कुल पेज दृश्य

गुरुवार, 17 मार्च 2016

sarasi chhand

​​ 
​​
​​  
रसानंद दे छंद नर्मदा २१
 
​​
​ 


दोहा, 
​सोरठा, रोला,  ​
आल्हा, सार
​,​
 ताटंक, रूपमाला (मदन), चौपाई
​, 
हरिगीतिका,  
उल्लाला
​,
गीतिका,
घनाक्षरी,
 
बरवै 
 
​तथा
त्रिभंगी छंदों से साक्षात के पश्चात् अब मिलिए
​ सरसी
 
से

सरसी में है सरसता
 ​

*

सरसी में है सरसता, लिखकर देखें आप
कवि मन की अनुभूतियाँ, 'सलिल' सकें जग-व्याप
*
'सरसी' छंद लगे अति सुंदर, नाम 'सुमंदर' धीर
नाक्षत्रिक मात्रा सत्ताइस , उत्तम गेय 'कबीर'
विषम चरण प्रतिबन्ध न कोई, गुरु-लघु अंतहिं जान
चार चरण यति सोलह-ग्यारह, 'अम्बर' देते मान। 
                                                                                                     -अंबरीश श्रीवास्तव 

सरसी एक सत्ताईस मात्रिक सम छंद है जिसे हरिपद, कबीर व समुन्दर भी कहा जाता है। सरसी में १६-११ पर यति तथा पंक्तयांत गुरु लघु का विधान है सूरदास, तुलसीदास, नंददास, मीरांबाई, केशवदास आदि ने सरसी छंद का कुशलता  प्रयोग किया है। विष्णुपद तथा सार छंदों के साथ सरसी की निकटता है। भानु के अनुसार होली के अवसर पर कबीर के बानी की बानी के उलटे अर्थ वाले जो कबेर कहे जाते हैं, वे प्राय: इसी शैली में होते है। सरसी में लघु-गुरु की संख्या या क्रम बदलने के साथ लय भी बदल जाती है 

उदाहरण-
०१. अजौ न कछू नसान्यो मूरख, कह्यो हमारी मानि। 
०२. सुनु कपि अपने प्रान को पहरो, कब लगि देति रहौ?३    
०३. वे अति चपल चल्यो चाहत है, करत न कछू विचार
०४. इत राधिका सहित चन्द्रावली, ललिता घोष अपार।५  
०५. विषय बारि मन मीन भिन्न नहि, होत कबहुँ पल एक।  

  'छंद क्षीरधि' के अनुसार सरसी के दो प्रकार मात्रिक तथा वर्णिक हैं 

क. सरसी छंद (मात्रिक)

सोलह-ग्यारह यति रखें, गुरु-लघु से पद अंत 

घुल-मिल रहए भाव-लय, जैसे कांता- कंत

मात्रिक सरसी छंद के दो पदों में सोलह-ग्यारह पर यति, विषम चरणों में सोलह तथा सम चरणों में 

ग्यारह मात्राएँ होती हैं पदांत सम तुकांत तथा गुरु लघु मात्राओं से युक्त होता है 

उदाहरण:

-ॐप्रकाश बरसैंया 'ओमकार'

०६. काली है यह रात रो रही, विकल वियोगिनि आज
     मैं भी पिय से दूर रो रही, आज सुहाय न साज     

०७.आप चले रोती मैं, ये भी, विवश रात पछतात
     लेते जाओ संग सौत है, ये पावस की रात 
        
 संजीव वर्मा 'सलिल' 

०८. पिता गए सुरलोक विकल हम, नित्य कर रहे याद
     सकें विरासत को सम्हाल हम, तात! यही फरियाद  

०९. नव स्वप्नों के बीज बो रही, नव पीढी रह मौन
     नेह नर्मदा का बतलाओ, रोक सका पथ कौन?    

    
१०. छंद ललित रमणीय सरस हैं, करो न इनका त्याग
     जान सीख रच आनंदित हों, हो नित नव अनुराग    

दोहा की तरह मात्रिक सरसी छंद के भी लघु-गुरु मात्राओं की विविधता के आधार पर विविध प्रकार हो 

सकते हैं किन्तु मुझे किसी ग्रन्थ में सरसी छंद के प्रकार नहीं मिले

ख. वर्णिक सरसी छंद: 

सरसी वर्णिक छंद के दो पदों में ११ तथा १० वर्णों के विषम तथा सम चरण होते हैं वर्णिक छंदों में हर वर्ण को एक गिना जाता है. लघु-गुरु मात्राओं की गणना वर्णिक छंद में नहीं की जाती 

उदाहरण:

-ॐप्रकाश बरसैंया 'ओमकार'

११. धनु दृग-भौंह खिंच रही, प्रिय देख बना उतावला 
    अब मत रूठ के शर चला,अब होश उड़ा न ताव ला

१२. प्रिय! मदहोश है प्रियतमा, अब और बना न बावला
     हँस प्रिय, साँवला नत हुआ, मन हो न तना, सुचाव ला 

संजीव वर्मा 'सलिल'

१३. अफसर भरते जेब निज, जनप्रतिनिधि सब चोर 
    जनता बेबस सिसक रही, दस दिश तम घनघोर  

१४. 'सलिल' न तेरा कोई सगा है, और न कोई गैर यहाँ है
    मुड़कर देख न संकट में तू, तम में साया बोल कहाँ है? 

