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शनिवार, 25 दिसंबर 2021

सॉनेट, जबलपुर, नवगीत, क्रिसमस, भवन दोहा, जनक छंद, नया वर्ष

मिल्टनी सॉनेट
जबलपुर * नित्य निनादित नर्मदा, कलकल सलिल प्रवाह। नंदिकेsश्वर पूजिए, बरगी बाँध निहार। क्रूज बुलाता घूमिए, करिए नदी विहार।। रम्य पायली की छटा, निरख कीजिए वाह।। सिद्धघाट जप-तप करें, रहें ध्यान में लीन। गौरीघाट सुदाह कर, नहा कीजिए ध्यान। खारीघाट विमुक्ति दे, पूजें शिव मतिमान।। साई के दीदार कर, नदी न करें मलीन।। घाट लम्हेटा देखिए, अगिन शिला चट्टान। कौआडोल शिला लखें, मदनमहल लें घूम। देवताल है ध्यान हित, पावन भावन भूम। एक्वाडक्ट न भूलिए, तिलवारा की शान।। छप् छपाक् झट कूदती, रेवा नर्तित घूम।। धुआँधार में शिलाएँ, भुजभर लेती चूम।। * गौरीशंकर पूजिए, चौसठ योगिन संग। घाट सरस्वती नाव ले, बंदरकूदनी देख। भूलभुलैया खोजिए, दिखे नहीं जल-रेख।। भेड़ाघाट निहारिए, संगमरमरी रंग।। त्रिपुरसुंदरी के करें, दर्शन लें कर जोड़। धूसर लोहा फैक्ट्री, रचे सतत इतिहास। फैक्ट्री गन कैरिज करे उत्पादन नित खास।। आयुध निर्माणी करे हथियारों की होड़।। दुर्गावती अमर हुईं, किंतु न छोड़ी आन। त्रिपुरी वीर सुभाष की, कथा सुनाए खास। हुईं सुभद्रा-महीयसी, सखियाँ दो बेजोड़। ओशो और महर्षि से, हुए सिद्ध मतिमान।। संस्कारधानी कहें, संत विनोबा खास।। हिंदी पहला व्याकरण, गुरु ने दिया न तोड़।।
२५-१२-२०२१ ***
अभियान काव्य गोष्ठी
२५-१२-२०२०
*
सहभागी
सर्व श्री-श्रीमती अनिल बाजपेयी, अमरेंद्र नारायण, अशोक शर्मा, जय प्रकाश श्रीवास्तव, निरुपमा वर्मा, बसंत शर्मा, भारती नरेश पाराशर, भावना दीक्षित, मिथलेश बड़गैया, विनीता श्रीवास्तव, विवेक रंजन श्रीवास्तव, संतोष शुक्ला, हरसहाय पांडेय और मैं।
*
मोक्षदा एकादशी; गीता दिवस पर, मदन मोहन को नमन शत,
अटल हों संकल्प अपने; दिन बड़ा है; भारती माँ को नमन शत।
निरुपमा कविता व्यथित है, देख कृषकों को सड़क पर यूँ उपेक्षित -
सलिल कर अभिषेक श्रम का, अन्नदाता देश के उनको नमन शत।
*
वंदन शारद भारती; हरि सहाय हों आज
नमन अनिल अमरेंद्र को; हो अशोक सब काज
जय प्रकाश की भावना; हो बसंत का राज
मन मिथलेश अवधपति; हो तन तब संतोष
कर विवेक रंजन सदा; सृजन विनीता कोष
*
आमंत्रित सबको करें जो वे अब रहें न दूर
काव्य पाठ मिथलेश जी करें बजे संतूर
*
भाभी जी का स्टेशन है भैया जी के मन में
सादर वंदन नमन समर्पित, हो हुलास जीवन में
*
नेह नर्मदा बहे निरंतर, महके आँगन देहरी
कविता-कविता मन को छूती बातें कह दे गहरी
*
***
हस्तिनापुर की बिथा कथा अध्याय ६
*
मान दओ , सम्मान दओ , मित्रता करी और प्यार करो
मोरे बल पै निर्भर होवे के लानें उपकार करो (५१)
दुर्योधन कौ संग नईं छोड़ें , एहसान चुकाए हम
लड़ें युद्ध में ऊ की खातिर , अपनौ रक्त बाएँ हम (५२)
पर ई बेराँ जो कोऊ भी मोसें कछू माँगने आय
नियम कर्ण को है ऐसे बौ खाली हाँत लौट ना जाय (५३)
पाण्डव भइयन को बारे में मोसें माता सुन लो जौ
अर्जुन के सिवाय मैं करौं नईं वध चार पाण्डव कौ (५४)
वे मोरी बराबरी को नइँया , मैं मारें उनें नईं
उनें मारकें सूरमाई मैं अपनी लज्जित करौं नईं (५५)
अर्जुन है मोरी जोड़ी कौ , युद्ध अवस्य करौं ऊसें
कै तौ उयै मार देऊँ मैं , के मारो जाऊँ ऊसें (५६)
गर हालत में पुत्र आपके पाँच जिअत रै हैं माता "
ऐसौ सुनी कर्ण सें तौ उदास लौटी कुंती माता (५७)
घिरे युद्ध के बादर
कृष्ण गये उपलव्य और बोलें "दुर्योधन है अड़ियल
करवाओ सैनाएँ कूच सब जतन सान्ति को भए असफल (५८)
धृष्टद्युम्न द्रौपदी कौ जुड़वा भइया बुलवाओ गओ
और बाय पाण्डव सैना कौ सैनापति बनाओ गओ (५९)
कृष्ण बिना हथयार बने हँकवइया अर्जुन के रथ के
झंडा पै हनुमत चित्रित , घोड़ा जोते सफेद रँग के (६०)
चतुरंगी सैना भी गज , रथ , हाँती , घोड़ा , सवार , पैदल
कवच , ढाल सब अस्त्र सस्त्र लूँ जोधाउन में भी हलचल (६१)
कुरुक्षेत्र में हिरनवती नदिया समीप डेरा डारे
दूर दूर तक तम्बू तन गए , ठौर गये लड़ने बारे (६२)
और दूसरी तरफ आ जुरीं कौरव दल की सेनाएँ
कुरुक्षेत्र मैदान में जमी दोऊ तरफ की सैनाएँ (६३)
