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सोमवार, 8 अप्रैल 2019

राहुल सांकृत्यायन

राहुल एक जिजीविषा  

-   सुनील दत्ता


Rahul_Sankrityayan_shabdankan_birthday_02    आज के इस विराट पृथ्वी के फलक पर प्रकृति अपने गर्भ में अनेको रहस्य छुपाये रहती है | प्रकृति समय- समय पर इस खुबसूरत कायनात को नये- नये उपहारों से नवाजती आई है |कभी बड़े वैज्ञानिक, ऋषि, महर्षि, दर्शन वेत्ता साहित्य सृजन शिल्पी और इस खुबसूरत कायनात में रंग भरने वाले व्यक्तित्व से सवारती चली आ रही है | ऐसे ही एक बार सवारा था जनपद आज़मगढ़ को ९ अप्रैल १८९३ को केदार पांडेय ( राहुल सांकृत्यायन ) के रूप में। राहुल सांकृत्यायन विश्व- विश्रुत विद्वान् और अनेको भाषाओं के ज्ञाता हुए थे |ज्ञान के विविध क्षेत्रो में उनका अवदान अतुलनीय है | भाषा और साहित्य के अज्ञात गुहाधकारो को आलोकित करने, इतिहास और पुरातत्व के अछूते क्षेत्रो को उदघाटित करने, विश्व- भ्रमण का कीर्तिमान बनाते हुए यात्रा वृतान्तो का विपुल साहित्य- सृजन और यात्रा- वृत्त को “ घुमक्कड़ शास्त्र “ के रूप में शास्त्र- प्रतिष्ठा देने, इसके साथ ही अपनी जीवन- यात्रा के पांच भागो में एक अनुपम आत्मकथा लिखने और अनेको महत्वपूर्ण ज्ञात- अज्ञात महापुरुषों की जीवनी प्रस्तुत करने से लेकर पुरातत्व, इतिहास, समाज दर्शन और अर्थशास्त्र के जीवंत पहलुओ को उदघाटित करने वाली विश्व प्रसिद्द कहानियों और उपन्यासों के सृजन, दर्शन एवं राजनीति पर समर्थ साहित्य रचना के साथ ही उन्होंने राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय भागीदारी, किसान- आन्दोलन की अगुवाई, राष्ट्रभाषा हिन्दी और जनपदीय भाषाओं की प्रतिष्ठा के लिए एक सिपाही की भाँती सक्रिय संघर्ष करते हुए उन्होंने विदेशो के विश्वविद्यालयों के प्रतिष्ठापूर्ण आचार्य के रूप में अध्यापन और अपने समर्थ पद- संचरण से देश और विदेश के दुर्गम क्षेत्रो को अनवरत देखा- परखा |  गुरुदेव के “ एकला चलो रे “ का भाव इनके समग्र जीवन पर था |इतने कार्यो को एक साथ सम्पन्न करना एक साधारण आदमी के वश का कार्य नही हो सकता | वे चलते- फिरते विश्वकोश थे और कर्म शक्ति के कीर्तिमान थे | ऐसे महामानव शताब्दियों के विश्व- पटल पर अवतरित होते है राहुल उन्ही महापुरुषों की श्रृखला में एक थे |


     राहुल जी के पूर्वज सरयूपार गोरखपुर जनपद के मलाव के पाण्डेय थे “ जो कभी आजमगढ़ के इस अंचल में आ बसे थे | मलाव से सर्वप्रथम गयाधर पाण्डेय आये और वह बस गये जिसे चक्रपाणीपुर कहते है | चक्रपाणी पाण्डेय उन्ही के पूर्वज थे जिनके नाम पर इस गाँव का नाम चक्रपाणीपुर पड़ा | सरयूपारीण ब्राह्मणों में सोलह प्रतिष्टित गोत्र है |राहुल की माता का नाम कुलवन्ती देवी और पिता गोवर्धन पाण्डेय एक बहन तथा चार भाइयो में सबसे बड़े राहुल जी निजामाबाद से मिडिल स्कुल की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास करने के बाद वे आजमगढ़ के क्रिश्चियन मिशन स्कूल ( वेस्ली कालेज ) में अंग्रेजी पढने गये | उनका मन वहा नही लगा इसी कारण उन्होंने वाराणसी के डी. ए. वी स्कूल में प्रवेश लिया, परन्तु वहा भी वे अधिक दिन टिक न सके | राहुल जी का बचपन उनके ननिहाल पन्दहां में बीता | नाना रामशरण पाठक फौजी रह चुके थे | इसीलिए वो अपने सैनिक जीवन के किस्से- कहानिया उन्हें सुनाया करते थे | बाल्यावस्था के राहुल को विभिन्न देशो- प्रदेशो के वर्णनों के किस्सागोई को सुनकर, उन्हें अपनी आँखों से देखने की इच्छा ने ही उनमे यायावरी का मानसिक आधार तैयार किया |
     सैर की दुनिया की गाफिल, जिन्दगानी फिर कहा
    जिन्दगानी गर कुछ रही तो, नौजवानी फिर कहा | 
    शायद इस शेर ने ही केदार पाण्डेय को राहुल का स्वरूप प्रदान किया |

    केदार से राहुल

उनकी जीवन यात्रा का सबसे बड़ा आकर्षण है, कनैला के केदार पांडे का महापंडित राहुल साकृत्यायन में रूपांतरण | जीवन की यह यात्रा अन्य यात्राओं से कितनी लम्बी है ! कितनी दुर्गम ! कितनी साहसिक ! कितनी रोमांचक ! और कितनी सार्थक ! लेकिन यह यात्रा कोरी “ यात्रा “ नही है और न ही “ यायावरी “ या “घुमक्कड़ी “ ! राहुल जी बहुत बड़े घुमक्कड़ थे, इसमें कोई संदेह नही | कभी- कभी लगता है की उन्होंने अपने चारो ओर कवच की तरह घुमक्कड़ी का एक मिथक गढ़ लिया था | केदार पांडे घुमक्कड़ी के कारण महापंडित राहुल सांकृत्यायन नही बने ! घुमक्कड़ होने से पहले केदार पांडे घर के भगोड़े थे | सिद्धार्थ की तरह केदार नाथ भी एक दिन घर से भाग निकले | कारण निश्चय ही और था, लेकिन वह नही जिसका अत्यधिक प्रचार किया है : “ बचपन में “नवाजिन्दा बाजीन्दा की कहानी ( खुदाई का नतीजा ) पढ़ी | उसमे बाजीन्दा के मुँह से निकले “सैर कर दुनिया की गाफिल जिंदगानी फिर कहा “ इस शेर ने मन और भविष्य के जीवन पर बहुत गहरा असर डाला, यद्धपि वह लेखक के अभिप्राय के बिलकुल विरुद्ध था | “ यह घटना १९०३ की है | उस समय केदारनाथ की उम्र दस वर्ष की थी |

