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सोमवार, 7 मार्च 2022

मुण्डक उपनिषद काव्यानुवाद, नवगीत, शिशु गीत, तुम

सॉनेट 
होली
होली हो ली, फिर भी होली।
श्वास-आस, रंग पिचकारी।।
हरकत मत करना अनहोली।।
अपने सपने की बलिहारी।।

मंज़िल लगे राधिका प्यारी।
टेर रहे हँस बजा बाँसुरी।
कोशिश किशन करे बनवारी।।
कर काला मुँह शक्ति आसुरी।।

झूम-झूमकर गाए कबीरा।
सॉनेट लला भाँग पी नाचे।
ले इकतारा बना फकीरा।।
पुलकित प्रेम पत्रिका बाँचे।।

रस गागर ले हिंदी भोली।
आई संग छंदों की टोली।।
७-३-२०२२
•••
मुण्डक उपनिषद
तृतीय मुण्डक, द्वितीय खंड
*
वह जाने है आत्म प्रकाशित, ब्रह्म शुभ्र जग निहित उसी में।
जो पूजें निष्काम भाव से, शुक्र मुक्त हो, फिर न जनमते।१।

हितकर समझ भोग जो चाहे, सकाम हो जन्मे वह जहँ-तहँ।
आप्तकाम की सब इच्छाएँ, यह शरीर रहते विनष्ट हों।२।

नहीं आsत्मा प्रवचन मेधा, या सुनने से ज्ञात हो सके।
आत्म जिसे स्वीकारे वह ही, आत्म-ज्ञान को पा सकता है।३।

आत्मज्ञान बलहीन न पाता, नहीं प्रमादी या अविरागी।
अप्रमाद सन्यास ज्ञान से, आत्मा ब्रह्मधाम जा पाती।४।

आत्म-ज्ञान से तृप्त कृतात्मा, वीतराग प्रशांत हो जाते।
धीर विवेकी वे प्रभु को पा, आत्मयुक्त हो ब्रह्मलीन हों।५।

पढ़ वेदांत ब्रह्म निष्ठा दृढ़, रखें; कर्म तज; आत्म शुद्ध हो।
मृत्यु-बाद हों बंध-मुक्त वे, पा पममृत ब्रह्मलीन हों।६।

पंद्रह कलाएँ होतीं प्रतिष्ठित, देवों-प्रतिदेवों में तब ही।
कर्म और आत्मा अविनाशी, मिलें ब्रह्म से हो अभिन्न तब।७।

ज्यों प्रवहित होती सब नदियाँ, मिलें सिंधु में नाम-रूप तज।
त्यों तज नाम-रूप निज विद्वन, मिलें दिव्य उस परम पुरुष में।८।

जो जाने उस परमब्रह्म को, मैं हूँ वह; वह आप ब्रह्म हो।
मुक्त शोक से हो वह तरता, हृद-गुह-ग्रंथि छूट हो अमृत।९।

अधिकारी ब्रह्मविद्या के, क्रियावन्त श्रोत्रिय श्रद्धालु।
हवन करें एकर्षि अग्नि में, करें शिरोवृत विधिवत भी जो।१०।

परम सत्य यह पुराकाल में, कहा अंगिरा ने शौनक से।
बिना शिरोवृत पढ़ें न विद्या, है प्रणाम हर ऋषि महान को।११।
७-३-२०२२
***
दोहा सलिला
भ्रान्ति देह की ख़तम हो, तो न शेष हो चाह।
चाह चाह की हो नहीं, तो खुल जाती राह।।

कहें कंठ से आप मत, करें ह्रदय से बात।
बिन बोले बोलें अगर, सत् से हो साक्षात्।।

पानी में तैरे घड़ा, हो पानी से पूर्ण।
पानी-पानी में मिले, आप फूट हो चूर्ण।।

खुदी दूर खुद से नहीं, तो न खुदा हो साथ।
खुद को जब खुद दे भुला, खुदा थाम ले हाथ।।

ज्ञान त्याग दें; ज्ञात हो, तब ज्ञानों का मूल।
अक्षर तज अक्षर वरें, बनें शूल भी फूल।।