१५. चलता चल मत थकना रे, पथ हरदम पग चूमे 
    गिरि से लड़ मत झुकना रे, 'सलिल' लहर संग झूमे

अरुण कुमार निगम


चाक  निरंतर  रहे  घूमता , कौन  बनाता   देह
क्षणभंगुर  होती  है  रचना  ,  इससे  कैसा  नेह

जीवित करने भरता इसमें ,  अपना नन्हा भाग
परम पिता का यही अंश है , कर  इससे अनुराग

हरपल कितने पात्र बन रहेअजर-अमर है कौन
कोलाहल-सा खड़ा प्रश्न है   , उत्तर लेकिन मौन

एक बुलबुला बहते जल का   ,  समझाता है यार 
छल-प्रपंच से बचकर रहना, जीवन के दिन चार

नवीन चतुर्वेदी सरसी छंद

१७. बातों की परवा क्या करना, बातें करते लोग।
     बात-कर्म-सिद्धांत-चलन का, नदी नाव संजोग।।
     कर्म प्रधान सभी ने बोला, यही जगत का मर्म।
     काम बड़ा ना छोटा होता, करिए कभी न शर्म।।

१८. वक़्त दिखाए राह उसी पर, चलता है इंसान।
     मिले वक़्त से जो जैसा भी , प्रतिफल वही महान।।
     मुँह से कुछ भी कहें, समय को - देते सब सम्मान।
     बिना समय की अनुमति, मानव,  कर न सके उत्थान।।

राजेश झा 'मृदु' 

खुरच शीत को फागुन आया, फूले सहजन फूल
छोड़ मसानी चादर सूरज, चहका हो अनुकूल
गट्ठर बांधे हरियाली ने, सेंके कितने नैन
संतूरी संदेश समध का, सुन समधिन बेचैन
कुंभ-मीन में रहें सदाशय, तेज पुंज व्‍योमेश
मस्‍त मगन हो खेलें होरी, भोला मन रामेश
हर डाली पर कूक रही है, रमण-चमन की बात
पंख चुराए चुपके-चुपके, भागी सीली रात
बौराई है अमिया फिर से, मौका पा माकूल
खा *चासी की ठोकर पतझड़, फांक रही है धूल

संदीप कुमार पटेल

१६.सुन्दर से अति सुन्दर सरसी, छंद सुमंदर नाम 

     मात्रा धारे ये सत्ताइस, उत्तम लय अभिराम
















चित्र पर रचना- संजीव वर्मा 'सलिल' 
छंद:- सरसी मिलिंद पाद छंद, विधान:-16 ,11 मात्राओं पर यति, चरणान्त:- गुरू लघु
*
दिग्दिगंत-अंबर पर छाया, नील तिमिर घनघोर
निशा झील में उतर नहाये, यौवन-रूप अँजोर

चुपके-चुपके चाँद निहारे, बिम्ब खोलता पोल
निशा उठा पतवार, भगाये, नौका में भूडोल

'सलिल' लहरियों में अवगाहे, निशा लगाये आग
कुढ़ चंदा दिलजला जला है, साक्षी उसके दाग

घटती-बढ़ती मोह-वासना, जैसे शशि भी नित्य
'सलिल' निशा सँग-साथ साधते, राग-विराग अनित्य

संदर्भ- १. छन्दोर्णव, पृ.३२, २. छन्द प्रभाकर, पृ. ६६, ३. हिन्दी साहित्य कोश, भाग १, प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसीसंकलन: भारतकोश पुस्तकालयसंपादन: डॉ. धीरेंद्र वर्मापृष्ठ संख्या: ७३५। ४. सूरसागर, सभा संस्करण, पद ५३६, ५. सूरसागर, वैंकटेश्वर प्रेस, पृ. ४४५, ६. वि. प., पद १०२

********************
- समन्वय २०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ८२००१, ९४२५१८३२४४ salil.sanjiv@gmail.com  

muktika

मुक्तिका
मापनी- २१२२ २१२२ २१२२ २१२
*
आज संसद में पगड़ियाँ, फिर उछालीं आपने
शब्द-जालों में मछलियाँ, हँस फँसा लीं आपने

आप तो पढ़ने गये  थे, अब सियासत कर रहे 

लोभ सत्ता पद कुरसियाँ, मन बसा लीं आपने  

जिसे जनता ने चुना, उसके विरोधी भी चुने
दूरियाँ अपने दरमियाँ, अब बना लीं आपने

देश की रक्षा करें जो, जान देकर रात-दिन
वक्ष पर उनके बरछियाँ, क्यों चला लीं आपने?
  
पूँछ कुत्ते की न सीधी, हो कभी सब जानते
व्यर्थ झोले से पुँगलियाँ, फिर निकालीं आपने 

सात फेरे डाल लाये, बुढ़ापे में भूलकर 
अल्पवस्त्री नव तितलियाँ मन बसा लीं आपने
***

gazal

ग़ज़ल 
ओम प्रकाश आदित्य
*
लफ़्ज़ तोड़े मरोड़े ग़ज़ल हो गई
सर रदीफ़ों के फोड़े ग़ज़ल हो गई

लीद करके अदीबों की महफि़ल में कल
हिनहिनाए जो घोड़े ग़ज़ल हो गई

ले के माइक गधा इक लगा रेंकने
हाथ पब्लिक ने जोड़े गज़ल हो गई

पंख चींटी के निकले बनी शाइरा
आन लिपटे मकोड़े ग़ज़ल हो गई 
 ***    

बुधवार, 16 मार्च 2016

navgeet

एक रचना
तुम बिन 
*
तुम बिन नेह, न नाता पगता
तुम बिन जीवन सूना लगता
*
ही जाती तब दूर निकटता
जब न बाँह में हृदय धड़कता
दिपे नहीं माथे का सूरज
कंगन चुभे, न अगर खनकता
तन हो तन के भले निकट पर
मन-गोले से मन ही दगता
*
फीकी होली, ईद, दिवाली
हों न निगाहें 'सलिल' सवाली
मैं-तुम हम बनकर हर पल को
बाँटें आजीवन खुशहाली
'मावस हो या पूनम लेकिन
आँख मूँद, मन रहे न जगता
*
अपना नाता नेह-खज़ाना
कभी खिजाना, कभी लुभाना
रूठो तो लगतीं लुभावनी
मानो तो हो दिल दीवाना
अब न बनाना कोई बहाना
दिल न कहे दिलवर ही ठगता
***