    १९०४ की गर्मी चल रही थी |   बहसा- बहसी के बाद कई घंटा रात चढ़े तिलक चढा | व्याह भी हो गया | उस वक्त ग्यारह वर्ष की अवस्था में मेरे लिए यह तमाशा था | जब मैं सारे जीवन पर विचारता हूँ तो मालूम होता है, समाज के प्रति विद्रोह का प्रथम अंकुर पैदा करने में इसने पहला काम किया | १९०८ में जब मैं १५ साल का था, तभी से मैं इसे शंका की नजर से देखने लगा था, १९०९ के बाद से तो मैं गृहत्याग का बाकायदा अभ्यास करने लगा, जिसमे भी इस तमाशे  का थोड़ा- बहुत हाथ जरुर था | १९०९ के बाद घर शायद ही कभी जाता था, १९१३ के बाद को तो वह भी खत्म- सा हो गया, और १९१७ की प्रतिज्ञा के बाद तो आजमगढ़ जिले की भूमि पर पैर तक नही रखा | अपनी आत्म कथा “ मेरी जीवन यात्रा “ भाग एक में उन्होंने लिखा है - “ उस वक्त ग्यारह वर्ष की अवस्था में मेरे लिए यह “ तमाशा “ था | चार साल बाद ही जब मेरी उम्र १५ वर्ष हुई, तभी मैं “इस तमाशे“ को शक की नजर से देखने लग गया था | १९०९ में अर्थात एक साल बाद ही से मैंने इस बन्धन से निकल भागने के लिए घर को छोड़ देने का संकल्प और प्रयत्न शुरू किया | एक साल और बीतते- बीतते तो मैंने साफ़ तौर से और निश्चित रूप से यह मानना और कहना शुरू कर दिया कि मेरा विवाह हुआ ही नही |  बारह वर्ष की अवस्था से ही उनके मन में घर त्यागने के विचार आने लगे | उन्होंने कई बार गृह- त्याग का प्रयास किया भी परन्तु परिवार वालो द्वारा पकड लाये जाते | इसी प्रयास में १४ वर्ष की अवस्था में वे कलकत्ता चले गये | जहा से बड़ी मुश्किल से उन्हें लाया गया | काशी के अंग्रेजी स्कूल की मामूली शिक्षा के बाद वे वही संस्कृत का अध्ययन करने लगे | सन १९१२ में एक दिन अकस्मात भाग निकले तथा बिहार के सारण जिले के परसा- मठ में वैष्णव साधू बनकर रहने लगे | कुछ समय बाद वहा के महन्त के उत्तराधिकारी बने तथा वहा उनका नाम राम उदार बाबा पड़ गया |  मन न लगने पर रामानन्दी साधू हो गये तथा रामानन्द एवं रामानुज के दार्शनिक सिद्धान्तों के गहन अध्ययन के लिए १९१३-१४ में दक्षिण भारत की यात्रा पर निकल पड़े |
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    विद्रोही मन वहा भी नही टिका तो आर्य समाज स्वीकार कर वाराणसी वापस आये तथा संस्कृत व्याकरण एवं काव्य का अध्ययन करने लगे | पुन: १९१५ ई. में आगरा भोजदन्त विद्यालय ( आर्य मुसाफिर खाना ) में मौलवी महेश प्रसाद से उर्दू, अरबी एवं लाहौर जाकर फारसी सहित अन्य कई भाषाओं का अध्ययन किया | १९१६ ई. में यहाँ की शिक्षा पूरी कर ली | यही पर आजमगढ़ के प्रसिद्ध समाजसेवी स्वामी सत्यानन्द ( बलदेव चौबे ) से उनकी दोस्ती हुई |राहुल १९१६ से १९१९ में लाहौर में संस्कृत अध्ययन की दृष्टि से रह रहे थे |  इसी दौरान गांधी जी ने १९१९ में रौलट एक्ट का विरोध शुरू किया | इसी समय अमृतसर में जालिया वाला बाग़ का खूनी काण्ड भी हुआ | लाहौर में रहने के कारण प्रत्यक्ष राहुल को इन बर्बर घटनाओं की अनुगूज सुनाई पड़ी | उन्होंने आजादी की लड़ाई के नागपुर प्रस्ताव तथा अन्य मसविदो को पढ़ना शुरू किया और स्वयं स्वतंत्रता संग्राम में एक सेनानी के रूप में कूद पड़े | १९२१ से १९२५ तक राहुल राजनैतिक बंदी के रूप में जेल में रहे | १९२२ में इन्हें छ: माह की सजा पर राजनैतिक कैदी के रूप में बक्सर जेल में रक्खा गया | १९२३ में ब्रिटिश सरकार विरोधी वक्तव्य देने के कारण उन्हें दो वर्ष की सजा पर हजारीबाग जेल में रक्खा गया | वहाँ से वो १९२५ में मुक्त हुए | इसके बाद राहुल का झुकाव बौद्ध धर्म की ओर होने लगा |
घुमक्कड़ी जीवन
   १८२७-२८ के दौरान वे श्री लंका में संस्कृत अध्यापक नियुक्त हुए | वहा वे बौद्ध भिक्षु बन गये तथा पालि भाषा का अध्ययन कर बौद्ध धर्म में दीक्षित होकर बौद्ध भिक्षु बन गये तथा भगवान बुद्ध के पुत्र “ राहुल “ के नाम को अपने नाम के साथ जोड़ लिया जो न केवल आजीवन उनके नाम के साथ जुड़ा रहा बल्कि पहचान का एक मात्र पर्याय बन गया | उनका मूल गोत्र सांकृत था, अत: उससे अपना तादात्म्य स्थापित करते हुए उन्होंने नाम के आगे बौद्ध परम्परा के अनुसार सांकृत्यायन शब्द भी जोड़ लिया | बौद्ध धर्म ग्रंथो के गहन अध्ययन- मनन के कारण उन्हें “ त्रिपिटीकाचार्य “ की उपाधि प्रदान की गयी | लंका में उन्नीस माह रहने के बाद बौद्ध धर्म- ग्रंथो की खोज में वे १९२९ में नेपाल होते हुए तिब्बत गये |जहाँ भीषण कष्टों व बाधाओं को सहते हुए भी अनेक दुर्लभ बौद्ध- ग्रन्थो की खोज की | राहुल बौद्ध धर्म के प्रचार- प्रसार हेतु १९३२-३३ में इंग्लैण्ड तथा अन्य यूरोपीय देशो की यात्रा पर निकले | १९३६ में तिब्बत की तीसरी बार यात्रा करके १९३७ में पुन: रूस चले गये | कुछ ग्रन्थो की खोज में १९३८ में वे चौथी बार तिब्बत आये वही से वह पुन: सोवियत संघ लौट गये | सोवियत संघ अनेक बार जाने तथा निकट से मार्क्सवाद के प्रभाव को देखने से इनकी रुझान वामपन्थी विचार- धारा की तरफ हो गयी |
    भारत आ कर वे पुन: किसानो- मजदूरो से जुड़ गये तथा १९३९ में अमवारी सत्याग्रह के कारण जेल गये | वहाँ से छूटने के बाद पुन: गिरफ्तार कर हजारीबाग जेल भेजे गये | जहा २९ माह तक कारावास में रहे | गृहत्याग के बाद उन्होंने प्रतिज्ञा कर ली थी की पचास वर्ष की अवस्था के पहले वे अपने गाँव नही जायेंगे | जिसका पालन करते हुए १९४३ तक बाहर ही रहे | १९४४ से १९४७ तक लगभग २५ महीने वे सोवियत संघ के लेलिनग्राद विश्व विद्यालय में संस्कृत तथा पालि के प्रोफ़ेसर रहे | वहा उन्होंने एलना से विवाह कर लिया जिससे “ इगोर राहुलोविच्च “ नामक पुत्र का जन्म हुआ | १९४७ में जब वे भारत वापस लौटे तो उन्हें हिन्दी साहित्य सम्मलेन के बम्बई अधिवेशन का अध्यक्ष बनाया गया | हिन्दी के प्रश्न को लेकर विवाद हो जाने के कारण उन्हें भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से निकाल दिया गया |जिसे उन्होंने स्वीकार किया पर राष्ट्र भाषा हिन्दी के प्रश्न पर कोई समझौता उन्हें स्वीकार नही था।  सोवियत संघ की तत्कालीन व्यवस्था के कारण वे पत्नी एलना और पुत्र इगोर को भारत नही ला सके | राहुल जी ने मसूरी में हैपीविला के हार्नकिल्प नामक बंगले को खरीदकर वही रहने लगे | अपने एकाकीपन और अपने कार्य में सहयोग के लिए उन्होंने टंकक कमला पेरियार से विवाह कर लिया | जिससे १९५३ में पुत्री ज्या तथा १९५५ में पुत्र जेता का जन्म हुआ | कमला पेरियार के साथ उनकी तीसरी शादी थी |

Rahul_Sankrityayan_shabdankan_birthday_01    राहुल जी १९५८ में साढे चार माह की यात्रा पर चीन गये | उसी वर्ष “ मध्य एशिया का इतिहास” नामक उनकी पुस्तक पर उन्हें साहित्य अकादमी पुरूस्कार प्रदान किया गया | १९५९ में वे कमला जी के अनुरोध पर मसूरी छोड़कर दार्जिलिंग चले गये | उसी वर्ष उन्हें श्री लंका के विश्वविद्यालय में संस्कृत एवं बौद्ध दर्शन विभाग का अध्यक्ष बनाया गया जिस पद पर वे मृत्युपर्यन्त रहे |     हिन्दी की सेवा के लिए भागलपुर विश्व विद्यालय ने अपने प्रथम दीक्षान्त समारोह में उन्हें “ डाक्टरेट “ की मांड उपाधि से सम्मानित किया | राष्ट्रभाषा परिषद बिहार ने “ मध्य एशिया का इतिहास “ के लिए पुरस्कृत किया | काशी विद्वत सभा ने उन्हें “ महापंडित “ का अलंकरण दिया तो हिन्दी साहित्य सम्मलेन, प्रयाग ने “साहित्य वाचस्पति” का २६ जनवरी १९६१ को भारत सरकार ने पद्मभूषण का अलंकरण प्रदान किया | सरस्वती ने अपने हीरक जयन्ती समारोह के अवसर पर मानपत्र देकर सम्मानित किया | जो उनके बहुमुखी व्यक्तित्व को सामने लाता है |मानपत्र में लिखा था- “आपने इस शती के तीसरे दशक में जब सरस्वती में लेख लिखना प्रारम्भ किया तब आचार्य द्दिवेदी ने साश्चर्य जिज्ञासा की थी कि हिन्दी की यह नवीन उदीयमान प्रतिभा कौन है ? तब से आप बराबर सरस्वती की सेवा करते आ रहे है | आप संस्कृत, हिन्दी और पालि के विद्वान् है | तिब्बती, रुसी और चीनी भाषाओं में निष्ठात है | राजनीति, इतिहास और दर्शन शास्त्र के पंडित है | आपने तिब्बती भाषा में सैकड़ो अज्ञात संस्कृत ग्रंथो का उद्दार किया | हिन्दी के प्रमुख बौद्ध ग्रंथो का अनुवाद कर हिन्दी का भण्डार भरा | “ एशिया का वृहद इतिहास ( भाग एक व दो ) लिखकर हिन्दी के बड़े अभाव को पूरा किया | उपन्यास, कहानी, निबन्ध यात्रा- साहित्य लिखकर आपने अपनी बहुआयामी प्रतिभा का परिचय दिया | आपकी निष्ठा हम सबके लिए अनुकरणीय है | आप केवल हिन्दी संसार के ही नही बल्कि सारे देश के गौरव है इस अवसर पर सरस्वती के पुराने लेखक तथा देश के महान पण्डित एवं साहित्यकार के रूप में आपका सम्मान कर हम अपने को गौरवान्वित समझते है |
विराट व्यक्तित्व
     राहुल जी का व्यक्तित्व बहुआयामी तथा विविधापूर्ण था | कहा जाता है की उन्हें देशी- विदेशी ३६ भाषाओं का ज्ञान था | विभिन्न भाषाओं को सीखने के लिए उन्होंने दिन- रात परिश्रम किया तथा अनेक कष्ट शे | उन्हें बंजारों की भाषा सीखने के लिए उनकी भैस व मुर्गिया चरानी पड़ी व उनकी मार भी सहनी पड़ी | प्रख्यात आलोचक नामवर सिंह ने एक प्रसंग में कहा था “ राहुल जी ने अपना सारा काम चाहे वह पालि सम्बन्धी हो या प्राकृत, अपभ्रंश सम्बन्धी हो या संस्कृत अपने सारे ज्ञान को हिन्दी में निचोड़ दिया था |  निराला के शब्दों में कहे तो- “हिन्दी के हित का अभिमान वह, दान वह” . प्रगतिशीलता का प्रश्न नामक निबन्ध में राहुल जी ने लिखा है | “ आज के साहित्यिक कलाकार या विचारक का लक्ष्य बिंदु जनता होनी चाहिए “ यह जनता उनका लक्ष्य बिंदु ही नही प्रस्थान बिंदु भी था | इसी के बीच से और इसी को ध्याम में रखकर उन्होंने साहित्य के विषय में अपने विचार व्यक्त किये तथा कुछ साहित्यकारों पर मूल्याकनपरक टिप्पणिया की | इस बात की उन्हें कभी चिंता नही रही, कि लोग उन पर प्रचारवादी होने का आरोप लगायेंगे | भाषा के सम्बन्ध में राहुल जी का विचार था की भाषा विशिष्ठ सम्पन्न कुछ लोगो की सर्जना नही है, बल्कि जीवंत भाषा जनता के कारखाने में ढलती है | जनता द्वारा गढ़े गये शब्दों, मुहावरों और कहावतो को छोड़कर यदि साहित्य रचना का प्रयास किया गया तो वह साहित्य निष्प्राण होगा | इसे लेकर दो मत नही हो सकते है | यदि लेखक चाहता है कि उसकी भाषा अजनबी न हो उसमे विद्युत् धारा दौड़ती रहे तो उसे जनभाषा से सम्पर्क बनाकर रखना होगा | इसी कारण वे जनपदीय बोलियों के साहित्य और शब्दावली को आगे बढाने के पक्षधर थे | राहुल जी ने जिस प्रकार की विषम परिस्थितियों में रहकर हिन्दी के सेवा की वह अनुकरणीय है | एक ओर जहाँ उन्होंने विभिन्न विषयों पर पुस्तके लिखी, वही शासन शब्दकोश, तिब्बती- हिंदी शब्दकोश जैसे शब्दकोशों का निर्माण तथा तिब्बती, चीनी, रुसी आदि भाषाओं से हिन्दी में अनुवाद का भी कार्य किया | हिन्दी उनके जीवन में स्थायी- भाव की तरह रची- बसी रही | उन्होंने इस बात को स्वंय भी स्वीकार किया है | “ अन्य बातो के लिए तो मैं बराबर परिवर्तन शील रहा, किन्तु मेरे जीवन में एक हिन्दी का स्नेह ही ऐसा है जो स्थायी रहा है “


