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मंगलवार, 20 अप्रैल 2021

चंडिका / धरणी छंद

 छंद बहर का मूल है: ७

*
छंद परिचय:
संरचना: SIS SIS IS / SISS ISIS
सूत्र: ररलग।
आठ वार्णिक अनुष्टुप जातीय छंद।
तेरह मात्रिक भागवत जातीय चंडिका / धरणी छंद।
गणसूत्र - र र ल गा।
बहर: फ़ाइलुं फ़ाइलुं फ़अल / फ़ाइलातुं मुफ़ाइलुं ।
*
१.
देवता है वही सही
जो चढ़ा वो मँगे नहीं
*
बाल सारे सफेद हैं
धूप में ये रँगे नहीं
*
लोग ईसा बनें यहाँ
सूलियों पे टँगे नहीं
*
दर्द नेता न भोगता
सत्य है ये सभी कहीं
*
आम लोगों न हारना
हिम्मतें ही जयी रहीं
*
२.
जी न चाहे वहीं चलो
धार ही में बहे चलो
*
दूसरों की न बात हो
हाथ खाली मले चलो
*
छोड़ भी दो तनातनी
ख्वाब हो तो पले चलो
*
दुश्मनों की निगाह में
शूल जैसे चुभे चलो
*
व्यर्थ सीना न तान लो
फूल पाओ झुके चलो
***
२०.४.२०१७
***

मुक्तक

मुक्तक
पीर पराई हो सगी, निज सुख भी हो गैर.
जिसको उसकी हमेशा, 'सलिल' रहेगी खैर..
सबसे करले मित्रता, बाँट सभी को स्नेह.
'सलिल' कभी मत किसी के, प्रति हो मन में बैर..
***

अरुण छंद

छंद सलिला:
अरुण छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति महादैशिक , प्रति चरण मात्रा २० मात्रा, चरणांत गुरु लघु गुरु (रगण), यति ५-५-१०
लक्षण छंद:
शिशु अरुण को नमन कर ;सलिल; सर्वदा
मत रगड़ एड़ियाँ मंज़िलें पा सदा
कर्म कर, ज्ञान वर, मन व्रती पारखी
एक दो एक पग अंत में हो सखी
उदाहरण:
१. प्रेयसी! लाल हैं उषा से गाल क्यों
मुझ अरुण को कहो क्यों रही टाल हो?
नत नयन, मृदु बयन हर रहे चित्त को-
बँधो भुज पाश में कहो क्या हाल हो?
२. आप को आप ने आप ही दी सदा
आप ने आप के भाग्य में क्या लिखा"
व्योम में मोम हो सोम ढल क्यों गया?
पाप या शाप चुक, कल उगे हो नया
३. लाल को गोपियाँ टोंकती ही रहीं
'बस करो' माँ उन्हें रोकती ही रहीं
ग्वाल थे छिप खड़े, ताक में थे अड़े
प्रीत नवनीत से भाग भी थे बड़े
घर गयीं गोपियाँ आ गयीं टोलियाँ
जुट गयीं हट गयीं लूटकर मटकियाँ
*********************************************
२०-४-२०१४ 
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कामिनीमोहन कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, नित, निधि, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हंसगति, हंसी)

शास्त्र छंद

छंद सलिला:
शास्त्र छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति महादैशिक , प्रति चरण मात्रा २० मात्रा, चरणांत गुरु लघु (तगण, जगण)
लक्षण छंद:
पढ़ो उठकर शास्त्र समझ-गुन कर याद
रचो सुमधुर छंद याद रख मर्याद
कला बीसी रखें हर चरण पर्यन्त
हर चरण में कन्त रहे गुरु लघु अंत
उदाहरण:
१. शेष जब तक श्वास नहीं तजना आस
लक्ष्य लाये पास लगातार प्रयास
शूल हो या फूल पड़े सब पर धूल
सम न हो समय प्रतिकूल या अनुकूल
२. किया है सच सचाई को ही प्रणाम
हुआ है सच भलाई का ही सुनाम
रहा है समय का ईश्वर भी गुलाम
हुआ बदनाम फिर भी मिला है नाम
३. निर्भय होकर वन्देमातरम बोल
जियो ना पीटो लोकतंत्र का ढोल
कर मतदान, ना करना रे मत-दान
करो पराजित दल- नेता बेइमान
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विशेष टिप्पणी :
हिंदी के 'शास्त्र' छंद से उर्दू के छंद 'बहरे-हज़ज़' (मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन) की मुफ़र्रद बह्र 'मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईल' की समानता देखिये.
उदाहरण:
१. हुए जिसके लिए बर्बाद अफ़सोस
वो करता भी नहीं अब याद अफ़सोस
२. फलक हर रोज लाता है नया रूप
बदलता है ये क्या-क्या बहुरूपिया रूप
३. उन्हें खुद अपनी यकताई पे है नाज़
ये हुस्ने-ज़न है सूरत-आफ़रीं से
*
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कामिनीमोहन कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, नित, निधि, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हंसगति, हंसी)

नव गीत

नव गीत :
संजीव 'सलिल'
*
जीवन की जय बोल,
धरा का दर्द तनिक सुन
साँसों के एकतारा 
मौन न हो, कर तुन तुन  
*
तपता सूरज आँख दिखाता,
जगत जल रहा. 
पीर सौ गुनी अधिक हुई है, 
नेह गल रहा. 
हिम्मत तनिक न हार- 
नए सपने फिर से बुन... 
*
निशा उषा संध्या को छलता 
सुख का चंदा. 
हँसता है पर काम किसी के 
आए न बन्दा... 
सब अपने में लीन, 
तुझे प्यारी अपनी धुन... 
*
महाकाल के हाथ 
जिंदगी यंत्र हुई है. 
स्वार्थ-कामना ही 
साँसों का मन्त्र मुई है. 
तंत्र लोक पर, रहे न हावी 
कर कुछ सुन-गुन... 
*

दोहा सलिला

दोहा सलिला
*

पीर पराई हो सगी, निज सुख भी हो गैर.