मुक्तिका

मुक्तिका :
मापनी- २१२२ २१२२ २१२
*
तू न देगा, तो न क्या देगा खुदा?
है भरोसा न्याय ही देगा खुदा।
*
एक ही है अब गुज़ारिश वक़्त से
एक-दूजे से न बिछुड़ें हम खुदा।
*
मुल्क की लुटिया लुटा दें लूटकर
चाहिए ऐसे न नेता ऐ खुदा!
*
तब तिरंगे के लिये हँस मर मिटे
हाय! भारत माँ न भाती अब खुदा।
*
नौजवां चाहें न टोंके बाप-माँ
जोश में खो होश, रोएँगे खुदा।
*
औरतों को समझ-ताकत कर अता
मर्द की रहबर बनें औरत खुदा।
*
लौ दिए की काँपती चाहे रहे
आँधियों से बुझ न जाए ऐ खुदा!
***
(टीप- 'हम वफ़ा करके भी तन्हा रह गए' गीत इसी मापनी पर है.)


होली की रचनाओं का संकलन- होली है

होली की रचनाओं का संकलन- होली है

navgeet- fagun

नवगीत:
फागुन 
*
फागुन की 
फगुनौटी के रंग 
अधिक चटख हैं 
तुम्हें देखकर 
*
फूला पहले भी पलाश पर 
केश लटों सम कब झूमा था?
आम्र पत्तियों सँग मौर यह 
हाथ थामकर कब लूमा था?
कोमल कर पल्लव गौरा का 
थामे बौरा कब घूमा था?
होरा, गेहूँ-
बाली के रंग  
अधिक हरित हैं 
तुम्हें देखकर 
*
दाह होलिका की ज्यादा है 
डाह जल रही सिसक-सिसक कर 
स्नेह-प्रेम की पिचकारी ने 
गात भिगाया पुलक-पुलक कर 
गाते हैं मन-प्राण बधाई 
रास-गीत हैं युगल अधर पर 
ढोलक, झाँझें  
और मँजीरा  
अधिक मुखर हैं 
तुम्हें देखकर 
*
पँचरंगी गुलाल उड़ता है 
सतरंगी पिचकारी आयी 
नवरंगी छवि अजब तिहारी
बिजुरी बिन बरसात गिरायी 
सदा आनंद रहें ये द्वारे  
कोयल कूकी, टेर लगायी 
मनबसिया 
चंचल चितवन चुप  
अधिक चपल है  
हमें देखकर 
संदेश में फोटो देखें
​आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
 
​९४२५१ ८३२४४
​ / ०७६१ २४१११३१ ​

salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil' 

मंगलवार, 15 मार्च 2016

doha geet

दोहा गीत:
गुलफाम
*
कद से ज्यादा बोलकर
आप मरे गुलफाम
*
घर से पढ़ने आये थे
लगी सियासत दाढ़,
भाषणबाजी-तालियाँ
ज्यों नरदे में बाढ़।
भूल गये कर्तव्य निज
याद रहे अधिकार,
देश-धर्म भूले, करें
अरि की जय-जयकार।
सेना की निंदा करें
खो बैठे ज्यों होश,
न्याय प्रक्रिया पर करें
व्यक्त अकारण रोष
आसमान पर थूककर
हुए व्यर्थ बदनाम
कद से ज्यादा बोलकर
आप मरे गुलफाम
*
बडबोले नेता रहे
अपनी रोटी सेक,
राजनीति भट्टी जली
छात्र हो गये केक
सुरा-सुंदरी संग रह 
भूल गए पग राह, 
अंगारों की दाह पा
कलप रहे भर आह
भारत का जयघोष कर 
धोयें अपने पाप,
सेना-बैरेक में लगा 
झाड़ू मेटें शाप।
न्याय रियायत ना करे 
खास रहे या आम 
कद से ज्यादा बोलकर
आप मरे गुलफाम
***

geet

गीत
फागुन का रंग
फागुन का रंग हवा में है, देना मुझको कुछ दोष नहीं
संविधान विपरीत आचरण कर, क्यों मानूँ होश नहीं?
*
संसद हो या जे एन यू हो, कहने की आज़ादी है
बात और है हमने अपने घर की की बर्बादी है
नहीं पंजीरी खाने को पर दिल्ली जाकर पढ़ते हैं
एक नहीं दो दशक बाद भी आगे तनिक न बढ़ते हैं
विद्या की अर्थी निकालते आजीवन विद्यार्थी रह
अपव्यय करते शब्दों का पर कभी रीतता कोष नहीं
संविधान विपरीत आचरण कर, क्यों मानूँ होश नहीं?
*
साठ बरस सत्ता पर काबिज़, रहे चाहते फिर आना
काम न तुमको करने देंगे, रेंक रहे कहते गाना
तुम दो दूनी चार कहो, हम तीन-पाँच ही बोलेंगे
सद्भावों की होली में नफरत का विष ही घोलेंगे
नारी को अधिकार सकल दो, सुबह-शाम रिश्ते बदले
जीना मुश्किल किया नरों का, फिर भी है संतोष नहीं
संविधान विपरीत आचरण कर, क्यों मानूँ होश नहीं?
*
दुश्मन के झंडे लहरा दूँ, अपनी सेना को कोसूँ
मौलिक हक है गद्दारी कर, सत्ता के सपने पोसूँ
भीख माँग ले पुरस्कार सुख-सुविधा, धन-यश भोग लिया
वापिस देने का नाटककर, खुश हूँ तुमको सोग दिया
उन्नति का पलाश काटूँगा, रौंद उमीदों का महुआ
करूँ विदेशों की जय लेकिन भारत माँ का घोष नहीं
संविधान विपरीत आचरण कर, क्यों मानूँ होश नहीं?
*
होली पर होरा भूँजूँगा देश-प्रेम की छाती पर
आरक्षण की माँग, जला घर ठठा हँसूँ बर्बादी पर
बैंकों से लेकर उधार जा, परदेशों में बैठूँगा
दुश्मन हित जासूसी करने, सभी जगह घुस पैठूँगा
भंग रंग में डाल मटकता, किया रंग में भंग सदा
नाजायज़ को जायज़ कहकर जीता है कम जोश नहीं
संविधान विपरीत आचरण कर, क्यों मानूँ होश नहीं?
***

