कुल पेज दृश्य

मंगलवार, 23 जनवरी 2018

छाया सक्सेना 'प्रभु'
चित्र 
जन्म: तिथि, स्थान 
आत्मज: 
जीवन साथी: 
शिक्षा:
व्यवसाय:
प्रकाशित कृतियाँ:
उपलब्धि:
संपर्क:

चलभाष: ०७०२४२८५७८८ ।   

​प्रियवर! 
स्वागत आपका, पुष्प गुच्छ ले आज।
चंदन वंदन आरती, करता सकल समाज।।
*
नित नव उन्नति हो रही, हर्ष मनाओ मीत।
अमर रहे साहित्य में, सुंदर सुफल सुनीत।।
*
मिलकर करना है सदा, सबको गुरु का ध्यान।
गुरु-चरणों में आइये, तभी मिलेगा ज्ञान।।
*
करें सभी साहित्य में, अपने गुरु का नाम।
बिन गुरुवर मिलता नहीं, हमको हरि का धाम।।
*
गुरु-चरणों में ही मिले, सकल जगत का सार।
द्वेष, कपट, छल त्यागिए, अर्पित कर अधिकार।।
*
नदियाँ साग़र से मिलें, नैसर्गिक अधिकार।
कर्तव्यों को कीजिए, तभी मिलेगा प्यार।।
*
प्रेम, त्याग, विश्वास से, सुधरे सकल समाज।
गुरु-सुमिरन से ही बने, बिगड़े सारे काज।।
*
गुरु के चरणों का करें, जो सुमिरन दिन रैन।
काज सुफल उसके हुए, आदि-अंत तक चैन।।
*
पंछी बैठा डाल पर, देखे अंबर-ओर।
मनहर लाली सज रही, उदित हो रही भोर।।
*
सभी सहेजें प्रकृति को, अति उत्तम यह काज।
जन-मन को प्रेरित करें, प्रण लें लें सब आज।।
*
रंग-बिरंगी कल्पना, आज हुई साकार।
सुखद-सरस परिकल्पना, दृश्य-श्रव्य आधार।।
*
निशिचर दानव दैत्य शठ, असुर अधम दनु दीन।
राम-नाम जप  मुक्त हों, भव-बंधन से हीन।।
*
अनावृष्टि दुर्भिक्ष से, जब भी पड़े अकाल।
सूखी धरती  भुखमरी, हो जीवन का काल।। 
*
अनल आग पावक अगन, ज्वाला दाहक तेज।
वायुसखा ही अग्नि है, जल को रखो सहेज।।
*
भूधर पर्वत शैल गिरि, नग या शिखर पहाड़।
धरणीधर अद्री अचल, शिलागार बाड़।।
*
उत्तम अद्भुत सी लगे, अनुपम  अपनी प्रीत।
अप्रतिम उपमा दीजिए, अतुलनीय मनमीत।।
*
अमिय अमी सुरभोग है, सोम सुधा रसधार।
अमृत सम साहित्य पर, हँसकर जीवन वार।।
*
बिन सोचे करिए नहीं, अपने मत का दान।
बड़ा धर्म से कर्म है, मतदाता ले जान।।
*
पाँच साल के बाद ही, कर पाते मतदान।
जागो मतदाता सभी, रहो नहीं अनजान।।
*
छंदों की लय ही बनी, लेखन का आधार।
सरल हृदय को 'प्रभु' सदृश, लगे छंद परिवार।। 
*
नेक कर्म कर कीर्ति पा, मंगल हो चहुँ ओर।
परहित कर इंसान तो, नाच उठे मन मोर।।
*
आध्यात्मिक शुभ कर्म से, मनुज मनुज हो मीत।
मिलतीं शत शुभकामना, सके ह्रदय भी जीत।।
*
महिमा माने योग की, विश्व कर रहा नित्य।
सब रोगों से मुक्ति पा, सतत करे सत्कृत्य।।
*
अजर-अमर वह लेखनी, जो लिखती नित सत्य।
माँ वाणी की कृपा से, करती सदा सुकृत्य।।  
*
कर्म  हमारा धर्म है, कहते वेद पुरान।
सच्चे मन से कीजिए, हों प्रसन्न भगवान।।
*
जैसे होंगे कर्म फल, वैसे होंगे मीत।
अपनों के संग गाइये, प्रभु के मधुरिम गीत।।
*
बच्चे तो भगवान का, होते हैं प्रतिरूप।
दर्शन इनमें कीजिए, राम-कृष्ण के रूप।।
*
सुघड़ लाड़ली जानकी, हिय प्रियतम रघुनाथ।
थकन भुला मुस्का रहीं, वन में रघुवर साथ।।
*
सुफल सुफल ही सुफल है, जब हों सुफल सुकाज।
सुयश सुयश बढ़ता रहे, संगम प्रभु का आज ।।
*
रघुवर शोभित हो रहे, जनक-लली प्रभु-साथ।
जगत जगत को मोहते, सरस सरस रघुनाथ।।
*
रमण-रमण सुंदर रमण, रमण-रमण तन श्याम ।।
रमण-रमण सम राधिका, रमण-रमण घनश्याम ।।
*
सुमन सुमन चहुँ चहुँ दिशा, सुमन सुमन अरु माल ।
सुमन सुसज्जित भवन है, सुमन सुमन प्रभु लाल ।।
*
सुमित सुमित प्रिय सुमित है, सुमित सुमित मन आज ।
चरण-चरण रज चरण है, हृदय हृदय रघुराज ।।
*
खोया है बचपन  कहीं, सारे देखो आज ।
गुम हो गईं कहानियाँ, छूटे सकल सुकाज ।।३५ 
*

