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शुक्रवार, 27 अगस्त 2010

सामयिक कविता : है बुरा हाल मंहगाई की मार है ---प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘

सामयिक कविता :

देश दिखता मुझे बहुत बीमार है...........

प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘
*
है बुरा हाल मंहगाई की मार है, देश दिखता मुझे बहुत बीमार है।

गांव की हर गली झोपडी है दुखी, भूख से बाल-बच्चों में चीत्कार है।
*
 शांति उठ सी गई आज धरती से है, लोग सारे ही व्याकुल है बेचैन हैं

पेट की आग को बुझाने की फिकर में, सभी जन सतत व्यस्त दिन रैन है।

जो जहाँ भी है उलझन में गंभीर है, आयें दिन बढती जाती नई पीर है।

रोजी रोटी के चक्कर में है सब फंसे, साथ देती नहीं किंतु तकदीर है।

प्रदर्शन है कहीं, कहीं हड़ताल है, कहीं करफ्यू कहीं बंद बाजार है।

लाठियाँ, गोलियाँ औ‘ गिरफ्तारियाँ, जो जहाँ भी है भड़भड़ से बेजार है।
*
समझ आता नहीं, क्यों ये क्या हो रहा, लोग आजाद हैं डर किसी को नहीं।

मानता नहीं कोई किसी का कहा, जिसे जो मन में आता है करता वहीं।

बातों में सब हुये बड़े होषियार है, सिर्फ लेने को हर लाभ आगे खड़े।

किंतु सहयोग और समझारी भुला, स्वार्थ हित सिर्फ लड़ने को रहते अड़े है।

आदमी खो चुका आदमियत इस तरह, कहीं कोई न दिखता समझदार है,

जैसे रिष्ता किसी का किसी से नहीं, जिसे देखो वो लड़ने को तैयार है।
*
समझते लोग कम है नियम कायदे, देखते सभी अपने ही बस फायदे,

राजनेताओं को याद रहते नहीं, कभी जनता से जो भी किये वायदे।

चाह उनकी हैं पहले सॅंवर जाये घर, देशहित की किसी को नहीं कोई फिकर,

बढ़ रही है समस्यायें नित नई मगर, रीति और नीति में कोई न दिखता असर।

घूंस लेना औ‘ देना चलन बन गई, सीधा- सच्चा जहाँ जो हैं लाचार है।

रोज घपले घोटाले है सरकार में, किंतु होता नहीं कोई उपचार है।
*
योजनायें नई बनती है आयें दिन, किंतु निर्विघ्न होने न पातीं सफल।

बढ़ता जाता अंधेरा हर एक क्षेत्र में, डर है शायद न हो घना और ज्यादा कल।

सिर्फ आशा है भगवान से, उठ चुका आपसी प्रेम सद्भाव विष्वास है।

देष की दुर्दशा देख होता है दुख, जिसका उज्जवल रहा पिछला इतिहास है।

आज की रीति हुई काम जिससे बने, कहा जाता उसी को सदाचार है।

जो निरूपयोगी उसका तिरस्कार है, आज का ‘विदग्ध‘ यह ही सुसंस्कार है।
*
कल क्या होगा यह कहना बहुत ही कठिन है, कोई भी नहीं दिखता खबरदार है

जिसे देखों जहाँ देखों, वह ही वहाँ कम या ज्यादा बराबर गुनहगार है।

                                      --- ओ.बी. 11 एम.पी.ई.बी. कालोनी, रामपुर, जबलपुर म.प्र.
********************

विचित्र किन्तु सत्य: 'आत्मा' का वजन सिर्फ 21 ग्राम !

विचित्र किन्तु सत्य:

'आत्मा' का वजन सिर्फ 21 ग्राम !

इंसानी आत्मा का वजन कितना होता है? इस सवाल का जवाब तलाशने के लिए 10 अप्रैल 1901 को अमेरिका के डॉर्चेस्टर में एक प्रयोग किया गया। डॉ. डंकन मैक डॉगल ने चार अन्य साथी डॉक्टर्स के साथ प्रयोग किया था।

इनमें 5 पुरुष और एक महिला मरीज ऐसे थे जिनकी मौत हो रही थी।इनको खासतौर पर डिजाइन किए गए फेयरबैंक्स वेट स्केल पर रखा गया था। मरीजों की मौत से पहले बेहद सावधानी से उनका वजन लिया गया था। जैसे ही मरीज की जान गई वेइंग स्केल की बीम नीचे गिर गई। इससे पता चला कि उसका वजन करीब तीन चौथाई आउंस कम हो गया है।

ऐसा ही तजुर्बा तीन अन्य मरीजों के मामले में भी हुआ। फिर मशीन खराब हो जाने के कारण बाकी दो को टेस्ट नहीं किया जा सका। साबित ये हुआ कि हमारी आत्मा का वजन 21 ग्राम है। इसके बाद डॉ डंकन ने ऐसा ही प्रयोग 15 कुत्तों पर भी किया। उनका वजन नहीं घटा, इससे निष्कर्ष निकाला कि जानवरों की आत्मा नहीं होती। फिर भी इस पर और रिसर्च होना बाकी थी लेकिन 1920 में डंकन की मौत हो जाने से रिसर्च वहीं खत्म हो गई। कई लोगों ने इसे गलत और अनैतिक भी माना। इस पर 2003 में फिल्म भी बनी थी। फिर भी सच क्या है ये एक राज है।
                                                                                                                आभार: लखनऊ ब्लोगर्स असोसिअशन
                                                                  *********************

गीत: पुकार - संजीव 'सलिल'

गीत

पुकार

संजीव 'सलिल'
*














*

आजा, जल्दी से घर आजा, भटक बाँवरे कहाँ रहा?
तुझसे ज्यादा विकल रही माँ, मुझे बता तू कहाँ रहा?...