    यह एक सामान्य नियम है कि हर महान व्यक्ति की तत्कालीन समाज द्वारा उपेक्षा तथा अवहेलना की जाती है और राहुल जी भी इससे बच नही सके | डा . मुल्कराज आनन्द ने लिखा है कि मैं रूस के कुछ कवियों को जानता हूँ जिन्होंने राहुल के शब्दों का दाय ग्रहण किया और उनकी वाणी जुल्म के विरुद्ध गूंज उठी तथा समतावादी समाज- निर्माण में सहायक हुई | राहुल के बहुआयामी विलक्षण व्यक्तित्व में बड़ी महानता थी | डा . भागवत शरण उपाध्याय के अनुसार वह स्वशिक्षित राहुल नियमित पाठशाला पाठ्यक्रम को तिलांजली देकर संस्कृत से अरबी, फ़ारसी से अंग्रेजी, सिंहली से तिब्बती भाषाओं में भ्रमण करता है | उनमे अदभुत ग्रहण शक्ति थी, जिससे उन्होंने इन भाषाओं के ज्ञान- भण्डार में घिसी- पिटी बातो को छोड़कर उनकी मेधावी प्रज्ञा के सर्वश्रेठ सर्वोत्तम और सबसे जटिल सारतत्वों का मधु संचय निचोड़ निकाला (राहुल स्मृति ४२७) अन्य सभी बातो को अलग कर दे तो तिब्बत से प्राचीन ग्रंथो की जो थाती राहुल भारत ले आये थे वे ही उनको अमरता प्रदान करने के लिए पर्याप्त है | राहुल की कहानिया अन्यो की भाँती व्यक्ति की कहानिया नही, अपितु जातियों और युगों की कहानिया है | जैसे अपने दो डग से राहुल ने धरती का कोना- कोना नाप डाला, उसी प्रकार अपनी अन्तर्प्रज्ञा से उन्होंने ८००० वर्ष के अतीत का भावबोध किया और अपने मांस- चक्षु से उस कालखण्ड के बदलते युगों के नर- नारी, परिवार- समाज, गण- समूह और राजशाही सामन्तशाही, खान- पान एवं संस्कृतियों का प्रत्यक्ष दर्शन किया | आधुनिक युग में केवल वे ही ऐसे अधिकारी व्यक्ति थे जो यह साधिकार कह सकते थे कि पिछले आठ हजार वर्षो के इतिहास को मैं अपनी आँखों से स्पष्ट देख रहा हूँ | इसी विराट दृष्टि का दर्शन उनकी “ वोल्गा से गंगा “ की बीस कहानियों में देखने को मिलता है | ” वोल्गा से गंगा” की कहानियों का फलक अन्तराष्ट्रीय है | मध्य एशिया से वोल्गा नदी के तटवर्ती भू- क्षेत्र से एशिया के ऊपरी भू- भाग, पामीर के पठार, ताजकिस्तान, अफगानिस्तान- ग्नाधार ( कंधार ) कुरु, पंचाल, श्रास्व्ती, अयोध्या, नालंदा, कन्नौज, अवन्ती ( मालवा ) दिल्ली, हरिहर क्षेत्र, मेरठ, खनु पटना के विस्तृत भू- खण्ड और ६००० ई . पूर्व से लेकर १९४२ ई की भारतीय सवतंत्रता की महाक्रान्ति तक के कालखण्ड को इसमें समेटा गया है | इस संग्रह में बीस कहानिया है जो सभी अपने में स्वतंत्र है पर वे कमश: एक ऐतिहासिक विकास का चित्र प्रस्तुत करती है जिसमे आर्य जाति के विकास की कथा अंकित है |

    ”मराठी लेखक डा प्रभाकर ताकवाले इन कहानियों के सम्बन्ध में लिखते है : ”वोल्गा से गंगा “ प्रागैतिहासिक और ऐतिहासिक ललित- कथा संग्रह की एक अनोखी कृति है | हिन्दी साहित्य में इतना विशाल आयाम लेकर लिखी यह प्रथम कृति है - - कामायनी में प्रसाद जी लाक्षणिक अवगुठन के प्रेमी होने के कारण उतने सुलझे हुए नही लगते, जितने राहुल जी “ वोल्गा से गंगा “ में है | राहुल जी आम आदमी की ऊँगली पकड़कर ठीक “आदम और इव “ तक पाठको को ले गये है - यह अदभुत कहानी- संग्रह एक नई दुनिया एक मटिरियल इन्टरप्रटेशन आफ हिस्ट्री- हमारे सामने उपस्थित करता है | कला, इतिहास, समाजशास्त्र, भूगोल, राजनीति, विज्ञान, दर्शन और न जाने कितने ज्ञान- विज्ञानों के अंगो का दोहन इन कहानियों में हमे मिलता है ( राहुल स्मृति पृष्ठ १६७ )
Rahul_Sankrityayan_shabdankan_birthday_04    राहुल जी का एक पुराना कहानी संग्रह “ सत्तमी के बच्चे “ है इसकी कहानिया भी उपयुक्त दोनों कहानी संग्रहों के सांचे में ढली है | इसमें राहुल जी ने अपने ननिहाल पन्दहां ग्राम की बाल स्मृतियों को कथा के रूप में चित्रित किया है | सत्तमी के बच्चे संग्रह की सबसे मार्मिक कहानी “ सत्तमी के बच्चे” ही है | उस गाँव की सत्तमी अहिरिन की दयनीय आर्थिक स्थिति का चित्रण किया गया है जो अपने बच्चो को भर पेट भोजन और दवा तक का प्रबन्ध नही कर पाती है और उसके चार बच्चे अकाल ही काल कलवित हो जाते है |     ”डीहबाबा “ की कहानी में जीता भर के माध्यम से भर जाती की कर्मठता और स्वामिभक्ति के साथ उनकी दयनीय स्थिति का चित्रण किया है | ”पाठक जी “ उनके नाना का चरित्रगत संस्मरण है और पुजारी जी इसी प्रकार का उनके पिता जी का संस्मरण है | इनका भी उद्देश्य उच्च वर्ग की ब्राह्मण जाती की ठसक और मिथ्या अंह भावना के साथ उनकी भी गरीबी का चित्रण करना है | “जैसिरी” भी पन्दहां के ही एक सच्चे चरित्र है जिनमे अदभुत प्रतिभा थी | पर गरीब परिवार में जन्म लेने के कारण उनकी प्रतिभा का विकास नही हो पाया |
    ”दलसिंगार” राहुल जी के रिश्ते में पड़ने वाले नाना थे | ...उनके रोचक स्मरण इसमें है | “सतमी के बच्चे “ कहानी संग्रह में पात्रो के जीवन संघर्ष और आर्थिक संघर्ष को चित्रित किया गया है | एक प्रकार से एक छोटे ग्राम्य जीवन के पट पर बुनी गयी ये कहानिया विश्व के विशाल फलक पर चित्रित होने वाली “ वोल्गा से गंगा “ की कहानियों की एक पृष्ठभूमि है |

    इस दृष्टि से चार कहानी संग्रहों के साथ उन्होंने नौ उपन्यास - १- बाईसवी सदी १९२३, २- जीने के लिए १९४०,  ३. सिंह सेनापति १९४४,  ४. जय यौधेय १९४४
५- भागो नही, दुनिया को बदलो १९४४, ६- मधुर वन १९४४, ७- राजस्थानी रनिवास १९५३, ८- विस्मृत यात्री १९५४, ९- दिवोदास १९६०, १०- निराले हीरे की खोज १९६५।  
     इनमे “ बाईसवी सदी “ और “ भागो नही दुनिया को बदलो “ में औपन्यासिक तत्व तो है पर वस्तुत: ये साम्यवाद के परचार्थ लिखी गयी पुस्तक है जिनका साहित्यिक दृष्टि से कम राजनितिक विचार धारणा की दृष्टि से अधिक महत्व है | अपने वैचारिक परिवर्तन की दिशाओं का संकेत तो उनकी जीवन- यात्रा के पृष्ठों पर मिलता ही है, साथ ही वे अपनी दुर्बलताओ को भी बेबाक ढंग से उसमे प्रगत करते चलते है | उसमे छिपाव और दुराव का बराबर अभाव मिलता है | वे अपनी सीमाओं को भी प्रगत करते है : वे व्यवहार में विनम्र एवं मृदुभाषी अवश्य थे पर अपनी वैचारिक मान्यताओं में इतने दृढ थे की उसमे अव्यवहारिकता का दोष लगना स्वाभाविक था ( खंड ४ पृष्ठ ४४९ )
    राहुल जी के सर्जनात्मक साहित्य में कथा और यात्रा साहित्य के पश्चात उनके जीवनी साहित्य का स्थान माना जा सकता है | हिन्दी में जब जीवनी साहित्य इस प्रकार हम यह कह सकते है की राहुल दर्शन, पुरातत्व और इतिहास के क्षेत्र में भी मौलिक लेखक है जो अनुसन्धान के लिए संदर्भ सामग्री छोड़ गये है | उनके विचारों से सहमत होना न सहमत होना, दूसरी बात है पर उनके ज्ञान का उपयोग तथा उन पर आगे कार्य करना विद्वत- जगत की महती आवश्यकता है | हमे गर्व है राहुल सर्व समाज और सम्पूर्ण दुनिया के तो थे है पर उनकी जन्मभूमि हमारे पास है |