दुर्योधन भीष्म सें कहें "सेनापति हौएँ आप हमाए
सबसें अच्छे वीर धनुषधर, संरक्षक हैं आप हमाए (६४)
कौरव कुल की सान आप हैं , पूजनीय हैं कुलरक्षक
हमें आपकौ बल है , बान आपके रहत सत्रुभक्षक " (६५)
मान पितामह गये , " बात स्वीकार तुमाई करत हैं हम
दस हजार जोधा दुस्मन को रोज रोज मारहैं हम (६६)
पर पाण्डव सोई तुम जैसे लगत भौत प्यारे हम खौं
ई कारन सें बेटा सुन लो , हम ना मार सकें उन खौं (६७)
एक बात और , जब लौं हम बागडोर लै सेना की
कर्ण युद्ध नइँ लड़ै , अकड़ अच्छी नइँ लगत हमें ऊकी " (६९)
सुनकें सकपकाए दुर्योधन , कर्ण तोड़ है अर्जुन कौ
बौइ युद्ध में नईं लड़ै कैसें वध हो पर अर्जुन कौ? (७०)
सुनकें बोले कर्ण " पितामह जब लौं रएँ डटे कण में
भाग युद्घ में नइँ लैहौं , नईं तीर कमान चलाहौं मैं (७१)
हाँ , जब पूज्य पितामह कैसउँ युद्घभूमि सें होएँ दूर
तब मैं धनुष बान लै कें दुस्मन पै बार करौं भरपूर" (७२)
भोर भएँ आमने सामने दोऊ सैनाएँ डट गईं
भाँत भाँत को अस्त्र - सस्त्र लूँ लड़वे खौं तैयार भईं (७३)
भीष्म पितामह ग्यारा अक्षौहणियन के नायक बन गए
फरकन लगीं भुजाएँ उनकी, अंग बीर रस सें तन गए (७४)
उतै हस्तिनापुर में धृतराष्ट्र के पास व्यास जू गए
बोले युद्ध देखवे खौं हम तुमें दिव्य दृष्टि दम रये " (७५)
उत्तर मिलो " मरन अपने कुलजन कौ देख न पैहैं हम
दिव्य दृष्टि संजय खौं दै दो , सुनलें हाल इनइँ सें हम (७६)
***
नवगीत:
संजीव
.
कौन है जो
बिन कहे ही
शब्द में संगीत भरता है?
.
चाँद उपगृह निरा बंजर
सिर्फ पर्वत बिन समंदर
ज़िन्दगी भी नहीं संभव
उजाला भी नहीं अंदर
किन्तु फिर भी
रात में ले
चाँदनी का रूप झरता है
.
लता को देता सहारा
करें पंछी भी गुजारा
लकड़ियाँ फल फूल पत्ते
लूटता वहशी मनुज पर
दैव जैसा
सदय रहता
वृक्ष कल से नहीं डरता है
.
नदी कलकल बह रही है
क्या कभी कुछ गह रही है?
मिटाती है प्यास सबकी
पर न कुछ भी कह रही है
अचल सागर
से अँजुरिया
नीर पी क्या कोई तरता है?
***
दोहा सलिला :
भवन माहात्म्य
संजीव
*
[इंस्टिट्यूशन ऑफ़ इंजीनियर्स, लोकल सेंटर जबलपुर द्वारा गगनचुम्बी भवन (हाई राइज बिल्डिंग) पर १०-११ अगस्त २०१३ को आयोजित अखिल भारतीय संगोष्ठी की स्मारिका में प्रकाशित कुछ दोहे।]
*
भवन मनुज की सभ्यता, ईश्वर का वरदान।
रहना चाहें भवन में, भू पर आ भगवान।१।
*
भवन बिना हो जिंदगी, आवारा-असहाय।
अपने सपने ज्यों 'सलिल', हों अनाथ-निरुपाय।२।
*
मन से मन जोड़े भवन, दो हों मिलकर एक।
सब सपने साकार हों, खुशियाँ मिलें अनेक।३।
*
भवन बचाते ज़िन्दगी, सड़क जोड़ती देश।
पुल बिछुडों को मिलाते, तरु दें वायु हमेश।४।
*
राष्ट्रीय संपत्ति पुल, सड़क इमारत वृक्ष।
बना करें रक्षा सदा, अभियंतागण दक्ष।५।
*
भवन सड़क पुल रच बना, आदम जब इंसान।
करें देव-दानव तभी, मानव का गुणगान।६।
*
कंकर को शंकर करें, अभियंता दिन-रात।
तभी तिमिर का अंत हो, उगे नवल प्रभात७।
*
भवन सड़क पुल से बने, देश सुखी संपन्न।
भवन सेतु पथ के बिना, होता देश विपन्न।८।
*
इमारतों की सुदृढ़ता, फूंके उनमें जान।
देश सुखी-संपन्न हो, बढ़े विश्व में शान।९।
*
भारत का नव तीर्थ है, हर सुदृढ़ निर्माण।
स्वेद परिश्रम फूँकता, निर्माणों में प्राण।१०।
*
अभियंता तकनीक से, करते नव निर्माण।
होता है जीवंत तब, बिना प्राण पाषाण।११।
*
भवन सड़क पुल ही रखें, राष्ट्र-प्रगति की नींव।
सेतु बना- तब पा सके, सीता करुणासींव।१२।
*
करे इमारत को सुदृढ़, शिल्प-ज्ञान-तकनीक।
लगन-परिश्रम से बने, बीहड़ में भी लीक।१३।
*
करें कल्पना शून्य में, पहले फिर साकार।
आंकें रूप अरूप में, यंत्री दे आकार।१४।
*
सिर्फ लक्ष्य पर ही रखें, हर पल अपनी दृष्टि।
अभियंता-मजदूर मिल, रचें नयी नित सृष्टि।१५।
*
सडक देश की धड़कनें, भवन ह्रदय पुल पैर।
वृक्ष श्वास-प्रश्वास दें, कर जीवन निर्वैर।१६।
*
भवन सेतु पथ से मिले, जीवन में सुख-चैन।
इनकी रक्षा कीजिए, सब मिलकर दिन-रैन।१७।
*
काँच न तोड़ें भवन के, मत खुरचें दीवार।
याद रखें हैं भवन ही, जीवन के आगार।१८।
*
भवन न गन्दा हो 'सलिल', सब मिल रखें खयाल।
कचरा तुरत हटाइए, गर दे कोई डाल।१९।
*
भवनों के चहुँ और हों, ऊँची वृक्ष-कतार।