जहाँ रहा तू वहाँ सफल था, सुन मैं गर्वित होती थी.
सबसे मिलकर मुस्काती थी, हो एकाकी रोती थी..
आज नहीं तो कल आएगा कैयां तुझे सुलाऊँगी-
मौन-शांत थी मन की दुनिया में सपने बोती थी.

कान्हा सम तू गया किन्तु मेरी यादों में यहाँ रहा.
आजा, जल्दी से घर आजा, भटक बाँवरे कहाँ रहा?
तुझसे ज्यादा विकल रही माँ, मुझे बता तू कहाँ रहा?...
*
दुनिया कहती बड़ा हुआ तू, नन्हा ही लगता मुझको .
नटखट बाल किशन में मैंने पाया है हरदम तुझको..
दुनिया कहती अचल मुझे तू चंचल-चपल सुहाता है-
आँचल-लुकते, दूर भागते, आते दिखता तू मुझको.

आ भी जा ओ! छैल-छबीले, ना होकर भी यहाँ रहा.
आजा, जल्दी से घर आजा, भटक बाँवरे कहाँ रहा?
तुझसे ज्यादा विकल रही माँ, मुझे बता तू कहाँ रहा?...
*
भारत मैया-हिन्दी मैया, दोनों रस्ता हेर रहीं.
अब पुकार सुन पाया है तू, कब से तुझको टेर रहीं.
कभी नहीं से देर भली है, बना रहे आना-जाना
सारी धरती तेरी माँ है, ममता-माया घेर रहीं?

मेरे दिल में सदा रहा तू, निकट दूर तू जहाँ रहा.
आजा, जल्दी से घर आजा, भटक बाँवरे कहाँ रहा?
तुझसे ज्यादा विकल रही मैं, मुझे बता तू कहाँ रहा?...
*
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

बुधवार, 25 अगस्त 2010

गीत: आराम चाहिए... संजीव 'सलिल'

गीत:

आराम चाहिए...

संजीव 'सलिल'
*













*
हम भारत के जन-प्रतिनिधि हैं
हमको हर आराम चाहिए.....
*
प्रजातंत्र के बादशाह हम,
शाहों में भी शहंशाह हम.
दुष्कर्मों से काले चेहरे
करते खुद पर वाह-वाह हम.
सेवा तज मेवा के पीछे-
दौड़ें, ऊँचा दाम चाहिए.
हम भारत के जन-प्रतिनिधि हैं
हमको हर आराम चाहिए.....
*
पुरखे श्रमिक-किसान रहे हैं,
मेहनतकश इन्सान रहे हैं.
हम तिकड़मी,घोर छल-छंदी-
धन-दौलत अरमान रहे हैं.
देश भाड़ में जाये हमें क्या?
सुविधाओं संग काम चाहिए.
हम भारत के जन-प्रतिनिधि हैं
हमको हर आराम चाहिए.....
*
स्वार्थ साधते सदा प्रशासक.
शांति-व्यवस्था के खुद नाशक.
अधिनायक हैं लोकतंत्र के-
हम-वे दुश्मन से भी घातक.
अवसरवादी हैं हम पक्के
लेन-देन  बेनाम चाहिए.
हम भारत के जन-प्रतिनिधि हैं
हमको हर आराम चाहिए.....
*
सौदे करते बेच देश-हित,
घपले-घोटाले करते नित.
जो चाहो वह काम कराओ-
पट भी अपनी, अपनी ही चित.
गिरगिट जैसे रंग बदलते-
हमको ऐश तमाम चाहिए.
हम भारत के जन-प्रतिनिधि हैं
हमको हर आराम चाहिए.....
*
वादे करते, तुरत भुलाते.
हर अवसर को लपक भुनाते.
हो चुनाव तो जनता ईश्वर-
जीत उन्हें ठेंगा दिखलाते.
जन्म-सिद्ध अधिकार लूटना
'सलिल' स्वर्ग सुख-धाम चाहिए.
हम भारत के जन-प्रतिनिधि हैं
हमको हर आराम चाहिए.....
****************
दिव्यनर्मदा.ब्लॉगस्पोट.कॉम

*

मंगलवार, 24 अगस्त 2010

Your last day on earth ..... -- Vijay Kaushal

Your last day on earth .....This is Awesome!





