कुल पेज दृश्य

मंगलवार, 15 अक्टूबर 2013

kavita: Court Marshal kiska? Ajay Vir

विचारोत्तेजक रचना
 कोर्ट मार्शल किसका ???
- रमेश चहल
*
आर्मी कोर्ट रूम में आज एक केस अनोखा अड़ा था
छाती तान अफसरों के आगे फौजी बलवान खड़ा था

बिन हुक्म बलवान तूने ये कदम कैसे उठा लिया? 
किससे पूछ उस रात तू दुश्मन की सीमा में जा लिया? 

बलवान बोला: 'सर जी ! ये बताओ कि वो किस से पूछ के आये थे
सोये फौजियों के सिर काटने का फरमान, कौनसे बाप से लाये थे?'..

बलवान का जवाब में सवाल दागना अफसरों को पसंद नही आया..
और बीच वाले अफसर ने लिखने के लिए जल्दी से पेन उठाया..

एक बोला: 'बलवान हमें ऊपर जवाब देना है..
और तेरे काटे हुए सिर का पूरा हिसाब देना है..

तेरी इस करतूत ने हमारी नाक कटवा दी..
अंतरास्ट्रीय बिरादरी में तूने थू थू करवा दी'..

बलवान खून का कड़वा घूंट पी के रह गया..
आँख में आया आंसू भीतर को ही बह गया..

बोला: 'साहब जी! अगर कोई आपकी माँ की इज्जत लूटता हो
आपकी बहन बेटी या पत्नी को सरेआम मारता कूटता हो..
तो आप पहले अपने बाप का हुकमनामा लाओगे??
या फिर अपने घर की लुटती इज्जत खुद बचाओगे??' 

अफसर नीचे झाँकने लगा
एक ही जगह पर ताकने लगा!!

बलवान बोला: 'साहब जी ! गाँव का ग्वार हूँ बस इतना जानता हूँ
कौन कहाँ है देश का दुश्मन सरहद पे? खड़ा खड़ा पहचानता हूँ..

सीधा सा आदमी हूँ साहब ! मै कोई आंधी नहीं हूँ
थप्पड़ खा गाल आगे कर दूँ मै वो गांधी नहीं हूँ!!

अगर सरहद पे खड़े होकर गोली न चलाने की मुनादी है
तो फिर साहब जी ! माफ़ करना ये काहे की आजादी है

सुनों साहब जी..सरहद पे जब जब भी छिड़ी लडाई है..
भारत माँ दुश्मन से नही आप जैसों से हारती आई है..

वोटों की राजनीति साहब जी लोकतंत्र का मैल है..
और भारतीय सेना इस राजनीति की रखैल है..

ये क्या हुकम देंगे हमें जो खुद ही भिखारी हैं..
किन्नर है सारे के सारे न कोई नर है न नारी है..

ज्यादा कुछ कहूँ तो साहब जी..दोनों हाथ जोड़ के माफ़ी है
दुश्मन का पेशाब निकालने को तो हमारी आँख ही काफी है..

और साहब जी एक बात बताओ..
वर्तमान से थोडा सा पीछे जाओ..

कारगिल में जब मैंने अपना पंजाब वाला यार जसवंत खोया था
आप गवाह हो साहब जी उस वक्त मैं बिल्कुल भी नहीं रोया था..

खुद उसके शरीर को उसके गाँव जाकर मै उतार कर आया था..
उसके दोनों बच्चों के सिर साहब जी मै पुचकार कर आया था..

पर उस दिन रोया मैं जब उसकी घरवाली होंसला छोड़ती दिखी..
और लघु सचिवालय में वो चपरासी के हाथ-पांव जोड़ती दिखी..

आग लग गयी साहब जी दिल किया कि सबके छक्के छुड़ा दूँ
चपरासी और उस चरित्रहीन अफसर को मैं गोली से उड़ा दूँ..

एक लाख की आस में भाभी आज भी धक्के खाती है..
दो मासूमों की चमड़ी धूप में यूँही झुलसी जाती है..

और साहब जी.. शहीद जोगिन्दर को तो नहीं भूले होंगे आप
घर में जवान बहन थी जिसकी और अँधा था जिसका बाप


अब बाप हर रोज लड़की को कमरे में बंद करके आता है..
और स्टेशन पर एक रूपये के लिए जोर से चिल्लाता है..

पता नहीं कितने जोगिन्दर जसवंत यूँ अपनी जान गवांते हैं..
और उनके परिजन मासूम बच्चे यूँ दर दर की ठोकरें खाते हैं.. '

भरे गले से तीसरा अफसर बोला: 'बात को और ज्यादा न बढाओ..
उस रात क्या- क्या हुआ था.. बस यही अपनी सफाई में बताओ..' 

भरी आँखों से हँसते हुए बलवान बोलने लगा..
उसका हर बोल सबके कलेजों को छोलने लगा..

'साहब जी...उस हमले की रात
हमने सन्देश भेजे लगातार सात

हर बार की तरह कोई जवाब नही आया..
दो जवान मारे गए पर कोई हिसाब नही आया..

चौंकी पे जमे जवान लगातार गोलीबारी में मारे जा रहे थे..
और हम दुश्मन से नहीं अपने हेडक्वार्टर से हारे जा रहे थे..

फिर दुश्मन के हाथ में कटार देख मेरा सिर चकरा गया..
गुरमेल का कटा हुआ सिर जब दुश्मन के हाथ में आ गया..

फेंक दिया ट्रांसमीटर मैंने और कुछ भी सूझ नहीं आई थी
बिन आदेश के पहली मर्तबा सर...मैंने बन्दूक उठाई थी..

गुरमेल का सिर लिए दुश्मन रेखा पार कर गया
पीछे पीछे मै भी अपने पांव उसकी धरती पे धर गया

पर वापिस हार का मुँह देख के न आया हूँ
वो एक काट कर ले गए थे मै दो काटकर लाया हूँ' 

इस ब्यान का कोर्ट में न जाने कैसा असर गया
पूरे ही कमरे में एक सन्नाटा सा पसर गया

पूरे का पूरा माहौल बस एक ही सवाल में खो रहा था
कि कोर्ट मार्शल फौजी का था या पूरे देश का हो रहा था????????

