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मंगलवार, 15 सितंबर 2020

संस्मरण

पुरोवाक्
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
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संस्मरण शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, सम् + स्मरण। सम्यक् स्मरण अर्थात् किसी घटना, किसी व्यक्ति अथवा वस्तु का स्मृति के आधार पर कलात्मक वर्णन करना संस्मरण कहलाता है। इसमें स्वयं की अपेक्षा उस वस्तु की घटना का अधिक महत्व होता है जिसके विषय में संस्मरण लिखा जा रहा हो। संस्मरण का कथ्य सत्याधारित आधारित होता है, कल्पना का प्रयोग लगभग नहीं किया जाता।१ लेखक स्मृति पटल पर अंकित किसी विशेष व्यक्ति के जीवन की कुछ ऐसी घटनाओं का रोचक विवरण प्रस्तुत करता है जो उसने स्वयं अनुभव की हों। यह विवरण सर्वथा प्रामाणिक होता है। संस्मरण लेखक जब अपने विषय में लिखता है तो उसकी रचना आत्मकथा के निकट होती है और जब दूसरे के विषय मे लिखता है तो जीवनी के। संस्मरण लेखक अतीत की अनेक स्मृतियों में से कुछ रमणीय अनुभूतियों को अपनी कल्पना भावना या व्यक्तित्व की विशेषताओं से अनुरंजित कर (युक्त कर) प्रभावशाली ढंग से अभिव्यक्त करता है। उसके वर्णन में उसकी अपनी अनुभूतियों और सम्वेदनाओं का समावेश रहता है। संस्मरण के लेखक के लिए यह नितांत आवश्यक है कि लेखक ने उस व्यक्ति या वस्तु से साक्षात्कार किया हो जिसका वह संस्मरण लिख रहा है। संस्मरण में बीती हुई बातें और विवरणात्मकता अधिक रहती है। इसमें लेखक ‘रेखाचित्रकार‘ की भांति तत्व निर्लिप्त नहीं, कथ्य के साथ संलिप्त रहता है।
स्मृति के आधार पर किसी विषय पर अथवा किसी व्यक्ति पर लिखित आलेख संस्मरण है। यात्रा (जीवन यात्रा) साहित्य इसके अन्तर्गत आता है। संस्मरण साहित्यिक निबन्ध की एक प्रवृत्ति है जिसे 'संस्मरणात्मक निबंध' कहा जा सकता है। व्यापक रूप से संस्मरण आत्मचरित के अन्तर्गत लिया जा सकता है। संस्मरण और आत्मचरित के दृष्टिकोण में मौलिक अन्तर है। आत्मचरित के लेखक का मुख्य उद्देश्य अपनी जीवनकथा का वर्णन करना होता है। इसमें कथा का प्रमुख पात्र स्वयं लेखक होता है। संस्मरण लेखक का दृष्टिकोण भिन्न रहता है। संस्मरण में लेखक जो कुछ स्वयं देखता है और स्वयं अनुभव करता है उसी का चित्रण करता है। लेखक की स्वयं की अनुभूतियाँ तथा संवेदनायें संस्मरण में अन्तर्निहित रहती हैं। इस दृष्टि से संस्मरण का लेखक निबन्धकार के अधिक निकट है। वह अपने चारों ओर के जीवन का वर्णन करता है। इतिहासकार के समान वह केवल यथातथ्य विवरण प्रस्तुत नहीं करता है। पाश्चात्य साहित्य में साहित्यकारों के अतिरिक्त अनेक राजनेताओं तथा सेनानायकों ने भी अपने संस्मरण लिखे हैं, जिनका साहित्यिक महत्त्व है।