TheааLast аDayааааThis is аsobering!!!аа
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аа'BE  KIND '

रविवार, 22 अगस्त 2010

मुक्तिका: समझ सका नहीं संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

समझ सका नहीं

संजीव 'सलिल'
*




















*
समझ सका नहीं गहराई वो किनारों से.
न जिसने रिश्ता रखा है नदी की धारों से..

चले गए हैं जो वापिस कभी न आने को.
चलो पैगाम उन्हें भेजें आज तारों से..

वो नासमझ है, उसे नाउम्मीदी मिलनी है.
लगा रहा है जो उम्मीद दोस्त-यारों से..

जो शूल चुभता रहा पाँव में तमाम उमर.
उसे पता ही नहीं, क्या मिला बहारों से.. 

वो मंदिरों में हुई प्रार्थना नहीं सुनता.
नहीं फुरसत है उसे कुटियों की गुहारों से..

'सलिल' न कुछ कहो ये आजकल के नेता हैं.
है इनका नाता महज तोड़-फोड़ नारों से..
*********************
दिव्यनर्मदा.ब्लॉगस्पोट.कॉम  

शनिवार, 21 अगस्त 2010

मुक्तिका: बोलने से पहले संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

बोलने से पहले

संजीव 'सलिल'
*
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*
बोलने से पहले ले तोल.
बात होगी तब ही अनमोल.

न मन का राज सभी से खोल.
ढोल में सदा रही है पोल..

ठुमकियाँ दें तो उड़े पतंग.
न ज्यादा तान, न देना झोल..

भरोसा कर मत आँखों पर
दिखे भू चपटी पर है गोल..

सत्य होता कड़वा मत बोल.
बोल तो पहले मिसरी घोल..

फिजा बदली है 'सलिल' न भूल.
न बाहर रात-रात भर डोल..

'सलिल' तन मंदिर हो निर्मल.
करे मन-मछली तभी किलोल.
****************
दिव्यनर्मदा.ब्लॉगस्पोट.कॉम

शुक्रवार, 20 अगस्त 2010

गीत: आपकी सद्भावना में... संजीव 'सलिल'

गीत:

आपकी सद्भावना में...

संजीव 'सलिल'
*











*
आपकी सद्भावना में कमल की परिमल मिली.
हृदय-कलिका नवल ऊष्मा पा पुलककर फिर खिली.....
*
उषा की ले लालिमा रवि-किरण आई है अनूप.
चीर मेघों को गगन पर है प्रतिष्टित दैव भूप..
दुपहरी के प्रयासों का करे वन्दन स्वेद-बूँद-
साँझ की झिलमिल लरजती, रूप धरता जब अरूप..

ज्योत्सना की रश्मियों पर मुग्ध रजनी मनचली.
हृदय-कलिका नवल आशा पा पुलककर फिर खिली.....
*
है अमित विस्तार श्री का, अजित है शुभकामना.
अपरिमित है स्नेह की पुष्पा-परिष्कृत भावना..
परे तन के अरे! मन ने विजन में रचना रची-
है विदेहित देह विस्मित अक्षरी कर साधना.

अर्चना भी, वंदना भी, प्रार्थना सोनल फली.
हृदय-कलिका नवल ऊष्मा पा पुलककर फिर खिली.....
*
मौन मन्वन्तर हुआ है, मुखरता तुहिना हुई.
निखरता है शौर्य-अर्णव, प्रखरता पद्मा कुई..
बिखरता है 'सलिल' पग धो मलिनता को विमल कर-
शिखरता का बन गयी आधार सुषमा अनछुई..

भारती की आरती करनी हुई सार्थक भली.
हृदय-कलिका नवल ऊष्मा पा पुलककर फिर खिली.....
*******
दिव्यनर्मदा.ब्लॉगस्पोट.कॉम

गुरुवार, 19 अगस्त 2010

गीत: मंजिल मिलने तक चल अविचल..... संजीव 'सलिल'

गीत:
मंजिल मिलने तक चल अविचल.....
संजीव 'सलिल'
*

















*
लिखें गीत हम नित्य न भूलें, है कोई लिखवानेवाला.
कौन मौन रह मुखर हो रहा?, वह मन्वन्तर और वही पल.....
*
दुविधाओं से दूर रही है, प्रणय कथा कलियों-गंधों की.
भँवरों की गुन-गुन पर हँसतीं, प्रतिबंधों की व्यथा-कथाएँ.
सत्य-तथ्य से नहीं कथ्य ने  तनिक निभाया रिश्ता-नाता
पुजे सत्य नारायण लेकिन, सत्भाषी सीता वन जाएँ.

धोबी ने ही निर्मलता को लांछित किया, पंक को पाला
तब भी, अब भी सच-साँचे में असच न जाने क्यों पाया ढल.....
*
रीत-नीत को बिना प्रीत के, निभते देख हुआ उन्मन जो
वही गीत मनमीत-जीतकर, हार गया ज्यों साँझ हो ढली.
रजनी के आँसू समेटकर, तुहिन-कणों की भेंट उषा को-
दे मुस्का श्रम करे दिवस भर, संध्या हँसती पुलक मनचली.