जिसको उसकी हमेशा, 'सलिल' रहेगी खैर..
*

सबसे करले मित्रता, बाँट सभी को स्नेह.

'सलिल' कभी मत पालना, मन में किंचित बैर..

*

सोमवार, 19 अप्रैल 2021

कविता

कविता
*
कविता क्या है?
मन की मन से
मन भर बातें।
एक दिया
जब काली रातें।
गैरों से पाई
कुछ चोटें,
अपनों से पायी
कुछ मातें,
यहीं कहानी ख़त्म नहीं है।
किस्सा अपना
कहें दूसरे,
और कहें हम
उनकी बातें।
गिरें उठें
चल पड़ें दबारा
नया हौसला,
नव सौगातें।
अभी कहानी शेष रही है।
कविता वह है।
*
१९-४-२०२०

मुक्तिका

मुक्तिका 
*
वतन परस्तों से शिकवा किसी को थोड़ी है
गैर मुल्कों की हिमायत ही लत निगोड़ी है
*
भाईचारे के बीच मजहबी दखल क्यों हो?
मनमुटावों का हल, नाहक तलाक थोड़ी है
*
साथ दहशत का न दोगे, अमन बचाओगे
आज तक पाली है, उम्मीद नहीं छोड़ी है
*
गैर मुल्कों की वफादारी निभानेवालों
तुम्हारे बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है
*
है दुश्मनों से तुम्हें आज भी जो हमदर्दी
तो ये भी जान लो, तुमने ही आस तोड़ी है
*
खुदा न माफ़ करेगा, मिलेगी दोजख ही
वतनपरस्ती अगर शेष नहीं थोड़ी है
*
जो है गैरों का सगा उसकी वफा बेमानी
हाथ के पत्थरों में आसमान थोड़ी है
*

अंग्रेजी भाषा

अंग्रेजी भाषा के ४५ रोचक तथ्य


 