जिस प्रकार उपन्यास समग्र जीवन का चित्र खींचता है जबकि कहानी जीवन के एक छोटे से अंग का उसी प्रकार जीवनी नायक के समस्त जीवन को, उसके छोरों को बाँधती चलती है और संस्मरण उसके जीवन की एक झाँकी को चित्रित करता है। संस्मरण में चरित्र का एक भाग अपनी पूर्ण उज्जवलता और सौंदर्य के साथ प्रगट होता है। इसीलिए संस्मरण लेखक को अपनी कृति अधिक संवेदनात्मक और मनोरजक बनानी होती है। संस्मरणों में सत्य का आग्रह तो रहता ही है परन्तु उसकी शैले अधिक चुटीली और सरल-सहज होनी चाहिए। नायक के चरित्र की जो झाँकी प्रस्तुत की जाए वह नायक के व्यक्तित्व से मेल खाती होनी चाहिए।१
हिंदी में संस्मरण साहित्य अपेक्षाकृत कम लिखा गया है तथापि महत्त्वपूर्ण लिखा गया है। प्रस्तुत कृति एक विदुषी अर्थशास्त्री ने स्वयं अपने बारे में लिखी है। डॉ. जयश्री जोशी मराठी सुसंस्कृत परिवार से हैं। उन्होंने अर्थशास्त्र में उच्च शिक्षा प्राप्त कर शोधोपाधि अर्ज़ित ने के पश्चात् दीर्घ अवधि तक प्राध्यापक के रूप में अगिन छात्रों को अर्थ शास्त्र हृदयंगम कराया है। वे सामान्य छात्रों या प्राध्यापकों की तरह पाठ्यक्रम तक सीमित नहीं रही। छात्रा के नाते अर्थशास्त्र के व्यापक व्यावहारिक महत्व का अध्ययन तथा प्राध्यापक के नाते देश की आर्थिक नीतियों का विश्लेषण कर अपना अभिमत व्यक्त करना उन्हें औरों से अलग करता है। बजट प्रस्तावों का विश्लेषण करते समय वे किसी राजनैतिक विचारधारा, नेता या दल के प्रति प्रतिबद्धता या पूर्वाग्रह से मुक्त रहकर तटस्थता से उसका विश्लेषण करती रही हैं। उनकी प्रतिबद्धता सामाजिक कल्याण, जनहित और राष्ट्रोन्नति के प्रति रही है। वे आर्थिक नीतियों और बजट के सकारात्मक पहलुओं पर प्रकाश डालकर नकारात्मक पहलुओं अदेखी कर जनसामान्य के मन में आशा-दीप जलाती रही हैं।
वैयक्तिक जीवन में भी जयश्री जी स्वावलंबी, स्वाभिमानी (घमंडी नहीं) और स्पष्टवादी (कटु नहीं) हैं। उन्हें ठकुरसुहाती में विश्वास नहीं है। वे सादगी पसंद हैं किन्तु उनकी सादगी वीतरागीतापरक नहीं है, वे जीवन को पूरे अनुराग के साथ जीते हुए भी सादगी के साथ सहजता को भी जीती हैं। किसी बात को तथ्यों के साथ वे इस तरह प्रस्तुत करती रही हैं कि उनसे असहमत होने की संभावना नगण्य हो जाती है। संस्कारों के प्रति पूरी निष्ठा रखते हुए भी अंधविश्वासी और दकियानूसी से दूर अधुनातन चिंतन को साकार करती हैं। मेरी जीवन संगिनी डॉ. साधना वर्मा को उनके साथ कार्य करने का अवसर मिला है। श्री जयंत जोशी और मैं दोनों सिविल अभियंता हैं, वे निजी क्षेत्र में अपना खुद का कार्य करते रहे हैं, मैं सरकारी विभाग में कार्यरत रहा हूँ। जो बात हम दोनों को जोड़ती है, वह है सांस्कृतिक-साहित्यिक रूचि और कार्य की गुणवत्ता से समझौता न करना। जोशी दंपत्ति हमारे पारिवारिक स्वजन जैसे हो गए।
मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि संपन्नता और समृद्धि के बावजूद अहमन्यता और दंभ से जितने दूर जोशी दंपत्ति हैं, वैसे कम ही लोग मिलते हैं। आयु के हिसाब से मैं उनसे पर्याप्त छोटा हूँ, ज्ञान और अनुभव भी कम है तथापि जब भी हमारी भेंट हुई, उन्होंने मुझे यह प्रतीति नहीं होने दी। इन संस्मरणों में जीवन के प्रति ठोस सकारात्मक और व्यावहारिकता के दर्शन पृष्ठ-पृष्ठ पर होते हैं। श्रीमती जोशी एक शिक्षक के रूप में अपने छात्रों के हिट-साधन के प्रति कितनी सजग रही हैं इसका प्रत्यक्ष उदाहरण वह प्रसंग हैं जब उन्होंने शासकीय महाकौशल महाविद्यालय जबलपुर के स्थापना काल के छात्र रहे मेरे पूज्य पितृश्री से अपने नेत्रहीन छात्रों के लिए ब्रेल लिपि की पुस्तकें प्राप्त कर महाविद्यालय पुस्तकालय में उपलब्ध कराईं। मैं अन्य महाविद्यालयों में भी पुस्तक दान करना चाहता हूँ किंतु अब वैसी रूचि के प्राध्यापक नहीं हैं।
