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सोमवार, 3 अप्रैल 2023

गीत, बिन तुम्हारे, क्षणिका, बुंदेली, दोहा, त्रिपदी, पंच यज्ञ, राग जातीय छंद,कमला देवी चट्टोपाध्याय,पैरोडी, कुण्डलिया,मुक्तिका

मुक्तक
दुआ

दुआ करिए दुआ से ही दवा का काम हो जाए।
दुआ करिए दबा सच को न कोई झूठ जय पाए।।
करे वादा बता जुमला न नेता लोक को ठग ले-
नहीं फिर तंत्र रौंदे लोक को निज कीर्ति खुद गाए।।
३-४-२०२३
नौ दोहा दीप
दिन की देहरी पर खड़ी, संध्या ले शशि-दीप
गगन सिंधु मोती अगिन, तारे रजनी सीप
दीप जला त्राटक करें, पाएँ आत्म-प्रकाश
तारक अनगिन धरा को, उतर करें आकाश
दीप जलाकर कीजिए, हाथ जोड़ नत माथ
दसों दिशा की आरती, भाग्य देव हों साथ
जीवन ज्योतिर्मय करे, दीपक बाती ज्योत
आशंका तूफ़ान पर, जीते आशा पोत
नौ-नौ की नव माल से, कोरोना को मार
नौ का दीपक करेगा, तम-सागर को पार
नौ नौ नौ की ज्योति से, अन्धकार को भेद
हँसे ठठा भारत करे, चीनी झालर खेद
आत्म दीप सब बालिये, नहीं रहें मतभेद
अतिरेकी हों अल्पमत, बहुमत में श्रम - स्वेद
तन माटी माटी दिया, लौ - आत्मा दो ज्योत
द्वैत मिटा अद्वैत वर, रवि सम हो खद्योत
जन-मन वरण प्रकाश का, करे तिमिर को जीत
वंदन भारत-भारती कहे, बढ़े तब प्रीत
*
मुक्तिका
*
सलिल बूँद मिल स्वाति से, बन जाती अनमोल
तृषा पपीहे की बुझे, जब टेरे बिन मोल
मन मुकुलित ममतामयी!, हो दो यह वरदान
सलिल न पंकिल हो तनिक, बहे मधुरता घोल
मनुज छोर की खोज में, भटक रहा दिन-रैन
कौन बताये है नहीं, छोर जगत है गोल
रहे शिष्य की छाँह से, शिक्षक हरदम दूर
गुरु कह गुरुघंटाल बन, परखें स्वारथ तोल
झूम बजाएँ नाचिए, किंतु न दीजै फाड़
अटल सत्य हर ढोल में, रही हमेशा पोल
सगा न कोई किसी का, सब मतलब के मीत
सरस सत्य हँस कह सलिल, अप्रिय सत्य मत बोल
अगर मधुरता अत्यधिक, तब रह सजग-सतर्क
छिप अमृत की आड़ में, गरल न करे किलोल
***
मुक्तिका -
सूत्र - रगण गुरु
ध्वनिखंड - फाइलातुं
*
सत्य बोलें
या न बोलें।
वाक् द्वारा
प्रेम घोलें।
क्यों न भैये
बात तोलें?
आदमी के
साथ होलें।
आँसुओं की
माल पो लें।
वायदों की
नस्ल बो लें।
कायदे से
साँस तो लें
३-४-२०२०
***
कुण्डलिया
*
कहता साहूकार क्यों, मैं हूँ चौकीदार?
स्वांग रचाकर चाहता, बना सके सरकार
बना सके सरकार, न चाहे चूके मौका
बुआ भतीजा मिले, लगाने फिर से चौका
भैया-बहिना संग, बंधु को बंधु न सहता
दगाबाज दे दगा, चोर औरों को कहता
*
आवारा मन ने कहा, लड़ ले आम चुनाव
खास-खास हैं सड़क पर, सम हैं भाव-अभाव
सम हैं भाव-अभाव, माँग लो माँग न चूको
नोटा में मतदान, करो हर दल पर भूँको
अब तक ठगता रहा, ठगाया अब बेचारा
मन की कहे तरंग, न हो जन-गण बेचारा
***
एक दोहा
खास-ख़ास बतला रहे, आया आम चुनाव।
ताव-भाव मत माँगते, मत दें भूख-अभाव।।
***
कार्य शाला :
दोहा प्रश्नोत्तर
*
सरोज सिंह परिहार 'सूरज' नागौद
नीर भरे नैना रहें,लिये दरस की प्यास।
प्यासे नैना जल भरे,अजब विरोधाभास।।
*
संजीव वर्मा 'सलिल'
स्नेह सलिल नैना लिए, करें दरस की प्यास।
नेह नर्मदा मिल बहे, नहीं विरोधाभास।।
***
३.४.२०१९
पैरोडी- हवाई दोस्ती है ये
ई मित्रता पर पैरोडी:
*
(बतर्ज़: अजीब दास्तां है ये,
कहाँ शुरू कहाँ ख़तम...)
*
हवाई दोस्ती है ये,
निभाई जाए किस तरह?
मिलें तो किस तरह मिलें-
मिली नहीं हो जब वज़ह?
हवाई दोस्ती है ये...
*
सवाल इससे कीजिए?
जवाब उससे लीजिए.
नहीं है जिनसे वास्ता-
उन्हीं पे आप रीझिए.
हवाई दोस्ती है ये...
*
जमीं से आसमां मिले,
कली बिना ही गुल खिले.
न जिसका अंत है कहीं-
शुरू वहीं हैं सिलसिले.
हवाई दोस्ती है ये...
*
दुआ-सलाम कीजिए,
अनाम नाम लीजिए.
न पाइए न खोइए-
'सलिल' न ख्वाब देखिए.
हवाई दोस्ती है ये...
***
छंद- दोहा
अलंकार- यमक
*
मिला भाग से भाग, गुणा-भाग कर भाग मत।
ले जो भाग सुभाग, उससे दूर न भागता।।
*
भाग = किस्मत, हिस्सा, हिसाब-किताब, दूर जाना, भाग लेना, सौभाग्य, अलग होता।
संवस, ३-४-२०१९
***
स्मरणांजलि:
कमला देवी चट्टोपाध्याय
*
कमला देवी चट्टोपाध्याय भारतीय नारी के नवजागरण काल ही अविस्मरणीय विभूति रहीं हैं। स्वतंत्रता सत्याग्रही, समाज सुधारक, नाट्य कला उन्नायक, हथकरघा विकासक तथा हस्त शिल्प संरक्षक के रूप में उनका योगदान असाधारण और उल्लेखनीय रहा है। उनका जीवनकाल (३ अप्रैल १९०३, मैंगलोर - २९ अक्टूबर १९८८) विशेषकर सवातंत्र्योपरांत अवधि भारतीय नारी के सामाजिक-आर्थिक उन्नयन हेतु सहकारिता आंदोलन को समर्पित रहा। नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा, संगीत-नाटक अकादमी, सेन्ट्रल कोटेज इंडस्ट्रीज एम्पोरियम, क्राफ्ट्स कौंसिल ऑफ़ इंडिया जैसी अनेक संस्थाएँ उनकी दूरदृष्टि के फलस्वरूप अस्तित्व में आईं। प्रबल विरोध सहकर भी उनहोंने हस्तशिल्प तथा सहकारिता को आम जनों के सामाजिक-आर्थिक उन्नयन के लिए प्रभावी अस्त्र के रूप में प्रयोग किया। उन्हें १९७४ में संगीत नाटक अकादमी फेलोशिप (संगीत-नाटक अकादमी का सर्वोच्च सम्मान) से अलंकृत किया गया।
कमलादेवी अपने पिता अनंथ्य धारेश्वर (जिला कलेक्टर मैंगलोर) तथा माता गिरिजाबाई (कर्णाटक के संभ्रांत परिवार कन्या) की चौथी संतान थीं। उन्हें साहित्यिक-सांस्कृतिक मूल्यों की समझ और देश सेवा का संस्कार अपनी विदुषी दादी और माँ से विरासत में मिला। कमलादेवी मेधावी विद्यार्थी थीं जिन्होंने बचपन से ही साहस और आत्म विश्वास का परिचय दिया। महादेव गोविन्द रानाडे, गोपाल कृष्ण गोखले, रमाबाई रानाडे, एनी बेसेंट, जैसे राष्ट्रवादी नेता परिवार के अन्तरंग मित्र थे, उनके आवागमन से तरुणी कमलादेवी को राष्ट्रीय आन्दोलन को समझने और उससे जुड़ने की प्रेरणा मिली। उनहोंने केरल की संस्कृत नाट्य परंपरा 'केरल-कुट्टीयट्टम' का शिक्षण महान गुरु पद्म श्री मणि माधव चक्यार किल्लीकुरुसिमंगलम में उनके निवास पर रहकर प्राप्त किया।
दुर्योगवश उनकी आदर्श बड़ी बहन सगुना का विवाह के अल्प काल बाद तरुणाई में ही निधन हो गया। कमला देवी ७ वर्ष की ही थीं कि उनके पिता नहीं रहे। तत्कालीन कानूनों के अनुसार पिता की विशाल संपत्ति कमला देवी के माँ गिरिजाबाई के सौतेले पुत्रों को मिली। गिरिजा बाई को नाममात्र की भरणपोषण निधि मिली जिसे उस स्वाभिमानी महिला ने ठुकराते हुए अपने दहेज़ में मिली संपत्ति से अपनी बेटियों का पालन-पोषण करने का निर्णय लिया। कमलादेवी ने साहस और संघर्ष के गुण अपनी माँ से पाए। मात्र १४ वर्ष की आयु में १९१७ में उनका विवाह कृष्ण राव के साथ हुआ किन्तु दुर्भाग्यवश दो वर्ष बाद ही १९१९ में वे विधवा हो गईं।
क्वीन मेरी कोलेज चेन्नई में पढ़ते समय वे सरोजिनी नायडू की छोटी बहिन सुहासिनी चट्टोपाध्याय तथा उनके प्रतिभाशाली भाई हरिन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय (कालांतर में प्रसिद्ध कवि, लेखक, अभिनेता) के संपर्क में आईं। कला के प्रति लगाव इन दोनों के मिलन में सहायक हुआ। २० वर्ष की होने पर १९२३ में कमलादेवी, तत्कालीन रूढ़िवादी समाज के घोर विरोध के बाद भी हरिन्द्रनाथ के साथ विवाह बंधन में बंध गईं। विवाह के शीघ्र बाद हरिन प्रथम विदेश यात्रा पर लंदन प्रस्थित हो गए, कुछ माह बाद कमला देवी भी उनसे जा मिलीं और उनहोंने बेडफ़ोर्ड कोलेज लन्दन से समाजशास्त्र में डिप्लोमा प्राप्त किया। उन्हें एक पुत्र हुआ जिसका नाम रामकृष्ण चट्टोपाध्याय रख गया।
