दोहे पर कुंडली:
दोहा : डॉ. गोपाल राजगोपाल, रोला: संजीव 'सलिल'“क्यों कातिल की खोज में,दुबले होते आप
करली होगी खुदकुशी , मैंने ही चुपचाप”
मैंने ही चुपचाप देख करतूत संत कीभोग बना शुरुआत संत के पतित अंत की
कहे 'सलिल' गो पाल पलते कान्हा थे ज्यों
लालू और मुलायम भूले गोपालन क्यों?
Sanjiv verma 'Salil'
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7 टिप्पणियां:
Kusum Vir द्वारा yahoogroups.co
आदरणीय आचार्य जी,
वाह !
क्या बात !
अति सुन्दर !
कुसुम वीर
sn Sharma द्वारा yahoogroups.com
आ० आचार्य जी,
दोहे पर कुंडली बहुत जंची । पांचवीं पंक्ति में शायद
पलते के स्थान पर पालते होगा जो टंकण के कारण रह
गया ।
सादर
कमल
sanjiv verma salil
7:09 pm (0 मिनट पहले)
ekavita
कमल जी, कुसुम जी
आपका आभार शत-शत.
टंकण त्रुटि हेतु खेद है.
Sanjiv verma 'Salil'
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Kusum Vir
आचार्य जी,
आपका यह नया प्रयोग अति सुन्दर, रुचिकर और सार्थक है l
बहुत बधाई और अशेष सराहना के साथ,
Kusum Vir
आचार्य जी,
आपका यह नया प्रयोग अति सुन्दर, रुचिकर और सार्थक है l
बहुत बधाई और अशेष सराहना के साथ,
सार्थक प्रयोग
सार्थक प्रयोग
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