इन संस्मरणों की भाषा सरल, प्रवाहमयी और सहज बोधगम्य है। विद्वता प्रदर्शन हेतु शुद्धता के नाम पर क्लिष्टता से श्रीमती जोशी दूर रही हैं। इनमें सुसंकृत मराठी परिवार के सहज झलक परिव्याप्त है। बड़ों के प्रति सम्मान रखते हुए अपनी बात स्पष्टता व विनम्रता से कहने का संस्कार, छोटों के प्रति लाड और स्नेह के साथ-साथ अनुशासन और मर्यादा का पालन, शासकीय कर्तव्य निर्वहन के साथ-साथ पारिवारिक परंपराओं का निर्वहन विशेषकर नवविवाहित महिलाओं के लिए तलवार की धार पर चलने से कम नहीं होता। मुझे यह अनुभव अपनी श्रीमती जी के साथ हुआ। श्रीमती जोशी ने ऐसे कुछ प्रसंग उठाये हैं पर यहाँ भी वे अपने अधिकारीयों और बुजुर्गों दोनों की आलोचना न कर संकेत मात्र से बात कह। उनका यह संयम वाणी, लेखन हुए आचरण तीनों में है। इस दृष्टि से यह संस्मरण पारिवारिक जीवन में संतुलन स्थापित न कर पाने के कारण बिखर रहे नव दंपतियों के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं।
इन संस्मरणों में जयश्री जी ने साहित्यिक मानकों के पिजरे में कैद होकर लेखन पर विचार-पंछी को मनाकाश में स्वच्छंद उड़ने दिया है। इसलिए ये पठनीय, रोचक और अन्यों से भिन्न बन पड़े हैं। संयोगवश अभी-अभी मुझे कनल (से.नि.) डॉ. गिरिजेश नारायण सक्सेना की कृति 'सत्य तथा कथ्य' समीक्षार्थ प्राप्त हुई है। सक्सेना जी ने इसे कहानी संग्रह कहा है किन्तु वस्तुत: यह भी संस्मरणात्मक कृति है। हिंदी के अधुनातन साहित्य में कथेतर साहित्य सृजन की प्रवृत्ति दिन-ब-दिन बढ़ रही है। कथेतर गद्य साहित्य पारंपरिक मानकों के ढांचे का अतिक्रमण कर अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य को वरीयता देता है। सक्सेना जी ने कहानी से इतर कहने की है, जयश्री जे ने पारंपरिक संस्मरण से परे उसकी सीमा का विस्तार करते हुए आपके चिन्तन-मनन, आत्मावलोकन और आत्म चिन्तन को समेटते हुए अपने परिवेश को याद किया है। इन संस्मरणों की कहन देशज और आभिजात्य के बीच दैनंदिन बोलचाल की होते हुए भी सरल, प्रवाहयुक्त है।
जबलपुर में संस्मरण लेखन की परंपरा बहुत लंबी नहीं है। समसामयिक संस्मरणात्मक कृतियों में साहित्यकारों के संस्मरण - डॉ. आत्मानंद मिश्र १९८४, वार्ता प्रसंग - हरिकृष्ण त्रिपाठी १९९१, चरित चर्चा - हरिकृष्ण त्रिपाठी २००४ डॉ.सुधियों में राजहंस - जवाहर लाल चौरसिया 'तरुण' २००६, आदि महत्वपूर्ण हैं। इनके अतिरिक्त यात्रावृत्तात्मक संस्मरणों में अमृतलाल वेगड़ लिखित सौंदर्य की नदी नर्मदा १९९२, तीरे-तीरे नर्मदा २०११, नर्मदा तुम कितनी सुंदर हो २०१५, अमृतस्य नर्मदा तथा नर्मदा की धारा से - शिवकुमार तिवारी तथा गोविन्द प्रसाद मिश्र २००७ अपमी मिसाल।
स्वजनों तथा परिवेश को केंद्र में रखकर लिखी गयी पांडेय ' उग्र' की अपनी खबर १९६०, कृष्णा सोबती कृत हम हशमत १९७७, मेरा जीवन शिवपूजन सहाय १९८५, केसरी कुमार लिखित स्मृतियों में अब भी १९८५, रामनारायण शुक्ल रचित स्वांत: सुखाय १९९६, सुशीला अवस्थी सृजित सुधि की गठरी २००५, कांति अय्यर रचित बाल्य अश्मि २००७ है।
मुझे यह कहने में किंचित संकोच नहीं है कि डॉ. जयश्री जोशी जी ने इस कृति का सृजन करते समय किसी कृति या कृतिकार की शैली, सामग्री, भाषा या कहन को आदर्श मानकर उसका अनुकरण नहीं किया, अपितु आप बनाई है। मुझे इस कृति से समय- समय पर जुड़ने का अवसर मिलता रहा है। लेखिका का औदार्य है उन्होंने विमर्श में दिए गए सुझावों सहृदयता से न केवल विचार किया, उन्हें स्वीकार भी किया। वे मेरी आदरणीया भाभी हैं। उन्हें व भाई जयंत को नमन करते हुए उनकी गृह वाटिका में लगे कलमी आम के स्वाद का स्मरण करते हुए सादर नमन। मुझे विश्वास है कि ज्येष्ठ और युवा दोनों पाठक वर्ग में यह कृति सराही जाएगी और वे डॉ. जयश्री जोशी जी की अगली कृति प्रतीक्षा करेंगे।
संदर्भ -
१. आलोचना शास्त्र, मोहन बल्लभ पंत।
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संपर्क : विश्ववाणी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१, चलभाष ९४२५१८३२४४

विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर : - गतिविधियाँ


- : विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर : - 
गतिविधियाँ 
।।जन्म ब्याह राखी तिलक, गृहप्रवेश त्यौहार। सलिल बचा पौधे लगा दें पुस्तक उपहार ।।
संवत् - विक्रम २०७७, शक १९४२, वीर निर्वाण २५४६, बांग्ला १४२७, हिजरी १४४२, ईस्वी सन् २०२०.
कोरोना महामारी के आतंक ने समस्त साहित्यिक-सामाजिक संस्थाओं की गतिविधियों को प्रभावित किया है। संस्थान ने सन्नाटे को तोड़ते हुए सदस्यों के मनोबल की वृद्धि और रचना सामर्थ्य के माध्यम से जीवन में उल्लास को घोलने के लिए अभिनव उपकरण के रूप में वाट्स ऐप का उपयोग किया। अभियान समूह पटल पर साप्ताहिक कार्यक्रम निर्धारित कर निर्धारित विषयानुसार रचनाएँ आमंत्रित कर अपेक्षाकृत अल्प लोकप्रिय विधाओं में सृजन, विविध कलाओं, विज्ञान, अभियांत्रिकी, चिकित्सा आदि संबंधी जानकारी सदस्यों और उनके स्वजनों तक पहुँचाई गईं। 
मार्गदर्शन हेतु आभार : 
डॉ. सुरेश कुमार वर्मा, आचार्य कृष्णकांत चतुर्वेदी, वीणा तिवारी, इंजी. अमरेंद्र नारायण , डॉ. चंद्रा चतुर्वेदी, डॉ. राजकुमार सुमित्र, आचार्य भगवत दुबे, मोहन शशि, साधना उपाध्याय, डॉ. अनामिका तिवारी, आशा रिछारिया, लक्ष्मी शर्मा ।  
बहुमूल्य सहभागिता सहयोग हेतु आभार  : 
वेदिका गीतिका टीकमगढ़, कांता राय भोपाल, डॉ. संतोष शुक्ला ग्वालियर, श्रीधर प्रसाद िद्ववेदी पलामू, शशि पुरवार पुणे, राजेंद्र वर्मा लखनऊ, अमरनाथ लखनऊ, देवकीनंदन ‘शांत’ लखनऊ, अनिल अनवर जोधपुर, मृदुला श्रीवास्तव जोधपुर, डॉ. अरविन्द श्रीवास्तव दतिया, इंजी. अमरसिंह राजपूत दमोह, डॉ. छगनलाल गर्ग सिरोही, ग्रुप कैप्टेन (से. नि.) श्यामल सिन्हा गुरुग्राम, नरपत वैतालिक जयपु, प्रो. श्वेतांक किशोर जपला, डॉ. रेखा सिंह जपला, नरेंद्र शर्मा गोपाल जी आगरा, मंजरी शुक्ल पानीपत, पुष्पा अवस्थी ‘स्वाति’ मुंबई, विनीता पैगवार रायपुर, कविता राय दिल्ली, मेघा राठी भोपाल, रवि शुक्ल बीकानेर, हीरालाल यादव मुंबई , आभा सक्सेना देहरादून, राजीव नामदेव राणालिघौरीटीकमगढ़, अर्पणा तिवारी इंदौर, इंजी. अवधेश सक्सेना शिवपुरी, राजेश तिवारी मैहर, अमित साहू दमोह, गायत्री शर्मा कोरबा, डॉ. नेहा त्रिपाठी ‘इलाहाबादी’ दिल्ली, डॉ. अरविन्द गुरु-डॉ. मंजरी गुरु रायगढ़, के. डी. शरद रांची, डॉ. रघुनंदन चिले  दमोह।  

प्रो. चित्रभूषण श्रीवास्तव, आशा वर्मा, डॉ. इला घोष, डॉ. सुमनलता श्रीवास्तव, डॉ. राजलक्ष्मी शिवहरे, डॉ. साधना वर्मा, डॉ. स्मृति शुक्ल, डॉ, नीना उपाध्याय, डॉ. अरुण शुक्ल, ब्रिगेडियर (से.नि.) बिपिन त्रिवेदी, अभय तिवारी, सूरज राय ‘सूरज’,  डॉ. भावना शुक्ल दिल्ली,  विधान चौबे, दिया वैश्य, बसंत मिश्रा,  जयप्रकाश श्रीवास्तव, सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’, डॉ. मुकुल तिवारी, छाया सक्सेना, डॉ. आलोकरंजन जपला, पुनीता भारद्वाज भीलवाड़ा, इंजी. अरुण भटनागर, विनोद जैन ‘वाग्वर’ सागवाड़ा, इंजी. विवेकरंजन श्रीवास्तव, इंजी. सुरेंद्र पवार, प्रतुल श्रीवास्तव, अरुण कुमार 'अर्णव', मीनाक्षी शर्मा 'तारिका',  मीना भट्ट, मिथलेश बड़गैया, विनीता श्रीवास्तव, अर्चना गोस्वामी,  सारांश गौतम, प्रभा विश्वकर्मा ’शील’, रजनी शर्मा रायपुर, बबीता चौबे दमोह, सुषमा शैली दिल्ली, मनोरमा पाखी भिंड, वीना श्रीवास्तव राँची, रजनी शर्मा रायपुर, मनोरमा रतले दमोह, छाया त्रिवेदी, अर्चना मलैया, डॉ. वंदना दुबे, डॉ. कामना तिवारी,  डॉ. भावना दीक्षित, इंजी. इंद्रबहादुर श्रीवास्तव,  रमन श्रीवास्तव, इंजी. रमाशंकर खरे, इंजी. दुर्गेश ब्योहार, प्रो. शोभित वर्मा, इंजी. उदयभानु तिवारी ‘मधुकर’, इंजी. सलीम अंसारी, अखिलेश खरे, यूनुस अदीब, माधुरी मिश्रा, विजय बागरी, राजकुमार महोबिआ, सिद्धेश्वरी सराफ, सपना सराफ, भारती पाराशर, पवन जैन, मधु जैन, प्रभात दुबे,  मदन श्रीवास्तव, मनोहर चौबे ‘आकाश’,  अर्चना राय, चंदा स्वर्णकार, उमा मिश्रा ‘प्रीति’, किशोर पारीक, सुरेश मिश्र 'विचित्र', महेश प्रकाश शर्मा, दुर्गा शर्मा, कमलकांत शर्मा, कंचन लता स्वर्णकार, डॉ. बृज कुमार मिश्र।   
प्रशिक्षा  रंजन, रुद्रप्रकाश, श्रुति रिछारिया था संजीव वर्मा ‘सलिल’।    
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दैनिक  वंदना / चिंतन पर्व : प्रात: ६ बजे से ८ बजे, सृजन पर्व - प्रात: ८ बजे से संध्या ६ बजे,  विमर्श-संवाद पर्व : संध्या ६बजे से रात्रि ८ बजे तक, विषय मुक्त रचनाकाल - रात्रि ८ बजे से प्रात: ६ बजे
 दैनिक विषय सारिणी 
स्थाई स्तंभ प्रति दिन : वंदना, सूक्ति-सुभाषित, कार्यशाला, पर्व-जयंती, पाठकीय, प्रतिवेदन।
व्यवस्थापक : उदयभानु तिवारी 'मधुकर', मीनाक्षी शर्मा 'तारिका', अर्चना गोस्वामी।
सोमवार - धर्म / योग सत्र : सभ्यता, संस्कृति, आध्यात्म्य, योग, दर्शन, ज्योतिष, ।
व्यवस्थापक : अरुण भटनागर जबलपुर, अरुण श्रीवास्तव 'अर्णव' भोपाल, सारांश गौतम जबलपुर।
मंगलवार - लोक / बाल सत्र : लोक / बाल संबंधित पर्व, कथा, गीत, नाट्य, साहित्य आदि।
व्यवस्थापक : पुनीता भारद्वाज भीलवाड़ा, प्रभा विश्वकर्मा जबलपुर, बबीता चौबे।
बुधवार - पद्य सत्र : गीत, कविता, क्षणिका, रस, छंद, अलंकार ।
व्यवस्थापक - छाया सक्सेना जबलपुर,  मीना भट्ट जबलपुर, विनोद जैन 'वाग्वर' सागवाड़ा राजस्थान  ।
गुरुवार - गद्य सत्र : कहानी, लघुकथा, उपन्यास, निबंध, समालोचना, लेख आदि।
व्यवस्थापक : डॉ. मुकुल तिवारी जबलपुर, मनोरमा जैन 'पाँखी' भिंड, वीणा सिंह सिहोरा।
शुक्रवार - विमर्श सत्र - संगोष्ठी  परिचर्चा, साक्षात्कार, संस्मरण, पर्यटन कथा आदि।
व्यवस्थापक : अखिलेश सक्सेना कासगंज, डॉ. अनिल जैन दमोह, सुषमा सिंह सिहोरा।
शनिवार - भाषा सत्र - भाषा विग्यान, व्याकरण, भाषांतरण, अनुवाद, अन्य भाषाओं / बोलियाँ का साहित्य।
व्यवस्थापक : डॉ आलोकरंजन जपला, डॉ. अरविंद श्रीवास्तव दतिया, निरुपमा वर्मा एटा।
रविवार - कला व विज्ञान सत्र - गायन, वादन, नर्तन, रेखांकन, चित्रांकन, छायांकन, पाककला, श्रृंगार, साज-सज्जा, उद्यानिकी, मनरंजन आदि।
व्यवस्थापक : डॉ. अनिल बाजपेई जबलपुर, प्रो. शोभित वर्मा, अस्मिता शैली।
विषय मुक्त रचनाकाल प्रति दिन : व्यवस्थापक : रमन श्रीवास्तव जबलपुर, सपना सराफ जबलपुर, डॉ. मीना श्रीवास्तव ग्वालियर।