sher aur dohe

द्विपदियाँ / अश'आर
*
जिस दर पर सजदा किया, मिला एक ही सत्य 
दुनिया ने बुत तराशे, जिसके उसे भुलाया 
*
कितनों से कहा, उससे मगर कह न सके हम 
जिसने हमें बनाया, आ! एक बार मिल 
*
चेहरे पे है सजाया, जिस नाज़नीं ने तिल 
कैसे उसे बतायें, यह है किसी का दिल
*
जैसे ही यह बताया हम हैं किसी काबिल
माशूक ने भिजवाया अपनी अदा का बिल
*
दोहा
तेवर देखें वक़्त के, करें सतत तदबीर
बदल सकेंगे तभी हम, कोशिश की तक़दीर
*
हाथ मिला, मुँह मोड़ना, है सत्ता का खेल
केर-बेर का ही हुआ, राजनीति में मेल
*

hindi compyuterikaran

तकनीकी आलेख

हिंदी कंप्यूटरीकरण की समस्याएँ - डॉ. काजल बाजपेयी

सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में पिछले कुछ दशकों से शीघ्र गति से विकास हुआ है । सूचना प्रौद्योगिकी मनुष्य को सोचने विचारने और संप्रेषण करने के लिए तकनीकी सहायता उपलब्ध कराती है । सूचना प्रौद्योगिकी के अंतर्गत कंप्यूटर के साथ-साथ माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स और संचार प्रौद्योगिकियाँ भी शामिल है । सूचना प्रौद्योगिकी के विकास का अद्यतन रूप हमें इंटरनेट, मोबाइल, रेडियो, टेलीविजन, टेलीफोन, उपग्रह प्रसारण, कंप्यूटर के रूप में दिखाई देता है । आज यदि देखा जाए तो सूचना प्रौद्योगिकी ने पूरे विश्व को अपने आगोश में ले लिया है ।

यह एक संयोग ही है कि कंप्यूटर का विकास सर्वप्रथम ऐसे देशों में हुआ जिनकी भाषा मुख्यतः अंग्रेजी थी । शायद यही कारण है कि रोमनेतर लिपियों में कंप्यूटर पर कार्य कुछ देरी से आरंभ हुआ । ऐसा कोई तकनीकी कारण नहीं है कि अंग्रेजी कंप्यूटर के लिए आदर्श भाषा समझ ली जाए । कंप्यूटर की दो संकतों की अपनी एक स्वतंत्र गणितीय भाषा है और उसी में वह हमारी भाषाओं को ग्रहण करके अपने समस्त कार्य करता है। कंप्यूटर टेक्नोलॉजी के अंतर्गत प्राकृतिक भाषा संसाधन के क्षेत्र में विश्व भर में अनेक विशेषज्ञ प्रणालियों का विकास किया गया है, जिनके माध्यम से कंप्यूटर साधित भाषा शिक्षण, मशीनी अनुवाद और वाक् संसाधन से संबंधित विभिन्न अनुप्रयोग विकसित किए गए हैं ।

हिंदी कंप्यूटरीकरण हिंदी भाषा से सम्बन्धित सकल कार्यों को कम्प्यूटर, मोबाइल या अन्य डिजिटल युक्तियों पर कर पाने से सम्बन्धित है। यह मुख्यत: उन साफ्टवेयर उपकरणों एवं तकनीकों से सम्बन्ध रखता है जो कम्प्यूटर पर हिंदी के विविध प्रकार से प्रयोग में सुविधा प्रदान करते हैं। आज के युग में हिंदी कंप्यूटरीकरण के साफ्टवेयरों का बहुत ही महत्व है। हिंदी कंप्यूटरीकरण के मुख्य क्षेत्र हैं:

1. भाषा सम्पादित्र
2. हिंदी वर्तनी जांचक
3. फॉण्ट परिवर्तक
4. लिपि परिवर्तक
5. अनुवादक
6. हिंदी टेक्स्ट को वाक् में बदलने का साफ्टवेयर
7. हिंदी में बोली गयी बात को हिंदी पाठ में बदलने वाला साफ्टवेयर
8. देवनागरी का ओसीआर
9. हिंदी के विविध प्रकार के शब्दकोश
10. हिंदी के विश्वकोश
11. हिंदी की ई-पुस्तकें
12. हिंदी में खोज
13. हिंदी में ईमेल

लेकिन आज भी लाख कोशिशों के बावजूद कंप्यूटर पर हिंदी में लिखने वालों की संख्या सीमित है। वैसे तो इसके अनेकों कारण हो सकते हैं लेकिन कुछ कारण जो मुझे गहन रूप से नज़र आते हैं वे हैं-

