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शनिवार, 23 जुलाई 2016

राष्ट्रीय शिक्षा नीति सुझाव

​प्रतिष्ठा
 में 
माननीय श्री प्रकाश जावड़ेकर जी
मानव संसाधन विकास मंत्री
भारत सरकार

​विषय- राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर सुझाव। 

मान्यवर 
           वंदे मातरम। 
० १. प्रकृति गर्भ से ही जीव को शिक्षित करना प्रारम्भ कर देती है। माता प्रथम गुरु होती है अत:,   माँ द्वारा उपयोग की जाती भाषा जातक की मातृभाषा होती जिसके शब्दों और उनके साथ जुडी संवेदना को शिशु गर्भ से ही पहचानने लगता है। विश्व के सभी शिक्षा-शास्त्री और मनोवैज्ञानिक एकमत हैं कि शिशु का शिक्षण मातृ भाषा में होना चाहिए। दुर्योगवश भारत में राजनैतिक स्वतंत्रता मिलने के तुरंत बाद अंग्रेजभक्त नेता, दल और प्रशासनिक अधिकारी सत्ता पर आ गए और मातृभाषा तथा राजभाषा उपेक्षित होकर पूर्व संप्रभुओं की आंग्ल भाषा शिक्षा पर थोप दी गयी। वर्तमान में सबसे पहली प्राथमिकता शिक्षा के माध्यम के रूप में पहला स्थान मातृभाषा फिर राज भाषा हिंदी को देना ही हो सकता है। अंग्रेजी का भाषिक आतंक यदि अब भी बना रहा तो वह भविष्य के लिए घातक और त्रासद होगा।

 ०२. शिक्षा की दो प्रणालियाँ शैशव से ही समाज को विभक्त कर देती हैं। अत:, निजी शिक्षण व्यवस्था को हतोत्साहित कर क्रमश; समाप्त किया जाए। राष्ट्रीय एकात्मकता के लिये भाषा, धर्म, क्षेत्र, लिंग या अभिभावक की आर्थिक स्थिति कुछ भी हो हर शिशु को एक समान शिक्षा प्राथमिक स्तर पर दी जाना अपरिहार्य है। इस स्तर पर मातृ भाषा, राजभाषा, गणित, सामान्य विज्ञान (प्रकृति, पर्यावरण, भौतिकी, रसायन आदि), सामान्य समाज शास्त्र (संविधान प्रदत्त अधिकारों व् कर्तव्यों की जानकारी, भारत की सभ्यता, संस्कृति, सर्व धर्म समभाव, राष्ट्रीयता, मानवता, वैश्विकता आदि), मनोरंजन (साहित्य, संगीत, नृत्य, खेल, योग, व्यायाम आदि), सामाजिक सहभागिता व समानता (परिवार, विद्यालय, ग्राम, नगर, राष्ट्र, विश्व के प्रति कर्तव्य) को केंद्र में रखकर दी जाए। बच्चे में शैशव से ही उत्तरदायित्व व् लैंगिक समानता का भाव विकसित हो तो बड़े होने पर उसका आचरण अनुशासित होगा और अनेक समस्याएँ जन्म ही न लेंगीं। 

०३. माध्यमिक शिक्षा का केंद्र बच्चे के प्रतिभा, रूचि, योग्यता, आवश्यकता और संसाधनों का आकलन कर उसे शिक्षा ग्रहण करने के क्षेत्र विशेष का चयन करने के लिए किया जाना चाहिए। प्राथमिक शिक्षा के विषयों में कुछ अधिक ज्ञान देने के साथ-साथ शारीरिक-मानसिक सबलता बढ़े तथा अभीष्ट दिशा का निर्धारण इसी स्तर पर हो तो कैशोर्य समाप्त होने तक बच्चे में उत्तरदायित्व के प्रति जागरूकता व् उत्सुकता होगी, साथ ही सामने एक लक्ष्य भी होगा। जिस बच्चे में किसी खेल विशेष की प्रतिभा हो उसे उस खेल विशेष का नियमित तथा विशिष्ट प्रशिक्षण उपलब्ध करा सकनेवाली संस्था में प्रवेश दे कर अन्य विषय पढ़ाए जाए। इसी तरह संगीत, कला, साहित्य, समाजसेवा, विज्ञान आदि की प्रतिभा पहचान कर स्वभाषा में शिक्षण दिया जाए। हर विद्यालय में स्काउट / गाइड हो ताकि बच्चों में चारित्रिक गुणों का विकास हो।  

०४. उच्चतर माध्यमिक स्तर पर हर बच्चे की प्रतिभा के अनुरूप क्षेत्र में उसे विशेष शिक्षण मिले। इस स्तर पर यह भी पहचान जाए कि किस विद्यार्थी में उच्च शिक्षा ग्रहण करने की पात्रता और चाहत है तथा कौन आजीविका अर्जन को प्राथमिकता देता है? जिन विद्यार्थियों में व्यावहारिक समझ अधिक और किताबी ज्ञान में रूचि कम हो उन्हें रोजगारपरक शिक्षा हेतु पॉलिटेक्निक और आई. आई. टी. में भेजा जाए जबकि किताबी ज्ञान में अधिक रूचि रखनेवाले विद्यार्थी स्नातक शिक्षा हेतु आगे जाएँ। हर विद्यार्थी में चारित्रिक विकास के लिए स्काउट / गाइड अनिवार्य हो।  

०५. विद्यार्थी स्नातक पाठ्यक्रम हेतु खुद विषय न चुने अपितु मनोवैज्ञानिक परीक्षण कर उसकी सामर्थ्य और उसमें छिपी सम्भावना का पूर्वानुमान कर उसे दिशा-दर्शन देकर उसके लिये सर्वाधिक उपयुक्त विषय, उस विषय के योग्यतम शिक्षक जिस संस्थान में हों वहाँ उसे प्रवेश दिया जाए। हर विद्यार्थी को एन. सी. सी. लेना अनिवार्य हो ताकि उसमें आत्मरक्षण, अनुशासन तथा चारित्रिक गुण विकसित हों।  आपदा अथवा संकट काल में वह अपनी और अन्यों की रक्षा करने के प्रति सजग हो।  

०६. शालेय शिक्षा की अंतिम परीक्षा में प्राप्त अंकों के आधार पर ही स्नातक कक्षाओं में प्रवेश हो। सभी चयन परीक्षाएँ तत्काल बंद कर दी जाएँ तो इन के आयोजन में व्यर्थ खर्च होनेवाली विशाल धनराशि, स्टेशनरी, कार्य घंटे, इनके आयोजन में हो रहा भ्रष्टाचार (उदाहरण व्यापम, बिहार का फर्जीवाड़ा आदि) अपने आप समाप्त हो जायेगा तथा अभिभावक को पैसों की दम पर अयोग्य को बढ़ाने का अवसर न मिलेगा। इससे शालेय स्तर पर गंभीरता से पढ़ने और अनुशासित रहने की प्रवृत्ति भी होगी।

०७. स्नातक स्तर पर विषय का अद्यतन ज्ञान देने के साथ-साथ विद्यार्थी की शोध क्षमता का आकलन हो। जिनकी रुचि व्यवसाय में हों वे इसी स्तर पर संबंधित विषय के प्रबंधन, कानूनों, बाज़ार, अवसरों और सामग्रियों आदि पर केंद्रित डिप्लोमा कर व्यवसाय में आ सकेंगे। इससे उच्च शिक्षा स्तर पर अयोग्य विद्यार्थियों की भीड़ कम होगी और योग्य विद्यार्थियों पर अधिक ध्यान दिया जा सकेगा।

०८. स्नातकोत्तर कक्षाओं में वही विद्यार्थी प्रवेश पायें जिन्हें शिक्षण अथवा शोध कार्य में रूचि हो। प्राथमिक, माध्यमिक, उच्चतर माध्यमिक, स्तर तक अध्यापन हेतु स्नातक शिक्षा तथा अध्यापन शास्त्र में विशेष शिक्षा आवश्यक हो। स्नातकोत्तर कक्षाओं में अध्यापन हेतु शोध उपाधि अपरिहार्य हो। 