शुद्ध वायु आरोग्य दे, पायें ख़ुशी अपार।२०।
*
कंकर से शंकर गढ़े, शिल्प ज्ञान तकनीक।
भवन गगनचुम्बी बनें, गढ़ सुखप्रद नव लीक।२१।
*
वहीं गढ़ें अट्टालिका जहाँ भूमि मजबूत।
जन-जीवन हो सुरक्षित, खुशियाँ मिलें अकूत।२२।
*
ऊँचे भवनों में रखें, ऊँचा 'सलिल' चरित्र।
रहें प्रकृति के मित्र बन, जीवन रहे पवित्र।२३।
*
रूपांकन हो भवन का, प्रकृति के अनुसार।
अनुकूलन हो ताप का, मौसम के अनुसार।२४।
*
वायु-प्रवाह बना रहे, ऊर्जा पायें प्राण।
भवन-वास्तु शुभ कर सके, मानव को सम्प्राण।२५।
***
सामयिकी:
हिंदी की शब्द सलिला
संजीव
*
आजकल हिंदी विरोध और हिनदी समर्थन की राजनैतिक नूराकुश्ती जमकर हो रही है। दोनों पक्षों का वास्तविक उद्देश्य अपना राजनैतिक स्वार्थ साधना है। दोनों पक्षों को हिंदी या अन्य किसी भाषा से कुछ लेना-देना नहीं है। सत्तर के दशक में प्रश्न को उछालकर राजनैतिक रोटियाँ सेंकी जा चुकी हैं। अब फिर तैयारी है किंतु तब आदमी तबाह हुआ और अब भी होगा। भाषाएँ और बोलियाँ एक दूसरे की पूरक हैं, प्रतिस्पर्धी नहीं। खुसरो से लेकर हजारीप्रसाद द्विवेदी और कबीर से लेकर तुलसी तक हिंदी ने कितने शब्द संस्कृत. पाली, प्राकृत, अपभ्रंश, बुंदेली, भोजपुरी, बृज, अवधी, अंगिका, बज्जिका, मालवी निमाड़ी, सधुक्कड़ी, लश्करी, मराठी, गुजराती, बांग्ला और अन्य देशज भाषाओँ-बोलियों से लिये-दिये और कितने अंग्रेजी, तुर्की, अरबी, फ़ारसी, पुर्तगाली आदि से इसका कोई लेख-जोखा संभव नहीं है.
इसके बाद भी हिंदी पर संकीर्णता, अल्प शब्द सामर्थ्य, अभिव्यक्ति में अक्षम और अनुपयुक्त होने का आरोप लगाया जाना कितना सही है? गांधी जी ने सभी भारतीय भाषाओँ को देवनागरी लिपि में लिखने का सुझाव दिया था ताकि सभी के शब्द आपस में घुलमिल सकें और कालांतर में एक भाषा का विकास हो किन्तु प्रश्न पर स्वार्थ की रोटी सेंकनेवाले अंग्रेजीपरस्त गांधीवादियों और नौकरशाहों ने यह न होने दिया और ७० के दशक में हिन्दीविरोध दक्षिण की राजनीति में खूब पनपा।
संस्कृत से हिंदी, फ़ारसी होकर अंग्रेजी में जानेवाले अनगिनत शब्दों में से कुछ हैं: मातृ - मातर - मादर - मदर, पितृ - पितर - फिदर - फादर, भ्रातृ - बिरादर - ब्रदर, दीवाल - द वाल, आत्मा - ऐटम, चर्चा - चर्च (जहाँ चर्चा की जाए), मुनिस्थारि = मठ, -मोनस्ट्री = पादरियों आवास, पुरोहित - प्रीहट - प्रीस्ट, श्रमण - सरमन = अनुयायियों के श्रवण हेतु प्रवचन, देव-निति (देवों की दिनचर्या) - देवनइति (देव इस प्रकार हैं) - divnity = ईश्वरीय, देव - deity - devotee, भगवद - पगवद - pagoda फ्रेंच मंदिर, वाटिका - वेटिकन, विपश्य - बिपश्य - बिशप, काष्ठ-द्रुम-दल(लकड़ी से बना प्रार्थनाघर) - cathedral, साम (सामवेद) - p-salm (प्रार्थना), प्रवर - frair, मौसल - मुसल(मान), कान्हा - कान्ह - कान - खान, मख (अग्निपूजन का स्थान) - मक्का, गाभा (गर्भगृह) - काबा, शिवलिंग - संगे-अस्वद (काली मूर्ति, काला शिवलिंग), मखेश्वर - मक्केश्वर, यदु - jude, ईश्वर आलय - isreal (जहाँ वास्तव इश्वर है), हरिभ - हिब्रू, आप-स्थल - apostle, अभय - abbey, बास्पित-स्म (हम अभिषिक्त हो चुके) - baptism (बपतिस्मा = ईसाई धर्म में दीक्षित), शिव - तीन नेत्रोंवाला - त्र्यम्बकेश - बकश - बकस - अक्खोस - bachenelion (नशे में मस्त रहनेवाले), शिव-शिव-हरे - सिप-सिप-हरी - हिप-हिप-हुर्राह, शंकर - कंकर - concordium - concor, शिवस्थान - sistine chapel (धर्मचिन्हों का पूजास्थल), अंतर - अंदर - अंडर, अम्बा- अम्मा - माँ मेरी - मरियम आदि।
हिंदी में प्रयुक्त अरबी भाषा के शब्द : दुनिया, ग़रीब, जवाब, अमीर, मशहूर, किताब, तरक्की, अजीब, नतीज़ा, मदद, ईमानदार, इलाज़, क़िस्सा, मालूम, आदमी, इज्जत, ख़त, नशा, बहस आदि ।
हिंदी में प्रयुक्त फ़ारसी भाषा के शब्द : रास्ता, आराम, ज़िंदगी, दुकान, बीमार, सिपाही, ख़ून, बाम, क़लम, सितार, ज़मीन, कुश्ती, चेहरा, गुलाब, पुल, मुफ़्त, खरगोश, रूमाल, गिरफ़्तार आदि ।
हिंदी में प्रयुक्त तुर्की भाषा के शब्द : कैंची, कुली, लाश, दारोगा, तोप, तलाश, बेगम, बहादुर आदि ।