भारत में २-४ शब्द अंग्रेजी में बोल दो तो सामनेवाले प्रभावित हो जाते हैं। आइए, अंग्रेजी भाषा के बारे में कुछ तथ्य जानें।
१. अंग्रेजी भाषा में लगभग ८ लाख शब्द है जो संस्कृत भाषा के बाद सबसे ज्यादा हैं।
२. भारत में अब किसी अन्य देश के मुकाबले सबसे ज्यादा लोग अंग्रेजी बोलते और समझते हैं।
३. अंग्रेजी शब्दकोष में लगभग हर २ घंटे में एक नया शब्द जोड़ा जाता है, साल में करीब ४००० शब्द। अंग्रेजी पहला शब्द कोष १७५५ में बनाया गया था।
४. अंग्रेजी करीब ६७ देशों की प्रशासनिक भाषातथा हवाई जहाजों की भाषा है। अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों के पाइलट को अंग्रेजी जानना ज़रूरी है।
५. अंग्रेजी भाषा में आज तक जितना भी लिखा गया है उसके ९०% में केवल १,००० शब्दों का प्रयोग हुआ है।
६. इंग्लैंड से ज्यादाअंग्रेजी बोलनेवाले लोग नाइजीरिया में हैं।
७. अंग्रेजी में गिनती लिखें ( One, two, three, four…) तो १ अरब (1 बिलियन) तक पहुँचने से पहले कही भी बी (B) अक्षर नहीं आएगा।
८. अंग्रेजी भाषा में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला वर्ण ‘E’ है (हर ८ शब्द में एक बार) और सबसे कम इस्तेमाल होने वाला शब्द ‘Q’ है (हर ५१० शब्द में एक बार), सबसे ज्यादा शब्द ‘S’ वर्ण से शुरू होते हैं।
९. Dutch और West Flemish language, English भाषा के सबसे नजदीक हैं।
१०. अंग्रेजी में ‘Happy’ शब्द ‘Sad’ से ३ गुना ज्यादा उपयोग होता है।
११. आज से ४५० साल पहले अंग्रेजी भाषा में नारंगी (ऑरेंज) के लिए कोई शब्द नहीं था।
१२. दुनिया के सभी कंप्यूटरों में stored 80% जानकारी अंग्रेजी में है.
१३. एक आम इंसान की शब्दावली में ५ से ६ हजार शब्द होते हैं। शेक्सपीयर की शब्दावली में २९,००० शब्द थे। एक अफ्रीकन हरे तोते की शब्दावली में २०० शब्द होते हैं।
१४. Data Scientists ने अंग्रेजी भाषा में सबसे अधिक खुशी का शब्द खोजनेके लिए १०,२२२ शब्दों का विश्लेषण किया। सबसे अधिक खुश शब्द है ‘laughter’।
१५. अंग्रेजी में noon (दोपहर) शब्द ३ बजे के लिए प्रयोग किया जाता है।
१६. ‘Forty’ इकलौती संख्या है जिसके अक्षर वर्णमाला क्रम के अनुसार हैं जबकि ‘one’ के alphabetical order से विपरीत है।
१७. अंग्रेजी में सबसे छोटा complete sentence है “Go” ।
१८. अंग्रेजी भाषा में सबसे ज्यादा परिभाषाओं (definations) वाला शब्द है “Set”. आप यकीन नही करेंगे इस अकेले शब्द की करीब ४६४ परिभाषाएँ (definations) हैं।
१९. ‘Widow‘(विधवा) अंग्रेजी भाषा का इकलौता ऐसा स्त्रीलिंग है जो कि अपने पुरूष लिंग (widower) से छोटा है।
२०. ‘Swims’, ‘Malayalam’, ‘Liril’, ‘Madam’ ऐसे शब्द हैं सीधे-उलटे पढ़ने से कोइ अंतर नहीं पड़ता।ऐसे शब्द ‘Ambigrams‘ कहलाते हैं।
२१. अंग्रेजी Keyboard की एक ही पंक्ति से टंकित होनेवाला सबसे लम्बे शब्द TypeWriter, proprietor, repertoire व perpetuity हैं।
२२. अंग्रेजी वर्णक्रम Alphabetical order (A to Z) में लिखा जानेवाला सबसे अधिकलंबा शब्द ‘Aegilops’ है (पौधों का एक प्रकार) है। reverse alphabetical order (Z to A ) में लिखा जानेवाला सबसे लंबा शब्द Spoonfeed (चम्मच से खिलाया जानेवाला) है।
२३. अंग्रेजीशब्दकोष में प्रयोग होनेवाला सबसे लंबा शब्द “Pneumonoultramicroscopicsilicovolcanoconiosis” जो 45 letters का है. यह धूल मिट्टी में साँस लेने के कारण होनेवाली फेफड़ों की बीमारी ‘Silicosis’ को बताने का लंबा तरीका है।
२४. अंग्रेजी में केवल ३ शब्द है जो gry से खत्म होते है: Hungry, Angry and Hangry (इसे पिछले साल ही oxford dictionary में जोड़ा गया है).
२५. अंग्रेजी panagram (वाक्य जिसमें सभी २६ वर्ण सम्मिलित हों) The quick brown fox jumps over the lazy dog है। टंकण यंत्र तथा कुंज्जी पटल का परीक्षण करने के लिए इसी वाक्य का प्रयोग किया जाता है।
