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शनिवार, 2 नवंबर 2013

kavya salila: sanjiv

काव्य सलिला:
संजीव
*
कल तक थे साथ
आज जो भी साथ नहीं हैं
हम एक दिया तो
उनकी याद में जलायें मीत
सर काट शत्रु ले गए
जिनके नमन उन्हें
हँसते समय दो अश्रु
उन्हें भी चढ़ाएं मीत.
जो लुट गयी
उस अस्मिता के पोंछ ले आँसू
जो गिर गया उठा लें
गले से लगाएं मीत.
कुटिया में अँधेरा न हो
यह सोच लें पहले
झालर के पहले
दीप में बाती जलाएं मीत.
*

mahalakshyamashtak stotram Hindi kavyanuvaad: tadrin - sanjiv

 II  ॐ II

II श्री महालक्ष्यमष्टक स्तोत्र II 

( मूल पाठ-तद्रिन हिंदी काव्यानुवाद-संजीव 'सलिल' )

नमस्तेस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते I
शंख चक्र गदा हस्ते महालक्ष्मी नमोsस्तुते II१II

सुरपूजित श्रीपीठ विराजित, नमन महामाया शत-शत.
शंख चक्र कर-गदा सुशोभित, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

नमस्ते गरुड़ारूढ़े कोलासुर भयंकरी I
सर्व पापहरे देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते II२II

कोलाsसुरमर्दिनी भवानी, गरुड़ासीना नम्र नमन.
सरे पाप-ताप की हर्ता,  नमन महालक्ष्मी शत-शत..

सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्ट भयंकरी I
सर्व दु:ख हरे देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते II३II

सर्वज्ञा वरदायिनी मैया, अरि-दुष्टों को भयकारी.
सब दुःखहरनेवाली, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

सिद्धि-बुद्धिप्रदे देवी भुक्ति-मुक्ति प्रदायनी I
मन्त्रमूर्ते सदा देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते II४II

भुक्ति-मुक्तिदात्री माँ कमला, सिद्धि-बुद्धिदात्री मैया.
सदा मन्त्र में मूर्तित हो माँ, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

आद्यांतर हिते देवी आदिशक्ति महेश्वरी I
योगजे योगसंभूते महालक्ष्मी नमोsस्तुते II५II

हे महेश्वरी! आदिशक्ति हे!, अंतर्मन में बसो सदा.
योग्जनित संभूत योग से, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

स्थूल-सूक्ष्म महारौद्रे महाशक्ति महोsदरे I
महापापहरे देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते II६II

महाशक्ति हे! महोदरा हे!, महारुद्रा  सूक्ष्म-स्थूल.
महापापहारी श्री देवी, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

पद्मासनस्थिते देवी परब्रम्ह स्वरूपिणी I
परमेशीजगन्मातर्महालक्ष्मी नमोsस्तुते II७II

कमलासन पर सदा सुशोभित, परमब्रम्ह का रूप शुभे.
जगज्जननि परमेशी माता, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

श्वेताम्बरधरे देवी नानालंकारभूषिते I
जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोsस्तुते II८II

दिव्य विविध आभूषणभूषित, श्वेतवसनधारे मैया.
जग में स्थित हे जगमाता!, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

महा लक्ष्यमष्टकस्तोत्रं य: पठेद्भक्तिमान्नर: I
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यंप्राप्नोति सर्वदा II९II

जो नर पढ़ते भक्ति-भाव से, महालक्ष्मी का स्तोत्र.
पाते सुख धन राज्य सिद्धियाँ, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

एककालं पठेन्नित्यं महापाप विनाशनं I
द्विकालं य: पठेन्नित्यं धन-धान्यसमन्वित: II१०II

एक समय जो पाठ करें नित, उनके मिटते पाप सकल.
पढ़ें दो समय मिले धान्य-धन, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

त्रिकालं य: पठेन्नित्यं महाशत्रु विनाशनं I
महालक्ष्मीर्भवैन्नित्यं प्रसन्नावरदाशुभा II११II

तीन समय नित अष्टक पढ़िये, महाशत्रुओं का हो नाश.
हो प्रसन्न वर देती मैया, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