मेघदूत के पूत पूछते, मोबाइल क्यों नहीं कर दिया?
यक्ष-यक्षिणी बैकवर्ड थे, चैट न क्यों करते थे पल-पल?.....
*
कविता-गीत पराये लगते, पोयम-राइम जिनको भाते.
ब्रेक डांस के उन दीवानों को अनजानी लचक नृत्य की.
सिक्कों की खन-खन में खोये, नहीं मंजीरे सुने-बजाये
वे क्या जानें कल से कल तक चले श्रंखला आज-कृत्य की.

मानक अगर अमानक हैं तो, चालक अगर कुचालक हैं तो
मति-गति , देश-दिशा को साधे, मंजिल मिलने तक चल अविचल.....
*******
दिव्यनर्मदा.ब्लॉगस्पोट.कॉम

दोहा सलिला: वानस्पतिक दवाई ले रहिये सदा प्रसन्न संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:

वानस्पतिक दवाई ले रहिये सदा प्रसन्न

संजीव 'सलिल'
*
















*
ले वानस्पतिक औषधि, रहिये सदा प्रसन्न.
जड़ी-बूटियों की फसल, करती धन-संपन्न..
*
पादप-औषध के बिना, जीवन रुग्ण-विपन्न.
दूर प्रकृति से यदि 'सलिल', लगे मौत आसन्न..
*
पाल केंचुआ बना ले, उत्तम जैविक खाद. 
हरी-भरी वसुधा रहे, भूले मनुज विषाद..
*
सेवन ईसबगोल का, करे कब्ज़ को दूर.
नित्य परत जल पीजिये, चेहरे पर हो नूर..
*
अजवाइन से दूर हो, उदर शूल, कृमि-पित्त.
मिटता वायु-विकार भी, खुश रहता है चित्त..
*
ब्राम्ही तुलसी पिचौली, लौंग नीम जासौन.
जहाँ रहें आरोग्य दें, मिटता रोग न कौन?
*
मधुमक्खी पालें 'सलिल', है उत्तम उद्योग.
शहद मिटाता व्याधियाँ, करता बदन निरोग..
*
सदा सुहागन मोहती, मन फूलों से मीत.
हर कैंसर मधुमेह को, कहे गाइए गीत..
*
कस्तूरी भिन्डी फले, चहके लैमनग्रास.
अदरक हल्दी धतूरा, लाये समृद्धि पास..
*
बंजर भी फूले-फले, दें यदि बर्मी खाद.
पाल केंचुए, धन कमा, हों किसान आबाद..
*
भवन कहता घर 'सलिल', पौधें हों दो-चार.
नीम आँवला बेल संग, अमलतास कचनार..
*
मधुमक्खी काटे अगर, चुभे डंक दे पीर.
गेंदा की पाती मलें, धरकर मन में धीर..
*
पथरचटा का रस पियें, पथरी से हो मुक्ति.
'सलिल' आजमा देखिये, अद्भुत है यह युक्ति..
*
घमरा-रस सिर पर मलें, उगें-घनें हों केश.
गंजापन भी दूर हो, मन में रहे न क्लेश..
*
प्रकृति-पुत्र बनकर 'सलिल', पायें-दें आनंद.
श्वास-श्वास मधुमास हो, पल-पल गायें छंद..
************
-- दिव्यनर्मदा.ब्लॉगस्पोट.कॉम

 

मंगलवार, 17 अगस्त 2010

मुक्तिका: कब किसको फांसे ---संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

कब किसको फांसे

संजीव 'सलिल'
*











*
सदा आ रही प्यार की है जहाँ से.
हैं वासी वहीं के, न पूछो कहाँ से?

लगी आग दिल में, कहें हम तो कैसे?
न तुम जान पाये हवा से, धुआँ से..

सियासत के महलों में जाकर न आयी
सचाई की बेटी, तभी हो रुआँसे..

बसे गाँव में जब से मुल्ला औ' पंडित.
हैं चेलों के हाथों में फरसे-गंडांसे..

अदालत का क्या है, करे न्याय अंधा.
चलें सिक्कों जैसे वकीलों के झाँसे..

बहू आई घर में, चाचा की फजीहत.
घुसें बाद में, पहले देहरी से खाँसे..

नहीं दोस्ती, ना करो दुश्मनी ही.
भरोसा न नेता का कब किसको फांसे..

****************************
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

सामयिक गीत: आज़ादी की साल-गिरह संजीव 'सलिल'


सामयिक गीत:

आज़ादी की साल-गिरह

संजीव 'सलिल'
*
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*
आयी, आकर चली गयी
आज़ादी की साल-गिरह....
*
चमक-दमक, उल्लास-खुशी,
कुछ चेहरों पर तनिक दिखी.
सत्ता-पद-धनवालों की-
किस्मत किसने कहो लिखी?
आम आदमी पूछ रहा
क्या उसकी है जगह कहीं?
आयी, आकर चली गयी
आज़ादी की साल-गिरह....
*
पाती बांधे आँखों पर,
अंधा तौल रहा है न्याय.
संसद धृतराष्ट्री दरबार
कौरव मिल करते अन्याय.
दु:शासन शासनकर्ता
क्यों?, क्या इसकी कहो वज़ह?
आयी, आकर चली गयी
आज़ादी की साल-गिरह....
*
उच्छ्रंखलता बना स्वभाव.
अनुशासन का हुआ अभाव.
सही-गलत का भूले फर्क-
केर-बेर का विषम निभाव.
दगा देश के साथ करें-
कहते सच को मिली फतह.
आयी, आकर चली गयी
आज़ादी की साल-गिरह....
*
निज भाषा को त्याग रहे,
पर-भाषा अनुराग रहे.
परंपरा के ईंधन सँग
अधुनातनता आग दहे.
नागफनी की फसलों सँग-
कहें कमल से: 'जा खुश रह.'
आयी, आकर चली गयी
आज़ादी की साल-गिरह....
*
संस्कार को भूल रहें.
मर्यादा को तोड़ बहें.
अपनों को, अपनेपन को,
सिक्कों खातिर छोड़ रहें.
श्रम-निष्ठा के शाहों को
सुख-पैदल मिल देते शह.
आयी, आकर चली गयी
आज़ादी की साल-गिरह....
*
दिव्यनर्मदा.ब्लॉगस्पोट.कॉम

सोमवार, 16 अगस्त 2010

हास्य कविता: जन्म दिन संजीव 'सलिल'

हास्य कविता:

जन्म दिन

संजीव 'सलिल'

*
















*
पत्नी जी के जन्म दिवस पर, पति जी थे चुप-मौन.
जैसे उन्हें न मालूम है कुछ, आज पधारा कौन?

सोचा तंग करूँ कुछ, समझीं पत्नी: 'इन्हें न याद.
पल में मजा चखाती हूँ,भूलेंगे सारा स्वाद'..

बोलीं: 'मैके जाती हूँ मैं, लेना पका रसोई.
बर्तन करना साफ़, लगाना झाड़ू, मदद न कोई..'

पति मुस्काते रहे, तमककर की पूरी तैयारी.
बाहर लगीं निकलने तब पति जी की आयी बारी..

बोले: 'प्रिय! मैके जाओ तुम, मैं जाता ससुराल.
साली-सासू जी के हाथों, भोजन मिले कमाल..'

पत्नी बमकीं: 'नहीं ज़रुरत तुम्हें वहाँ जाने की.
मुझे राह मालूम है, छोडो आदत भरमाने की..'

पति बोले: 'ले जाओ हथौड़ी, तोड़ो जाकर ताला.'
पत्नी गुस्साईं: 'ताला क्या अकल पे तुमने डाला?'

पति बोले : 'बेअकल तभी तो तुमको किया पसंद.'
अकलवान तुम तभी बनाया है मुझको खाविंद..''

पत्नी गुस्सा हो जैसे ही घर से बाहर  निकलीं.
द्वार खड़े पीहरवालों को देख तबीयत पिघली..

लौटीं सबको ले, जो देखा तबियत थी चकराई.
पति जी केक सजा टेबिल पर रहे परोस मिठाई..

'हम भी अगर बच्चे होते', बजा रहे थे गाना.
मुस्काकर पत्नी से बोले: 'कैसा रहा फ़साना?'

पत्नी झेंपीं-मुस्काईं, बोलीं: 'तुम तो हो मक्कार.'
पति बोले:'अपनी मलिका पर खादिम है बलिहार.'

साली चहकीं: 'जीजी! जीजाजी ने मारा छक्का.
पत्नी बोलीं: 'जीजा की चमची! यह तो है तुक्का..'

पति बोले: 'चल दिए जलाओ, खाओ-खिलाओ केक.
गले मिलो मुस्काकर, आओ पास इरादा नेक..

पत्नी ने घुड़का: 'कैसे हो बेशर्म? न तुमको लाज.
जाने दो अम्मा को फिर मैं पहनाती हूँ ताज'..

पति ने जोड़े हाथ कहा:'लो पकड़ रहा मैं कान.
ग्रहण करो उपहार सुमुखी हे! आये जान में जान..'

***

दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

एक कविता; होता था घर एक.' संजीव 'सलिल'

एक कविता;
होता था घर एक.'
संजीव 'सलिल'
*

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*
शायद बच्चे पढेंगे
'होता था घर एक.'
शब्द चित्र अंकित किया
मित्र कार्य यह नेक.
अब नगरों में फ्लैट हैं,
बंगले औ' डुप्लेक्स.
फार्म हाउस का समय है
मिलते मल्टीप्लेक्स.
बेघर खुद को कर रहे
तोड़-तोड़ घर आज.
इसीलिये गायब खुशी
हर कोई नाराज़.
घर न इमारत-भवन है
घर होता सम्बन्ध.
नाते निभाते हैं जहाँ
बिना किसी अनुबंध.
भारत ही घर की बने
अद्भुत 'सलिल' मिसाल.
नाते नव बनते रहें
देखें आप कमाल.
बिना मिले भी मन मिले,
होती जब तकरार.
दूजे पल ही बिखरता
निर्मल-निश्छल प्यार.
मतभेदों को हम नहीं
बना रहे मन-भेद.
लगे किसी को ठेस तो
सबको होता खेद.
नेह नर्मदा निरंतर
रहे प्रवाहित मित्र.
 भारत ही घर का बने
 'सलिल' सनातन चित्र..
 *
+++++++++++ + ++++

LALOO'S LEELA !!! ---vijay kaushal

 LALOO'S  LEELA !!!