०९ शोध निदेशक बनने हेतु शोध उपाधि के साथ पाँच वर्षीय अध्यापन अनुभव अनिवार्य हो जिसमें ७५% विद्यार्थी उच्च श्रेणी में उत्तीर्ण हुए हों।  

१०. तकनीकी (अभियांत्रिकी / चिकित्सा / कृषि ) शिक्षा- इन क्षेत्रों में उच्चतर माध्यमिक परीक्षा में प्राप्तांकों के आधार पर विद्यार्थी को प्रवेश दिया जाय। प्रतियोगिता परीक्षाएँ समाप्त की जाएँ ताकि विशाल धनराशि, लेखा सामग्री एवं ऊर्जा का अपव्यय और भ्रष्टाचार समाप्त हो। विद्यार्थियों को उपलब्ध स्थान के अनुसार  मनपसन्द शाखा तथा स्थान समाप्त होने पर उपलब्ध शाखा में प्रवेश लेना होगा। निजी अभियांत्रिकी महाविद्यालयों को शासन ने रियायती दर पर बहुमूल्य भूमि और अन्य सुविधाएँ उपलब्ध कराई हैं। इनके प्रबंधक प्राध्यापकों को न्यूनतम से काम पारिश्रमिक देकर उनका शोषण कर रहे हैं।  कम वेतन के कारण विषय के विद्वान् शिक्षक यहाँ नहीं हैं। औसत अंक लेकर उत्तीर्ण हुआ विषय का पूरा ज्ञान नहीं रखता तो वह विद्यार्थी को पूरा विषय कैसे पढ़ा सकता है? फलत: सा; दर साल अभियांत्रिकी उपाधिधारकों का स्तर निचे गिर रहा है। माननीय प्रधानमंत्री जी इस सन्दर्भ में कई बार चिंता व्यक्त कर चुके हैं। जिन निजी शैक्षणिक संस्थाओं के विद्यालय / महाविद्यालय घाटे में बताये जा रहे हैं उनसे शासन मूल कीमत देकर भूमि तथा वर्तमान मूल्यांकन के आधार पर भवन वापिस लेकर वहाँ अभियांत्रिकी या अन्य विषयों के शिक्षण संस्थान चलाए या भवनों का कार्यालय आदि के लिए उपयोग कर ले।   

१ १. तकनीकी शिक्षा का स्तर उठाने के लिये सभी परीक्षाएँ ऑन लाइन हों। प्रश्नों की संख्या अधिक रखी जाए ताकि नकल करना या प्रश्नोत्तरी किताबों से पढ़ने की प्रवृत्ति घटे और विषय की मुख्य पाठ्यपुस्तक से पूरी तरह पढ़े बिना उत्तीर्ण होना संभव न रहे। किसी विषय में शिक्षा प्राप्त युवा उसी क्षेत्र में सेवा या व्यापार कार्य करें। किसी पद के लिए निर्धारित से काम या अधिक योग्यता के उम्मीदवार विचारणीय न हों क्यों कि ऐसा न होने पर सामान योग्यताधारकों को समान अवसर के नैसर्गिक सिद्धांत का पालन नहीं हो पाता।  

१२. प्रशासनिक सेवाओं के अधिकारी तकनीकी क्षेत्र के कार्यों का प्रबंधन, मार्गदर्शन और नियंत्रण करते हैं इसलिए इन पदों के लिए तकनीकी शिक्षाधारी ही सुपात्र हैं। तकनीकी शिक्षा के पाठ्यक्रम में सम्बंधित विषय से जुड़े अथवा कार्यक्षेत्र में प्रयुक्त होनेवाले कानूनों, प्रबंधन शास्त्र, लेखा शास्त्र तथा प्रशासन कला से जुड़े प्रश्न पत्र जोड़े जाएँ ताकि तकनीकी स्नातक कार्य क्षेत्र में इनसे जुडी जिम्मेदारियों को सुचारू रूप से वहन कर सकें। तकनीकी उपाधि के समान्तर प्रबंधन और प्रशासन की उपाधि का अध्ययन कराया जा सकें तो ५ वर्ष की समयावधि में दो उपाधिधार युवक को अवसर प्राप्ति अधिक होगी।  

१३. शासकीय कार्य विभागों में ठेकेदारी हेतु अभियांत्रिकी में स्नातक होना अनिवार्य हो ताकि गैर तकनीकी ठरकेदारों से कार्य की गुणवत्ता न गिरे।

१४. अभियांत्रिकी पाठ्यक्रमों में मानक संहिताओं को सम्मिलित किया जाए। नेशनल बिल्डिंग कोड आदि विद्यार्थियों को रियायती मूल्य पर अनिवार्यत: दिए जाएँ।

१५. अभियंताओं की सर्वोच्च संस्थाओं इंस्टीट्यूशन ऑफ़ इंजीनियर्स, इन्डियन जियोटेक्निकल सोसायटी, इंडियन अर्थक्वैक सोसायटी आदि की मदद से पाठ्यक्रमों का पुनर्निर्धारण हो।  पूरे देश में एक समान पाठ्यक्रम हो। 

१६. इंस्टीट्यूशन ऑफ़ इंजीनियर्स के केंद्रों में सदस्य अनुभवी अभियंता होते हैं उनके कौशल और ज्ञान का उपयोग शासकीय योजनाओं के प्रस्ताव बनाने, कार्यों के पर्यवेक्षण, मूल्यांकन, संधारण आदि में किया जा सकता है। सेवानिवृत्त अभियंताओं की योग्यता का लाभ देश और समाज के लिये लिया जा सकता है। 

१७. प्राकृतिक आपदाओं तथा संकट काल का सामना करने  विशेष प्रविधियों की आवश्यकता होती है।  ऐसे समय में हर नागरिक की भूमिका महत्वपूर्ण तथा अन्यों की जीवन बचने में महत्वपूर्ण होती है। सभी पाठ्यक्रमों में आपदा प्रबंधन  तथा सामान्य स्वास्थ्य रक्षा सम्बन्धी सामग्री जोड़ी जाए। 

१८. सभी पाठ्यक्रमों में शिक्ष का माध्यम हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाएँ हों। अंग्रेजी की भूमिका क्रमश: समाप्त की जाए। 

मुझे आशा ही  विश्वास है की सुझवों पर विचार कर समुचित निर्णय लिए जायेंगे। इस सम्बन्ध में किसी भी प्रकार का सहयोग कर प्रसन्नता होगी।    

२२-७-२०१६                                                                                                एक नागरिक 
salil.sanjiv@gmail.com                                                        अभियंता संजीव वर्मा 'सलिल'
चलभाष ९४२५१८३२४४                                                                    अधिवक्ता उच्च न्यायालय मध्य प्रदेश 
समन्वयम २०४ विजय अपार्टमेंट, 
नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१

राष्ट्रीय शिक्षा नीति सुझाव

​प्रतिष्ठा
 में 
माननीय श्री प्रकाश जावड़ेकर जी
मानव संसाधन विकास मंत्री
भारत सरकार

​विषय- राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर सुझाव। 

मान्यवर 
           वंदे मातरम। 
० १. प्रकृति गर्भ से ही जीव को शिक्षित करना प्रारम्भ कर देती है। माता प्रथम गुरु होती है अत:,   माँ द्वारा उपयोग की जाती भाषा जातक की मातृभाषा होती जिसके शब्दों और उनके साथ जुडी संवेदना को शिशु गर्भ से ही पहचानने लगता है। विश्व के सभी शिक्षा-शास्त्री और मनोवैज्ञानिक एकमत हैं कि शिशु का शिक्षण मातृ भाषा में होना चाहिए। दुर्योगवश भारत में राजनैतिक स्वतंत्रता मिलने के तुरंत बाद अंग्रेजभक्त नेता, दल और प्रशासनिक अधिकारी सत्ता पर आ गए और मातृभाषा तथा राजभाषा उपेक्षित होकर पूर्व संप्रभुओं की आंग्ल भाषा शिक्षा पर थोप दी गयी। वर्तमान में सबसे पहली प्राथमिकता शिक्षा के माध्यम के रूप में पहला स्थान मातृभाषा फिर राज भाषा हिंदी को देना ही हो सकता है। अंग्रेजी का भाषिक आतंक यदि अब भी बना रहा तो वह भविष्य के लिए घातक और त्रासद होगा।