२६. अंग्रेजी में बिना vowels (a, e, i, o और u) के सबसे लंबा शब्द है ‘Twyndyllyng’अर्थात जुड़वा।
२७. अंग्रेजी में ‘Pronunciation’ सबसे ज्यादा गलत उच्चारित होने वाला शब्द है।
२८. अंग्रेजी में therein” ऐसा शब्द है जिससे १० नए शब्द बन जाते है: the, there, he, in, rein, her, here, ere, therein, herein.बन सकते हैं।
२९. अंग्रेजी में ‘Startling’ ९ वर्ण का एक ऐसा शब्द है, जिसमें से एक वर्ण हटाने पर नया शब्द बन जाता है।
३०. पूरी अंग्रेजी भाषा में bookkeeper, bookkeeping व committee ही तीन शब्द हैं जिनमें ३ बार दोहरे अक्षर आते हैं।
३१. अंग्रेजी में ‘Dreamt’ ही ऐसा इकलौता शब्द है जो mt से खत्म होता है।
३२. अंग्रेजी का ‘queue’ शब्द ही इकलौता शब्द है जिसके पिछले ४ अक्षर हटाने पर भी उच्चारण वही (क्यू) रहता है।
३३. पूरी इंग्लिश में केवल “Hydroxyzine” ही ऐसा शब्द है जिसमें X, Y और Z तीनों लगातार आते हैं।
३४. “Police police Police police police police Police police.” यह एक सही वाक्य है. क्योंकि police एक noun और verb दोनों है.
३५. ‘Subdermatoglyphic’ (उंगलियों की त्वचा की निचली परत का चिकित्सकीय नाम) सबसे लंबा अंग्रेजी शब्द है जिसे बिना अक्षर दोहराए लिखा जा सकता है, इसमें १७ वर्ण हैं।‘uncopyrightable’ (जिसे काॅपीराइट नही किया जा सकता) ऐसा आसान शब्द है जिसमें एक भी अक्षर दुबारा नही आता। इसमें १५ वर्ण हैं।
३६. ‘Indivisibility’ ऐसा शब्द है जिसमे केवल एक vowel ५ बार प्रयोग होता है।
३७. ‘September’ नौवाँ महीना है और केवल यही ऐसा महीना है जिसके नाम में भी ९ वर्ण आते हैं। ‘Four’ इकलौती ऐसी संख्या है जिसके अक्षरो की गिनती इसके मान जितनी ही है।
३८. एक साँस में बोला जाने वाला सबसे लम्बा शब्द ‘sereeched’ है।
३९. ‘i’ और ‘j’ के ऊपर जो dot होता है उसे ‘tittle’ कहा जाता है।
४०. अंग्रेजी भाषा का सबसे पुराना शब्द है ‘Town’पुरानी इंग्लिश से लिया गया है लेकिन फिर भी इसकी defination बिल्कुल same है।
४१. ‘Underground’ इकलौता ऐसा शब्द है जो ‘und’ से शुरू और समाप्त होता है '
४२. अंग्रेजी में केवल दो ही ऐसे शब्द हैं जिनमें पाँचों vowels अक्षर क्रमांक में हैं-‘abstemious‘(संयमी) और ‘facetious‘(मजाकिया) ।
४३. “OK” शब्द की खोज १८३९ में हुई थी, जब एक समाचार पत्र ने मजाक-मजाक में Oll Korrect को ok लिख दिया था। तब गलत हिज्जे (स्पेलिंग) लिखने का फैशन था और लोग All Correct की जगह Oll Korrect लिख रहे थे। यही से OK शब्द बना।
४४. क्या ‘moment’ था यार?, का moment (पल) ९० सेकेण्ड का होता है।
४५. अंग्रेजी भाषा का ये सबसे मुश्किल टंग ट्विस्टर है “sixth sick sheik’s sixth sheep’s sick”. इसे अपने दोस्तों पर भी आजमाएँ और देखे कि कौन बिना गलती किये बार-बार बोल पाता है।
कुछ मजेदार शब्दार्थ
किसी को दिमाग में रखना = Apodyopsis
बूँदो से बचने के लिए जब कही पर आश्रय मिलन = Ombrifuge
मन में एक सवाल उठा और आपने तुरंत अंदर ही अंदर खुद को उसका जवाब दे दिया = Sermocination
पत्तों से टकराकर हवा का शोर = Psithurism
अपने बाल खुद काटना = Self-tonsorialism
आइसक्रीम जैसा ज्यादा ठंडा खाने पर सिरदर्द = Sphenopalatine ganglioneuralgia
किसी समझौते के बाद हाथ मिलाना = Famgrapsing
नया अंडरवियर पहनने के बाद असुविधा = Shivviness
दूर तक चलने के बाद पैरों में दर्द = Hansper
ज्यादा बाल = Dasypygal
सुंदर कूल्हे = Callipygian
गाली देने के बाद मन को जो संतुष्टि = Lalochezia
केला छीलने पर उसके अंदर जो लंबी-सी पतली-सी लकीरें = Phloem bundles
आपकी नाक के बिल्कुल नीचे होंठो पर जो दो लकीरों की नाली = Philtrum
इंजेक्शन लगने से हुई चुभन = Paresthesia
ऐसी लिखाई जो आसानी से पढ़ी नही जातीGriffonage
पेंसिल के पीछे धातुवाला भाग = Ferrule
मोमबत्ती का जले हुए भाग Snaste
जूतों की डोर के सिरे पर प्लास्टिक = Aglet’
***