1. अंग्रेजी भाषा आधारित सिस्टम (द्विभाषिकता का अभाव) – आज के दौर में इंटरनेट पर सभी तरह की महत्वपूर्ण जानकारियाँ व सूचनाएँ उपलब्ध हैं जैसे परीक्षाओं के परिणाम, समाचार, ई-मेल, विभिन्न प्रकार की पत्र-पत्रिकाएँ, साहित्य, अति महत्वपूर्ण जानकारी युक्त डिजिटल पुस्तकालय आदि। परन्तु ये प्राय: सभी अंग्रेज़ी भाषा में हैं। भारतीय परिवेश में अधिकतर लोग अंग्रेज़ी भाषा में निपुण नहीं हैं। अत: कई हिंदी भाषी लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करने में भाषाई कठिनाई महसूस करते हैं और कम्प्यूटर के उपलब्ध होते हुए भी वह कम्प्यूटर व इंटरनेट का उपयोग करने से वंचित रह जाते हैं। यदि इंटरनेट एक्सप्लोरर का संपूर्ण इंटरफेस हिंदी (देवनागरी लिपि) में होने के साथ-साथ इसमें वेबपृष्ठ के अंग्रेज़ी पाठ को माउस क्लिक के माध्यम से हिंदी में अनुवाद करने की सुविधा सहित हो तो अंग्रेज़ी भाषा की बाधा हिंदी भाषी कम्प्यूटर उपयोक्ताओं के काम में बाधा नहीं रहेगी। वेबपृष्ठ पर अनुवाद सुविधा कम्प्यूटर उपयोक्ताओं के लिए इंटरनेट पर उपलब्ध सूचना को उनकी अपनी ही भाषा में समझने में सहायक होगी।

मुझ जैसे करोड़ो हिंदी भाषी कम्प्यूटर उपयोक्ताओं को कम्प्यूटर के उपयोग में कई समस्याएँ सिर्फ अंग्रेज़ी भाषा में अपनी कमजोरी होने की वजह से आती हैं न कि इसकी तकनीकी की वजह से।

आज भी भारत में सॉफ्टवेयर या ऑपरेटिंग सिस्टम में विंडोज अंग्रेजी में ही अपनी जड़े जमाए हुए है। ना तो द्विभाषिक रूप (अंग्रेजी और हिंदी) में ऑपरेटिंग सिस्टम उपलब्ध हैं और ना ही हिंदी में। अब चूंकि भारत में अभी भी बहुसंख्य जनता इंटरनेट के लिए साइबर कैफे पर निर्भर है, इसलिए हिंदी के प्रसार में यह भी एक बड़ी बाधा है। यदि साइबर कैफे में हिंदी का प्रयोग सुलभ हो तो बहुत से लोग हिंदी मे जुड़ेंगे।

2. फॉन्ट की जानकारी का अभाव - आजकल लोगों को फॉन्ट की विवधता के बारे में भी पूरी तरह से ज्ञान प्राप्त नहीं है।

3. हिंदी टाईपिंग की समस्या - आज भी की-बोर्ड अंग्रजी में ही उपलब्ध होते हैं। हिंदी टाईपिंग करने के लिए अंग्रेजी की-बोर्ड पर हिंदी की वर्णमाला चिपका दी जाती है। अब पहले तो वैसे ही आम कंप्यूटर उपयोगकर्ता को यूनिकोड का पता होता नहीं, आज भी हिंदी टाइपिंग के बारे में एक आम कंप्यूटर उपयोक्ता को यही मालूम है कि इसके लिए पहले हिंदी की टाइपिंग (रेमिंगटन) सीखनी होती है। फोनेटिक तथा इनस्क्रिप्ट प्रणालियों के बारे में बहुत ही कम लोगों को पता है।

टाइपिंग के लिए ISM नामक औजार सीडैक ने बनाया है । परंतु ये मुफ्त सॉफ्टवेयर नहीं, इसलिए आम आदमी के बस में इसे खरीदना नहीं है। इसका कोई ट्रायल तक उपलब्ध नहीं जिससे कि कोई इसका परीक्षण कर इसे लेने के बारे में विचार कर सके। इसके अलावा ये केवल कुछ चुनिंदा सॉफ्टवेयरों पर ही काम करता है। इन वजहों से ये उपरोक्त समस्या का समाधान नहीं हो सकता।

फोनेटिक टाइपिंग वालों के लिए एक तरीका है बरहा डायरैक्ट में नॉन-यूनिकोड टाइपिंग द्वारा। बरहा में अयूनिकोडित टाइपिंग के लिए BRH-Devanagari नामक नॉन-यूनिकोड फॉन्ट होता है। परंतु इसमें केवल एक ही फॉन्ट का प्रयोग किया जा सकता है।

एक अन्य टूल है सीडैक का GIST-TT Typing Tool इसमें तीनों लेआउट उपलब्ध हैं – फोनेटिक, इनस्क्रिप्ट तथा रेमिंगटन। यह एक नॉन-यूनिकोड इनपुट मैथड एडीटर है। इसमें चार फॉन्ट उपलब्ध हैं लेकिन वो डीटीपी जैसे कामों के लिए उपयुक्त नहीं।

4. यूनिकोड के बारे में जागरुकता का अभाव - एक आम कंप्यूटर प्रयोगकर्ता को यूनिकोड के बारे में पता ही नहीं कि यह क्या है, इसके क्या फायदे हैं। यदि वह इस बारे जागरुक हो तो वह यूनिकोड समर्थन वाले ऑपरेटिंग सिस्टमों को अपनायेगा। यूनिकोड के आगमन के बाद से बहुत से सॉफ्टवेयरों, साइटों तथा ऑनलाइन सेवाओं का यूनिकोडकरण शुरु हुआ। आज इनमें से अधिकतर यूनिकोड सक्षम हैं लेकिन अब भी अक्सर ऐसा होता है कि हम कोई सॉफ्टवेयर या ऑनलाइन सेवा में हिंदी टाइप करने लगते हैं तो डब्बे या प्रश्नचिन्ह नजर आने लगते हैं अर्थात वह यूनिकोड का समर्थन नहीं करता। अब इनमें से कई जगह तो फिर हिंदी में टाइप करना असंभव ही हो जाता है लेकिन जहाँ पर फॉन्ट बदलने की सुविधा है वहाँ नॉन-यूनिकोड फॉन्ट जैसे कृतिदेव आदि चुनकर हिंदी टाइप की जा सकती है। यद्यपि इससे वह बात नहीं बनती जो यूनिकोड में है, इसमें डाटा-प्रोसैसिंग जैसे सर्चिंग-सॉर्टिंग आदि नहीं की जा सकती।