मेल जोल से दूर हैं, मोबाइल ही यार ।
वाहन लेकर चल दिये, कहीं ढूंढने प्यार ।।
बातें लगती हैं बुरी, जो कोई समझाय ।
छोटी सी ही उमर में ,स्वयं गुरू बन जाय ।।
मानव मूल्यों का करो,  सतत् सदा  सत्कार ।
प्रेम भाव मिलकर रहें, तभी  चलत  संसार  ।।
सच्ची मानवता वही, जिससे हो  कल्याण ।
मानव हिय अनमोल है, इसमें बसते  प्राण ।।
फैली है चहुँ ओर ही, ममतामयी  सुवास  ।
मधुरिम- मधुरिम  हो गया, प्रिय पर अब विश्वास ।।
शिव शंकर के शीश पे, आय विराजी आप ।
निर्मल जल की स्वामिनी, पूजो कटते पाप ।।
सागर  नदियाँ अमिय हैं, जानो तुम यह रीत ।
आशा  पूरी  करत  है,  भक्ति  रत्न अरु प्रीत ।।
प्रेम  रत्न चहुँ ओर है,  सारे  मानो आज ।
मिलत जगत है भगत को, जीवन का यह राज ।।
मुश्किल घटती  है तभी , जब लें  प्रभु का नाम ।
अभी समय है  जागिए,  मिल    जायेंगे राम ।।
*********------*********------
बिन मुश्किल के नहिं बने, जग में कोई काज ।
कदम बढ़ा साथी तभी, मिले सफलता  आज ।।
सबको नित प्रति चाहिए, अच्छा भोजन रोज ।
मिलजुल कर रहते सभी, तब बढ़ जाता ओज ।।
नित्य योग को कीजिए, मिलकर सह परिवार ।
यश वैभव उन्नति  मिले, बने  सुखद  आधार ।।
सच्चाई की राह में, काँटे  मिलते जाय ।
प्रेम भाव से प्रभु मिले, सच्चा सुख उपजाय ।।
श्रद्धा अरु विश्वास का,   अद्भुत है  संयोग ।
अंध भक्ति  से दूर  हो, बने  जागरुक  लोग ।।
दुर्लभ  मानव  जन्म है, इसे बनाएँ  खास ।
दुर्व्यसनों को छोड़ के, मधुर  जागाएँ  आस ।।
अति होती है सदा से,  हरदम  ही बेकार ।
भक्ति भाव जीवन जिएँ,  हों प्रभु पर बलिहार ।।
कथनी करनी में नहीं,  करना  कोई  भेद ।
कठिन भले जीवन लगे, नहिं रखना  मतभेद ।।
लगन लगी श्री राम की, भजती प्रभु को आन।
हाथ जोड़ विनती करूँ,  अज्ञानी  मोहि  जान।।
धनुष विराजे हाथ में,  संकट काटो नाथ ।
शरण तिहारे आ गयी, कीजे आप सनाथ ।।
* बप्पा  को पूजें सभी, गौरा भोले संग ।
चारों वेदों ने कहा,  मैय्या मोहे रंग ।।
संगम के * साहित्य को, देखो जाने लोग ।
जैसी होगी लेखनी,  वैसा होगा भोग ।।
संगम होवे ज्ञान का,  ऐसा कीजे कर्म ।
गुरु आज्ञा को  मान के, पालें साँचा धर्म।।
मनुज सदा  साहित्य में,  रचो नित्य आयाम ।
हिंदी का सम्मान हो,  ज्योतित आठो याम ।।
दोहे का होवे सृजन, आओ वीर सुजान ।
छंदों से शाला सजे, बढ़े ज्ञान अरु शान ।।
दोहे  लिखना  है सभी , रखो ध्यान तुम धीर ।
भाव शिल्प आधार हो, तभी बनोगे वीर ।।
कठिन परीक्षा की घड़ी, जब भी सम्मुख आय ।
याद प्रभू को जो करे,  वही  जीतता जाय ।।
शिव की पूजा कीजिए, शुभ होंगे सब काज ।
चंदन वंदन अर्चना,   मिल के कीजे  आज ।।
लक्ष्मी पूजन कीजिए, हाथ जोड़ कर रोज ।
विष्णु प्रिया माँ आप हैं, सुरभित सुमन सरोज ।।
नाम सुजाता है भला,  जग को जो जी जाय ।
मधुर मधुर जो बोलता , मधुर मधुर फल पाय ।।
अवध सुहावन  लग रहा, देखो कैसा आज ।
सिय  सियवर  का आगमन, शोभित सुफल सुकाज ।।
अधम अधम  अरु अधम ही, करे सुयश का नाश ।
पापी हिय में बसत है, दुष्ट जीव कर पाश ।।
मंजिल उनको ही मिले, जो चलते अविराम ।
एक लक्ष्य को साधिए, तभी बढ़ेगा नाम ।।
सतत परिश्रम जो करे, वह ही विजयी होय ।
भक्ति भाव हिय धार ले, मनुज नहीं वह रोय ।।
राम राम श्री राम हैं, जग के पालनहार ।
नित्य भजन  जो भी करे, वो हो भव से पार ।।
******-----*******-------******
धरती अम्बर एक से, लगते हैं प्रभु आज ।
ओम मंत्र गुणगान से, सुधरे सकल समाज ।।
करती विनती हूँ  सदा,  शारद मैया रोज ।
भक्तों को माँ ज्ञान दें, भरें  हृदय में ओज ।।
चमत्कार की आस में,  मत बैठो बलवीर ।
कर्म करो योगी बनो,  मनुज बनो रणवीर ।।
चमत्कार होवे तभी,  जब गुरु  किरपा होय ।
शरण गुरू की जो गया, भगवन मिलते  सोय ।।
ओजमयी व्यक्तित्व ही, है जिनकी पहचान ।
चमत्कार हो कर्म से,  बढ़े  मान  अरु शान ।।
मातु पिता आशीष से, चमत्कार  हो जाय ।
नाम करे जग में सदा,  जन्म सफ़ल कहलाय ।।
चमत्कार  हो जात है, यदि दृढ़ हो विश्वास ।
मंगल मंगल हो सदा, पूरण होती  आस ।।
सच्ची मानवता वही, जो  कर दे कल्याण ।
मानव हिय अनमोल है, इसमें बसते प्राण ।।
चलो सजायें पटल को, आत्मकथ्य लिख  धीर ।
सहज  सुखद संदेश हो,  कभी नहीं  हो  पीर  ।।
खट्टी- मीठी  याद को,  लिखना होगा  आज ।
कुछ मनचाही बात भी, बनती सुखद  सुकाज ।।
मान तिरंगे का रखा, जब तक तन में प्राण ।
ऐसे वीर शहीद को,    बारम्बार  प्रणाम ।।
आस और विश्वास की, बड़ी अनोखी प्रीत ।
हिय में धारण जो करे, वो जग जाए जीत ।।
गीत प्रभू के गाइए, मन में रख विश्वास ।
शरण गहे के पूरते, सारे सुफल प्रयास।।
मन मोहन में रम गया, ज्यों सागर में नीर ।
कृपा करें गोपाल जी, रहे नहीं तन पीर ।।
नाम जपो श्री कृष्ण का, तभी मिटेंगे पाप ।
सच्चे मन से कीजिए, दान पुण्य सब आप ।
दानों में सबसे बड़ा , अन्न दान को जान ।
जीवन इससे ही चले , माने सकल जहान ।।
सबसे मीठा जगत में, वाणी का है प्यार।
इससे हिय को जीत के, बन जाते  रसधार ।।
मुश्किल घटती  है सभी , जप लो प्रभु का नाम ।
अभी समय है जागिए, मिल जायेंगे राम ।।
बिन मुश्किल के नहिं बने, जग में कोई काज ।
कदम बढ़ा साथी तभी, मिले सफलता  आज ।।
अहंकार अभिमान ही,  करते  सबका नाश ।
दम्भ दर्प को छोड़ के, करिए  सफ़ल  प्रयास ।।
जीवन के ये चार दिन, देखो हैं अनमोल ।
भजन भगत तब सफल हो,जब हों मीठे बोल ।।
वाणी  तो  वरदान  है, शारद मातु महान ।
वंदन पूजन  कीजिए, मानत सकल जहान ।।
लक्ष्य बना कर कीजिये, सपनों को साकार ।
तब ही मंजिल मिलत है, बनत सुखद आकार ।।
नेक कर्म जो करत है, जग में सफल कहाय ।
चार दिनों की  जिंदगी, सब  के  बनो सहाय ।।
हर्षित हैं साथी सभी, दिखती नयी तरंग ।
झूम झूम नाचे सभी, हिय में  उठी  उमंग ।।
*********** 
मनमोहन राधा बने, नील वर्ण भरमाय।
धरती मधुवन सम लगे, रोम- रोम हरषाय।।?
*
अकड़-अकड़ कर दंभ ही, अभिमानी बन जाय ।
ठसक  हेकड़ी  दर्प से,  अहंकार पनपाय ।। 
*
साहित्यिक उपहार को, चलो सहेजें आज ।
संगम नदियों सा रहे, सुरभित सुफल सुकाज ।।
*
आओ! मिलकर प्रण करें, स्वदेशी अपनाय।
प्रकृति धरा के रंग से,  सुरभित तन खिल जाय।।
*
अजर -अमर होवे सदा, साचे-साचे कर्म ।
मनवा तू बस धीर से,  सदा निभाये धर्म ।। 
*
अंधेरा अरु अंध ही, अंधकार कहलाय ।
तिमिर स्याह तम अंधता,  अँधियारा  बन जाय ।।
*
सरस सुहावन बाग है, मधुर मधुर महकाय।
सुरभि सुरभि पावन लगे, मनुज मनुज हरषाय ।।
*


पढ़ने बैठी जब भूगोल इतिहास उसमें नज़र आया पीछे था सामान्य ज्ञान और था गणित का काला साया । अंग्रेजी लगा रूठ गयी है दूर व्याकरण को भी कर चुकी है वो किताब से हंस रही थी मानो उपहास कर रही थी । हिंदी ,संस्कृत बोल रही थीं शायद वार्तालाप कर रही थीं चुप चाप उनको सुन रही थी उनकी बातों को सोच रही थी । सारे विषय सामने आने लगे विज्ञान का ज्ञान देने लगे मन मनतिष्क भी सुन रहा था लगा यह भी कुछ कह रहा था । बन्द करके आँखों को बैठी सोचा सबसे मुक्ति मिलेगी पर आये ख़्वाबों में सभी विषय बोले आओ सब नाचे गायें । खोली आँखे -थम गये विषय अंधेरों में जैसे जम गये विषय किताबों में निराश ही बैठे रहे खुद अपना इतिहास रचते रहे । फिर अचानक से रौशनी आई देखा सामने एक कंप्यूटर था गूगल खोल कर जब खोजा सारे विषय फिर यहाँ भी पाये ।
--------------------------------

navgeet

नवगीत 
सड़क पर
*
सड़क पर 
सिसकती-घिसटती 
हैं साँसें। 
*
इज्जत की इज्जत 
यहाँ कौन करता?
हल्ले के हाथों 
सिसक मौन मरता। 
झुठला दे सच,
अफसरी झूठ धाँसे। 

जबरा यहाँ जो 
वही जीतता है। 
सच का घड़ा तो 
सदा रीतता है। 
शरीफों को लुच्चे 
यहाँ रोज ठाँसें।
*
सौदा मतों का 
बलवा कराता। 
मज़हबपरस्तों 
को, फतवा डरता।    
सतत लोक को तंत्र 
देता है झाँसे। 
*
यहाँ गूँजते हैं
जुलूसों के नारे। 
सपनों की कोशिश 
नज़र हँस उतारे।
भोली को छलिए 
बिछ जाल फाँसें। 
*
विरासत यही तो 
महाभारती है। 
सत्ता ही सत को
रही तारती है 
राजा के साथी 
हुए हाय! पाँसे। 
*
२०.१.२०१८ 


navgeet

नवगीत:

शीत से कँपती धरा

शीत से कँपती धरा की
ओढ़नी है धूप
कोहरे में छिप न पाये
सूर्य का शुभ रूप
*
सियासत की आँधियों में 
उड़ाएँ सच की पतंग
बाँध जोता और माँझा, 
हवाओं से छेड़ जंग
उत्तरायण की अँगीठी में 
बढ़े फिर ताप-
आस आँगन का बदल 
रवि-रश्मियाँ दें रंग
स्वार्थ-कचरा फटक-फेंके
कोशिशों का सूप
*
मुँडेरे श्रम-काग बैठे 
सफलता को टेर
न्याय-गृह में देर 
कर पाये न अब अंधेर
लोक पर हावी नहीं हो 
सेवकों का तंत्र-
रजक-लांछित सिया वन 
जाए न अबकी बेर
झोपड़ी में तम न हो
ना रौशनी में भूप
*
पड़ोसी दिखला न पाए 
अब कभी भी आँख
शौर्य बाली- स्वार्थ रावण 
बाले निज काँख
क्रौंच को कोई न शर 
अब कभी पाये वेध-
आसमां को नाप ले 
नव हौसलों का पांख
समेटे बाधाएँ अपनी
कोख में अब कूप
*
२१.१. २०१२ 

दोहा दुनिया

शिव निष्कल निर्मल सकल,
सजा कलानिधि माथ।
कलाकोकिला उमापति,
शिव पा कला सनाथ।।
*
शिव ‌पिंडी अणु-कणमयी
रूप न जहां विकार।
सिमटे तो हो शून्य ही,
फैल अनंत-अपार।।
*
सृष्टि स्थिती संहार शिव,
तिरोभाव शिव आप।
अनुग्रह पंचम कर्म से,
शिव रहते जग-व्याप।।

ब्रम्हा को छल-दण्ड दे,
कहा न पूजन-पात्र।
पछताए विधि, क्षमा पा,
यज्ञ-पूज्य हैं मात्र।।
*
ब्रम्ह-शीश गल-माल कर,
मिटा दिया हर बैर।
भैरव भी शिव-मूर्ति हैं,
मांग रहा जग खैर।।
*
असत-संग कर केतकी,
हर-पूजन से दूर।
शापित, सत्पथ वरण कर,
हरि पूजे, मद चूर।।
*
'अउम' ॐ शिव-बीज जप,
नश्वर होंगे मुक्त।
मंत्र-जाप बिन ॐ के,
हो न सके फल-युक्त।।
*
२३.१.२०१८, जबलपुर

सोमवार, 22 जनवरी 2018

दोहा शतक

श्री गणेश (बुधवार, 16 सितम्बर, 2015)
लेकर नाम गणेश का, मन में रख विश्वास
कर्म  करो सब   प्रेम से, पूरी होगी आस
गणपति का घर आगमन, देता है सन्देश
विपदा होगीं दूर सब,  मिट जायेंगे क्लेश
गली  गली  में  सज  रहा, मेरा भारत देश
एक हाथ लड्डू लिये, शोभित  यहाँ गणेश
नित्य  नई   ऊँचाइयाँ,  छुए  हमारा  देश
सब मिलकर आगे बढ़ें, करिये कृपा गणेश



देवों  के  हो  देवता,  पूजित  प्रथम गणेश
ऋद्धि सिद्धि के साथ प्रभु, घर में करो प्रवेश 