कामिनीमोहन (मदनअवतार) छंद

छंद सलिला:
कामिनीमोहन (मदनअवतार) छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति महादैशिक , प्रति चरण मात्रा २० मात्रा तथा चार पंचकल, यति५-१५.
लक्षण छंद:
कामिनी, मोहिनी मानिनी भामनी
फागुनी, रसमयी सुरमयी सावनी
पाँच पंद्रह रखें यति मिले गति 'सलिल'
चार पँचकल कहें मत रुको हो शिथिल
उदाहरण:
१. राम को नित्य भज भूल मत बावरे
कर्मकर धर्म वर हों सदय सांवरे
कौन है जो नहीं चाहता हो अमर
पानकर हलाहल शिव सदृश हो निडर
२. देश पर जान दे सिपाही हो अमर
देश की जान लें सेठ -नेता अगर
देश का खून लें चूस अफसर- समर
देश का नागरिक प्राण-प्राण से करे
देश से सच 'सलिल' कवि कहे बिन डरे
देश के मान हित जान दे जन तरे
३. खेल है ज़िंदगी खेलना है हमें
मेल है ज़िंदगी झेलना है हमें
रो नहीं हँस सदा धूप में, छाँव में
मंज़िलें लें शरण, आ 'सलिल' पाँव में
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(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कामिनीमोहन कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, नित, निधि, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हंसगति, हंसी)

नवगीत

नवगीत:
संजीव
.
अपने ही घर में
बेबस हैं
खुद से खुद ही दूर
.
इसको-उसको परखा फिर-फिर
धोखा खाया खूब
नौका फिर भी तैर न पायी
रही किनारे डूब
दो दिन मन में बसी चाँदनी
फिर छाई क्यों ऊब?
काश! न होता मन पतंग सा
बन पाता हँस दूब
पतवारों के
वार न सहते
माँझी होकर सूर
अपने ही घर में
बेबस हैं
खुद से खुद ही दूर
.
एक हाथ दूजे का बैरी
फिर कैसे हो खैर?
पूर दिये तालाब, रेत में
कैसे पायें तैर?
फूल नोचकर शूल बिछाये
तब करते है सैर
अपने ही जब रहे न अपने
गैर रहें क्यों गैर?
रूप मर रहा
बेहूदों ने
देखा फिर-फिर घूर
अपने ही घर में
बेबस हैं
खुद से खुद ही दूर
.
संबंधों के अनुबंधों ने
थोप दिये प्रतिबंध
जूही-चमेली बिना नहाये
मलें विदेशी गंध
दिन दोपहरी किन्तु न छटती
फ़ैली कैसी धुंध
लंगड़े को काँधे बैठाकर
अब न चल रहे अंध
मन की किसको परख है
ताकें तन का नूर
***
१९-४-२०१७