5. तकनीकी अज्ञान - अधिकतर व्यक्तियों को विंडोज आदि ऑपरेटिंग सिस्टम तक इंस्टाल करना नहीं आता। यदि वे चाहें तो भी कुछ कर नहीं सकते।

6. पुराना हार्डवेयर - सब जगहों पर अक्सर पुराने हार्डवेयर युक्त कंप्यूटर होते हैं जो कि नए ऑपरेटिंग सिस्टमों को चलाने के लिए सक्षम नहीं होते। यह एक प्रमुख कारण है।

आज भारत में जो सॉफ्टवेयर अंग्रेजी में उपलब्ध हैं, यदि वे हिंदी में भी उपलब्ध कराए जाएँ तो उनका सार्थक उपयोग होगा जिससे हिंदी कंप्यूटरीकरण की बेहतर सेवा हो सकेगी।

------------------
डॉ. काजल बाजपेयी, संगणकीय भाषावैज्ञानिक, सी-डैक, पुणे
साभार- साहित्य शिल्पी 

सोमवार, 14 मार्च 2016

haiku

हाइकू कैसे लिखें
- एस० डी० तिवारी
हाइकू एक जापानी काव्य विधा है, जिसका प्रचलन १६ वीं शताब्दी में प्रारम्भ हो गया था. एक जापानी कवि बाशो को हाइकू का जनक माना जाता है. हाइकू मात्र सत्रह मात्राओं में लिखी जाने वाली कविता है और अब तक की सबसे सूक्ष्म काव्य है और साथ ही सारगर्भित भी. हाइकू की लोकप्रियता व सारगर्भिता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि आज दुनिया कि हर भाषा में हाइकू लिखे जा रहे हैं. कुछ हिंदी विद्वान हाइकू काव्य को विदेशी बताकर आलोचना भी करते हैं पर साहित्य को किसी भाषा, क्षेत्र या तकनीक की सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता. बल्कि मैं तो यह कहूँगा की जिस प्रकार मारुति कार, जापानी होकर भी छोटी होने के कारण हमारे यहाँ आम आदमी तक पहुँच बना ली उसी प्रकार हाइकू भी आम आदमी तक बड़ी सरलता से पहुँच सकता है. क्योंकि इसमे आम और साधारण बातों को ही जो प्रकृति और हमारे जीवन से जुडी होती हैं, सुन्दर और विशेष विधि से कम से कम यानी सत्रह अक्षरों में कह दिया जाता है. यह विधि उन कवियों के लिए वरदान है जो अच्छे भाव, ज्ञान व विचार तो रखते हैं पर छंद बंध करने की क्षमता कम होने के कारण अपनी कविता लिख ही नहीं पाते.
हिंदी हाइकू मात्र १७ वर्णों में लिखे जाते हैं. ऐसा लगता है कि हाइकू लिखना अति सरल है पर लिखने बैठे तो लगता है कितना कठिन भी है. कई बार तो ५ मिनट से भी कम समय में हाइकू बन जाता है और कई बार एक हाइकू लिखने में घंटों लग जाते हैं. इसका कारण है इसकी लिखने कि कला और इसका सारगर्भित होना. एक नन्हा सा हाइकू बहुत बड़ी बात कहने का सामर्थ्य रखता है और साधारण बात को भी ऐसे असाधारण तरीके से कह देता है जिसे पढ़कर पाठक रोमांचित हो जाता है तथा एक पृथक आनंद का अनुभव करता है.
हाइकू में मात्र १७ अक्षरों में जो तीन पंक्तियों में विभाजित होते हैं, अपने विचार प्रकट करने होते हैं या किसी दृश्य विशेष को दर्शाना होता है और इतने कम अक्षरों में बिम्ब प्रस्तुति के साथ रचना को रुचिकर भी रखना होता है जो एक कठिन कार्य है. क्योंकि इसमे कवि अपनी पूरी बात विस्तृत रूप से नहीं कह पाता. हाइकू लिखना गहरी सोच, अध्ययन व अभ्यास का परिणाम होता है. हाइकू लिखने वाला कोई भी अपने को पूर्ण रूप से पारंगत नहीं कह सकता.
अपनी कला के कारण हाइकू एक अपूर्ण कविता होते हुए भी पूरा भाव देने में सक्षम होता है. हाइकू ऐसी चतुराई से कहा जाता है कि पाठक अथवा श्रोता अपने ज्ञान व विवेक का प्रयोग करते हुए उसके भाव या उद्देश्य को पूर्ण कर लेता है. चूकि पाठक हाइकू को पढने के लिए उसमे पूर्ण रूप से घुसना पड़ता है, वह उसे अपने से जुड़ा व आनंदित अनुभव करता है.
हाइकू लिखने की विधि
अंग्रेजी हाइकू में १७ सिलेबल यानी मात्राएँ या स्वर की इकाई होती हैं परन्तु हिंदी में अभी तक १७ वर्णों में ही हकु लिखे जा रहे हैं. वर्णों की गणना करके लिखने में कुछ अक्षर कम अवश्य मिलते हैं पर लिखने में अति सरलता का अनुभव होता है और यदि कम अक्षरों में काम चल जाता है तो अधिक की आवश्यकता ही क्यों.
