नव गीत :
संजीव 'सलिल'
*
जीवन की जय बोल,
धरा का दर्द तनिक सुन
साँसों के एकतारा
मौन न हो, कर तुन तुन
*
तपता सूरज आँख दिखाता,
जगत जल रहा.
पीर सौ गुनी अधिक हुई है,
नेह गल रहा.
हिम्मत तनिक न हार-
नए सपने फिर से बुन...
*
निशा उषा संध्या को छलता
सुख का चंदा.
हँसता है पर काम किसी के
आए न बन्दा...
सब अपने में लीन,
तुझे प्यारी अपनी धुन...
*
महाकाल के हाथ
जिंदगी यंत्र हुई है.
स्वार्थ-कामना ही
साँसों का मन्त्र मुई है.
तंत्र लोक पर, रहे न हावी
कर कुछ सुन-गुन...
*
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