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रविवार, 19 अप्रैल 2015

रेल विभाग में हो रही गडबडियों को दूर करने के लिए सुझाव

जागो! नागरिक जागो:
रेल विभाग में हो रही गडबडियों को दूर करने के लिए सुझाव निम्न लिंक पर भेजें.

https://www.localcircles.com/a/home?t=c&pid=c1JkPSJmxm8W17A9FSAPUH6cnEfqHwd71PC2PI2aL08

रेलवे समाज सेवा और जनकल्याण भावना से संचालित विभाग है जिसके सुचारू सञ्चालन हेतु लाभांश आवश्यक है किन्तु लाभ एकमात्र लक्ष्य नहीं हो सकता. ग्राहक अधीनस्थ नौकर या गुलाम नहीं रेलवे का जीवनदाता है. नियम और नीति बनानेवालों तथा कर्मचारियों-अधिकारियों को यह तथ्य सदा स्मरण रखना चाहिए तथा कार्यस्थलों पर अंकित भी करना चाहिए. सभी सूचनाएं हिंदी तथा स्थानीय भाषाओँ में प्राथमिकता से हों. अंग्रेजी को अंत में स्थान हो.
१. तत्काल में कन्फर्म टिकिट निरस्त करने पर कोइ राशी वापिस न हो तो कोई टिकिट निरस्त करेगा ही क्यों? रेलवे ऐसी बर्थ खाली न रख अन्य यात्री को आवंटित कर राशी वसूल लेती है. अत: निरस्त करनेवाले यात्री को ७५% राशी लौटानी चाहिए.
२. तत्काल टिकिट खिड़की पर रोज बुकिंग करनेवाले एजेंटों की पहचान कर उन्हें अलग किया जाने पर ही वास्तविक यात्री को टिकिट मिलेगा. वर्तमान में कुछ लडके हर स्टेशन पर यही व्यवसाय करते हैं. रोज थोक में टिकिट लेते हैं और बेचते हैं और इसमें रेलवे कर्मचारी भी सम्मिलित होते हैं.
३. खान-पान का सामान निम्न गुणवत्ता का, मात्रा में कम और निर्धारित से अधिक कीमत में उपलब्ध कराना यात्री की जेब पर डाका डालने के समान है. टिकिट निरीक्षक या कंडकटर्स ऐसी शिकायत पर ध्यान नहीं देते. पेंट्रीकर वाले भी ठंडा-बेस्वाद भोजन देते हैं. रेलगाड़ी के वीरान स्थल के समीपस्थ होटलों मो निर्धारित मूल्य पर भोजन समग्रे उपलब्ध करने का ठेका देने का प्रयोग किया जाना चाहिए.
४. वातानुकूलित डब्बे में आगामी स्टेशन की जानकारी देना जरूरी है. रेल के मार्ग तथा स्टेशनों की दूरी व् समय दर्शाता रेखाचित्र दरवाजों के समीप अंकित किया जाए. कोच अटेंडेंट को जानकारी हो की किस बर्थ का यात्री कहाँ उतरेगा ताकि वह यात्री से बिस्तर ले सके और दरवाजा खोलकर उसे उतरने में सहायता कर सके. अभी तो वह सोता रहता है या अपनी बर्थ किसी को बेचकर लापता हो जाता है.
५. यात्री के यात्रा आरम्भ करने से लेकर यात्रा समाप्त करने तक बिस्तर उससे नहीं लिया चाहिए. यात्रा आरम्भ होने के २-३ स्टेशन बाद बिस्तर देना और २-३ स्टेशन पहले से बिस्तर वापिस ले लेना गलत है. जबलपुर-दिल्ली की रेलगाड़ियों में प्रायः कटनी-सिहोरा के बीच बिस्तर दिया जाता है और यहीं वापिस ले लिया जाता है. अटेंडेंट झगडालू तथा बदतमीज हैं.
६. कंबल पुराने-गंदे तथा टॉवल / नेपकिन न देना आम है. पैकेट पर लिखा होने की बाद भी नेपकिन नहीं दिया जाता. बेहतर हो की ठेकों से नेपकिन हटाकर उसकी राशि टिकिट में कम कर दी जाए. डिस्पोजेबल नेपकिन जी लौटना न हो भी इसका एक उपाय है.
७. यात्री को बिस्तर लेने या न लेने का विकल्प दिया जाए तो वह गंदा-पुराना सामान वापिस कर सकेगा और तब ठेकेदार स्वच्छ बिस्तर देने को बाध्य होगा.
८. यात्री के पास निर्धारित से अधिक वज़न का सामान होने पर तत्काल वज़न कर लगेज वैन में रखने और उतरते समय पावती देखकर लौटने की व्यवस्था हो तो रेलवे की आय बढ़ेगी तथा डब्बों में असुविधा घटेगी. अभी तो बारात या परिवार का पूरा समान ले जानेवाले अन्य यात्रियों के लिए मुश्किल कड़ी कर देते हैं और उन पर कोई कार्यवाही नहीं होती.
९. महत्वपूर्ण व्यक्ति को आवंटित टिकिट पर उसका चित्र अंकित हो ताकि उसका सहायक, रिश्तेदार या कोई अन्य यात्रा न कर सके.
१०. कैंटीन बहुत अधिक दाम पर खाद्य पदार्थ उपलब्ध करते हैं. अतः, प्लेटफोर्म पर स्थानीय लाइसेंसधारी विक्रेताओं को अवश्य रहने दिया जाए किन्तु उनकी सामग्री की गुणवत्ता और ताजे होने की संपुष्टि रोज की जाए.
११.  रिफंड के लिए टी.टी.इ. प्रमाणपत्र नहीं देते. अत: इसका प्रावधान समाप्त किया जाए और सेल्फ अटेस्टेशन की तरह टिकिटधारी की घोषणा को ही प्रमाण माना जाए. इससे आम आदमी में उत्तरदायित्व तथा सम्मान का भाव जाग्रत होगा.
१२. स्टिंग ऑपेरशन की तरह यात्री द्वारा कुछ गलत होते देखे जाने पर मोबाइल से रिकोर्ड/शूट कर ईमेल से भेजे जाने अथवा सूचित किये जाने के लिए कुछ चलभाष क्रमांक / ईमेल पते निर्धारित कर हर स्टेशन तथा डब्बों में अंकित किये जाए. इससे विभाग को बिना किसी वेतन के उसके ग्राहक ही सुचनादाता के रूप में सहयोग कर सकेंगे. आपात स्थिति, दुर्घटना अथवा नियमोल्ल्न्घन की स्थिति में तुरत कार्यवाही की जा सकेगी.
१३. रिफंड के नियम सरल किये जाएँ. कोई यात्र्र विवशता होने पर ही यात्रा निरस्त करता है. किसी की विवशता का लाभ उठाना घटिया मानसिकता है. यात्रे खुद को ठगा गया अनुभव करता है और फिर रेलवे को किसी न किसी रूप में क्षति पहुँचाकर संतुष्ट होता है. इसे रोका जाना चाहिए. रिफंड जल्दी से जल्दी और अधिक से अधिक किया जाए.
१४. आय वृद्धि के लिए डब्बों पर विज्ञापन दिए जाएँ जिनके साथ विज्ञापन अवधि बड़े अक्षरों में अंकित हो ताकि तत्काल बाद हटाकर नए विज्ञापन लगाये जा सकें.
१५. रेलवे के आगामी ५० वर्ष बाद की आवश्यकता और विस्तार का पूर्वानुमान कर बहुमंजिला इमारतें बनाई जाएँ. अधिकारियों के लिए बड़े-बड़े और अलग-अलग कक्ष समाप्त कर एक कक्ष में अधिकारी-कर्मचारी काम करें तो समयबद्धता, अनुशासन तथा बेहतर वातावरण होगा.     