 ०२. शिक्षा की दो प्रणालियाँ शैशव से ही समाज को विभक्त कर देती हैं। अत:, निजी शिक्षण व्यवस्था को हतोत्साहित कर क्रमश; समाप्त किया जाए। राष्ट्रीय एकात्मकता के लिये भाषा, धर्म, क्षेत्र, लिंग या अभिभावक की आर्थिक स्थिति कुछ भी हो हर शिशु को एक समान शिक्षा प्राथमिक स्तर पर दी जाना अपरिहार्य है। इस स्तर पर मातृ भाषा, राजभाषा, गणित, सामान्य विज्ञान (प्रकृति, पर्यावरण, भौतिकी, रसायन आदि), सामान्य समाज शास्त्र (संविधान प्रदत्त अधिकारों व् कर्तव्यों की जानकारी, भारत की सभ्यता, संस्कृति, सर्व धर्म समभाव, राष्ट्रीयता, मानवता, वैश्विकता आदि), मनोरंजन (साहित्य, संगीत, नृत्य, खेल, योग, व्यायाम आदि), सामाजिक सहभागिता व समानता (परिवार, विद्यालय, ग्राम, नगर, राष्ट्र, विश्व के प्रति कर्तव्य) को केंद्र में रखकर दी जाए। बच्चे में शैशव से ही उत्तरदायित्व व् लैंगिक समानता का भाव विकसित हो तो बड़े होने पर उसका आचरण अनुशासित होगा और अनेक समस्याएँ जन्म ही न लेंगीं। 

०३. माध्यमिक शिक्षा का केंद्र बच्चे के प्रतिभा, रूचि, योग्यता, आवश्यकता और संसाधनों का आकलन कर उसे शिक्षा ग्रहण करने के क्षेत्र विशेष का चयन करने के लिए किया जाना चाहिए। प्राथमिक शिक्षा के विषयों में कुछ अधिक ज्ञान देने के साथ-साथ शारीरिक-मानसिक सबलता बढ़े तथा अभीष्ट दिशा का निर्धारण इसी स्तर पर हो तो कैशोर्य समाप्त होने तक बच्चे में उत्तरदायित्व के प्रति जागरूकता व् उत्सुकता होगी, साथ ही सामने एक लक्ष्य भी होगा। जिस बच्चे में किसी खेल विशेष की प्रतिभा हो उसे उस खेल विशेष का नियमित तथा विशिष्ट प्रशिक्षण उपलब्ध करा सकनेवाली संस्था में प्रवेश दे कर अन्य विषय पढ़ाए जाए। इसी तरह संगीत, कला, साहित्य, समाजसेवा, विज्ञान आदि की प्रतिभा पहचान कर स्वभाषा में शिक्षण दिया जाए। हर विद्यालय में स्काउट / गाइड हो ताकि बच्चों में चारित्रिक गुणों का विकास हो।  

०४. उच्चतर माध्यमिक स्तर पर हर बच्चे की प्रतिभा के अनुरूप क्षेत्र में उसे विशेष शिक्षण मिले। इस स्तर पर यह भी पहचान जाए कि किस विद्यार्थी में उच्च शिक्षा ग्रहण करने की पात्रता और चाहत है तथा कौन आजीविका अर्जन को प्राथमिकता देता है? जिन विद्यार्थियों में व्यावहारिक समझ अधिक और किताबी ज्ञान में रूचि कम हो उन्हें रोजगारपरक शिक्षा हेतु पॉलिटेक्निक और आई. आई. टी. में भेजा जाए जबकि किताबी ज्ञान में अधिक रूचि रखनेवाले विद्यार्थी स्नातक शिक्षा हेतु आगे जाएँ। हर विद्यार्थी में चारित्रिक विकास के लिए स्काउट / गाइड अनिवार्य हो।  

०५. विद्यार्थी स्नातक पाठ्यक्रम हेतु खुद विषय न चुने अपितु मनोवैज्ञानिक परीक्षण कर उसकी सामर्थ्य और उसमें छिपी सम्भावना का पूर्वानुमान कर उसे दिशा-दर्शन देकर उसके लिये सर्वाधिक उपयुक्त विषय, उस विषय के योग्यतम शिक्षक जिस संस्थान में हों वहाँ उसे प्रवेश दिया जाए। हर विद्यार्थी को एन. सी. सी. लेना अनिवार्य हो ताकि उसमें आत्मरक्षण, अनुशासन तथा चारित्रिक गुण विकसित हों।  आपदा अथवा संकट काल में वह अपनी और अन्यों की रक्षा करने के प्रति सजग हो।  

०६. शालेय शिक्षा की अंतिम परीक्षा में प्राप्त अंकों के आधार पर ही स्नातक कक्षाओं में प्रवेश हो। सभी चयन परीक्षाएँ तत्काल बंद कर दी जाएँ तो इन के आयोजन में व्यर्थ खर्च होनेवाली विशाल धनराशि, स्टेशनरी, कार्य घंटे, इनके आयोजन में हो रहा भ्रष्टाचार (उदाहरण व्यापम, बिहार का फर्जीवाड़ा आदि) अपने आप समाप्त हो जायेगा तथा अभिभावक को पैसों की दम पर अयोग्य को बढ़ाने का अवसर न मिलेगा। इससे शालेय स्तर पर गंभीरता से पढ़ने और अनुशासित रहने की प्रवृत्ति भी होगी।

०७. स्नातक स्तर पर विषय का अद्यतन ज्ञान देने के साथ-साथ विद्यार्थी की शोध क्षमता का आकलन हो। जिनकी रुचि व्यवसाय में हों वे इसी स्तर पर संबंधित विषय के प्रबंधन, कानूनों, बाज़ार, अवसरों और सामग्रियों आदि पर केंद्रित डिप्लोमा कर व्यवसाय में आ सकेंगे। इससे उच्च शिक्षा स्तर पर अयोग्य विद्यार्थियों की भीड़ कम होगी और योग्य विद्यार्थियों पर अधिक ध्यान दिया जा सकेगा।

०८. स्नातकोत्तर कक्षाओं में वही विद्यार्थी प्रवेश पायें जिन्हें शिक्षण अथवा शोध कार्य में रूचि हो। प्राथमिक, माध्यमिक, उच्चतर माध्यमिक, स्तर तक अध्यापन हेतु स्नातक शिक्षा तथा अध्यापन शास्त्र में विशेष शिक्षा आवश्यक हो। स्नातकोत्तर कक्षाओं में अध्यापन हेतु शोध उपाधि अपरिहार्य हो। 

०९ शोध निदेशक बनने हेतु शोध उपाधि के साथ पाँच वर्षीय अध्यापन अनुभव अनिवार्य हो जिसमें ७५% विद्यार्थी उच्च श्रेणी में उत्तीर्ण हुए हों।  

१०. तकनीकी (अभियांत्रिकी / चिकित्सा / कृषि ) शिक्षा- इन क्षेत्रों में उच्चतर माध्यमिक परीक्षा में प्राप्तांकों के आधार पर विद्यार्थी को प्रवेश दिया जाय। प्रतियोगिता परीक्षाएँ समाप्त की जाएँ ताकि विशाल धनराशि, लेखा सामग्री एवं ऊर्जा का अपव्यय और भ्रष्टाचार समाप्त हो। विद्यार्थियों को उपलब्ध स्थान के अनुसार  मनपसन्द शाखा तथा स्थान समाप्त होने पर उपलब्ध शाखा में प्रवेश लेना होगा। निजी अभियांत्रिकी महाविद्यालयों को शासन ने रियायती दर पर बहुमूल्य भूमि और अन्य सुविधाएँ उपलब्ध कराई हैं। इनके प्रबंधक प्राध्यापकों को न्यूनतम से काम पारिश्रमिक देकर उनका शोषण कर रहे हैं।  कम वेतन के कारण विषय के विद्वान् शिक्षक यहाँ नहीं हैं। औसत अंक लेकर उत्तीर्ण हुआ विषय का पूरा ज्ञान नहीं रखता तो वह विद्यार्थी को पूरा विषय कैसे पढ़ा सकता है? फलत: सा; दर साल अभियांत्रिकी उपाधिधारकों का स्तर निचे गिर रहा है। माननीय प्रधानमंत्री जी इस सन्दर्भ में कई बार चिंता व्यक्त कर चुके हैं। जिन निजी शैक्षणिक संस्थाओं के विद्यालय / महाविद्यालय घाटे में बताये जा रहे हैं उनसे शासन मूल कीमत देकर भूमि तथा वर्तमान मूल्यांकन के आधार पर भवन वापिस लेकर वहाँ अभियांत्रिकी या अन्य विषयों के शिक्षण संस्थान चलाए या भवनों का कार्यालय आदि के लिए उपयोग कर ले।   

