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मंगलवार, 24 फ़रवरी 2015

10 वां अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन: 17 मई से 24 मई, 2015 लमही से लुम्बिनी

सृजनगाथा डॉट कॉम
केंद्रीय कार्यालय
एफ-3, छगमाशिम, आवासीय परिसर, पेंशनवाड़ा, रायपुर, छत्तीसगढ़-492001
मो.-94241-82664, ईमेल- srijangatha@gmail.com, वेबसाईट- www.srijangatha.com


।। लमही से लुम्बिनी ।।
(10 वां अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन)

आदरणीय महोदय/महोदया
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी और हिंदी-संस्कृति को प्रतिष्ठित करने के लिए बहुआयामी साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था सृजन-सम्मान, छत्तीसगढ़ व साहित्यिक वेब पत्रिका सृजनगाथा डॉट कॉम (www.srijangatha.com]) द्वारा किये जा रहे प्रयास और पहल के अनुक्रम में रायपुर, बैंकाक, मारीशस, पटाया, ताशकंद (उज्बेकिस्तान), संयुक्त अरब अमीरात, कंबोडिया-वियतनाम, श्रीलंका तथा चीन में 9 अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलनों के सफलतापूर्वक आयोजन के पश्चात अब 17 मई से 24 मई, 2015 तक लमही(वाराणसी), लुंबिनी व काठमांडू (नेपाल) में 8 दिवसीय 10 वें अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन का आयोजन (त्रिभुवन विश्वविद्यालय, नेपाल, शिल्पायन नई दिल्ली, वैभव प्रकाशन, सद्-भावना दर्पण, छत्तीसगढ़ मित्र, सृजन-सम्मान, प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान, लोक सेवक संस्थान, रायपुर, गुरुघासीदास साहित्य एवं संस्कृति अकादमी छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ के सहयोग से) किया जा रहा है ।
सम्मेलन में हिंदी के चयनित/आधिकारिक विद्वान, अध्यापक, लेखक, भाषाविद्, शोधार्थी, संपादक, पत्रकार, संगीतकार, गायक, नृत्यकार, चित्रकार, बुद्धिजीवी एवं हिंदी सेवी संस्थाओं के सदस्य, हिन्दी-प्रचारक, हिंदी ब्लागर्स, टेक्नोक्रेट आदि भाग लेंगे ।
सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य स्वंयसेवी आधार पर हिंदी-संस्कृति का प्रचार-प्रसार, भाषायी सौहार्द्रता, विभिन्न देशों का सांस्कृतिक अध्ययन-पर्यटन सहित एक दूसरे से अपरिचित सृजनरत रचनाकारों के मध्य परस्पर रचनात्मक तादात्म्य के लिए अवसर उपलब्ध कराना भी है।

लमही/काठमांडू, नेपाल में आयोजन
अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी/सेमीनार
  1. समकालीन साहित्य का सामाजिक सांस्कृतिक संदर्भ एवं परिवेश
  2. कला एवं सामाजिक विज्ञान का बदलता परिदृश्य (साहित्य संस्कृति बाजारवाद और सामाजिक परिवर्तन के संदर्भ मे)
अन्य महत्वपूर्ण आकर्षण
1. कनुप्रिया (प्रख्यात संगीतकार कल्याण सेन, मुंबई)
3. कत्थक (प्रस्तुति- चर्चित कोरियोग्राफर काजल मूले, अहमदाबाद)
4. शास्त्रीय ग़ज़ल गायन - सुशील साहिल, मुंगेर
5.कविता/लघुकथा/गीत/बाल कविता पाठ
6. प्रतिभागी चित्रकारों की पेंटिग प्रदर्शनी
7. कृतियों का विमोचन (सहभागी रचनाकार )
8. 5 चयनित रचनाकार को सृजनगाथा सम्मान (मानद)
9. प्रतिभागियों को प्रतीकात्मक सम्मान
10. तृतीय सृजनगाथा डॉट काम सम्मान-2014 (21,000 रुपये)
12. आलेख संकलन का प्रकाशन
13. नेपाली कलाकारों द्वारा प्रस्तुति

पर्यटन/अध्ययन
1. बनारस - गंगा आरती, दशाश्वमेघ घाट, विश्वनाथ दरबार
2. लमही - प्रेमचंद स्मारक
3. लुम्बिनी - गोरखनाथ जन्मस्थल/मंदिर, गौतम बुद्ध जन्म स्थल
4. काठमांडू - पशुपतिनाथ, अन्य महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थल
5. पोखरा - कास्की साम्राज्य से संबंद्ध स्थल, Patale Chango आदि