1) Laloo enters a shop and shouts,   
Where's my free gift with this oil?
Shopkeeper: “Iske Saath koi Gift nahin hai, Lalooji
Laloo : Ispe likha hai CHOLESTROL FREE


2) Saddam Hussain visits God and asks him:
God, When shall
I see The defeat of Bush? “
God replies:” Son, you will not see it in your lifetime.”
Hearing this, Saddam Hussain starts crying and goes away. Gen Parvez
Musharaff visits God and asks him:
” God, when shall I see the Capture of Kashmir by Pakistan . “
God replies:” Son, you will not see it in lifetime”.
Hearing this, Gen Parvez Musharaff starts crying and goes away.
Laloo Yadav visits God and asks him:
” God when shall I see Bihar Becoming a prosperous and happy state ?
” Hearing this, God starts crying. Laaloo is astounded and asks:”
God, why are you crying?
” God replies: Son, I will not see it in my lifetime.”

3) Once Laloo was coming out of the Airport. As there was a Huge
rush, the security guard told Laloo WAIT PLEASE, for which Laloo
replied 85 Kgs and moved on

4) Laloo's family planning policy : DON'T HAVE MORE THAN TWO
CHILDREN IN ONE YEAR

5) At a bar in New York , the man to Laloo's left tells the
bartender, JOHNNIE WALKER, SINGLE. And the man's companion
says, JACK DANIELS, SINGLE. The bartender approaches Laloo and
asks, AND U sir? Laloo replies: LALOO YADAV, MARRIED.


6) After having resigned as the CM of Bihar, Laloo decides to go
modelling. He steps into a herd of buffaloes and rests his
elbows on a buffalo and poses for the photo.

Laloo, third from left!

7) A reporter asked Laloo
What is the main reason for divorce?
Read the box, it says 5-7 years.

NASA was interviewing professionals to be sent to Mars.
Only one person could go, and he will not return to Earth. 
The first applicant, an American engineer, was asked  how much he wanted to be paid for going.

"A million dollars", he answered, "because I wish to donate it to M.I.T."

The next applicant, a Russian doctor, was asked the same question.

He asked for two million dollars. "I wish to give a million to my family,he explained, "and leave the other million for the advancement of medical research."

The last applicant was a Indian politician (Lallu Yadav). When asked how much money he wanted, he whispered in the interviewer' s ear, "Three million dollars."

"Why so much more than the others?" the interviewer asked.

The Indian Politician replied, $1 million is for you, I'll keep $1 million,
and we'll give the American engineer $1million and send him to Mars !

रविवार, 15 अगस्त 2010

सामयिक व्यंग्य कविता: मौसमी बुखार संजीव 'सलिल'

सामयिक व्यंग्य कविता:

मौसमी बुखार

संजीव 'सलिल'                                                   
*
*
अमरीकनों ने डटकर खाए
सूअर मांस के व्यंजन
और सारी दुनिया को निर्यात किया
शूकर ज्वर अर्थात स्वाइन फ़्लू
ग्लोबलाइजेशन अर्थात
वैश्वीकरण का सुदृढ़ क्लू..
*
'वसुधैव कुटुम्बकम'
भारत की सभ्यता का अंग है
हमारी संवेदना और सहानुभूति से
सारी दुनिया दंग है.
हमने पश्चिम की अन्य अनेक
बुराइयों की तरह स्वाइन फ़्लू को भी
गले से लगा लिया.
और फिर शिकार हुए मरीजों को
कुत्तों की मौत मरने से बचा लिया
अर्थात डॉक्टरों की देख-रेख में
मौत के मुँह में जाने का सौभाग्य (?) दिलाकर
विकसित होने का तमगा पा लिया.
*
प्रभु ने शूकर ज्वर का
भारतीयकरण कर दिया
उससे भी अधिक खतरनाक
मौसमी ज्वर ने
नेताओं और कवियों की
खाल में घर कर लिया.
स्वाधीनता दिवस निकट आते ही
घडियाली देश-प्रेम का कीटाणु,
पर्यवरण दिवस निकट आते ही
प्रकृति-प्रेम का विषाणु,
हिन्दी दिवस निकट आते ही
हिन्दी प्रेम का रोगाणु,
मित्रता दिवस निकट आते ही
भाई-चारे का बैक्टीरिया और
वैलेंटाइन दिवस निकट आते ही
प्रेम-प्रदर्शन का लवेरिया
हमारी रगों में दौड़ने लगता है.
*
'एकोहम बहुस्याम' और
'विश्वैकनीडं' के सिद्धांत के अनुसार
विदेशों की 'डे' परंपरा के
समर्थन और विरोध में 
सड़कों पर हुल्लड़कामी हुड़दंगों में
आशातीत वृद्धि हो जाती है.
लाखों टन कागज़ पर
विज्ञप्तियाँ छपाकर वक्तव्यवीरों की
आत्मा गदगदायमान होकर
अगले अवसर की तलाश में जुट जाती है.
मौसमी बुखार की हर फसल
दूरदर्शनी कार्यक्रमों,
संसद व् विधायिका के सत्रों का
कत्ले-आम कर देती है
और जनता जाने-अनजाने
अपने खून-पसीने की कमाई का
खून होते देख आँसू बहाती है.
*******
दिव्यनर्मदा.ब्लॉगस्पोट.कॉम

