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बुधवार, 10 अगस्त 2022

गीत, नवगीत, साधना,बुद्धिमान, धर्म, मूर्ति,सॉनेट, शलभ

सॉनेट
शलभ
ज्योति आराधक शलभ है
तपस्वी साधक शलभ है
वरण करता उजाले की
तिमिर-पथ बाधक शलभ है

शलभ सुर लय तान वरता
छंद गति-यति-लय विचरता
भ्रमर जैसे गीत गाता
प्रीत पाता, हँस सिहरता

कोशिशें करता निरंतर
मंजिलें नित नई ले वर
तिलक कर तकनीक का, बढ़
लिखे अपना भाग्य यह फिर

शलभ बनना ही नियति है
शलभ बनना ही प्रगति है
१०-८-२०२२
•••
मुक्तिका/हिंदी ग़ज़ल
.
किस सा किस्सा?, कहे कहानी
गल्प- गप्प हँस कर मनमानी
.
कथ्य कथा है जी भर बाँचो
सुन, कह, समझे बुद्धि सयानी
.
बोध करा दे सत्य-असत का
बोध-कथा जो कहती नानी
.
देते पर उपदेश, न करते
आप आचरण पंडित-ज्ञानी
.
लाल बुझक्कड़ बूझ, न बूझें
कभी पहेली, पर ज़िद ठानी
***
[ सोलह मात्रिक संस्कारी जातीय, अरिल्ल छन्द]
२३-५-२०१६
विमर्श : बुद्धिमान कौन?
*
बिल्ली के सामने मिट्टी या पत्थर का चूहा बना कर रख दें, वह उस पर नहीं झपटती जबकि इंसान मिट्टी-पत्थर की मूरत बनाकर उसके सामने गिड़गिड़ाता रहता है और इसे धर्म कहता है।
कबीरदास कह गए -
काँकर-पाथर जोड़ के मस्जिद लई बनाय
ता चढ़ मुल्ला बांग दे बहिरा हुआ खुदाय

पाहन पूजे हरि मिले तो मैं पूजूँ पहार
ताते या चाकी भली पीस खाय संसार

मूँड़ मुँड़ाए हरि मिलै, सब कोउ लेय मुड़ाय
बार-बार के मूड़ते, भेद न बैकुंठ जाय
*
मेरे हाथों का बनाया हुआ
पत्थर का है बुत
कौन भगवान है सोचा जाए?
*
कंकर कंकर में बसे हैं शंकर भगवान
फिर मूरत क्यों बनाता, रे! मानव नादान?
***
विमर्श:
साधना क्या है....
पत्थर पर एकाएक बहुत सा पानी डाल दिया जाए तो पत्थर केवल भीगेगा, फिर पानी बह जाएगा और पत्थर सूख जाएगा किन्तु वह पानी पत्थर पर एक ही जगह पर बूँद-बूँद गिरता रहेगा, तो पत्थर में छेद होगा और कुछ दिनों बाद पत्थर टूट भी जाएगा। कुएं में पानी भरते समय एक ही स्थान पर रस्सी की रगड़ से पत्थर और लोहे पर निशान पड़कर अंत में वह टूट जाता है 'रसरी आवत जात ते सिल पर परत निसान'। इसी प्रकार निश्चित स्थान पर ध्यान की साधना की जाएगी तो उसका परिणाम अधिक होता है ।
चक्की में दो पाटे होते हैं। उनमें यदि एक स्थिर रहकर, दूसरा घूमता रहे तो अनाज पिस जाता है और आटा बाहर आ जाता है। यदि दोनों पाटे एक साथ घूमते रहेंगे तो अनाज नहीं पिसेगा और परिश्रम व्यर्थ होगा। इसी प्रकार मनुष्य में भी दो पाटे हैं; एक मन और दूसरा शरीर। उसमें मन स्थिर पाटा है और शरीर घूमने वाला पाटा है।
अपने मन को ध्यान द्वारा स्थिर किया जाए और शरीर से सांसारिक कार्य करें। प्रारब्ध रूपी खूँटा शरीर रूपी पाटे में बैठकर उसे घूमाता है और घूमाता रहेगा लेकिन मन रूपी पाटे को सिर्फ भगवान के प्रति स्थिर रखना है। देह को प्रारब्ध पर छोड़ दिया जाए और मन को ध्यान में मग्न कर दिया जाए; यही साधना है।
***
गीत
कह रहे सपने कथाएँ
.
सुन सको तो सुनो इनको
गुन सको तो गुनो इनको
पुराने हों तो न फेंको
बुन सको तो बुनो इनको
छोड़ दोगे तो लगेंगी
हाथ कुछ घायल व्यथाएँ
कह रहे सपने कथाएँ
.
कर परिश्रम वरो फिर फिर
डूबना मत, लौट तिर तिर
साफ होगा आसमां फिर
मेघ छाएँ भले घिर घिर
बिजलियाँ लाखों गिरें
हम नशेमन फिर भी बनाएँ
कह रहे सपने कथाएँ
.
कभी खुद को मारना मत
अँधेरों से हारना मत
दिशा लय बिन गति न वरना
प्रथा पुरखे तारना मत
गतागत को साथ लेकर
आज को सार्थक बनाएँ
कह रहे सपने कथाएँ
१०-८-२०१७
...
नवगीत
मेरा नाम बताऊँ? हाऊ
ना दैहौं तन्नक काऊ
*
बम भोले है अपनी जनता
देती छप्पर फाड़ के.
जो पाता वो खींच चीथड़े
मोल लगाता हाड़ के.
नेता, अफसर, सेठ त्रयी मिल
तीन तिलंगे कूटते.
पत्रकार चंडाल चौकड़ी
बना प्रजा को लूटते.
किससे गिला शिकायत शिकवा
करें न्याय भी बंदी है.
पुलिस नहीं रक्षक, भक्षक है
थाना दंदी-फंदी है.
काले कोट लगाये पहरा
मनमर्जी करते भाऊ
मेरा नाम बताऊँ? हाऊ
ना दैहौं तन्नक काऊ
*
पण्डे डंडे हो मुस्टंडे
घात करें विश्वास में.
व्यापम झेल रहे बरसों से
बच्चे कठिन प्रयास में.
मार रहे मरते मरीज को
डॉक्टर भूले लाज-शरम.
संसद में गुंडागर्दी है
टूट रहे हैं सभी भरम.
सीमा से आतंक घुस रहा
कहिए किसको फ़िक्र है?
जो शहीद होते क्या उनका
इतिहासों में ज़िक्र है?
पैसे वाले पद्म पा रहे
ताली पीट रहे दाऊ
मेरा नाम बताऊँ? हाऊ
ना दैहौं तन्नक काऊ
*
सेवा से मेवा पाने की
रीति-नीति बिसरायी है.
मेवा पाने ढोंग बनी सेवा
खुद से शरमायी है.
दूरदर्शनी दुनिया नकली
निकट आ घुसी है घर में.
अंग्रेजी ने सेंध लगा ली
हिंदी भाषा के स्वर में.
मस्त रहो मस्ती में, चाहे
आग लगी हो बस्ती में.
नंगे नाच पढ़ाते ऐसे
पाठ जां गयी सस्ते में.
आम आदमी समझ न पाये
छुरा भौंकते हैं ताऊ
मेरा नाम बताऊँ? हाऊ
ना दैहौं तन्नक काऊ
१०-८-२०१५
*

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