हिंदी में प्रयुक्त पुर्तगाली भाषा के शब्द : अलमारी, साबुन, तौलिया, बाल्टी, कमरा, गमला, चाबी, मेज, संतरा आदि ।
हिंदी में प्रयुक्त अन्य भाषाओ से: उजबक (उज्बेकिस्तानी, रंग-बिरंगे कपड़े पहननेवाले) = अजीब तरह से रहनेवाला,
हिंदी में प्रयुक्त बांग्ला शब्द: मोशाय - महोदय, माछी - मछली, भालो - भला,
हिंदी में प्रयुक्त मराठी शब्द: आई - माँ, माछी - मछली,
अपनी आवश्यकता हर भाषा-बोली से शब्द ग्रहण करनेवाली व्यापक में से उदारतापूर्वक शब्द देनेवाली हिंदी ही भविष्य की विश्व भाषा है इस सत्य को जितनी जल्दी स्वीकार किया जाएगा, भाषायी विवादों का समापन हो सकेगा।
******
***
नवगीत:
संजीव
*
साँप-सँपेरे
करें सियासत
.
हर चुनाव है नागपंचमी
बीन बज रही, बजे चंग भी
नागिन मोहे, कभी डराये
स्नेह लापता, छोड़ी जंग भी
कहीं हो रही
लूट-बगावत
.
नाचे बंदर, नचा मदारी
पण्डे-झंडे लाये भिखारी
कथनी-करनी में अंतर है
जनता, थोड़ा सबक सिखा री!
क्षणिक मित्रता
अधिक अदावत
.
खेलें दोनों ओर जुआरी
झूठे दावे, छद्म अदा री
जीतें तो बन जाए टपरिया
साथ मंज़िला भव्य अटारी
भृष्ट आचरण
कहें रवायत
.
***
नवगीत:
संजीव
.
कुछ तो कीजिए
हुज़ूर!
कुछ तो कीजिए
माथे बिंदिया
द्वारे सतिया
हाथ हिना लख
खुश परबतिया
कर बौरा का जाप
भजिए रीझिए
.
भोर सुनहरी
गर्म दुपहरी
साँझ सजीली
निशा नशीली
होतीं अपने आप
नवता दीजिए
.
धूप तप रही
हवा बह रही
लहर मीन से
कथा कह रही
दूरी लेंगी नाप
पग धर दीजिए
.
हँसतीं कलियाँ
भ्रमर तितलियाँ
देखें संग-संग
दिल की गलियाँ
दिग्दिगंत तक व्याप
ढलिये-ऊगिये
.
महल टपरिया
गली बजरिया
मटके भटके
समय गुजरिया
नाच नचायें साँप
विष भी पीजिए
२५-१२-२०१४
***
जनक छंदी सलिला:
संजीव 'सलिल'
*
शुभ क्रिसमस शुभ साल हो,
मानव इंसां बन सके.
सकल धरा खुश हाल हो..
*
दसों दिशा में हर्ष हो,
प्रभु से इतनी प्रार्थना-
सबका नव उत्कर्ष हो..
*
द्वार ह्रदय के खोल दें,
बोल क्षमा के बोल दें.
मधुर प्रेम-रस घोल दें..
*
तन से पहले मन मिले,
भुला सभी शिकवे-गिले.
जीवन में मधुवन खिले..
*
कौन किसी का हैं यहाँ?
सब मतलब के मीत हैं.
नाम इसी का है जहाँ..
*
लोकतंत्र नीलाम कर,
देश बेचकर खा गये.
थू नेता के नाम पर..
*
सबका सबसे हो भला,
सभी सदा निर्भय रहें.
हर मन हो शतदल खिला..
*
सत-शिव सुन्दर है जगत,
सत-चित -आनंद ईश्वर.
हर आत्मा में है प्रगट..
*
सबको सबसे प्यार हो,
अहित किसी का मत करें.
स्नेह भरा संसार हो..
*
वही सिंधु है, बिंदु भी,
वह असीम-निस्सीम भी.
वही सूर्य है, इंदु भी..
*
जन प्रतिनिधि का आचरण,
जन की चिंता का विषय.
लोकतंत्र का है मरण..
*
शासन दुश्शासन हुआ,
जनमत अनदेखा करे.
कब सुधरेगा यह मुआ?
*
सांसद रिश्वत ले रहे,
क़ैद कैमरे में हुए.
ईमां बेचे दे रहे..
*
सबल निबल को काटता,
कुर्बानी कहता उसे.
शीश न निज क्यों काटता?
*
जीना भी मुश्किल किया,
गगन चूमते भाव ने.
काँप रहा है हर जिया..
***
गीत:
नया वर्ष है...
संजीव 'सलिल'
*
खड़ा मोड़ पर आकर फिर
एक नया वर्ष है...
*
कल से कल का सेतु आज है यह मत भूलो.
पाँव जमीं पर जमा, आसमां को भी छू लो..
मंगल पर जाने के पहले
भू का मंगल -
कर पायें कुछ तभी कहें
पग तले अर्श है.
खड़ा मोड़ पर आकर फिर
एक नया वर्ष है...
*
आँसू न बहा, दिल जलता है, चुप रह, जलने दे.
नयन उनीन्दें हैं तो क्या, सपने पलने दे..
संसद में नूराकुश्ती से
क्या पाओगे?
सार्थक तब जब आम आदमी
कहे हर्ष है.
खड़ा मोड़ पर आकर फिर
एक नया वर्ष है...
*
गगनविहारी माया की ममता पाले है.
अफसर, नेता, सेठ कर रहे घोटाले हैं.
दोष बताएं औरों के
निज दोष छिपाकर-
शीर्षासन कर न्याय कहे
सिर धरा फर्श है.
खड़ा मोड़ पर आकर फिर
एक नया वर्ष है...
*
धनी और निर्धन दोनों अधनंगे फिरते.
मध्यमवर्गी वर्जनाएं रच ढोते-फिरते..
मनमानी व्याख्या सत्यों
की करे पुरोहित-
फतवे जारी हुए न लेकिन
कुछ विमर्श है.
खड़ा मोड़ पर आकर फिर
एक नया वर्ष है...
*
चले अहर्निश ऊग-डूब कब सोचे सूरज?
कर कर कोशिश फल की चिंता काश सकें तज..
कंकर से शंकर गढ़ना हो
लक्ष्य हमारा-
विषपायी हो 'सलिल'
कहें: त्यागा अमर्श है.
खड़ा मोड़ पर आकर फिर
एक नया वर्ष है...
२५-१२-२०१२

