दोहा सलिला:
*
दिल ने दिल को दे दिया, दिल का लाल सलाम। 
दिल ने बेदिल हो कहा, सुनना नहीं कलाम।। 
*
दिल बुजदिल का क्या हुआ, खुशदिल रहा न आप। 
था न रहा अब जवां दिल, गीत न सुन दे थाप।। 
* 
कौन रहमदिल है यहाँ?, दिल का है बाज़ार। 
पाया-खोया ने किया, हर दिल को बेज़ार।।
*
दिलवर दिल को भुलाकर, जब बनता दिलदार।
सह न सके तब दिलरुबा, कैसे हो आज़ार।।
* 
टूट गया दिल पर न की, किंचित भी आवाज़। 
दिल जुड़ता भी किस तरह, भर न सका परवाज़।।
*
दिल दिल ने ले तो लिया पर, दिया न दिल क्यों बोल?
दिल ही दिल में दिल रहा, मौन लगता बोल।।
* 
दिल दिल पल-पल दुखता रहा, दिल चल-चल बेचैन। 
थक-थककर दिल रुक गया, दिल ने पाया चैन।।
*
दिल के हाथों हो गया, जब-जब दिल मजबूर। 
दिल ने अन्देखी करी, दिल का मिटा गुरूर।।
*
दिल के संग न संगदिल, का हो यारां साथ। 
दिल को रुचा न तंगदिल, थाम न पाया हाथ।।
***
७.७.२०१८, ७९९९५५९६१८
 
 
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें