभियंताओं के लिए काव्य सृजन एवं प्रस्तुतीकरण 
दिनांक १-१-२०१७, संध्या ७ बजे, इंस्टीट्यूशन ऑफ़ इंजीनियर्स (इंडिया) जबलपुर लोकल सेंटर जबलपुर 
***
आमंत्रित कवि- सर्व अभियंता १. विवेकरंजन श्रीवास्तव 'विनम्र', २. आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', ३. संजय वर्मा, ४. रामराज फौजदार 'फौजी', ५. अमरेन्द्र नारायण , ६. देवेन्द्र गोंटिया 'देवराज', ७. सुरेन्द्र सिंह पंवार, ८. गोपालकृष्ण चौरसिया 'मधुर', ९. सुधीर पाण्डेय, १०. दुर्गेश ब्योहार, ११. राकेश राठौड़, १२. गजेन्द्र कर्ण।
मुख्य अतिथि 
अभियंता डी. सी. जैन 
चेयरमैन ज्ञानगंगा ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूशंस, जबलपुर
अभियंता एस. के. गुप्ता 
मुख्य अभियंता रेलवे (से.नि.), जबलपुर
अभियंता प्रमोद तिवारी 
व्हाइस चेयरमैन तक्षशिला इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलोजी जबलपुर 
***
अभियन्ता वीरेंद्र कुमार साहू, चेयरमैन 
अभियंता तरुण कुमार आनंद, ऑनरेरी सेक्रटरी 
इंस्टीट्यूशन ऑफ़ इंजीनियर्स (इंडिया) जबलपुर लोकल सेंटर जबलपुर
***
टीप- अन्य अभियंता रचनाकार/कलाकार अपना विवरण और संपर्क ९४२५१ ८३२४४ पर आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' को बताएं या salil.sanjiv@gmail.com पर भेजें। 

navgeet

नवगीत
समय वृक्ष है
*
समय वृक्ष है
सूखा पत्ता एक झरेगा
आँखें मूँदे.
नव पल्लव तब
एक उगेगा
आँखे खोले.
*
कहो अशुभ या
शुभ बोलो
कुछ फर्क नहीं है.
चिरजीवी होने का
कोई अर्क नहीं है.
कितने हुए?
होएँगे कितने?
कौन बताये?
किसका कितना वजन?
तराजू कोई न तोले.
ठोस दिख रहे
लेकिन हैं
भीतर से पोले.
नव पल्लव
किस तरह उगेगा
आँखें खोले?
*
वाम-अवाम
न एक साथ
मिल रह सकते हैं.
काम-अकाम
न एक साथ
खिल-दह सकते हैं.
पूरब-पश्चिम
उत्तर-दक्षिण
ऊपर-नीचे
कर परिक्रमा
नव संकल्प
अमिय नित घोले.
श्रेष्ठ वही जो
श्रम-सीकर की
जय-जय बोले.
बिन प्रयास
किस तरह कर्मफल
आँखें खोले?
*
जाग,
छेड़ दे, राग नया
चुप से क्या हासिल?
आग
न बुझने देना
तू मत होना गाफिल.
आते-जाते रहें
साल-दर-साल
नए कुछ.
कौन जानता
समय-चक्र
दे हिम या शोले ?
नोट बंद हों या जारी
नव आशा बो ले.
उसे दिखेगी उषा
जाग जो
आँखें खोले
***

navgeet

नवगीत:
संजीव
.
बहुत-बहुत आभार तुम्हारा
ओ जाते मेहमान!
.
पल-पल तुमने
साथ निभाया
कभी रुलाया
कभी हँसाया
फिसल गिरे, आ तुरत उठाया
पीठ ठोंक
उत्साह बढ़ाया
दूर किया हँस कष्ट हमारा
मुरझाते मेहमान
.
भूल न तुमको
पायेंगे हम
गीत तुम्हारे
गायेंगे हम
सच्ची बोलो कभी तुम्हें भी
याद तनिक क्या
आयेंगे हम?
याद मधुर बन, बनो सहारा
मुस्काते मेहमान
.
तुम समिधा हो
काल यज्ञ की
तुम ही थाती
हो भविष्य की
तुमसे लेकर सतत प्रेरणा
मन:स्थिति गढ़
हम हविष्य की
'सलिल' करेंगे नहीं किनारा
मनभाते मेहमान
.