।।अनिल अनल भू नभ सलिल, पंचतत्व संसार।  भाषा भूषा संस्कृति, है असार में सार।।  

नियम  -
१. पटल पर निर्धारित विषयानुकूल रचनाओं के सिवाय कोई लिंक, टिप्पणी या विज्ञापन प्रस्तुत न करें। विषयानुकूल लिंक, साहित्यिक आयोजनों की सूचना व्यवस्थापकों को भेजें। वे उपयुक्त होने पर मुक्त समय में प्रस्तुत करेंगे। 
२. रचनाओं व विमर्श की भाषा शिष्ट, कथ्य प्रामाणिक, शब्द सटीक हों। 
३. रचनाओं पर पाठकीय टिप्पणी, विमर्श, सुझाव आदि रचनाकार के व्यक्तिगत पटल पर भेजें। उचित लगे तो अपनायें,  बहस न करें।
४. रचनाकाल की सभी रचनाओं पर पाठकीय प्रतिक्रिया एक बार विमर्श पर्व में दी जा सकती है। ।
५. अन्य स्रोत से ली गई सामग्री का संदर्भ अवश्य दें।
६. सामग्री की प्रामाणिकता, सत्यता, वैधानिकता हेतु केवल प्रस्तुतकर्ता जिम्मेदार हैं, पटल संचालक-प्रबंधक-व्यवस्थापक नहीं।
७. विवाद की स्थिति में संस्था सचेतक, अध्यक्ष या संयोजक का निर्णय सब पर बंधनकारी होगा।
८. विमर्श, गोष्ठी, परिसंवाद, कार्यशाला आदि हेतु विधा व दिन संचालक की पूर्व अनुमति-सहमति प्राप्त कर आयोजित करें।