जय माता दी

घर आँगन में सज रहा, माता का दरबार
दुर्गा  माँ  की  भक्ति में, आनंदित संसार
मतलब के संसार में, तुम्हीं एक अवलंब
नैया  पार लगाइये,  हे  माता  जगदम्ब
करते  जो आतंक का, दुनिया में व्यापार
माँ रणचंडी बन करो, उन सब का संहार
भीतर बाहर हर जगह,  छिड़ा  हुआ है युद्ध
माता रानी कर कृपा,  हो  जाए  सब शुद्ध 
आतंकी  करने  लगे,  चारों   और  प्रहार
माँ  दुर्गा अब  कीजिये,  दुष्टों  का  संहार



मानवता  संसार से,  हो  न  कभी भी लुप्त
आकर मातु जगाइए,  पड़े  हुए  सब  सुप्त



भोतिकता  की   चमक  में,  अंधे  हैं सब लोग
माँ अब अब आँखें खोल दो, बढे न अब ये रोग
छुए न मन को छल कपट, जब तक तन में जान |

देना   मातु  सरस्वती,   मुझको  यह  वरदान ||

भोले बाबा (05.08.15)
भोले बाबा  के यहाँ, लम्बी  लगी  कतार
दूध फूल  पत्ते  चढ़ें,  महिमा  अपरम्पार
पात  फूल  से  खुश रहें, मेरे  भोले नाथ
बाँटें सबको  सम्पदा, भर भर दोनों हाथ
खुला  हुआ   सबके  लिए,  भोले का दरबार
रोक-टोक कुछ भी नहीं, मिलता सबको प्यार
हिंसा  से  होने  लगा,  दुखी  आज संसार
भोले  बाबा   कीजिये,   दुष्टों   का संहार
कान्हा (04 सितम्बर 2015)
सुंदर वस्त्रों से सजे, जगह जगह बाजार |
आया कान्हा जन्मदिन, छाई ख़ुशी अपार ||
कान्हा  तेरी   बाँसुरी,  लेती मन को मोह |
मधुर मधुर आरोह है, मधुर मधुर अवरोह ||



जब कान्हा ने बांसुरी, होठों से ली चूम |
नाची धरती मोर सी, गगन उठा फिर झूम ||



मुरली  सुन कर श्याम की, छाया मन उल्लास |
यमुना तट पर गोपियाँ, चलीं रचाने रास ||



कुछ तो जादू कर रही, मुरली की धुन खास |
गाय  रँभाती  जा रही,  मनमोहन के पास ||



प्यारी छवि घनश्याम की, गहें मुरलिया हाथ |
बड़े  प्रेम  से  नच  रहे, हर गोपी  के साथ ||
राजमहल को तज दिया, छोड़े भोग विलास |
मीरा  होकर  बावरी, चली  कृष्ण के पास ||
वीर जवान (24 अप्रैल 2015)
सरहद  पर रहता खड़ा, लिये हथेली जान |

ऐसे वीर जवान पर, क्यों न करें अभिमान ||
न्योछावर तन मन किया, किया न कोई शोक |
ऐसे  वीर  जवान  को,  मेरी  शत शत ढोक ||
सुख में दुख में हर जगह, आ जाता है काम |
हे   आँसू    तू   धन्य  है, मेरा तुझे सलाम ||
टी वी  पर दिन रात ही,  होता है यह शोर
कब किसने घपले किये, कौन बड़ा है चोर
(25 अक्तूबर 2015)
जो था दर  दर घूमता, करवाने सब काज
दर्शन दुर्लभ  हो गये, उस  नेता के आज
नेता  भाषण दे  रहे, भूखे  मरें  किसान
उनके घर रोटी नहीं, उनके घर पकवान
दे गरीब रिश्वत यहाँ, काट काट कर पेट
नेता  अफसर  के मगर, बढ़ते जाते रेट
भरें  तिजोरी   रात  दिन, लगे हुए हैं रोग
नहीं भरोसा आज का, कल को जोड़ें लोग



सावन सूखा ही गया, हुयी नहीं बरसात
खेतों में  पीले पड़े, कोमल कोमल पात
छंद लिखो दोहा लिखो, और लिखो नवगीत
शेर  शायरी  ग़ज़ल  से,  सदा बढाओ प्रीत
पानी  को तरसे कभी, कभी न मिलती धूप |
जिन्दा है पीपल मगर, बिगड़ गया है रूप ||



बुद्ध यहाँ  पैदा हुए, मिला यहीं पर ज्ञान
अब  उनके  ही देश में, लड़ते हैं इंसान
जाति-धर्म के नाम पर, नेता  माँगें  वोट
चमचे भी कुछ जुगत कर, कमा रहे हैं नोट



यहां वहां भटके फिरें, मन में रखकर खोट

लोभ मोह के फेर में,  खाते दिल पर चोट
सच को बस पकड़े  रहो, है यह सच्चा मीत
झूठ  हमेशा  हारता,  होती  सच की जीत
हँसते हँसते कीजिये, आप अतिथि सत्कार
छोटी सी मुस्कान भी, देती  ख़ुशी  अपार
तन से श्रम करते रहो, मन को रखो फ़क़ीर
आती अच्छी नींद फिर, रहता स्वस्थ  शरीर
आओ हम सब खोल लें, बंद हृदय के द्वार
आर-पार बहती  रहे,  शीतल  प्रेम बयार
सदाचार  सद्भावना,  मानवता  का  मूल
आदत इसे बनाइये,  खिलें प्रेम  के फूल
प्रेम और सद्भाव  का,  सस्ता  सरल उपाय
आओ सब मिल बैठकर, पियें एक कप चाय



मन से मन जब मिल गया, मिला हाथ से हाथ
एक  दूसरे  का  हुआ,  जीवन भर का  साथ



होतीं  सबसे गल्तियाँ,  तुरत कीजिये माफ़
मान  बढ़ेगा  आपका, हृदय रहेगा साफ़
खुशियाँ सब तुझको मिलें, मिले न कोई पीर
मेरे  नयनों   से  बहे,  तेरे   दुख  का नीर
भीड़ भाड़ है सड़क पर, लगा हुआ है जाम
गाँव छोड़कर शहर में, मिला किसे आराम
जाट आन्दोलन  (22/2/16)



जाने कैसे  हो  गये,  हरियाणा के जाट
पूरे भारत देश की, खड़ी कर रहे खाट



आरक्षण की आग में,  झुलस रहा है देश
नेताओं  के हैं मजे,  कलुषित  है  परिवेश



जो भी  देखो कर रहा,  रेलों का नुकसान

जाट कभी गुर्जर कभी, कभी पटेल महान 



फसल कटी पैसा मिला, नहीं बचा कुछ काम
जाटों ने मिलकर किया, सबका चक्का जाम

आतंक

गली  गली  फैला  रहे, इतना   जो आतंक
भूलें   सारी   चौकड़ी,  ऐसा  काटो  डंक
पिद्दी  सा   इक  देश है,  जिद्दी पाकिस्तान
कब  तक  झेलेगा   इसे,   मेरा  हिंदुस्तान
पाक सुधर सकता नहीं, कर लो कितनी बात
बातचीत  को   छोड़कर, अब मारो दो लात
मैदानों   में  जीत  है,  टेबल पर है हार
हमें समझ आयी नहीं, अपनी ही सरकार 
सारी दुख तकलीफ का, मिला हमें उपचार 
सुमिरन गुरुवर का किया, दिल में बारम्बार
तरसें महलों बीच हम, दिखती कहीं न धूप |
शुद्ध  हवा भी खो गयी, लुप्त हुए जलकूप ||

लालबहादुर  ने  किया, सबसे ये  आह्वान |
इज्जत मिले किसान को, वीरों को सम्मान ||
सरकारी  परियोजना, बस कागज़ का फूल
दिखने  में  अच्छी लगे, है आँखों  में  धूल



जाति-धर्म अब हो गये,  नेता के हथियार
भोली जनता पर करें, मिलकर खूब प्रहार
वे तो  सोये  चैन  से, सुनी  नहीं  फरियाद
हम ही तड़पे रात भर, कर कर उनकी याद
यहाँ  वहाँ  पर बन गयीं, पत्थर की दीवार
कच्चे आँगन जो मिला, था अदभुत वह प्यार

करवा  चौथ  मनाइये,  पत्नी  जी के साथ
जीवन भर मत छोड़िये, पकड़ा है जो हाथ
घर पर जल्दी आइये, छोड़ छाड़ सब काम
मिले नहीं  पतिदेव  बिन,  पत्नी को आराम
चाँद निरखता चाँद को, मधुर सुहानी रात
पति की पूजा रोज हो, बन जाये फिर बात
करक चतुर्थी में मिला, पतियों को सम्मान
फूले  फूले  सब फिरें,  प्यार चढ़ा परवान 



वर्षा ऋतु और सावन (05.08.15)
सबको मिले न एकसा, सावन जी का प्यार
धरती प्यासी  है कहीं,   कहीं  मूसलाधार
हरियाली  करने  लगी, धरती का श्रृंगार
श्रावण जैसा मास कब,  आता  बारम्बार
कुहू  कुहू  कोयल  करे, वन  में  नाचे  मोर
जियरा ये धक धक करे, कहाँ छिपा चितचोर



तितली भंवरे खुश हुए, मन में सजी उमंग
कलियों को भाने लगा, अब भँवरों का संग
बहुत दिनों के बाद में, निकली है कुछ धूप
बैठ  लॉन  में  पीजिये,  गरम  टमाटर सूप



शीत  लहर चलती रही, पूरे दिन भर आज
थर थर हम काँपत रहे, हुआ न कोई काज



घंटी  बजती द्वार पर, जाकर खोले कौन
ओढ़ रजाई  खाट  में, पड़े हुए सब मौन

बसंत ऋतु

पंछी कोटर छोड़कर,  निकले बाहर आज
छूना है आकाश  को,  है बुलंद   परवाज



बौर आम  पर छा रहा, आया है मधुमास

मौसम है ये प्रीति का, दिला रहा अहसास



वासंती  मौसम  हुआ, फूल  बिखेरें रंग
चलो बाग़ में घूम लें, आप और हम संग

सद्भाव

बड़े  बड़े  हैं देश जो,  डाल रहे हैं फूट
हथियारों  को  बेचकर, मचा रहे हैं लूट



हर घर में दीपक जले, अन्धकार हो नष्ट
खुशहाली से दूर हों, जनता के सब कष्ट
सड़क किनारे जल रहा, देखो एक अलाव
सारे  मिलकर  तापते, अदभुत है सद्भाव
चार  चरण  दो  पंक्तियाँ, मात्राएँ  चौबीस
तेरह ग्यारह बाद यति, दोहा लिखो नफीस 
भारत  की संसद हुई,  भिन्डी का बाजार
इतना ज्यादा शोरगुल, कान पक गये यार
लोकतंत्र को कर  रहे, ये  नेता बदनाम
पूरा  वेतन  ले  रहे, करें न कोई  काम
संसद करते ठप्प सब, मचा मचा कर शोर
खुद के अन्दर  झाँक लें, मिल जायेगा चोर
पचासवें जन्मदिवस पर
धीरे  धीरे  उम्र   के,  बीते  बरस पचास
झोली खुशियों से भरी,  मन में है उल्लास