* 

शुक्रवार, 24 दिसंबर 2021

सॉनेट

नव प्रयोग 
दोहा सॉनेट 
*
दल के दलदल में फँसा, बेबस सारा देश।
दाल दल रहा लोक की, छाती पर दे क्लेश।
सत्ता मोह न छूटता, जनसेवा नहिं लेश।।
राजनीति रथ्या मुई, चाह-साध्य धन-एश।।

प्रजा प्रताड़ित तंत्र से, भ्रष्टाचार अशेष।
शुचिता को मिलता नहीं, किंचित् कभी प्रवेश।।
अफसर नेता सेठ मिल, साधें स्वार्थ विशेष।।
जनसेवक खूं चूसते, खुद को मान नरेश।।

प्रजा-लोक-गण पर हुआ, हावी शोषक तंत्र।
नफरत-शंका-स्वार्थ का, बाँट रहा है मंत्र।
मान रहा नागरिक को, यह अपना यंत्र।।
दूषित कर पर्यावरण, बढ़ा रहे संयंत्र।।

लोक करे जनजागरण, प्रजा करे बदलाव।
बनें अंगुलियाँ मुट्ठियाँ, मिटा सकें अलगाव।।
२४-१२-२०२१
***

गुरुवार, 23 दिसंबर 2021

सॉनेट

सॉनेट 
*
अलग सोचना राह सही है, चलते रहिए।
जहाँ जरूरत वहाँ सहारा बेशक ले लें।
ठोकर लगे न रुकें, गिरें उठ बढ़ते रहिए।।
जीत-हार सम मान खेल को मिलकर खेलें।।

मूल्य सनातन शुचि हों, सारस्वत चिंतन हो।
जन की पीड़ा उपचारें, कुछ समाधान हो।
साहचर्य की दिशा सुझाएँ, भय भंजन हो।।
हो निशांत तम मिटे, उजाला ले विहान हो।।

बीज नवाशा का बोएँ नवगीत-ग़ज़ल मिल।
कोशिश हो लघुकथा, सफलता बने कहानी।
जवां हौसले हों निबंध, रस-भाव सकें खिल।।
नीर-क्षीर सम रहे समीक्षा, लिखें सुज्ञानी।।

मुदित सरस्वती सुमन-सलिल हँस अंगीकारें।
शशि-रवि कर अभिषेक, सृजन-पथ सजा-सँवारें।।
२३-१२-२०२१
***

सॉनेट

बाल सॉनेट
भोर
*
झाँक झरोखे से सूरज ने कहा जाग जाओ।
उषा किरण आ कर झकझोरे उठो न अब सोना।
बैठ मुँडेरे गौरैया बोले न समय खोना।।
बाँग दे रहा मुर्गा कर प्रभु नमन, मुस्कुराओ।।

धरती माँ को कर प्रणाम, पग धर नभ को देखो।
जड़ें जमीं में जमा खड़ा बरगद बब्बा दे छाँह।
है कमजोर लता, न गिरे थामे है उसकी बाँह।।
कितना ऊँचा उड़ सकते हो, मन ही मन लेखो।

दसों दिशाएँ स्वागत करतीं, बिना स्वार्थ सबका।
आलस तजकर काम करो अपने-सबके मनका।
कठिनाई से हार न मानो, फिर-फिर कोशिश कर।

बहे पसीना-धार तभी आशीष मिले रब का।।
मिले सफलता मत घमंड कर, मोह तजो छिन का।।
राधा-कान्हा सम मुस्काओ, सबको मोहित कर।।
२३-१२-२०२१
***

सॉनेट

सॉनेट
गणपति
*
जय जय गणपति!, ऋद्धि-सिद्धिपति, मंगलकर्ता, हे प्रथमेश।
भव बाधा हर, हे शब्देश्वर!, सदय रहो प्रभु जोड़ूँ हाथ।
जयति गजानन, जय मतिदाता, शिवा तनय जय, हे विघ्नेश।।
राह न भटकूँ, कहीं न अटकूँ, पैर न पटकूँ, बल दो नाथ।।


वंदन-चंदन, कर अभिनंदन, करूँ स्तवन नित, हे सर्वेश!
जगजननी-जगपिता की कृपा, हो हम पर ऐसा वर दो।
विधि-हरि, शारद-रमा कृपा पा, भज पाएँ हम तुम्हें हमेश।।
करें काम निष्काम भाव से, शांति निकेतन सा घर दो।।