    हम आभारी है जायसी के हस्ताक्षर डा. कन्हैया सिंह जी का जिन्होंने राहुल जी पे लिखने के लिए मुझे सामग्री उपलब्ध कराई |

मुक्तिका, अम्मी

मुक्तिका
अम्मी
*
माहताब की जुन्हाई में
झलक तुम्हारी पाई अम्मी
दरवाजे, कमरे आँगन में
हरदम पडी दिखाई अम्मी
कौन बताये कहाँ गयीं तुम
अब्बा की सूनी आँखों में
जब भी झाँका पडी दिखाई
तेरी ही परछाईं अम्मी
भावज जी भर गले लगाती
पर तेरी कुछ बात और थी
तुझसे घर अपना लगता था
अब बाकी पहुनाई अम्मी
बसा सासरे केवल तन है
मन तो तेरे साथ रह गया
इत्मीनान हमेशा रखना-
बिटिया नहीं परायी अम्मी
अब्बा में तुझको देखा है
तू ही बेटी-बेटों में है
सच कहती हूँ, तू ही दिखती
भाई और भौजाई अम्मी.
तू दीवाली, तू ही ईदी
तू रमजान फाग होली है
मेरी तो हर श्वास-आस में
तू ही मिली समाई अम्मी
*

सामयिक दोहे

सामायिक दोहे
*
बेचो घोड़े-गधे भी, सोओ होकर मस्त।
खर्राटे ऊँचे भरो, करो सभी को त्रस्त।।
*
दूर रहो उससे सदा, जो धोता हो हाथ।
झट पीछे पड़ गया तो, पीटोगे निज माथ।।
*
टाँग अड़ाना है 'सलिल', जन्म सिद्ध अधिकार।
समझ सको कुछ या नहीं, दो सलाह हर बार।।
*
देवी दर्शन कीजिए, भंडारे के रोज।
देवी खुश हो जब मिले, बिना पकाए भोज।।
*
हर ऊँची दूकान के, फीके हैं पकवान।
भाषण सुनकर हो गया, बच्चों को भी ज्ञान।।
*
नोट वोट नोटा मिलें, जब हों आम चुनाव।
फिर वोटर भूखा मरे, कहीं न मिलता भाव।।
*
देवी खड़ीं चुनाव में, नित रखती नौ रूप।
कहें भिखारी से हुई, मैं भिक्षुक तुम भूप।।
*
कौन किसी का सगा है, कहो पराया कौन?
प्रश्न किया जब भी मिला, उत्तर केवल मौन।।
*
ठिठुर रहा था तुम मिलीं, जीवन बना बसंत।
दूर गईं पतझड़ हुआ, मन बैरागी संत।।
*
तुम मैके मैं सासरे, हों तो हो आनंद।
मैं मैके तुम सासरे, हों तो गूँजे छंद।।
*
तू-तू मैं-मैं तभी तक, जब तक मन थे दूर।
तू-मैं मिल ज्यों हम हुए, साँस हुई संतूर।।
*
दो हाथों में हाथ या, लो हाथों में हाथ।
हँसें अधर मिल-लज नयन, कहें सार्थक साथ।।
*
नयन मिला छवि कैद कर, मूँदे नयन कपाट।
हुए चार दो रह गए, नयना खुद को हार।।
***

शिव स्तवन

शिव स्तवन

*

(तांडव छंद, प्रति चरण बारह मात्रा, आदि-अंत लघु)

।। जय-जय-जय शिव शंकर । भव हरिए अभ्यंकर ।।
।। जगत्पिता श्वासा सम । जगननी आशा मम ।।
।। विघ्नेश्वर हरें कष्ट । कार्तिकेय करें पुष्ट ।।
।। अनथक अनहद निनाद । सुना प्रभो करो शाद।।
।। नंदी भव-बाधा हर। करो अभय डमरूधर।।
।। पल में हर तीन शूल। क्षमा करें देव भूल।।
।। अरि नाशें प्रलयंकर। दूर करें शंका हर।।
।। लख ताण्डव दशकंधर। विनत वदन चकितातुर।।
।। डम-डम-डम डमरूधर। डिम-डिम-डिम सुर नत शिर।।
।। लहर-लहर, घहर-घहर। रेवा बह हरें तिमिर।।
।। नीलकण्ठ सिहर प्रखर। सीकर कण रहे बिखर।।
।। शूल हुए फूल सँवर। नर्तित-हर्षित मणिधर ।।
।। दिग्दिगंत-शशि-दिनकर। यश गायें मुनि-कविवर।।
।। कार्तिक-गणपति सत्वर। मुदित झूम भू-अंबर।।
।। भू लुंठित त्रिपुर असुर। शरण हुआ भू से तर।।
।। ज्यों की त्यों धर चादर। गाऊँ ढाई आखर।।
।। नव ग्रह, दस दिशानाथ। शरणागत जोड़ हाथ।।
।। सफल साधना भवेश। करो- 'सलिल' नत हमेश।।
।। संजीवित मन्वन्तर। वसुधा हो ज्यों सुरपुर।।
।। सके नहीं माया ठग। ममता मन बसे उमग।।
।। लख वसुंधरा सुषमा। चुप गिरिजा मुग्ध उमा।।
।। तुहिना सम विमल नीर। प्रवहे गंधित समीर।।
।। भारत हो अग्रगण्य। भारती जगत वरेण्य ।।
।। जनसेवी तंत्र सकल। जनमत हो शक्ति अटल।।
।। बलिपंथी हो नरेंद्र। सत्पंथी हो सुरेंद्र।।
।। तुहिना सम विमल नीर। प्रवहे गंधित समीर।।
।। भारत हो अग्रगण्य। भारती जगत वरेण्य ।।
।। जनसेवी तंत्र सकल। जनमत हो शक्ति अटल।।
।। सदय रहें महाकाल। उम्मत हों देश-भाल।।
।। तुहिना सम विमल नीर। प्रवहे गंधित समीर।।
।। भारत हो अग्रगण्य। भारती जगत वरेण्य ।।
।। जनसेवी तंत्र सकल। जनमत हो शक्ति अटल।।


                         ***

शनिवार, 6 अप्रैल 2019

देवी स्तवन

देवी स्तवन
तव च का किल न स्तुतिरंबिके सकल शब्दमयी किल ते तनु:।
निखिलमूर्तिषु मे भवदन्वयोमनसिजासु बहि: प्रसरासु च।।
इति विचिंत्य शिवे! शमिताशिवे! जगति जातमयत्नवशादिदिम्।
स्तुतिजपार्चनचिंतनवर्जिता न खलु काचन कालकलास्ति मे।।
*
भावानुवाद
किस ध्वनिस्तवन में न माँ,  सकल शब्दमय देह।
मन-अंदर-बाहर तुम्हीं, निखिल मूर्ति भव गेह।।

सोच-असोचे भी रहे, शिवे तुम्हारा ध्यान।
स्तुति-जप पूजार्चन रहित, पल न एक भी मान।।
*
कौन वांग्मय जो नहीं, करे तुम्हारा गान।
सकल शब्दमय मातु तुम,  तुम्हीं तान सुर गान।।

हर संकल्प-विकल्प में, मातु मिले दीदार।
हो भीतर-बाहर तुम्हीं, तुम ही बिंदु प्रसार।।

बिन प्रयास चिंतन बिना, शिवे! तुम्हारा ध्यान।
करे अमंगल ध्वंस हर, हो कल्याण सुजान।।

बिन प्रयास पल-पल रहे, मातु! तुम्हारा ध्यान।
पूजन चिंतन-मनन जप, स्तवन सतत तव गान।।
***
संवस
शक संवत् २०७६
५-४-२०१९

जागो माँ

विशेष रचना
जागो माँ
*
जागो माँ! जागो माँ!!
*
सीमा पर अरिदल ने भारत को घेरा है
सत्ता पर स्वार्थों ने जमा लिया डेरा है
जनमत की अनदेखी, चिंतन पर पहरा है
भक्तों ने गाली का पढ़ लिया ककहरा है
सैनिक का खून अब न बहे मौन त्यागो माँ
जागो माँ! जागो माँ!!
*
जनगण है दीन-हीन, रोटी के लाले हैं
चिड़ियों की रखवाली, बाज मिल सम्हाले हैं
नेता के वसन श्वेत, अंतर्मन काले हैं
सेठों के स्वार्थ भ्रष्ट तंत्र के हवाले हैं
रिश्वत-मँहगाई पर ब्रम्ह अस्त्र दागो माँ
जागो माँ! जागो माँ!!
*
जन जैसे प्रतिनिधि को औसत ही वेतन हो
मेहनत का मोल मिले, खुश मजूर का मन हो
नेता-अफसर सुत के हाथों में भी गन हो
मेहनत कर सेठ पले, जन नायक सज्जन हो
राजनीति नैतिकता एक साथ पागो माँ
जागो माँ! जागो माँ!!
*
संवस
नवसंवत्सर, ५.४.२०१९

दोहा कृष्ण मृग हत्या

त्वरित प्रतिक्रिया
कृष्ण-मृग हत्याकांड 
*
मुग्ध हुई वे हिरन पर, किया न मति ने काम। 
हरण हुआ बंदी रहीं, कहा विधाता वाम ।।
*
मुग्ध हुए ये हिरन पर, मिले गोश्त का स्वाद।
सजा हुई बंदी बने, क्यों करते फ़रियाद?
*
देर हुई है अत्यधिक, नहीं हुआ अंधेर।
सल्लू भैया सुधरिए, अब न कीजिए देर।।
*
हिरणों की हत्या करी, चला न कोई दाँव।
सजा मिली तो टिक नहीं, रहे जमीं पर पाँव।।
*
नर-हत्या से बचे पर, मृग-हत्या का दोष।
नहीं छिप सका भर गया, पापों का घट-कोष।।
*
आहों का होता असर, आज हुआ फिर सिद्ध।
औरों की परवा करें, नर हो बनें न गिद्ध।।
*
हीरो-हीरोइन नहीं, ख़ास नागरिक आम।
सजा सख्त हो तो मिले, सबक भोग अंजाम ।।
*
अब तक बचते रहे पर, न्याय हुआ इस बार।
जो छूटे उन पर करे, ऊँची कोर्ट विचार।।
*
फिर अपील हो सभी को, सख्त मिल सके दंड।
लाभ न दें संदेह का, तब सुधरेंगे बंड।।
*
न्यायपालिका से विनय करें न इतनी देर।
आम आदमी को लगे, होता है अंधेर।।
*
सरकारें जागें न दें, सुविधा कोई विशेष।
जेल जेल जैसी रहे, तनहा समय अशेष।।

