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शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

दोहा सलिला: गले मिलें दोहा यमक संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
गले मिलें दोहा यमक
संजीव 'सलिल'
*
गले मिलें दोहा यमक, ले हांथों में हार।
हार न कोई मानता, बना प्यार तकरार।।
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कलरव करती लहर से, बोला तट रह मौन।
कल रव अगर न किया तो, तुझको पूछे कौन?
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शबनम से मिलकर गले, शब नम मौन उदास।
चाँद-चाँदनी ने मिटा, तम भर दिया उजास।।
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गले मिले शिकवे-गिले, गले नहीं हैं शेष।
शेष-शेषशायी हँसे, लख सद्भाव अशेष।।
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तिल-तिल कर जलते रहे, बाती तिल का तेल।
तिल भर डिगे न धर्म से, कमा न किंचित मेल।।
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हल चल जाए खेत में, तब हलचल हो शांत।
सिया-जनक को पूछते, जनक- लोग दिग्भ्रांत।।
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चल न हाथ में हाथ ले, यही चलन है आज।
नय न नयन का इष्ट है, लाज करें किस व्याज?
*
जड़-चेतन जड़-पेड़ भी, करते जग-उपकार।
जग न सो रहे क्यों मनुज, करते पर-अपकार।?
*
वाम मार्ग अपना रहे, जो उनसे विधि वाम।
वाम हस्त पर वाम दल, वाम  न हो परिणाम।।
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खुश बू से कोई नहीं, खुशबू से खुश बाग़।
बाग़-बाग़ तितली हुई, सुन भ्रमरों का राग।।
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हर संकट हर कर किया, नित जग पर उपकार।
सकल श्रृष्टि पूजित हुए तब ही शिव सरकार।।
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3 टिप्‍पणियां:

dks poet ने कहा…

dks poet

आदरणीय आचार्य जी,
दोहे अच्छे हैं, बधाई स्वीकारें।
सादर

धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’

sn Sharma द्वारा yahoogroups.com ने कहा…

sn Sharma द्वारा yahoogroups.com

आ0 आचार्य जी ,
सभी दोहे यमक अलंकार का चमत्कार लिए है। पढकर चमत्कृत हुआ।
विशेष-
चल न हाथ में हाथ ले, यही चलन है आज।
नय न नयन का इष्ट है, लाज करें किस व्याज?

खुश बू से कोई नहीं, खुशबू से खुश बाग़।
बाग़-बाग़ तितली हुई, सुन भ्रमरों का राग।।

सादर कमल

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रभावशाली रचना !बधाई
लेटेस्ट पोस्ट कुछ मुक्तक !