विशेष सारस्वत अनुष्ठान - 
मार्च २०२० : श्रीमती कांता राय भोपाल के मुख्यातिथ्य में लघुकथा प्रकोष्ठ का गठन। सतना, शिवपुरी टीकमगढ़ में ईकाई स्थापित। अभियान जबलपुर के तत्वावधान में कार्य शालाएँ व विमर्श। 
अप्रैल २०२० : पुस्तक संस्कृति तथा घरेलू पुस्तकालय स्थापना। 
मई २०२० : दैनिक सारस्वत अनुष्ठान। ४ छंद पर्व। ५ लघुकथा पर्व। ६ गीत पर्व।७ गद्य पर्व। ८ हिंदी ग़ज़ल (मुक्तिका) पर्व। ९ परिचर्चा - कोरोना अभिशाप में वरदान। १० कला पर्व। ११ बाल साहित्य पर्व। १२ लोक साहित्य पर्व। १३. पुस्तक पर्व। १४. रस पर्व। १५ स्मृति पर्व प्रिय सैम सामयिक रचनाकार। १६ विमर्श : कोरोना त्रासदी और तालाबंदी । १७  एकता पर्व। १८ विमर्श : कविता क्या, क्यों, किस तरह? १९ लघुकथा पर्व। २० राष्ट्रभक्ति पर्व। २१ स्मरण पर्व दिवंगत साहित्यकार।  २२ गज़लकार स्मरण पर्व। २३ लघुकथा पर्व। २४ कला पर्व। २५ मात्रिक छंद पर्व। २६ लोक पर्व : कहावतें, मुहावरे, लोकोक्तियाँ। २७ पुस्तक चर्चा पर्व : उपन्यास युगपरिधि - डॉ. चंद्रा चतुर्वेदी। २८ अलंकार पर्व। २९ स्मरण पर्व २ दिवंगत साहित्यकार। ३० गृहवाटिका पर्व। ३१ कला पर्व। 
जून २०२० : १ नव सृजन पर्व। २ आत्मावलोकन पर्व। ३ भाषा विज्ञान पर्व। ४ पर्यावरण चेतना पर्व। ५ हिंदी ग़ज़ल पर्व। ६ हाइकू पर्व। ७ कला पर्व। ८ धर्म-योग पर्व। ९ लघुकथा पर्व।  १० पुस्तक चर्चा पर्व। ११ घरेलु नुस्खे पर्व। १२ संस्मरण पर्व। १३ त्रिपदिक छंद पर्व। १४ यांत्रिकी-वास्तु पर्व। अभियान वाट्स ऍप पटल पर निर्धारित विषयानुसार दैनिकी सृजन पर्व। 
१५ जून के पश्चात् ज़ूम तथा गूगल मीट पर विमर्श, गोष्ठियाँ तथा परिसंवाद। 
प्रति रविवार : काव्य गोष्ठी, संचालन बसंत शर्मा। 
२० जुलाई : साहित्यिक पत्रिका ‘साहित्य सरोज’ गहमर पर संस्मरण प्रस्तुति। 
१४ अगस्त : सुमन साहित्यिक परी समूह में ‘हिंदी साहित्य की विविध विधाएँ’ विषयक विमर्श। 
५ सितंबर : शिक्षक दिवस पर अखिल भारतीय सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति दिल्ली  के तत्वावधान में हिंदी काव्यपाठ, सायं ५ बजे  - ६ बजे। 
१३ सितम्बर : ग्यारहगांव हिंदाव  देहरादून के सौजन्य से हिंदी दिवस की पूर्व सांध्य बेला पर”हिंदी कल, आज और कल’ विशेष वार्ता। हिंदी भाषा - बोली पर्व 
सर्व सेवा समिति सिहोरा तथा विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर का समन्वित आयोजन।  
इसके अंतर्गत विविध बोलिओं के द्विसाप्ताहिक पर्व आयोजित किये जा रहे हैं। अब तक बुंदेली, पचेली, बघेली, निमाड़ी, मालवी के पर्व आयोजित किये जा चुके हैं और छत्तीसगढ़ी पर्व चल रहा है।राजस्थानी, बृज, अवधी, भोजपुरी मैथिली, गढ़वाली आदि बोलिओं पर क्रमश: पर्व आयोजित किये जाएँगे। पर्व के अंतर्गत उस बोली के क्षेत्र की लोक संस्कृति (गीत, कथा, नाट्य, पर्व आदि), साहित्य, साहित्यकार, दर्शनीय स्थल आदि से संबंधित सामग्री संकलित-प्रस्तुत की जाएगी। 