५.४.२०१८
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दोहा अनुप्रास उर्दू

अनुप्रासिक दोहे
*
दया-दफीना दे दिया, दस्तफ्शां को दान
दरा-दमामा दाद दे, दल्कपोश हैरान
(दरा = घंटा-घड़ियाल, दफीना = खज़ाना, दस्तफ्शां = विरक्त, दमामा = नक्कारा, दल्कपोश = भिखारी)
*
दर पर था दरवेश पर, दरपै था दज्जाल
दरहम-बरहम दामनी, दूर देश था दाल
(दर= द्वार, दरवेश = फकीर, दरपै = घात में, दज्जाल = मायावी भावार्थ रावण, दरहम-बरहम = अस्त-व्यस्त, दामनी = आँचल भावार्थ सीता, दाल = पथ प्रदर्शक भावार्थ राम )
*
दिलावरी दिल हारकर, जीत लिया दिलदार
दिलफरेब-दीप्तान्गिनी, दिलाराम करतार
(दिलावरी = वीरता, दिलफरेब = नायिका, दिलदार / दिलाराम = प्रेमपात्र)
*
५.४.२०१७ 

श्रीरामरक्षास्तोत्र

॥ श्रीरामरक्षास्तोत्र ॥
(हिंदी काव्यानुवाद तथा रोमन लिपि में मूल पाठ सहित)
॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥
अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमंत्रस्य । बुधकौशिक ऋषिः ।
श्रीसीतारामचंद्रो देवता । अनुष्टुप् छंदः ।।
सीता शक्तिः । श्रीमद् हनुमान कीलकम् ।
श्रीरामचंद्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्तोत्रजपे विनियोगः ॥
॥ अथ ध्यानम् ॥
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थम् ।
पीतं वासो वसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम् ।।
वामांकारूढ सीतामुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभम् ।
नानालंकारदीप्तं दधतमुरुजटामंडनं रामचंद्रम् ॥
॥ इति ध्यानम् ॥
चरितं रघुनाथस्य शतकोटि प्रविस्तरम् ।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥ १॥
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम् ।
जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमंडितम् ॥ २॥
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तंचरान्तकम् ।
स्वलीलया जगत्रातुं आविर्भूतं अजं विभुम् ॥ ३॥
रामरक्षां पठेत्प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम् ।
शिरोमे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः ॥ ४॥
कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रियश्रुती ।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सलः ॥ ५॥
जिव्हां विद्यानिधिः पातु कंठं भरतवंदितः ।
स्कंधौ दिव्यायुधः पातु भुजौ भग्नेशकार्मुकः ॥ ६॥
करौ सीतापतिः पातु हृदयं जामदग्न्यजित् ।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रयः ॥ ७॥
सुग्रीवेशः कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभुः ।
ऊरू रघूत्तमः पातु रक्षःकुलविनाशकृत् ॥ ८॥
जानुनी सेतुकृत्पातु जंघे दशमुखान्तकः ।
पादौ बिभीषणश्रीदः पातु रामोखिलं वपुः ॥ ९॥
एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत् ।
स चिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ॥ १०॥
पातालभूतलव्योमचारिणश्छद्मचारिणः ।
न द्रष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभिः ॥ ११॥
रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन् ।
नरो न लिप्यते पापैः भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥ १२॥
जगजैत्रैकमंत्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम् ।
यः कंठे धारयेत्तस्य करस्थाः सर्वसिद्धयः ॥ १३॥
वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत् ।
अव्याहताज्ञः सर्वत्र लभते जयमंगलम् ॥ १४॥
आदिष्टवान् यथा स्वप्ने रामरक्षांमिमां हरः ।
तथा लिखितवान् प्रातः प्रभुद्धो बुधकौशिकः ॥ १५॥
आरामः कल्पवृक्षाणां विरामः सकलापदाम् ।
अभिरामस्त्रिलोकानां रामः श्रीमान् स नः प्रभुः ॥ १६॥
तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ ।
पुंडरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥ १७॥
फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥ १८॥
शरण्यौ सर्वसत्त्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम् ।
रक्षः कुलनिहंतारौ त्रायेतां नो रघूत्तमौ ॥ १९॥
आत्तसज्जधनुषाविषुस्पृशावक्षयाशुगनिषंगसंगिनौ ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रतः पथि सदैव गच्छताम् ॥ २०॥
सन्नद्धः कवची खड्गी चापबाणधरो युवा ।
गच्छन्मनोरथोस्माकं रामः पातु सलक्ष्मणः ॥ २१॥
रामो दाशरथिः शूरो लक्ष्मणानुचरो बली ।
काकुत्स्थः पुरुषः पूर्णः कौसल्येयो रघुत्तमः ॥ २२॥
वेदान्तवेद्यो यज्ञेशः पुराणपुरुषोत्तमः ।
जानकीवल्लभः श्रीमान् अप्रमेय पराक्रमः ॥ २३॥
इत्येतानि जपन्नित्यं मद्भक्तः श्रद्धयान्वितः ।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशयः ॥ २४॥
रामं दूर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम् ।
स्तुवंति नामभिर्दिव्यैः न ते संसारिणो नरः ॥ २५॥
रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम् ।
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम् ।।
राजेंद्रं सत्यसंधं दशरथतनयं श्यामलं शांतमूर्तिम् ।
वंदे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम् ॥ २६॥
रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे ।
रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः ॥ २७॥
श्रीराम राम रघुनंदन राम राम ।
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम ।
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥ २८॥
श्रीरामचंद्रचरणौ मनसा स्मरामि ।
श्रीरामचंद्रचरणौ वचसा गृणामि ॥
श्रीरामचंद्रचरणौ शिरसा नमामि ।
श्रीरामचंद्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥ २९॥
माता रामो मत्पिता रामचंद्रः ।
स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्रः ॥
सर्वस्वं मे रामचंद्रो दयालुः ।
नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥ ३०॥
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा ।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वंदे रघुनंदनम् ॥ ३१॥
लोकाभिरामं रणरंगधीरम् । राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम् ॥
कारुण्यरूपं करुणाकरं तम् । श्रीरामचंद्रम् शरणं प्रपद्ये ॥ ३२॥
मनोजवं मारुततुल्यवेगम् ।
जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् ।।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यम् ।
श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥ ३३॥
कूजंतं राम रामेति मधुरं मधुराक्षरम् ।
आरुह्य कविताशाखां वंदे वाल्मीकिकोकिलम् ॥ ३४॥
आपदां अपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम् ।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥ ३५॥
भर्जनं भवबीजानां अर्जनं सुखसम्पदाम् ।
तर्जनं यमदूतानां राम रामेति गर्जनम् ॥ ३६॥
रामो राजमणिः सदा विजयते रामं रमेशं भजे ।
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नमः ॥
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोस्म्यहम् ।
रामे चित्तलयः सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥ ३७॥
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥ ३८॥
इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम् ॥
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श्री राम रक्षा स्तोत्र
विनियोग
श्री गणेश-विघ्नेश्वर, रिद्धि-सिद्धि के नाथ .
चित्र गुप्त लख चित्त में, नमन करुँ नत माथ.
ऋषि बुधकौशिक रचित यह, रामरक्षास्तोत्र.
दोहा रच गाये सलिल, कायथ कश्यप गोत्र.
कीलक हनुमत, शक्ति सिय, देव सिया-श्री राम.
जाप और विनियोग यह, स्वीकारें अभिराम.
ध्यान आरम्भ
दीर्घबाहु पद्मासनी, हों धनु-धारि प्रसन्न.
कमलाक्षी पीताम्बरी, है यह भक्त प्रपन्न.
नलिननयन वामा सिया, अद्भुत रूप-सिंगार.
जटाधरी नीलाभ प्रभु, ध्याऊँ हो बलिहार.
श्री गणेश-विघ्नेश्वर, रिद्धि-सिद्धि के नाथ .
चित्र गुप्त लख चित्त में, नमन करुँ नत माथ.
ऋषि बुधकौशिक रचित यह, रामरक्षास्तोत्र.
दोहा रच गाये सलिल, कायथ कश्यप गोत्र.
कीलक हनुमत, शक्ति सिय, देव सिया-श्री राम.
जाप और विनियोग यह, स्वीकारें अभिराम.
ध्यान पूर्ण
दीर्घबाहु पद्मासनी, हों धनु-धारि प्रसन्न.
कमलाक्षी पीताम्बरी, है यह भक्त प्रपन्न.
नलिननयन वामा सिया, अद्भुत रूप-सिंगार.
जटाधरी नीलाभ प्रभु, ध्याऊँ हो बलिहार.
श्री रघुनाथ-चरित्र का, कोटि-कोटि विस्तार.
एक-एक अक्षर हरे, पातक- हो उद्धार. १.
नीलाम्बुज सम श्याम छवि, पुलिनचक्षु का ध्यान.
करुँ जानकी-लखन सह, जटाधारी का गान.२
खड्ग बाण तूणीर धनु, ले दानव संहार.
करने भू-प्रगटे प्रभु, निज लीला विस्तार. ३
स्तोत्र-पाठ ले पाप हर, करे कामना पूर्ण.
राघव-दशरथसुत रखें, शीश-भाल सम्पूर्ण. ४
कौशल्या-सुत नयन रखें, विश्वामित्र-प्रिय कान.
मख-रक्षक नासा लखें, आनन् लखन-निधान. ५
विद्या-निधि रक्षे जिव्हा, कंठ भरत-अग्रज.
स्कंध रखें दिव्यायुधी, शिव-धनु-भंजक भुज. ६
कर रक्षे सीतेश-प्रभु, परशुराम-जयी उर,
जामवंत-पति नाभि को, खर-विध्वंसी उदर. ७
अस्थि-संधि हनुमत प्रभु, कटि- सुग्रीव-सुनाथ.
दनुजान्तक रक्षे उरू, राघव करुणा-नाथ. ८
दशमुख-हन्ता जांघ को, घुटना पुल-रचनेश.
विभीषण-श्री-दाता पद, तन रक्षे अवधेश. ९
राम-भक्ति संपन्न यह, स्तोत्र पढ़े जो नित्य.
आयु, पुत्र, सुख, जय, विनय, पाए खुशी अनित्य.१०
वसुधा नभ पाताल में, विचरें छलिया मूर्त.
राम-नाम-बलवान को, छल न सकें वे धूर्त. ११
रामचंद्र, रामभद्र, राम-राम जप राम.