पंजीयन
A. अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लेने हेतु इच्छुक प्रतिभागी को सर्वप्रथम अपना संक्षिप्त बायोडेटा, फोटो, वीजा हेतु आवश्यक दस्तावेज (नीचे दी गई सूची अनुसार किसी एक की छायाप्रति ) पंजीयन-राशि-10,000 रुपए के चेक, सम्मेलन में स्वेच्छा/स्वयंसेवीभाव से सम्मिलित होने की सहमति पत्र के साथ 30 मार्च 2015 के पूर्व कोरियर या रजिस्ट्री डाक से हमें भेजना अनिवार्य होगा हैं:
  1. Passport
  2. Driving License with photo
  3. Photo Identity card issued by a Government Agency
  4. Ration Card with Photo
  5. Election Commission Card with Photo
  6. Identity Card issued by Embassy of India in Kathmandu
  7. Identity Card with Photo issued by Sub- Divisional Magistrate or any other officials above his rank
B. जो प्रतिभागी अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी सत्र में भाग लेना चाहते हैं वे अपना मौलिक आलेख/शोध आलेख (जो उपरोक्त संदर्भित विषयों में से किसी एक विषय से संदर्भित हो, शब्द-सीमा- 1000-1500 शब्द, युनीकोड या कृतिदेव में ईमेल द्वारा ही) 30 मार्च, 2015 तक भेज सकते हैं ।
C. जो प्रतिभागी अंतरराष्ट्रीय रचना पाठ (कविता/कहानी/लघुकथा/गीत/ग़ज़ल/नवगीत) सत्र में भाग लेना चाहते हैं, वे भी बिंदू B का अनुपालन कर सकते हैं ।
D. नयी किताब/पत्रिका के विमोचन के लिए पंजीयन के समय अलग से जानकारी देनी होगी ।
पंजीयन शुल्क
1. इच्छुक प्रतिभागियों को सहभागिता/आवश्यक व्यवस्था हेतु (बनारस से बनारस तक) सहभागिता शुल्क के रूप में कुल 22,000 (रूपए बाइस हजार मात्र) देय होगा जिसमें से पंजीयन के समय 10000 रुपए (दस हजार मात्र) 30 मार्च, 2015 के पूर्व अनिवार्यतः चेक/कोरबैंकिंग के द्वारा जमा कराना होगा । सहभागिता राशि की शेष राशि 12,000 (बारह हजार मात्र) 30 अप्रैल 2015 के पूर्व अनिवार्यतः चेक/कोर बैंकिंग द्वारा जमा कराना होगा । पंजीयन शुल्क वर्तमान प्रचलित डॉलर के दर पर तय किया गया है । यदि डालर की दर में अधिक बढ़ोत्तरी होगी तो अतिरिक्त शुल्क की जानकारी यथासमय आपको दे दी जायेगी । एक बार पंजीयन उपरांत पंजीयन राशि किसी भी स्थिति में नहीं लौटायी जायेगी ।
विलंब से पंजीयन कराने पर अतिरिक्त शुल्क-
  1. 30 मार्च, 2015 तक – कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं ।
  2. 30 अप्रैल 2015 तक – 2000 रुपए अतिरिक्त देय होगा ।
2. प्रतिभागी यदि सहभागिता/पंजीयन राशि चेक या डिमांड बैंक ड्राफ्ट से भेजना चाहते हैं वे अपना सहभागिता शुल्क ‘सृजनगाथा डॉट कॉम’ या अंगरेजी में ‘Srijangatha dot com’ के ही नाम पर भेजें । चेक या ड्रॉफ्ट हमें भेजने के पूर्व इसकी जानकारी आवश्यक रूप से संयोजक जयप्रकाश मानस को मोबाईल 94241-82664 पर एसएमएस देना होगा।
3. इच्छुक प्रतिभागी यदि सहभागिता/पंजीयन राशि कोर बैंक के माध्यम से भेजना चाहते हैं तो वे निम्नानुसार जमा करा सकते हैं – यह राशि जमा कराने के पश्चात मो. से सूचना देवें तथा जमा पर्ची की फोटो कापी या स्कैन कापी ईमेल से हमें जरूर भेंजे।
IFSC Code:
UCBA0001834  AC No.- 18340100002436
Branch:
City:
District:
State:
Address:
Uco Bank, Board Of Secondary Education Campus, Pension Bada, Raipur
BankContact:  07712421423