१९२३ में महात्मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन का समाचार मिलाने पर वे तत्काल भारत लौटीं और समाज के उत्थान हेतु गठित गांधीवादी संस्था 'सेवा दल' में जुड़ गईं तथा शीघ्र ही महिला प्रकोष्ठ प्रभारी बना दी गईं। उनहोंने पूरे देश से दक्ल के लिए सभी आयु वर्गों की महलों का चयन 'सेविका; हेतु किया तथा उन्हें प्रशिक्षण भी दिया। वर्ष १९२६ में उनकी भेंट सफ्रागेट मार्ग्रेट ई. कूजीन, आल इंडिया वीमन कोंफेरेंस के संस्थापक से हुई, जिन्होंने कमलादेवी को मद्रास प्रविन्शिअल लेजिस्लेटिव असेम्बली के चुनाव में भागीदारी हेतु हेतु प्रेरित किया। वे भारत की प्रथम महिला उम्मीदवार बनीं, उन्हें प्रचार हेतु अत्यल्प समय मिला तथापि वे केवल ५५ मतों से पराजित हुईं।
आल इंडिया वीमन कोंफेरेंस की स्थापना के पश्चात् वे इसकी प्रथम महिला संगठन सचिव हुईं। कालांतर में यह संस्था देशव्यापी संगठन के रूप में विकसित हुई, पूरे देश में इसकी शाखाएँ आरम्भ हुईं। कमलादेवी ने सघन दौरे कर संवैधानिक सुधारों की जमीन तैयार की। उनहोंने कई यूरोपीय देशों की यात्रा की तथा वहाँ से प्रेरणा प्राप्त कर भारत में महिलाओं के लिए महिलाओं द्वारा संचालित शैक्षणिक संस्थाओं की स्थापना की। इसका शानदार उदाहरण लेडी इरविन गृह विज्ञान महाविद्यालय दिल्ली जैसी सर्वकालिक श्रेष्ठ संस्था है। १९३० में महात्मा गांधी द्वारा नमक सत्त्याग्रह हेतु गठित सात सदस्यीय दल की के सदस्य कमलादेवी भी थीं जिन्होंने मुम्बई बीच फोर्ट पर नमक बनाया।इस समिति में दूसरी महिला अवन्तिका बी गोखले थीं। कमलादेवी यहीं नहीं रुकीं। उनहोंने साहस की मिसाल कायम करते हुए समीपस्थ उच्च न्यायालय में जाकर उपस्थित न्यायाधीश से पूछा कि क्या वह उनके द्वारा तुरंत तैयार किया गया नमक खरीदना चाहेगा? २६ जनवरी १९३० को भारतीय तिरंगे झंडे से लिपटकर उसकी रक्षा करने पर वे देशव्यापी चर्चा औरए सराहना की पात्र हुईं। १९३० में ही मुम्बई स्टोक एक्सचेज में घुसकर देशी नमक के पैकेट बेचने पर उन्हें गिरफ्तार कर एक साल का कारावास दिया गया।
हरिन और कमला ने अनेक कलात्मक प्रयोग किए और ख्यति अर्जित की, उन्हें एक पुत्र रामा प्राप्त हुआ। उस समय संभ्रांत परिवारों की महिलाओं के लिए अभिनय का निषेध होने पर भी कमला देवी ने कुछ चलचित्रों में अभिनय किया और अपनी प्रतिभा की छाप छोडी। वर्ष १९३१ में शूद्रक के प्रसिद्ध नाटक पर आधारित प्रथम कन्नड़ मूक चलचित्र मृच्छकटिक (वसंतसेना) जिसके नायक येनाक्षी रामाराव, निदेशक कन्नड़ फिल्मों के पितामह मोहन दयाराम भवानी थे, में अभिनय कर कमलादेवी ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। तत्पश्चात अपनी दूसरी पारी में वर्ष १९४३ में हिंदी चलचित्र तानसेन (नायक के.एल.सहगल, सहनायिका खुर्शीद), शंकर-पारवती (१९४३), तथा धन्ना भगत (१९४५) में कमलादेवी ने जीवंत अभिनय किया। विवाह के कई वर्षों बाद एक और परंपरा को तोड़ते हुए कमलादेवी ने 'तलाक' का वाद स्थापित कर १९५५ में विवाह का अंत किया।
वर्ष १९३६ में कमला देवी कोंग्रेस समाजवादी दल की अध्यक्ष चुनी गईं जहाँ उनके सहयोगी जयप्रकाश नारायण, राममनोहर लोहिया और मीनू मसानी जैसे प्रखर नेता थे। १९४० में द्वितीय विश्व युद्ध आरम्भ होते समय कमलादेवी लन्दन में थीं। उनहोंने तुरंत विश्व भ्रमण कर भारत की परिस्थिति और विश्व युद्ध के पश्चात स्वाधीनता हेतु वातावरण बनाने का कार्य आरम्भ कर दिया।
भारत की स्वतंत्रता के साथ आई विभाजन की त्रसदी से दात्कार्जूझते हुए कमला देवी ने शरणार्थियों के पुनर्वास के कार्य में खुद को झोंक दिया। उनहोंने इन्डियन कोओपरेटिव यूनियन की स्थापना कर पुनर्वास तथा सहकारिता आधारित नगर निर्माण की संकल्पना को मूर्त रूप दिया। भारत सरकार विशेषकर जवाहरलाल नेहरु ने इस शर्त पर अनुमति दी कि वे सरकार से वित्तीय सहायता नहीं मांगेंगी। कमलादेवी ने असाधारण जीवत का परिचय देते हुए नार्थ वेस्ट फ्रंटीयार से आये ५०.००० से अधिक शरणार्थियों के लिए दिल्ली की सीमा पर फरीदाबाद नगर का निर्माण कराया। उनहोंने शरणार्थियों को रहने के लिए घर तथा आजीविका चलाने के लिए नया काम-धंधा सिखाने, तथा स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध करने के लिए खुद को झोंक दिया।
जीवन के उत्तरार्ध में भारतीय हस्तशिल्प तथा हस्तकलाओं के संरक्षण, उन्नयन तथा आजीविका-साधन के रूप में विकास के प्रति कमला देवी समर्पित रहीं। उनहोंने नेहरू जी द्वारा पश्चिमी देशों से विशाल उत्पादन तकनीक को उद्योग जगत में लाने के प्रयासों से हत्शिल्प और हस्तकलाओं पर संभावित दुष्प्रभावों से बचाने का सफल प्रयास लगातार किया। असंगठित क्षेत्र में कार्यरत महिलाओं के लिए क्राफ्ट म्यूजियम स्थापित कर उन्हें पारंपरिक कलाओं के भण्डार ग्रहों और विक्रय केन्द्रों के रूप में विकसित किया। इसक श्रेष्ठ उदाहरण थियेटर क्राफ्ट्स म्यूजियम दिल्ली है।उन्होंने शिल्प और कलाओं को उन्नत करने के साथ-साथ श्रेष्ठ कलाकारों-शिल्पकारों को प्रोत्साहित करने के लिए, उनसे प्रशिक्षण प्राप्त करने, उन्हें पुरस्कृत करने तथा उनकी कलाकृतियों को पारंपरिक गौरव के साथ जोड़कर क्रय करने की मानसिकता पूरे देश में विकसित की। १९६४ में कमला देवी ने भारतीय नाट्य संघ के अंतर्गत नाट्य इन्स्टीट्यट ऑफ़ कत्थक एंड कोरिओग्राफी बेंगलुरु का श्री गणेश किया तथा यूनेस्को से सम्बद्ध कराया। इसकी वर्तमान निदेशक श्रीमती माया राव हैं।
कमलादेवी अपने समय से बहुत आगे रहने वाली महिला रत्न थीं। वे आल इण्डिया हिन्दी क्राफ्ट बोर्ड की स्थापना के मूल में थीं तथा इसकी प्रथम अध्यक्ष रहीं। क्राफ्ट कौंसिल ऑफ़ इंडिया, को विश्व क्राफ्ट्स कौंसिल एशिया-पेसिफिक रीजन का प्रथम अध्यक्ष होने का गौरव कमलादेवी ने ही दिलाया। कालांतर में उनहोंने नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा की स्थापना, संगीत-नाटक अकादमी की अध्यक्षता तथा यूनेस्को के सदस्य के रूप में महती भूमिका का निर्वहन किया। १९८६ में उनकी आत्मकथा 'इनर रिसेसेस एंड आउटर स्पेसेस' प्रकाशित हुई।
पुरस्कार-सम्मान:
वर्ष १९५५ में भारत सरकार ने उन्हें 'पद्म भूषण' तथा १९८७ में द्वितीय सर्वोच्च नागरिक अलंकरण 'पद्म विभूषण' से सम्मानित किया। उन्हें वर्ष १९६६ में सामुदायिक नेतृत्व हेतु विश्व विख्यात रमनमैगसाय्साय पुरस्कार, संगीत-नाटक अकादमी से संगीत-नाटक अकादमी फेलोशिप व रत्न सदस्य तथा इंडियास नेशनल अकादमी ऑफ़ म्यूजिक, डांस एंड ड्रामा के लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड जैसे सर्वोच्च पुरस्कार देकर संस्थाएं गौरंवान्वित हुईं। यूनेस्को ने १९७७ में उन्हें हस्तशिल्प के उन्नयन हेतु पुरस्कृत किया। शान्तिनिकेतन ने अपना सर्वोच्च 'देशिकोत्तम' पुरस्कार समर्पित किया।
भारत सरकार की मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी द्वारा मार्च २०१७ में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर महिला बुनकरों एवं शिल्पियों के लिए ‘कमलादेवी चट्टोपाध्याय राष्ट्रीय पुरस्कार’ शुरू करने की घोषणा की गई है।
साहित्य:
कमला देवी ने अनेक पुस्तकों का प्रणयन किया है। प्रमुख है: १. The Awakening of Indian women, Everyman's Press, 1939. २. Japan-its weakness and strength, Padma Publications 1943.३. Uncle Sam's empire, Padma publications Ltd, 1944.४. In war-torn China, Padma Publications, 1944.५. Towards a National theatre, (All India Women's Conference, Cultural Section. Cultural books), Aundh Pub. Trust, 1945.६. America,: The land of superlatives, Phoenix Publications, 1946.७. At the Cross Roads, National Information and Publications, 1947.८. Socialism and Society, Chetana, 1950.९. Tribalism in India, Brill Academic Pub, 1978, ISBN 0706906527.१०. Handicrafts of India, Indian Council for Cultural Relations & New Age International Pub. Ltd., New Delhi, India, 1995. ISBN 99936-12-78-2.११. Indian Women's Battle for Freedom. South Asia Books, 1983. ISBN 0-8364-0948-5.१२. Indian Carpets and Floor Coverings, All India Handicrafts Board, 1974.१३. Indian embroidery, Wiley Eastern, 1977.१४. India's Craft Tradition, Publications Division, Ministry of I & B, Govt. of India, 2000. ISBN 81-230-0774-4.१५. Indian Handicrafts, Allied Publishers Pvt. Ltd, Bombay India, 1963.१६. Traditions of Indian Folk Dance.१७. The Glory of Indian Handicrafts, New Delhi, India: Clarion Books, 1985.१८. Inner Recesses, Outer Spaces: Memoirs, 1986. ISBN 81-7013-038-7.