शनिवार, 14 अगस्त 2010

स्वाधीनता दिवस पर विशेष रचना: गीत भारत माँ को नमन करें.... संजीव 'सलिल'

स्वाधीनता दिवस पर विशेष रचना:

गीत

भारत माँ को नमन करें....

संजीव 'सलिल'
*












*
आओ, हम सब एक साथ मिल
भारत माँ को नमन करें.
ध्वजा तिरंगी मिल फहराएँ
इस धरती को चमन करें.....
*
नेह नर्मदा अवगाहन कर
राष्ट्र-देव का आवाहन कर
बलिदानी फागुन पावन कर
अरमानी सावन भावन कर

 राग-द्वेष को दूर हटायें
एक-नेक बन, अमन करें.
आओ, हम सब एक साथ मिल
भारत माँ को नमन करें......
*
अंतर में अब रहे न अंतर
एक्य कथा लिख दे मन्वन्तर
श्रम-ताबीज़, लगन का मन्तर
भेद मिटाने मारें मंतर

सद्भावों की करें साधना
सारे जग को स्वजन करें.
आओ, हम सब एक साथ मिल
भारत माँ को नमन करें......
*
काम करें निष्काम भाव से
श्रृद्धा-निष्ठा, प्रेम-चाव से
रुके न पग अवसर अभाव से
बैर-द्वेष तज दें स्वभाव से

'जन-गण-मन' गा नभ गुंजा दें
निर्मल पर्यावरण करें.
आओ, हम सब एक साथ मिल
भारत माँ को नमन करें......
*
जल-रक्षण कर पुण्य कमायें
पौध लगायें, वृक्ष बचायें
नदियाँ-झरने गान सुनायें
पंछी कलरव कर इठलायें

भवन-सेतु-पथ सुदृढ़ बनाकर
सबसे आगे वतन करें.
आओ, हम सब एक साथ मिल
भारत माँ को नमन करें......
*
शेष न अपना काम रखेंगे
साध्य न केवल दाम रखेंगे
मन-मन्दिर निष्काम रखेंगे
अपना नाम अनाम रखेंगे

सुख हो भू पर अधिक स्वर्ग से
'सलिल' समर्पित जतन करें.
आओ, हम सब एक साथ मिल
भारत माँ को नमन करें......
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Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

शुक्रवार, 13 अगस्त 2010

भारत की कुंडली...एक विवेचना...!!! वैभवनाथ शर्मा

भारत की कुंडली...एक विवेचना...!!!

वैभवनाथ शर्मा

हमारे भारत वर्ष को स्वत्रंत हुए आज ६४ वर्ष हो गए हैं | अगर भारत की कुंडली पर चर्चा करे तो भारत की कुंडली उसके स्वत्रंत्रता दिवस से बनाई जाती है | कुंडली विवरण - तिथि १५ अगस्त १९४७, समय रात्रि ००:००, स्थान दिल्ली | इससे वृषभ लग्न तथा कर्क राशि की कुंडली बनती है |

यदि शास्त्रानुसार वृषभ लग्न की प्रकृति पर चर्चा करे तो हम पाते है की वृषभ लग्न का स्वाभाव बड़ा ही शर्मिला, शांति प्रिय, तमाम प्रकार के कष्ट सहने वाला, समझोता करने वाला, दबाव झेल कर भी कुछ ना बोलने वाला, मेहनती व संघर्षरत, पड़ोसियों द्वारा प्रताड़ित, सहज ही मित्र बनाने वाला, किसी के भी विश्वास में आ जाने वाला, भोले स्वाभाव वाला, शोषित व चुप रह कर समाज को ढोने वाला होता है, और यही सब गुण भारत की प्रक्रति व स्वाभाव को दर्शाते है | इसी प्रकार शास्त्रानुसार कर्क राशी की प्रकृति पर चर्चा करे तो हम पाते है की यह एक कुटिल व सफल राजनितिक, बात का धनि , चतुर स्वाभाव वाला होता है |