दुनियाँ में मिलता रहा, मुझे सभी का प्यार
जीवन  के सपने सभी,  आज हुए साकार
जे एन यू  विवाद पर (16 फरवरी 2016)
अभिव्यक्ति  के नाम पर, मत  करिये विद्रोह
इतना   भी  अच्छा  नहीं,  आतंकी से  मोह



पढ़ने लिखने को खुला, सरकारी संस्थान

आज वहाँ पर हो रहा, भारत का अपमान



दुश्मन मेरे  देश  के, हुए  जहाँ आबाद 
जनता का पैसा वहाँ, करिये मत बर्बाद



विद्यालय में  छात्र  का, कैसा  था बर्ताव
एक मीन ने कर दिया, गन्दा सब तालाब
इलाहाबाद (18/04/16)
मिलकर सबने आज जब, थामा मेरा हाथ 
खुशियाँ दूनी हो गयी, पाकर सबका साथ
गर्मी के दोहे (05/05/16)
गर्म हवाएं कर रहीं, सबका मन बेचैन
हरियाली को देखने,  तरस रहे हैं नैन
भले आज हम हो गए, कम्प्यूटर में दक्ष
मगर देश में जल बिना, सूख रहे हैं वृक्ष

फल

जगह  जगह पर दिख रहे, तरबूजे के ढेर |
गर्मी से  राहत  मिले,  बीस  रुपैया सेर ||
सबसे  बढिया पीजिये, गन्ने जी  का जूस |
थोड़े  पैसे  में करो, तुम राहत महसूस ||
कोल्ड ड्रिंक मत पीजिये, होती  है बेकार
मीठी लस्सी में  मिले, अपनों जैसा प्यार
जब अनार देने लगा, निज मूँछों पर ताव
मौसम्मी के चढ़ गए, आसमान पर भाव
लीची जी कहने लगीं, तू मुझसे रह दूर
तेरे बस का कुछ नहीं, तू ठहरा मजदूर
दुनिया में  असमानता, फैलाती आक्रोश
कभी-कभी मानव यहाँ, खो देता है होश



पंछी  सब  गायब  हुए, नहीं  घोंसले आज

सुबह-सुबह आती नहीं, कोयल की आवाज
स्वागत करना अतिथि का, रही हमारी रीत
कितना  भी  अनजान हो, हो जाती है प्रीत
कितना भी परिश्रम करे, दुनिया में इंसान
बिन श्रद्धा  पाता  नहीं, गुरु से पूरा ज्ञान 
नहीं किसी का टिक सका, जग में कभी गरूर
लाखों   के  मालिक  यहाँ,  हो  जाते  मजदूर
पूर्ण  समर्पण  से  करो,  चाहे  जो हो काम
मिले सफलता आपको, हो फिर जग में नाम
बिना त्याग होते नहीं,  हैं रिश्ते  मजबूत
जहाँ त्याग की भावना, होता  प्रेम अकूत
दौलत  से  जो  पा रहे,  दुनिया में सम्मान
जैसे  ही  दौलत गयी,  झेलें फिर अपमान 
आप  कभी मत  मानिए,  उल्टे सीधे तर्क
मेहनत निष्ठा लगन  से,  करते रहिये वर्क
आज  विदेशों  में  बढ़ी, भारतीय की मांग
पर  भारत  में खींचते,  इक दूजे की टांग
देश छोड़ कर जा रहीं, क्यूँ प्रतिभाएं आज
कुछ तो गड़बड़ है यहाँ, जो इतनीं नाराज
जल्दी ही कुछ कीजिये, कर प्रतिभा सम्मान
वर्ना  कैसे   देश  का,  होगा अब कल्यान
सावन  में नचते  रहे, कभी  जहाँ पर मोर |
मोटर कारें आजकल, वहाँ  मचातीं  शोर ||

योग

कुछ  खर्चा आता नहीं, सरल  सहज है योग |
रोजाना अभ्यास   से,  दूर  रहें  सब   रोग ||
सारी  दुनिया  कर  रही, अब  भारत का योग |

सबका तन मन स्वस्थ है, हर्षित  हैं सब लोग ||
जगह  जगह पर चल रही, योग ध्यान की क्लास |
तन मन कर के शुद्ध सब, कर लो कुछ अभ्यास ||
जो देखो   वो  कर   रहा, आसन   प्राणायाम |
गूँज रहा   है  विश्व  में, भारत  का  ही  नाम ||
कर कपाल भाती  जरा, फिर अनुलोम विलोम |
स्वस्थ रहेंगे   फेफड़े,  बोलो यदि  नित ओम ||



चीन के  सन्दर्भ में (24/06/2016)
रोजी रोटी  के  लिए,  भारत  में  व्यापार
लेकिन अंदर से करे, चीन पाक को प्यार



मिल न सकेगा विश्व  में, भारत जैसा देश
जहाँ चीन के माल का, होता  खूब  प्रवेश



जिस दिन मेरे देश के, भड़क गए सब लोग
बंद  सभी  हो   जायेंगे,  चीन  तुम्हारे भोग



खेती  जो  आतंक  की, करता है दिन रात
दुनिया में अब कर रहा, चीन उसी की बात

बरसात

बड़े दिनों  के बाद में, हुई  यहाँ बरसात
मेरे पौधों के हुए ,आज  प्रफुल्लित गात
बारिश से सड़कें धुलीं, गायब सारी धूल
नव उमंग लेकर खिले,आस पास में फूल
मानव   ने  पैदा   किये,  कैसे  ये  हालात
बादल रूठा  आजकल, सुने  न कोई बात



कहीं  प्रार्थना  हो  रहीं,  कहीं  हो  रहा होम
सब कुछ हमने कर लिया, नहीं पसीजा व्योम



रामू  हरिया   खेत  में,  बैठे   हुए  उदास
सूखा गया  अषाढ़ तो, अब सावन से आस

सावन अब तो झूम कर, मचा  रहा उत्पात
गाँव  शहर  में  बाढ़ से, बिगड़ रहे हालात
नालों  के  भी  आजकल,  बढे हुए हैं भाव
जबरन घर  में घुस हमें, दिखा रहे  हैं ताव
पहली-पहली जब हुई, मौसम की बरसात
भीषण  गर्मी से मिली, थोड़ी बहुत निजात



आज  घटाएँ  कर  रहीं, पानी  की बौछार
तपती धरती को मिला, आसमान का प्यार

आतंक

धर्मक्षेत्र  के नाम  पर, कैसा ये  आतंक
निर्दोषों को  मारकर, माथे लगा कलंक
पाल रहे आतंक जो,  देकर  अपनी छाँव
सारे जग में फिर कहीं,  पा न सकेंगे ठाँव
जब  जब  रन  में  तू  भिड़ा, हारा है नापाक
फिर क्यों जबरन मुँह उठा, इधर रहा है ताक 
पाक न तू ज्यादा उछल, थोड़ी सी रख ठंड
मिलने  वाला  है तुझे,  सब  पापों का दंड
पाकिस्तानी हरकतें, सहिये मत अब और
सरहद की हद तोड़कर, कब्जालो लाहौर
आज  शहीदों  के लिए, हुआ  देश  बेचैन
उद्वेलित  सबका  ह्रदय, भीग  रहे  हैं नैन
जन जन में आक्रोश है, साहब जी हैं मौन
पुरुस्कार  सम्मान  अब, लौटाएगा  कौन
सहनशीलता देश  की, देख रहे हैं  लोग
धीरे धीरे  पल गए,  पाकिस्तानी रोग



अब तो  करिए सर्जरी, और न बचा इलाज
काट पीट कर फैंक दो, सब आतंकी आज



और  बहेगा कब  तलक, निर्दोषों  का रक्त |
खत्म करो आतंक को, निकल न जाए वक्त ||



है  जितनी  भी  ऊर्जा,  करिए  मत बेकार
करिए  कुछ  सत्कर्म  तो, होगा  बेड़ा पार
हिरन मरा, नर भी मरे, मौन रहा  कानून
बरी  सदा   होते  रहे, जो  थे अफलातून
सोच  समझ कर बोलना, बोलो जो भी बोल
कभी कभी बिन बात के, खुल जाती है पोल
सड़कों पर बरसात का, जमकर हुआ प्रहार
चाँदी   ठेकेदार   की,  खूब  हुई  इस बार
सड़कों   में  गड्ढे  यहाँ,  बने हुए तालाब
नेता मछली ढूँढते, उनका अलग हिसाब
छोटा सा परिवार हो, हो रिश्तों में प्यार
जीवन हो सबका सुखी, सुखी रहे संसार
मजदूरों की जिन्दगी, तनिक नहीं उल्लास
पड़े हुए  फुटपाथ पर, ताक रहे आकाश



डंडा देखें  पुलिस का, हो  जाते भयभीत
कौन गरीबों  का  यहाँ, हो  पाता है मीत



खून  पसीना  बन  बहे, मिले   न पूरा मोल
मेहनत कर के भी मिलें, उनको कड़वे बोल



देश  विदेशों  में  बढ़ा, भारत  का सम्मान
पूर्ण विश्व अब कर रहा, भारत का गुणगान
तुम्हें बारक जन्मदिन, जियो हजारों साल
जो भी देखे  स्वप्न  सब, पूरे  हों हर हाल



यूँ  ही  हम  सहते रहे,  होंगे अत्याचार
आओ सब मिलकर करें, दुष्टों का संहार
सदा रही है एकता, भारत की पहचान