शनिवार, 18 अप्रैल 2015

doha

दोहा: 

सवा लाख से एक लड़, विजयी होता सत्य
मिथ्या होता पराजित, लज्जित सदा असत्य 

झूठ-अनृत से दूर रह, जो करता सहयोग
उसका ही हो मंच में, कुछ सार्थक उपयोग

सबका सबसे ही सधे, सत्साहित्य सुकाम 
चिंता करिए काम की, किन्तु रहें निष्काम 

संख्या की हो फ़िक्र कम, गुणवत्ता हो ध्येय 
सबसे सब सीखें सृजन, जान सकें अज्ञेय

doha salila: संजीव

दोहा सलिला:
संजीव
.
फाँसी, गोली, फौज से, देश हुआ आजाद 
लाठी लूटे श्रेय हम, कहाँ करें फरियाद?
.
देश बाँट कुर्सी गही, खादी ने रह मौन 
बेबस लाठी सिसकती, दूर गयी रह मौन 
.
सरहद पर है गडबडी, जमकर हो प्रतिकार 
लालबहादुर बनें हम, घुसकर आयें मार  
.
पाकी ध्वज फहरा रहे, नापाकी खुदगर्ज़ 
कुर्सी का लालच बना, लाइलाज सा मर्ज 
.
दया न कर सर कुचल दो, देशद्रोह है साँप
कफन दफन को तरसता, देख जाय जग काँप
.
पुलक फलक पर जब टिकी, पलक दिखा आकाश 
टिकी जमीं पर कस गये, सुधियों के नव पाश
*

muktika: sanjiv

मुक्तिका:
संजीव
.
बोलना था जब तभी लब कुछ नहीं बोले
बोलना था जब नहीं बेबात भी बोले
.
काग जैसे बोलते हरदम रहे नेता
गम यही कोयल सरीखे क्यों नहीं बोले?
.
परदेश की ध्वजा रहे फहरा अगर नादां
निज देश का झंडा उठा हम मिल नहीं बोले
.
रिश्ते अबोले रिसते रहे बूँद-बूँदकर
प्रवचन सुने चुप सत्य, सुनकत झूठ क्या बोले?
.
बोलते बाहर रहे घर की सभी बातें
घर में रहे अपनों से अलग कुछ नहीं बोले.
.
सरहद पे कटे शीश या छाती हुई छलनी  
माँ की बचायी लाज, लाल चुप नहीं बोले.
.
    

navgeet: sanjiv

नवगीत: 
संजीव
.
मन की तराजू पर तोलो 
'जीवन मुश्किल है' 
यह सच है 
ढो मत, 
तनिक मजा लो.
भूलों को भूलो 
खुद या औरों को 
नहीं सजा दो. 
अमराई में हो 
बहार या पतझड़ 
कोयल कूके-
ऐ इंसानों!
बनो न छोटे 
बात में कुछ मिसरी घोलो 
.
'होता है वह 
जो होना है'' 
लेकिन 
कोशिश करना.
सोते सिंह के मुँह में 
मृग को 
कभी न पड़ता मरना. 
'बोया-काटो'  
मत पछताओ  
गिर-उठ कदम बढ़ाओ. 
ऐ मतिमानों!
करो न खोटे 
काम, न काँटे बो लो.  
.