मंत्र कान से मनस में, जा हो जाता पूर्ण।
पूर्ण पूर्ण से पूर्ण हो, करे पूर्ण को पूर्ण।।
***
याद तुम्हारी
याद तुम्हारी नेह नर्मदा
आकर देती है प्रसन्नता
हर लेती है हर विपन्नता
याद तुम्हारी है अखण्डिता
सह न उपेक्षा हो प्रचंडिता
शुचिता है साकार वन्दिता
याद तुम्हारी आदि अमृता
युग युग पुजती हो समर्पिता
अभिनंदित हो आत्म अर्पिता
७-३-२०२०
***
नवगीत-
आज़ादी
*
भ्रामक आज़ादी का
सन्निपात घातक है
*
किसी चिकित्सा-ग्रंथ में
वर्णित नहीं निदान
सत्तर बरसों में बढ़ा
अब आफत में जान
बदपरहेजी सभाएँ,
भाषण और जुलूस-
धर्महीनता से जला
देशभक्ति का फूस
संविधान से द्रोह
लगा भारी पातक है
भ्रामक आज़ादी का
सन्निपात घातक है
*
देश-प्रेम की नब्ज़ है
धीमी करिए तेज
देशद्रोह की रीढ़ ने
दिया जेल में भेज
कोर्ट दंड दे सर्जरी
करती, हो आरोग्य
वरना रोगी बचेगा
बस मसान के योग्य
वैचारिक स्वातंत्र्य
स्वार्थ हितकर नाटक है
भ्रामक आज़ादी का
सन्निपात त्राटक है
*
मुँदी आँख कैसे सके
सहनशीलता देख?
सत्ता खातिर लिख रहे
आरोपी आलेख
हिंदी-हिन्दू विरोधी
केर-बेर का संग
नेह-नर्मदा में रहे
मिला द्वेष की भंग
एक लक्ष्य असफल करना
इनका नाटक है
संविधान से द्रोह
लगा भारी पातक है
भ्रामक आज़ादी का
सन्निपात घातक है
६-३-२०१६
***
शिशु गीत सलिला : २
*
११. पापा -१
पापा लाड़ लड़ाते खूब,
जाते हम खुशियों में डूब।
उन्हें बना लेता घोड़ा-
हँसती, देख बाग़ की दूब।।
*
१२. पापा -२
पापा चलना सिखलाते,
सारी दुनिया दिखलाते।
रोज बिठाकर कंधे पर-
सैर कराते मुस्काते।।
गलती हो जाए तो भी,
कभी नहीं खोना आपा।
सीख सुधारूँगा मैं ही-
गुस्सा मत होना पापा।।
*
१३. भैया - १
मेरा भैया प्यारा है,
सारे जग से न्यारा है।
बहुत प्यार करता मुझको-
आँखों का वह तारा है।।
*
१४ . भैया -२
नटखट चंचल मेरा भैया,
लेती हूँ हँस रोज बलैया।
दूध नहीं इसको भाता-
कहता पीना है चैया।।
*
१५. बहिन -१
बहिन गुणों की खान है,
वह प्रभु का वरदान है।
अनगिन खुशियाँ देती है-
वह हम सबकी जान है।।
*
१६. बहिन -२
बहिन बहुत ही प्यारी है,
सब बच्चों से न्यारी है।
हँसती तो ऐसा लगता-
महक रही फुलवारी है।।
*
१७. घर
पापा सूरज, माँ चंदा,
ध्यान सभी का धरते हैं।
मैं तारा, चाँदनी बहिन-
घर में जगमग करते हैं।।
*
१८. बब्बा
बब्बा ले जाते बाज़ार,
दिलवाते टॉफी दो-चार।
पैसे नगद दिया करते-
कुछ भी लेते नहीं उधार।।
मम्मी-पापा डांटें तो
उन्हें लगा देते फटकार।
जैसे ही मैं रोता हूँ,
गोद उठा लेते पुचकार।।
*
१९. दादी-१
दादी बनी सहेली हैं,
मेरे संग-संग खेली हैं।
उनके बिना अकेली मैं-
मुझ बिन निपट अकेली हैं।।
*
२०. दादी-
राम नाम जपतीं दादी,
रहती हैं बिलकुल सादी।
दूध पिलाती-पीती हैं-
खूब सुहाती है खादी।।
गोदी में लेतीं, लगतीं -
रेशम की कोमल गादी।
मुझको शहजादा कहतीं,
बहिना उनकी शहजादी।।
***
नवगीत :
चूहा झाँक रहा हंडी में...
*
चूहा झाँक रहा हंडी में,
लेकिन पाई सिर्फ हताशा...
*
मेहनतकश के हाथ हमेशा
रहते हैं क्यों खाली-खाली?
मोती तोंदों के महलों में-
क्यों बसंत लाता खुशहाली?
ऊँची कुर्सीवाले पाते
अपने मुँह में सदा बताशा.
चूहा झाँक रहा हंडी में,
लेकिन पाई सिर्फ हताशा...
*
भरी तिजोरी फिर भी भूखे
वैभवशाली आश्रमवाल.
मुँह में राम बगल में छूरी
धवल वसन, अंतर्मन काले.
करा रहा या 'सलिल' कर रहा
ऊपरवाला मुफ्त तमाशा?
चूहा झाँक रहा हंडी में,
लेकिन पाई सिर्फ हताशा...
*
अँधियारे से सूरज उगता,
सूरज दे जाता अँधियारा.
गीत बुन रहे हैं सन्नाटा,
सन्नाटा निज स्वर में गाता.
ऊँच-नीच में पलता नाता
तोल तराजू तोला-माशा.
चूहा झाँक रहा हंडी में,
लेकिन पाई सिर्फ हताशा...
७-३-२०१०
***


हिंदी हितैषी मीना जी 
*
इस संक्रमणकाल में भारतीयों पर पश्चिम के अंधानुकरण 

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