३१.१२.२०१४ 

janm din

कार्यशाला 
*
लिखें मुक्तक 
विषय जन्म दिन 
मात्रा / वर्ण / छंद बंधन नहीं 
*
उदाहरण-
मुक्तक
धरागमन की वर्षग्रन्थि पर अभिनन्दन लो
सतत परिश्रम अक्षत, नव प्रयास चन्दन लो
सलिल-सुमन अभिषेक करे, हो सफल साधना
सत-शिव-सुन्दर सार्थकता हित शत वन्दन लो
हाइकु
(५-७-५)
जन्म दिवस
खुशियाँ ही खुशियाँ
अनगिनत
*
ताँका
(५-७-५-७-७)
जी भर जियो
ख़ुशी का घूँट पियो
खूब मुस्काओ
लक्ष्य निकट पाओ
ख़ुशी के गीत गाओ
*
जनक छंद
(१३-१३-१३)
राम लला प्रगटे सखी
मोद मगन माता हुई
शुभाशीष दें मुनि कई
*
चौपाई
(१६-१६)
जन्म दिवस का पर्व मनाना, मत मिष्ठान्न अकेले खाना
मात-पिता प्रभु का वंदनकर, शुभ आशीष सभी से पाना
बंधु-बांधवों के सँग मिलकर, किसी क्षुधित की भूख मिटाना
 जो असहाय दिखे तू उसकी, ओर मदद का हाथ बढ़ाना
*
आल्हा
(१६-१५)
जन्म दिवस पर दीप जलाओ, ज्योति बुझाना छोडो यार
केक न काटो बना गुलगुले, करो स्नेहियों का सत्कार
शीश ईश को प्रथम नवाना, सुमति-धर्म माँगो वरदान
श्रम से मुँह न चुराना किंचित, जीवन हो तब ही रसखान
आलस से नित टकराना है, देना उसे पटककर मात
अन्धकार में दीप जलना, यगा रात से 'सलिल' प्रभात
***