सत्य सनातन कह पाएँ जो ऐसी रचनाएँ हो दैव।
समयसाsक्षी घटनाओं में देखें-दिखा प्रगति की रेख।
चित्र गुप्त हो हरदम उज्जवल, निर्मल हो आचार सदैव।।
सकल सृष्टि परिवार हमारा, प्रकृति मैया पाएँ लेख।।


जय जय दीनानाथ! दयामय, द्रुतलेखी जय जय कलमेश!
रहे नर्मदा जीवन यात्रा, हर लो सारे कष्ट-कलेश।।
२२-१२-२०२१
***
सॉनेट
नारी
*
शारद-रमा-उमा की जय-जय, करती दुनिया सारी।
भ्रांति मिटाने साथ हाथ-पग बढ़ें तभी हो क्रांति।
एक नहीं दो-दो मात्राएँ, नर से भारी नारी।।
सफल साधना तभी रहे जब जीवन में सुख-शांति।।


जाया-माया, भोगी-भोग्या, चित-पट अनगिन रंग।
आशा पुष्पा दे बगिया को, सुषमा-किरण अनंत।
पूनम तब जब रहे ज्योत्सना, रजनीपति के संग।।
उषा-दुपहरी-संध्या सहचर दिनपति विभा दिगंत।।


शिक्षा-दीक्षा, रीति-नीति बिन सार्थक हुई न श्वासा।
क्षुधा-पिपासा-तृष्णा बिना हो, जग-जीवन बेरंग।
कीर्ति-प्रतिष्ठा, सज्जा-लज्जा से जीवन
मधुमासा।।
राधा धारा भक्ति-मुक्ति की, शुभ्रा-श्वेता संग।।


अमला विमला धवला सरला, सुख प्रदायिनी नारी।
मैया भगिनि भामिनि भाभी पुत्री सखी दुलारी।।


बुधवार, 22 दिसंबर 2021

सॉनेट

[22/12, 07:46] आचार्य संजीव वर्मा "सलिल": सॉनेट 
गणपति
*
जय जय गणपति!, ऋद्धि-सिद्धिपति, मंगलकर्ता, हे प्रथमेश।
भव बाधा हर, हे शब्देश्वर!, सदय रहो प्रभु जोड़ूँ हाथ।
जयति गजानन, जय मतिदाता, शिवा तनय जय, हे विघ्नेश।।
राह न भटकूँ, कहीं न अटकूँ, पैर न पटकूँ,  बल दो नाथ।।

वंदन-चंदन, कर अभिनंदन, करूँ स्तवन नित, हे सर्वेश!
जगजननी-जगपिता की कृपा, हो हम पर ऐसा वर दो।
विधि-हरि, शारद-रमा कृपा पा, भज पाएँ हम तुम्हें हमेश।।
करें काम निष्काम भाव से, शांति निकेतन सा घर दो।।

सत्य सनातन कह पाएँ जो ऐसी रचनाएँ हो दैव।
समयसाsक्षी घटनाओं में देखें-दिखा प्रगति की रेख।
चित्र गुप्त हो हरदम उज्जवल, निर्मल हो आचार सदैव।।
सकल सृष्टि परिवार हमारा, प्रकृति मैया पाएँ लेख।।

जय जय दीनानाथ! दयामय, द्रुतलेखी जय जय कलमेश!
रहे नर्मदा जीवन यात्रा, हर लो सारे कष्ट-कलेश।।
२२-१२-२०२१
***
[22/12, 11:43] आचार्य संजीव वर्मा "सलिल": सॉनेट 
नारी
*
शारद-रमा-उमा की जय-जय, करती दुनिया सारी।
भ्रांति मिटाने साथ हाथ-पग बढ़ें तभी हो क्रांति।
एक नहीं दो-दो मात्राएँ, नर से भारी नारी।।
सफल साधना तभी रहे जब जीवन में सुख-शांति।।

जाया-माया, भोगी-भोग्या, चित-पट अनगिन रंग।
आशा पुष्पा दे बगिया को, सुषमा-किरण अनंत।
पूनम तब जब रहे ज्योत्सना, रजनीपति के संग।।
उषा-दुपहरी-संध्या सहचर दिनपति विभा दिगंत।।

शिक्षा-दीक्षा, रीति-नीति बिन सार्थक हुई न श्वासा।
क्षुधा-पिपासा-तृष्णा बिना हो, जग-जीवन बेरंग।
कीर्ति-प्रतिष्ठा, सज्जा-लज्जा से जीवन 
मधुमासा।।
राधा धारा भक्ति-मुक्ति की, शुभ्रा-श्वेता संग।।

अमला विमला धवला सरला, सुख प्रदायिनी नारी।
मैया भगिनि भामिनि भाभी पुत्री सखी दुलारी।।
२२-१२-२०२१
***
[22/12, 07:46] आचार्य संजीव वर्मा "सलिल": सॉनेट 
गणपति
*
जय जय गणपति!, ऋद्धि-सिद्धिपति, मंगलकर्ता, हे प्रथमेश।
भव बाधा हर, हे शब्देश्वर!, सदय रहो प्रभु जोड़ूँ हाथ।
जयति गजानन, जय मतिदाता, शिवा तनय जय, हे विघ्नेश।।
राह न भटकूँ, कहीं न अटकूँ, पैर न पटकूँ,  बल दो नाथ।।

वंदन-चंदन, कर अभिनंदन, करूँ स्तवन नित, हे सर्वेश!
जगजननी-जगपिता की कृपा, हो हम पर ऐसा वर दो।
विधि-हरि, शारद-रमा कृपा पा, भज पाएँ हम तुम्हें हमेश।।
करें काम निष्काम भाव से, शांति निकेतन सा घर दो।।