4. यह आयोजन पूर्णतः स्वैच्छिक, स्वयंसेवा आधारित, गैर व्यवसायिक, रचनाकारों के प्रोत्साहनार्थ है, कोई व्यवसायिक टूर नहीं, अतः प्रतिभागियों से निवेदन है कि वे प्रतिभागिता शुल्क में छूट, अनुदान, अतिरिक्त व्यवस्था, तुलनात्मक लाभ-हानि आदि के संबंध में अनावश्यक पत्राचार न करें । यह कार्य रचनाकारों के हित में पूर्व से ही किया जा चुका है ।
5. प्रतिभागियों से प्राप्त पंजीयन शुल्क नॉन रिफंडेबल है क्योंकि इसी राशि से संबंधित प्रतिभागी की सम्मेलन में प्रतिभागिता/वातानुकूलित बसयात्रा/वीजा/आवास/भोजन-स्वल्पाहार/अध्ययन-पर्यटन तथा अन्य आवश्यक सुविधा रिजर्व करायी जायेगी अतः पूर्ण रूप से निश्चित होने पर ही इच्छुक प्रतिभागी अपना पंजीयन करायें एवं पंजीयन राशि भेजें ।
नियमावली/शर्तें/वांछित व्यवस्था-
1. कोई भी प्रतिभागी आलेख पाठ या अंतरराष्ट्रीय रचना-पाठ में से किसी एक ही सत्र में भाग ले सकता है ।  
2. चूंकि प्रतिभागी अधिक होंगे अतः आलेख पाठ हेतु मात्र 7 मिनट व रचनापाठ हेतु मात्र 5 मिनट का समय आबंटित किया जायेगा ।
3. अंतिम रूप से चयनित प्रतिभागी का आलेख पाठ के अलावा उक्त अवसर पर विमोचित होनेवाली शोध पत्रिका (ISBN) में समादृत किया जा सकेगा । इस कृति/स्मारिका की एक प्रति प्रतिभागी लेखक को नि:शुल्क भेंट की जायेगी । किन्तु इस पत्रिका में अपना आलेख उन्हीं सहभागी प्रतिभागियों का आलेख सम्मिलित किया जा सकेगा जो अंततः 30 अप्रैल, 2015 के पूर्व अपना आलेख निर्धारित शुल्क 2000 रुपये के साथ जमा करा देंगे । उक्ताशय हेतु आप शोध पत्रिका के संपादक डॉ. सुधीर शर्मा से 94253-58748/9039058748 से पृथक से परामर्श कर उन्हें सुविधानुसार अपना शोध आलेख प्रेषित कर सकते हैं ।
4. सम्मेलन में स्वंच्छा से सम्मिलित होनेवाले सभी प्रतिभागियों के आवास( टू स्टार या समतुल्य-प्रत्येक कमरे में दो या तीन प्रतिभागियों की शेयरिंग), स्वरूचि भोजन, स्वल्पाहार, अध्ययन-पर्यटन, बस-व्यवस्था, गाईड की व्यवस्था संयोजन समिति के संयोजन में की जायेगी तथा उन्हें आवश्यक सहभागिता प्रमाणपत्र भी प्रदान किया जायेगा ।
5. जिन प्रतिभागियों के पास वर्तमान में वीज़ा हेतु आवश्यक दस्तावेज (उपरोक्तानुसार वर्णित) नहीं है उनसे अपेक्षा है कि कृपया वे पंजीयन की प्रकिया में भाग ना लेवें, ना ही कोई अनावश्यक पत्राचार करें । इसके अलावा सम्मेलन में प्रतिभागिता का अंतिम निर्णय लिये बगैर भी पंजीयन की प्रक्रिया में भाग ना लिया जावे । जो इच्छुक प्रतिभागी पंजीयन प्रक्रिया में भाग लेना चाहते हैं वे यह भी सुनिश्चित कर लें कि उनका वीज़ा हेतु आवश्यक दस्तावेज, निर्धारित अवधि में हमें प्राप्त हो सकेगा तथा वे पूर्णतः स्वयंसेवी भावना पर केंद्रित होकर ही इस सम्मेलन में भाग लेना चाहते हैं ।
6. जो प्रतिभागी सम्मेलन में संयोजन समिति की उपरोक्त व्यवस्था के अतिरिक्त सुविधा, व्यवस्था, वांछित आवश्यकता की अपेक्षा रखते हैं वे पहले हमसे चर्चा कर सकते हैं एवं संयोजकीय सहमति के उपरांत ही पंजीयन की प्रकिया में भाग ले सकते हैं ।
7.सम्मेलन/संगोष्ठी/रचना पाठ सत्र हेतु मुख्य अतिथि/अध्यक्ष मंडल/वक्ता/संचालनकर्ता का अंतिम निर्धारण संयोजन समिति द्वारा ही निर्धारित किया जायेगा ।  
8. सृजन गाथा डॉट कॉम पूर्णतः गैर शासकीय/स्वयंसेवी/साहित्यिक पोर्टल है जिसे राज्य या केंद्र सरकार से किसी भी प्रकार का शासकीय अनुदान नहीं मिलता । यह संस्था स्वयंसेवी/स्वेच्छा आधार पर साहित्यिक आयोजनों पर विश्वास करती है अतः आपसे अपेक्षा है कि आप स्वयंसेवी/स्वेच्छा आधार पर ही इस आयोजन से जुड़ें ।
9. जो प्रतिभागी किसी शासकीय/अर्धशासकीय सेवा में हैं, और प्रतिभागिता की अनुमति के लिए आवश्यक पत्र की अपेक्षा करते हैं तो उन्हें अपना पता लिखा लिफाफा आवश्यक डाट टिकट के साथ पत्र का प्रारूप हमे भेजना होगा ।
10. जो इच्छुक प्रतिभागी अन्य साहित्यिक व्यक्तित्व/विशिष्ट परिजन को इस आयोजन से जोड़ना चाहते हैं वे कृपया पृथक से हमसे इसकी सहमति प्राप्त कर लें ।
11. चूंकि यह आयोजन सीमित और योग्य प्रतिभागियों के लिए है अतः अंतिम रूप से प्रतिभागियों का चयन/ निर्णय आयोजन समिति के विवेक पर ही निर्भर होगा । इसके लिए पृथक से पत्राचार नहीं किया जायेगा ।
12. सम्मेलन में सहभागिता/यात्रा हेतु चयनित/पंजीकृत प्रतिभागी को 17 मई 2015 को बनारस, उत्तरप्रदेश में निर्धारित होटल में अपनी सुविधा और साधन से उपस्थित होना अनिवार्य होगा । बनारस से बनारस यात्रा के समय विस्तृत जानकारी हेतु आप चाहें तो व्यवस्था प्रभारी श्री सेवाशंकर अग्रवाल से व्यक्तिगत तौर पर उनके मोबाईल न. 9425211453 से संपर्क भी कर सकते है जिसका विवरण यथासमय दिया जायेगा । सहभागियों को पंजीयन के पश्चात पृथक से दस्तावेज आदि नहीं लौटाया जायेगा तथा यात्रा (समयसारिणी) का अंतिम विवरण, मिनट टू मिनट विवरण, सेमीनार-विवरण, आचार संहिता का विवरण अंतिम पंजीयन के पश्चात यथासमय भेजा जा सकेगा ।
पंजीयन हेतु कौन संपर्क ना करें ?
आपसे आग्रह है कि यदि आप गैर साहित्यिक, गैरसहनशील, गैरस्वयंसेवी, बीमार, झगडालू, दूसरों को असुविधा में डालने वाले/विघ्नसंतोषी, व्यवधानी, अपनी कथित बुद्धि-बल-बल-ज्ञान के कारण दूसरों सहभागियों से अनपेक्षित व्यवहार करनेवाले, अपने घर में नियमित जीवन के कारण ऐसी यात्रा में परेशान हो उठनेवाले, यात्रा, भोजन, सम्मेलन आदि के दौरान अनुशासनहीन रहनेवाले तथा आयोजन-संयोजकों को मेजबान और खुद को मेहमान समझकर बर्ताब करने के आदी हों तो कृपया इस सम्मेलन में सहभागिता हेतु पंजीयन ना ही करायें।
सह-प्रायोजक एवं सहभागिता राशि में छूट –
इस आयोजन में पंजीकृत प्रतिभागी की अनुशंसा पर अपने क्षेत्र की साहित्यिक संस्था, साहित्यिक पत्रिका, प्रकाशक, विश्वविद्यालय, महाविद्यालय, भाषायी कार्यों को समर्थन देनेवाले व्यापारिक संस्थान को सह प्रायोजक बनाया जा सकता हैं । इस रूप में सह प्रायोजक आयोजन स्थल पर अपना प्रचार फ्लेक्स, बैनर प्रदर्शित कर सकते हैं । इसके अलावा वे किसी चिन्हांकित प्रतिष्ठित साहित्यकार (प्रतिभागियों में से) का अंलकरण समारोह में विधिवत् सम्मान कर सकते हैं । सभी प्रतिभागियों को सम्मेलन किट्स, बैग, पैन, नोटबुक, प्रशस्ति पत्र से सम्मानित कर सकते हैं । सह प्रायोजन शुल्क के रूप में उन्हें 25,000 रुपये 30 मार्च, 2015 के पूर्व भूगतान करना होगा ।