------------------===========------------------- 
Ajai Vir <ajaivir@hotmail.com>

सोमवार, 14 अक्टूबर 2013

doha-kundali : dr. gopal rajgopal-sanjiv

दोहे पर कुंडली:
दोहा : डॉ. गोपाल राजगोपाल, रोला: संजीव 'सलिल'
“क्यों कातिल की खोज में,दुबले होते आप
करली होगी खुदकुशी , मैंने ही चुपचाप”
मैंने ही चुपचाप देख करतूत संत की
भोग बना शुरुआत संत के पतित अंत की
कहे 'सलिल' गो पाल पलते कान्हा थे ज्यों
लालू और मुलायम भूले गोपालन क्यों?
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'

रविवार, 13 अक्टूबर 2013

muktak salila : salil

मुक्तक सलिला :
संजीव
*
दर्द ही हमसे डरेगा, हम डरें क्यों?
हरण चैनो-अमन का हम ही करें क्यों?
पीर-पाहुन चंद दिन का अतिथि स्वागत-
फूल-फल चुप छाँह दें, नाहक झरें क्यों?
*
ढाई आखर लिखे तेरे नाम मीता 
बाँचते हैं ह्रदय की शत बार गीता 
मेघ हैं हम तृषा हरते सकल जग की-
भरे जब-जब कोष करते 'सलिल' रीता
*
कौन हैं? आये कहाँ से?, कहाँ जाएं?
संग हो कब-कौन? किसको कहाँ पाएं?
प्रश्न हैं पाथेय, पग-पग साथ देंगे-
उत्तरों का पता बढ़कर पूछ आयें।।
*
ज्ञान को अभिमान खुद पर, जानता है 
नव सृजन की शक्ति कब पहचानता है
लीक से हटकर रचे कुछ कलम जब जब-
उठा पत्थर तीर सम संधानता है
*
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'

geet : vedna par -sanjiv

गीत:
वेदना पर.…
संजीव
*
वेदना पर चेतना की जीत होगी
जिंदगी तब ही मधुर संगीत होगी…
*
दर्द है सौभाग्य यदि हँस झेल पाओ
पीर है उपहार यदि हँस खेल पाओ
निकष जीवट का कठिन तूफ़ान होता-
है सुअवसर यदि उसे हँस ठेल पाओ
विरह-पल में साथ जब-जब प्रीत होगी
वेदना पर चेतना की जीत होगी
जिंदगी तब ही मधुर संगीत होगी…
*
कशिश कोशिश की कहेगी कथा कोई
हौसला हो हमकदम-हमराज कोई
रति रमकती रात रानी रंग-रसमय
रास थामे रास रचती रीत कोई 
रातरानी श्वास का संगीत होगी
वेदना पर चेतना की जीत होगी
जिंदगी तब ही मधुर संगीत होगी…
*
स्वेद-सीकर से सुवासित संगिनी सम
स्नेह-सलिला नर्मदा सद्भाव संगम
सियाही पर सिपाही सम सीध साधे-
सीर-सीता सुयोगित सोपान अनुपम
सभ्यता सुदृढ़ सफल संनीत होगी
वेदना पर चेतना की जीत होगी
जिंदगी तब ही मधुर संगीत होगी…
*
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'

शनिवार, 12 अक्टूबर 2013

muktak salila: sanjiv

मुक्तक सलिला

संजीव
 ०

बढ़ो रुके बिन पादानों पर बढ़ो कि मंजिल पाना है
चढ़ो थके बिन सोपानों पर चढ़ो कि ध्वज लहराना है
लड़ो हटे बिन बाधाओं से लड़ो कि सच दोहराना है
गड़ो शत्रु-आँखों में हरदम गड़ो कि उसे मिटाना है  
० 

गुरुवार, 10 अक्टूबर 2013

doha salila: shat vandan -sanjiv

​दोहा सलिला :
शत वंदन…
संजीव
*
शत वंदन मैया सजा, अद्भुत रूप अनूप
पूनम का राकेश हँस, निरखे रूप अरूप
सलिल-धार बरसा रहे, दर्शन कर घन श्याम
किये नीरजा ने सभी, कमल तुम्हारे नाम
मृदुल कीर्ति का कर रहीं, शार्दूला गुणगान
प्रतिभा अनुपम दिव्य तव, सकता कौन बखान
कुसुम किरण जिस चमन में, करती शर संधान
वहाँ बहार न लुट सके, मधुकर करते गान
मैया भारत भूमि को, ऐसे दें महिपाल
श्री प्रकाश से दीप्त हो, जिनका उन्नत भाल
कर महेश की वंदना, मिले अचल आनंद
ॐ प्रकाश निहारिये, रचकर सुमधुर छंद
प्रणव नाद कर भारती से पायें आशीष
सीता-राम सदय रहें, कृपा करें जगदीश
कंकर-कंकर में बसे, असित अजित अमरीश
धूप-छाँव सुख-दुःख तुम्हीं, श्वेत-श्याम अवनीश
ललित लास्य तुम हास्य तुम, रुदन तुम्हीं हो मौन
कहाँ न तुम?, क्या तुम नहीं? कह सकता है कौन?
रहा ज्ञान पर बुद्धि का, अंकुश प्रति पल नाथ
प्रभु-प्रताप से छंद रच, धन्य कलम ले हाथ
प्रभु सज्जन अमिताभ की, किरण छुए आकाश
नव दुर्गा को नमन कर, पाये दिव्य-प्रकाश
स्नेह-सलिल का आचमन, हरता सकल विकार
कलकल छलछल निनादित, नेह नर्मदा धार 
------------------------------------------------
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil

बुधवार, 9 अक्टूबर 2013

narmada stuti - sanjiv

माँ (नर्मदा स्तुति

संजीव
*
शिवतनया सतपुड़ा-विन्ध्य की बहिना सुगढ़ सलौनी
गोद अमरकंटक की खेलीं, उछल-कूद मृग-छौनी
डिंडोरी में शैशव, मंडला में बचपन मुस्काया
अठखेली कैशोर्य करे, संयम कब मन को भाया?
गौरीघाट किया तप, भेड़ाघाट छलांग लगाई-
रूप देखकर संगमरमरी शिला सिहर सँकुचाई

कलकल धार निनादित हरती थकन, ताप पल भर में
सांकल घाट पधारे शंकर, धारण जागृत करने
पापमुक्त कर ब्रम्हा को ब्रम्हांड घाट में मैया
चली नर्मदापुरम तवा को किया समाहित कैंया
ओंकारेश्वर को पावन कर शूलपाणी को तारा
सोमनाथपूजक सागर ने जल्दी आओ तुम्हें पुकारा
जीवन दे गुर्जर प्रदेश को उत्तर गंग कहायीं
जेठी को करने प्रणाम माँ गंगा तुम तक आयीं
त्रिपुर बसे-उजड़े शिव का वात्सल्य-क्रोध अवलोका
बाणासुर-दशशीश लड़े चुप रहीं न पल भर टोका
अहंकार कर विन्ध्य उठा, जन-पथ रोका-पछताया
ऋषि अगस्त्य ने कद बौनाकर पल में मान घटाया
वनवासी सिय-राम तुम्हारा आशिष ले बढ़ पाये
कृष्ण और पांडव तव तट पर बार-बार थे आये
परशुराम, भृगु, जाबाली, वाल्मीक हुए आशीषित
मंडन मिश्र-भारती गृह में शुक-मैना भी शिक्षित
गौरव-गरिमा अजब-अनूठी जो जाने तर जाए
मैया जगततारिणी भव से पल में पार लगाए
कर जोड़े 'संजीव' प्रार्थना करे गोद में लेना
मृण्मय तन को निज आँचल में शरण अंत में देना
======
facebook: sahiyta salila / sanjiv ver