सत्य सनातन कह पाएँ जो ऐसी रचनाएँ हो दैव।
समयसाsक्षी घटनाओं में देखें-दिखा प्रगति की रेख।
चित्र गुप्त हो हरदम उज्जवल, निर्मल हो आचार सदैव।।
सकल सृष्टि परिवार हमारा, प्रकृति मैया पाएँ लेख।।

जय जय दीनानाथ! दयामय, द्रुतलेखी जय जय कलमेश!
रहे नर्मदा जीवन यात्रा, हर लो सारे कष्ट-कलेश।।
२२-१२-२०२१
***
[22/12, 11:43] आचार्य संजीव वर्मा "सलिल": सॉनेट 
नारी
*
शारद-रमा-उमा की जय-जय, करती दुनिया सारी।
भ्रांति मिटाने साथ हाथ-पग बढ़ें तभी हो क्रांति।
एक नहीं दो-दो मात्राएँ, नर से भारी नारी।।
सफल साधना तभी रहे जब जीवन में सुख-शांति।।

जाया-माया, भोगी-भोग्या, चित-पट अनगिन रंग।
आशा पुष्पा दे बगिया को, सुषमा-किरण अनंत।
पूनम तब जब रहे ज्योत्सना, रजनीपति के संग।।
उषा-दुपहरी-संध्या सहचर दिनपति विभा दिगंत।।

शिक्षा-दीक्षा, रीति-नीति बिन सार्थक हुई न श्वासा।
क्षुधा-पिपासा-तृष्णा बिना हो, जग-जीवन बेरंग।
कीर्ति-प्रतिष्ठा, सज्जा-लज्जा से जीवन 
मधुमासा।।
राधा धारा भक्ति-मुक्ति की, शुभ्रा-श्वेता संग।।

अमला विमला धवला सरला, सुख प्रदायिनी नारी।
मैया भगिनि भामिनि भाभी पुत्री सखी दुलारी।।
२२-१२-२०२१
***

सोमवार, 20 दिसंबर 2021

सॉनेट

बाल सॉनेट 
पाखी
*
पाखी नील गगन को नापे।
पका हुआ फल खा जाएगा।
बैठ मुँडेरे जहँ-तहँ झाँके।।
मधुर प्रभाती भी गाएगा।।

नीचे बिल्ली घात लगाए।
ऊपर बाज ताकता फिरता।
इसे न हो कुछ राम बचाए।।
हिम्मतवाला तनिक न डरता।।

चुग्गा-दाना चुन उड़ जाता।
जा चूजों का पेट भरेगा।
चलना-उड़ना भी सिखलाता।।
जो समर्थ हो वही बचेगा।।