तृतीय सृजनगाथा डॉट कॉम सम्मान-2013
सम्मान स्वरूप उस वरिष्ठ प्रतिभागी रचनाकार को 21,000 रूपये नगद, शॉल, श्रीफल, प्रशस्ति पत्र आदि 9  वें अ.हिं.स. नेपाल के मुख्य समारोह में प्रदान किया जायेगा, जिसकी उम्र 45 वर्ष से अधिक हो । इस सम्मान हेतु सम्मेलन के प्रतिभागी रचनाकार को अपनी प्रतिनिधि विधा/प्रकाशित किताब की 2-2 प्रतियाँ श्री जयप्रकाश मानस, संयोजक के पते पर 30 मार्च 2015 से पूर्व  रजिस्ट्री डाक से भेजना अनिवार्य होगा । सम्मान का निर्णय वरिष्ठ साहित्यकारों की गठित जूरी द्वारा किया जायेगा । विस्तृत जानकारी के लिए लॉगऑन करें - www.facebook.com/events/306752069520872/

डॉ. खगेन्द्र ठाकुर
अध्यक्ष, अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन, पटना, मो.-09431102736
अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन हेतु स्थायी समितियां

डॉ. रंजना अरगड़े
उपाध्यक्ष, अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन, अहमदाबाद, मो.-9426700943

विशेष आमंत्रित-
01. डॉ. गंगा प्रसाद विमल, दिल्ली, मो.-08826235548
02. डॉ. सत्यमित्र दुबे, गोरखपुर, नोएड़ा, मो.-
03. श्री विभूति नारायण राय, वर्धा, मो.-09730071826
04. श्री धनंजय सिंह, गाजियाबाद, मो.-09810685549
05. डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र, देहरादून, मो.- 09412992244
06. श्री हरिसुमन विष्ट, दिल्ली, मो.- 9868961017
07. डॉ. प्रेम जनमेजय, दिल्ली, मो.- 98 11 154440
08. डॉ. कुसुम खेमानी, कोलकाता, मो.-9831027178
09. श्री एकांत श्रीवास्तव, कोलकाता, मो.-9433135365
संरक्षक
1. डॉ. गंगाप्रसाद शर्मा, ग्वांग्छाऊ विश्वविद्यालय, चीन
2. श्री विश्वरंजन, पूर्व पुलिस महानिदेशक, छग सरकार, रायपुर, मो.- 94241-82664
3. श्री महेश द्विवेदी, पूर्व पुलिस महानिदेशक, उप्र. सरकार, लखनऊ, मो.- 9415063030
4. श्री (कर्नल) रतन जांगिड़, अकादमी सम्मानित कथाकार, जयपुर, मो.- 960228555
5. डॉ.शरद पगारे, वरिष्ठ उपन्यासकार, इंदौर, मो.-9406857388
6. श्री प्रत्युष गुलेरी, सदस्य साहित्य अकादमी, धर्मशाला, मो.- 9418121253
7. श्री विनोद पाशी, श्रीलंका में भारत के राजनयिक एवं कवि
स्थानीय संयोजन
नेपाल (काठमांडू) - श्वेता दीप्ति, त्रिभुवन विश्वविद्यालय, काठमांडू, मो.9779849516187
लमही (भारत) –  डॉ. सुधीर सक्सेना
मीडिया पार्टनर
दुनिया इन दिनों, भोपाल (प्रधान संपादक, डॉ. सुधीर सक्सेना) -9711123909
अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी/शोध पत्रिका संयोजक
डॉ. सुधीर शर्मा, - 9425358748
राज्य संयोजक
दिल्ली: डॉ. लालित्य ललित – मो.-9868235397