शुक्रवार, 17 अप्रैल 2015

pustak samiksha: Dr. sadhna verma

ॐ 
कृति परिचय: 
आधुनिक अर्थशास्त्र: एक बहुउपयोगी कृति 
चर्चाकार- डॉ. साधना वर्मा 
सहायक प्रध्यापक अर्थशास्त्र 
शासकीय महाकौसल स्वशासी अर्थ-वाणिज्य महाविद्यालय जबलपुर 
*
[कृति विवरण: आधुनिक अर्थशास्त्र, डॉ. मोहिनी अग्रवाल, अकार डिमाई, आवरण बहुरंगी सजिल्द, लेमिनेटेड, जेकेट सहित, पृष्ठ २१५, मूल्य ५५०/-, कृतिकार संपर्क: एसो. प्रोफेसर, अर्थशास्त्र विभाग, महिला महाविद्यालय, किदवई नगर कानपुर, रौशनी पब्लिकेशन ११०/१३८ मिश्र पैलेस, जवाहर नगर कानपूर २०८०१२ ISBN ९७८-९३-८३४००-९-६]

अर्थशास्त्र मानव मानव के सामान्य दैनंदिन जीवन के अभिन्न क्रिया-कलापों से जुड़ा विषय है. व्यक्ति, देश, समाज तथा विश्व हर स्तर पर आर्थिक क्रियाओं की निरन्तरता बनी रहती है. यह भी कह सकते हैं कि अर्थशास्त्र जिंदगी का शास्त्र है क्योंकि जन्म से मरण तक हर पल जीव किसी न किसी आर्थिक क्रिया से संलग्न अथवा उसमें निमग्न रहा आता है. संभवतः इसीलिए अर्थशास्त्र सर्वाधिक लोकप्रिय विषय है. कला-वाणिज्य संकायों में अर्थशास्त्र विषय का चयन करनेवाले विद्यार्थी सर्वाधिक तथा अनुत्तीर्ण होनेवाले न्यूनतम होते हैं. कला महाविद्यालयों की कल्पना अर्थशास्त्र विभाग के बिना करना कठिन है. यही नहीं अर्थशास्त्र विषय प्रतियोगिता परीक्षाओं की दृष्टि से भी बहुत उपयोगी है. उच्च अंक प्रतिशत के लिये तथा साक्षात्कार में सफलता के लिए इसकी उपादेयता असिंदिग्ध है. देश के प्रशासनिक अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों में अनेक अर्थशास्त्र के विद्यार्थी रहे हैं.
आधुनिक जीवन प्रणाली तथा शिक्षा प्रणाली के महत्वपूर्ण अंग उत्पादन, श्रम, पूँजी, कौशल, लगत, मूल्य विक्रय, पारिश्रमिक, माँग, पूर्ति, मुद्रा, बैंकिंग, वित्त, विनियोग, नियोजन, खपत आदि अर्थशास्त्र की पाठ्य सामग्री में समाहित होते हैं. इनका समुचित-सम्यक अध्ययन किये बिना परिवार, देश या विश्व की अर्थनीति नहीं बनाई जा सकती.
डॉ. मोहिनी अग्रवाल लिखित विवेच्य कृति 'आधुनिक अर्थशास्त्र' एस विषय के अध्यापकों, विद्यार्थियों तथा जनसामान्य हेतु सामान रूप से उपयोगी है. विषय बोध, सूक्ष्म अर्थशास्त्र, वृहद् अर्थशास्त्र, मूल्य निर्धारण के सिद्धांत, मजदूरी निर्धारण के सिद्धांत, मांग एवं पूर्ति तथा वित्त एवं विनियोग शीर्षक ७ अध्यायों में विभक्त यह करती विषय-वस्ती के साथ पूरी तरह न्याय करती है. लेखिका ने भारतीय तथा पाश्चात्य अर्थशास्त्रियों के मताभिमतों की सरल-सुबोध हिंदी में व्याख्या करते हुए विषय की स्पष्ट विवेचना इस तरह की है कि प्राध्यापकों, शिक्षकों तथा विद्यार्थियों को विषय-वस्तु समझने में कठिनाई न हो.आमजीवन में प्रचलित सामान्य शब्दावली, छोटे-छोटे वाक्य, यथोचित उदाहरण, यथावश्यक व्याख्याएँ, इस कृति की विशेषता है. विषयानुकूल रेखाचित्र तथा सारणियाँ विषय-वास्तु को ग्रहणीय बनाते हैं.
विषय से संबंधित अधिनियमों के प्रावधानों, प्रमुख वाद-निर्णयों, दंड के प्रावधानों आदि की उपयोगी जानकारी ने इसे अधिक उपयोगी बनाया है. कृति के अंत में परिशिष्टों में शब्द सूची, सन्दर्भ ग्रन्थ सूचि तथा प्रमुख वाद प्रकरणों की सूची जोड़ी जा सकती तो पुस्तक को मानल स्वरुप मिल जाता. प्रख्यात अर्थशास्त्रियों के अभिमतों के साथ उनके चित्र तथा जन्म-निधन तिथियाँ देकर विद्यार्थियों की ज्ञानवृद्धि की जा सकती थी. संभवतः पृष्ठ संख्या तथा मूल्य वृद्धि की सम्भावना को देखते हुए यह सामग्री न जोड़ी जा सकी हो. पुस्तक का मूल्य विद्यार्थियों की दृष्टि से अधिक प्रतीत होता है. अत: अल्पमोली पेपरबैक संस्करण उपलब्ध कराया जाना चाहिए.
सारत: डॉ. मोहिनी अग्रवाल की यह कृति उपयोगी है तथा इस सारस्वत अनुष्ठान के लिए वे साधुवाद की पात्र हैं. 
*