***

सोमवार, 14 सितंबर 2020

अभियंता, अभियांत्रिकी,

अभियंता दिवस पर मुक्तक:
*
कर्म है पूजा न भूल,
धर्म है कर साफ़ धूल। 
मन अमन पायेगा तब-
जब लुटा तू आप फूल। 
*
हाथ मिला, कदम उठा काम करें
लक्ष्य वरें, चलो 'सलिल' नाम करें
रख विवेक शांत रहे काम कर
श्रेष्ठ बना देश,चलो नाम करें.
*
मना अभियंता दिवस मत चुप रहो,
उपेक्षित अभियांत्रिकी है कुछ कहो।
है बहुत बदहाल शिक्षा, नौकरी-
बदल दो हालात, दुर्दशा न सहो।
*
हम अभियंता...
संजीव 'सलिल'
*
हम अभियंता!, हम अभियंता!!
मानवता के भाग्य-नियंता...
.
माटी से मूरत गढ़ते हैं,
कंकर को शंकर करते हैं.
वामन से संकल्पित पग धर,
हिमगिरि को बौना करते हैं.
नियति-नटी के शिलालेख पर
अदिख लिखा जो वह पढ़ते हैं.
असफलता का फ्रेम बनाकर,
चित्र सफलता का मढ़ते हैं.
श्रम-कोशिश दो हाथ हमारे-
फिर भविष्य की क्यों हो चिंता...
.
अनिल, अनल, भू, सलिल, गगन हम,
पंचतत्व औजार हमारे.
राष्ट्र, विश्व, मानव-उन्नति हित,
तन, मन, शक्ति, समय, धन वारे.
वर्तमान, गत-आगत नत है,
तकनीकों ने रूप निखारे.
निराकार साकार हो रहे,
अपने सपने सतत सँवारे.
साथ हमारे रहना चाहे,
भू पर उतर स्वयं भगवंता...
.
भवन, सड़क, पुल, यंत्र बनाते,
ऊसर में फसलें उपजाते.
हमीं विश्वकर्मा विधि-वंशज.
मंगल पर पद-चिन्ह बनाते.
प्रकृति-पुत्र हैं, नियति-नटी की,
आँखों से हम आँख मिलाते.
हरि सम हर हर आपद-विपदा,
गरल पचा अमृत बरसाते.
.
'सलिल' स्नेह नर्मदा निनादित,
ऊर्जा-पुंज अनादि-अनंता...
*
अभियांत्रिकी
*
(हरिगीतिका छंद विधान: १ १ २ १ २ x ४, पदांत लघु गुरु, चौकल पर जगण निषिद्ध, तुक दो-दो चरणों पर, यति १६-१२ या १४-१४ या ७-७-७-७ पर)
*
कण जोड़ती, तृण तोड़ती, पथ मोड़ती, अभियांत्रिकी
बढ़ती चले, चढ़ती चले, गढ़ती चले, अभियांत्रिकी
उगती रहे, पलती रहे, खिलती रहे, अभियांत्रिकी
रचती रहे, बसती रहे, सजती रहे, अभियांत्रिकी
*
नव रीत भी, नव गीत भी, संगीत भी, तकनीक है
कुछ हार है, कुछ प्यार है, कुछ जीत भी, तकनीक है
गणना नयी, रचना नयी, अव्यतीत भी, तकनीक है
श्रम मंत्र है, नव यंत्र है, सुपुनीत भी तकनीक है
*
यह देश भारत वर्ष है, इस पर हमें अभिमान है
कर दें सभी मिल देश का, निर्माण यह अभियान है
गुणयुक्त हों अभियांत्रिकी, श्रम-कोशिशों का गान है
परियोजना त्रुटिमुक्त हो, दुनिया कहे प्रतिमान है
*
तक रहा तकनीक को यदि आम जन कुछ सोचिए।
तज रहा निज लीक को यदि ख़ास जन कुछ सोचिए।।
हो रहे संपन्न कुछ तो यह नहीं उन्नति हुई-
आखिरी जन को मिला क्या?, निकष है यह सोचिए।।
*
चेन ने डोमेन की, अब मैन को बंदी किया।
पिया को ऐसा नशा ज्यों जाम साकी से पिया।।
कल बना, कल गँवा, कलकल में घिरा खुद आदमी-
किया जाए किस तरह?, यह ही न जाने है जिया।।
*
किस तरह स्मार्ट हो सिटी?, आर्ट है विज्ञान भी।
यांत्रिकी तकनीक है यह, गणित है, अनुमान भी।।
कल्पना की अल्पना सज्जित प्रगति का द्वार हो-
वास्तविकता बने ऐपन तभी जन-उद्धार हो।।
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सोरठा सलिला:
हो न यंत्र का दास
संजीव
*
हो न यंत्र का दास, मानव बने समर्थ अब
रख खुद पर विश्वास, 'सलिल' यांत्रिकी हो सफल
*
गुणवत्ता से आप, करिए समझौता नहीं
रहे सजगता व्याप, श्रेष्ठ तभी निर्माण हो
*
भूलें नहीं उसूल, कालजयी निर्माण हों
कर त्रुटियाँ उन्मूल, यंत्री नव तकनीक चुन
*
निज भाषा में पाठ, पढ़ो- कठिन भी हो सरल
होगा तब ही ठाठ, हिंदी जगवाणी बने
*
ईश्वर को दें दोष, ज्यों बिन सोचे आप हम
पाते हैं संतोष, त्यों यंत्री को कोसकर
*
जब समाज हो भ्रष्ट, कैसे अभियंता करे
कार्य न हों जो नष्ट, बचा रहे ईमान भी
*
करें कल्पना आप, करिए उनको मूर्त भी
समय न सकता नाप, यंत्री के अवदान को
*
उल्लाला सलिला:
संजीव
*
(छंद विधान १३-१३, १३-१३, चरणान्त में यति, सम चरण सम तुकांत, पदांत एक गुरु या दो लघु)
 *
अभियंता निज सृष्टि रच, धारण करें तटस्थता।
भोग करें सब अनवरत, कैसी है भवितव्यता।।
*
मुँह न मोड़ते फ़र्ज़ से, करें कर्म की साधना।
जगत देखता है नहीं, अभियंता की भावना।।
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सूर सदृश शासन मुआ, करता अनदेखी सतत।
अभियंता योगी सदृश, कर्म करें निज अनवरत।।
*
भोगवाद हो गया है, सब जनगण को साध्य जब।
यंत्री कैसे हरिश्चंद्र, हो जी सकता कहें अब??
*
​भृत्यों पर छापा पड़े, मिलें करोड़ों रुपये तो।
कुछ हजार वेतन मिले, अभियंता को क्यों कहें?
*
नेता अफसर प्रेस भी, सदा भयादोहन करें।
गुंडे ठेकेदार तो, अभियंता क्यों ना डरें??​
*
समझौता जो ना करे, उसे तंग कर मारते।
यह कड़वी सच्चाई है, सरे आम दुत्कारते।।
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​हर अभियंता विवश हो, समझौते कर रहा है।
बुरे काम का दाम दे, बिन मारे मर रहा है।।
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मिले निलम्बन-ट्रान्सफर, सख्ती से ले काम तो।
कोई न यंत्री का सगा, दोषारोपण सब करें।। 
*
हम हैं अभियंता
संजीव
*
(छंद त्रिभङगी - विधान: १० ८ ८ ६ = ३२  x ४)
*
हम हैं अभियंता नीति नियंता, अपना देश सँवारेंगे
हर संकट हर हर मंज़िल वरकर, सबका भाग्य निखारेंगे
पथ की बाधाएँ दूर हटाएँ, खुद को सब पर वारेंगे
भारत माँ पावन जन-मन भावन, सीकर चरण पखारेंगे
*
अभियंता मिलकर आगे चलकर, पथ दिखलायें जग देखे
कंकर को शंकर कर दें हँसकर मंज़िल पाएं कर लेखे
शशि-मंगल छूलें, धरा न भूलें, दर्द दीन का हरना है
आँसू न बहायें , जन यश  गाये, पंथ वही नव वरना है
*
श्रम-स्वेद बहाकर, लगन लगाकर, स्वप्न सभी साकार करें
गणना कर परखें, पुनि-पुनि निरखें, त्रुटि न तनिक भी कहीं वरें
उपकरण जुटायें, यंत्र बनायें, नव तकनीक चुनें न रुकें
आधुनिक प्रविधियाँ, मनहर छवियाँ,  उन्नत देश करें न चुकें
*
नव कथा लिखेंगे, पग न थकेंगे, हाथ करेंगे काम सदा
किस्मत बदलेंगे, नभ छू लेंगे, पर न कहेंगे 'यही बदा'
प्रभु भू पर आयें, हाथ बटायें, अभियंता संग-साथ रहें
श्रम की जयगाथा, उन्नत माथा, सत नारायण कथा कहें
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एक रचना:
समारोह है
*
समारोह है
सभागार में।
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ख़ास-ख़ास आसंदी पर हैं,
खासुलखास मंच पर बैठे।
आयोजक-संचालक गर्वित-
ज्यों कौओं में बगुले ऐंठे।
करतल ध्वनि,
चित्रों-खबरों में
रूचि सबकी है
निज प्रचार में।
*
कुशल-निपुण अभियंता आए,
छाती ताने, शीश उठाए।
गुणवत्ता बिन कार्य हो रहे,
इन्हें न मतलब, आँख चुराए।
नीति-दिशा क्या सरकारों की?
क्या हो?, बात न
है विचार में।
*
मस्ती-मौज इष्ट है यारों,
चुनौतियों से भागो प्यारों।
पाया-भोगो, हँसो-हँसाओ-
वंचित को बिसराओ, हारो।
जो होता है, वह होने दो।
तनिक न रूचि
रखना सुधार में।
***
नवगीत:
उपयंत्री की यंत्रणा
संजीव
.
'अगले जनम
उपयंत्री न कीजो'