१ १. तकनीकी शिक्षा का स्तर उठाने के लिये सभी परीक्षाएँ ऑन लाइन हों। प्रश्नों की संख्या अधिक रखी जाए ताकि नकल करना या प्रश्नोत्तरी किताबों से पढ़ने की प्रवृत्ति घटे और विषय की मुख्य पाठ्यपुस्तक से पूरी तरह पढ़े बिना उत्तीर्ण होना संभव न रहे। किसी विषय में शिक्षा प्राप्त युवा उसी क्षेत्र में सेवा या व्यापार कार्य करें। किसी पद के लिए निर्धारित से काम या अधिक योग्यता के उम्मीदवार विचारणीय न हों क्यों कि ऐसा न होने पर सामान योग्यताधारकों को समान अवसर के नैसर्गिक सिद्धांत का पालन नहीं हो पाता।  

१२. प्रशासनिक सेवाओं के अधिकारी तकनीकी क्षेत्र के कार्यों का प्रबंधन, मार्गदर्शन और नियंत्रण करते हैं इसलिए इन पदों के लिए तकनीकी शिक्षाधारी ही सुपात्र हैं। तकनीकी शिक्षा के पाठ्यक्रम में सम्बंधित विषय से जुड़े अथवा कार्यक्षेत्र में प्रयुक्त होनेवाले कानूनों, प्रबंधन शास्त्र, लेखा शास्त्र तथा प्रशासन कला से जुड़े प्रश्न पत्र जोड़े जाएँ ताकि तकनीकी स्नातक कार्य क्षेत्र में इनसे जुडी जिम्मेदारियों को सुचारू रूप से वहन कर सकें। तकनीकी उपाधि के समान्तर प्रबंधन और प्रशासन की उपाधि का अध्ययन कराया जा सकें तो ५ वर्ष की समयावधि में दो उपाधिधार युवक को अवसर प्राप्ति अधिक होगी।  

१३. शासकीय कार्य विभागों में ठेकेदारी हेतु अभियांत्रिकी में स्नातक होना अनिवार्य हो ताकि गैर तकनीकी ठरकेदारों से कार्य की गुणवत्ता न गिरे।

१४. अभियांत्रिकी पाठ्यक्रमों में मानक संहिताओं को सम्मिलित किया जाए। नेशनल बिल्डिंग कोड आदि विद्यार्थियों को रियायती मूल्य पर अनिवार्यत: दिए जाएँ।

१५. अभियंताओं की सर्वोच्च संस्थाओं इंस्टीट्यूशन ऑफ़ इंजीनियर्स, इन्डियन जियोटेक्निकल सोसायटी, इंडियन अर्थक्वैक सोसायटी आदि की मदद से पाठ्यक्रमों का पुनर्निर्धारण हो।  पूरे देश में एक समान पाठ्यक्रम हो। 

१६. इंस्टीट्यूशन ऑफ़ इंजीनियर्स के केंद्रों में सदस्य अनुभवी अभियंता होते हैं उनके कौशल और ज्ञान का उपयोग शासकीय योजनाओं के प्रस्ताव बनाने, कार्यों के पर्यवेक्षण, मूल्यांकन, संधारण आदि में किया जा सकता है। सेवानिवृत्त अभियंताओं की योग्यता का लाभ देश और समाज के लिये लिया जा सकता है। 

१७. प्राकृतिक आपदाओं तथा संकट काल का सामना करने  विशेष प्रविधियों की आवश्यकता होती है।  ऐसे समय में हर नागरिक की भूमिका महत्वपूर्ण तथा अन्यों की जीवन बचने में महत्वपूर्ण होती है। सभी पाठ्यक्रमों में आपदा प्रबंधन  तथा सामान्य स्वास्थ्य रक्षा सम्बन्धी सामग्री जोड़ी जाए। 

१८. सभी पाठ्यक्रमों में शिक्ष का माध्यम हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाएँ हों। अंग्रेजी की भूमिका क्रमश: समाप्त की जाए। 

मुझे आशा ही  विश्वास है की सुझवों पर विचार कर समुचित निर्णय लिए जायेंगे। इस सम्बन्ध में किसी भी प्रकार का सहयोग कर प्रसन्नता होगी।    

२२-७-२०१६                                                                                                एक नागरिक 
salil.sanjiv@gmail.com                                                        अभियंता संजीव वर्मा 'सलिल'
चलभाष ९४२५१८३२४४                                                                    अधिवक्ता उच्च न्यायालय मध्य प्रदेश 
समन्वयम २०४ विजय अपार्टमेंट, 
नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१

ahir chhand

रसानंद दे छंद नर्मदा 
​ 
​४० 
 
 : 
​अहीर 
छन्द
 
 


​दोहा, ​सोरठा, रोला, ​आल्हा, सार​,​ ताटंक, रूपमाला (मदन), चौपाई​, ​हरिगीतिका, उल्लाला​,गीतिका,​घनाक्षरी, बरवै, त्रिभंगी, सरसी, छप्पय, भुजंगप्रयात, कुंडलिनी, सवैया, शोभन या सिंहिका, सुमित्र, सुगीतिका, शंकर, मनहरण (कवित्त/घनाक्षरी), उपेन्द्रव
ज्रा
, इंद्रव
​​
ज्रा, 
सखी
​,
 
वासव
​, 
अचल धृति
​,  
अचल
​, अनुगीत, अहीर 
छंदों से साक्षात के पश्चात् मिलिए​ 
​​
​         
छंद
 ​से
 
Rose  अहीर छंद 

लक्षण: जाति रौद्र, पद २, चरण ४, प्रति चरण मात्रा ११, चरणान्त लघु गुरु लघु (जगण).

लक्षण छंद:

चाहे राँझ अहीर, बाला सुन्दर हीर 


लघु गुरु लघु चरणांत, संग रहे नत शांत   

पूजें ग्यारह रूद्र, कोशिश लँघे समुद्र 

जल-थल-नभ में घूम, लक्ष्य सके पद चूम 

उदाहरण:

१. सुर नर संत फ़क़ीर, कहें न कौन अहीर?