kavya salila: aaiye kavita rachen -sanjiv

काव्य सलिला :
आइये! कविता रचें
संजीव
*
आइये! कविता रचें, मिल बात मन की हम कहें
भाव-रस की नर्मदा में सतत अवगाहन करें.
कथ्य निखरे प्रतीकों से, बिम्ब के हों नव वसन.
अलंकारों से सुसज्जित रहे कविता का कथन.
छंद-लय, गति-यति नियंत्रण शब्द सम्यक अर्थमय.
जो कहे मन वह लिखें पांडित्य का कुछ हो न भय.
ब्रम्ह अक्षर की निरंतर कर सकें आराधना.
सदय माँ शारद रहें सुत पर यही है कामना.
साधना नव सृजन की आसां नहीं, बाधा अगिन.
कभी आहत मन, कभी तन सम न होते सभी दिन.
राम जिस विधि जब रखें उपकार प्रभु का मानकर-
'सलिल' प्रक्षालन करे पग-पंक झुक-हठ ठानकर.
शीश पर छिडकें करे शीतल हरे भव ताप भी.
पैर पटकें पंक छोड़े सहज धब्बे-दाग भी.
हाथ में ले आचमन करिए मिटाए प्यास भी.
करें जैसा भरें वैसा कुछ रुदन कुछ हास भी.
======

kali stuti - kusum thakur

स्तुति

भय हरण कालिका

-कुसुम ठाकुर-

जय जय जग जननि देवी
सुर नर मुनि असुर सेवी
भुक्ति मुक्ति दायिनी भय हरण कालिका।
जय जय जग जननि देवी।

मुंडमाल तिलक भाल
शोणित मुख लगे विशाल
श्याम वर्ण शोभित, भय हरण कालिका।
जय जय जग जननि देवी ।

हर लो तुम सारे क्लेश
मांगूं नित कह अशेष
आयी शरणों में तेरी, भय हरण कालिका ।
जय जय जग जननि देवी ।

माँ मैं तो गई हूँ हारी
माँगूं कबसे विचारी
करो अब तो उद्धार तुम, भय हरण कालिका ।
जय जय जग जननि देवी ।

मंगलवार, 8 अक्टूबर 2013

doha salia : sanjiv

दोहा सलिला :
एक दोहा यमक का
संजीव
*
कल-कल करते कल हुए, कल न हो सका आज
विकल मनुज बेअकल खो कल, सहता कल-राज
कल = आगामी दिन, अतीत, शांति, यंत्र
कल करूंगा, कल करूंगा अर्थात आज का काम पर कल (अगला दिन) पर टालते हुए व्यक्ति खुद चल बसा (अतीत हो गया) किन्तु आज नहीं आया. बुद्धिहीन मनुष्य शांति खोकर व्याकुल होकर यंत्रों का राज्य सह रहा है अर्थात यंत्रों के अधीन हो गया है.

facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'

stuti: maa ambike.... -sanjiv

शक्ति पर्व पर स्तुति:
माँ अम्बिके…
संजीव
*
माँ अम्बिके जगदंबिके करिए कृपा दुःख-दर्द हर
ज्योतित रहे मन-प्राण मैया दीजिए सुख-शांति भर

दीपक जला वैराग का तम दूर मन से कीजिए
सन्तान हम आये शरण में शांति-सुख दे दीजिए

आगार हो मन भक्ति का अनुरक्ति का सदयुक्ति का
सद्पथ दिखा संसार सागर से तरण भव-मुक्ति का

अन्याय-अत्याचार से हम लड़ सकें संघर्ष कर

आपद-विपद को जीत आगे बढ़ सकें उत्कर्ष कर

संकट घिरा है, देश-भाषा चाहती उद्धार हो
दम तोडते विश्वास-आशा कर दया माँ तार दो

भोगी असुर-सुर बैठ सत्ता पर करें अन्याय शत
रिश्वत-घुटाले रोज अनगिन करें, करना माफ़ मत

सरहद सुरक्षित है नहीं, आतंकवादी सर चढ़े
बैठ संसद में उचक्के, स्वार्थ साधें नकचढ़े

बाँध पाती आँख पर, मंडी लगाये न्याय की
चिंता है वकीलों को, हो रहे अन्याय की

वनराजवाहिनी! मार डाले शेर हमने कर क्षमा
वन काट डाले, ग्राम तज मन शहर में भटका-रमा

कोंक्रीट के जंगल उगाकर, कैद खुद ही हो गए
परिवार का सुख नष्टकर, दुःख-बीज हमने बो दिए

अश्लीलता प्रिय, नग्नता ही हो रही आराध्य है
शुचिता नहीं सम्पन्नता ही अब हमारा साध्य है

बाज़ार दुनिया का बड़ा बन बेचते निज अस्मिता
आदर्श की हम जलाते निज हाथ से हँसकर चिता

उपदेश देने में निपुण पर आचरण से हीन हैं
संपन्न नेता हो रहे पर देशवासी दीन हैं

उठ-जागकर माँ हमें दो कुछ दंड, थोडा प्यार दो
सत्पथ दिखाओ माँ हमें, संत्रास हरकर तार दो

जय भारती की हो सकल जग में सपन साकार हो
भारत बने सिरमौर गौरव का न पारावार हो

रिपुमर्दिनी संबल हमें दो, रच सकें इतिहास नव
हो साधना सच की सफल, 'संजीव' चाहे हास नव
*
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in