गुजरात : डॉ. नैना डेलीवाला, अहमदाबाद, मो.- 9727881031
पश्चिम बंगाल: डॉ. बीना छत्रिय, दुर्गापुर, वर्धवान, मो.-9434332900, डॉ. अभिज्ञात, कोलकाता, मो. – 09830277656
पंजाब: डॉ. जसवीर चावला, चंडीगढ़, मो-9417237593, डॉ. गुरमीत सिंह, चंडीगढ़, मो-9815801908
हरियाणा: श्री रंजन मल्होत्रा, चंडीगढ़. मो.-09814008420
महाराष्ट्र-गोवा: श्रीमती संतोष श्रीवास्तव, मुंबई, मो- 9769023188, डॉ. सुनील जाधव, नांदेड, मो.-09405384672
विदर्भ प्रदेश: डॉ. मीनाक्षी जोशी, भंडारा, मो.- 9823315230 , श्री कृष्ण नागपाल, नागपुर, मो-9325378457, श्री विजय आनदेव, नागपुर, मो.-9370999881
मध्यप्रदेश: डॉ. राजेश श्रीवास्तव, भोपाल, मो.-9827303165, श्री राकेश अचल, ग्वालियर, मो.-9826217795, श्री राजेश्वर आनदेव, छिंडवाड़ा, मो.-9425845646, श्री देवी प्रसाद चौरसिया, छिंदवाड़ा, मो.- 94798916666, डॉ. विजय कुमार चौरसिया, डिंडौरी, मो.-9424386678 , श्री शरद जायसवाल, कटनी, मो.-09893417522
राजस्थान: श्री कर्नल रतन जांगिड, जयपुर, मो- 9602285555 

उत्तरप्रदेश: डॉ. सूरज बहादुर थापा, लखनऊ, मो.-, डॉ. प्रकाश त्रिपाठी, इलाहाबाद, मो.-09415763049
उत्तरांचल: श्री हेमचंद्र सकलानी, देहरादून, मो.-9412931781, श्री नीरज नैथानी, श्रीनगर गढ़वाल, मो.-9412949894, श्री जयकिशन पैन्युली, टिहरी गढ़वाल, मो.-8859049293, डॉ. सविता मोहन, देहरादून, मो-09412008090
हिमाचल प्रदेश: श्री प्रत्युष गुलेरी, धर्मशाला, मो.- 9418121253
छत्तीसगढ़: श्री सेवाशंकर अग्रवाल, सरईपाली, मो.-9425211453, श्री अशोक सिंघई, भिलाई, मो.-08817012111, श्री अरविंद मिश्रा, रायपुर, मो.-9827180865, श्री उधो प्रसाद साहू, रायपुर, मो-9424218734, श्री प्रवीण गोधेजा, रायपुर, मो.-9630000779
बिहार: श्रीमती मृदुला झा, मुंगेर, मो. 9873021511, डॉ. भगवान सिंह भास्कर, सीवान, 07870305909
झारखंड: डॉ. प्रभा कुमारी, रामगढ़, मो-9006452216
तमिलनाडु : प्रो. ललित राव, कोयम्बटूर, मो-09827911464
आंध्रप्रदेश: श्रीमती संपत देवी मुरारका, हैदराबाद, मो.-04415111238
कर्नाटक: श्री मथुरा कलौनी, बेंगलूर, मो.9900566480
पांडिचेरी: डॉ. जयशंकर बाबु, पुदुच्चेरी, मो.-09843508506
केरल; डॉ. सोफिया मात्यु, अलप्पुषा, मो. 8907752151, प्रो. बी. वै.ललिताम्बा, बैंग्लोर, मो.- 9448856174
ओडिसा: डॉ.कनक मंजरी साहू, भुवनेश्वर, मो.-9439750378, श्री दिनेश माली, ब्रजराजनगर, मो.-09437059979
पूर्वोत्तर: डॉ. संजय कुमार, मिजोरम, मो. – 9402112143
अरुणाचल प्रदेश: श्रीमती जोराम यालम नाबाम, इटानगर
विदेश के समन्यवक
मारीशस: डॉ. रेशमी रामधोनी, अंतरराष्ट्रीय उपाध्यक्ष, , पोर्टलुई, ईमेल- reshmi3mu@yahoo.com, श्री विनय गुदारी, राज्य संयोजक, पोर्टलुई, ईमेल- vinaye08@gmail.com
नेपाल: श्री कुमुद अधिकारी, ईमेल.-kumudadhikari@gmail.com
डेनमार्क: चांद हदियाबादी, , डेनमार्क, ईमेल-chaandshukla@gmail.com
ब्रिटेन: श्री प्राण शर्मा, ईमेल- sharmapran4@gmail.com
अमेरिका: श्री आदित्य प्रताप सिंह, डैलास, ईमेल- adityapsingh@aol.com
न्यूजीलैंड: श्री रोहित कुमार आकलैंड, ईमेल- editor@bharatdarshan.co.nz
श्रीलंका: अतिला कोतलावला इंडियन कल्चर सेंटर, कोलंबो
संपर्क
जयप्रकाश मानस, समन्वयक, अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन
संपादक, www.srijangatha.com, कार्यकारी संपादक, पांडुलिपि (त्रैमासिक)
एफ-3, छगमाशिम, आवासीय परिसर, पेंशनवाड़ा, रायपुर, छत्तीसगढ़-492001
मो.-94241-82664, ईमेल-srijangatha@gmail.com

एक व्यंग्य कथा : साहित्यिक जुमला


---- पण्ड्ति जी आँखें मूँद,बड़े मनोयोग से राम-कथा सुना रहे थे और भक्तजन बड़ी श्रद्धा से सुन रहे थे। सीता विवाह में धनुष-भंग का प्रसंग था-
पण्डित जे ने चौपाई पढ़ी
"भूप सहस दस एक ही बारा
लगे उठावन टरई  न टारा "