   आत्म-ग्वाल तज धेनु, मन-प्रयास रस-वेणु  

   प्रकृति-पुरुष सम संग, रचे सृष्टि कर दंग 

   ग्यारह हों जब एक, मानो जगा विवेक      

२. करो संग मिल काम, तब ही हो यश-नाम 

    भले रहे विधि वाम, रखना साहस थाम 

    सुबह दोपहर शाम, रचना छंद ललाम 

    कर्म करें बिन लोभ, सह परिणाम
    
३. पूजें ग्यारह रूद्र, मन में रखकर भक्ति 

    जनगण-शक्ति समुद्र, दे अनंत अनुरक्ति

    लघु-गुरु-लघु रह शांत, रच दें छंद अहीर

    रखता उन्नत माथ, खाली हाथ फ़क़ीर 

********

शुक्रवार, 22 जुलाई 2016

नवगीत

एक रचना 
कारे बदरा 
*
आ रे कारे बदरा
*
टेर रही धरती तुझे 
आकर प्यास बुझा 
रीते कूप-नदी भरने की 
आकर राह सुझा 
ओ रे कारे बदरा 
*
देर न कर अब तो बरस 
बजा-बजा तबला 
बिजली कहे न तू गरज 
नारी है सबला 
भा रे कारे बदरा 
*
लहर-लहर लहरा सके 
मछली के सँग झूम 
बीरबहूटी दूब में 
नाचे भू को चूम 
गा रे कारे बदरा 
*
लाँघ न सीमा बेरहम 
धरा न जाए डूब  
दुआ कर रहे जो वही 
मनुज न जाए ऊब 
जा रे कारे बदरा 
*
हरा-भरा हर पेड़ हो 
 नगमे सुना हवा 
'सलिल' बूंद नर्तन करे  
गम की बने दवा
छा रे कारे बदरा
*****

दोहा यमक १

दोहा-यमक
*
गले मिले दोहा यमक, गणपति दें आशीष।
हो समृद्ध गणतंत्र यह, गणपति बने मनीष।।
*
वीणावादिनि शत नमन, साध सकूं कुछ राग ।
वीणावादिनि है विनत, मन में ले अनुराग। ।
*
अक्षर क्षर हो दे रहा, क्षर अक्षर ज्ञान।
शब्द ब्रह्म को नमन कर, भव तरते मतिमान।।
*
चित्र गुप्त है चित्र में, देख सके तो देख।
चित्रगुप्त प्रति प्रणत हो, अमिट कर्म का लेख।।
*
दोहा ने दोहा सदा, भाषा गौ को मीत।
गीत प्रीत के गुँजाता, दोहा रीत पुनीत।।
*
भेंट रहे दोहा-यमक, ले हाथों में हार।
हार न कोई मानता, प्यार हुआ मनुहार।।
*
नीर क्षीर दोहा यमक, अर्पित पिंगल नाग।
बीन छंद, लय सरस धुन, झूम उठे सुन नाग।।
*
गले मिले दोहा-यमक, झपट झपट-लिपट चिर मीत।
गले भेद के हिम शिखर, दमके ऐक्य पुनीत।।
*
ग्यारह-तेरह यति रखें, गुरु-लघु हो पद अंत।
जगण निषिद्ध पदादि में, गुरु-लघु सम यति संत।।
*
ना हक हक ना त्याग तू, ना हक पीछे भाग।
ना मन में अनुराग रख, ना तन में बैराग।।
*
ना हक की तू माँग कर, कर पहले कर कर्तव्य।
नाहक भूला आज को, सोच रहा भवितव्य।।
*

गुरुवार, 21 जुलाई 2016

नवगीत

दोहा - सोरठा गीत
पानी की प्राचीर
*
आओ! मिलकर बचाएँ,
पानी की प्राचीर।
पीर, बाढ़ - सूखा जनित 
हर, कर दे बे-पीर।।
*
रखें बावड़ी साफ़,
गहरा कर हर कूप को।
उन्हें न करिये माफ़,
जो जल-स्रोत मिटा रहे।।

चेतें, प्रकृति का कहीं,
कहर न हो, चुक धीर।
आओ! मिलकर बचाएँ,
पानी की प्राचीर।।
*
सकें मछलियाँ नाच,
पोखर - ताल भरे रहें।
प्रणय पत्रिका बाँच,
दादुर कजरी गा सकें।। 

मेघदूत हर गाँव को,
दे बारिश का नीर।
आओ! मिलकर बचाएँ,
पानी की प्राचीर।।
*
पर्वत - खेत  - पठार पर
हरियाली हो खूब।
पवन बजाए ढोलकें,
हँसी - ख़ुशी में डूब।।

चीर अशिक्षा - वक्ष दे ,
जन शिक्षा का तीर।
आओ मिलकर बचाएँ,
पानी की प्राचीर।।
***
२०-७-२०१६
-----------------

navgeet

सोरठा - दोहा गीत
संबंधों की नाव
*
संबंधों की नाव,
पानी - पानी हो रही।
अनचाहा अलगाव,
नदी-नाव-पतवार में।।
*
स्नेह-सरोवर सूखते,
बाकी गन्दी कीच।
राजहंस परित्यक्त हैं,
पूजते कौए नीच।।

नहीं झील का चाव,
सिसक रहे पोखर दुखी।
संबंधों की नाव,
पानी - पानी हो रही।।
*
कुएँ - बावली में नहीं,
शेष रहा विश्वास।
निर्झर आवारा हुआ,
भटके ले निश्वास।।

घाट घात कर मौन,
दादुर - पीड़ा अनकही।
संबंधों की नाव,
पानी - पानी हो रही।।
*
ताल - तलैया से जुदा,
देकर तीन तलाक।
जलप्लावन ने कर दिया,
चैनो - अमन हलाक।।

गिरि खोदे, वन काट
मानव ने आफत गही।
संबंधों की नाव,
पानी - पानी हो रही।।  
 ***
२०-७-२०१६
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बुधवार, 20 जुलाई 2016

राष्ट्रीय शिक्षा नीति

आदरणीय प्रकाश जावड़ेकर जी 
मानव संसाधन विकास मंत्रालय,
पता: 301, सी-विंग, शास्त्री भवन, 
नयी दिल्ली-110-001
महोदय 
वंदे भारत-भारती। 
नई प्रस्तावित राष्ट्रीय शिक्षा नीति के संदर्भ में सादर निवेदन है कि-
१.सामान्यत: शिक्षा का माध्यम भाषा तथा लक्ष्य आजीविका तथा ज्ञान प्राप्ति होता है। 
२. शिक्षा नीति पर विचार के पूर्व भाषा नीति निर्धारित होना अपरिहार्य है। अलग-अलग जन समूहों के दैनन्दिन जीवन की आवश्यकताओं के अनुसार भाषा क्रमश: विकसित और प्रयुक्त होती है। किसी जन समूह के लिए कोेेई विदेशी भाषा अपरिहार्य और अनन्तिम कदापि नहीं हो सकती। दुर्भाग्य से पूर्व सरकारों ने त्रिभाषा फार्मूला ईमानदारी से लागू नहीं किया और राजनैतिक हित साधने के लिए स्थानीय बोलिओं और भाषाओँ विशेषकर राष्ट्र भाषा हिंदी के मध्य जनमानस को गुमराह कर टकराव उत्पन्न किया। वर्तमान समय में जबकि केंद्र तथा अधिकांश बड़े प्रदेशों में जननायक नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में राष्ट्रीय विचारधारा परक सरकारें जनता ने विशाल बहुमत से बना दी हैं, यह अपेक्षा स्वाभाविक है कि प्राथमिक स्तर से शोध स्तर तक हर विषय की पढ़ाई राजभाषा और विश्व वाणी हिंदी में हो। 
इसके लिए विधा और विषय वार पाठ्यक्रमानुसार पुस्तकें तैयार करने, तकनीकी शब्द कोष बनाने, आवश्यकतानुसार शब्द ग्रहण या अन्य भाषाओँ के शब्द ग्रहण करने के लिए इच्छुक तथा योग्य व्यक्तियों को अवसर देकर उनका सहयोग लिया जाए। 
३. आगामी शिक्षा सत्र से पूरी शिक्षा राजभाषा हिंदी में देने का लक्ष्य लेकर सभी महाविद्यालयों में युद्ध स्तर पर तैयारी हो। आरम्भ में हिंदी, अंग्रेजी तथा स्थानीय बोली / भाषाओँ का मिश्रित रुप भी हो तो कोई हानि नहीं है। 
४. शिक्षा को व्यसायपरक बनाया जाए, जिन पाठ्यक्रमों में आजीविका प्रदाय क्षमता नहीं है उन्हें तत्काल बंद कर नए रोजगारपरक पाठ्यक्रम बनाए जाएँ। सामान्य स्नातक पाठ्यक्रम समाप्त कर उसके स्थान पर रोजगारपरक तकनीकी डिप्लोमा डिग्री पाठ्यक्रम हों। इन विषयों के प्राध्यापकों / शिक्षकों को अल्पावधिक प्रशिक्षण देकर नए विषयों को पढ़ाने योग्य बनाया जाए। 
५. प्रदेशों में निजी महाविद्यालयों (विशेषकर अभियांत्रिकी महाविद्यालयों) को बेशकीमती भूमि जनशिक्षा हेतु नाम मात्र के मूल्य पर दी गई जिन पर विद्यार्थियों की शिाक्षणिक शुल्क का उपयोग कर न केवल विशाल भवन बन लिए गए अपितु करोड़ों रुपयों की कमाई भी कर ली गयी है। अब भूमि के मूल्य बढ़ने के कारन उस पर आवासीय मकान बनकर बेचने में बहुत अधिक लाभ है। इसलिए अनेक महाविद्यालय प्रबंधक लगातार हानि दर्शा कर महाविद्यालय बंद कर उस भूमि का उपयोग अन्य कार्यों में कर कमाई करना चाहते हैं भले ही उससे सामान्य जनों के बच्चे शिक्षा अवसरों से वंचित हों। 
इस षड्यंत्र को निष्प्रभावी करने का एक ही उपपय है कि नीति यह हो कि शिक्षा कार्य हेतु दी गयी जमीन तथा उस पर बना भवन शिक्षा कार्य रोकते ही शासन आरम्भ काल में दी गयी राशि लौटाकर राजसात कर ले तथा उसमें शासकीय शिक्षा संस्थान आरम्भ किये जाएँ। 
६. चिकित्सा तथा यांत्रिकी शिक्षा के प्रथम सेमिस्टर की पुस्तकें ३ माह में भारतीय चिकित्षा परिषद तथा इंस्टीट्यूशन ऑफ़ इंजीनियर्स् जैसी संस्थाओं के सहयोग से तैयार कर हर स्तर में एक-एक सेमिस्टर आगे हिंदी माध्यम किया जाए। 
७. कृषि तथा ग्रामीण अंचलों की आवश्यकता तथा उपलब्ध संसाधनों नुसार लघु उद्योगों की स्थापना और सफलता हेतु आवश्यक जानकारीपरक पाठ्यक्रम बनाए जाएँ जबकि अनुपयोगी विषयों में उपाधि पाठ्यक्रम समाप्त हों। 
८. सरकार दृढ़ इच्छाशक्ति रखकर 'इंडिया' नाम का विलोप कर 'भारत' नाम का प्रचलन कराए ताकि इन जन सामान्य गुलामी की भावना से मुक्त हो सके। 
९. हर प्रदेश में अन्य प्रदेशों की भाषाएँ सीखने के व्यापक प्रबंध हों ताकि भाषिक विरोध का वातावरण समाप्त हो। 
आशा है सुझावों पर विचार कर सम्यक निर्णय लिए जायेंगे। 
सधन्यवाद 
एक नागरिक संदेश में फोटो देखें
अभियंता संजीव वर्मा 'सलिल' 
चेयरमैन जबलपुर चैप्टर 
इन्डियन जिओटेक्निकल सोसायटी 
समन्वयम, २०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१ 
salil.sanjiv@gmail.com, ९४२५१ ८३२२४४