muktika: sanjiv

मुक्तिका:
संजीव
.
हवा लगे ठहरी-ठहरी
उथले मन बातें गहरी
.
ऊँचे पद हैं नीचे लोग
सरकारें अंधी-बहरी
.
सुख-दुःख आते-जाते हैं
धूप-छाँव जैसे तह री
.
प्रेयसी बैठी है सर पर
मैया लगती है महरी
.
नहीं सुहाते गाँव तनिक
भरमाती नगरी शहरी
.
सबकी ख़ुशी बना अपनी
द्वेष जलन से मत दह री
*

navgeet: sanjiv

नवगीत:
संजीव
.
राजा को गद्दी से काम
.
लोकतंत्र का अनुष्ठान हर
प्रजातंत्र का चिर विधान हर
जय-जय-जय जनतंत्र सुहावन
दल खातिर है प्रावधान हर
दाल दले जन की छाती पर
भोर, दुपहरी या हो शाम
.
मिली पटकनी मगर न चेते
केर-बेर मिल नौका खेते
फहर रहा ध्वज देशद्रोह का
देशभक्त की गर्दन रेते
हाथ मिलाया बाँट सिंहासन
नाम मुफ्त में है बदनाम
.
हों शहीद सैनिक तो क्या गम?
बनी रहे सरकार, आँख नम
गीदड़ भभकी सुना पडोसी
सीमा में घुस, करें नाक-दम
रंग बदलता देखें पल-पल
गिरगिट हो नत करे प्रणाम
.
हर दिन नारा नया  गुंजायें
हर अवसर को तुरत भुनायें
पर उपदेश कुशल बहुतेरे
दल से देश न ऊपर पायें
सकल देश के नेता हैं पर
दल हित साधें नित्य तमाम
.
दल का नहीं, देश का नेता
जो है, क्यों वह ताना देता?
सब हों उसके लिये समान
हँस सम्मान सभी से लेता
हो उदार समभावी सबके
बना न क्यों दे बिगड़े काम?
*
  

रेल यात्रा में सुरक्षा हेतु सुझाव

भारतीय रेल यात्रा को अधिक सुरक्षित बनाने हेतु सुझाव निम्न लिंक पर भेजें:
https://www.localcircles.com/a/home?t=c&pid=6Vuua24BZNcPqKPVCdZX34lNHphEIeon6_3AE3Jd160