पाप-मुक्त हो, भोग सुख, गहे मुक्ति-प्रभु-धाम. १२
रामनाम रक्षित कवच, विजय-प्रदाता यंत्र.
सर्व सिद्धियाँ हाथ में, है मुखाग्र यदि मन्त्र.१३
पविपंजर पवन कवच, जो कर लेता याद.
आज्ञा उसकी हो अटल, शुभ-जय मिले प्रसाद.१४
शिवादेश पा स्वप्न में, रच राम-रक्षा स्तोत्र.
बुधकौशिक ऋषि ने रचा, बालारुण को न्योत. १५
कल्प वृक्ष, श्री राम हैं, विपद-विनाशक राम.
सुन्दरतम त्रैलोक्य में, कृपासिंधु बलधाम. १६
रूपवान, सुकुमार, युव, महाबली सीतेंद्र.
मृगछाला धारण किये, जलजनयन सलिलेंद्र. १७.
राम-लखन, दशरथ-तनय, भ्राता बल-आगार.
शाकाहारी, तपस्वी, ब्रम्हचर्य-श्रृंगार. १८
सकल श्रृष्टि को दें शरण, श्रेष्ठ धनुर्धर राम.
उत्तम रघु रक्षा करें, दैत्यान्तक श्री राम. १९
धनुष-बाण सोहे सदा, अक्षय शर-तूणीर.
मार्ग दिखा रक्षा करें, रामानुज-रघुवीर. २०
राम-लक्ष्मण हों सदय, करें मनोरथ पूर्ण.
खड्ग, कवच, शर,, चाप लें, अरि-दल के दें चूर्ण. २१
रामानुज-अनुचर बली, राम दाशरथ वीर.
काकुत्स्थ कोसल-कुँवर, उत्तम रघु, मतिधीर. २२
सीता-वल्लभ श्रीवान, पुरुषोतम, सर्वेश.
अतुलनीय पराक्रमी, वेद-वैद्य यज्ञेश. २३
प्रभु-नामों का जप करे, नित श्रद्धा के साथ.
अश्वमेघ मख-फल मिले, उसको दोनों हाथ.२४
पद्मनयन, पीताम्बरी, दूर्वा-दलवत श्याम.
नाम सुमिर ले 'सलिल' नित, हो भव-पार सुधाम. २५
गुणसागर, सौमित्राग्रज, भूसुतेश श्रीराम.
दयासिन्धु काकुत्स्थ हैं, भूसुर-प्रिय निष्काम. २६ क
अवधराज-सुत, शांति-प्रिय, सत्य-सिन्धु बल-धाम.
दशमुख-रिपु, रघुकुल-तिलक, जनप्रिय राघव राम. २६ख
रामचंद्र, रामभद्र, रम्य रमापति राम.
रघुवंशज कैकेई-सुत, सिय-प्रिय अगिन प्रणाम. २७
रघुकुलनंदन राम प्रभु, भरताग्रज श्री राम.
समर-जयी, रण-दक्ष दें, चरण-शरण श्री धाम.२८
मन कर प्रभु-पद स्मरण, वाचा ले प्रभु-नाम.
शीश विनत पद-पद्म में, चरण-शरण दें राम.२९
मात-पिता श्री राम हैं, सखा-सुस्वामी राम.
रामचंद्र सर्वस्व मम, अन्य न जानूं नाम. ३०
लखन सुशोभित दाहिने, जनकनंदिनी वाम.
सम्मुख हनुमत पवनसुत, शतवंदन श्री राम.३१
जन-मन-प्रिय, रघुवीर प्रभु, रघुकुलनायक राम.
नयनाम्बुज करुणा-समुद, करुनाकर श्री राम. ३२
मन सम चंचल पवनवत, वेगवान-गतिमान.
इन्द्रियजित कपिश्रेष्ठ दें, चरण-शरण हनुमान. ३३
काव्य-शास्त्र आसीन हो, कूज रहे प्रभु-नाम.
वाल्मीकि-पिक शत नमन, जपें प्राण-मन राम. ३४
हरते हर आपद-विपद, दें सम्पति, सुख-धाम.
जन-मन-रंजक राम प्रभु, हे अभिराम प्रणाम. ३५
राम-नाम-जप गर्जना, दे सुख-सम्पति मीत.
हों विनष्ट भव-बीज सब, कालदूत भयभीत. ३६
दैत्य-विनाशक, राजमणि, वंदन राम रमेश.
जयदाता शत्रुघ्नप्रिय, करिए जयी हमेश. ३७ क
श्रेष्ठ न आश्रय राम से, 'सलिल' राम का दास.
राम-चरण-मन मग्न हो, भव-तारण की आस. ३७ ख
विष्णुसहस्त्रनाम सम, पावन है प्रभु-नाम
रमे राम के नाम में, सलिल-साधना राम. ३८
मुनि बुधकौशिक ने रचा, श्री रामरक्षास्तोत्र..
सिया-राम-चरणार्पित, भव-भक्तिमय ज्योत.
'शांति-राज'-हित यंत्र है, श्री रामरक्षास्तोत्र.३९
आशा होती पूर्ण हर, प्रभु हों सत्य सहाय.
तुहिन श्वास हो नर्मदा, मन्वंतर गुण गाय.. ४०
राम-कथा मंदाकिनी, रामकृपा राजीव.
राम-नाम जप दे दरश, राघव करुणासींव. ४१
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Shri Ram Raksha Stotram
II RAM II
RAM RAKSHA STOTRAM
Viniyoga
Aasya Shriramrakshastrotamantrasya budhkaushik hrishi |
ShriSitaramcandro devta anushtup Chanda: Sita shakti |
Shriman hanuman keelkam ShriRamcandapreetyeRthe |
Ramrakshastotrajape vinyOgah ||
Dhyaanam
Dhyaaedaajaanu baahum dhyaanam dhrit shar dhanusham badhhpadmaasanastham |
Peetam vaaso vasaanam navkamaldalspardhinetram prasannam |
Vamaankaarooddh sita mukhkamal milallochanam neerdaabham |
Naanaalankaar deeptam dadhat murujataamandalam Ramchandram ||
Stotram
Charitam Raghunaathasya shut koti pravistaram |
Ekaikam aksharam punsaam mahaa paatak naashanam |1|
Dhyaatvaa nilotpal shyaamam Ramam rajeev lochanam |
Jaanaki lakshmanopetam jataa mukut manditam |2|
Saasitoor dhanurbaan paanim naktam charaantakam |
Swalilayaa jagat traatumaavirbhuntam ajam vibhum |3|
Ram rakshaam patthet praagyaha paapaghaneem sarv kaamdam |
Shiro may Raaghavah paatu bhaalam Dasharathaatmjah |4|
Kausalyeyo Drishau Paatu Vishvaamitra priyah shrutee |
Ghraanam paatu makha traataa mukham saumitrivatsala |5|
Jihvaam vidyaa nidhih paatu kanttham bharat vanditah |
Skandhau divyaayudhah paatu bhujau bhagnesh kaarmukah |6|
Karau seetapatih paatu hridayam jaamadagnyajit |
Madhyam paatu khara dhwansi naabhim jaambvadaashrayah |7|
Sugriveshah katee paatu sakthini hanumat prabhuh |
Uru Raghoot tamah paatu rakshakul vinaashkrit |8|
Jaahnuni Setukrit Paatu janghey dasha mukhaantakah |
Paadau vibhishan shreedah paatu Ramokhilam vapuh |9|
Etaam Ram balopetaam rakshaam yah sukriti patthet |
Sa chiraayuh sukheeputri vijayi vinayi bhavet |10|
Paataal bhutalavyom chaari nash chadmchaarinah |
Na drashtumapi shaktaaste rakshitam ramnaambhih |11|
Rameti Rambhadreti Ramchandreti vaa smaran |
Naro na lipyate paapeir bhuktim muktim chavindati |12|
Jagat jaitreik mantrein Ram naam naabhi rakshitam |
Yah kantthe dhaareytasya karasthaah sarv siddhyah |13|
Vajra panjar naamedam yo Ramkavacham smaret |
Avyaa hataagyah sarvatra labhate jai mangalam |14|
Aadisht vaan yathaa swapne Ram rakshaimaam harah |
Tathaa likhit vaan praatah prabu dho budh kaushikah |15|
Aaraamah kalpa vrikshaanam viraamah sakalaapadaam |
Abhiraam strilokaanam Ramahi Shrimaansah nah prabhuh| 16|
Tarunau roop sampannau sukumaarau mahaa balau |
Pundreek vishaalaakshau cheerkrishnaa jinaambarau |17|
Fala moolaa shinau daantau taapasau brahma chaarinau |
putrau dashrathasyetau bhraatarau Ram Lakshmanau |18|
Sharanyau sarv satvaanaam shreshtthau sarv dhanush mataam |
Rakshah kul nihantaarau traayetaam no raghuttamau |19|
Aattasajjadhanushaa vishusprishaa vakshyaashug nishang sanginau |
Rakshnaaya mum Ram lakshmanaa vagratah pathi sadaiv gachhtaam |20|
Sannadah kavachi khadagi chaap baan dharo yuvaa |
Gachhan manorathaa nashch Ramah paatu salakshmanah |21|
Ramo daashraltih shooro lakshmanaaru charo balee |
Kaakutsthah purushah purnah kausalyeyo raghuttmah |22|
Vedaant vedyo yagneshah puraan puru shottamah |
Jaanaki vallabhah shrimaan prameya paraakramah |23|
Ityetaani japan nityam madabhaktah shraddhyaan vitah |
Ashvamedhaadhikam punyam sampraapnoti na sanshayah |24|
Ramam doorvaadal shyaamam padmaaksham peet vaasasam |
Stuvanti naambhirdivyern te sansaarino naraah |25|
Ramam Lakshman poorvajam raghuvaram sitapatim sundaram |
Kaakutstham karunarnvam gunnidhim viprapriyam dhaarmikam |26|
Raajendram satyasandham Dashrath tanayam shyaamalam shaantmurtium
Vande Lokaabhiraamam Raghukultilakam Raghavam Raavanaarim |
Ramaay Rambhadraay Ramchandraay Vedhasey
Raghunaathaay naathaay sitayah paataye namah |27|
Shri Ram Ram Raghunandan Ram Ram
Shri Ram Ram Bharataagraj Ram Ram
Shri Ram Ram Runkarkash Ram Ram
Shri Ram Ram Sharanam bhav Ram Ram |28|
Shri Ram Chandra Charan
Shri Ram Chandra Charanau manasaa smaraami
Shri Ram Chandra Charanau vachasaa grinaami
Shri Ram Chandra Charanau Shirasaa namaami
Shri Ram Chandra Charanau Sharanam prapadye |29|
Maataa Ramo Matpitaa. Ram Chandrah
Swaami Ramo matsakhaa Ram Chandrah
Sarvasvam may Ram Chandra Dayaalur
Naanyam jaane naive jaane na jaane |30|
Dakshiney Lakshmano yasya vaame cha janakaatmajaa |
Purato marutir yasya tama vande Raghunandanam |31|
Lokaabhi Ramam rana rangdheeram
Rajeev netram Raghuvansh naatham
Kaarunya roopam karunaa karantam
Shri Ram Chandram Sharanam prapadye |32|
Manojavam maarut tulya vegam
Jitendriyam buddhi mataam varishttham
Vaataatmjam vaanar youth mukhyam
Shri Ram dootam Sharanam prapadye |33|
Koojantam Ram raameti madhuram madhuraaksharam |
Aaruhya Kavitaa Shakhaam vande Vaalmikilokilam |34|
Aapdaampahar taaram daataaram sarvsampdaam |
Lokaabhiramam Shri Ramam bhooyo bhooyo namaamya hum |35|
Bharjanam bhav beejaanaam arjanam sukh sampdaam |
Tarjanam yum dootaanaam Ram Rameti garjanam |36|
Ramo Rajmani sadaa vijayate Ramam Ramesham bhaje
Ramenaa bhihtaa nishaacharchamoo Ramaay tasmai namah|
Ramannaasti paraayanam partaram Ramasya daasosmyaham
Rame Chittalayah sadaa bhavtu me bho Ram maamudhhar |37|
Ram Rameti Rameti Ramey Rame manoramey |
Sahastra naam tatulyam Ram naam varaananey |38|
Eti Shree Ram Raksha Stotram
**************