 II तद्रिन्कृत: श्री महालक्ष्यमष्टकस्तोत्रं संपूर्णं  II

तद्रिंरचित, सलिल-अनुवादित, महालक्ष्मी अष्टक पूर्ण.
नित पढ़ श्री समृद्धि यश सुख लें, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

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गुरुवार, 31 अक्टूबर 2013

ullala salila: abhiyanta -sanjiv


उल्लाला सलिला:
संजीव
*
(छंद विधान १३-१३, १३-१३, चरणान्त में यति, सम चरण सम तुकांत, पदांत एक गुरु या दो लघु)
 *
अभियंता निज सृष्टि रच, धारण करें तटस्थता।
भोग करें सब अनवरत, कैसी है भवितव्यता।।
*
मुँह न मोड़ते फ़र्ज़ से, करें कर्म की साधना।
जगत देखता है नहीं अभियंता की भावना।।
*
सूर सदृश शासन मुआ, करता अनदेखी सतत।
अभियंता योगी सदृश, कर्म करें निज अनवरत।।
*
भोगवाद हो गया है, सब जनगण को साध्य जब।
यंत्री कैसे हरिश्चंद्र, हो जी सकता कहें अब??
*
​भृत्यों पर छापा पड़े, मिलें करोड़ों रुपये तो।
कुछ हजार वेतन मिले, अभियंता को क्यों कहें?
*
नेता अफसर प्रेस भी, सदा भयादोहन करें।
गुंडे ठेकेदार तो, अभियंता क्यों ना डरें??​
*
समझौता जो ना करे, उसे तंग कर मारते।
यह कड़वी सच्चाई है, सरे आम  दुत्कारते।।
*
​हर अभियंता विवश हो, समझौते कर रहा है।
बुरे काम का दाम दे, बिन मारे मर रहा है।।
*
मिले निलम्बन-ट्रान्सफर, सख्ती से ले काम तो।
कोई न यंत्री का सगा, दोषारोपण सब करें।। 
*
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बुधवार, 30 अक्टूबर 2013

geet; andhera dhara par -sanjiv


गीत:
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए… 
संजीव 
*
पलो आँख में स्वप्न बनकर सदा तुम
नयन-जल में काजल कहीं बह न जाए.
जलो दीप बनकर अमावस में ऐसे
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए…
*
अपनों ने अपना सदा रंग दिखाया,
न नपनों ने नपने को दिल में बसाया.
लगन लग गयी तो अगन ही सगन को
सहन कर न पायी पलीता लगाया.
दिलवर का दिल वर लो, दिल में छिपा लो
जले दिलजले जलजले आ न पाए...
*
कुटिया ही महलों को देती उजाला
कंकर के शंकर को पूजे शिवाला.
मुट्ठी बँधी बाँधती कर्म-बंधन
खोलो न मोले तनिक काम-कंचन.
बहो, जड़ बनो मत शिलाओं सरीखे
नरमदा सपरना न मन भूल जाए...
*
सहो पीर धर धीर बनकर फकीरा
तभी हो सको सूर मीरा कबीरा.
पढ़ो ढाई आखर, नहा स्नेह-सागर
भरो फेफड़ों में सुवासित समीरा.
मगन हो गगन को निहारो, सुनाओ
'सलिल' नाद अनहद कहीं खो जाए...
*
सगन = शगुन, जलजला = भूकंप, नरमदा = नर्मदा, सपरना = स्नान करना
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मंगलवार, 29 अक्टूबर 2013

tribhangi chhand - sanjiv

​त्रिभंगी सलिला:
हम हैं अभियंता
संजीव
*
(छंद विधान: १० ८ ८ ६ = ३२  x ४)
*
हम हैं अभियंता नीति नियंता, अपना देश सँवारेंगे
हर संकट हर हर मंज़िल वरकर, सबका भाग्य निखारेंगे
पथ की बाधाएँ दूर हटाएँ, खुद को सब पर वारेंगे
भारत माँ पावन जन मन भावन, सीकर चरण पखारेंगे
*
अभियंता मिलकर आगे चलकर, पथ दिखलायें जग देखे
कंकर को शंकर कर दें हँसकर मंज़िल पाएं कर लेखे
शशि-मंगल छूलें, धरा न भूलें, दर्द दीन का हरना है
आँसू न बहायें , जन-गण गाये, पंथ वही तो वरना है
*
श्रम-स्वेद बहाकर, लगन लगाकर, स्वप्न सभी साकार करें
गणना कर परखें, पुनि-पुनि निरखें, त्रुटि न तनिक भी कहीं वरें
उपकरण जुटायें, यंत्र बनायें, नव तकनीक चुनें न रुकें
आधुनिक प्रविधियाँ, मनहर छवियाँ,  उन्नत देश करें न चुकें
*
नव कथा लिखेंगे, पग न थकेंगे, हाथ करेंगे काम काम सदा
किस्मत बदलेंगे, नभ छू लेंगे, पर न कहेंगे 'यही बदा'
प्रभु भू पर आयें, हाथ बटायें, अभियंता संग-साथ रहें
श्रम की जयगाथा, उन्नत माथा, सत नारायण कथा कहें
================================
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in
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​​
'salil'

