नवगीत / दोहा गीत :
बरसो राम धडाके से...
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
बरसो राम धड़ाके से,
मरे न दुनिया फाके से....
*
लोकतंत्र की जमीं पर,
लोभतंत्र के पैर.
अंगद जैसे जम गए-
अब कैसे हो खैर?.
अपनेपन की आड़ ले,
भुना रहे हैं बैर.
देश पड़ोसी मगर बन-
कहें मछरिया तैर..
मारो इन्हें कड़ाके से,
बरसो राम धड़ाके से,
मरे न दुनिया फाके से....
*
कर विनाश मिल, कह रहे,
बेहद हुआ विकास.
तम की का आराधना-
उल्लू कहें उजास..
भाँग कुंए में घोलकर,
बुझा रहे हैं प्यास.
दाल दल रहे आम की-
छाती पर कुछ खास..
पिंड छुड़ाओ डाके से,
बरसो राम धड़ाके से,
मरे न दुनिया फाके से....
*
मगरमच्छ अफसर मुए,
व्यापारी घड़ियाल.
नेता गर्दभ रेंकते-
ओढ़ शेर की खाल.
देखो लंगड़े नाचते,
लूले देते ताल.
बहरे शीश हिला रहे-
.गूँगे करें सवाल..
चोरी होती नाके से,
बरसो राम धड़ाके से,
मरे न दुनिया फाके से....
*
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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गुरुवार, 12 अगस्त 2021
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