रविवार, 18 अप्रैल 2021

विमर्श महाकाव्य

विमर्श
हिंदी वांग्मय में महाकाव्य विधा
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
संस्कृत वांग्मय में काव्य का वर्गीकरण दृश्य काव्य (नाटक, रूपक, प्रहसन, एकांकी आदि) तथा श्रव्य काव्य (महाकाव्य, खंड काव्य आदि) में किया गया है। आचार्य विश्वनाथ के अनुसार 'जो केवल सुना जा सके अर्थात जिसका अभिनय न हो सके वह 'श्रव्य काव्य' है। श्रव्य काव्य का प्रधान लक्षण रसात्मकता तथा भाव माधुर्य है। माधुर्य के लिए लयात्मकता आवश्यक है। श्रव्य काव्य के दो भेद प्रबंध काव्य तथा मुक्तक काव्य हैं। प्रबंध अर्थात बंधा हुआ, मुक्तक अर्थात निर्बंध। प्रबंध काव्य का एक-एक अंश अपने पूर्व और पश्चात्वर्ती अंश से जुड़ा होता है। उसका स्वतंत्र अस्तित्व नहीं होता। पाश्चात्य काव्य शास्त्र के अनुसार प्रबंध काव्य विषय प्रधान या करता प्रधान काव्य है। प्रबंध काव्य को महाकाव्य और खंड काव्य में पुनर्वर्गीकृत किया गया है।
महाकाव्य के तत्व -
महाकाव्य के ३ प्रमुख तत्व है १. (कथा) वस्तु , २. नायक तथा ३. रस।
१. कथावस्तु - महाकाव्य की कथा प्राय: लंबी, महत्वपूर्ण, मानव सभ्यता की उन्नायक, होती है। कथा को विविध सर्गों (कम से कम ८) में इस तरह विभाजित किया जाता है कि कथा-क्रम भंग न हो। कोई भी सर्ग नायकविहीन न हो। महाकाव्य वर्णन प्रधान हो। उसमें नगर-वन, पर्वत-सागर, प्रात: काल-संध्या-रात्रि, धूप-चाँदनी, ऋतु वर्णन, संयोग-वियोग, युद्ध-शांति, स्नेह-द्वेष, प्रीत-घृणा, मनरंजन-युद्ध नायक के विकास आदि का सांगोपांग वर्णन आवश्यक है। घटना, वस्तु, पात्र, नियति, समाज, संस्कार आदि चरित्र चित्रण और रस निष्पत्ति दोनों में सहायक होता है। कथा-प्रवाह की निरंतरता के लिए सरगारंभ से सर्गांत तक एक ही छंद रखा जाने की परंपरा रही है किन्तु आजकल प्रसंग परिवर्तन का संकेत छंद-परिवर्तन से भी किया जाता है। सर्गांत में प्रे: भिन्न छंदों का प्रयोग पाठक को भावी परिवर्तनों के प्रति सजग कर देता है। छंद-योजना रस या भाव के अनुरूप होनी चाहिए। अनुपयुक्त छंद रंग में भंग कर देता है। नायक-नायिका के मिलन प्रसंग में आल्हा छंद अनुपतुक्त होगा जबकि युद्ध के प्रसंग में आल्हा सर्वथा उपयुक्त होगा।
२. नायक - महाकव्य का नायक कुलीन धीरोदात्त पुरुष रखने की परंपरा रही है। समय के साथ स्त्री पात्रों (सीता, कैकेयी, मीरा, दुर्गावती, नूरजहां आदि), किसी घटना (सृष्टि की उत्पत्ति आदि), स्थान (विश्व, देश, शहर आदि), वंश (रघुवंश) आदि को नायक बनाया गया है। संभव है भविष्य में युद्ध, ग्रह, शांति स्थापना, योजना, यंत्र आदि को नायक बनाकर महाकव्य रचा जाए। प्राय: एक नायक रखा जाता है किन्तु रघुवंश में दिलीप, रघु और राम ३ नायक है। भारत की स्वतंत्रता को नायक बनाकर महाकव्य लिखा जाए तो गोखले, टिकल। लाजपत राय, रविंद्र नाथ, गाँधी, नेहरू, पटेल, डॉ. राजरंदर प्रसाद आदि अनेक नायक हो सकते हैं। स्वातंत्र्योत्तर देश के विकास को नायक बना कर महाकाव्य रचा जाए तो कई प्रधान मंत्री और राष्ट्रपति अलग-अलग सर्गों में नायक होंगे। नायक के माध्यम से उस समय की महत्वाकांक्षाओं, जनादर्शों, संघर्षों अभ्युदय आदि का चित्रण महाकव्य को कालजयी बनाता है।
३. रस - रस को काव्य की आत्मा कहा गया है। महाकव्य में उपयुक्त शब्द-योजना, वर्णन-शैली, भाव-व्यंजना, आदि की सहायता से अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न की जाती हैं। पाठक-श्रोता के अंत:करण में सुप्त रति, शोक, क्रोध, करुणा आदि को काव्य में वर्णित कारणों-घटनाओं (विभावों) व् परिस्थितियों (अनुभावों) की सहायता से जाग्रत किया जाता है ताकि वह 'स्व' को भूल कर 'पर' के साथ तादात्म्य अनुभव कर सके। यही रसास्वादन करना है। सामान्यत: महाकाव्य में कोई एक रस ही प्रधान होता है। महाकाव्य की शैली अलंकृत, निर्दोष और सरस हुए बिना पाठक-श्रोता कथ्य के साथ अपनत्व नहीं अनुभव कर सकता।
अन्य नियम - महाकाव्य का आरंभ मंगलाचरण या ईश वंदना से करने की परंपरा रही है जिसे सर्वप्रथम प्रसाद जी ने कामायनी में भंग किया था। अब तक कई महाकाव्य बिना मंगलाचरण के लिखे गए हैं। महाकाव्य का नामकरण सामान्यत: नायक तथा अपवाद स्वरुप घटना, स्थान आदि पर रखा जाता है। महाकाव्य के शीर्षक से प्राय: नायक के उदात्त चरित्र का परिचय मिलता है किन्तु पथिक जी ने कारण पर लिखित महाकव्य का शीर्षक 'सूतपुत्र' रखकर इस परंपरा को तोडा है।
महाकाव्य : कल से आज
विश्व वांग्मय में लौकिक छंद का आविर्भाव महर्षि वाल्मीकि से मान्य है। भारत और सम्भवत: दुनिया का प्रथम महाकाव्य महर्षि वाल्मीकि कृत 'रामायण' ही है। महाभारत को भारतीय मानकों के अनुसार इतिहास कहा जाता है जबकि उसमें अन्तर्निहित काव्य शैली के कारण पाश्चात्य काव्य शास्त्र उसे महाकाव्य में परिगणित करता है। संस्कृत साहित्य के श्रेष्ठ महाकवि कालिदास और उनके दो महाकाव्य रघुवंश और कुमार संभव का सानी नहीं है। सकल संस्कृत वाङ्मय के चार महाकाव्य कालिदास कृत रघुवंश, भारवि कृत किरातार्जुनीयं, माघ रचित शिशुपाल वध तथा श्रीहर्ष रचित नैषध चरित अनन्य हैं।
इस विरासत पर हिंदी साहित्य की महाकाव्य परंपरा में प्रथम दो हैं चंद बरदाई कृत पृथ्वीराज रासो तथा मलिक मुहम्मद जायसी कृत पद्मावत। निस्संदेह जायसी फारसी की मसनवी शैली से प्रभावित हैं किन्तु इस महाकाव्य में भारत की लोक परंपरा, सांस्कृतिक संपन्नता, सामाजिक आचार-विचार, रीति-नीति, रास आदि का सम्यक समावेश है। कालांतर में वाल्मीकि और कालिदास की परंपरा को हिंदी में स्थापित किया महाकवि तुलसीदास ने रामचरित मानस में। तुलसी के महानायक राम परब्रह्म और मर्यादा पुरुषोत्तम दोनों ही हैं। तुलसी ने राम में शक्ति, शील और सौंदर्य तीनों का उत्कर्ष दिखाया। केशव की रामचद्रिका में पांडित्य जनक कला पक्ष तो है किन्तु भाव पक्ष न्यून है। रामकथा आधारित महाकाव्यों में मैथिलीशरण गुप्त कृत साकेत और बलदेव प्रसाद मिश्र कृत साकेत संत भी महत्वपूर्ण हैं। कृष्ण को केंद्र में रखकर अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' ने प्रिय प्रवास और द्वारिका मिश्र ने कृष्णायन की रचना की। कामायनी - जयशंकर प्रसाद, वैदेही वनवास हरिऔध, सिद्धार्थ तथा वर्धमान अनूप शर्मा, दैत्यवंश हरदयाल सिंह, हल्दी घाटी श्याम नारायण पांडेय, कुरुक्षेत्र दिनकर, आर्यावर्त मोहनलाल महतो, नूरजहां गुरभक्त सिंह, गाँधी परायण अम्बिका प्रसाद दिव्य, उत्तर भगवत तथा उत्तर रामायण डॉ. किशोर काबरा, कैकेयी डॉ.इंदु सक्सेना देवयानी वासुदेव प्रसाद खरे, महीजा तथा रत्नजा डॉ. सुशीला कपूर, महाभारती डॉ. चित्रा चतुर्वेदी कार्तिका, दधीचि आचार्य भगवत दुबे, वीरांगना दुर्गावती गोविन्द प्रसाद तिवारी, क्षत्राणी दुर्गावती केशव सिंह दिखित 'विमल', कुंवर सिंह चंद्र शेखर मिश्र, वीरवर तात्या टोपे वीरेंद्र अंशुमाली, सृष्टि डॉ. श्याम गुप्त, विरागी अनुरागी डॉ. रमेश चंद्र खरे, राष्ट्रपुरुष नेताजी सुभाष चंद्र बोस रामेश्वर नाथ मिश्र अनुरोध, सूतपुत्र महामात्य तथा कालजयी दयाराम गुप्त 'पथिक', आहुति बृजेश सिंह आदि ने महाकाव्य विधा को संपन्न और समृद्ध बनाया है।
समयाभाव के इस दौर में भी महाकाव्य न केवल निरंतर लिखे-पढ़े जा रहे हैं अपितु उनके कलेवर और संख्या में वृद्धि भी हो रही है, यह संतोष का विषय है।
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संपर्क विश्व वाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन जबलपुर ४८२००१, चलभाष ९४२५१८३२४४