गीत तुम सपने geet tum sapne

एक रचना-
अपने सपने कहाँ खो गये?
*
तुमने देखे,
मैंने देखे, 
हमने देखे। 

मिल प्रयास कर
कभी रुदन कर
कभी हास कर।
जाने-अनजाने, मन ही मन, चुप रह लेखे।
परती धरती में भी
आशा बीज बो गये।
*
तुमने खोया,
मैंने खोया ,
हमने खोया।
कभी मिलन का,
कभी विरह का,
कभी सुलह का।
धूप-छाँव में, नगर-गाँव में पाया मौक़ा।
अंकुर-पल्लव ऊगे
बढ़कर वृक्ष हो गये।
*
तुमने पाया,
मैंने पाया,
हमने पाया।
एक दूजे में,
एक दूजे कोको,
गले लगाया।
हर बाधा-संकट को, जीता साथ-साथ रह।
पुष्पित-फलित हुए तो
हम ही विवश हो गये।
५.४.२०१६
***

हाइकु मुक्तिका नवदुर्गा

हाइकु मुक्तिका-
संजीव
नव दुर्गा का, हर नव दिन हो, मंगलकारी
नेह नर्मदा, जन-मन रंजक, संकटहारी
मैं-तू रहें न, दो मिल-जुलक,र एक हो सकें
सुविचारों के, सुमन सुवासित, जीवन-क्यारी
गले लगाये, दिल को दिल खिल, गीत सुनाये
हों शरारतें, नटखटपन मन,-रञ्जनकारी
भारतवासी, सकल विश्व पर, प्यार लुटाते
संत-विरागी, सत-शिव-सुंदर, छटा निहारी
भाग्य-विधाता, लगन-परिश्रम, साथ हमारे
स्वेद बहाया, लगन लगाकर, दशा सुधारी
पंचतत्व का, तन मन-मंदिर, कर्म धर्म है
सत्य साधना, 'सलिल' करे बन, मौन पुजारी
(वार्णिक हाइकु छन्द ५-७-५)
५.४.२०१६ 

दोहा तुम बसंत

दोहा सलिला
संजीव सलिल

ठिठुर रहा था तुम मिलीं, जीवन हुआ बसंत.
दूर हुईं पतझड़ हुआ, हेरूँ हर पल कन्त.. 

तुम मैके मैं सासरे, हों तो हो आनंद.
मैं मैके तुम सासरे, हों तो गाएँ छन्द.

तू-तू मैं-मैं तभी तक, जब तक हों मन दूर.
तू-मैं ज्यों ही हम हुए, साँस हुई संतूर..
*
दो हाथों में हाथ या, लो हाथों में हाथ.
अधरों पर मुस्कान हो, तभी सार्थक साथ..
*
नयन मिला छवि बंदकर, मून्दे नयना-द्वार.
जयी चार, दो रह गये, नयना खुद को हार..

५.४.२०१३
*

शुक्रवार, 5 अप्रैल 2019

समीक्षा

कृति चर्चा:
युद्धरत हूँ मैं : जिजीविषा गुंजाती कविताएँ
चर्चाकार: आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
(कृति विवरण: युद्घरत हूँ मैं, हिंदी गजल-काव्य-दोहा संग्रह, हिमकर श्याम, प्रथम संस्करण, २०१८, आईएसबीएन ९७८८१९३७१९०७७,  आवरण बहुरंगी पेपरबैक, पृष्ठ २१२,  मूल्य २७५रु., नवजागरण प्रकाशन,  नई दिल्ली, कवि संपर्क बीच शांति एंक्लेव, मार्ग ४ ए, कुसुम विहार,  मोराबादी, राँची ८३४००८,  चलभाष ८६०३१७१७१०) 
*
आदिकवि वाल्मीकि द्वारा मिथुनरत क्रौंच युगल के नर का व्याध द्वारा वध किए जाने पर क्रौंच के चीत्कार को सुनकर प्रथम काव्य रचना हो, नवजात शावक शिकारी द्वारा मारे जाने पर हिरणी के क्रंदन को सुनकर लिखी गई गजल हो, शैली की काव्य पंक्ति 'अवर स्वीटैस्ट सौंग्स आर दोस विच टैल अॉफ सैडेस्ट थॉट' या साहिर का गीत 'हैं सबसे मधुर वो गीत जिन्हें हम दर्द के सुर में गाते हैं' यह सुनिश्चित है कि करुणा और कविता का साथ चोली-दामन का सा है। दुनिया की कोई भी भाषा हो, कोई भी भू भाग हो आदमी की अनुभूति और अभिव्यक्ति समान होती है। पीड़ा, पीड़ा से मुक्ति की चेतना, प्रयास, संघर्ष करते मन को जब यह प्रतीति हो कि हर चुनौती, हर लड़ाई, हर कोशिश करते हुए अपने आप से 'युद्धरत हूँ मैं' तब कवि कविता ही नहीं करता, कविता को जीता है। तब उसकी कविता पिंगल और व्याकरण के मानक पर नहीं, जिंदगी के उतार-चढ़ाव पर बहती हुई नदी की उछलती-गिरती लहरों में निहित कलकल ध्वनि पर परखी जाती है।
हिमकर श्याम की कविता दिमाग से नहीं,  दिल से निकलती है। जीवन के षट् राग (खटराग) में अंतर्निहित पंचतत्वों की तरह इस कृति की रचनाएँ कहनी हैं कुछ बातें मन की, युद्धरत हूँ मैं, आखिर कब तक?, झड़ता पारिजात तथा सबकी अपनी पीर पाँच अध्यायों में व्यवस्थित की गई हैं। शारदा वंदन की सनातन परंपरा के साथ बहुशिल्पीय गीति रचनाएँ अंतरंग भावनाओं से सराबोर है।
आरंभ में ३ से लेकर ६ पदीय अंतरों के गीत मन को बाँधते हैं-
सुख तो पल भर ही रहा, दुख से लंबी बात
खुशियाँ हैं खैरात सी, अनेकों की सौग़ात
उलझी-उलझी ज़िंदगी, जीना है दुश्वार
साँसों के धन पर चले जीवन का व्यापार
चादर जितनी हो बड़ी, उतनी ही औक़ात
व्यक्तिगत जीवन में कर्क रोग का आगमन और पुनरागमन झेल रहे हिमकर श्याम होते हुए भी शिव की तरह हलाहल का पान करते हुए भी शुभ की जयकार गुँजाते हैं-
दुखिया मन में मधु रस घोलो
शुभ-मंगल सब मिलकर बोलो
छंद नया है,  राग नया है
होंठों पर फिर फाग नया है
सरगम के नव सुर पर डोलो
शूलों की सेज पर भी श्याम का कवि-पत्रकार देश और समाज की फ़िक्र जी रहा है।
मँहगा अब एतबार हो गया
घर-घर ही बाजार हो गया
मेरी तो पहचान मिट गई
कल का मैं अखबार हो गया
विरासत में अरबी-फारसी मिश्रित हिंदी की शब्द संपदा मसिजीवी कायस्थ परिवारों की वैशिष्ट्य है। हिमकर ने इस विरासत को बखूबी तराशा-सँभाला है। वे नुक़्तों, विराम चिन्हों और संयोजक चिन्ह का प्रयोग करते हैं।
'युद्धरत हूँ मैं' में उनके जिजीविषाजयी जीवन संघर्ष की झलक है किंतु तब भी कातरता, भय या शिकायत के स्थान पर परिचर्चा में जुटी माँ, पिता और मामा की चिंता कवि के फौलादी मनोबल की परिचायक है। जिद्दी सी धुन, काला सूरज,  उपचारिकाएँ, किस्तों की ज़िंदगी, युद्धरत हूँ मैं, विष पुरुष, शेष है स्वप्न, दर्द जब लहराए आदि कविताएँ दर्द से मर्द के संघर्ष की महागाथाएँ हैं। तन-मन के संघर्ष को धनाभाव जितना हो सकता है, बढ़ाता है तथापि हिमकर के संकल्प को डिगा नहीं पाता। हिमकर का लोकहितैषी पत्रकार ईसा की तरह व्यक्तिगत पीड़ा को जीते हुए भी देश की चिंता को जीता है। सत्ता, सुख और समृद्धि के लिए लड़े-मरे जा रहे नेताओं, अफसरों और सेठों के हिमकर की कविताओं के पढ़कर मनुष्य होना सीखना चाहिए।
दम तोड़ती इस लोकतांत्रिक
व्यवस्था के असंख्य
कलियुगी रावणों का हम
दहन करना भी चाहें तो
आखिर कब तक
*
तोड़ेंगे हम चुप्पी
और उठा सकेंगे
आवाज़
सर्वव्यापी अन्याय के ख़िलाफ़
लड़ सकेंगे तमाम
खौफ़नाक वारदातों से
और अपने इस
निरर्थक अस्तित्व को
कोई अर्थ दे सकेंगे हम।
*
खूब शोर है विकास का
जंगल, नदी, पहाड़ की
कौन सुन रहा चीत्कार
अनसुनी आराधना
कैसी विडंबना
बिखरी सामूहिक चेतना
*
यह गाथा है अंतहीन संघर्षों की
घायल उम्मीदों की
अधिकारों की है लड़ाई
वजूद की है जद्दोजहद
समय के सत्य को जीते हुए, जिंदगी का हलाहल पीते हुए हिमकर श्याम की युगीन चिंताओं का साक्षी दोहा बना है।
सरकारें चलती रहीं, मैकाले की चाल
हिंदी अपने देश में, अवहेलित बदहाल
कैसा यह उन्माद है, सर पर चढ़ा जुनून
खुद ही मुंसिफ तोड़ते, बना-बना कानून
चाक घुमाकर हाथ से, गढ़े रूप आकार
समय चक्र धीमा हुआ,  है कुम्हार लाचार
मूर्ख बनाकर लोक को, मौज करे ये तंत्र
धोखा झूठ फरेब छल,  नेताओं के मंत्र
विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर द्वारा प्रकाशित सहयोगाधारित दोहा शतक मंजूषा के भाग २ 'दोहा सलिला निर्मला' में सम्मिलित होने के लिए मुझसे दोहा लेखन सीखकर श्याम ने मुझे गत ५ दशकों की शब्द साधना का पुरस्कार दिया है। सामान्यतः लोग सुख को एकाकी भोगते और दुख को बाँटते हैं किंतु श्याम अपवाद है। उसने नैकट्य के बावजूद अपने दर्द और संघर्ष को छिपाए रखा।इस कृति को पढ़ने पर ही मुझे विद्यार्थी श्याम में छिपे महामानव के जीवट की अनुभूति हुई।
इस एक संकलन में वस्तुत: तीन संकलनों की सामग्री समाविष्ट है। अशोक प्रियदर्शी ने ठीक ही कहा है कि श्याम की रचनाओं में विचार की एकतानता तथा कसावट है और कथन भंगिमा भी प्रवाही है। कोयलांचल ही नहीं देश के लब्धप्रतिष्ठ साहित्यकार हरेराम त्रिपाठी 'चेतन' के अनुसार 'रचनाकार अपनी सशक्त रचनाओं से अपने पूर्व की रचनाओं के मापदंडों को झाड़ता और उससे आगे की यात्रा को अधिक जिग्यासा पूर्ण बनाकर तने हुए सामाजिक तंतुओं में अधिक लचीलापन लाता है। मानव-मन की जटिलताओं के गझिन धागों को एक नया आकार देता है।'
इन रचनाओं से गुजरने हुए बार-बार यह अनुभूति होना कि किसी और को नहीं अपने आपको पढ़ रहा हूँ, अपने ही अनजाने मैं को पहचानने की दिशा में बढ़ रहा हूँ और शब्दों की माटी से समय की इबारत गढ़ रहा हूँ। मैं श्याम की जिजीविषा, जीवट, हिंदी प्रेम और रचनाधर्मिता को नमन करता हूँ।
हर हिंदी प्रेमी और सहृदय इंसान श्याम को जीवन संघर्ष का सहभागी और जीवट का साक्षी बन सकता है इस कृति को खरीद-पढ़कर। मैं श्याम के स्वस्थ्य शतायु जीवन की कामना करता हुए आगामी कृतियों की प्रतीक्षा करता हूँ।
***
संपर्क : विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन  जबलपुर ४८२००१, चलभाष ७९९९५५९६१८ ।
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बुधवार, 3 अप्रैल 2019