- अर्थात हे भक्तगण ! उस सभा में "शिव-धनुष’ को एक साथ दस हज़ार राजा उठाने चले...अरे ! उठाने की कौन कहे.वो तो ...
तभी एक भक्त ने शंका प्रगट किया-- पण्डित जी !  ’दस-हज़ार राजा !! एक साथ ? कितना बड़ा मंच रहा होगा? असंभव !
पण्डित जी ने कहा -" वत्स ! शब्द पर न जा ,भाव पकड़ ,भाव । यह साहित्यिक ’जुमला’ है । कवि लोग कविता में प्रभाव लाने के लिए ऐसा लिखते ही रहते है"
भक्त- " पर तुलसी दास जी ’हज़ारों’ भी तो लिख सकते थे ....। "दस हज़ार" तो ऐसे लग रहा है जैसे "काला धन" का 15-15 लाख रुपया सबके एकाउन्ट में    आ गया
पण्डित जी- " राम ! राम ! राम! किस पवित्र प्रसंग में क्या प्रसंग घुसेड़ दिया। बेटा ! 15-15 लाख रुपया वाला ’चुनावी जुमला" था । नेता लोग चुनाव में प्रभाव लाने के लिए "चुनावी जुमला ’ कहते ही रहते हैं । ’शब्द’ पर न जा ,तू तो बस भाव पकड़ ,भाव ......

"हाँ तो भक्तों ! मैं क्या कह रहा था...हाँ- भूप सहस द्स एक ही बारा’----- पण्डित जी ने कथा आगे बढ़ाई..

-आनन्द.पाठक
09413395592

सोमवार, 23 फ़रवरी 2015

navgeet: sanjiv

नवगीत :
संजीव 
.
खिल-खिलकर 
गुल झरे 
पलाशों के 
.
ऊषा के 
रंग में
नहाये से.
संध्या को
अंग से
लगाये से.
खिलखिलकर
हँस पड़े
अलावों से
.
लजा रहे
गाल हुए
रतनारे.
बुला रहे
नैन लिये
कजरारे.
मिट-मिटकर
बन रहे
नवाबों से

*

navgeet: sanjiv

नवगीत :
संजीव 
.
प्रिय फागुन की धूप 
कबीरा 
गाती सी.
.
अलसाई सी
उठी अनमनी
झुँझलाती.
बिखरी अलकें
निखरी पलकें
शरमाती.
पवन छेड़ता
आँख दिखाती
धमकाती.
चुप फागुन की धूप
लिख रही
पाती सी.
.
बरसाने की
गैल जा रही
राधा सी.
गोकुल ठांड़ी
सुगढ़ सलौनी
बाधा सी.
यमुना तीरे
रास रचाती
बलखाती.
छिप फागुन की धूप
आ रही
जाती सी.
*

navgeet: sanjiv

नवगीत :
संजीव
.
हवाओं में
घुल गये हैं
बंद मादक
छंद के.
.
भोर का मुखड़ा
गुलाबी
हो गया है.
उषा का नखरा
शराबी
हो गया है.
कूकती कोयल
न दिखती
छिप बुलाती.
मदिर महुआ
तंग
काहे तू छकाती?
फिज़ाओं में
कस गये हैं
फंद मारक
द्वन्द  के.
.
साँझ का दुखड़ा
अँधेरा  
बो रहा है.
रात का बिरवा  
अकेला
रो रहा है.
कसमसाती
चाँदनी भी  
राह देखे.
चाँद कब आ  
बाँह में ले  
करे लेखे?
बुलावों को
डँस गये हैं
व्यंग्य मारक
नंद के.  
*

navgeet: dr. issak ashq

तीन नवगीत
डॉ. इसाक ‘अश्क’
१.
गमलों खिले गुलाब
हर सिंगार
फिर झरे
कुहासों के.
दिन जैसे
मधु रंगों में-
बोरे,
गौर
गुलाबी-
नयनों के डोरे,
आँगन  
लौटे विहग
सुहासों के.
उमड़ी
गंधोंवाली-
मौन नदी,
देख जिसे
विस्मित है-
समय-सदी
गमलों
खिले गुलाब
उजासों के.
.
पुलोवर बुनती
यह जाड़े की धूप
पुलोवर
बुनती सी.
सुबह
चंपई-
तौर-तरीके जीने के,
सिखा रही
अँजुरी भर
आसव पीने के,
चीड़ वनों में
ओस कणों को
चुनती सी.
गंधों का
उत्सव-
फूलों की बस्ती में,
मना रहे
दिन-रात-
डूबकर मस्ती में,
वंशी मादल की
थापों को
सुनती सी
.
३ 
तक्षक सी हवा
भोर ने
तालों लिखे
आलेख गहरी धुंध के.
लोग बैठे
देह को-
गठरी बनाये,
खोल सकती हैं
जिन्हें बस-
ऊष्माएं,
ओसकण
जैसे की कोमल
अंतरे हों छंद के.
तेज तक्षक सी हवा-
फुंफकारती है,
डंक
बिच्छू सा उठाकर-
मारती है,
प्राण संकट में पड़े हैं
सोनचिड़िया गंध के

.   

रविवार, 22 फ़रवरी 2015

lekh: sanjiv

लेख:
जन-जन की प्रिय रामकथा 
संजीव
.
राम कथा चिरकाल से विविध अंचलों में कही-सुनी-लिखी-पढ़ी जाती रही है. भारत के अंचलों और देश के बाहर भी पंडित जन रामकथा की व्याख्या अपनि-अपनी रूचि के अनुरूप करते रहे हैं. राम कथा सर्वप्रथम महर्षि वाल्मीकि ने रामायण शीर्षक से कही. तुलसी ने इसे रामचरित मानस नाम दिया किन्तु लोक ने ‘रामायण’ को ही अपनाये रखा. राम जिन अंचलों में गये वहाँ उनका प्रभाव स्वाभाविक है किन्तु जिन अंचलों में राम नहीं जा सके वहाँ भी काल-क्रम में राम-कथा क्रमश: विस्तार पाती रही. पंजाब, गुजरात तथा महाराष्ट्र ऐसे ही अंचल हैं जहाँ राम-कथा को प्रभाव आज तक अक्षुण है.