मुक्तिका

एक रचना
*
दर्दे सर, दर्दे जिगर, दर्दे कमर दे दर्दे दिल
या खुदाया शायरा का संग भी इस बार दे।।
जो लिखे, सुन दाद देकर दर्द सारे सह सकूँ
पीर जाए हार, वह चितवन का ऐसा वार दे ।।
प्राण-मन खुशबू से जाए भीग, दे मदहोशियाँ
एक तो दे-दे कली, बाकी सभी गर खार दे।।
दहशतें भी ज़िंदगी का एक हिस्सा हों अगर
एक हिस्सा शहादत कर दे अता, उपहार दे।।
नाव ले-ले, छीन ले पतवार कोई गम नहीं
मुझ 'सलिल' को नर्मदा के घाट बहती धार दे।।
***
(प्रथम पंक्ति गीता वर्मा)

doha

दोहा मुक्तिका

*
भ्रम-शंका को मिटाकर, जो दिखलाये राह 

उसको ही गुरु मानकर, करिये राय-सलाह 
*

हर दिन नया न खोजिए, गुरु- न बदलिए राह

मन श्रृद्धा-विश्वास बिन, भटके भरकर आह 
*  

करें न गुरु की सीख की, शिष्य अगर परवाह

गुरु क्यों अपना मानकर, हरे चित्त की दाह?
*

सुबह शिष्य- संध्या बने, जो गुरु वे नरनाह  

अपने ही गुरु से करें, स्वार्थ-सिद्धि हित डाह
*

उषा गीत, दुपहर ग़ज़ल, संध्या छंद अथाह  

व्यंग्य-लघुकथा रात में, रचते बेपरवाह
*

एक दिवस क्यों? हर दिवस, गुरु की गहे पनाह

जो उसकी शंका मिटे, हो शिष्यों में शाह
*
नेह-नर्मदा धार सम, गुरु की करिए चाह
दीप जलाकर ज्ञान का, उजियारे अवगाह
***
एक दोहा-
गुरुघंटालों से रहें, सजग- न थामें बाँह

गुरु हो गुरु-गंभीर तो, गहिए बढ़कर छाँह
*

रविवार, 17 जुलाई 2016

janak chhand

जनक छन्द सलिला 
*
श्याम नाम जपिए 'सलिल'
काम करें निष्काम ही 
मत कहिये किस्मत बदा 
*
आराधा प्रति पल सतत
जब राधा ने श्याम को
बही भक्ति धारा प्रबल
*
श्याम-शरण पाता वही
जो भजता श्री राम भी
दोनों हरि-अवतार हैं
*
श्याम न भजते पहनते
नित्य श्याम परिधान ही
उनके मन भी श्याम हैं
*
काला कोट बदल करें
श्वेत, श्याम परिधान को
न्याय तभी जन को मिले
*
शपथ उठाते पर नहीं
रखते गीता याद वे
मिथ्या साक्षी जो बने
*
आँख बाँध तौले वज़न
तब देता है न्याय जो
न्यायालय कैसे कहें?
******
(तेरह मात्रिक भागवत जातीय जनक छंद, पदांत बंधन नहीं)

anugeet chhand

रसानंद दे छंद नर्मदा ३८ : छन्द

दोहा, सोरठा, रोला, आल्हा, सार, ताटंक, रूपमाला (मदन), चौपाई, हरिगीतिका, उल्लाला,गीतिका,घनाक्षरी, बरवै, त्रिभंगी, सरसी, छप्पय, भुजंगप्रयात, कुंडलिनी, सवैया, शोभन या सिंहिका, सुमित्र, सुगीतिका, शंकर, मनहरण (कवित्त/घनाक्षरी), उपेन्द्रवज्रा, इंद्रवज्रा, सखी, वासव, अचल धृति, अचल छंदों से साक्षात के पश्चात् मिलिए अनुगीत छंद से
अनुगीत छंद
संजीव
*
छंद लक्षण: जाति महाभागवत, प्रति पद २६ मात्रा,
यति१६-१०, पदांत लघु
लक्षण छंद:
अनुगीत सोलह-दस कलाएँ , अंत लघु स्वीकार
बिम्ब रस लय भाव गति-यतिमय , नित रचें साभार
उदाहरण:
१. आओ! मैं-तुम नीर-क्षीरवत , एक बनें मिलकर
देश-राह से शूल हटाकर , फूल रखें चुनकर
आतंकी दुश्मन भारत के , जा न सकें बचकर
गढ़ पायें समरस समाज हम , रीति नयी रचकर
२. धर्म-अधर्म जान लें पहलें , कर्तव्य करें तब
वर्तमान को हँस स्वीकारें , ध्यान धरें कल कल
किलकिल की धारा मोड़ें हम , धार बहे कलकल
कलरव गूँजे दसों दिशा में , हरा रहे जंगल
३. यातायात देखकर चलिए , हो न कहीं टक्कर
जान बचायें औरों की , खुद आप रहें बचकर
दुर्घटना त्रासद होती है , सहें धीर धरकर
पीर-दर्द-दुःख मुक्त रहें सब , जीवन हो सुखकर
*********