हाइकू में किन्ही दो भाव, विचार, बिम्ब या परिदृश्य को मात्र १७ वर्णों में तीन पंक्तियों में दो या अधिक वाक्यांशों में इस प्रकार व्यवस्थित किया जाता है ताकि प्रथम व अंतिम पंक्ति में ५-५ वर्ण व दूसरी पंक्ति में ७ वर्ण हों. दोनों भावों, विचारों या दृश्यों को तुलनात्मक रूप से इस प्रकार प्रस्तुत किया जाता है की वे पृथक पृथक होते हुए भी परस्पर सम्बंधित हों. हाइकू की तीन पंक्तियाँ भावात्मक दृष्टि से दो खण्डों में विभाजित होती है. एक साधारण खंड तथा दूसरा विशेष खंड. साधारण खंड में विषय वस्तु की आधारभूत भाव, बिम्ब, दृश्य या विचार रखी जाती है तथा विशेष खंड में उससे सम्बंधित विस्मित करने वाला विशेष तत्व. दोनों खंड पृथक होते हुए भी परस्पर पूरक होते हैं. दोनों खंड व्याकरण की दृष्टि से स्वतंत्र होने चाहिए. अपनी कविता १७ वर्णों में तीन पंक्तियों में लिख देने से हाइकू नहीं बन जाता बल्कि अच्छे हाइकू की विशेषता है उसमे पाठक को चौकाने वाला तत्व. यहाँ यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी की हाइकू में साधारण बात को ही असाधारण तरीके से कही जाती है. हाइकू एक वाक्य का नहीं होता. हाइकू में लय, विराम, पूर्ण विराम आदि चिन्हों की आवश्यकता नहीं होती. हाइकू मूलतः प्रकृति विषयों पर लिखे जाते हैं पर आजकल जीवन संबधी विषयों पर भी हाइकू बढ़ चढ़ कर लिखे जा रहे हैं. जीवन व ईश्वरीय विषयों पर लिखे हाइकू को अंग्रेजी में सेनर्यू कहा जाता है. वैसे हाइकू और सेनर्यू में विषय के अतिरिक्त और कोई अंतर नहीं है.
तीन पंक्तियों में से दो विषय वस्तु एवं उसके आधारभूत भाव या व्यवहार को दर्शाता है तथा तीसरी विशेष पंक्ति जिसमे उससे सम्बंधित विस्मयकारी भाव होता है. उदहारण के लिए मेरे निम्न हाइकू को पढ़ें -
दाना लेकर
चुहिया हाथ जोड़े
बिल्ली घात में
उपरोक्त हाइकू में 'दाना लेकर चुहिया हाथ जोड़े ' एक बिम्ब प्रस्तुत कर रही है यानी चुहिया हाथों में दाना लेकर खा रही है किन्तु उससे पृथक यहाँ पर एक और बिम्ब है 'बिल्ली घात में' यानी की बिल्ली भी भोजन की जुगत में है और वह भोजन के रूप में चुहिया को देख रही है. दूसरा बिम्ब पहले पर निर्भर है अगर वहां चुहिया नहीं होती तो बिल्ली भी घात में ना होती.
बाशो का एक हाइकू है
old pond
a frog leaps in
sound of water
यहाँ दो दृश्य हैं एक पुराना ताल जिसमे मेढक कूदा, दूसरा पानी कि ध्वनि जिससे ज्ञात हुआ कि मेढक कूदा. इस हाइकू में बाशो ने यह कह कर चौंका दिया कि मेढक जल की ध्वनि में कूदा. इसे पाठक सरलता से समझ सकता है कि मेढक कूदा तो जल में ही पर उसके कूदने का परिणाम, जल में ध्वनि उत्पन्न हुई जिससे मेढक के कूदने का बोध हुआ. बीच कि बात यानी कि वह जल में कूदा पाठक अपने विवेक से समझ लेता है.
इसका हिंदी रूपांतर मैंने इस प्रकार किया है -
पुराना ताल
जल करतल में
कूदा मेढक
मेरे इस हाइकू को देखें मैंने इसमे रूपक अलंकार का प्रयोग किया है यानी कि प्राण ताल में मेढक कूदा और जल ताली बजा रहा है अर्थ वही है जल कि ध्वनि.
हाइकू के तीन मूल तत्व
१. ५-७-५ वर्णों के क्रम में व्यवस्थित तीन पंक्तियों कि कविता
२. दो भाव, विचार, बिम्ब, दृश्य आदि कि तुलनात्मक प्रस्तुति
३. विस्मयकारी बोध अथवा चौंकाने वाला तत्त्व
हाइकू लिखने के क्रम
१. भाव या विचारों की सोच व आत्म-मंथन
२. उचित शब्दों का चुनाव
३. उन शब्दों को ५-७-५ वर्णों के क्रम में हाइकू की तकनीक के अनुसार व्यवस्थित करना
हाइकू लिखने की और बारीकियां आगे के लेख व टिप के द्वारा दी जाती रहेंगी

haiku

फागुन का रंग : हाइकु के संग 
*
आया फागुन 
गोरी की पिचकारी 
करे सावन 
*
भंग में रंग?
कर गयी रे भोली
रंग में भंग
*
नवगीत ने
कविता को सिखाया
गुनगुनाना
*
मुखड़ा देखा
रस से सराबोर
अंतरा रीझा
*
गलबहियाँ
डाले बतरस से
कनबतियाँ
*
रंग-गुलाल
लिविन रिलेशन
मचा धमाल
*
रंग-रंग पे
है फागुनी निखार
अंग-अंग पे
*