सोमवार, 7 अक्टूबर 2013

namai devi narnade - Lavnya Shah

नमामि देवी नर्मदे


लावण्या
नर्मदा, नदी पवित्रता, उपयोगिता और भारतीय सँस्कारोँ की नदी है - महायोगी श्री मोटाभाई जी जो बाल - ब्रह्माचारी थे, उन्होँने नर्मदा तट पर प्रखर साधना की थी  पुराण कालसे नर्मदा का आँचल, तपस्वीयोँ की , योगियोँ की, तपोभूमि रही है  मोटाभाई की पवित्र वाणी मेँ उनकी साधना से जुडे कुछ क्षणोँ के बारे मेँ सुनिये ~~
" नर्मदा का पवित्र जल बडा मीठा हुआ करता था उन दिनोँ !  परँतु, " मीठा" मैँ उस जल को महज भक्ति या आदर से ही नहीँ कह रहा हूँ -ऐसा था कि उस समय मेँ ,जब मैँने नर्मदा माई की गोद मेँ मेरी तपस्या शुरु की थी  उस समय नदी के आसपास बडा घना जँगल हुआ करता था ! 
विशाल , हरेभरे घटादार वृक्ष जैसे जाम्बु और आँवला इत्यादि बडी सँख्या मेँ पाये जाते थे।  इन पर मधु मख्कीयोँ के बृहदाकार छत्त्ते टँगे रहते थे जिन से रीस रीस कर कई सारा मधु, नर्मदा के जल मेँ घुलमिल जाता था ! हम, मैँ और मुझ जैसे अन्य तपस्वी , सूर्य उपासना करने जल मेँ पैठते थे  व जल को मुँह मेँ ले कर पीते थे वह जल बडा ही शीतल और मधुर हुआ करता था - - ताजे मधु के मिश्रण से मीठा जल हमेँ बडी तृप्ति देता था !  सँजीवनी की तरह जीवन दान देता हुआ, शरीर को नई उर्जा देता हुआ! "
श्री मोटाभाई ९० वर्ष तक जीवित रहे - मुझे सौभाग्यवश उनका सानिन्ध्य उनके जीवन के पिछले वर्षोँ मेँ मिला चूँकि वे बम्बई शहर के, पूर्व विले पार्ला उप नगर मेँ अपने फ्लेट मेँ रहे - उन्हेँ नर्मदा नदी की याद, तब भी आती रही ! वह मीठा -मधुर शीतल जल उन्हेँ बारबार याद आता रहा - बडे दु:खके साथ वे कहा करते थे कि, " अगर पर्यावरण के दूषण स्वरुप वे पुराने पेडोँ को काट दिया गया हो  तब तो वे मधु मख्कीयोँ के छत्ते भी गए तब मेरी नर्मदा माई का जल पहले जैसा मीठा कैसे रहा होगा ? "
पूज्य मोटाभाई का यह कथन, यह सत्य , जो स्वयम पर प्रमाणित हुआ था , हमेँ आस्चर्य मेँ डाल सकता है -- आधुनिक भारत मेँ कई बडे बदलाव आये हैँ  हमारी मातृभूमि का स्वरुप काल के प्रवाह के साथ कई प्रकार से बदल चुका है -- उसी तरह, नदीयाँ और उनके बहाव व तटोँ मे अभूतपूर्व परिवर्तन हुए हैँ - वर्तमान भारत मेँ, " नर्मदा बचाओ आँदोलन " ने फिर एकबार "नर्मदा" नदी पर लोगोँ का ध्यान केँद्रीत कर दिया है -- मध्य भारत की , गँगा, यमुना के बाद, नर्मदा, ही सबसे ज्यादह पूजनीय नदी है -- कहा जाता है कि, नर्मदा " कन्या - कुमारीका नदी " हैँ जबकि, गँगा मैया " सदा सुहागिन नदी " हैँ !
इतिहास साक्षी रहा है नदीयोँ के आसपास के इलाकोँ का कि किस तरह प्राचीन सभ्यताओँ का ग्राम्य व नगरोँ मेँ परिवर्तन होना नदी तट पर ही सँभव हुआ है जल की सुविधा, भूमि का बाहुल्य, नदीओँ के समीप आबादी के बसने मेँ सहायक सिध्ध हुए नदी की सँपदा से ही कायमी पडाव मनुष्य की सभ्यता के सोपान बने युप्फेटीस] टाएग्रीस,] नदीने मेसोपोटेमीया की सभ्यता रखी- याँग काई शेक व सीक्याँग नदीयोँ के तटोँ पर चीन की सभ्यता पनपी और भारत की सिँधु नदी ने सिँधु घाटी की सभ्यता की नीँव रखी थी नाइल नदी ने उसी तरह, प्राचीन इजिप्त की सँस्कृति व सभ्यता के सुमन खिलाये थे गँगा यमुना व इन नदीयोँ की सहभागी धाराओँ ने, उत्तर भारत को सदीयोँसे सीँचा है अपने जल से जीवित रखा हुआ है उत्तराखँडॅ आज भी आबाद है ये सारे उदाहरण ही हमसे नदीयोँ को  " सँस्कृति और सभ्यता की जननी " की उपमा दीलवाते हैँ --  उन्हीँ के प्राणदायी जल से मनुष्य प्रगति की गाथा के आध्याय लिखे गये हैँ और आगे भी, लिखे जायेँगे - नदी सभ्यता रुपी शिशु को गोद मेँ लिये दुलार करती हुई " माँ " स्वरुप हैँ -जो बात हम अन्य वैश्विक स्तर की नदीयोँ के बारे मेँ कह रहे हैँ वही नर्मदा नदी पर भी लागू होती है -नर्मदा नदी के किनारोँ पर बसे लोगोँ के लिये वे " लोक -माता" हैँ इतना ही नहीँ वे " परा ~ शक्ति, जगदम्बा स्वरुपिणी" हैँ जो विश्वमाता स्वरुपा भी हैँ -इस वर्तमान समय मेँ कच्छ समूचा गुजरात नर्मदा की पावन जल धारा का अमृतदायी ज अपनी भूमि की प्यास बुझाने हेतु चाहता है नर्मदा के आशीर्वाद के बिना इन प्राँतोँ का उत्कर्ष और खुशहाली असँभव जान पडते हैँ -इतिहास साक्षी रहा है नदीयोँ के आसपास के इलाकोँ का कि किस तरह प्राचीन सभ्यताओँ का ग्राम्य व नगरोँ मेँ परिवर्तन होना नदी तट पर ही सँभव हुआ है जल की सुविधा, भूमि का बाहुल्य, नदीओँ के समीप आबादी के बसने मेँ सहायक सिध्ध हुए नदी की सँपदा से ही कायमी पडाव मनुष्य की सभ्यता के सोपान बने युप्फेटीस टाएग्रीस नदी ने मेसोपोटेमीया की सभ्यता रखी याँग काई शेक व सीक्याँग नदीयोँ के तटोँ पर चीन की सभ्यता पनपी और भारत की सिँधु नदी ने सिँधु घाटी की सभ्यता की नीँव रखी थी नाइल नदी ने उसी तरह, प्राचीन इजिप्त की सँस्कृति व सभ्यता के सुमन खिलाये थे -
गँगा यमुना व इन नदीयोँ की सहभागी धाराओँ ने, उत्तर भारत को सदीयोँसे सीँचा है अपने जल से जीवित रखा हुआ है -उत्तराखँडॅ आज भी आबाद है ये सारे उदाहरण ही हमसे नदीयोँ को सँस्कृति और सभ्यता की जननी " की उपमा दीलवाते हैँ - उन्हीँ के प्राणदायी जल से मनुष्य प्रगति की गाथा के आध्याय लिखे गये हैँ और आगे भी, लिखे जायेँगे नदी सभ्यता रुपी शिशु को गोद मेँ लिये दुलार करती हुई " माँ " स्वरुप हैँ -- जो बात हम अन्य वैश्विक स्तर की नदीयोँ के बारे मेँ कह रहे हैँ वही नर्मदा नदी पर भी लागू होती है -नर्मदा नदी के किनारोँ पर बसे लोगोँ के लिये वे " लोक -मात हैँ इतना ही नहीँ वे परा ~ शक्ति, जगदम्बा स्वरुपिणी" हैँ जो कि " विश्वमाता स्वरुपा" भी हैँ -इस वर्तमान समय मेँ, कच्छ, समूचा गुजरात नर्मदा की पावन जल धारा का अमृतदायी जल अपनी भूमि की प्यास बुझाने हेतु चाहता है नर्मदा के आशीर्वाद के बिना इन प्राँतोँ का उत्कर्ष और खुशहाली असँभव जान पडते हैँ --
 