vimarsh: rough- fair -S.N.Sharma 'kamal' -sanjiv

विमर्श :
आ० आचार्य जी , निम्नलिखित वाक्य में रफ और फेयर के लिए हिंदी के शब्द क्या होंगे ?
यह रफ लिखा है इसे फेयर करना है "
यह प्राथमिक/प्रारंभिक लिखा है, अंतिम रूप देना है.
रफ-फेयर के लिए कच्चा-पक्का का उपयोग मुझे कम रुचता है
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harigitika: abhiyantriki -sanjiv

हरिगीतिका सलिला
संजीव
*
(छंद विधान: १ १ २ १ २ x ४, पदांत लघु गुरु, चौकल पर जगण निषिद्ध, तुक दो-दो चरणों पर, यति १६-१२ या १४-१४ या ७-७-७-७ पर)
*
कण जोड़ती, तृण तोड़ती, पथ मोड़ती, अभियांत्रिकी
बढ़ती चले, चढ़ती चले, गढ़ती चले, अभियांत्रिकी
उगती रहे, पलती रहे, खिलती रहे, अभियांत्रिकी
रचती रहे, बसती रहे, सजती रहे, अभियांत्रिकी
*
नव रीत भी, नव गीत भी, संगीत भी, तकनीक है
कुछ हार है, कुछ प्यार है, कुछ जीत भी, तकनीक है
गणना नयी, रचना नयी, अव्यतीत भी, तकनीक है
श्रम मंत्र है, नव यंत्र है, सुपुनीत भी तकनीक है
*

यह देश भारत वर्ष है, इस पर हमें अभिमान है
कर दें सभी मिल देश का, निर्माण यह अभियान है
गुणयुक्त हों अभियांत्रिकी, श्रम-कोशिशों का गान है
परियोजना त्रुटिमुक्त हो, दुनिया कहे प्रतिमान है
*

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सोमवार, 28 अक्टूबर 2013

chitr par kavita: kundali -sanjiv


चित्र पर कविता: कुंडली
प्रथम पेट पूजा करें
संजीव

तस्वीर



प्रथम पेट पूजा करें, लक्ष्मी-पूजन बाद
मुँह में पानी आ रहा, सोच मिले कब स्वाद
सोच मिले कब स्वाद, भोग पहले खुद खा ले
दास राम का अधिक, राम से यह दिखला दे
कहे 'सलिल' कविराय, न चूकेंगे अवसर हम
बन घोटाला वीर, लगायें भोग खुद प्रथम

pratham pet pooja karen , lakshami poojan baad
munh men pani aa raha, soch mile kab swad
soch mile kab swad, bhog pahle khud khaa le
daas ram ka adhik ram se, yah dikhla de
kahe 'salil' kaviraay, n chookenge avsar hm
ban ghotala veer, lagayen bhog khud pratham
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​​