दोहा यमक, श्लेष, अनुप्रास

दोहा में अलंकार
खास-ख़ास बतला रहे, आया आम चुनाव।
ताव-भाव मत माँगते, मत दें भूख-अभाव।।
*
मिला भाग से भाग, गुणा-भाग कर भाग मत।
ले जो भाग सुभाग, उससे दूर न भागता।।
*
भाग = किस्मत, हिस्सा, हिसाब-किताब, दूर जाना, भाग लेना, सौभाग्य, अलग होता।
संवस, ३-४-२०१९
======
छंद सोरठा
अलंकार यमक
*
आ समान जयघोष, आसमान तक गुँजाया
आस मान संतोष, आ समा न कह कराया 
***
छंद सोरठा
अलंकार श्लेष
सूरज-नेता रोज, ऊँचाई पा तपाते
झुलस रहे हैं लोग, कर पूजा सर झुकाते
***
छंद दोहा
अलंकार वृत्यानुप्रास
*
अजर अमर अक्षर अजित, अविनाशी अमिताभ।
अचल अटल असुरारि अज, अलख अजल अजिताभ।।
***
अजय अभय अविकल अतुल, अविचल अतल असार।
अचर अनल अवसर अगम, अक्षु असर अबरार।।
***

संवस
१.४.२०१९
एक दोहा
*
सुन पढ़ सीख समझ जिसे, लिखा साल-दर साल।
एक निमिष में पढ़ लिया?, सचमुच किया कमाल।।
***
संवस
७९९९५५९६१८

 

कुण्डलिया चुनाव

कुण्डलिया
*
आवारा मन ने कहा, लड़ ले आम चुनाव
खास-खास हैं सड़क पर, सम हैं भाव-अभाव
सम हैं भाव-अभाव, माँग लो माँग न चूको
नोटा में मतदान, करो हर दल पर भूँको
अब तक ठगता रहा, ठगाया अब बेचारा
मन की कहे तरंग, न हो जन-गण बेचारा
***
कहता साहूकार क्यों, मैं हूँ चौकीदार?
स्वांग रचाकर चाहता, बना सके सरकार
बना सके सरकार, न चाहे चूके मौका
बुआ भतीजा मिले, लगाने फिर से चौका
भैया-बहिना संग, बंधु को बंधु न सहता
दगाबाज दे दगा, चोर औरों को कहता
***



संवस

वेदोक्त रात्रि सूक्त


।। वेदोक्त रात्रि सूक्त।। 
*
। ॐ रजनी! जग प्रकाशें, शुभ-अशुभ हर कर्म फल दें।
।। विश्व-व्यापें देवी अमरा,ज्योति से तम नष्ट कर दें।।
*
। रात्रि देवी! भगिनी ऊषा को प्रगट कर मिटा दें तम।
।। मुदित हों माँ पखेरू सम, नीड़ में जा सो सकें हम ।।
*
। मनुज, पशु, पक्षी, पतंगे, पथिक आंचल में सकें सो।
।। काम वृक वासना वृकी को, दूर कर सुखदायिनी हो।।
*
। घेरता अज्ञान तम है, उषा!ऋणवत दूर कर दो।
।। पयप्रदा गौ सदृश रजनी!, व्योमपुत्रि!! हविष्य ले लो।।

३.४.२०१७
***

दोहे पर्यावरण के

दोहे पर्यावरण के 
भारत की जय बोल
-- संजीव 'सलिल'
*
वृक्ष देव देते सदा, प्राणवायु अनमोल.
पौधारोपण कीजिए, भारत की जय बोल..
*
पौधारोपण से मिले, पुत्र-यज्ञ का पुण्य.
पेड़ काटने से अधिक, पाप नहीं है अन्य..
*
माँ धरती के लिये हैं, पत्ते वस्त्र समान.
आभूषण फल-फूल हैं, सर पर छत्र वितान..
*
तरु-हत्या दुष्कर्म है, रह नर इससे दूर.
पौधारोपण कर मिले, तुझे पुण्य भरपूर..
*
पेड़ कटे, वर्षा घटे, जल का रहे अभाव.
पशु-पक्षी हों नष्ट तो, धरती तप्त अलाव..
*
जीवनदाता जल सदा, उपजाता है पौध.
कलकल कलरव से लगे, सारी दुनिया सौध..
*
पौधे बढ़कर पेड़ हों, मिलें फूल,फल, नीड़.
फुदक-फुदक शुक-सारिका, नाचें देखें भीड़..
*
पेड़ों पर झूले लगें, नभ छू लो तुम झूल.
बसें देवता-देवियाँ. काटो मत तुम भूल..
*
पीपल में हरि, नीम में, माता करें निवास.
शिव बसते हैं बेल में, पूजो रख विश्वास..
*
दुर्गा को जासौन प्रिय, हरि को हरसिंगार.
गणपति चाहें दूब को, करिए सबसे प्यार..
*
शारद-लक्ष्मी कमल पर, 'सलिल' रहें आसीन.
पाट रहा तालाब नर, तभी हो रहा दीन..

३.४.२०१७
*************

त्रिपदियाँ



त्रिपदियाँ 
*
हर मंच अखाडा है 
लड़ने की कला गायब 
माहौल बिगाड़ा है. 
*
सपनों की होली में 
हैं रंग अनूठे ही 
सांसों की झोली में.
*
भावी जीवन के ख्वाब 
बिटिया ने देखे हैं 
महके हैं सुर्ख गुलाब 
*
चूनर ओढ़ी है लाल
सपने साकार हुए 
फिर गाल गुलाल हुए
*
मासूम हँसी प्यारी 
बिखरी यमुना तट पर
सँग राधा-बनवारी
*
पत्तों ने पतझड़ से 
बरबस सच बोल दिया 
अब जाने की बारी 
*
चुभने वाली यादें 
पूँजी हैं जीवन की 
ज्यों घर की बुनियादें 
*
देखे बिटिया सपने 
घर-आँगन छूट रहा
हैं कौन-कहाँअपने? 
* 
है कैसी अनहोनी?
सँग फूल लिये काँटे 
ज्यों गूंगे की बोली 
३.४.२०१६
***