भारत मेँ एक यह भी रीवाज है कि, पावन नदीयोँ की परिक्रमा की जाये ! 
मनमेँ प्रार्थना लिये, हाथ जोडे, प्रणाम करते हुए, अगर भक्ति भाव सहित, 
नदी की परिक्रमा की जाये तब नर्मदा माई आपकी इच्छाओँ को पूरी करेँगी ऐसी लोक मान्यता है --
" निर्धन को मिले धन,
बांझ को मिले बालक,
अँधे को मिले दर्शन,
नास्तिक को मिले भक्ति, टूटे
सारे बँधन, नर्मदे हर ! नर्मदे हर! "
जिस भूमि पर नर्मदा की पावन धारा बहती है वह तपनिष्ठ भूमि है - 
भक्तोँ की मान्यता है कि, यमुना नदी के जल के ७ दिन समीप रहने के बाद, 
उसका जल पीते रहने के बाद, पूजा करने के बाद ,सरस्वती नदी के जल का प्रभाव 
३ दिन के बाद, गँगाजी के जल को स्नान कर, डूबकी लगाने के बाद मनुष्य के
 इकत्रित हुए पापोँ को धो देता है परँतु नर्मदा ऐसी पावन नदी है कि,
जिसके बस दर्शन करते ही वो इन्सान के पाप धो देतीँ हैँ !
दोनों ही किनारे ये पावनकारी क्षमता रखते हैँ !
जिन ऋषियोँ ने नर्मदा नदी के समीप तपस्या की , जप तप व यज्न्ज कीये उनकी सूची बडी लँबी है 
- कुछ नाम प्रमुख हैँ - जैसे, कि, इन्द्र, वरुण, कुबेर, व्यास, सनत कुमार, अत्रि ऋषि, 
नचिकेता, भृगु महाराज, च्यवन, पिप्पलाद`, वशिष्ठ, ऋअषि, भर्द्वाज ऋअषि, कश्यप,
 गौतम, याज्ञवल्क्य,मार्केण्देय, शुकदेव, राजा पुरुरवा, नृपति मान्धाता, हीरण्यरेति, श्रीरँग अवधूत इत्यादी
नर्मदा क्षेत्र के तीर्थ स्थान :

उत्तर दिशा मेँ स्थित यात्रा के स्थलोँ की सूची इस प्रकार है --
१) परशुराम - हरी धाम २) भड भूतेश्वर, ३) भरुच,४) शुक्ल तीर्थ,५) शिमोर,६) बडा कोरल 
७) नारेश्वर जो श्री रँग अवधूत जी का आश्रम स्थल है ८) माल्सार ९) झानोर 
१०) अनसुआ ११) बद्री नारायन १२) गँगनाथ १३ ) चानोड ,जो दक्षिण का प्रयाग कहलाता है 
१४ ) कर्नाली १५ ) तिलकवाडा १६) गरुडेश्वर १७) हम्फेश्वर 
१८) कोटेश्वर १९) माधवगढ या रेवाकुँड २०) विमलेश्वर या अर्धनारेश्वर २१) माहेश्वर 
२२) मँडेलश्वर २३) बडवाहा २४) ओम्कारेश्वर २५) २४ अवतार 
२६) श्री सीतावन २७) ध्याधि कुँड २८ ) सिध्धनाथ २९) भृगु कुत्छ 
३०) सोकालीपुर ३१) ब्राह्मणघाट ३२) भेडाघाट३३) धुँधाधार 
३४) तिलवाराघाट ३५) गौरीघाट ३६) जल हरी घाट ३७) मँडला घाट 
३८) लिँग घाट या सूर्यमुखी नर्मदा ३९) कनैया घाट ४०) भीम कुँडी
४१) कपिल धारा ४२) अमर कँटक धाम ४३) माँ की बगिया 
४४) सोनधार या सुवर्ण प्रपात ४५) नर्मदा उद्`गमस्थली --
नर्मदा माई की प्रशस्ति, जगद्`गुरु श्री शँकराचार्य जी ने " नर्मदाअष्टक " की रचना करके भारतीय मानस मेँ प्रतिष्ठित कर दीया है
अक्सर कहा जाता है कि, "नदी का स्त्रोत और साधु का गोत्र कभी न पूछेँ ! "
परन्तु जब भी धीमे, शाँत जल प्रवाह को दुस्तर पहाड के बीच रास्ता निकाल कर 
बहते हुए जब भी हम देखते हैँ तब ये सवाल मन मेँ उठता ही है कि, इतना सारा जल कहाँ से आता होगा ?
इस महान नदी का अस्त्तित्व कैसे सँभव हुआ होगा ?
जीवनदायी, पोषणकारी निर्मल जलधारा हमेँ मनोमन्थन करवाते हुए, 
परमात्मा के साक्षात्कार के लिये प्रेरित करती है जो इस शक्ति के मूल स्त्रोत की तरफ एक मौन सँकेत कर देती है --
पँचमहाभूतमेँ से जल तत्व आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी से
 मानव शरीर सूक्ष्म रुप मेँ ग्रहण करता है उसीसे जल तत्व से हमारा कुदरती सँबध शापित हुआ है 
-- जल स्नान से हमेँ स्फुर्ति व आनण्द मिलता है - 
थकान दूर होकर मन और शरीर दोनोँ प्रफुल्लित होते हैँ और जब ऐसा जल हो जो प्रवाहमान हो,
 मर्र मर्र स्वर से कल कल स्वर से बहता हो , सँगीत लेकर चलता हो, शीतल हो 
तब तो प्रसन्नता द्वीगुणीत हो जाती है !
 ऐसा नदी स्नान हमारी स्मृतियोँमेँ सदा के लिये बस जाता है ! जिसकी याद आती रहती है --