शुक्रवार, 30 दिसंबर 2016

alha

एक रचना
*
मचा महाभारत भारत में, जन-गण देखें ताली पीट 
दहशत में हैं सारे नेता, कैसे बचे पुरानी सीट?  
हुई नोटबंदी, पैरों के नीचे, रही न हाय जमीन 
कौन बचाए इस मोदी से?, नींद निठुर ने ली है छीन 
पल भर चैन न लेता है खुद, दुनिया भर में करता धूम 
कहे 'भाइयों-बहनों' जब भी, तभी सफलता लेता चूम 
कहाँ गए वे मौनी बाबा?, घपलों-घोटालों का राज 
मनमानी कर जोड़ी दौलत, घूस बटोरी तजकर लाज 
हाय-हाय हैं कैसे दुर्दिन?, छापा पड़ता सुबहो-शाम 
चाल न कोई काम आ रही, जब्त हुआ सब धन बेदाम 
जनधन खातों में डाला था, रूपया- पीट रहे अब माथ 
स्वर्ण ख़रीदा जाँच हो रही, बैठ रहा दिल खाली हाथ 
पत्थर फेंक करेगा दंगा, कौन बिना धन? पिट रइ गोट 
नकली नोट न रहे काम के, रोज पड़े चोटों पर चोट   
ताले तोड़ आयकरवाले, खाते-बही कर रहे जब्त 
कर चोरी की पोल खोलते, रिश्वत लेंय न कैसी खब्त?
बेनामी संपत्ति बची थी, उस पर ली है नजर जमाय 
हाय! राम जी-भोले बाबा, हनुमत  कहूँ न राह दिखाय 
छोटे नोट दबाये हमीं ने, जनता को है बेहद कष्ट  
चूं न कर रहा फिर भी कोई, समय हो रहा चाहे नष्ट 
लगे कतारों में हैं फिर भी, कहते नीति यही है ठीक 
शायर सिंह सपूत वही जो, तजे पुरानी गढ़ नव लीक 
पटा लिया कुछ अख़बारों को, चैनल भरमाते हैं खूब 
दोष न माने फिर भी जनता, लुटिया रही पाप की डूब  
चचा-भतीजे आपस में भिड़, मोदी को करते मजबूत 
बंद बोलती माया की भी, ममता को है कष्ट अकूत 
पाला बदल नितिश ने मारा, दाँव न लालू जाने काट 
बोल थके है राहुल भैया, खड़ी हुई मैया की खाट 
जो मैनेजर ललचाये थे, उन पर भी गिरती है गाज 
फारुख अब्दुल्ला बौराया, कमुनिस्टों का बिगड़ा काज  
भूमि-भवन के भाव गिर रहे, धरे हाथ पर हाथ सुनार 
सेठ अफसरों नेताओं के ठाठ, न बाकी- फँसे दलाल  
रो-रो सूख रहे हैं आँसू, पिचक गए हैं फूले गाल 
जनता जय-जयकार कर रही, मोदी लिखे नाता इतिहास 
मन मसोस दिन-रात रो रहे, घूसखोर सब पाकर त्रास 
**

गुरुवार, 29 दिसंबर 2016

chhand bahar ka mool hai

कार्यशाला-
​​
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छंद बहर का मूल है- २.
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उर्दू की १९ बहरें २ समूहों में वर्गीकृत की गयी हैं।
१. मुफरद बहरें-
इनमें एक ही अरकान या लय-खण्ड की पुनरावृत्ति होती है।
इनके ७ प्रकार (बहरे-हज़ज सालिम, बहरे-ऱज़ज सालिम, बहरे-रमल सालिम, बहरे-कामिल, बहरे-वाफिर, बहरे-मुतक़ारिब तथा बहरे-मुतदारिक) हैं।
२. मुरक्कब बहरें-
इनमें एकाधिक अरकान या लय-खण्ड मिश्रित होते हैं।
इनके १२ प्रकार (बहरे-मनसिरह, बहरे-मुक्तज़िब, बहरे-मुज़ारे, बहरे-मुजतस, बहरे-तवील, बहरे-मदीद, बहरे-बसीत, बहरे-सरीअ, बहरे-ख़फ़ीफ़, बहरे-जदीद, बहरे-क़रीब तथा बहरे-मुशाकिल) हैं।
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ख. बहरे-मनसिरह
बहरे-मनसिरह मुसम्मन मतवी मक़सूफ़-
शायरों ने इस बहर का प्रयोग बहुत कम किया है। इसके अरकान 'मुफ़तइलुन फ़ाइलुन मुफ़तइलुन फ़ाइलुन' (मात्राभार ११११२ २१२ ११११२ २१२) हैं।
यह १६ वर्णीय अथाष्टिजातीय छंद है जिसमें ८-८ पर यति तथा पदांत में रगण (२१२) का विधान है।
यह २२ मात्रिक महारौद्र जातीय छंद है जिसमें ११-११ मात्राओं पर यति तथा पदांत में २१२ है।
उदाहरण-
१.
जब-जब जो जोड़ते, तब-तब वो छोड़ते
कर-कर के साथ हैं, पग-पग को मोड़ते
कर कुछ तू साधना, कर कुछ आराधना
जुड़-जुड़ जाता वही, जिस-जिस को तोड़ते
२.
निकट हमें देखना, सजन सुखी लेखना
सजग रहो हो कहीं, सलवट की रेख ना