बांग्ला लघुकथा

बांग्ला लघुकथा 
सुअर की कहानी
चंदन चक्रवर्ती
*
प्रकाशक सिर पर खड़ा था। उसकी एक लघुकथा-संकलन निकालने की योजना थी। डेढ़ सौ शब्दों की एक लघुकथा लिखने के लिए मुझसे कहा। मैंने कहा, ‘‘लेखकों को आप दर्जी समझते हैं क्या? माप कर कथा लिखूं?’’
--अरे जनाब, समझते क्यों नहीं आप? यह माइक्रोस्कोपिक युग है। इसके अलावा अणु-परमाणु से ही तो मारक बमों को निर्माण होता है।
--इसका मतलब है कि कथा परमाणु बम की तरह फटेगी। भाई मेरे, अणु-परमाणु से थोड़ा हटकर नहीं सोचा जा सकता?
--वह कैसे?
--यानी कि पटाखा-कथा। थोड़ी आकार में बड़ी होगी। पटाखे की तरह फूटेगी।
प्रकाशक चला गया। मेरे मस्तिष्क में लघुकथा नहीं आती है। बीज डालकर सींचना पड़ेगा। अंकुर फूटेंगे, पेड़ बनेंगे। उसके बाद फूल-फल और फिर से बीज। इससे बाहर कैसे जा सकता हूँ? अंततः कुछ सोच-समझकर लिख ही डाला -----
‘‘दो सुअर थे। बच्चे जने दस-बारह। सुअर के बच्चों ने निर्णय लिया कि सारी दुनिया को सुअरों से भर देंगे। पहले उन्होंने निश्चित किया कि सिर्फ भादों में कुत्तों की तरह बच्चे जनेंगे। ....हजार-हजार सुअर। कीड़ों की तरह किलबिला रहे हैं। अब पशुशाला बनाएंगे। वह भी बनाया। पशुशाला के नियम-कानून बने। देश सुअरमय हुआ। उनकी आयु पांच-दस वर्षों की है, पर ये रबर की तरह हैं। उम्र खिंचती चली जा रही है। बीस-पच्चीस-सत्ताइस-तीस और उससे भी अधिक। मजे से उनका घर-संसार चल रहा है।’’
प्रकाशक ने सुनकर कहा, ‘‘एक इन्सान की कहानी नहीं लिख सके?’’
मैं चौंक उठा, ‘‘तो फिर मैंने यह कहानी किसकी लिखी?’’
अनुवाद : रतन चंद ‘रत्नेश’
*

अरबी लघुकथा

अरबी लघुकथा
वार्तालाप
समीरा मइने
*
'पूर्व का आदमी एक, दो, तीन या चार औरतों से शादी कर सकता है।'
'तुम एक, दो, तीन या चार मर्दों से शारीरिक संबंध रख सकती हो?'
'मैंने उनसे शादी तो नहीं की न?'
'तुम हेनरी से मुहब्बत करती हो?'
'थोड़ी-थोड़ी....'
और पॉप से?'
'ओह.... उसकी तो बात ही कुछ और है। '
तो फिर तुम दोनों से मुहब्बत करती हो?'
'क्या बात करती हो.... एक तीसरा शख्स भी मेरा दोस्त है, जिसके बारे में मैंने तुमको बताया ही नहीं कि वह 'टॉम' है जो मुझे घूमता है और उसके साथ जाने में मेरा खर्च कुछ भी नहीं होता।'
'ओह! समझी पूर्व का मर्द शारीरिक भूख के पीछे और पश्चिम की औरत धन और सुरक्षा के पीछे कई-कई संबंध बनाती है।
अनुवाद : नासिरा शर्मा
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शर्करी / महारौद्र छंद


छंद बहर का मूल है: ६
*
छंद परिचय:
संरचना: SIS ISI SSI SIS IS
सूत्र: रजतरलग।
चौदह वार्णिक शर्करी जातीय छंद।
बाईस मात्रिक महारौद्र जातीय छंद।
बहर: फ़ाइलुं मुफ़ाइलुं फ़ाइलुं मुफ़ाइलुं।
*
देश-गीत गाइए, भेद भूल जाइए
सभ्यता महान है, एक्य-भाव लाइए
*
कौन था कहाँ रहा?, कौन है कहाँ बसा?
सम्प्रदाय-लिंग क्या?, भूल साथ आइए
*
प्यार-प्रेम से रहें, स्नेह-भाव ही गहें
भारती समृद्ध हो, नर्मदा नहाइए
*
दीन-हीन कौन है?, कार्य छोड़ मौन जो
देह देश में बनी, देश में मिलाइए
*
वासना न साध्य है, कामना न लक्ष्य है
भोग-रोग-मुक्त हो, त्याग-राग गाइए
*
ज्ञान-कर्म इन्द्रियाँ, पाँच तत्व देह है
गह आत्म-आप का, आप में खपाइए
*
भारतीय-भारती की उतार आरती
भव्य भाव भव्यता, भूमि पे उतरिये
***
१८.४.२०१७
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विमर्श  :

गुड्डो दादी
ताल मिले नदी के जल से
नदी और सागर का मेल ताल क्यों ?
*
सलिल-वृष्टि हो ताल में, भरे बहे जब आप
नदी ग्रहण कर समुद तक, पहुँचे हो थिर-व्याप
लघु समुद्र तालाब है, महाताल है सिंधु
बिंदु कहें तालाब को, सागर को कह इंदु
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शनिवार, 17 अप्रैल 2021