यदि वर्तमान गोचर से चर्चा करे तो, शनि - मंगल की पंचम भाव में कन्या राशी में युति स्थिति को भयावह व विस्फ्टक बनाती है | पंचम भाव ज्ञान व सुख का भाव होता है, अर्थात ज्ञान व सुख का कारक होता है | इन दोनों क्रूर व अति शत्रु ग्रहों की पंचम भाव में युति देश की गरीब, लचर, असहाय जनता के सुख में और भी कमी दर्शाती है | यदि मंगल निकट भविष्य में तुला राशि में जाता भी है तो परिस्थिति में कोई विशेष बदलाव नहीं आने वाला | साथ ही साथ भारत की कुंडली कालसर्प दोष से भी ग्रसित है | जिसके कारण विकास की गति या तो धीमी व अवरुद्ध है, और भ्रष्टाचार, आराजकता, चोरी, बईमानी पुरे चरम पर है |

वक्री वृहस्पति की एकादश भाव में अर्थात आय भाव में स्थिति आय में कमी, आर्थिक नुकसान, धन का नाश व क्षय दर्शाता है | यदि वर्तमान दशा की चर्च करे तो सूर्य की महादशा में मंगल की अन्तर्दशा घरेलु हिंसा, धार्मिक उन्माद, आन्तरिक सुरक्षा में कमी व खतरा, पडोसी राष्ट्रों से तनाव व कष्ट और राजनितिक उथल पुथल को दर्शाता है | कुल मिला कर यह कहा जा सकता है की आने वाला वर्ष भारत व भारत की जनता के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण, अस्थिरता से परिपूर्ण व आर्थिक अनिश्चितता से भरा होगा | wahi यह भी कहा जा सकता है की भारत के युवा वर्ग को अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित करने का अवसर तो मिलेगा परन्तु सफलता हेतु कठिन परिश्रम की आवश्यकता होगी | साथ ही साथ यह भी अवश्य कहा जा सकता है की भारत की नीतियों को अंतर्राष्ट्रीय स्थर पर समर्थन अवश्य प्राप्त होगा | परन्तु ठोस कदम व उचित सहयोग की कमी रहेगी | पिछले कई वर्ष की भांति कम वर्षा, लचर खेती से किसान बदहाल रहेगा | देश की गरीब जनता पर कर का बोझ और बढेगा | अभी भारत व भारत की जनता को अंतर्राष्ट्रीय स्थर पर उचित सामान प्राप्त करने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ेगा |

तृतीय भाव में पञ्च ग्रहा योग कदम कदम पर भारत व भारतीयों के संघर्ष को दर्शाता है | भारत व भारतीयों की व्यापारिक स्थिति दवादोल व संघर्षपूर्ण रहनेवाली है | इस काल में चोरी करने वाले, झूठ बोलने वाले, नीच कर्म करने वाले, दलाली करने वाले लोगो की भरमार होगी व उन्हें ही सफलता प्राप्त होगी | विद्याथियो को कठिन परिश्रम व एकाग्रता से अध्यन में जुटने की सलाह दी जाती है, क्योकि आने वाला समय भारत व भारतीयों के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्थर पर और भी चुनोती पूर्ण व कठिन रहने वाला है |


                                                                                                                                         (आभार: फेसबुक )

गुरुवार, 12 अगस्त 2010

Open heart vessel ---Vijay kaushal

Subject: Blocked Blood Vessel... Very Informative

-- VIJAY KAUSHAL

Natural therapy for heart vessel opening,

Please pass it to your colleagues or friends.

For Heart Vessels opening  
1) Lemon juice         01 cup
2) Ginger juice        01 cup
3) Garlic  juice       01 cup
4) Apple vinegar       01 cup

Mix all above and boil in light flame approximately half hour,
when it becomes 3 cups, take it out and keep it for cooling.

After cooling, mix 3 cups of natural honey and keep it in glass bottle.

Every morning before breakfast use one Table spoon regularly.

Your blockage of Vessels will open (No need any Angiography or By pass)

बुधवार, 11 अगस्त 2010

दोहा सलिला : संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला :

संजीव 'सलिल'
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सूर्य कृष्ण दो गोपियाँ, ऊषा-संध्या नाम.
एक कराती काम औ', दूजी दे आराम.

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छाया-पीछे दौड़ता, सूरज सके न थाम.
यह आया तो वह गयी, हुआ विधाता वाम.

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मन सूरज का मोहता, है वसुधा का रूप.
याचक बनकर घूमता, नित त्रिभुवन का भूप..

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आता खाली हाथ है, जाता खाली हाथ.
दिन भर बाँटे उजाला, पर न झुकाए माथ..

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देख मनुज की हरकतें, सूरज करता क्रोध.
कब त्यागेगा स्वार्थ यह?, कब जागेगा बोध..

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निलज मनुज को देखकर, करे धुंध की आड़.
बनी रहे मर्याद की, कभी न टूटे बाड़..

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पाप मनुज के बढ़ाते, जब धरती का ताप.
रवि बरसाता अश्रु तब, वर्षा कहते आप..

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सूर्य घूमता केंद्र पर, होता निकट न दूर.
चंचल धरती नाचती, ज्यों सुर-पुर में हूर..

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दाह-ताप दे पाप औ', अकर्मण्यता शीत.
दुःख हरकर सुख दे 'सलिल', 'विधि-हरि-हर' से प्रीत..

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विधि-हरि-हर = ब्रम्हा-विष्णु-महेश.
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com