 

शनिवार, 5 अक्टूबर 2013

doha salila: durga durgati nashini -sanjiv

: दोहा सलिला :
दुर्गा दुर्गति नाशिनी 
(नौ दुर्गा महोत्सव पर आनुप्रसिक दोहे)
संजीव
*
दुर्गा! दुर्गतिनाशिनी, दक्षा दयानिधान
दुष्ट-दंडिनी, दगदगी, दध्यानी द्युतिवान
(दुर्गा = आद्याशक्ति, दुर्गतिनाशिनी = बुरी दशा को नष्ट करनेवाली, दक्षा = दक्ष पुत्री, निपुण- श्लेष अलंकार, दयानिधान = दया करनेवाली, दुष्ट-दंडिनी = दुष्टों को दंड देनेवाली, दगदगी = चमकती हुई, दध्यानी = सुदर्शन, दयावती = दयाभावना से युक्त, द्युतिवान = प्रकाशवान)
*
दर्शन दे दो दक्षजा, दयासिन्धु दातार   
​दीप्तिचक्र दिप -दिप दिपे, दमके दीपाधार
(दक्षजा दक्ष से उत्पन्न सती, दातार = देनेवाला, दीप्तिचक्र = ज्योति-वलय, दीप-दीप = झिलमिल, दीपे = चमके, दीपाधार = दीवट) 
*
दया-दृष्टिकर दर्श दो, दिल से दिखा दुलार 
देइ!​ देशना दिव्य दो, देश-धर्म दरकार
(देइ = देवी, देशना = उपदेश, दरकार = आवश्यकता)
*
दीर्घनाद-दुन्दुभ दिवा, दिग्दिगंत दिग्व्याप्त

दिग्विजयी दिव्यांगना, दीक्षा दे दो आप्त


(दीर्घनाद = शंखध्वनि, दुन्दुभ = नगाड़ा, दिवा = दिव्य, दिग्व्याप्त दिशाओं में व्याप्त, 
दिग्विजयी = सभी दिशाओं में जीतनेवाला, दिव्यांगना = दिव्य  देहवाली, दीक्षा = मन्त्र ग्रहण की क्रिया)
*
देख दंगई दबदबा, दंग देवि-दैत्यारि 
दंभी-दर्पी दग्धकर,​ दहला दें दनुजारि  
(दक्षारि, दनुजारि = दक्ष , दानवों के शत्रु = शिव) 
​*
दमनक दैत्य दुरित दनुज, दुर्नामी दुर्दांत
दस्यु दितिज दुर्दम दहक, दम तोड़ें दिग्भ्रांत
 
(दमनक = दमन करनेवाला, दैत्य = दिति के पुत्र, दुरित = पापी, दनुज =दनु के पुत्र, दुर्नामी = बदनाम,  दुर्दांत = जिसे दबाना कठिन हो, दस्यु = डाकू, दितिज = दिति के पुत्र दैत्य, दुर्दम = जिनको दबाना कठिन हो, दहक = जलकर, दम तोड़ें = मरें, दिग्भ्रांत = गलत दिशा में)
*
देह दुर्ग दुर्गम दिपे, दिनकरवत जग-मात!
दमदारी दे दानवी, दबंगता को मात
(मात = माँ / हार यमक अलंकार)
*
दीपक दीपित दिवस्पति, दिव्याभित दिनकांत
दर्प-दर्द-दुःख-दैन्य दल, दर्शन दे दिवसांत
 
(दीपित = प्रज्वलित, दिवस्पति = इंद्र, दिव्याभित = दिव्य आभा से युक्त दिनकांत = सूर्य, दिवसांत = दिवस के अंत में, संध्या समय, दल = मिटा दे)
*
दशकोटिक बल दशभुजी, देख दशानन दीन
दशकंठारि दिलीप दश-भुजी देख तल्लीन 
(दशकोटिक दस करोड़ गुना, दशभुजी = शिव, दशानन = रावण, दशकंठारि = राम, दिलीप = सेनापति, दशभुजी = दुर्गा)
*

उर्दू  
दया-दफीना दे दिया, दस्तफ्शां को दान

दरा-दमामा दाद दे, दल्कपोश हैरान
(दरा = घंटा-घड़ियाल, दफीना = खज़ाना, दस्तफ्शां = विरक्त, दमामा = नक्कारा, दल्कपोश = भिखारी)
*
दर पर था दरवेश पर, दरपै था दज्जाल  

दरहम-बरहम दामनी, दूर देश था दाल
(दर= द्वार, दरवेश = फकीर, दरपै =  घात में, दज्जाल = मायावी भावार्थ रावण, दरहम-बरहम = अस्त-व्यस्त, दामनी = आँचल भावार्थ सीता, दाल = पथ प्रदर्शक भावार्थ राम ) 
दिलावरी दिल हारकर, जीत लिया दिलदार 
दिलफरेब-दीप्तान्गिनी, दिलाराम करतार
(दिलावरी = वीरता, दिलफरेब = नायिका, दिलदार / दिलाराम = प्रेमपात्र)
*
=========================
Sanjiv verma 'Salil'
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'

durga stuti -kusum thakur


  भगवती प्रार्थना
- कुसुम ठाकुर -
माँ मैं तो हारी] आई शरण तुम्हारी
अब जाऊँ किधर तज शरण तुम्हारी 

दर भी तुम्हारा लगे मुझको प्यारा
 तजूँ मैं कैसे अब शरण तुम्हारी 
माँ ....................
मन मेरा चंचल, धरूँ ध्यान कैसे
बसो मेरे मन मैं शरण तुम्हारी 
माँ ....................]]

जीवन की नैया मझधार में है, 
पार उतारो मैं शरण तुम्हारी
माँ ....................

तन में न शक्ति करूँ मन से भक्ति 
अब दर्शन दे दो मैं शरण तुम्हारी 
माँ ....................

गुरुवार, 3 अक्टूबर 2013

7 Tips to Prevent Uric Acid Disease/GOUT

7 Tips to Prevent Uric Acid Disease/GOUT

217032_458872377524114_1372141585_n
Some of these tips can help prevent an increase in uric acid in the blood. These tips include changes in lifestyle and diet should be regularly and strictly adhered to, if not affected by gout or uric acid disease relapse.

1. Lose Weight In Staged

If overweight, reduce gradually, because losing weight can help lower uric acid levels. But avoid excessively strict diet, follow a healthy diet here. Losing weight drastically with excessive dieting may precipitate an attack of gout. That’s great if accompanied with regular exercise.