जाति धर्म है बाद में, पहले हम इंसान



दिखें नहीं अख़बार में,  नारी अत्याचार
नारी  के माँ रूप को, पूजे यदि संसार

ताप्ती नदी

प्यारी बिटिया सूर्य की, नदी ताप्ती नाम
सुबह करो स्नान यदि, पूरे हों सब काम



जन्मी  मध्यप्रदेश  में, मुलताई के पास
मातु ताप्ती ने भरा, सबके मन उल्लास



शनिदेव  की  है बहन, है ये गंग समान
मातु  ताप्ती  नाम से, मिट जाता अज्ञान



महाराष्ट्र  गुजरात  भी, पाते   हैं उपहार
मातु ताप्ती से मिला, सबको खूब दुलार



उन्नत  खेती  हो गयी, और बढ़ा व्यापार
नदी  ताप्ती  ने भरे, खुशियों से घर द्वार



सुंदर  सुंदर  घाटियाँ,  सुंदर निर्मल घाट
मातु  ताप्ती  पर सदा, श्रृद्धा रहे अकाट



अर्पण तर्पण की यहाँ, बड़ी सरल है युक्ति
ताप्ती  माता  दे सदा, भवसागर से मुक्ति

काला धन

बात   हमारी   मान  ले, ज्यादा धन मत जोड़
कुछ से अपना काम कर, कुछ गरीब को छोड़
काला  धन  पागल  हुआ,  मचा  रहा उत्पात
भोली  जनता  को मगर,  समझ आ रही बात
अलमारी में कैद थे, जो हजार के नोट
जाते  जाते  दे   गए, नेताजी को चोट
कालेधन पर हो रहा, जब से यहाँ विचार
उधर गाँव में भैंस ने, छोड़ दिया आहार

जब हजार के नोट पर, पड़ी जोर से चोट
संसद  में  चलने  लगे,   बड़े पुराने नोट
ख़बरों में है आजकल, नोटों का व्यापार
देश गुलाबी हो गया, और मस्त सरकार
छुटभैये  नेता   सभी,  रोज  जा रहे बैंक
नित छपकर अखबार में, बढ़ा रहे हैं रैंक
नहीं बनाते बिल कभी, और न भरते टैक्स
वे  व्यापारी अब यहाँ, कैसे करें रिलेक्स
काले  धन के जोर पर, खूब पसारे पैर
अब चादर छोटी हुई, करो ठण्ड में सैर
माल हड़प कर और का, भरी तिजोरी खूब
हलुआ  पूरी  छोड़िये,  बची नहीं अब दूब
कैश-लैस व्यापार में, कुछ तो दम है यार
छुप न सकेगा अब यहाँ, कोई भी व्यवहार 
रोज हो रही धरपकड़, फँसे हुए हैं चोर
जनता तो  रस ले रही, नेता करते शोर
खड़ी हो रही आजकल, काले धन की खाट
मिलकर  सारे   चोर अब, ढूंढ रहे हैं काट
कालेधन की  लालसा, ले आई किस गाँव
उखड़ रहे बरगद यहाँ, कहाँ मिलेगी छाँव
हों चोरों के हाथ में, जब सरकारी कान
लागू कैसे देश में,  होंगे  नियम विधान

हिन्दुस्तान

नेता अफसर मौज में, मुफलिस यहाँ किसान
प्रतिभा  गईं  विदेश  में,  ये   है   हिंदुस्तान
सूनी सड़क न चल सके, नारी शक्ति महान
बच्चे  मजदूरी    करें,   ये   है   हिंदुस्तान

पढ़े  लिखे जो लोग हैं, करें नहीं मतदान
अनपढ़ मिल नेता  चुनें,  ये है हिंदुस्तान
बिन  पैसे हिलते नहीं, दरवारी, दीवान
पाता न्याय अमीर बस, ये है हिंदुस्तान

हिरन मरे या आदमी, बरी होय सलमान
बेक़सूर  हैं   जेल  में,  ये  है  हिंदुस्तान
फुटपाथों पर सो रही, जनता बिना मकान
नेता, चमचों  को  महल,  ये है हिंदुस्तान
जन्म दिन शुभकामना, सदा रहो खुशहाल
जीवन में  बस  प्रेम का, उड़ता रहे गुलाल
इक दूजे के साथ में, भरते  रहो उड़ान
जीवन भर  छाई रहे, अधरों पर मुस्कान
जन्मदिवस  पर आपने, मुझे दिया जो प्यार
नहीं भूल सकता कभी, यह अनुपम उपहार
किस मत ने किस्मत बदल, ली है कुर्सी छीन
राहुल  जी  जिग्नेश   से,  पूछें  बनकर  दीन



मांग  भरेगा  वह  तभी, जब पूरी हो मांग
पूरी करो न मांग अब, तोड़ो उसकी टांग
राष्ट्रभक्ति जिसके हृदय, बसती है हर वक्त
कहने  में संकोच क्या, हम हैं उसके भक्त
जो भी हो जिसका, रहे, मेरे तो प्रभु राम
उनके ही  सानिध्य में, मिला चैन आराम
जगह जगह जाकर किया, सबका ही उद्धार
सबके  प्रभु  श्री  राम  हैं, मानवता का सार
मन में सुमिरन जो करे, एक बार बस राम
छोटा हो या फिर बड़ा, बन जाता हर काम
जब  भी पृथ्वी पर बढ़ा, दानव अत्याचार

धनुष वाण ले राम ने, किया असुर संहार
बात पते  की  है यही, करना सदा यकीन
सुख ने आ दुख से कहा, मैं हूँ तुझमें लीन
बुद्ध पूर्णिमा पर विशेष (११.५.१७)
सदा शांति मन में रखो,  होना कभी न क्रुद्ध |
मध्य मार्ग को खोज लो, करो कभी मत युद्ध ||
राग   द्वेष  छूटे  सभी,  और हुआ मन शुद्ध |
त्यागे सुख, दुख देखकर, तब कहलाये बुद्ध ||
परमारथ  करते रहो, इसमें ख़ुशी अपार |
केवल खुद के ही लिए, जीना है बेकार ||



हरियाली का दिन मना, वृक्ष लगाकर आज
कागज़ मत बर्बाद कर, रख धरती की लाज
नारों  में मत उलझिए, करते रहिये काम |
मानव केवल कर्म से, पाता जग में नाम ||
धूल और कालिख उड़े, सड़कें रहतीं जाम |
गाँव छोड़ कर शहर में, रहती मस्त अवाम ||
हर आँगन में पेड़ हो, हर आँगन में गाय |
स्वच्छ रहे पर्यावरण, बड़ा सटीक उपाय ||
गौ माता का जो रखे, अपने घर में ध्यान |
दूध-दही खाकर सदा, स्वस्थ रहे इंसान ||
जन जन के संघर्ष को, जिसने दी आवाज |
ऐसे वीर सुभाष पर, है हम सबको नाज ||
भाषाएँ हैं अनगिनत, तरह तरह के वेश
हिंदी  बिंदी  के बिना, सूना  भारत देश
हिंदी भाषा का करें, हम सब मिल उत्थान
काम काज के साथ में, दिल से हो सम्मान
संसद में  होने लगी, हिंदी  में कुछ बात

निश्चित ही अब एक दिन, सुधरेंगे हालात



गूगल इनपुट टूल से, लिखना अब आसान
हिंदी  छायी  नेट पर,  भारत  की है शान
जर्मन  रूस  अमेरिका, चीन और जापान
निज भाषा में ही हुआ, इन सबका उत्थान
हिंदी  में  होने  लगे, हर सरकारी काज
करे राजभाषा सदा, सबके दिल पर राज
बनकर अर्जुन युद्ध कर, है यह कार्य पवित्र |
स्थापित  कर धर्म को, ज्यादा सोच न मित्र ||
विचलित मत  हो कर्म से,  है यह तेरा धर्म |
फल ईश्वर के हाथ है, सखा समझ यह मर्म ||
अविनाशी  आत्मा सदा, छोड़ो जग का मोह |
होना  ही है एक दिन, सबसे  यहाँ विछोह ||
चलना  सच के मार्ग  पर, निश्चित होगी  जीत |
थोड़ा सा बस धैर्य रख, विचलित मत हो मीत ||
जीवन भर सहती रही, सड़क हमारा भार |
बदले  में हमने दिए,  गड्ढों के उपहार ||
बादल  गरजे  तो  बहुत,  हुई नहीं बरसात |
आसमान सुनता कहाँ, धरती की कुछ बात ||



मीठी  है,  तीखी कभी, अंदर तक है मार |
मुझको तो अदभुत लगा, दोहों का संसार ||
तपे पतीला आँच पर, चमचा चमचम खाय |
अन्न  उगाता है कृषक, आढतिया ले जाय ||
बगुले   बैठे   घेरकर, हर नदिया  का तीर |
किसने समझी है यहाँ, मछली मन की पीर ||

दीपावली

लक्ष्मी जी का आगमन, लाया हर्ष अपार  ||

विघ्न हरण गणपति करें, आकर सबके द्वार  |
  आँगन  में   रंगोलिया, सजते तोरण  द्वार |
गुझियाँ लेकर आ गया, दीपों का त्यौहार ||
लड़ियाँ मिलकर सड़क पर, जमा रहीं हैं रंग ||
नाच  रही  है  फुलझड़ी, प्रिय अनार के संग |
आग  लगी जब पूँछ में, दौड़ चला रॉकेट |
कर लेगा वह आज ही, आसमान से भेट ||
कठिन नहीं कुछ भी यहाँ, सबसे करे अपील |
लिए  आग  को पेट में,  उड़ती  है  कंदील ||
मना  रहे  दीपावली,   जगमग  है संसार |
मिटटी की खुशबू लिए, आये दीप हजार ||
नए  नए  कपड़े  पहन, सखी सहेली संग |
बाल टोलियाँ नाचती, दिल में लिए उमंग ||
सूरज जा कर छुप गया, चंदा भी न समीप |
अंधकार  से  लड़  रहे,  छोटे छोटे दीप ||
विपदाएँ आयीं नहीं, कभी हमारे गाँव |
माँ के आँचल की रही, सबके सिर पर छाँव ||



पंछी बन  उड़ते रहो, खुला हुआ आकाश |
अपने पंखों पर सदा, रखो अटल विश्वास ||



खोलो मन की खिड़कियाँ, और हृदय के द्वार |
आर-पार  बहती  रहे,   शीतल  प्रेम बयार ||