उर्दू व्याकरण के अनुसार गुरु के स्थान पर २ लघु या दो लघु के स्थान पर गुरु मात्रा का प्रयोग करने पर छंद का वार्णिक प्रकार बदल जाता है जबकि मात्रिक प्रकार तभी बदलता है जब यह सुविधा पदांत में ली गयी हो। हिंदी पिंगल-नियम यह छूट नहीं देते। उर्दू का एक उदाहरण देखें-
१.
यार को क़ा/सिद मिरे/जाके अगर/देखना
मेरी तरफ/से भी तू/ एक नज़र/देखना
(सन्दर्भ ग़ज़ल रदीफ़-काफ़िया और व्याकरण, डॉ. कृष्ण कुमार 'बेदिल')
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बुधवार, 28 दिसंबर 2016

samiksha

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पुस्तक चर्चा-
''राजस्थानी साहित्य में रामभक्ति-काव्य'' मननीय शोधकृति 
चर्चाकार आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' 
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[पुस्तक विवरण- 'राजस्थानी साहित्य में रामभक्ति-काव्य, शोध ग्रन्थ, डॉ. गुलाब कुँवर भंडारी, प्रथम संस्करण २०१०, आकार २२से.मी.x १४ से.मी., पृष्ठ ३८०, आवरण सजिल्द, बहुरंगी, जैकेट सहित, मूल्य ७५०/-, त्रिभुवन प्रकाशन, गुलाब वाटिका, पावटा बी मार्ग, जोधपुर।] 
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हिंदी साहित्य में भक्ति काल कभी न रुकनेवाली भाव धारा है। ब्रम्ह को निर्गुण और सगुण दोनों रूपों में आराधा गया है। सगुण भक्ति में राम और कृष्ण दो रूपों को अपार लोकप्रियता मिली है। वीर भूमि राजस्थान में श्रीनाथद्वारा और मीरां बाई श्री कृष्ण भक्ति के केंद्र रहे हैं। रामावतार से सम्बंधित कोई स्थान या व्यक्ति राजस्थान में न होने के बाद भी विषम परिस्थितियों से जूझते हुए एक अल्प शिक्षित गृहणी द्वारा स्वयं को उच्च शिक्षित कर स्तरीय शोध कार्य करना असाधारण पौरुष है।  राम पर शोध करना हो तो उत्तर प्रदेश अथवा राम से सम्बंधित अन्य क्षेत्रों के राम साहित्य पर कार्य करना सुगम होता किन्तु राजस्थानी साहित्य में राम-भक्ति काव्य की खोज, अध्ययन और उसका मूल्यांकन करना वस्तुत: दुष्कर और श्रम साध्य कार्य है।  ग्रन्थ लेखिका श्रीमती गुलाब कुँवर भंडारी (१४.१०.१९३६-७.१९९१) ने पूर्ण समर्पण भाव से इस शोध ग्रंथ का लेखन किया है। 

राजस्थान जुझारू तेवरों के लिए प्रसिद्ध रहा है। जान हथेली पर लेकर रणभूमि में पराक्रम कथाएँ लिखने वाले वीरों के साथ जोश बढ़ानेवाले कवि भी होते थे जो कलम और तलवार समान दक्षता से चला पाते थे। भावावेग राजस्थानियों की रग-रग में समय होता है। भक्ति का प्रबल आवेग राजस्थान के जन-मन की विशेषता है। वीरता के साथ-साथ सौंदर्यप्रियता और समर्पण के साथ-साथ बलिदान को जीते राजस्थानी कवियों ने एक और शत्रुओं को ललकारा तो दूसरी ओर ईशाराधना भी प्राण-प्राण से की। 