करे प्रार्थना उपअभियंता
पिघले-प्रगटे भाग्यनियंता
'वत्स! बताओ, मुश्किल क्या है?
क्यों है इस माथे पर चिंता?'
'देव! प्रमोशन एक दिला दो
फिर चाहे जो काम करा लो'
'वत्स न यह संभव हो सकता
कलियुग में सच कभी न फलता' 
तेरा हर अफसर स्नातक
तुझ पर डिप्लोमा का पातक
वह डिग्री के साथ रहेगा
तुझ पर हरदम वार करेगा
तुझे भेज साईट पर सोये
तू उन्नति के अवसर खोये
तू है नींव कलश है अफसर
इसीलिये वह पाता अवसर
जे ई से ई इन सी होता
तू अपनी किस्मत को रोता
तू नियुक्त होता उपयंत्री
और रिटायर हो उपयंत्री
तेरी मेहनत उसका परचम 
उसको खुशियाँ, तुझको मातम
सर्वे कर प्राक्कलन बनाता
वह स्वीकृत कर नाम कमाता
तू साईट पर बहा पसीना
वह कहलाता रहा नगीना
काम करा तू देयक लाता
वह पारित कर दाम कमाता
ठेकेदार सगे हैं उसके
पत्रकार फल पाते मिलके
मंत्री-सचिव उसी के संग हैं
पग-पग पर तू होता तंग है
पार न तू इनसे पायेगा
रोग पाल, घुट मर जाएगा
अफसर से मत, कभी होड़ ले 
भूल पदोन्नति, हाथ जोड़ ले
तेरा होना नहीं प्रमोशन
तेरा होगा नहीं डिमोशन
तू मृत्युंजय, नहीं झोल दे
उठकर इनकी पोल खोल दे
खुश रह जैसा और जहाँ है
तुझसे बेहतर कौन-कहाँ है?
पाप कट रहे तेरे सारे
अफसर को ठेंगा दिखला रे!
बच्चे पढ़ें-बढ़ेंगे तेरे
तब संवरेंगे सांझ-सवेरे
अफसर सचिवालय जाएगा
बाबू बनकर पछतायेगा
कर्म योग तेरी किस्मत में
भोग-रोग उनकी किस्मत में
कह न किसी से कभी पसीजो
श्रम-सीकर में खुश रह भीजो

सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम 
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in

राजस्थानी मुक्तिका

राजस्थानी मुक्तिका
संजीव
*
नेह नर्मदा तैर भायला
बह जावैगौ बैर भायला

गेलो आपूं आप मलैगौ
मंज़िल की सुन टेर भायला

मुश्किल है हरदा सूं खड़बो
तू आवैगो फेर भायला

घणू कठण है कविता करबो
आकासां की सैर भायला

स्कूल गइल पै यार 'सलिल' तू
चाल मेलतो पैर भायला
***