2. Eat Foods Low Purine (Diet Low Purine)

Purine is an organic component that causes gout. These substances are needed in the body to normal limits are met.@Restrict foods high in purines -
Organ meats such as liver, kidney, heart
Selected fish and shellfish
Meat & yeast extracts brewers and bakers yeast
Meat soups & stock cubes. Foods that can cause gout such as beans, mushrooms, cooked spinach, and mustard greens, goat meat, offal and lard (fat), shellfish, duck and turkey, salmon, mackerel, sardines, crab, shrimp , anchovy and some other fish, cream and ice cream, and sweet bread. Some foods containing purine content seen in the list below. It should be remembered that the sensitivity of a person to be exposed to uric acid after eating these foods will vary.

3. More White Water Consumption

Approximately 90% of gout is caused by the inability of the kidneys remove uric acid from the body completely through urine. Water consumption is believed to improve the disposal of substances that are not useful as excessive uric acid from the body. Drink at least 6-8 glasses a day.

4. Expand Food Containing Calcium and High Antioxidant

Eating calcium-rich foods such as vegetables and fruits such as bananas, potatoes, avocados, milk and yogurt. Eating fruits rich in vitamin C, especially citrus and strawberry.

5. Avoid Alcohol and Soft Drink Consumption

Alcohol can lead to increased production of uric acid, while soft drink consumption may inhibit the absorption of calcium and calcium even throw in vain.

6. Limit your consumption of fried food

Fats and oils turn rancid at high temperatures such as in frying time. Moreover, if the used oil is oil that is used repeatedly. Rancid fats which can quickly destroy vitamin E and causes an increase in uric acid in the blood.

7. Increase Sexual Activity

These tips are more appropriate for those who have become husband and wife. Sexual activity, such as a kiss can make the body become more relaxed, so easy to boost the immune system. In addition, sexual intercourse can facilitate the production of urine so it can reduce the concentration of uric acid in the blood.

Discipline, Awareness and Healthy Habits.

Again the key here is discipline. You should also take the time to learn about the food you eat, and take note of foods that seem to trigger your gout. There is no set uric acid level that triggers gout attacks, each person has a different threshold so you should pay attention to how your body reacts. You should also form some healthy habits to reduce uric acid and prevent gout attacks.

If you are unsure about a part of your diet, consult your doctor about it. Even though there are a lot of resources online to help you, consulting with your doctor is still the best way to fine tune your diet and reduce uric acid levels.

Source :- https://www.facebook.com/healthremedies.awhw

kavita: maa ka shraddh - dr. amita sharma

आज श्राद्ध का दिन है माँ

अमिता  शर्मा 

*

तुम्हारी तरह आज  तुम्हारी बहू भी  सुबह अँधेरे  उठ जायेगी

ठीक तुम्हारी तरह साफ़ सुथरे चौके  को फिर से बुहारेगी

नहा  धो कर साफ़ अनछूई एक्वस्त्रा हो

तुलसी को अनछेड़ जल चढ़ायेगी

 

आज फूल द्रूब लाने को भी बेटी को नहीं कहेगी

ठाकुर जी के बर्तन भी स्वय मलेगी

ज्योती को रगड़ -रगड़ जोत सा चमकायेगी

महकते घी से लबलाबायेगी

 घर के  बने  शुद्ध घी शक्कर में लिपटा

चिड़िया  चींटी   गैया  को  हाथ से  खिलायेगी 

 

ठीक से चुने चावल  दाल को पुन पुन चुनेगी

तुम्हारी मनपसन्द कांसे  की देगची में धरेगी

तुम्हारी तरह देर तक धीमे धीमे पकायेगी

 

नए भात की महक से भर भर जायेगा घर आँगन

सारा खाना थाली में सजायेगी

कोइ देव छूट न जाएँ

ठीक तुम्हारी तरह

एक एक कर  सारे देवों को भोग लगाएगी

 

ठीक तुम्हारी तरह गाँव के हर घर का न्योता करेगी

आज  कागा  भी  श्वान भी

आगत भी   मेहमान भी

जो जो भी दिखेगा उसे मनुहार से बुलायेगी

सामर्थ  से बढ़ कर दक्षिणा  लुटायेगी

 

तुम्हारे बेटे को माँ ,वो तुम्हारी तरह ही देर तक  नहीं जगाएगी

जब सब जप तप दान दक्षिणा 

लेने देने  से अकेली निबट लेगी

तब तेरे बेटे को उठायेगी

'उठ जाओ जी! अब ग्रास बेटे के ही हाथ से लगेगा

धीरे  से कहेगी  और चुप चाप आँखे  पोछती जायेगी

 

पंडित जिमा के  पूछेगी चुपचाप

कोई कसर तो न बची, बची तो ज़रूर कहें

हमें तो वो छोड़  गये

पर स्वंय  जहाँ रहें बस सुख से रहें

 

  माँ !तो आज तुम्हारा पहला  श्राद्ध भी हो गया  !

..........................................

 Dr.Amita
301-474-2860
301-509-2331

narmadashtak; shankaracharya / sanjiv 'salil'

हिन्दी काव्यानुवाद सहित नर्मदाष्टक : १ --संजीव 'सलिल'

हिन्दी काव्यानुवाद सहित नर्मदाष्टक : १                                                                               

       भगवत्पादश्रीमदाद्य शंकराचार्य स्वामी विरचितं नर्मदाष्टकं

 सविंदुसिंधु-सुस्खलत्तरंगभंगरंजितं, द्विषत्सुपापजात-जातकारि-वारिसंयुतं
 कृतांतदूत कालभूत-भीतिहारि वर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .१. 

त्वदंबु लीनदीन मीन दिव्य संप्रदायकं, कलौमलौघभारहारि सर्वतीर्थनायकं
सुमत्स्य, कच्छ, तक्र, चक्र, चक्रवाक् शर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .२.

महागभीर नीरपूर - पापधूत भूतलं, ध्वनत समस्त पातकारि दारितापदाचलं.
जगल्लये महाभये मृकंडुसूनु - हर्म्यदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .३. 

गतं तदैव मे भयं त्वदंबुवीक्षितं यदा, मृकंडुसूनु शौनकासुरारिसेवितं सदा.
पुनर्भवाब्धिजन्मजं भवाब्धि दु:खवर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .४.

अलक्ष्य-लक्ष किन्नरामरासुरादि पूजितं, सुलक्ष नीरतीर - धीरपक्षि लक्षकूजितं.
वशिष्ठ शिष्ट पिप्पलादि कर्दमादिशर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .५.  

सनत्कुमार नाचिकेत कश्यपादि षट्पदै, घृतंस्वकीय मानसेषु नारदादि षट्पदै:,
रवींदु रन्तिदेव देवराज कर्म शर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .६. 