श्रम-अनुशासन पाठ पढ़ाता।
पाखी बच्चों के मन भाता।।
२०-१२-२०२१

रविवार, 19 दिसंबर 2021

दोहे, नवगीत, षट्पदी, चित्रगुप्त

सॉनेट शारदा * शारदा माता नमन शत, चित्र गुप्त दिखाइए। सात स्वर सोपान पर पग सात हमको दे चला। नाद अनहद सुनाकर, भव सिंधु पार कराइए।। बिंदु-रेखा-रंग से खेलें हमें लगता भला।। अजर अक्षर कलम-मसि दे, पटल पर लिखवाइए। शब्द-सलिला में सकें अवगाह, हों मतिमान हम। भाव-रस-लय में विलय हों, सत्सृजन करवाइए।। प्रकृति के अनुकूल जीवन जी सकें, हर सकें तम।। अस्मिता हो आस मैया, सुष्मिता हो श्वास हर। हों सकें हम विश्व मानव, राह वह दिखलाइए। जीव हर संजीव, दे सुख, हों सुखी कम कष्ट कर।। क्रोध-माया-मोह से माँ! मुक्त कर मुस्काइए।। साधना हो सफल, आशा पूर्ण, हो संतोष दे। शांति पाकर शांत हों, आशीष अक्षय कोष दे।। १९-१२-२०२१ ***
सॉनेट अभियान * सृजन सुख पा-दे सकें, सार्थक तभी अभियान है। मैं व तुम हम हो सके, सार्थक तभी अभियान है। हाथ खाली थे-रहेंगे, व्यर्थ ही अभिमान है।। ज्यों की त्यों चादर रखें, सत्कर्म कर अभियान है।। अरुण सम उजियार कर, हम तम हरें अभियान है। सत्य-शिव-सुंदर रचें, मन-प्राण से अभियान है। रहें हम जिज्ञासु हरदम, जग कहे मतिमान है।। सत्-चित्-आनंद पाएँ, कर सृजन अभियान है।। प्रीत सागर गीत गागर, तृप्ति दे अभियान है। छंद नित नव रच सके, मन तृप्त हो अभियान है। जगत्जननी-जगत्पितु की कृपा ही वरदान है।। भारती की आरती ही, 'सलिल' गौरव गान है।। रहे सरला बुद्धि, तरला मति सुखद अभियान है। संत हो बसंत सा मन, नव सृजन अभियान है।। १९-१२-२०२१ ***
सामयिक दोहे
तीर अगिन तूणीर में, चुना मरो अब झेल।
जो न साथ होगी तुरत, जेल न पाए बेल।।
तंत्र नाथ है लोक का, मालिक सत्ताधीश।
हुआ न होगा फिर कभी, कोई जुमलाधीश।।
छप्पन इंची वक्ष का, झेले वार तमाम।
जन पदच्युत कर दे बता, करना आता काम।।
रोजी छीनी भाव भी, बढ़ा रही है खूब।
देशभक्ति खेती मिटा, सेठ भक्ति में डूब।।
मूरत होगी राम की, सिया न होंगी साथ।
रेप करेंगे विधायक, भगवा थाने हाथ।।
अहंकार की होड़ है, तोड़ सके तो तोड़।
आग लगाता देश में, सत्ता का गठजोड़।।
'सलिल' सियासत है नहीं, तुझको किंचित साध्य।
जन-मन का दुख-दर्द कह, भारत माँ आराध्य।।
१९-१२-२०१९
***
दोहा सलिला
चित्रगुप्त-रहस्य
*
चित्रगुप्त पर ब्रम्ह हैं, ॐ अनाहद नाद
योगी पल-पल ध्यानकर, कर पाते संवाद
निराकार पर ब्रम्ह का, बिन आकार न चित्र
चित्र गुप्त कहते इन्हें, सकल जीव के मित्र
नाद तरंगें संघनित, मिलें आप से आप
सूक्ष्म कणों का रूप ले, सकें शून्य में व्याप
कण जब गहते भार तो, नाम मिले बोसॉन
प्रभु! पदार्थ निर्माण कर, डालें उसमें जान
काया रच निज अंश से, करते प्रभु संप्राण
कहलाते कायस्थ- कर, अंध तिमिर से त्राण
परम आत्म ही आत्म है, कण-कण में जो व्याप्त
परम सत्य सब जानते, वेद वचन यह आप्त
कंकर कंकर में बसे, शंकर कहता लोक
चित्रगुप्त फल कर्म के, दें बिन हर्ष, न शोक
मन मंदिर में रहें प्रभु!, सत्य देव! वे एक
सृष्टि रचें पालें मिटा, सकें अनेकानेक
अगणित हैं ब्रम्हांड, है हर का ब्रम्हा भिन्न
विष्णु पाल शिव नाश कर, होते सदा अभिन्न
चित्रगुप्त के रूप हैं, तीनों- करें न भेद
भिन्न उन्हें जो देखता, तिमिर न सकता भेद
पुत्र पिता का पिता है, सत्य लोक की बात
इसी अर्थ में देव का, रूप हुआ विख्यात
मुख से उपजे विप्र का, आशय उपजा ज्ञान
कहकर देते अन्य को, सदा मनुज विद्वान
भुजा बचाये देह को, जो क्षत्रिय का काम
क्षत्रिय उपजे भुजा से, कहते ग्रन्थ तमाम
उदर पालने के लिये, करे लोक व्यापार
वैश्य उदर से जन्मते, का यह सच्चा सार
पैर वहाँ करते रहे, सकल देह का भार
सेवक उपजे पैर से, कहे सहज संसार
दीन-हीन होता नहीं, तन का कोई भाग
हर हिस्से से कीजिये, 'सलिल' नेह-अनुराग
सकल सृष्टि कायस्थ है, परम सत्य लें जान
चित्रगुप्त का अंश तज, तत्क्षण हो बेजान
आत्म मिले परमात्म से, तभी मिल सके मुक्ति
भोग कर्म-फल मुक्त हों, कैसे खोजें युक्ति?
सत्कर्मों की संहिता, धर्म- अधर्म अकर्म
सदाचार में मुक्ति है, यही धर्म का मर्म
नारायण ही सत्य हैं, माया सृष्टि असत्य
तज असत्य भज सत्य को, धर्म कहे कर कृत्य
किसी रूप में भी भजे, हैं अरूप भगवान्
चित्र गुप्त है सभी का, भ्रमित न हों मतिमान
*
***
षट्पदी
श्वास-आस में ग्रह-उपग्रह सा पल-पल पलता नाता हो.
समय, समय से पूर्व, समय पर सच कहकर चेताता हो.
कर्म भाग्य का भाग्य बताये, भाग्य कर्म के साथ रहे-
संगीता के संग आज, कल-कल की बात बताता हो.
जन्मदिवस पर केक न काटें, कभी बुझायें ज्योति नहीं
दीप जला दीवाली कर लें, तिमिर भाग छिप जाता हो.
१९-१२-२०१७
***
नवगीत
मालिक को
रक्षक लूट रहे
*
देश एक है हम अनेक
खोया है जाग्रत विवेक
परदेशी के संग लडे
हाथ हमारे रहे जुड़े
कानून कई थे तोड़े
हौसले रहे कब थोड़े?
पाकर माने आज़ादी
भारत माँ थी मुस्कादी
चाह था
शेष न फूट रहे
मालिक को
रक्षक लूट रहे
*
जब अपना शासन आया
अनुशासन हमें न भाया
जनप्रतिनिधि चाहें सुविधा
जनहित-निजहित में दुविधा
शोषक बन बैठे अफसर
धनपति शोषक हैं अकसर
जन करता है नादानी
कानून तोड़ मनमानी
तुम मानो
हमको छूट रहे
मालिक को
रक्षक लूट रहे
*
धनतंत्र हुआ है हावी
दलतंत्र करे बरबादी
दमतोड़ रहा जनतंत्र
फल-फूल रहा मनतंत्र
सर्वार्थ रहे क्यों टाल
निज स्वार्थ रहे हैं पाल
टकराकर
खुद से टूट रहे
मालिक को
रक्षक लूट रहे
*
घात लगाये पडोसी हैं
हम खुद को कहते दोषी हैं
ठप करते संसद खुद हम
खुद को खुद ही देते गम
भूखे मजदूर-किसान
भूले हैं भजन-अजान
निज माथा
खुद ही कूट रहे
मालिक को
रक्षक लूट रहे
*
कुदरत सचमुच नाराज
ला रही प्रलय गिर गाज
तूफ़ान बवंडर नाश
बिछ रहीं सहस्त्रों लाश
कह रहा समय सम्हलो भी
मिल संग सुपंथ चलो भी
सच्चे हों
शेष न झूठ रहे
१९-१२-२०१५
*
***
नव गीत:
नए साल को
आना है तो आएगा ही
.
करो नमस्ते
या मुँह फेरो
सुख में भूलो
दुःख में टेरो
अपने सुर में गाएगा ही
नए साल को
आना है तो आएगा ही
.
एक दूसरे
को मारो या
गले लगाओ
हँस मुस्काओ
दर्पण छवि दिखलायेगा ही
नए साल को
आना है तो आएगा ही
.
चाह न मिटना
तो खुद सुधरो
या कोसो जिस-
तिस को ससुरों
अपना राग सुनायेगा ही
नए साल को
आना है तो आएगा ही

१९-१२-२०१४

***