कमलादेवी चट्टोपाध्याय पर पुस्तकें: १.. Sakuntala Narasimhan, Kamaladevi Chattopadhyay. New Dawn Books, 1999. ISBN 81-207-2120-9. २. S.R. Bakshi, Kamaladevi Chattopadhyaya : Role for Women’s Welfare, Om, 2000, ISBN 81-86867-34-1.३. Reena Nanda, Kamaladevi Chattopadhyaya: A Biography (Modern Indian Greats), Oxford University Press, USA, 2002, ISBN 0-19-565364-5.४. Jamila Brij Bhushan, Kamaladevi Chattopadhyaya – Portrait of a Rebel, Abhinav Pub, 2003. ISBN 81-7017-033-8. ५. M.V. Narayana Rao (Ed.), Kamaladevi Chattopadhyay: A True Karmayogi. The Crafts Council of Karnataka: Bangalore. 2003 ६. Malvika Singh, The Iconic Women of Modern India – Freeing the Spirit. Penguin, 2006, ISBN 0-14-310082-3.७. Jasleen Dhamija, Kamaladevi Chattopadhyay, National Book Trust, 2007. ISBN 8123748825 ८. . Indra Gupta , India’s 50 Most Illustrious Women. ISBN 81-88086-19-3.
***
छंद सलिला :
राग और रागी जातीय छंद
*
हिंदी पिंगल में छ: रागों के आधार पर छ: मात्रिक छंद को 'रागी जातीय' छंद कहा गया है। 'षटराग' का अभ्यासी अपनी धुन में मस्त रहा और जन सामान्य उसे न 'खटरागी' कहकर उपहास करता रहा।
रागों के वर्गीकरण की परंपरागत पद्धति (१९वीं सदी तक) के अनुसार हर एक राग का परिवार है। मुख्य छः राग हैं पर विविध मतों के अनुसार उनके नामों व पारिवारिक सदस्यों की संख्या में अन्तर है। इस पद्धति को मानने वालों के चार मत हैं।
१. शिव मत इसके अनुसार छः राग माने जाते थे, प्रत्येक की छः-छः रागिनियाँ तथा आठ पुत्र हैं। इस मत में मान्य छः राग- १. राग भैरव, २. राग श्री, ३. राग मेघ, ४. राग बसंत, ५. राग पंचम, ६. राग नट नारायण हैं।
कल्लिनाथ मत- इसमें भी वही छः राग माने गए हैं जो शिव मत के हैं, पर रागिनियाँ व पुत्र-रागों में अन्तर है।
भरत मत- के अनुसार छः राग, प्रत्येक की पाँच-पाँच रागिनियाँ आठ पुत्र-राग तथा आठ पुत्र वधू हैं। इस मत में मान्य छः राग निम्नलिखित हैं- १. राग भैरव, २. राग मालकोश, ३. राग मेघ, ४. राग दीपक, ५. राग श्री, ६. राग हिंडोल।
हनुमान मत- इस मत के अनुसार भी छः राग वही हैं जो 'भरत मत' के हैं, परन्तु इनकी रागिनियाँ, पुत्र-रागों तथा पुत्र-वधुओं में अन्तर है।
ये चारों पद्धति १८१३ ई. तक चलीं तत्पश्चात पं॰ भातखंडे जी ने 'थाट राग' पद्धति का प्रचार व प्रसार किया।
*
विमर्श :
पंच यज्ञ
हर मनुष्य को ५ श्रेष्ठ कर्ण नियमित रूप से करना चाहिए. इन्हीं कर्मो का नाम यज्ञ है। ५ यज्ञों के आधार पर ५ मात्राओं के छंदों को याज्ञिक जातीय कहा गया है। ५ यज्ञ निम्न हैं-
१. ब्रह्मयज्ञ- प्रातः सूर्योदय से पूर्व तथा सायं सूर्यास्त के बाद जब आकाश में लालिमा हो तब एकांत स्थान में बैठ कर ईश्वर का ध्यान करना ब्रह्मयज्ञ (संध्या) है।
२. देवयज्ञ- अग्निहोत्र (हवन) देवयज्ञ है। हम अपने शरीर द्वारा वायु, जल और पृथ्वी को निरंतर प्रदूषित करते हैं। मानव निर्मित यंत्र भी प्रदूषणफैलाते हैं जिसे रोक वायु,जल और पृथ्वी को पवित्र करने हेतु हवन करना हमारा परम कर्तव्य है।
हवन में बोले मन्त्रों से मानसिक - आत्मिक पवित्रता एवं शान्ति प्राप्त होती है।
३. पितृ यज्ञ- जीवित माता पिता गुरुजनो और अन्य बड़ो की सेवा एवं आज्ञा पालन करना ही पितृ यज्ञ है।
४. अतिथि यज्ञ- घर आये विद्वान्,धर्मात्मा, स्नेही स्वजन आदि का सत्कार कर ज्ञान पाना अतिथि यज्ञ है।
५. बलिवैश्वदेव यज्ञ- पशु-पक्षी, कीट-पतंग आदि पर दया कर खाना-पानी देना बलिवैश्वदेव यज्ञ है।
***
।। वेदोक्त रात्रि सूक्त।।
*
। ॐ रजनी! जग प्रकाशें, शुभ-अशुभ हर कर्म फल दें।
।। विश्व-व्यापें देवी अमरा,ज्योति से तम नष्ट कर दें।।
*
। रात्रि देवी! भगिनी ऊषा को प्रगट कर मिटा दें तम।
।। मुदित हों माँ पखेरू सम, नीड़ में जा सो सकें हम ।।
*
। मनुज, पशु, पक्षी, पतंगे, पथिक आंचल में सकें सो।
।। काम वृक वासना वृकी को, दूर कर सुखदायिनी हो।।
*
। घेरता अज्ञान तम है, उषा!ऋणवत दूर कर दो।
।। पयप्रदा गौ सदृश रजनी!, व्योमपुत्रि!! हविष्य ले लो।।
***
***
दोहे पर्यावरण के
भारत की जय बोल
*
वृक्ष देव देते सदा, प्राणवायु अनमोल.
पौधारोपण कीजिए, भारत की जय बोल..
*
पौधारोपण से मिले, पुत्र-यज्ञ का पुण्य.
पेड़ काटने से अधिक, पाप नहीं है अन्य..
*
माँ धरती के लिये हैं, पत्ते वस्त्र समान.
आभूषण फल-फूल हैं, सर पर छत्र वितान..
*
तरु-हत्या दुष्कर्म है, रह नर इससे दूर.
पौधारोपण कर मिले, तुझे पुण्य भरपूर..
*
पेड़ कटे, वर्षा घटे, जल का रहे अभाव.
पशु-पक्षी हों नष्ट तो, धरती तप्त अलाव..
*
जीवनदाता जल सदा, उपजाता है पौध.
कलकल कलरव से लगे, सारी दुनिया सौध..
*
पौधे बढ़कर पेड़ हों, मिलें फूल,फल, नीड़.
फुदक-फुदक शुक-सारिका, नाचें देखें भीड़..
*
पेड़ों पर झूले लगें, नभ छू लो तुम झूल.
बसें देवता-देवियाँ. काटो मत तुम भूल..
*
पीपल में हरि, नीम में, माता करें निवास.
शिव बसते हैं बेल में, पूजो रख विश्वास..
*
दुर्गा को जासौन प्रिय, हरि को हरसिंगार.
गणपति चाहें दूब को, करिए सबसे प्यार..
*
शारद-लक्ष्मी कमल पर, 'सलिल' रहें आसीन.
पाट रहा तालाब नर, तभी हो रहा दीन..
३-४-२०१७
***
त्रिपदियाँ
*
हर मंच अखाडा है
लड़ने की कला गायब
माहौल बिगाड़ा है.
*
सपनों की होली में
हैं रंग अनूठे ही
सांसों की झोली में.
*
भावी जीवन के ख्वाब
बिटिया ने देखे हैं
महके हैं सुर्ख गुलाब
*
चूनर ओढ़ी है लाल
सपने साकार हुए
फिर गाल गुलाल हुए
*
मासूम हँसी प्यारी
बिखरी यमुना तट पर
सँग राधा-बनवारी
*
पत्तों ने पतझड़ से
बरबस सच बोल दिया
अब जाने की बारी
*
चुभने वाली यादें
पूँजी हैं जीवन की
ज्यों घर की बुनियादें
*
देखे बिटिया सपने
घर-आँगन छूट रहा
हैं कौन-कहाँअपने?
*
है कैसी अनहोनी?
सँग फूल लिये काँटे
ज्यों गूंगे की बोली
३-४-२०१६
***
बुन्देली दोहे
महुआ फूरन सों चढ़ो, गौर धना पे रंग।
भाग सराहें पवन के, चूम रहो अॅंग-अंग।।
मादल-थापों सॅंग परंे, जब गैला में पैर।
धड़कन बाॅंकों की बढ़े, राम राखियो खैर।।
हमें सुमिर तुम हो रईं, गोरी लाल गुलाल।
तुमें देख हम हो रए, कैसें कएॅं निहाल।।
मन म्रिदंग सम झूम रौ, सुन पायल झंकार।
रूप छटा नें छेड़ दै, दिल सितार कें तार।।
नेह नरमदा में परे, कंकर घाईं बोल।
चाह पखेरू कूक दौ, बानी-मिसरी घोल।।
सैन धनुस लै बेधते, लच्छ नैन बन बान।
निकरन चाहें पै नईं, निकर पा रए प्रान।।
तड़प रई मन मछरिया, नेह-नरमदा चाह।
तन भरमाना घाट पे, जल जल दे रौ दाह।।
अंग-अंग अलसा रओ, पोर-पोर में पीर।
बैरन ननदी बलम सें, चिपटी छूटत धीर।।
कोयल कूके चैत मा, देख बरे बैसाख।
जेठ जिठानी बिन तपे, सूरज फेंके आग।।
३-४-२०१६
***
क्षणिका
कानून और आदमी
*
क़ानून को
आम आदमी तोड़े
तो बदमाश
निर्बल तोड़े
तो शैतान
असहाय तोड़े
तो गुंडा
समर्थ या नेता
तोड़े तो निर्दोष
और अभिनेता
तोड़े तो
सहानुभूति का पात्र.
३-४-२-१३
***
एक रचना:
बिन तुम्हारे...
*
बिन तुम्हारे सूर्य उगता, पर नहीं होता सवेरा.
चहचहाते पखेरू पर डालता कोई न डेरा.

उषा की अरुणाई मोहे, द्वार पर कुंडी खटकती.
भरम मन का जानकर भी, दृष्टि राहों पर अटकती..

अनमने मन चाय की ले चाह जगकर नहीं जगना.
दूध का गंजी में फटना या उफन गिरना-बिखरना..

साथियों से बिना कारण उलझना, कुछ भूल जाना.
अकेले में गीत कोई पुराना फिर गुनगुनाना..

साँझ बोझिल पाँव, तन का श्रांत, मन का क्लांत होना
याद के बागों में कुछ कलमें लगाना, बीज बोना..

विगत पल्लव के तले, इस आज को फिर-फिर भुलाना.
कान बजना, कभी खुद पर खुद लुभाना-मुस्कुराना..

बिन तुम्हारे निशा का लगता अँधेरा क्यों घनेरा?
बिन तुम्हारे सूर्य उगता, पर नहीं होता सवेरा.
३-४-२०११
***

रविवार, 2 अप्रैल 2023

कत्अ, कता, भोजपुरी हाइकु, सॉनेट पवन, भजन, चित्रगुप्त, दुर्गा, कुण्डलिया,

सॉनेट

पवन
झोंका बन पुलके झकझोर
अंतर्मन में उठा हिलोर
रवि-ऊषा बिन उज्जवल भोर
बन आलिंगन दे चितचोर
गाए मिलन-विरह के गीत
लूटे लुटा हमेशा प्रीत
हँसे हार ज्यों पाई जीत
तोड़-बनाए पल-पल रीत
कोई सकता कभी न रोक
कोई सके न किंचित टोक
होता विकल न करता शोक
पैना बहुत न लेकिन नोक
संगी भू नभ सलिल अगन
चिरजीवी हो पवन मगन
२-४-२०२२
•••
भजन
तुमखों सुमिरूँ चित्रगुप्त प्रभु, भव सागर सें पार करो।
डगमग डगमग नैया डोले, झटपट आ उद्धार करो।।
*
तुमईं बिरंचि सृष्टि रच दी, हरि हो खें पालन करते हो।
हर हो हर को चरन सरन दे, सबकी झोली भरते हो।।
ध्यान धरम कछू आउत नइयां, तुमई हमाओ ध्यान धरो।
तुमखों सुमिरूँ चित्रगुप्त प्रभु, भव सागर सें पार करो।।
*
जैंसी करनी तैंसी भरनी, न्याओ तुमाओ है सच्चो।
कैसें महिमा जानौं तुमरी, ज्ञान हमाओ है कच्चो।।
मैया नंदिनी-इरावती सें, बिनती सिर पर हाथ धरो।
तुमखों सुमिरूँ चित्रगुप्त प्रभु, भव सागर सें पार करो।।
*
सादर मैया किरपा करके, मोरी मत निरमल कर दें।
काम क्रोध मद मोह लोभ हर, भगति भाव जी भर, भर दें।
कान खैंच लो भले पर पिता, बाँहों में भर प्यार करो।
तुमखों सुमिरूँ चित्रगुप्त प्रभु, भव सागर सें पार करो।।
२-४-२०२१
***
कार्यशाला : कुण्डलिया
जाने कितनी हो रही अपने मन में हूक।
क्यों होती ही जारही अजब चूक पर चूक। - रामदेव लाल 'विभोर'
अजब चूक पर चूक, विधाता की क्या मर्जी?
फाड़ रहा है वस्त्र, भूलकर सिलना दर्जी
हठधर्मी या जिद्द, पड़ेगी मँहगी कितनी?
ले जाएगी जान, न जाने जानें कितनी - संजीव
चिंतन
दुर्गा पूजा
*
एक प्रश्न
बचपन में सुना था ईश्वर दीनबंधु है, माँ पतित पावनी हैं।
आजकल मंदिरों के राजप्रासादों की तरह वैभवशाली बनाने और सोने से मढ़ देने की होड़ है।
माँ दुर्गा को स्वर्ण समाधि देने का समाचार विचलित कर गया।
इतिहास साक्षी है देवस्थान अपनी अकूत संपत्ति के कारण ही लूट को शिकार हुए।
मंदिरों की जमीन-जायदाद पुजारियों ने ही खुर्द-बुर्द कर दी।
सनातन धर्म कंकर कंकर में शंकर देखता है।
वैष्णो देवी, विंध्यवासिनी, कामाख्या देवी अादि प्राचीन मंदिरों में पिंड या पिंडियाँ ही विराजमान हैं।
परम शक्ति अमूर्त ऊर्जा है किसी प्रसूतिका गृह में उसका जन्म नहीं होता, किसी श्मशान घाट में उसका दाह भी नहीं किया जा सकता।
थर्मोडायनामिक्स के अनुसार इनर्जी कैन नीदर बी क्रिएटेड नॉर बी डिस्ट्रायड, कैन ओनली बी ट्रांसफार्म्ड।
अर्थात ऊर्जा का निर्माण या विनाश नहीं केवल रूपांतरण संभव है।
ईश्वर तो परम ऊर्जा है, उसकी जयंती मनाएँ तो पुण्यतिथि भी मनानी होगी।
निराकार के साकार रूप की कल्पना अबोध बालकों को अनुभूति कराने हेतु उचित है किंतु मात्र वहीं तक सीमित रह जाना कितना उचित है?
माँ के करोड़ों बच्चे महामीरी में रोजगार गँवा चुके हैं, अर्थ व्यवस्था के असंतुलन से उत्पादन का संकट है, सरकारें जनता से सहायता हेतु अपीलें कर रही हैं और उन्हें चुननेवाली जनता का अरबों-खरबों रुपया प्रदर्शन के नाम पर स्वाहा किया जा रहा है।
एक समय प्रधान मंत्री को अनुरोध पर सोमवार अपराह्न भोजन छोड़कर जनता जनार्दन ने सहयोग किया था। आज अनावश्यक साज-सज्जा छोड़ने के लिए भी तैयार न होना कितना उचित है?
क्या सादगीपूर्ण सात्विक पूजन कर अपार राशि से असंख्य वंचितों को सहारा दिया जाना बेहतर न होगा?
संतानों का घर-गृहस्थी नष्ट होते देखकर माँ स्वर्णमंडित होकर प्रसन्न होंगी या रुष्ट?
दुर्गा सप्तशती में महामारी को भी भगवती कहा गया है। रक्तबीज की तरह कोरोना भी अपने अंश से ही बढ़ता है। रक्तबीज तभी मारा जा सका जब रक्त बिंदु का संपर्क समाप्त हो गया। रक्त बिंदु और भूमि (सतह) के बीच सोशल कॉन्टैक्ट तोड़ा था मैया ने। आज बेटों की बारी है। कोरोना वायरस और हवा, मानवांग या स्थान के बीच सोशल कॉन्टैक्ट तोड़कर कोरोना को मार दें। यह न कर कोरोना के प्रसार में सहायक जन देशद्रोही ही नहीं मानव द्रोही भी हैं। उनके साथ कानून वही करे जो माँ ने शुंभ-निशुंभ के साथ किया। कोरोना को मानव बम बनाने की सोच को जड़-मूल से ही मिटाना होगा।
२-४-२०२०
*
मुक्तक
*
सिर्फ पानी नहीं आँसू, हर्ष भी हैं दर्द भी।
बहाती नारी न केवल, हैं बनाते मर्द भी।।
गर प्रवाहित हों नहीं तो हृदय ही फट जाएगा-
हों गुलाबी-लाल तो होते कभी ये जर्द भी।।
***
मुक्तिका
*
अभावों का सूर्य, मौसम लापता बरसात का।
प्रभातों पर लगा पहरा अंधकारी रात का।।
वास्तव में श्री लिए जो वे न रह पाए सुबोध
समय जाने कब कहेगा दर्द इस संत्रास का।।
जिक्र नोटा का हुआ तो नोटवाले डर गए
संकुचित मजबूत सीने विषय है परिहास का।।
लोकतंत्री निजामत का राजसी देखो मिजाज
हार से डर कर बदलता हाय डेरा खास का।।
सांत्वना है 'सलिल' इतनी लोग सच सुन सनझते
मुखौटा हर एक नेता है चुनावी मास का।।
२-४-२०१९
***
दोहा लेखन विधान
१. दोहा द्विपदिक छंद है। दोहा में दो पंक्तियाँ (पद) होती हैं। हर पद में दो चरण होते हैं।
२. दोहा मुक्तक छंद है। कथ्य (जो बात कहना चाहें वह) एक दोहे में पूर्ण हो जाना चाहिए।
३. विषम (पहला, तीसरा) चरण में १३-१३ तथा सम (दूसरा, चौथा) चरण में ११-११ मात्राएँ होती हैं।
४. तेरह मात्रिक पहले तथा तीसरे चरण के आरंभ में एक शब्द में जगण (लघु गुरु लघु) वर्जित होता है।
६. सम चरणों के अंत में गुरु लघु मात्राएँ आवश्यक हैं।
५. विषम चरणों की ग्यारहवीं मात्रा लघु हो तो लय भंग होने की संभावना कम (समाप्त नहीं) हो जाती है।
८. हिंदी दोहाकार हिंदी व्याकरण नियमों का पालन करें। दोहा में वर्णिक छंद की तरह लघु को गुरु या गुरु को लघु पढ़ने की छूट नहीं होती।
७. हिंदी में खाय, मुस्काय, आत, भात, आब, जाब, डारि, मुस्कानि, हओ, भओ जैसे देशज शब्द-रूपों का उपयोग न करें। बोलियों में दोहा रचना करते समय उस बोली का शुद्ध रूप व्यवहार में लाएँ।
९. श्रेष्ठ दोहे में लाक्षणिकता, संक्षिप्तता, मार्मिकता (मर्मबेधकता), आलंकारिकता, स्पष्टता, पूर्णता तथा सरसता होना चाहिए।
१०. दोहे में संयोजक शब्दों और, तथा, एवं आदि का प्रयोग यथा संभव न करें। औ' वर्जित 'अरु' स्वीकार्य। 'न' सही, 'ना' गलत। 'इक' गलत।
११. दोहे में कोई भी शब्द अनावश्यक न हो। शब्द-चयन ऐसा हो जिसके निकालने या बदलने पर दोहा अधूरा सा लगे।
१३. दोहा में विराम चिन्हों का प्रयोग यथास्थान अवश्य करें।
१२. दोहे में कारक (ने, को, से, के लिए, का, के, की, में, पर आदि) का प्रयोग कम से कम हो।
१४. दोहा सम तुकान्ती छंद है। सम चरण के अंत में समान तुक आवश्यक है।
२. कम समय में बोले जानेवाले वर्ण या अक्षर की एक तथा अधिक समय में बोले जानेवाले वर्ण या अक्षर की दो मात्राएँ गिनी जाती हैंं।
१५. दोहा में लय का महत्वपूर्ण स्थान है। लय के बिना दोहा नहीं कहा जा सकता।
*
मात्रा गणना नियम
१. किसी ध्वनि-खंड को बोलने में लगनेवाले समय के आधार पर मात्रा गिनी जाती है।
४. शेष वर्णों की दो-दो मात्रा गिनें। जैसे- आम = २१ = ३, काकी = २२ = ४, फूले २२ = ४, कैकेई = २२२ = ६, कोकिला २१२ = ५, और २१ = ३आदि।
३. अ, इ, उ, ऋ तथा इन मात्राओं से युक्त वर्ण की एक मात्रा गिनें। उदाहरण- अब = ११ = २, इस = ११ = २, उधर = १११ = ३, ऋषि = ११= २, उऋण १११ = ३ आदि।
५. शब्द के आरंभ में आधा या संयुक्त अक्षर हो तो उसका कोई प्रभाव नहीं होगा। जैसे गृह = ११ = २, प्रिया = १२ =३ आदि।
६. शब्द के मध्य में आधा अक्षर हो तो उसे पहले के अक्षर के साथ गिनें। जैसे- क्षमा १+२, वक्ष २+१, विप्र २+१, उक्त २+१, प्रयुक्त = १२१ = ४ आदि।
७. रेफ को आधे अक्षर की तरह गिनें। बर्रैया २+२+२आदि।
९. अपवाद स्वरूप कुछ शब्दों के मध्य में आनेवाला आधा अक्षर बादवाले अक्षर के साथ गिना जाता है। जैसे- कन्हैया = क+न्है+या = १२२ = ५आदि।
१०. अनुस्वर (आधे म या आधे न के उच्चारण वाले शब्द) के पहले लघु वर्ण हो तो गुरु हो जाता है, पहले गुरु होता तो कोई अंतर नहीं होता। यथा- अंश = अन्श = अं+श = २१ = ३. कुंभ = कुम्भ = २१ = ३, झंडा = झन्डा = झण्डा = २२ = ४आदि।
११. अनुनासिक (चंद्र बिंदी) से मात्रा में कोई अंतर नहीं होता। धँस = ११ = २आदि। हँस = ११ =२, हंस = २१ = ३ आदि।
मात्रा गणना करते समय शब्द का उच्चारण करने से लघु-गुरु निर्धारण में सुविधा होती है। इस सारस्वत अनुष्ठान में आपका स्वागत है। कोई शंका होने पर संपर्क करें।
विमर्श,
'कत्अ'
*
'कत्अ' उर्दू काव्य का एक हिस्सा है। 'कत्अ' का शब्दकोशीय अर्थ 'टुकड़ा या भूखंड' है। 'उर्दू नज़्म की एक किस्म जिसमें गज़ल की तरह काफ़िए की पाबन्दी होती है और जिसमें कोई एक बात कही जाती है'१ कत्अ है। 'कत्अ' को सामान्यत: 'कता' कह या लिख लिया जाता है।
'प्राय: गज़लों में २-३ या इससे अधिक अशार ऐसे होते थे जो भाव की दृष्टि से एक सुगठित इकाई होते थे, इन्हीं को (गजल का) कता कहते थे।'... 'अब गजल से स्वतंत्र रूप से भी कते कहे जाते हैं। आजकल के कते चार मिसरों के होते हैं (वैसे यह अनिवार्य नहीं है) जिसमें दूसरे और चौथे मिसरे हमकाफिया - हमरदीफ़ होते हैं।२
'कत्अ' के अर्थ 'काटा हुआ' है। यह रूप की दृष्टि से गजल और कसीदे से मिलता-जुलता है। यह गजल या कसीदे से काटा हुआ प्रतीत होता है। इसमें काफिये (तुक) का क्रम वही होता है जो गजल का होता है। कम से कम दो शे'र होते हैं, ज्यादा पर कोइ प्रतिबन्ध नहीं है। इसमें प्रत्येक शे'र का दूसरा मिस्रा हम काफिया (समान तुक) होता है। विषय की दृष्टि से सभी शे'रों का एक दूसरे से संबंध होना जरूरी होता है। इसमें हर प्रकार के विषय प्रस्तुत किये जा सकते हैं।३
ग़ालिब की मशहूर गजल 'दिले नादां तुझे हुआ क्या है' के निम्न चार शे'र 'कता' का उदाहरण है-
जबकि तुम बिन नहीं कोई मौजूद
फिर ये हंगामा ऐ खुदा क्या है।
ये परि चेहरा लोग कैसे हैं
गम्ज़-ओ-इश्व-ओ-अदा क्या है।
शिकने-जुल्फ़े-अंबरी क्यों है
निग्हे-चश्मे-सुरमा सा क्या है।
सब्ज़-ओ-गुल कहाँ से आये है
अब्र क्या चीज़ है, हवा क्या है।
फैज़ का एक कता देखें-
हम खस्तातनों से मुहत्सिबो, क्या माल-मनाल की पूछते हो।
इक उम्र में जो कुछ भर पाया, सब सामने लाये देते हैं
दमन में है मुश्ते-खाके-जिगर, सागर एन है कहने-हसरते-मै
लो हमने दामन झाड़ दिया, लो जाम उलटाए देते हैं
यह बिलकुल स्पष्ट है कि कता और मुक्तक समानार्थी नहीं हैं।
***
सन्दर्भ- १. उर्दू हिंदी शब्दकोष, सं. मु. मुस्तफा खां 'मद्दाह', पृष्ठ ९५, २. उर्दू कविता और छन्दशास्त्र, नरेश नदीम पृष्ठ १६, ३.उर्दू काव्य शास्त्र में काव्य का स्वरुप, डॉ. रामदास 'नादार', पृष्ठ ८५-८६, ४.
***
मुक्तिका
*
कद छोटा परछाईं बड़ी है.
कैसी मुश्किल आई घड़ी है.
*
चोर कर रहे पहरेदारी
सच में सच रुसवाई बड़ी है..
*
बैठी कोष सम्हाले साली
खाली हाथों माई खड़ी है..
*
खुद पर खर्च रहे हैं लाखों
भिक्षुक हेतु न पाई पडी है..
*
'सलिल' सांस-सरहद पर चुप्पी
मौत शीश पर आई-अड़ी है..
२-४-२०१७