शोधकर्त्री ने राजस्थानी साहित्य में राम-काव्य को अपभ्रंश-काल से खोजा और परखा है।  अहिंसा को सर्वाधिक महत्व देनेवाला जैन साहित्य भी सशस्त्र संघर्ष हेतु ख्यात राम-महिमा के गायन से दूर नहीं रह सका है। ग्रन्थ में  रामभक्ति का विकास और राजस्थान में प्रसार, सगुण राम-भक्ति संबन्धी प्रबन्ध काव्य, सगुण राम-भक्ति सम्बन्धी मुक्तक काव्य, निर्गुण राम-भक्ति संबंधी कविता तथा राजस्थानी राम-भक्त कवि एवं उनका काव्य शीर्षक पाँच अध्यायों में यथोचित विस्तार के साथ 'राम' शब्द की व्युत्पत्ति-अर्थ, राम के स्वरुप का विकास, रामभक्ति शाखा का विकास-प्रसार, सगुण राम संबन्धी प्रबन्ध व मुक्तक काव्यों का विवेचन, निर्गुण राम संबंधी काव्य ग्रंथों का अनुशीलन तथा राम-भक्त जैन कवियों के साहित्य का विश्लेषण किया गया है।  

उल्लेख्य है कि मूल्यांकित अनेक कृतियाँ हस्तलिखित हैं जिनकी खोज करना, उन्हें पाना और पढ़ना असाधारण श्रम और लगन की माँग करता है। गुलाब कुँवर जी ने नव मान्यताएँ भी सफलतापूर्वक स्थापित की हैं। राम-भक्ति प्रधान प्रबंध काव्यों में कुशललाभ, हरराज, माधोदास दधवाड़िया, रुपनाथ मोहता, मंछाराम की कृतियों का विवेचन किया गया है। राम-भक्ति मुक्तक काव्य के अध्ययन में ४९ कवि सम्मिलित हैं। सर्वज्ञात है कि मीरांबाई समर्पित कृष्णभक्त थीं किंतु लखिमा ने मीरां-साहित्य से राम-भक्ति विषयक अंश उद्धृत कर उन्हें सफलतापूर्वक राम-भक्त सिद्ध किया है।  स्थापित मान्यता के विरुद्ध किसी शोध की स्थापना कर पाना सहज नहीं होता। यह अलग बात है कि राम और कृष्ण दोनों विष्णु के अवतार होने के कारण अभिन्न और एक हैं। 

निर्गुण राम-भक्ति काव्य के अन्तर्गत दादू सम्प्रदाय के १२, निरंजनी संप्रदाय के १४, चरणदासी संप्रदाय की ३, रामस्नेही संप्रदाय १९, अन्य ८ तथा १२ जैन कवियों कवियों के साहित्य का गवेषणा पूर्ण विश्लेषण इस शोधग्रंथ को पाठ ही नहीं मननीय और संग्रहणीय भी बनाता है। ग्रंथांत में ४ परिशिष्टों में हस्तलिखित ग्रंथ-विवरण, रामभक्ति लोकगीत, रामभक्त कवियों का संक्षिप्त विवरण तथा सहायक साहित्य का उल्लेख इस शोध ग्रन्थ को सन्दर्भ ग्रन्थ के रूप में भी उपयोगी बनाता है।  
श्रीमती गुलाब कुँवरि जी की भाषा शुद्ध, सरस तथा सहज ग्राह्य है। उनका शब्द-भंडार समृद्ध है। वे न तो अनावश्यक शब्दों का प्रयोग करती हैं, न सम्यक शब्द-प्रयोग करने से चूकती हैं। कवियों तथा कृतियों का विश्लेषण करते समय वे पूरी तरह तटस्थ और निरपेक्ष रह सकी हैं। राजस्थान और राम भक्ति विषयक रूचि रखनेवाले पाठकों और विद्वानों के लिए यह कृति अत्यंत महत्वपूर्ण है। ग्रन्थ का मुद्रण शुद्ध, सुरुचिपूर्ण तथा आवरण आकर्षक है। इस सर्वोपयोगी कृति का प्रकाशन करने हेतु लेखिका के पुत्र श्री त्रिभुवन राज भंडारी तथा पुत्रवधु श्रीमती सरिता भंडारी साधुवाद के पात्र हैं। 

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