navgeet

नवगीत  
सपनों में  
*
तू जबसे 
सपनों में आयीं 
बनकर नीलपरी,
तबसे
सपने रहे न अपने
कैसी विपद परी।
*
नैनों ने
नैनों में
नैनों को
लुकते देखा।
बैनों नें
बैनों में
बैनों को
घुलते लेखा।
तू जबसे
कथनों में आयी
कह कोई मुकरी
तबसे
कहनी रही न अपनी
मावट भोर गिरी।
*
बाँहों ने
बाँहों में
बाँहों को
थामे पाया।
चाहों नें
चाहों में
चाहों को
हँस अपनाया।
तू जबसे
अधरों पर छायी
तन्नक उठ-झुकरी
तबसे
अंतर रहा न अपना
एक भई नगरी।
*
रातों ने
रातों में
रातों को
छिपते देखा।
बातों नें
बातों से
बातों को
मिलते लेखा।
तू जबसे
जीवन में आयी
ले खुशियाँ सगरी
तबसे
गागर में सागर सी
जन्नत दिखे भरी।
***

मुक्तक

मुक्तक:
सर गम से झुकाना नहीं, है जूझना हमें
जीवन की हर पहेली है बूझना हमें 
सरगम सुनें, सर! गम को जीत सकेंगे तभी 
जब तक न एकता, नहीं हल सूझना हमें 
*
ज़िंदगी देना कठिन है, मौत देना है सरल
काटना युग को सरल है, कठिन होता एक पल
आस का, विश्वास का नेता निभाना है कठिन
सरल है करना, कठिन है 'सलिल' सहना कपट-छल
*
रवि हर सकता संताप मगर मनु कोशिश पहले आप करे
श्रम लगन एकता को वरकर, बेमानी सारे शाप करे
कठिनाई से डरना छोड़े, दुश्मन से आँख मिलाये हँस
बन राम अहल्या को तारे, बन इंद्र न कोई पाप करे
*
ख़ुदकुशी भूल भी जा, जिंदगी जीना है तुझे
सुई बन जा, फटी चादर अभी सीना है तुझे
जो है धागा, गले से उसको लगा, आप भी लग
नमी आँसू की नहीं, अधर की पीना है तुझे
*

kavita

फर्क 
*
फर्क तो है 
मुझमें और तुममें। 
मेरी शर्त 
तुम्हें अपनाना।
और तुमने
बिना शर्त
चाहा मुझे पाना।
अगर न होता
यह फर्क तो
कैसे हम गा पाते
सन्नाटे में दो गाना
***

रविवार, 13 मार्च 2016

ratneshwar mandir varanasi

  • रत्नेश्वर महादेव मंदिर वाराणसी पर विद्युत्पात    

kashi-temple-distroy-on-sky-power
वाराणसी।
 शनिवार १२-३-२०१६ को सायंकाल विद्यत्पात से लगभग ५०० वर्ष पुराने रत्नेश्वर महादेव मंदिर का शिखर क्षतिग्रस्त गया है। विश्वनाथ शिव के त्रिशूल पर स्थित काशी में दुर्घटना के समय कई श्रद्धालु उपस्थित थे, किन्तु वे सब सुरक्षित बच गये। मणिकर्णिका घाट और सिंधिया घाट के मध्य स्थित  रत्नेश्वर महादेव मंदिर को काशी करवट कहा जाता है। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार देर शाम वर्षा के बीच तेज प्रकाश और आवाज़ के साथ मंदिर पर बिजली गिरते ही  मणिकर्णिका घाट पर शवदाह करने आये लोगों में भगदड़ मच गयी। आम जन जान-माल की क्षति न होने को शिव की कृपा मानते हैं जबकि महंत और ज्योतिषाचार्य इस मंदिर कलश टूटने को अशुभ संकेत बता रहे हैं। बटुक भैरव मंदिर के महंत जीतेन्द्र मोहन पुरी के अनुसार काशी करवट पर बिजली गिरने का अर्थ है ने बड़ी विपत्ति को अपनी नगरी से टाला है। 

kashi-temple-distroy-on-sky-power
किंवदंतियों के  अनुसार इस ऐतिहासिक रत्नेश्वर महादेव (काशी करवट) का निर्माण १५वीं सदी में राजामान सिंह के एक सेवक ने अपनी माँ के दूध का कर्ज चुकाने हेतु कराया था। माँ के नाम पर इस मंदिर का नाम रत्नेश्वर महादेव हुआ। सैकड़ों सालों से एक तरफ झुका होने कारण काशी करवट कहा जाता है। इसमें पाँच शिवलिंग स्थापित हैं। 

ज्योतिषाचार्य पं ऋषि दिवेदी के अनुसार आकाश मंडल में गुरु चांडाल योग ( देव गुरु बृहस्पति और चांडाल राहु का निकट आना) विपत्तियों का सूचक है। शनि का वृश्चिक राशि में मंगल के निकट आना प्रकृति के लिये ठीक नहीं है। मंगल डेढ़ माह किसी राशि में रहता है, इस वर्ष शनि वृश्चिक राशि में ६ माह रहेगा। शनि-मंगल की युति अशुभ है। 

तीर्थ पुजारी राजकुमार पांडे के अनुसार बेटा यह मंदि‍र बनवाकर दूध का कर्ज उतारना चाहता है। माँ को यह स्वीकार नहीं था इसलिए वह मंदिर के अंदर गये बिना, बाहर से शिव को प्रणाम  गयी तो मंदि‍र टेढ़ा हो होकर एक ओर जमीन में धँस गया । यह मंदिर ६ महीने से ज्यादा समय जलमग्न रहता है। गंगा  में जल-प्लावन के समय चालीस फिट से अधिक ऊँचे इस मंदिर का शिखर पानी में डूबा रहता है।