***
हाइकु के रंग भोजपुरी के संग
संजीव 'सलिल'
*
आपन त्रुटि
दोसरा माथे मढ़
जीव ना छूटी..
*
बिना बात के
माथा गरमाइल
केतना फीका?.
*
फनफनात
मेहरारू, मरद
हिनहिनात..
*
बांझो स्त्री के
दिल में ममता के
अमृत-धार..
*
धूप-छाँव बा
नजर के असर
छाँव-धूप बा..
*
तन एहर
प्यार-तकरार में
मन ओहर..
*
झूठ न होला
कवनो अनुभव
बोल अबोला..
*
सबुर दाढे
मेवा फरेला पर
कउनो हद?.
*
घर फूँक के
तमाशा देखल
समझदार?.
२-४-२०१०
***

शनिवार, 1 अप्रैल 2023

रामावतार त्यागी

विरासत मेरे प्रिय कवि 

रामावतार त्यागी जी 

वही टूटा हुआ दर्पण बराबर याद आता है
उदासी और आंसू का स्वयंवर याद आता है
कभी जब जगमगाते दीप गंगा पर टहलते हैं
किसी सुकुमार सपने का मुक़द्दर याद आता है
महल से जब सवालों के सही उत्तर नहीं मिलते
मुझे वह गांव का भीगा हुआ घर याद आता है
सुगंधित ये चरण, मेरा महक से भर गया आंगन
अकेले में मगर रूठा महावर याद आता है
समंदर के किनारे चांदनी में बैठ जाता हूं
उभरते शोर में डूबा हुआ स्वर याद आता है
झुका जो देवता के द्वार पर वह शीश पावन है
मुझे घायल मगर वह अनझुका सर याद आता है
कभी जब साफ़ नीयत आदमी की बात चलती है
वही 'त्यागी' बड़ा बदनाम अकसर याद आता है

अयोध्या में राम मंदिर के प्रमाण:

अयोध्या में राम मंदिर के प्रमाण:

एलेग्जेंडर कन्निंघम का सर्वे: १८६२–६३ में एलेग्जेंडर कन्निंघम जो की भारतीय पुरातत्व विभाग के निर्माता माने जाते हैं उन्होंने अयोध्या में एक सर्वे करवाया जिसका मूल उद्देश्य बौद्ध स्थलों को ढूँढना था। कनिगघम ने अयोध्या की पहचान फाह्यान के लेखन में वर्णित शांची के तौर पर, ह्वेनसांग के लेखन में विशाखा के रूप में और हिन्दू साहित्यों में वर्णित साकेत के रूप में किया। उनके अनुसार आज वहाँ जितने भी पौराणिक मंदिर हैं वे सब महाभारत में वर्णित बृहद्बला की मृत्यु के बाद में वीरान हो गए थे। इस घटना को उन्होंने १४२६ ईसा पूर्व का माना है। जब पहली शताब्दी के आसपास उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य ने रामायण में उल्लिखित स्थानों पर नए मंदिरों का निर्माण करवाया। कनिंघम का मानना ​​था कि जब ७ वीं शताब्दी में ह्वेनसांग ने शहर का दौरा किया, तब तक विक्रमादित्य के मंदिर पहले ही गायब हो चुके थे; शहर एक बौद्ध केंद्र था, और इसमें कई बौद्ध स्मारक थे अर्थात तब सनातन धर्म का ह्रास हो चुका था। आदि शंकराचार्य जी ने शास्त्रार्थ कर के पुनर्स्थापना की थी सनातन की। 

अलोइस आंतों फुहरेर की खुदाई: ये एक पक्का बौद्ध पुरातत्ववेत्ता था जो बौद्ध धर्म को सच साबित करने के लिए कई फ़र्ज़ी ऐतिहासिक प्रमाण बनाते पकड़ा गया था।इसने ही सूअर के दाँत को बुद्ध का दाँत बताकर बुद्ध का अस्तित्व साबित करने की कोशिश की थी।

१८८९–९१ में फुहरेर ने अयोध्या में खुदाई की। फ्यूहरर को ऐसी कोई प्राचीन मूर्तियाँ, मूर्तियाँ या स्तंभ नहीं मिले जो अन्य प्राचीन शहरों के स्थलों को चिन्हित करते हों। बौद्धों के दावों पर पानी फिर गया। उन्होंने "कचरे के ढेर का एक कम अनियमित द्रव्यमान" पाया, जिसमें से सामग्री का उपयोग पड़ोसी मुस्लिम शहर फैजाबाद के निर्माण के लिए किया गया था। उसके द्वारा खोजी गई एकमात्र प्राचीन संरचना शहर के दक्षिण में तीन मिट्टी के टीले थे: मणिपर्वत, कुबेरपर्वत और सुग्रीबपर्वत। फुहरर ने बृहद्बाला की मृत्यु के बाद रामायण-युग के शहर के नष्ट होने और विक्रमादित्य द्वारा इसके पुनर्निर्माण की कथा का भी उल्लेख किया। उन्होंने लिखा है कि शहर में मौजूदा हिंदू और जैन मंदिर आधुनिक थे, हालांकि बाद में फिर उन्होंने उन प्राचीन मंदिरों के स्थलों मंदिरों का पुनर्निर्माण करवाया था जिन्हें बाद में मुसलमानों ने नष्ट कर दिया था। फ्यूहरर ने लिखा है कि मुस्लिम विजय के समय अयोध्या में तीन हिंदू मंदिर थे: जन्मस्थानम (जहाँ राम का जन्म हुआ था), स्वर्गद्वारम (जहाँ राम का अंतिम संस्कार किया गया था) और त्रेता-के-ठाकुर (जहाँ राम ने बलिदान दिया था)। फुहरर के अनुसार, मीर खान ने १५२३ ई. पू. में जन्मस्थानम मंदिर के स्थान पर बाबरी मस्जिद का निर्माण किया । बाबरी मस्जिद के निर्माण के लिए मुसलमानों द्वारा पुराने मंदिर के कई स्तंभों का उपयोग किया गया था  ये स्तंभ काले पत्थर के थे, जिन्हें मूल निवासी कसौटी कहते थे। फ्यूहरर ने यह भी लिखा है कि औरंगजेब ने स्वर्गद्वारम और त्रेता-के-ठाकुर मंदिरों के स्थलों पर मस्जिदों का निर्माण किया था। कन्नौज के जयचंद्र का एक खंडित शिलालेख, दिनांक १२४१ संवत (११८५ CE), और विष्णु मंदिर के निर्माण का एक रिकॉर्ड औरंगजेब की त्रेता-के-ठाकुर मस्जिद से बरामद किया गया, और फैजाबाद संग्रहालय में रखा गया।

बी. बी. लाल की समय की खुदाई (१९७५-१९८५): इन्होने अयोध्या, भारद्वाज आश्रम, नंदीग्राम, चित्रकूट और श्रृंगवेरपुरा के पाँच रामायण-संबंधी स्थलों की खुदाई की। इस अध्ययन के परिणाम उस अवधि में प्रकाशित नहीं हुए। १९७५ और १९८५ के बीच अयोध्या में रामायण में संदर्भित या इसकी परंपरा से संबंधित कुछ स्थलों की जाँच के लिए एक पुरातात्विक परियोजना की गई थी। १४ वीं शताब्दी ईस्वी की बताई गई, यह अयोध्या में पाई जाने वाली सबसे पुरानी प्रतिमा है। बाबरी मस्जिद स्थल इस परियोजना के दौरान जाँचे गए चौदह स्थलों में से एक था। बी. बी. लाल को अयोध्या की खुदाई में टेराकोटा की एक जैन तपस्वी की छवि मिली।

बी. बी. लाल ने  १९९० में, अपनी सेवानिवृत्ति के बाद, एक पत्रिका में लिखा कि उन्हें मस्जिद के नीचे एक स्तंभित मंदिर के अवशेष मिले। वे पूरे देश में इस बात का प्रचार करने के लिए व्याख्यान देने लगे। लाल की पुस्तक 'राम, हिज़ हिस्टोरिसिटी, मंदिर एंड सेतु: एविडेंस ऑफ़ लिटरेचर, आर्कियोलॉजी एंड अदर साइंसेस' २००८ में वे लिखते हैं: "बाबरी मस्जिद के चबूतरे से जुड़े, बारह पत्थर के खंभे थे, जिन पर न केवल विशिष्ट हिंदू रूपांकनों और साँचों को उकेरा गया था, बल्कि हिंदू देवताओं की आकृतियाँ भी थीं। यह स्वतः स्पष्ट था कि ये स्तंभ मस्जिद का अभिन्न अंग नहीं थे, बल्कि इसके लिए बाहरी थे।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय में २००३  के एक बयान में, लाल ने कहा कि उन्होंने १९८९ में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को सात पन्नों की प्रारंभिक रिपोर्ट सौंपी, जिसमें अयोध्या में बाबरी मस्जिद संरचना के ठीक दक्षिण में "स्तंभ आधार" की खोज का उल्लेख किया गया था। इसके बाद, उनके बार-बार अनुरोध के बावजूद, सभी तकनीकी सुविधाओं को वापस ले लिया गया और  को अगले १०-१२ वर्षों के लिए पुनर्जीवित नहीं किया गया। मतलब जहाँ हिन्दू अस्तित्व सच साबित हुआ वहाँ वामपंथ प्रभावित सरकार ने परियोजना बंद करवा दी। इस प्रकार अंतिम रिपोर्ट कभी प्रस्तुत नहीं की गई, प्रारंभिक रिपोर्ट केवल १९८९ में प्रकाशित हुई थी।

लाल के रुख ने राम मंदिर के उद्देश्य को भारी बढ़ावा दिया, लेकिन उनके निष्कर्षों को कई विद्वानों ने चुनौती दी है, दोनों स्तरों की जानकारी और लाल द्वारा परिकल्पित संरचना की तरह पर सवाल उठाया है। होल के अनुसार,
"बाद में खाई की तस्वीरों का स्वतंत्र विश्लेषण जिसमें लाल ने खंभे के आधार पाए जाने का दावा किया था, ने पाया कि वे वास्तव में विभिन्न, गैर-शताब्दी संरचनात्मक चरणों की विभिन्न दीवारों के अवशेष थे, और भारवाही (लोड बिअरिंग) संरचनाएँ नहीं हो सकती थीं (मंडल २००३) एक तस्वीर के अलावा, लाल ने कभी भी अपने उत्खनन की नोटबुक और रेखाचित्र अन्य विद्वानों को उपलब्ध नहीं कराए ताकि उनकी व्याख्या का परीक्षण किया जा सके।"