१. टिकिट खिड़की पर कतारबद्ध होकर टिकिट क्रय की व्यवस्था हो. संबंधित कर्मचारी के पास फुटकर पैसे (चिल्लर) अवश्य हो. अशक्त, वृद्ध, रोगी व्यक्तियों हेतु अलग कतार हो. 
२. प्रतीक्षालय में इलेक्ट्रोनिक सूचना पटल तथा उद्घोषणा रेलगाड़ियों की अद्यतन जानकारी दें. रेलगाड़ी के आगमन के साथ डब्बा स्थिति सूचक पटल न हो तो डब्बों के क्रमों का ऐलान हो. 
३. प्लेटफोर्म पर हवाई अड्डे की तरह केवल यात्रियों को प्रवेश हो. बिदा करनेवाले बाहर रोके जाएँ. सामान की जांच के साथ तौल भी हो. अनुमति से अधिक वज़न पर प्रभार लें तो आय में वृद्धि होगी. इससे कम सामान लेकर यात्रा की प्रवृत्ति बढ़ेगी.       
४. अल्प विकसित स्टेशनों पर प्लेटफोर्म तथा रेलगाड़ी के डब्बे की ऊंचाई तथा दूरी में बहुत अंतर होता है जो दुर्घटना को आमंत्रण देता है, इसे कम से कम किया जाए. डब्बों में मेट्रो रेलगाड़ियों की तरह स्वचालित तथा हल्के दरवाजे हों तो दरवाजों पर सफर करने और दुर्घटनाग्रस्त होने से बचा जा सकेगा. 
५. प्लेटफोर्म तथा डब्बों में भिखारियों, हिजड़ों तथा अनाधिकृत विक्रेताओं का प्रवेश सख्ती से बंद किया जाए.  
६. डब्बों में द्वार के निकट आरक्षण सूची चिपकाई जाते समय डब्बे के अन्दर टिकिट निरीक्षक, चालक, गार्ड तथा अटेंडेंट का नाम तथा चलभाष क्रमांक चिपकाया ताकि आवश्यकता होने पर उनसे संपर्क हो सके.कर्त्तव्य की अवहेलना करने पर उनके विरुद्ध शिकायत भी की जा सकेगी. 
७. प्लेटफोर्म पर चिकने ग्रेनाइट पत्थर के स्थान पर फिसलनरोधी (anti skid) टाइल का प्रयोग हो.
८. प्लेटफोर्म नीचा हो तो अशक्त जनों के डब्बे में प्रवेश हेतु अस्थायी मजबूत रेलिंग हो जैसी जहाजों में लगाई जाती है. अशक्त जन हेतु शायिका के साथ उसके सहायक हेतु बैठने की व्यवस्था (कुर्सी) हो. 
९. समतल पारण (लेवल क्रोसिंग) पर स्वचालित व्यवस्था हो तथा यातायात रोकने हेतु पाइप के साथ ऐसी व्यवस्था ही कि नीचे से न निकला जा सके. 
१०. विद्युत् तार तथा ट्रांसफोर्मर खुले न हों. ज्वलनशील पदार्थों की जांच कर ले जाने से रोका जाता रहे. 
११.कम वजनी मजबूत डब्बों का निर्माण हो तो इंजिन पर कम भार पड़ेगा, ट्रेन की गति-वृद्धि तथा ईंधन की बचत संभव हो सकेगी. डब्बे के बीच में दोनों और १-१ दरवाजा और हो तो चढ़ते-उतरते समय सामान और यात्रियों की धकापेल कम होगी. 
१२. सेतु होने पर भी पटरियों को पैदल पार करने से यात्रियों को को रोका जाए. भरूच (गुजरात) में कोई भी यात्री पुल पर नहीं जाता और रेलवे कर्मचारी देखते रहते हैं. 
१३. शौचालयों के नीचे मल एकत्र करने हेतु व्यवस्था हो जिसे निर्धारित स्थानों पर खालीकर ट्रीटमेंट प्लांट को भेजा जा सके. 
१४. डब्बों में स्वच्छ पेय जल हेतु अलग नल हो.      
१५. ऊपरी सहायिकाओं पर चढ़ने के लिए गोल पाइप के स्थान पर चौकोर पाइप की सीढ़ी हो, जिस पर पैर जम सके.
१६. डब्बों में आगामी स्टेशन संबंधी स्वचालित उद्घोषणा हो. वातानुकूलित डब्बों में रात के समय यह आवश्यक है.
१७. आपात स्थिति में चालक / गार्ड को सूचित कर सकने हेतु उनके स्थानों पर चलभाष हों जिनके क्रमांक दरवाजों के निकट अंकित हों.
१८. खिडकियों के कांच पर पत्थरबाजी की को रोकने के लिए कांच के बाहर जाली की व्यवस्था हो. 
१९. व्हील चेयर्स तथा ट्रोलियों की उपलब्धता बढ़ाई जाए
२०. डब्बे में प्रवेश के पूर्व अनुमति से अधिक सामान लगेजवान में जमाकर पावती दी जाए तथा उतरते समय पावती देखकर वापिस किया जाए.
२१.लम्बी दूरी की गाड़ियों में शौचालय में शोवर तथा हो.   


गुरुवार, 16 अप्रैल 2015

navgeet: sanjiv

नवगीत
संजीव
.
बांसों के झुरमुट में
धांय-धांय चीत्कार
.
परिणिति
अव्यवस्था की
आम लोग
भोगते.
हाथ पटक
मूंड पर
खुद को ही
कोसते.
बाँसों में
उग आये
कल्लों को
पोसते.
चुभ जाती झरबेरी
करते हैं सीत्कार
.
असली हो
या नकली
वर्दी तो
है वर्दी.
असहायों
को पीटे
खाखी हो
या जर्दी.
गोलियाँ
सुरंग जहाँ
वहाँ सिर्फ
नामर्दी.
बिना किसी शत्रुता
अनजाने रहे मार
.
सूखेंगे
आँसू बह.
रक्खेंगे
पीड़ा तह.
बलि दो
या ईद हो
बकरी ही
हो जिबह.
कुंठा-वन
खिसियाकर
खुद ही खुद
होता दह
जो न तर सके उनका
दावा है रहे तार
***

navgeet: sanjiv

नवगीत:
संजीव
.
सपने हुए कपूर
गैर भी लगते अपने
.
जन-मन के मंदिर में
घंटा-ध्वनि होने दो
पथ पाने के लिये
भीड़ में धँस-खोने दो
हँसने की खातिर
मन को जी भर रोने दो
फलना हो तो तूफां में
फसलें बोने दो
माल जपें हुज़ूर
देव-किस्मत को ठगने
सपने हुए कपूर
गैर भी लगते अपने
.
आशा पर आकाश टंगा
सपने सोने दो
तन धोया अब तलक
तनिक मन भी धोने दो
खोलो खिड़की-द्वार
तिमिर को मत कोने दो
ताले फेंको तोड़
न खुद को शक ढोने दो
अट्टहास कर नाचो
हैं बेमानी नपने
सपने हुए कपूर
गैर भी लगते अपने
.

navgeet : sanjiv

नवगीत:
संजीव
.
नेह नर्मदा-धारा मुखड़ा
गंगा लहरी हुए अंतरे
.
कथ्य अमरकंटक पर
तरुवर बिम्ब झूमते
डाल भाव पर विहँस
बिम्ब कपि उछल लूमते
रस-रुद्राक्ष माल धारेंगे
लोक कंठ बस छंद कन्त रे!
नेह नर्मदा-धारा मुखड़ा
गंगा लहरी हुए अंतरे
.  
दुग्ध-धार लहरें लय
देतीं नवल अर्थ कुछ
गहन गव्हर गिरि उच्च
सतत हरते अनर्थ कुछ
निर्मल सलिल-बिंदु तर-तारें
ब्रम्हलीन हों साधु-संत रे!
नेह नर्मदा-धारा मुखड़ा
गंगा लहरी हुए अंतरे
.
विलय करे लय मलय
न डूबे माया नगरी
सौंधापन माटी का
मिटा न दुनिया ठग री!
ढाई आखर बिना न कोई
किसी गीत में तनिक तंत रे!
नेह नर्मदा-धारा मुखड़ा
गंगा लहरी हुए अंतरे
.