आगे हाथ बढ़ा दिया, दिल में रखकर प्यार |
अपना सा लगने लगा, मुझको  ये संसार ||



औरों की खातिर जिये, बाँटे सबको प्यार
यादों  में रखता  सदा, उसको  ये संसार
आज सुबह जब मिल गया, खत का उन्हें जबाब |
कली  कली दिल की खिली, मुखड़ा हुआ गुलाब ||



पथराये  से हैं  नयन,  होठों पर है प्यास |
फिर भी ये मौसम लगे, जाने क्यों मधुमास ||



यादों  के बादल घने, मन है बहुत उदास |
दूर हुआ मुझसे बहुत, फिर भी लगता पास ||



दुनिया  मुझको चाहती, प्यारा यह अहसास |
लेकिन तू  मुझको लगे, अपनों में भी खास ||



खुशियों  का होता रहा, थोड़ा सा आभास |
लेकिन तेरे  बिन लगा, जीवन ये वनवास ||



सुबह हुआ जब सूर्य के, आने का ऐलान |
कलियों की पलकें खुली, लिए अधर मुस्कान ||



कलियों ने भिजवा दिया, भँवरों को पैगाम |
गाँव   हमारे आइये, दिल को अपने थाम ||



पुलकित तन, मन है मुदित, अरुणिम हुए कपोल |
चली सजनियाँ  द्वार पर,  सुन  कागा  के बोल ||



पुष्पों की मधुरिम महक, और पिया का ध्यान |
मन को घायल कर रही, मधुर मधुर मुस्कान ||



प्रीतम  से  नजरें  मिली, आई  थोड़ी  लाज |
भाव-भंगिमा कह गयी, सब कुछ बिन आवाज ||



गागर में सागर भरें, मन को कर दें तृप्त |
बूढ़े  बच्चे  सब रहे, इन दोहों के भक्त ||



थोड़े दिन ही रह सका,  मौसम यहाँ हसीन |
ऋतु बसंत के बाद में, जमकर तपी जमीन ||



मौसम का कश्मीर में, कैसा है बदलाव |
पुष्पनगर में  दे रहे, शूल मूँछ पर ताव ||



खत्म कभी होते नहीं, घात और प्रतिघात |
प्रेम और  बस प्रेम  से, बदलेंगे  हालात ||



मत से था मतलब कभी, मत पाकर अब मस्त |
मत देकर कुछ माँग मत, साहब जी हैं व्यस्त ||



इतना भी क्या दे रहे, अब मूंछों पर ताव
थोड़ा सा तो दीजिये, प्रेम-भाव को भाव



कुछ सोने में व्यस्त हैं, कुछ सोने में मस्त |
तुम सोना चाहो अगर, रहो कर्म में व्यस्त ||
धूप छाँव  बरसात  के, करे प्रकट उदगार |
नोंक जरा सी कलम की, सहती कितना भार ||
जयचंदों ने देश का, किया बहुत नुकसान
अब गौरी ही एक दिन, लेगा उनके प्रान
जिसने तपती रेत पर, बना दिए पदचाप |
निश्चय वह संसार मे, पाता सदा प्रताप ||
कौओं जैसी बोलियाँ, साँपों जैसी चाल |
करते भारत देश में, नेता रोज बवाल ||
पले हुए हैं देश में, तरह  तरह के नाग |
गिरगिट जैसे रंग हैं, रोज उगलते आग ||
आज  हमारे  देश  में, हों  न अगर  जयचंद |
कभी न कुछ भी कर सकें, दुश्मन के छल छंद ||

कथनी करनी हो सदा, भीतर बाहर एक |
ढूंढें से मिलते नहीं,  बन्दे  ऐसे  नेक ||
जरा जरा सी बात पर, मचता यहाँ बबाल |
नाजुक बंधन प्यार का, रखिये इसे सँभाल ||



सत्य  अहिंसा  अपरिग्रह,  ब्रह्मचर्य अस्तेय |
पालन करना हर नियम, हो जीवन का ध्येय ||



रिश्तों  में जब प्रेम का, हो न कभी रविवार |
सुख-दुख बाँटे मिल सभी, तब बनता परिवार ||



यादों  के सपने लिए, आये पास कपोत |
जगा गए मेरे हृदय, पुनः प्रीत की जोत ||



बगिया  में  खिलने लगे, रंग बिरंगे रोज |
मिल जाता हमको सुबह, रोज प्रेम का डोज ||



हिंदी भाषा सा कहाँ, सरल सुगम साहित्य |
भाषाओँ  के गगन  में, हिंदी है आदित्य ||



ज्ञान और विज्ञान का, हो हिंदी में शोध |
एक राष्ट्र अवधारणा, का है इसमें बोध ||
जन गण की बोली यही, यही राष्ट्र की शान |
दे  हर  भाषा को जगह, हिंदी हुई महान ||



हों चाहे कितने कठिन, दुनिया में हालात |
अगर प्रेम से बात हो, बन जाती हर बात ||



इक बबूल के पेड़ पर, बसा बया का गाँव
भरी  दोपहर  में मिले, उसको ठंडी छाँव
सर्दी, गर्मी,  बारिशें,  हो आँधी तूफ़ान
रहे बया का घोंसला, हरदम सीना तान



फल का राजा आम है, मँहगा उसका दाम |
आम  आदमी   दूर से, देख रहा है आम ||



फूलों  से  कुर्सी  सजी, साहब जी की रोज |
जन गण को मिलते रहे, बस काँटों के डोज ||



मर जाता रावण अगर, सब के मन का आज
हो जाता  फिर  देश में, रामचन्द्र  का राज



रोज  हुआ  सीता हरण, प्रति दिन अत्याचार
रावण ने पल पल किया, छल का ही व्यापार



कल की चिंता मत करो, कल होता बेकार
आज हमारे  हाथ में,  जी लो उसको यार 



चाँद दूज का दे गया, हमको ये सन्देश
छोटे बनकर के रहो, पूजें  लोग विशेष



भोगों  ने बांटा सदा, और  दिए हैं रोग |
कला जोड़ने की  हमें, सिखलाता है योग ||



देश  विदेशों में बढ़ी,  आज योग की शान |
सारे  रोगों का मिला, सबको मुफ्त निदान ||
राजा  रंक  फ़क़ीर  को, दिखलाई  तस्वीर |
जो देखा वह लिख गए, अद्भुत संत कबीर ||



पंछी को  मिलतीं  कहाँ, आज पेड़ की छाँव |
दे न अतिथि की सूचना, अब कौवे की काँव ||
खून एक  इंसान का, क्यूँ करते हो फर्क |
यही फर्क तो कर रहा, सबका बेड़ा गर्क ||



नहीं किसी का टिक सका, जग में कभी गरूर
लाखों के मालिक  यहाँ,  हो  जाते  मजदूर



भरी दुपहरी  झेलता, सिर पर धूप बबूल |
काँटों के सँग खिल रहे, सुंदर सुंदर फूल ||



गर्मी से व्याकुल सभी, बालक और अधेड़ |
मजे धूप  के ले रहा, अमलतास का पेड़ ||



अमलतास से मिल रहा, सबको आज सुकून |
मौसम  वासंती  हुआ, भले  माह  है जून ||



अमलतास ने कर दिया, धरती का श्रंगार |
बादल सजकर हो रहे, मिलने को तैयार ||



आँगन में झूला सजा, मन में सजी उमंग |
कर के तेरी याद पिय, फरकत हैं सब अंग ||



रोम रोम पुलकित करे, ठंडी पड़े फुहार |
पर साजन तेरे बिना,  सूना  है संसार ||

झूमर गीत,

लोक गीत / लोक छंद:
झूमर गीत

<iframe src="https://www.facebook.com/plugins/comment_embed.php?href=https%3A%2F%2Fwww.facebook.com%2Fdhruva.n.gupta%2Fposts%2F980206712055927%3Fcomment_id%3D1257846444291951&include_parent=false" width="560" height="123" style="border:none;overflow:hidden" scrolling="no" frameborder="0" allowTransparency="true"></iframe>
कवन रंग मुंगवा, कवन रंग मोतिया !
भोजपुरी में औरतों द्वारा ख़ुशी के मौके पर जोड़े या समूह में गाए जाने वाले झूमर गीतों की सदियों पुरानी परंपरा रही है। अब गांवों में भी फ़िल्मी गीतों के प्रचलन के साथ झूमर की गायन परंपरा लगभग लुप्त हो चुकी है। हमारी पीढ़ी के लोग बचपन में मां-बहनों-भाभियों को झूमर गाते देखते हुए ही बड़े हुए हैं। कई झूमर मुझे अब भी याद हैं, लेकिन जो एक गीत मुझे सबसे ज्यादा पसंद था, वह है - कवन रंग मुंगवा, कवन रंग मोतिया, कवन रंग ननदी तोर भैया।' एक सदी से यह गीत भोजपुरी के सर्वाधिक लोकप्रिय गीतों में एक रहा है। 1959 की एक हिंदी फिल्म 'हीरा मोती' में संगीतकार रोशन ने चक्की चलाती ननद और भौजाई के मुंह से गवाकर इस गीत को देशव्यापी लोकप्रियता दिलाई थी। गीतकार के रूप में प्रेम धवन का नाम देखकर मुझे आश्चर्य हुआ। बीसवी सदी के आरंभ में इस गीत को बनारस के रहने वाले एक भोजपुरी कवि दिमाग राम ने लिखा था। संवाद शैली में लिखे गए इस गीत में ननद और भाभी के हास-परिहास का रंग इतना आत्मीय और गहरा था कि यह गीत देखते-देखते समूचे भोजपुरी क्षेत्र में फ़ैल गया। यह गीत उनके नाम से एक बहुत पुरानी किताब 'झूमर तरंग' में संकलित है। दिमाग राम जी को नमन करते हुए आपके साथ इस पूरे गीत को साझा कर रहा हूं।
 https://www.youtube.com/watch?v=uZMT_PkxkrA
कवन रंग मुँगवा, कवन रंग मोतिया,
कवन रंग ननदी तोर भैया।
लाल रंग मुँगवा, सफ़ेद रंग मोतिया,
सांवर रंग भौजी मोरा भैया।
कान सोभे मोतिया, गले सोभे मुंगवा,
पलंग सोभे ननदी तोर भैया।
टूटी जैहे मोतिया, छितराई जैहे मुंगवा,
कि रूसि जैहे भौजी मोरा भैया।
चुनी लेबो मोतिया, बटोरि लेंबो मुंगवा,
मनाई लेबो ननदी तोर भैया।
हीरा मोती में इसे निरुपा राय और शोभा खोटे पर फिल्मित, सुधा मल्होत्रा-सुमन कल्यानपुर ने गाया। राम दिमाग की कालजयी रचना प्रेम धवन जैसे स्थापित रचनाकार ने अपने नाम कर ली
*
"मोरा पिछुअरिया आरे निंबुआ के गछीया 
आरे निंबुअा के गछीया भला रे निंबुअा लाल 