व्यंग्य लेख

व्यंग्य लेख-
अभियांत्रिकी शिक्षा और जुमलालॉजी 
*
                 आजकल अभियांत्रिकी शिक्षा पर गर्दिश के बादल छाये हैं। अच्छी-खासी अभियांत्रिकी शिक्षा को गरीब की लुगाई, गाँव की भौजाई समझ कर प्रशासनिक और राजनैतिक देवरों ने दिनदहाड़े रेपते हुए उच्चतर माध्यमिक शिक्षा की अंक सूची के आधार पर हो रहे चयन रूपी पति से तीन तलाक दिलाये बिना पहले पूर्व अभियांत्रिकी परीक्षा (पी. ई. टी.) नाम के गाहक और बाद में व्यापम नामक दलाल के हवाले कर दिया। फलतः, सती सावित्री की बोली लगनी आरम्भ हो गयी। कुएँ में भाग घुली हो तो गाँव में होश किसे और कैसे हो सकता है? गैर तो गैर अपने भी तकनीकी शिक्षा संस्थानों का चकलाघर खोलकर लीलावती रूपी छात्रवृत्ति और कलावती रूपी उपाधि खरीदने-बेचने में संलग्न होते भए।

                 हम तो परंपरा प्रेमी हैं। द्रौपदी का चीर-हरण होता हो तो नेत्रहीन धृतराष्ट्र में भी कुछ न कुछ देख लेने की चाह पैदा हो जाती है। ब्रह्चारी भीष्म भी निगाहें झुकी होने का प्रदर्शन कर, दर्शन करने से नहीं चूकते। द्रोणाचार्य और कृपाचार्य जैसे ब्रम्हविद असार संसार में सार खोजते हुए, कण-कण में भगवान् की उपस्थिति का साक्ष्य चीरधारिणी में पाने का प्रयास करें तो उनकी तापस प्रवृत्ति पर तामस होने का संदेह करना सरासर गलत है। और तो और विरागी विदुर और सुरागी शकुनि भी बहती गंगा में हाथ धोनेवालों में सम्मिलित रहे आते हैं किसी प्रकार का प्रतिकार नहीं करते।
                 आज के अखबार में खबर है कि राजस्थान के एक विद्यालय की तीन छात्राओं ने अपनी ही कक्षा की चौथी छात्रा को रैगिंग का विरोध करने पर मार-पीटकर चीयर हरण कांड को सफलतापूर्वक संपन्न किया।यह ट्रीट तो है नहीं की कोई कृष्ण बिना आधार कार्ड देखे चीर वृद्धि कर पीड़िता की रक्षा करे। संभवत: ये होनहार छात्राएँ परंपरा प्रेमी हैं। दुर्योधन, दुःशासन और कर्ण रूपी तीनों छात्राएँ भली-भाँति जानती हैं कि अभिभावक रूपी धृतराष्ट्र, प्रबंधन रूपी भीष्म और और विदुर रूपी प्रशासन चिल्ल पों के अलावा कुछ नहीं कर सकते। यह भी की नेत्रहीन पति की आँखें बनने के स्थान पर अपनी आँखों पर पट्टी बाँधकर महासती होने का पाखण्ड रच, पद्म सम्मान पा चुकी गांधारी चीर हरण की साक्षी हो सकती थीं तो आज की पढ़ी-लिखी, सभ्य- सुसंस्कृत (?), सबला (स-बला) किशोरी क्यों पीछे रहे?
                 इसी समाचार पत्र में अन्यत्र कुछ किशोरियों द्वारा अन्यत्र एक किशोर को निर्वस्त्र करने के दुष्प्रयास (?) का भी समाचार है। ऐसी साहसी बच्चियों से देश गौरवान्वित होता है। सत्य को ब्रम्ह माननेवाले देश का भविष्य गढ़नेवाले बच्चे कपड़ों के भीतर का सच जानने का प्रयास कर अपनी सत्यनिष्ठा ही तो दर्शा रहे हैं। हमारे बच्चों में मानव के मूल स्वरूप को देखने और जानने की इस उत्कंठा का स्वागत हो या न हो, उन्हें जो करना है, कर रहे हैं। 'तन से तन का मिलन हो न पाया तो क्या, मन से मन का मिलन कोई कम तो नहीं' की दकियानूसी सोच को तिलांजलि देकर नयी पीढ़ी 'मन से मन मिलन हो न पाया क्या, तन से तन का मिलन कोई कम तो नहीं' के प्रगतिवादी सोच को मूर्त रूप दे कर क्रांति कर रही है।
                 स्त्री विमर्श की आड़ में पुरुष को देहधर्मी आरोपित कर, अपनी देह दर्शाते फिर रही आधुनिकाओं को अपनी (अपने पति की नहीं) बच्चियों के इन वीरोचित कार्यों पर भीषण गर्व अनुभव हो रहा होगा कि उनकी पीढ़ी को तो निर्वसन दौड़ने के लिए भी शिक्षा पूर्ण कर अभिनेत्री बनने तक का समय लगा पर भावी पीढ़ी यह दिशा विद्यालयों की कच्ची उम्र से ही ग्रहण कर रही है। इनका बस चले तो ये 'बाँह में हो और कोई, चाह में हो और कोई' ध्येय वाक्य हर विद्यालय के हर कक्ष में लिखवा दें ताकि पुरातनपंथी छात्र-छात्राएँ प्रेरित हो सकें।
                 भारत प्रगतिशील राष्ट्रों की क़तार में सम्मिलित हो सके इसलिए राष्ट्रवादी नेतागण अपने गृहस्थ जीवन का पथ छोड़कर, विवाहित होकर भी अविवाहित की तरह रहते हुए प्राण-प्राण से सकल विश्व की परिक्रमा कर रहे हैं। ये किशोर उनका जयकार करते हुए सेल्फी तो लेना चाहते हैं पर उनका अनुकरण नहीं करना चाहते। एक चित्रपटीय गीत में सनातन सत्य की उद्घोषणा की गयी है "इंसान था पहले बन्दर" । हमारे किशोर बंदर को निर्वसन देखकर, खुद साहस न कर सकें तो किसी अन्य को बंदर की तरह देखने का लोभ क्यों और कैसे संवरण करें? यह समझने में हमारे अभिभावक, परिवार, विद्यालय, गुरुजन, शिक्षा प्रणाली, धर्म, गुरु, न्याय व्यवस्था सभी अक्षम सिद्ध हो रहे हैं। इसका कारण केवल एक ही हो सकता है कि सामाजिक और सामूहिक स्तर पर स्वयं को उदासीन और संयमित प्रदर्शित करने के बाद भी हम, स्त्री-पुरुष दोनों कहीं न कहीं उर्वशियों, मेनकाओं औे रम्भाओं के प्रति आकर्षित हो उन्हें पाना या उन जैसा बनना चाहते रहे हैं। तभी तो अंतरजाल पर वयस्क तरंग-स्थल (एडल्ट वेब साइट) देखनेवालों की संख्या अन्य से बहुत अधिक है।मानव मन के चिंतन और मानव तन के आचरण के मध्य सेतु निर्मित करनेवाली अभियांत्रिकी का विकास अभी नहीं हो सका है किन्तु भविष्य में भी नहीं होगा यह तो कोई नहीं कह सकता। बंद होने का खतरा झेल रहे अभियांत्रिकी महाविद्यालयों में नग्नता यांत्रिकी का पाठ्यक्रम आरम्भ करते ही छात्र-छात्राओं की ऐसी भीड़ उमड़ेगी की चप्पे-चप्पे में अभियांत्रिकी महाविद्यालय खोलने पड़ेंगे।
                 आप सहमत नहीं तो चलिए नयी दिशा तलाश करें। आज के ही समाचार पत्र में समाचार है कि न्यायालयों ने दो राज्यों में राज्यपालों की अनुशंसाओं पर केंद्र सरकार द्वारा अपदस्थ की गयी सरकारों को न केवल पुनः पदस्थ कर दिया अपितु पूर्ववर्ती वैकल्पिक सरकारों द्वारा लिए गए निर्णयों और घोषित की गयी नीतियों को भी निरस्त कर दिया। स्पष्ट है कि प्रधान मंत्री की अपार जनप्रियता को भुनाने की बचकानी शीघ्रता कर रहे दलाध्यक्ष मित-सत्ता (किसी राज्य में है, किसी में नहीं है) से संतुष्ट न होकर अमित सत्ता पाने की फिराक में हैं। वे तो अमित भी हैं और शाह भी, फिर किसी और को कहीं भी सत्तासीन कैसे देख सकते हैं? उन्होंने श्री गणेश एक दल मुक्त भारत की घोषणा कर और अपने दल के संसदीय दल-नेता से कराकर भले ही किया है किन्तु उनकी मंशा तो विपक्ष मुक्त भारत की थी, है और रहेगी। भारत का संविधान उनकी इस मंशा को मौलिक अधिकार मानकर मौन भले रहे, जनता और न्याय व्यवस्था पचा नहीं पा रही।
                 दलीय दलदल की राजनीति में कमल खिलाने, तिनके (तृण मूल) उगाने, पंजा दिखाने, लालटेन जलाने, पहिया घुमाने, हाथी चलाने, साइकिल दौड़ाने और हँसिया-हथौड़ा उठाने के इच्छुकों के सामने एक ही राह शेष है। बंद होते अभियांत्रिकी महाविद्यालयों का अधिग्रहण कर उनमें अपने-अपने दल के अनुरूप सामाजिक यांत्रिकी (सोशल इंजीनियरिंग) का पाठ्यक्रम चला दें। यह घोषणा भी कर दें कि इन पाठ्यक्रमों में विशेष योग्यता प्राप्त जन ही उम्मीदवार और चुनाव प्रबंधक होंगे। आप देखेंगे की गंजों के सर पर बाल लहलहाने की तरह, सियासत की शूर्पणखा को वरने के लिये तमाम राम, लक्ष्मण, रावण और विभीषण भी क़तार में लगे मिलेंगे।
                 'राजनीति विज्ञान है या कला?' इस यक्ष प्रश्न को सुलझाने में असफल रही सभ्यता की दुहाई देनेवाले क्या जानें कि राजनीति आगामी अनेक पीढ़ियों के लिए ही नहीं अगले जन्म के लिये भी धन-संपदा जोड़-जोड़कर विदेशों में रख जाने का पेशा है। दो अर्थशास्त्रियों के तीन मत होने को अजूबा माननेवाले कैसे समझेंगे कि राजनीति में स्वार्थनीति, सत्तानीति, दलनीति के अनुसार एक ही नेता के अनेक मत होते हैं। 'सत्य एक होता है जिसे विद्द्वज्जन कई प्रकार से कहते हैं' माननेवाले कैसे स्वीकारेंगे कि हर नेता के कई सत्य होते हैं जो संसद से सड़क तक, टी.व्ही. से बीबी तक बदलते रहते हैं।
                 कोई सत्यर्षि या ब्रम्हर्षि अपनी चादर को राज्यर्षि से अधिक सफ़ेद कैसे कह सकता है? आप ही बतायें कि एक चादर दाग न लकने पर सफेद दिखे और दूसरी का कण-कण दागों से काल होने पर भी सफ़ेद दिखाई जाए दमदार कौन सी हुई? राज्यर्षि जानता है कि 'आया सो जाएगा' इसलिए मोह-माया से पर रहता है। वह एक पत्नी की रुग्ण देह को बिस्तर पर छोड़कर, बेटी से कम उम्र की प्रेमिका की बाँह में बाँह डालकर 'चलो दिलदार चलो', ' ये रात ये चाँदनी फिर कहाँ' से 'हम-तुम एक कमरे में बंद हों' गाते हुए गम गलत करता है। आम आदमी इस 'प्रेमिकालॉजी' रहस्य कैसे समझ सकते हैं? इसकी यांत्रिकी भी बंद हो रहे महाविद्यालयों को नवजीवन दे सकती है।
                 अभियांत्रिकी महाविद्यालयों को नवजीवन देने वाली एक विधा और है जिसे 'जुमलालॉजी' कहते हैं। यह नवीनतम आविष्कृत विधा है। इसमें प्रवीणता, दक्षता और कुशलता न हो तो गंजा पंजा को पराभूत कर देता है और यदि आप इस विधा के विशेषज्ञ हैं तो चाय बेचने से आरम्भ कर प्रधानमंत्री बनने तक की यात्रा कर सकते हैं। इन तमाम विधाओं की यांत्रिकी शिक्षा जो महाविद्यालय देगा उसमें प्रवेश पाने के इच्छुकों की संख्या भारत की जनसंख्या, राजनेता के झूठ, प्रगतिवादियों के पाखण्ड, आतंवादियों के दुराचार, भारतीय संसद के विवादों, खबरिया चैनलों के संवादों, आरक्षणजनित परिवादों, अभिनेत्रियों के नातों, पत्रकारों की बातों और पाकिस्तान को पड़ रही लातों की तरह 'है अनंत हरि कथा अनंता' होगी ही। नाम मात्र की नकली उपाधि लेकर शालेय शिक्षा प्राप्त करने, चिकित्सक या मानव संसाधन मंत्री बनने के इच्छुक छात्रों से प्रथम वरीयता पाकर ऐसे महाविद्यालय हेमामालिनी के गालों की तरह चिकनी सड़कें बनाने, कलम तराजू और तलवार को जूते मारने, अगणित कपडे और पादुकाएँ जुटाने, अपनी प्रतिमा आप लगवाने, दामाद को रोडपति से करोड़पति बनाने के विशेष पाठ्य चलाकर देवानंद की तरह सदाबहार हो ही जायेंगे, इसमें संदेह नहीं। 
***