navgeet: sanjiv

नव गीत:
संजीव
.
अपने ही घर में
बेबस हैं
खुद से खुद ही दूर
.
इसको-उसको परखा फिर-फिर
धोखा खाया खूब
नौका फिर भी तैर न पायी
रही किनारे डूब
दो दिन मन में बसी चाँदनी
फिर छाई क्यों ऊब?
काश! न होता मन पतंग सा
बन पाता हँस दूब
पतवारों के
वार न सहते
माँझी होकर सूर
अपने ही घर में
बेबस हैं
खुद से खुद ही दूर
.
एक हाथ दूजे का बैरी
फिर कैसे हो खैर?
पूर दिये तालाब, रेत में
कैसे पायें तैर?
फूल नोचकर शूल बिछाये
तब करते है सैर
अपने ही जब रहे न अपने
गैर रहें क्यों गैर?
रूप मर रहा
बेहूदों ने
देखा फिर-फिर घूर
अपने ही घर में
बेबस हैं
खुद से खुद ही दूर
.
संबंधों के अनुबंधों ने
थोप दिये प्रतिबंध
जूही-चमेली बिना नहाये
मलें विदेशी गंध
दिन दोपहरी किन्तु न छटती
फ़ैली कैसी धुंध
लंगड़े को काँधे बैठाकर
अब न चल रहे अंध
मन की किसको परख है
ताकें तन का नूर
***

chitra par kavitaa

चित्र पर कविता:

संध्या सिंह 
पेड़-पवन , पंछी-गगन , बजा भोर का साज़ |
धरा-सूर्य के मिलन का , क्या अद्भुत अंदाज़ |
संजीव
क्या अद्भुत अंदाज़, देख मन नाच रहा है  
पंछी-पंछी प्रणय-पत्रिका बाँच रहा है  
क्षितिज सरस दरबारी हँसे पवन को छेड़  
याद करें संध्या को प्रमुदित होकर पेड़
  
निशा कोठारी 
सदा ही करती भोर का मनभावन आगाज़ 
जाने क्या इस कलम की सुंदरता का राज़

बुधवार, 15 अप्रैल 2015

muktika: sanjiv

मुक्तिका:
संजीव
.
चूक जाओ न, जीत जाने से
कुछ न पाओगे दिल दुखाने से
.
काश! खामोश हो गये होते
रार बढ़ती रही बढ़ाने से
.
बावफा थे, न बेवफा होते  
बात बनती है, मिल बनाने से    
.
घर की घर में रहे तो बेहतर है
कौन छोड़े हँसी उड़ाने से?
.
ये सियासत है, गैर से बचना
आजमाओ न आजमाने से
.
जिसने तुमको चुना नहीं बेबस
आयेगा फिर न वो बुलाने से  
.
घाव कैसा हो, भर ही जाता है
दूरियाँ मिटती हैं भुलाने से  
.

muktika: sanjiv

मुक्तिका:
संजीव
.
आप से आप ही टकरा रहा है
आप ही आप जी घबरा रहा है
.
धूप ने छाँव से कर दी बगावत
चाँद से सूर्य क्यों घबरा रहा है?
.
क्यों फना हो रहा विश्वास कहिए?
दुपहरी में अँधेरा छा रहा है  
.
लोक को था भरोसा हाय जिन पर
लोक उनसे ही धोखा खा रहा है
.
फिजाओं में घुली है गुनगुनाहट
खत्म वनवास होता जा रहा है
.
हाथ में हाथ लेकर जो चले थे
उन्हीं का हाथ छूटा जा रहा है
.
बुहारू ले बुहारो आप आँगन
स्वार्थ कचरा बहुत बिखरा रहा है
.

doha: sanjiv

खबरदार दोहे
संजीव
.
केर-बेर का सँग ही, करता बंटाढार
हाथ हाथ में ले सभी,  डूबेंगे मँझधार
(समाजवादी एक हुए )
.
खुल ही जाती है सदा, 'सलिल' ढोल की पोल
मत चरित्र या बात में, अपनी रखना झोल
(नेताजी संबंधी नस्तियाँ खुलेंगी)
.
न तो नाम मुमताज़ था, नहीं कब्र है ताज
तेज महालय जब पूजे तभी मिटेगी लाज
(ताज शिव मंदिर है)
.
जयस्तंभ की मंजिलें, सप्तलोक-पर्याय
कलें क़ुतुब मीनार मत,  समझ सत्य-अध्याय
(क़ुतुब मीनार जयस्तंभ है)
.




doha salila: sanjiv

दोहा सलिला:

रश्मिरथी रण को चले, ले ऊषा को साथ
दशरथ-कैकेयी सदृश, ले हाथों में हाथ
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तिमिर असुर छिप भागता, प्राण बचाए कौन?
उषा रश्मियाँ कर रहीं, पीछा रहकर कौन
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जगर-मगर जगमग करे, धवल चाँदनी माथ
प्रणय पत्रिका बाँचता, चन्द्र थामकर हाथ
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तेज महालय समर्पित, शिव-चरणों में भव्य
कब्र हटा करिए नमन, रखकर विग्रह दिव्य
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धूप-दीप बिन पूजती, नित्य धरा को धूप
दीप-शिखा सम खुद जले, देखेरूप अरूप
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नेताजी सुभाष चन्द्र बोस संबंधी सत्य की खोज:

