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गुरुवार, 16 जुलाई 2020

एकदा जबलपुरे .... इंद्र की शाप मुक्ति और मासिक धर्म

एकदा जबलपुरे .... 
इंद्र की शाप मुक्ति और मासिक धर्म 
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विज्ञान के अनुसार महिलाओं को हर महीने होनेवाला मासिक धर्म एक सामान्य प्रक्रिया है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इसका संबंध इंद्र को मिले शाप का अंश स्त्री द्वारा ग्रहण करना है। भागवत पुराण के अनुसार एक बार देव गुरु बृहस्पति इंद्रदेव से नाराज हो गए। यह देख असुरों ने देव लोक पर आक्रमण कर दिया, इंद्र देव को अपनी गद्दी छोड़कर ब्रह्मा जी से सहायता माँगने पहुँचे। ब्रह्मा जी ने उन्हें एक ब्रह्मज्ञानी की सेवा कर प्रसन्न करने का सुझाव दिया तभी स्वर्ग लोग वापस मिलेगा। 
इंद्रदेव एक ब्रह्मज्ञानी की सेवा करने लगे लेकिन इंद्रदेव इस बात से अनजान थे कि जिसकी वह सेवा कर रहे थे उस ब्रह्मज्ञानी की माता असुर है। इस कारण उस ब्रह्मज्ञानी को असुरों से अधिक लगाव था। वह ज्ञानी इंद्रदेव द्वारा अर्पित हवन सामग्री देवताओं के स्थान पर असुरों को अर्पित कर देते थे। यह पता इंद्रदेव को लगने पर इंद्र ने क्रोध में आकर उस ज्ञानी की हत्या कर दी। 
भगवान विष्णु ने ब्रह्मा हत्या के पाप से बचाने हेतु सुझाव दिया कि वे वृक्ष, भूमि, जल और स्त्री में अपना थोड़ा थोड़ा पाप बाँटकर उन्हें एक-एक वरदान भी दें। तदनुसार इंद्र ने सबसे पहले पेड़ की सहमति लेकर उसे अपने श्राप का चतुर्थांश देकर वरदान दिया कि मरने के बाद पेड़ स्वयं ही जीवित हो सकेगा। इसके बाद इंद्र ने जल को पाप का चतुर्थांश देकर वरदान दिया कि वह अन्य वस्तुओं को पवित्र कर सकेगा। तभी से हिंदू धर्म में जल को पवित्र मानते हुए पूजा पाठ में उपयोग किया जाता है। भूमि को पाप का चतुर्थांश देकर इंद्र ने वरदान दिया कि उस पर आई चोटें अपने आप भर जाएँगी। अंत में इंद्र देव ने स्त्री का चतुर्थांश दिया जिससे महिलाओं को हर महीने मासिक धर्म की पीड़ा सहनी पड़ती है। इसके बदले में इंद्रदेव ने महिलाओं को वरदान दिया कि महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा रति (काम) का आनंद अधिक ले सकेंगी। विज्ञान भी इस तथ्य की पुष्टि करता है कि स्त्री काम क्रीड़ा का आनंद पुरुषों से अधिक ले पाती है। 
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