​​



झंडा ऊँचा रहे हमारा

THOUGHT OF THE DAY

aआज का विचार 

रविवार, 27 अक्टूबर 2013

sortha salila: ho n yantra ka das sanjiv

सोरठा सलिला:
हो न यंत्र का दास
संजीव
*
हो न यंत्र का दास, मानव बने समर्थ अब
रख खुद पर विश्वास, 'सलिल' यांत्रिकी हो सफल
*
गुणवत्ता से आप, करिए समझौता नहीं
रहिए सदा सतर्क, श्रेष्ठ तभी निर्माण हो
*
भूलें नहीं उसूल, कालजयी निर्माण हों
कर त्रुटियाँ उन्मूल, यंत्री नव तकनीक चुन
*
निज भाषा में पाठ, पढ़ो- कठिन भी हो सरल
होगा तब ही ठाठ, हिंदी जगवाणी बने
*
ईश्वर को दें दोष, ज्यों बिन सोचे आप हम
पाते हैं संतोष, त्यों यंत्री को कोसकर
*
जब समाज हो भ्रष्ट, कैसे अभियंता करे
कार्य न हों जो नष्ट, बचा रहे ईमान भी
*
करें कल्पना आप, करिए उनको मूर्त भी
समय न सकता नाप, यंत्री के अवदान को
*
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Sri Aadi Chitragupt Mandir, Patna, VIDEO

rook review: bujurgon ki apni duniya -sanjiv

कृति चर्चा:
जतन से ओढ़ी चदरिया: बुजुर्गों की अपनी दुनिया
चर्चाकार: संजीव
*
[कृति विवरण: जतन से ओढ़ी चदरिया, लोकोपयोगी, कृतिकार डॉ. ए. कीर्तिवर्धन, आकार डिमाई, आवरण बहुरंगी-सजिल्द, पृष्ठ २५६, मूल्य ३०० रु., मीनाक्षी प्रकाशन दिल्ली]
*
साहित्य का निकष सबके लिए हितकारी होना है. साहित्य की सर्व हितैषी किरणें वहाँ पहुँच कर प्रकाश बिखेरती हैं जहाँ स्वयं रवि-रश्मियाँ भी नहीं पहुँच पातीं. लोकोक्ति है की उगते सूरज को सभी नमन करते हैं किन्तु डूबते सूर्य से आँख चुराते हैं. संवेदनशील साहित्यकार ए. कीर्तिवर्धन ने सामान्यतः अनुपयोगी - अशक्त  मानकर  उपेक्षित किये जाने वाले वृद्ध जनों के भाव संसार में प्रवेश कर उनकी व्यथा कथा को न केवल समझा अपितु वृद्धों के प्रति सहानुभूति और संवेदना की भाव सलिला प्रवाहित कर अनेक रचनाकारों को उसमें अवगाहन करने के लिए प्रेरित किया. इस आलोडन से प्राप्त रचना-मणियों की भाव-माला माँ सरस्वती के श्री चरणों में अर्पित कर कृतिकार ने वार्धक्य के प्रति समूचे समाज की भावांजलि निवेदित की है.
भारत में लगभग १५ करोड़ वृद्ध जन निवास करते हैं. संयुक्त परिवार-प्रणाली का विघटन, नगरों में पलायन के फलस्वरूप आय तथा आवासीय स्थान की न्यूनता के कारण बढ़ते एकल परिवार, सुरसा के मुख की तरह बढ़ती मँहगाई के कारण कम पडती आय, खर्चीली शिक्षा तथा जीवन पद्धति, माता-पिता की वैचारिक संकीर्णता, नव पीढ़ी की संस्कारहीनता न उत्तरदायित्व से पलायन आदि कारणों ने वृद्धों के अस्ताचलगामी जीवन को अधिक कालिमामय कर दिया है. शासन- प्रशासन भी वृद्धों के प्रति अपने उत्तरदायित्व से विमुख है. अपराधियों के लिए वृद्ध सहज-सुलभ लक्ष्य हैं जिन्हें आसानी से शिकार बनाया जा सकता है. वृद्धों की असहायता तथा पीड़ा ने श्री कीर्तिवर्धन को इस सारस्वत अनुष्ठान के माध्यम से इस संवर्ग की समस्याओं को न केवल प्रकाश में लेन, उनका समाधान खोजने अपितु लेखन शक्ति के धनी साहित्यकारों को समस्या के विविध पक्षों पर सोचने-लिखने के लिए उन्मुख करने को प्रेरित किया।
विवेच्य कृति में २० पद्य रचनाएँ, ३६ गद्य रचनाएँ, कीर्तिवर्धन जी की १२ कवितायेँ तथा कई बहुमूल्य उद्धरण संकलित हैं. डॉ. कृष्णगोपाल श्रीवास्तव, डॉ. रामसेवक शुक्ल. कुंवर प्रेमिल, रमेश नीलकमल, रामसहाय वर्मा, डॉ. नीलम खरे, सूर्यदेव पाठक 'पराग', जगत नन्दन सहाय, पुष्प रघु, डॉ. शरद नारायण खरे, डॉ. कौशलेन्द्र पाण्डेय, ओमप्रकाश दार्शनिक, राना लिघौरी आदि की कलमों ने इस कृति को समृद्ध किया है.
प्रसिद्द आङ्ग्ल साहित्यकार लार्ड रोबर्ट ब्राडमिग के अनुसार 'द डार्केस्ट क्लाउड विल ब्रेक व्ही फाल टु राइज, व्ही स्लीप टु वेक'. डॉ. कीर्तिवर्धन लिखते है ' जिंदगी में अनेक मुकाम आयेंगे / हँसते-हँसते पार करना / जितने भी व्यवधान आयेंगे'. कृति के हर पृष्ठ पर पाद पंक्तियों में दिए गए प्रेरक उद्धरण पाठक को मनन-चिंतन हेतु प्रेरित करते हैं.
रचनाकारों ने छन्दमुक्त कविता, गीत, मुक्तिका, त्रिपदी (हाइकु), मुक्तक, क्षणिका, लेख, संस्मरण, कहानी, लघुकथा आदि विधाओं के माध्यम से वृद्धों की समस्याओं के उद्भव, विवेचन, उपेक्षा, निदान आदि पहलुओं की पड़ताल तथा विवेचना कर समाधान सुझाये हैं. इस कृति की सार्थकता तथा उपयोगिता वृद्ध-समस्याओं के निदान हेतु नीति-निर्धारित करनेवाले विभागों, अधिकारियों, समाजशास्त्र के प्राध्यापकों, विद्यार्थियों के साथ उन वृद्ध जनों तथा उनकी संतानों के लिए भी है. इस जनोपयोगी कृति की अस्माग्री जुटाने के लिए कृतिकार तथा इसे प्रस्तुत करने के लिए प्रकाशक धन्यवाद के पात्र हैं.
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शनिवार, 26 अक्टूबर 2013

geet: susheel guru

एक गीत
सुशील गुरु
डाँ सुशील गुरु
*
तुम सपनों का नीड़ बसाने आई वंदनवार लिए 
मैं द्वार पर खड़ा रहा गंधी पुष्पों का हार लिए 
मेरा नवजीवन प्रवेश था पावन था 
बिन बर्षा मदिर हृदय का सावन था 
मिलें गगन में तुम मुझको जल से 
निर्मल उषा जैसा अरुणिम तेरा आँचल था\ 
तुम मुझको बहलाने आई अंजलि भर भर प्यार लिए 
मैं द्वार पर खड़ा रहा गंधी पुष्पों का हार लिए 
रैन मृदुल होता है मृदुल रैन का जीवन 
तभी छितिज पर इन्द्रधनुष हो जाता है मन 
आँचल लहराकर तुमने ही राह् दिखाई 
वंधन तोड़ के अनचाहे भागा मन 
तुमने दिखलाये सपन ताज़महल आकार लिए 
मैं द्वार पर खड़ा रहा गंधी पुष्पों का हार लिए

dohe par kundali : dhananjay singh - sanjiv

​एक ​प्रयोग
दोहे पर कुंडली
धनञ्जय सिंह - संजीव
*
सूरज दस्तक दे रहा खोलो मन के द्वार 
शुभ स्वर्णिम दिनमान का ग्रहण करो उपहार
ग्रहण करो उपहार स्वेद नर्मदा नहाकर
दर्द समेटो विहँस जगत में ख़ुशी लुटाकर
'सलिल' बहे अनवरत करे पत्थर को भी रज

अन्धकार हो सघन निकलता तब ही सूरज

tripadiyan (haiku) sanjiv

त्रिपदियाँ
संजीव
*
परियोजना
अंकुरित पल्लव
लेते आकार.
*
है अभियंता
ब्रम्ह का प्रतिनिधि
भाग्यनियंता
*
बन सकता
कंकर भी शंकर
जड़-चेतन
*
कर प्रयास
श्रम-सीकर बहा
होगा हुलास
*
परिकल्पना
पर्याप्त नहीं, कर
ले संकल्पना
*
तिनके जोड़े
गिरें तब भी पंछी
आस न छोड़े
*
लेता आकार
शिशु और निर्माण
स्वप्न साकार
*
मिटने हेतु
किनारों की दूरियाँ
बनाओ सेतु
*
बना बिजली
जल, लेकिन मत
गिरा बिजली
*
जल अथाह
बाँध लेता है बाँध
भरे न आह
*
हम हैं सिर्फ
प्रस्तोता, दूर कहीं
रचनाकार
*
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शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2013