निंबुअा फरेला गोले गोल भाला रे निंबुअा लाल 
ओही रे निंबुअा में चुनरी रंगवल आरे चुनरी रंगवल 
भाला रे निंबुअा लाल चुनरी भइले लहरादार ..!
चुनरी पहिरी हम सुतल अंगनवा आरे सुतल अंगनवा 
भाला रे निंबुअा लाल ,चोरवा झांकीय झुकी जाय 
का तूहू चोरवा आरे झांकी झुकी जाल भाला रे निंबुअा लाल
हम हई चोरवा के पतोह भाला रे निंबुअा लाल 
ससुरू चोरावेले गाई रे भईंसिया आरे गाई रे भईंसिया
भाला रे निंबुअा लाल 
भसुरू चोरावस धेनू गाय 
ओहू ले चोरवा आरे लहुरा देवरवा आरे लहुरा देवरवा 
भाला रे निंबुअा लाल 
ओरिया में के सुईया ले ले जाय 
भाला रे निंबुअा लाल
" तोहे काजरवा बना के, अपने नैनो बीच बसा के, आज पलकाँ मे बंद कर राखू जी"
"पातरि कुइयाँ पताले बसे पनियाँ 
कैैसे के भरीं हो,

अपने सामीजी के पनियाँ 
कैसे के भरूँ हो।
टुटि जइहें डोरिया, लचकि कर्हियइयाँ
मुरुकि जइहें, मोरी नरमी कलइया 
मुरुकि जइहें हो।"
" गहरा कुआँ, जिसका जल दूर नीचे जैसे पाताल में रहता है; जल कैसे भरूँ? मेरे पति के लिए जल चाहिए, कहाँ से लाऊँ? इस कुएँ से पानी उठाते उठाते तो डोरी टूट जायेगी, कमर लचककर दुहरी हो जायेगी और मेरी नर्म नाज़ुक कलाई में मोच आ जायेगी।" 
अब झूमर के बात चलल हम कईसे चुप रहीं पूरा 
किताब दिल में धइले बानी पर ,अब ओकर औचित्य नेईखे दिखत dj के आगे ,


कोठा बनवाल ना हो बलमवा, कोठारिया बनवल ना,
कि हमका खिड़की बिना तरसवल बलमुआ तोहरा से राजी ना ।
`भागलपुर से अइले सुनार छोटी ननदी; टीकला गढइले लहकदार; सेहो टीकवा पहिनके सुनवरा संग हंसलि से हमसे पियवा बहुत नाराज छोटी ननदी' कंगना से लेकर अंग के सारे गहनों को जोङकर गाए जाने वाले ऐसै प्यारे भोजपुरी गीतों की छटा ही अद्भुत है.. 

कहाँ चल गइल 
ओंठवन के लाली, 
अँखियन के काजल?
*
बिला गओ झूमर 
हिरा गाओ सोहर 
पते नाहीं चलल 
बड़ा बढ़िया लागल ह सर जी झूमर पढ़ी के । छोट छोट में हमनी के भी खूब गईले बानीसन पर समय के साथ सब धूमिल पड़ गईल बा ।भोजपुरी माटी के अईसन गंध जवन युग-युग तकले भोर ना पर सकेला !  रउरा के खुब धन्यवाद 
भोजपुरी अपने आप में वैविध्य लिए एक बहुत ही व्यापक भाषा है जो छपरा, आरा, मोतिहारी, बक्सर, बलिया, गाजीपुर, बनारस, इलाहाबाद से लेकर मॉरिशस तक बोली जाती है और हर जगह इसके शब्दों और बोलने की शैली में अंतर बहुत ही साफ तौर पर परिलक्षित होता है। हमलोगों की पीढ़ी तो खैर इस भाषा से भली भांति परिचित हैं परन्तु ये वक्त - बेवक्त पिज्जा खाने वाली पीढ़ी के पल्ले यह भाषा नहीं पड़ती। हमारे बचपन हमारे बाबू जी (पिता के बड़े भाई) हमे इस भाषा का महत्व समझाते और घर में इसी भाषा में बात करने के लिए प्रेरित करते, उनकी सिखाई एक कविता जैसाकि मुझे याद है 
आओ रे चिल्हरा खेत - खलिहान, 
तोरा के देबऊ तिलगिया धान। 
उहे धान के पपरा बनईहे, 
उहे पपरा हमर बाबु के खिअईहे। 

इन्हें 'जतसारी'
कहा जाता है। मुझे भी दो पंक्तियां याद है जो मगही में है...
आधी मन के कूटली भैया

आधी मन के पिसली हो राम
ए भैया आधी मन के कइली हल
रसोईया हो राम....

" आज दिन सौने को माहराज
सौने के कलस धराओ माहराज 
सौने के सब दिन सौने की रात 
मोतियन चौक पुराओ माहराज 
आज दिन .....
भागलपुर से अईले सुनार छोटी ननदी ..
टीकवा गढइले लहकदार छोटी ननदी..
सेहे टीकवा पहिन के सुनरवा संग 
हंसलि ..
से हमसे पियवा बहुत नाराज छोटी
ननदी .......
बिचारी बड़ी ननद इस तरह की चुहलबाजी में नज़र कम ही आती हैं .. शायद डर जाती होगी छोटी भौजाई ..कितने सुंदर पल होते हैं ये ..

दोहा दुनिया

शिव अनंत ज्यों नील नभ,
मिलता ओर न छोर।
विष पी अमृत बांटते,
नील कण्ठ तमखोर।।
*
घनगर्जन स्वर रुदन सम,
अश्रुपात बरसात।
रुद्र नाम दे भक्तगण,
सुमिरें कहकर तात।।
*
सुबह-सांझ की लालिमा,
बने नेत्र का रंग।
मिला नीललोहित विरुद,
अनगिन तारे संग।।
*
चंद्र शीशमणि सा सजा,
शशिशेखर दे नाम।
चंद्रनाथ शशिधर सदय,
हैं बालेंदु अकाम।।
*
महादेव महनीय हैं,
असुरेश्वर निष्काम।
देवेश्वर कमनीय को,
करतीं उमा प्रणाम।।
*
जलधर विषधर अमियधर,
ले त्रिशूल त्रिपुरारि।
डमरूधर नगनाथ ही,
काममुक्त कामारि।।
*
विश्वनाथ समभाव से,
देखें सबकी ओर।
कथनी-करनी फलप्रदा,
अमिट कर्म की डोर।।
*
जो बोया सो काट ले,
शिव का कर्म-विधान।
भेंट-चढ़ोत्री व्यर्थ है,
करते नजर नादान।।
*
महाकाल निर्मम निठुर,
भूले माया-मोह।
नहीं सत्य-पथ से डिगें,
सहते सती-विछोह।।
*
करें ओम् का जप सतत,
ओंकारेश्वर-भक्त।
सोमनाथ सौंदर्य प्रिय,
चिदानंद अनुरक्त।।
*
शूलपाणि हर कष्ट सह,
हॅंसकर करते नष्ट।
आपद से डरते नहीं,
जीत करें निज इष्ट।।
***
२२.१.२०१८, जबलपुर