बर्लिन में पीएम नरेंद्र मोदी से मुलाकात के दौरान नेताजी के परपोते सूर्य कुमार बोस।बर्लिन.  नेताजी सुभाषचंद्र बोस के परपोते सूर्य कुमार बोस ने जर्मनी के दौरे पर गये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सोमवार की शाम भारतीय राजदूत विजय गोखले द्वारा दिये गये स्वागत भोज में भेंट कर नेताजी के रहस्यमय ढंग से लापता होने से जुड़ी गोपनीय नस्तियों और जवाहरलाल नेहरू द्वारा बोस परिवार की जासूसी कराये जाने जैसे मसलों को उठाया।

नेताजी की वापसी से खतरे में पड़ जाती नेहरू की गद्दीः सूर्य कुमार बोस

सूर्य कुमार बोस ने कांग्रेस और नेहरू पर आरोप लगाते हुए कहा कि जानबूझकर नेताजी से जुड़ी फाइलों को दबा कर रखा गया । उन्होंने कहा, ''नेहरू को डर था कि नेताजी के वापस आने के बाद उनकी गद्दी जा सकती है, इसलिए मेरे पिता और परिवार के अन्य सदस्यों की विदेश सचिव और राजदूत से जासूसी करायी गयी।'' नेताजी के परिवार के एक अन्य सदस्य चंद्र बोस ने दावा किया, ''पीएम मोदी के पास सारे अधिकार हैं, वह नेताजी की गुमशुदगी से जुड़ी फाइलों को सार्वजनिक करेंगे तथा पंडित नेहरू द्वारा बोस परिवार की जासूसी मामले की जाँच का भी आश्वासन दिया है।''
'पूरे देश के थे नेताजी, सब करें रहस्य से पर्दा उठाने की मांग' 
पीएम मोदी से मुलाकात के पहले सूर्य कुमार बोस ने कहा, ''सुभाष बोस केवल एक ही परिवार से नहीं जुड़े थे। उन्होंने खुद कहा था कि पूरा देश उनका परिवार है। मैं नहीं समझता कि यह एक ही परिवार का जिम्मा है कि नेताजी से जुड़ी फाइलों को सार्वजनिक करने की माँग करे, यह पूरे देश का जिम्मा है।'' 18 अगस्त 1945 को ताइवान में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को अंतिमबार देखा गया था जिसके बाद से वह लापता हैं।
क्यों पीएम मोदी से मिला बोस परिवार
नेताजी के गायब होने से जुड़ी कई फाइलें हैं, जिन्हें केंद्र सरकार ने आज तक सार्वजनिक नहीं किया है। नेताजी के परिवार के सदस्यों की मांग रही है कि सरकार सुभाष चंद्र बोस से जुड़ी 160 गोपनीय फाइलों को सार्वजनिक करे। बता दें कि कांग्रेस सरकार की तरह मोदी सरकार भी नेताजी से जुड़ी फाइलों को सार्वजनिक करने से आनाकानी करती रही है। पिछले दिनों ऐसी खबरें आई थीं कि देश का पहला प्रधानमंत्री बनने के बाद जवाहरलाल नेहरू ने दो दशकों तक बोस परिवार की जासूसी कराय थी। इसका खुलासा सीक्रेट लिस्ट से हाल ही में हटायी गयी इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) की दो फाइलों से हुआ है। फाइलों से पता चला है कि 1948 से 1968 के बीच सुभाष चंद्र बोस के परिवार पर निगरानी रखी गयी थी। इन 20 सालों में से 16 साल तक नेहरू देश के पीएम थे और आईबी उन्हीं के अंतर्गत काम करती थी।

ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट (ओएसए) के रिव्यू के लिए केंद्र सरकार ने कमेटी गठित की:
दिल्ली. स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की गुमशुदगी से जुड़े रहस्यों से जल्द मोदी सरकार पर्दा उठा सकती है। इस संबंध ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट (ओएसए) पर पुनर्विचार के लिए केंद्र सरकार ने एक कमेटी गठित की है। इस इंटर-मिनिस्ट्रियल कमेटी का नेतृत्व कैबिनेट सचिव कर रहे हैं जो नेताजी की गुमशुदगी से जुड़ी फाइलों को सार्वजनिक करने की मांग पर विचार करेंगे। कमेटी में रॉ, आईबी, होम मिनिस्ट्री के अलावा पीएमओ के अधिकारी भी हैं।