kavita: paridhiheen pyaar -sanjiv


एक प्रयोग:
परिधिहीन है प्यार
संजीव
*
परिधिहीन है प्यार हमारा
चक्रव्यूह है चाह हमारी
सीधी रेखा मेहनत का पथ
वर्तुल-विषमय डाह बिचारी
वक्र लकीरें करतल अंकित
त्रिभुज चतुर्भुज वक्र चाप भी
व्यास-आस है लक्ष्य बिंदु सा
कर्ण-वृत्त वरदान, शाप भी
अंक अंक में गुणित वर्ग घन
धन ऋण ऋण का हुआ गुणनफल 
धन धन मिल ऋण कभी न होता
गुणा-भाग विपरीत चलन चल 
भिन्न विभिन्न अभिन्न बूझना
सरल नहीं है, कठिन न मानो
प्रतिषत समय काम दूरी से
सजग रहो अति निकट न जानो
चलनकलन के समीकरण भी
खेल रहे हैं आँख मिचौली
बनते-मिटते रहे समुच्चय
हेरें चुप अमराई-निम्बोली
अंक बीज रेखाओं की तिथि
हर कपाल पर होती अंकित
भाग्यविधाता पग-पग पग रख
मंजिल करता पथ पर टंकित
=================
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history says: mortyre bhagat singh

अतीत के पृष्ठों से

शहीदे आज़म सरदार भगत सिंह का मृत्यु प्रमाणपत्र

फांसी के बाद शव को एक घंटे तक लटकाए रहे गोरे अधिकारी





Photo: Bhagat Singh, Death Certificate

shatpadi: vishdhar ki abhiram chhvi -sanjiv

एक षटपदी
विषधर की अभिराम छवि
संजीव
*
Photo: California Red-Sided Garter Snake.

विषधर की अभिराम छवि देख हुए हैरान
ज्यों नेता इस देश के दिखें न--- हैं शैतान
दिखें न हैं शैतान मोहकर जनगण का मन
संसद में जन सेवा का करते हैं मंचन
घपला करने का न चूकते अफसर अवसर
शासन और प्रशासन ही हैं असली विषधर
***

प्रविष्टियाँ आमंत्रित डॉ. महाराज कृष्ण जैन स्मृति सम्मान

प्रविष्टियाँ आमंत्रित
डॉ. महाराज कृष्ण जैन स्मृति सम्मान

कहानी लेखन महाविद्यालय एवं शुभ तारिका माविक पत्रिका अंबाला छावनी के संस्थापक डॉ. महाराज कृष्ण जैन की १३ वीं  पुण्य तिथि के अवसर पर पूर्वोत्तर हिंदी अकादमी द्वारा आगामी 23 मई से 25 मई तक आयोजित राष्ट्रीय हिंदी विकास सम्मलेन एवं पर्यटन शिविर के अवसर पर डॉ. महाराज कृष्ण जैन स्मृति सम्मान 51] श्री केशवदेव गिनया देवी बजाज स्मृति सम्मान(2] श्री जीवनराम मुंगी देवी गोयनका स्मृति सम्मान 2 हेतु लेखक--कवि तथा हिंदी के क्षेत्र में कार्य करनेवाले कर्मचारी अधिकारी] समाजसेवी] पर्यटन के इच्छुक नागरिकों से उनके योगदान का विवरण] पूरा पता] प्रकाशित पुस्तक की एक प्रति] ३ रचनाओं की कटिंग]डाक से किसी कूरियर से नहीं]  एवं पंजीकरण शुल्क १०० रु- मनीऑर्डर द्वारा आगामी 11 जनवरी 2014 तक सचिव पूर्वोत्तर हिंदी अकादमी पो. रिन्जा शिलांग 793006 (मेघालय के पते पर आमंत्रित है- अधिक जानकारी के लिए मोबाइल पर संपर्क करें 09436117260] 09774286215] 09862201449  
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