पंजाब में रामकथा
पंजाब भारत के आक्रान्ताओं से सतत जूझता रहा है. यहाँ साहित्य सृजन के अनुकूल वातावरण न होने पर भी संतों ने जन सामान्य में निर्गुण पंथी विचारधारा का प्रचार-प्रसार किया और सत-शिव-सुन्दर के प्रति जनाकर्षण बनाये रखा. राम का संघर्ष, आततायियों से साधनों के आभाव में भी जूझना और आम जनों के सहयोग से विजय पाना पंजाब के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया. निर्गुणपंथी गुरुओं ने राम-कथा के दृष्टान्तों और प्रतीकों को जन सामान्य में स्थापित कर देशप्रेम, साहस और संघर्ष की अलख जलाये रखी.
कालांतर में राम के जीवन के घटनाक्रम और राम के आचरण को आदर्श रूप में प्रस्तुत किया गया. गुरुओं के राम-प्रेम, राम-कथा गायन और राम भक्ति से अनुप्राणित आम जन ने राम को ईशावतार स्वीकार कर लिया. पंजाब को राम के ब्रम्हत्व से अधिक राम का योद्धा रूप भाया.गुरु गोबिंद सिंह ने स्वयं को रघुवंशी बताया और बृज भाषा में ‘रामावतार’ शीषक राम काव्य-कृति की रचना की.
पश्चिमी पंजाब में सन १८६८ में क्षत्रिय परिवार में जन्मे रामलुभाया अणद दिलशाद ने १९१७ में कश्मीर राज्य के पुलिस विभाग से अवकाश प्राप्त कर १९४०-४६ के मध्य वाल्मीकि रामायण में वर्णित राम-कथा के अधर पर फारसी लिपि में ‘पंजाबी रामायण’ की रचना की. कवि के पुत्र विश्वबन्धु ने इसे नागरी लिपि में प्रकाशित किया. कवि ने अप्रासंगिक कथाओं को छोड़कर मुख्या कथा को वरीयता दी. अनावश्यक विस्तार से बचते हुए ताड़का-वध, अहल्या आख्यान जैसे प्रसंगों में शालीनता और मर्यादा का पालन किया गया है. सीता स्वयंवर के प्रसंग में रावण द्वारा शिव-धनुष उठाने का प्रयास और असफल होना वर्णित है. भरत का राम-वियोग प्रसंग बारहमासा शैली में वर्णित है. उत्तर काण्ड की सकल कथा वाल्मीकि रामायण से ली गयी है किन्तु राम द्वारा शूद्र तापस की हत्या के स्थान पर उसे धन-सम्मान दे तप से विरत करना वर्णित है. संभवत: कवि संदेश देना चाहता है कि समाज में अपने दायित्व का निर्वहन करने पर आवश्यकता पूर्ति होती रहे यह देखना शासक का दायित्व है.
पंजाबी रामायण में राम को ब्रम्ह के साथ-साथ सहृदयी, पराक्रमी और सजग शासक भी बताया गया है. किस्सा शैली में रचित इस कृति में मुख्यत: २०-२० पर यति वाला बेंत छंद आदि से अंत तक प्रयोग किया गया है. हिंदी-संस्कृत के अन्य छंदों का प्रयोग अल्प है. ग्रन्थ में अरबी-फारसी के पंजाब में प्रचलित शब्दों का प्रयोग इसे आम जन के अनुकूल बनाता है. विवाहादि प्रसंगों में पंजाबी के स्थानीय प्रभाव की अनुभूति इसे जीवन्तता प्रदान करती है.
गुजरात में राम कथा
गुजरात में राम का जाना नहीं हुआ पर वह राम-कथा के प्रभाव से अछूता न रहा. यह अवश्य है की गुर्जरभूमि में कृष्ण-कथा के पश्चात् राम-कथा का प्रसार हुआ. कृष्ण कथा-प्रसंगों को मुक्तक काव्य के रूप में प्रस्तुत करने की पूर्व परंपरा के प्रभाव में आरम्भ में राम-कथा भी खंड काव्य अथवा घटना विशेष को केंद्र में रखकर मुक्तक काव्य के रूप में रची गयीं. रास शैली की गेयता इन रचनाओं को सरस बनाती है. १५ वीं सदी से जैन मुनियों ने राम-कथा को केंद्र में रखकर सृजन किया. वडोदरा के समीप जन्मे वल्लभ संप्रदाय में दीक्षित गिरिधर कवि (१७६७-१८५२) ने सन १८३५ में ‘गिरिधर रामायण’ की रचना की. गिरिधर ने उस समय तक उपलब्ध विविध राम कथों का अध्ययन कर अपनी कृति की रचना की और उसमें वाल्मीकि रामायण, अध्यात्म रामायण, आनंद रामायण, हनुमन्नाष्टक के साथ कुछ अन्य रामायणों का उल्लेख किया जो अब अप्राप्य हैं.