विरासत : गोपाल प्रसाद व्यास

विरासत :
कोरोना काल में आराम करने के फायदे जानिए हास्यावतार गोपाल प्रसाद व्यास से
* जन्म १३ फ़रवरी १९१५
* निधन २८ मई २००५
*जन्म स्थान महमदपुर, जिला मथुरा, उ. प्र ।
विविध शलाका सम्मान से सम्मानित।
कविता
* आराम करो , आराम करो *
एक मित्र बोले, "लाला, तुम किस चक्की का खाते हो?
इस डेढ़ छटाक के राशन में भी तोंद बढ़ाए जाते हो
क्या रक्खा माँस बढ़ाने में, मनहूस, अक्ल से काम करो
संक्रान्ति-काल की बेला है, मर मिटो, जगत में नाम करो"
हम बोले, "रहने दो लेक्चर, पुरुषों को मत बदनाम करो
इस दौड़-धूप में क्या रक्खा, आराम करो, आराम करो।
*
आराम ज़िन्दगी की कुंजी, इससे न तपेदिक होती है
आराम सुधा की एक बूँद, तन का दुबलापन खोती है
आराम शब्द में 'राम' छिपा जो भव-बंधन को खोता है
आराम शब्द का ज्ञाता तो विरला ही योगी होता है
इसलिए तुम्हें समझाता हूँ, मेरे अनुभव से काम करो
ये जीवन, यौवन क्षणभंगुर, आराम करो, आराम करो।
*
यदि करना ही कुछ पड़ जाए तो अधिक न तुम उत्पात करो
अपने घर में बैठे-बैठे बस लंबी-लंबी बात करो
करने-धरने में क्या रक्खा जो रक्खा बात बनाने में
जो ओठ हिलाने में रस है, वह कभी न हाथ हिलाने में
तुम मुझसे पूछो बतलाऊँ, है मज़ा मूर्ख कहलाने में
जीवन-जागृति में क्या रक्खा, जो रक्खा है सो जाने में।
मैं यही सोचकर पास अक्ल के, कम ही जाया करता हूँ
जो बुद्धिमान जन होते हैं, उनसे कतराया करता हूँ
दीप जलने के पहले ही घर में आ जाया करता हूँ
जो मिलता है, खा लेता हूँ, चुपके सो जाया करता हूँ
मेरी गीता में लिखा हुआ, सच्चे योगी जो होते हैं
वे कम-से-कम बारह घंटे तो बेफ़िक्री से सोते हैं।
अदवायन खिंची खाट में जो पड़ते ही आनंद आता है
वह सात स्वर्ग, अपवर्ग, मोक्ष से भी ऊँचा उठ जाता है
जब 'सुख की नींद' कढ़ा तकिया, इस सर के नीचे आता है
तो सच कहता हूँ इस सर में, इंजन जैसा लग जाता है
मैं मेल ट्रेन हो जाता हूँ, बुद्धि भी फक-फक करती है
भावों का रश हो जाता है, कविता सब उमड़ी पड़ती है।
मैं औरों की तो नहीं, बात पहले अपनी ही लेता हूँ
मैं पड़ा खाट पर बूटों को ऊँटों की उपमा देता हूँ
मैं खटरागी हूँ मुझको तो खटिया में गीत फूटते हैं
छत की कड़ियाँ गिनते-गिनते छंदों के बंध टूटते हैं
मैं इसीलिए तो कहता हूँ मेरे अनुभव से काम करो
यह खाट बिछा लो आँगन में, लेटो, बैठो, आराम करो।
*

मुक्तिका

मुक्तिका
*
कबिरा जो देखे कहे
नदी नरमदा सम बहे
जो पाये वह बाँट दे
रमा राम में ही रहे
घरवाली का क्रोध भी
बोल न कुछ हँसकर सहे
देख पराई चूपड़ी
कभी नहीं किंचित् दहे
पल की खबर न है जरा
कल के लिये न कुछ गहे
राम नाम ओढ़े-बिछा
राम नाम चादर तहे
न तो उछलता हर्ष से
और न गम से घिर ढहे
*
संजीव
१७-४-२०२०

मुक्तक

मुक्तक
*
है प्राची स्वर्णाभित हे राधेमाधव
दस दिश कलरव गुंजित है राधेमाधव
कोविद का अभिशाप बना वरदान 'सलिल'
देश शांत अनुशासित है राधेमाधव
*
तबलीगी जमात मजलिस को बैन करो
आँखें रहते देखो बंद न नैन करो
जो कानून तोड़ते उनको मरने दो
मत इलाज दो, जीवन काली रैन करो
*
मतभेदों को सब हँसकर स्वीकार करें
मनभेदों की ध्वस्त हरेक दीवार करें
ये जय जय वे हाय हाय अब बंद करें
देश सभी का, सब इसके उद्धार करें
*
जीवन कैसे जिएँ मिला अधिकार हमें
हानि न औरों को हो पथ स्वीकार हमें
जो न चिकित्सा चाहें, वे सब साथ रहें
नहीं शेष से मिलें, न दें दीदार हमें
*
कोरोना कम; ज्यादा घातक मानव बम
सोच प्रदूषित ये सारे हैं दानव बम
बिन इलाज रह, आएँ-जाएँ कहीं नहीं
मर जाएँ तो जला, कहो बम बम बम बम
*
१७-४-२०२० 

नवगीत आओ भौंकें

नवगीत 
आओ भौंकें
*
आओ भौंकें
लोकतंत्र का महापर्व है
हमको खुद पर बहुत गर्व है
चूक न जाए अवसर भौंकें
आओ भौंकें
*
क्यों सोचें क्या कहाँ ठीक है?
गलत बनाई यार लीक है
पान मान का नहीं सुहाता
दुर्वचनों का अधर-पीक है
मतलब तज, बेमतलब टोंकें
आओ भौंकें
*
दो दूनी हम चार न मानें
तीन-पाँच की छेड़ें तानें
गाली सुभाषितों सी भाए
बैर अकल से पल-पल ठानें
देख श्वान भी डरकर चौंकें
आओ भौंकें
*
बिल्ला काट रास्ता जाए
हमको नानी याद कराए
गुंडों के सम्मुख नतमस्तक
हमें न नियम-कायदे भाए
दुश्मन देखें झट से पौंकें
आओ भौंकें
*
हम क्या जानें इज्जत देना
हमें सभ्यता से क्या लेना?
ईश्वर को भी बीच घसीटे-
पालेे हैं चमचों की सेना।
शिष्टाचार भाड़ में झौंकें
आओ भौंकें
*
१७-४-२०१९