सरकार की ओर से कमेटी बनाए जाने पर नेताजी के परिवार ने खुशी जताई है। इस संबंध में नेताजी के परपोते चंद्र बोस ने कहा, ''मोदी सरकार की ओर से इतना जल्दी फैसला लिया जाना बहुत ही सकारात्मक है, हमें इतने जल्दी फैसले की उम्मीद नहीं थी।'' बर्लिन में पीएम मोदी से मुलाकात करने वाले नेताजी के परपोते ने कहा कि परिवार गुमशुदगी और नेताजी के जीवन से जुड़े किसी भी तथ्य को स्वीकार करेगा। उन्होंने कहा, ''हो सकता है कि फाइलों से होने वाले खुलासे में नेताजी की बेहतर छवि न सामने आए। उनके बारे में कुछ नकारात्मक भी हो सकता है। सब कुछ संभावना है, लेकिन हमें इसे स्वीकार करना होगा। परिवार नेताजी के बारे में किसी भी खुलासे को स्वीकार करने को तैयार है।'' सूर्य बोस ने कहा था, ''मैंने पीएम मोदी को कुछ बिंदुओं को लिखित दिया है। इसमें परिवार की नेहरू द्वारा जासूसी कराये जाने की बात भी शामिल है। हमारा परिवार चाहता है कि सच सामने आए। मैंने पीएम मोदी को बताया कि भारत इतना मजबूत देश है कि यदि नेताजी से जुड़ा सच सामने आता है और वह किसी देश को मंजूर नहीं होता है तो भी भारत का कुछ नहीं बिगड़ेगा।''
 

कानपूर भ्रमण: १० - १३ अप्रैल २०१५


कानपूर में ११-१२ अप्रैल को शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के तत्वावधान में भारतीय भाषाओँ की वैज्ञानिकता एवं सन्निकटता विषय पर राष्ट्रीय परिसंवाद संपन्न हुआ. 


इसका उद्घाटन माननीय श्री राम नाइक राज्यपाल उत्तर प्रदेश के कर कमलों से संपन्न हुआ.                                                                 
श्री अतुल कोठारी सचिव शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास दिल्ली, प्रो. मोहनलाल छीपा कुलपति अटलबिहारी बाजपेयी हिंदी विशवविद्यालय भोपाल, डॉ. कैलाश विश्वकर्मा राष्ट्रीय संयोजक वैदिक गणित, प्रो. वृषभप्रसाद जैन पूर्व सलाहकार भारतीय विश्वविद्यालय संघ, डॉ. राजेश श्रीवास्तव बुदनी, डॉ. जीतेन्द्र शांडिल्य, डॉ.अनूप शर्मा आदि के साथ मैंने भी दोनों दिन सहभागिता की.                                                                       

प्रथम सत्र में भारतीय भाषाओँ का समन्वय- दशा व् दिशा, द्वितीय सत्र में भारतीय भाषाओँ की सन्निकटता, तृतीय सत्र में भाषागत चिंतायें: विरोध व् वैमनस्यता कारण व् निवारण, चतुर्थ सत्र में भारतीय भाषाओँ की वैज्ञानिकता में निहित विज्ञानं तथा पंचम सत्र में वर्तमान संदर्भ में भारतीय भाषा आन्दोलन विषयों पर सारगर्भित विचार विनिमय हुआ.                                          
परिसंवाद संयोजक श्री यशभान सिंह तोमर ने अथक परिश्रम कर इसे मूर्त रूप दिया.                                                               
हीरालाल पटेल इन्त्र्नेश्नल स्कूल के संस्थापक श्री हीरालाल पटेल तथा प्रबंधक श्री अरुण पटेल, आकाश उद्घोषिका श्रीमती रंजना यादव, श्री उमेश सिंह तोमर, श्रीमती डॉ. मोहिनी अग्रवाल, डॉ. उमेश पालीवाल, डॉ. नीलम त्रिवेदी, डॉ. अंगद सिंह, डॉ. अनूप सिंह, श्री शारदा दीन, डॉ. हिना अफ्सां, श्री सुजीत सिंह आदि ने जी-जान लगाकर आयोजन में प्राण फूंके

                                                      श्रीमती अन्नपूर्णा बाजपेई, श्रीमती कल्पना मिश्र, श्रीमती मीना बाजपेई, श्रीमती लक्ष्मी आदि से नवगीत तथा अन्य साहित्यिक विधाओं पर सार्थक चर्चाएँ हुईं.                                                    
समापन सत्र में शरू अतुल कोठारी के कर कमलों से स्मृतिचिन्ह के रूप अपने आदर्श स्वामी विवेकानंद की कांस्य प्रतिमा प्राप्तकर धन्यता की प्रतीति हुई.                                                  
आजकल एक के साथ एक मुफ्त का चलन है. मुझे तो दो अन्य लाभ मिले:                           
१. नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से सम्बंधित दस्तावेजों को सार्वजनिक कर विमान दुर्घटना व् अन्य सत्य सामने लाने के लिए अधिकारक्षम आयोग की माँग करते रहे श्री सुरेन्द्रनाथ चित्रांशी के साथ लम्बी चर्चा हुई. मैं इस संबंध में उनका सहयोगी हूँ. अगले कदमों पर चर्चा हुई. कायस्थ धर्म परिषद् की सक्रियता बढाकर इसे मानव मात्र के कल्याण हेतु गतिविधि का केंद्र बनाने पर विचार हुआ.                                                          
२. कायस्थ महासभा रामपुर कानपूर के नवनिर्वाचित अध्यक्ष श्री पंकज श्रीवास्तव के शपथ ग्रहण कार्यक्रम में सहभागिता कर सामाजिक समस्याओं, सांस्कृतिक कार्यक्रमों तथा १३ अप्रैल को व्यक्तिगत चर्चा में चित्रगुप्त व्याख्यानमाला के अंतर्गत राष्ट्रीय हित के विषयों पर प्रति वर्ष एक आयोजन करने के विचार पर सहमति हुई. मसिजीवी कायस्थ समाज के अस्त्र कलम का प्रतीक चिन्ह भूमंडल उठाये निब का सुन्दर प्रतीक चिन्ह मुझे भेंट किया गया.