अलक्ष्यलक्ष्य लक्ष पाप लक्ष सार सायुधं, ततस्तु जीव जंतु-तंतु भुक्ति मुक्तिदायकं.
विरंचि विष्णु शंकर स्वकीयधाम वर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .७.

अहोsमृतं स्वनं श्रुतं महेशकेशजातटे, किरात-सूत वाडवेशु पण्डिते शठे-नटे.
दुरंत पाप-तापहारि सर्वजंतु शर्मदे, त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे .८.

इदन्तु नर्मदाष्टकं त्रिकालमेव ये यदा, पठंति ते निरंतरं न यांति दुर्गतिं कदा.
सुलक्ष्य देह दुर्लभं महेशधाम गौरवं, पुनर्भवा नरा न वै विलोकयंति रौरवं. ९. 

           इति श्रीमदशंकराचार्य स्वामी विरचितं नर्मदाष्टकं सम्पूर्णं

श्रीमद आदि शंकराचार्य रचित नर्मदाष्टक : हिन्दी पद्यानुवाद द्वारा संजीव 'सलिल'

              उठती-गिरती उदधि-लहर की, जलबूंदों सी मोहक-रंजक
            निर्मल सलिल प्रवाहितकर, अरि-पापकर्म की नाशक-भंजक
                 अरि के कालरूप यमदूतों, को वरदायक मातु वर्मदा.
            चरणकमल में नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.१.

               दीन-हीन थे, मीन दिव्य हैं, लीन तुम्हारे जल में होकर.
            सकल तीर्थ-नायक हैं तव तट, पाप-ताप कलियुग का धोकर.
              कच्छप, मक्र, चक्र, चक्री को, सुखदायक हे मातु शर्मदा.
            चरणकमल में नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.२.
             
            अरिपातक को ललकार रहा, थिर-गंभीर प्रवाह नीर का.
             आपद पर्वत चूर कर रहा, अन्तक भू पर पाप-पीर का.
              महाप्रलय के भय से निर्भय, मारकंडे मुनि हुए हर्म्यदा.
           चरणकमल में नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.३.

           मार्कंडे'-शौनक ऋषि-मुनिगण, निशिचर-अरि, देवों से सेवित.
             विमल सलिल-दर्शन से भागे, भय-डर सारे देवि सुपूजित.
                बारम्बार जन्म के दु:ख से, रक्षा करतीं मातु वर्मदा.
           चरणकमल में नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.४.

           दृश्य-अदृश्य अनगिनत किन्नर, नर-सुर तुमको पूज रहे हैं.
              नीर-तीर जो बसे धीर धर, पक्षी अगणित कूज रहे हैं.
          ऋषि वशिष्ठ, पिप्पल, कर्दम को, सुखदायक हे मातु शर्मदा.
          चरणकमल में नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.५.

           सनत्कुमार अत्रि नचिकेता, कश्यप आदि संत बन मधुकर.
          चरणकमल ध्याते तव निशि-दिन, मानस मंदिर में धारणकर.
           शशि-रवि, रन्तिदेव इन्द्रादिक, पाते कर्म-निदेश सर्वदा.
          चरणकमल में नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.६.

           दृष्ट-अदृष्ट लाख पापों के, लक्ष्य-भेद का अचूक आयुध.
          तटवासी चर-अचर देखकर, भुक्ति-मुक्ति पाते खो सुध-बुध.
         ब्रम्हा-विष्णु-सदा शिव को, निज धाम प्रदायक मातु वर्मदा.
           चरणकमल में नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.७.

        महेश-केश से निर्गत निर्मल, 'सलिल' करे यश-गान तुम्हारा.
         सूत-किरात, विप्र, शठ-नट को,भेद-भाव बिन तुमने तारा.
         पाप-ताप सब दुरंत हरकर, सकल जंतु भव-पार शर्मदा.
        चरणकमल में नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.८.

          श्रद्धासहित निरंतर पढ़ते, तीन समय जो नर्मद-अष्टक.
         कभी न होती दुर्गति उनकी, होती सुलभ देह दुर्लभ तक.
        रौरव नर्क-पुनः जीवन से, बच-पाते शिव-धाम सर्वदा.
        चरणकमल में नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.९.

श्रीमदआदिशंकराचार्य रचित, संजीव 'सलिल' अनुवादित नर्मदाष्टक पूर्ण.

               http://divyanarmada.blogspot.com
                    salil.sanjiv@gmail.com

मंगलवार, 1 अक्टूबर 2013

geet: gya suraa pee.... -sanjiv

गीत:
ज्ञान सुरा पी.…
संजीव
*
ज्ञान सुरा पी बहकें ज्ञानी,
श्रेष्ठ कहें खुद को अभिमानी।
निज मत थोप रहे औरों पर-
सत्य सुनें तो मरती नानी…
*
हाँ में हाँ चमचे करते हैं,
ना पर मिल टूटे पड़ते हैं.
समाधान स्वीकार नहीं है-
सद्भावों को चुभ-गड़ते हैं.
खुद का खुद जयकारा बोलें
कलह करेंगे मन में ठानी…
*
हिंदी की खाते हैं रोटी,
चबा रहे उर्दू की बोटी.
अंग्रेजी के चाकर मन से-
तनखा पाते मोटी-मोटी. 
शर्म स्वदेशी पर आती है
परदेशी इनके मन भानी…
*
मोह गौर का, असित न भाये,
लख अमरीश अकल बौराये.
दिखे चन्द्रमा का कलंक ही-
नहीं चाँदनी तनिक सुहाये.
सहज बुद्धि को कोस रहे हैं
पी-पीकर बोतल भर पानी…
==================
(असितांग = शिव का एक रूप, असित = अश्वेत, काला (शिव, राम, कृष्ण, गाँधी, राजेन्द्र प्रसाद सभी अश्वेत), असिताम्बुज = नील कमल
अमर = जिसकी मृत्यु न हो. अमर + ईश = अमरीश = देवताओं के ईश = महादेव. वाग + ईश = वागीश।)
 …

रविवार, 29 सितंबर 2013

subhashit








Rajesh Sharma's photo.

दोहा सलिला:

संजीव
*
शब्द कौन सा जगत में, जो न तुम्हारा नाम
शब्दहीन है शब्द बन, मैया तेरा धाम
*
अक्षर-अक्षर क्षर हुआ, हो मैया से दूर
शरणागत हो क्षर हुआ, अक्षर अमर अदूर
*
रव बनकर वर दे दिया, गूँजा अनहद नाद
पिंड-मुंड, आकाश-घट, दस दिश नवल निनाद
*
आत्म तुम्हीं परमात्म तुम, तुम ही देह-विदेह
द्वार देहरी आंगना, कक्ष समूचा अगेह