होल ने निष्कर्ष निकाला है कि "जिन संरचनात्मक तत्वों को उन्होंने पहले महत्वहीन समझा था, वे अचानक ही मंदिर की नींव बन गए।" इसका जवाब उनकी टीम में काम करने वाले एक विद्वान  के.के. मुहम्मद ने अपनी जीवनी में दिया- "खुदाई में हिंदू मंदिर मिला, और कहा गया कि वामपंथी इतिहासकार कट्टरपंथियों के साथ गठबंधन करके मुस्लिम समुदायों को गुमराह कर रहे हैं।"

लाल के दावों का परीक्षण (१९९२): जुलाई १९९२ में, आठ प्रतिष्ठित पुरातत्वविद (पूर्व ए.एस.आई.निदेशक, डॉ. वाई.डी. शर्मा और डॉ. के.एम. श्रीवास्तव सहित) निष्कर्षों का मूल्यांकन और जाँच करने के लिए रामकोट पहाड़ी पर गए। इन निष्कर्षों में धार्मिक मूर्तियाँ और विष्णु की एक मूर्ति शामिल थी। उन्होंने कहा कि विवादित ढाँचे की आंतरिक सीमा, कम से कम एक तरफ, पहले से मौजूद मौजूदा ढाँचे पर टिकी हुई है, जो "पहले के मंदिर की हो सकती है"। उनके द्वारा जाँच की गई वस्तुओं में कुषाण काल (१००- ३०० ईस्वी) की टेराकोटा हिंदू छवियाँ और नक्काशीदार बलुआ पत्थर की वस्तुएँ भी शामिल थीं, जिनमें वैष्णव देवताओं और शिव-पार्वती की छवियाँ दिखाई गई थीं। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि ये टुकड़े नागर शैली (९००-१२०० ईस्वी)  के एक मंदिर के थे।

प्रो. एस.पी. गुप्ता ने खोजों पर टिप्पणी की: "टीम ने पाया कि वस्तुएँ १० वीं से१२ वीं शताब्दी ईस्वी तक की अवधि के लिए डेटा योग्य थीं, यानी, प्रतिहारों की अवधि और प्रारंभिक गढ़वाल की अवधि। इन वस्तुओं में कई अमाकल शामिल थे, यानी, कोग्ड-व्हील प्रकार आर्किटेक्चरल तत्व जो भूमि शिखर या सहायक मंदिरों के स्पीयर, साथ ही शिखर या मुख्य शिखर के शीर्ष का ताज पहनाते हैं ... यह प्रारंभिक मध्ययुगीन काल के सभी उत्तर भारतीय मंदिरों की एक विशिष्ट विशेषता है। अन्य साक्ष्य थे - कॉर्निस, स्तंभ, मोल्डिंग, पुष्प पैटर्न वाले दरवाजे के जाम और अन्य।"

१९९२ - विष्णु-हरि शिलालेख (सबसे बड़ा खेल परिवर्तक): दिसंबर १९९२ में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के दौरान पत्थर पर तीन शिलालेख पाए गए थे। सबसे महत्वपूर्ण एक विष्णु-हरि शिलालेख है जो १.१० x ०.५६ मीटर स्लैब पर २० पंक्तियों के साथ खुदा हुआ है जो ११४० ई. पू. का माना गया था। शिलालेख में उल्लेख किया गया है कि मंदिर "विष्णु, बाली के वध करने वाले और दस सिरों वाले" को समर्पित था। शिलालेख नागरी लिपि में लिखा गया है, जो कि एक संस्कृत लिपि (या लिपि) है। ११ वीं और १२ वीं सदी विश्व स्तर के पुरालेखविदों और संस्कृत के विद्वानों सहित अजय मित्र शास्त्री, एपिग्राफिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष और पुरालेख और मुद्राशास्त्र के विशेषज्ञ, ने विष्णु-हरि शिलालेख की जाँचकर कहा: शिलालेख गद्य में एक छोटे से हिस्से को छोड़कर उच्च प्रवाह वाले संस्कृत पद्य में बना है, और ग्यारहवीं-बारहवीं शताब्दी ईस्वी की पवित्र और शास्त्रीय नागरी लिपि में उत्कीर्ण है। यह स्पष्ट रूप से मंदिर की दीवार पर लगाया गया था, जिसका निर्माण उस पर अंकित पाठ में दर्ज है। उदाहरण के लिए, इस शिलालेख की पंक्ति 15, हमें स्पष्ट रूप से बताती है कि विष्णु-हरि का एक सुंदर मंदिर, जो पत्थरों के ढेर (सिल-सम्हाति-ग्राहिस) से बना है और एक सुनहरे शिखर (हिरण्य-कलसा-श्रीसुंदरम) से सुशोभित है, जो किसी अन्य से अद्वितीय है। पहले के राजाओं द्वारा निर्मित मंदिर (पूर्ववैर-अप्य-अकृतं कृतं नृपतिभिर) का निर्माण किया गया था। यह अद्भुत मंदिर (अत्य-अद्भुतम्) साकेतमंडल (जिला, रेखा १७) में स्थित अयोध्या के मंदिर-शहर (विबुध-अलायनी) में बनाया गया था। पंक्ति १९ में भगवान विष्णु को राजा बलि (जाहिरा तौर पर वामन अभिव्यक्ति में) और दस सिर वाले व्यक्ति (दसानन, यानी रावण) को नष्ट करने के रूप में वर्णित किया गया है।

२००३ की खुदाई: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ए.एस.आई.) ने २००३ में उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ के निर्देश पर राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्थल की खुदाई की। पुरातत्वविदों ने बाबरी मस्जिद से पहले की एक बड़ी संरचना के संकेतों की भी सूचना दी। खुदाई में ५२ मुसलमानों सहित १३१ मजदूरों की एक टीम लगी हुई थी। ११ जून २००३ को ए.एस.आई. ने एक अंतरिम रिपोर्ट जारी की जिसमें केवल २२ मई और ६  जून २००३ के बीच की अवधि के निष्कर्षों को सूचीबद्ध किया गया। अगस्त २००३ में ए.एस.आई. ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ को सौंपी ५७४ पन्नों की एक रिपोर्ट में उल्लेख किया है कि उन्हें अन्य युगों के अवशेष भी मिले हैं। ये खंडहर जैन मंदिरों के खंडहर हो सकते हैं।

१००० BCE से ३०० BCE: निष्कर्ष बताते हैं कि १००  BCE और ३०० BCE के बीच मस्जिद स्थल पर एक उत्तरी काले पॉलिश वाले बर्तन (NBPW) संस्कृति मौजूद थी। अशोकन ब्राह्मी में एक किंवदंती के साथ एक गोल चिन्ह, पुरातन विशेषताओं वाली महिला देवताओं की टेराकोटा मूर्तियाँ, टेराकोटा के मोती और काँच, पहिए और मन्नत टैंक के टुकड़े पाए गए हैं।

शुंग काल २०० ईसा पूर्व: विशिष्ट टेराकोटा मातृ देवी, मानव और पशु मूर्तियाँ, मोती, हेयरपिन, मिट्टी के बर्तन (ब्लैक स्लिप्ड, रेड और ग्रे वेयर शामिल हैं), और शुंग काल के पत्थर और ईंट की संरचनाएँ मिली हैं। कुषाण काल  १००-३०० सी ई: टेराकोटा मानव और पशु मूर्तियाँ, मन्नत टैंकों के टुकड़े, मोतियों, चूड़ियों के टुकड़े, लाल बर्तन के साथ चीनी मिट्टी की चीज़ें और बाईस पाठ्यक्रमों में चलने वाली बड़े आकार की संरचनाएँ इस स्तर से पाई गई हैं।
गुप्त युग (३२०-६०० सी ई) और गुप्त काल के बाद का युग: विशिष्ट टेराकोटा मूर्तियाँ, किंवदंती श्री चंद्र (गुप्त) के साथ एक तांबे का सिक्का, और गुप्त काल के उदाहरणात्मक बर्तन पाए गए हैं। पूर्व की ओर से एक प्रवेश द्वार के साथ एक गोलाकार ईंट का मंदिर और उत्तरी दीवार पर एक पानी की ढलान का प्रावधान भी पाया गया है।
११ वीं से १२ वीं शताब्दी ई.: इस स्तर पर उत्तर-दक्षिण दिशा में लगभग पचास मीटर की विशाल संरचना मिली है। पचास स्तंभ आधारों में से केवल चार इस स्तर के हैं। इसके ऊपर कम से कम तीन संरचनात्मक चरणों वाली एक संरचना थी जिसमें एक विशाल स्तंभों वाला हॉल था।
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