रविवार, 21 जनवरी 2018

doha shatak: jayprakash shrivastava

दोहा शतक:
जयप्रकाश श्रीवास्तव













जन्म: ९.५.१९५१, नरसिंहपुर, मध्य प्रदेश।
आत्मज: स्व. सरयू देवी -स्व. प्रेमशंकर श्रीवास्तव।
जीवनसाथी:
शिक्षा: एम. ए., बी. एड. ।
लेखन विधा: गीत, दोहा।
प्रकाशित कृतियाँ: गीत संग्रह- मन का साकेत, परिंदे संवेदना के।
उपलब्धि:
संपर्क: आई.सी. ५ सैनिक सोसायटी, शक्ति नगर, जबलपुर ४८२००१।
           ०७६१ २४२६७८८, ७८६९१९३९१७। jaiprakash09shrivasta@vagmail.com
*
कच्ची कैरी आम की, पन्हा मधुर रसदार।
सत्तू पीकर धूप भी करती है प्रतिवार।।
*
नदी रेत में खो गई, घाट हुए वीरान।
सन्नाटा ओढ़े खड़ा, राहों में दिनमान।।
*
नासमिटा सूरज मुआ, खींचे सबकी खाल।
बादल कहाँ हिरा गया, ढूँढो मिल तत्काल।।
*
लू-लपटों के तीर से, घायल चिड़िया प्यास।
धूल-बवंडर में 'कहाँ, पानी' की अरदास।।
*
तपते मौसम के लिए, लिख दो थोड़ी छाँव।
गीत-गजल कुछ भी लिखो, शहर लिखो या गाँव।।
*
पीपल का पट्टा हिला, ठंडी चली बयार।
माटी रखकर कोख में, बीज रही पुचकार।।
*
फिर पगडंडी-खेत के, दिन आए खुशहाल।
सूरज जगा मेड़ पर, साँझ जगी चौपाल।।
*
भोर बाँटती फिरे है. ठिठुरन की सौगात।
लोग कुनकुनी धूप में, सुलझाते जज्बात।।
*
शिशिर चाँदनी दमकती, चाँद बना चितचोर।
तारों की बारात में, नाच रहा मनमोर।।
*
मन अकुलाया घूमता, पढ़ने प्रणय-किताब।
रात पहेली बूझती, रख सिरहाने ख्वाब।।
*
किरणों की ले पालकी, सूरज चला कहार।
उषा कुलवधू सी लगे, धूप लगे गुलनार।।
*
फूल खिले कलियाँ खिलीं, और खिले मन मोर।
धरती के आँगन खिली, उजली-उजली भोर।।
*
चाँद उठाकर ले गई, रात डुबाने झील।
सभी सितारे खो गए, बुझी पड़ी कंदील।।
*
नदी किनारे पर हुआ, एक परिंदा लाश।
मौसम के इस खेल में, शामिल था आकाश।।
*
यूँ तो सूरज नापता, धरती का भूगोल।
पर कोई सुनता नहीं, गौरैया के बोल।।
*
खेत सभी बंजर मिले, मिले सदी के घाव।
संसद में पारित हुआ, सूखे का प्रस्ताव।।
*
आदम के हाथों हुआ, जंगल लहूलुहान।
और नियति के सामने, दिखा रहा अभिमान।।
*
कुछ पाने की चाह में, गुमा चैन अध्याय।
जीवन के लघु खेल में,  उम्र खड़ी निरुपाय।।
*
रात हुई दीपक जला, जली न तम की बात।
सूरज से मिलती रही, उजियारी सौगात।।
*
मौसम खिलते फूल का, रिमझिम सी बरसात।
लोग सभी मिल कह रहे, बरस रही सौगात।।
*
दिन सूरज के आ गए, खिलखिल करती धूप।
निखरेंगे फिर धरा के, मनभावन से रूप।।
*
पेड़ हुए फिर से नए, पहन धुले परिधान।
फूलों ने हँसकर किया, मौसम का सम्मान।।
*
कभी बादलों से घिरा, कभी धूप के संग।
कभी हवा पर नाचता, मौसम हुआ पतंग।।
*
एक दिया भर चाँदनी, आई लेकर रात।
बदल के घर से निकल, बाँट रही सौगात।।
*
मौसम-रंग अनेक हैं, बन जा इसका रंग।
वर्ना फिर पछताएगा, होगा जब बदरंग।।
*
झेल रहा पर्यावरण, मौसम के बदलाव।
सूरज की जागीर में, ठंडे पड़े अलाव।।
*
चमक-दमकमय चाँदनी, मौसम है चितचोर।
चाँद पहरुआ रात का, दिवस कुनकुनी भोर।।
*
चुहलबाजियाँ धूप की, दिखलाए यह ठण्ड।
सर्द हवाएँ हो गईं, ज्यादा ही उद्दंड।।
*
हवा ठिठुरती घूमती, कुम्हलाती सी धूप।
ओस बूँद भागी भीगा, कली-कली के रूप।।
*
पानी-पानी हो गया मौसम पानीदार।
पानी-पानी से मिला, पानी सब संसार।।
*
पानी रूप अनेक हैं, बन पानी का रूप।
बहता पानी जिंदगी, ठहरा पानी कूप ।।
*
पानी पर लिखता रहा, पानी से तकदीर।
पानी आँखों से बहा, बही न मन की पीर।।
*
पानी की गहराई में, छिपा उमर का सार।
सतहों पर मिलता नहीं, जीवन का आधार।।
*
महल हमारे गाँव के, झेल रहे भूचाल।
आँखों में है तैरता, प्यासा एक सवाल।।
*
पनघट करे न चाकरी, सरवर देत न नीर।
किसने देखी ही भला, होते नदी फ़कीर।।
*
सँकुचाई सी घूमती, हवा उघारे देह।
धरती का सीना फटा, रीत गया सब नेह।।
*
रंगमंच औंधे गिरे, नेपथ्यों की खोज।
मरा पड़ा अभिनय यहाँ, तू जिंदा की सोच।।
*
खेल रहा है अन्य के, दबे-छिपे सब राज।
घोटालों के राज में, हर घोटालेबाज।।
*
इस बढ़ती मँहगाई में, लोग बिके बेदाम।
राजनीति कीहाट में, चढ़े वोट के दाम।।
*
बूँद-बूँद दर्पण हुई, धरती देखे रूप।
सूरज कहाँ हिरा गया, कहाँ हिरानी धूप।।
*
नदी गाय सी मरती, सींगन पैनी धार।
लहरें पकड़े जाल में, मछुआ अपढ़ गँवार।।
*
हवा हो गई बाँसुरी, बादल हुआ मृदंग।
बिजली-पायल बाँध कर, नाचे बरखा संग।।
*
दादुर मोर पपीहरा, गाएँ राग मल्हार।
छप्पर छानी से कहे, लइयो बहन! उबार।।
*
वन-उपवन के मन बसी, पावस की मृदु गंध।
ऋतु के दस्तावेज पर, मौसम के अनुबंध।।
*
श्रम की अंगुली थामकर. चले समय के पाँव।
पगडंडी से पूछिए, कहाँ हिरा गए गाँव।।
*
जीवन सुख का मूल है, अनुशासित परिवार।
सूर्य-चंद्र से ज्यों चले, नभ का कारोबार ।।
*
एक सुखी परिवार की, इतनी ही पहचान।
घर में दो ही फूल खिल, बिखराएँ मुस्कान।।
*
आँखों से आँखें मिला, बैठ न आँखें मूँद।
बन मत आँसू आँख का, बन स्वाती की बूँद।।
*
दुःशासन हरते यहाँ, जब अबला के चीर।
पहले से ज्यादा घनी, हुई कृष्ण की पीर।।
*
फिर झुलसाने आ गए, गर्म जेठ-बैसाख।
मँहगाई में हो गयी, जनता जलकर राख।।
*
नदी चुराई रेत ने, नाव खोजता गाँव।
अकुलाई सी धूप भी, खोज रही है छाँव।।
*
पगलाई सी है हवा, मौसम हाल विचित्र।
लगी धूल भी टाँगने, नभ पर अपने चित्र।।
*
तन के रेगिस्तान में, मन हिरना की प्यास।
तृप्ति खोजती फिर रही, झुलसे बदन उदास।।
*
सूरज संपादक बना, आँधी का अखबार।
लिखता लू की कलम से, गरमागरम विचार।।
*
नदी किनारे बैठकर, गहराई मत नाप।
गहरे पानी पैठकर, चुन ममोती चुपचाप।।
*
आँगन में तुलसी उगा, मन में उगा सुगंध।
जीव जगत पर्यावरण, सबसे कर अनुबंध।।
*
पाँवों को छाले मिले, मिले सदी को घाव।
रेत हुई नदिया मुई, नाहक खेते नाव।।
*
गुणवत्ता खोती गई, शिक्षा हो व्यवसाय। 
नंबरवाली दौड़ में, है बचपन असहाय।।
*
संविधान असफल हुआ, गलत हुए अनुमान। 
लोकतंत्र के घाट पर, नंगा हिन्दुस्तान।।
*
रही ठिठुरती याद में, उसकी ही तस्वीर।
सौंप नहीं पाया उसे, बटुए की जागीर।।
*
सपनों के आकाश में, चाँद दिखता रूप। 
खुलती है जब आँख तो, याद फिसलती धूप।।
*
यादों के सागर हिले, हिली न मन से याद।
नदी बिचारी पूछती, कहाँ करूँ फ़रियाद?
*
तुम आते हो याद तो, खिल जाते हैं फूल। 
लगता हूँ मैं झाड़ने, गुलदानों से धूल।।
*
साँसों की वंशी बजा, रच-गा मधुरिम गीत। 
भावों की गागर लिए, खड़ी द्वार पर प्रीत।।
*
उतर धुएँ की ओट में, तम पसरा चहुँ ओर।
रात महकने लगी है, बंध सपनों की डोर।।
*
फागुन तन-मन भिगाता, लगे बहकने रंग। 
पिचकारी की धार से, पैनी हुई उमंग।।
*
टेसू रंग अबीर की, गाँव गली में धाक।
सेमल पूछे काट दी, किसने मेरी नाक।।
*
मस्ती के आँगन खड़े, मदहोशी के यार। 
दहरी ने लाँघे सभी, मर्यादा के द्वार।।
*
कान पकड़कर हवा को, समझाती है घाम.
मौसम की बदमाशियाँ, कर देंगी बदनाम।।७० 
*



  

geet

गीत:
** नव नगर निर्माता ( भू माफिया उवाच)*****
अभियंता दर्शन कुलश्रेष्ठ उर्फ़ दर्शन बेज़ार
***
नगर तुम्हारा हम लंदन की भांति सजायेंगे-
खाली करो जमीन यहां हम mallबनायेंगै।।
बीच शहर में कुछ जमीन पुरखे खरीद कर के-
तुम्हें देगये अधकचरे निर्माण खड़े करके;
वहां हटा खपरैल इमारत भव्य उठायेंगे।।१,।।
खाली करो जमीन -----
तुमने कौन खरीदी, इससे तुम्हें मोह क्यों है-
अस्सी साल पूर्व का ढांचा ही ज्यों का त्यों है;
हर हालत में यह कूड़ा हम दूर हटायेंगे।।२।।
खाली करो जमीन-----
आसपास जो खेत कभी थे, हमने क्रय करके-
जंगल में मंगल कर डाला ,सब गड्ढे भर के;
flat इधर भी बना नया कुछ कर दिखलायेंगे।।३।।
खाली करो जमीन-----
अपने तहखाने है सब पहले ही भरे हुये-
इसीलिए सब लोग यहां हैं हम से डरे हुए;
फटे हाल तुम जैसे हमसे क्या टकरायेंगे।।४।।
खाली करो जमीन------
अर्थशास्त्र का सूत्र हमें बस इतना ही आता-
पैसा ही पैसे को अपने पास खींच लाता ;
इससे ज्यादा और अधिक हम क्या समझायेंगे।।५।।
खाली करो ज़मीन-----
हर विभाग में चपरासी तक से अपना नाता-
अपने साइट पर न इसलिए inspector आता;
कुछ मुंह मांगी कीमत तुमको भी दिलवायेंगे।।६।।
खाली करो जमीन------
आज जहां मक्खियां भिनकतीं पार्लर महकेंगे-
नये रईस bar. में पी अंग्रेजी बहकेंगे;
वेलेंटाइन डे पर जोड़े भी मस्तायेंगे. ।।७,।।
खाली करो जमीन------
लोग आधुनिक कहें हमीं को, ऐसा जतलाने-
वैज्ञानिक है सोच हमारी, सबको दिखलाने;
छत के ऊपर solar heater plant लगायेंगे।।८,।।
खाली करो जमीन-----
केंद्र- राज्य में आती जाती रहीं कई सत्ता-
किंतु नगर में जब हम चाहे हिला तभी पत्ता;
दलगत राजनीति में खुद को हम न फंसायेंगे।।९।।
खाली करो जमीन---
बन जायेगा हर हालत में यह दिल्ली जैसा-
अब न दिखेगा नगर कहीं भी मैला गंदा सा;
लुटियन जैसे नगर नियोजक हमीं कहायेंगे।।१०।।
खाली करो जमीन-----
(कविता संग्रह" तोड़ पत्थरों को भागीरथ" में वर्ष २०११ में प्रकाशित)
copy right. juris. Agra.
@ दर्शनबेज़ार (आगरा)