navgeet

एक रचना 
संजीव 
*
नहा रहे हैं
बरसातों में 
हरे-भरे बतियाते झाड़
अपनी जगह
हमेशा ठांड़े
झूम-झूम मस्ताते झाड़
*
सूर्य-बल्ब
जब होता रौशन
मेक'प करते बिना छिपे.
शाखाओं,
कलियों फूलों से
मिलते, नहीं लजाते झाड़
नहा रहे हैं
बरसातों में
हरे-भरे बतियाते झाड़
अपनी जगह
हमेशा ठांड़े
झूम-झूम मस्ताते झाड़
*
बऊ धरती
आँखें दिखलाये
बहिना हवा उड़ाये मजाक
पर्वत दद्दा
आँख झुकाये,
लता संग इतराते झाड़
नहा रहे हैं
बरसातों में
हरे-भरे बतियाते झाड़
अपनी जगह
हमेशा ठांड़े
झूम-झूम मस्ताते झाड़
*
कमसिन सपने
देख थिरकते
डेटिंग करें बिना हिचके
बिना गये
कर रहे आउटिंग
कभी नहीं पछताते
नहा रहे हैं
बरसातों में
हरे-भरे बतियाते झाड़
अपनी जगह
हमेशा ठांड़े
झूम-झूम मस्ताते झाड़
*

laghukatha

लघुकथा
खतरा
*
जोरदार बरसात, अँधेरी रात, डरती बचती चली जा रही थी एक कुतिया अकेली। कुछ कुत्तों को देखकर डरी-सहमी सोचने लगी आगे जाएया न जाए?
उसे ठिठका देख एक कुत्ता बोल पड़ा- 'आप बेखटके अपने रास्ते चले जाएँ, यहाँ कोई पुलिस थाना या आदम जात नहीं है।
***

बुधवार, 13 जुलाई 2016

muktak

मुक्तक 
*
था सरोवर, रह गया पोखर महज क्यों आदमी?
जटिल क्यों?, मिलता नहीं है अब सहज क्यों आदमी?
काश हो तालाब शत-शत कमल शतदल खिल सकें-
आदमी से गले मिलकर 'सलिल' खुश हो आदमी।। 
*
राजनीति पोखर हुई, नेता जी टर्राय 
कुर्सी की गर्मी चढ़ी, आँय-बाँय बर्राय
वादों को जुमला कहें, कहें झूठ को साँच 
कोसें रोज विपक्ष को, पद-मद से गर्राय 
*
बदला है तालाब का पानी प्रिय दुष्यंत 
जैसे रहे विदेश में वैसे घर में कंत 
किस-किस को हम दोष दें?, सभी एक से एक 
अपनी करनी सुधारें, नहीं शेष में तंत