‘गिरिधर रामायण’ में वर्णित कथा-क्रम में रावण द्वारा कौसल्या हरण, चरु-प्रसन में कैकेयी द्वारा क्लेश, हनुमान का रामानुज होना, राम द्वारा तीर्थ यात्रा, रामाभिषेक में सरस्वती नहीं कल्कि द्वारा विघ्न आदि प्रसंग ‘आनंद रामायण’ की तरह वर्णित हैं. ‘गिरिधर रामायण’ में मंथरा-राम के विवाद का कारण उसके द्वारा झाड़ू लगाते समय उड़ रही धूल से क्षुब्ध राम द्वारा कुबड़ा किया जाना, गुह्यक द्वारा राम के पैर धोकर कंधे पर बैठाकर नाव में चढ़ाना, शूर्पणखा-पुत्र शम्बर का वध लक्ष्मण द्वारा करना तथा सुलोचना-प्रसंग भी वर्णित है. सीता निर्वासन के कारण लोकापवाद, रजक द्वारा लांछन तथा राम द्वारा दशरथ की आयु भोगना बताया गया है. तुलसी कृत गीतावली तथा उडिया रामायण के अनुसार भी इस समय दशरथ की अकाल मृत्यु के कारण राम उनकी आयु भोग रहे थे, अत: सीता के साथ दाम्पत्य जीवन नहीं निभा सकते थे इसलिए सीता को वनवास दिया गया.
जैन कवियों का अवदान चित्र-वृत्तान्त के रूप में स्मरणीय है. गुजराती रामायण में कैकेयी सेता से रावण का चित्र बनाकर दिखने का आग्रह करती है. लव-कुश से राम तथा अन्यों के युद्ध का वर्णन भी है. एक महत्त्व पूर्ण आधुनिक प्रभाव यह है कि राम के पक्ष में अयोध्यावासी हड़ताल करते हैं: ‘नग्र माहे पड़ी हड़ताल’. गिरिधर ने प्रचलित जनश्रुतियों, लोकगीतों आदि को ग्रहण कर कथा को मौलिक, रोचक और लोकप्रिय बनाने में सफलता पायी है. अनेक प्रसंगों में तुल्सो कृत मानस से कथा-साम्य तथा नामकरण ‘रामचरित्र’ उल्लेख्य है. सामाजिक परिवेश, जातियों, संस्कारों, परिधानों आदि दृष्टियों से ‘गिरिधर रामायण’ गुजरात का प्रतिनिधत्व करती है.
महाराष्ट्र में राम कथा
महाराष्ट्र में विद्वज्जनों और सुसंस्कृत परिवारों में वैदिक तथा जैन संतों द्वारा रचित राम कथाओं का प्रचलन पूर्व से होने पर भी आम जन में इसका प्रचार १७ वीं सदी में स्वामी रामदास द्वारा रामभक्ति संप्रदाय का श्री गणेश कर धनुर्धारी राम को आराध्य मानकर राम-हनुमान मंदिरों की स्थापन के साथ-साथ हुआ. नासिक में पंचवटी को राम-सीता के वनवास काल का स्थान कहा गया. संत एकनाथ (१५३३ – १५९९ ई.) कृत ‘भावनार्थ रामायण’ जिसके ७ कांडों में ३७५०० ओवी छंद हैं, महाराष्ट्र की प्रतिनिधि रामायण है. युद्धकाण्ड का कुछ भाग रचने के बाद एकनाथ जी का देहावसान हो जाने से शेष भाग उनके शिष्य गावबा ने पूर्ण किया.
‘भावनार्थ रामायण’ में रामकथा प्रस्तुति करते समय अध्यात्म रामायण, पुराणों, मानस, अन्य काव्य कथाओं तथा नाटकों से कथा सूत्र प्राप्त किये गये हैं. शिशु राम में विष्णु रूप का दर्शन, सीता द्वारा धनुष उठाना, रावण की नाभि में अमृत होना, लक्ष्मण-रेखा प्रसंग, हनुमान व अंगद दोनों द्वारा रावण-सभा में पूंछ की कुंडली बनाकर उस पर आसीन होना, सुलोचना की कथा, लक्ष्मण द्वारा शूर्पणखा-पुत्र साम्ब का वध आदि प्रसंगों का मानस से समय है. ‘पउस चरिउ’ में भरत-शत्रुघ्न दोनों कैकेयी के पुत्र वर्णित हैं. राम के असुर संहारक ब्रम्ह रूप को भक्तवत्सल मर्यादा पुरुषोत्तम रूप पर वरीयता दी गयी है. सीता द्वारा मंगलसूत्र धारण करने, जमदग्नि की सेना में पश्चिमी महाराष्ट्र निवासी हब्शियों के होने, मराठा क्षत्रियों के ९६ कुलों के अनुरूप सीता स्वयंवर में ९६ नरेशों की उपस्थिति आदि से स्थानीयता का पुट देने का सार्थक उपक्रम किया गया है. एकनाथ रचित ‘भावनार्थ रामायण’ से प्रेरित समर्थ स्वामी रामदास ने राम, राम मन्त्र, हनुमद-भक्ति तथा जयघोष कर मुग़ल आक्रान्ताओं से पीड़ित-शोषित जन सामान्य में आशा, बल और पौरुष का संचार किया गया. रामभक्तों के जिव्हाग्र पर रहनेवाला मन्त्र ‘श्री राम जय राम जय-जय राम’ का उत्स महाराष्ट्र की रामभक्त संत परंपरा में ही है.
*

navgeet: sanjiv

नवगीत:
संजीव
.
शिव के मन मांहि
बसी गौरा
.
भाँग भवानी कूट-छान के
मिला दूध में हँस घोला
शिव के मन मांहि
बसी गौरा
.

पेड़ा गटकें, सुना कबीरा
चिलम-धतूरा धर झोला   
शिव के मन मांहि
बसी गौरा
.
भसम-गुलाल मलन को मचलें
डगमग डगमग दिल डोला
शिव के मन मांहि
बसी गौरा
.
आग लगाये टेसू मन में  
झुलस रहे चुप बम भोला
शिव के मन मांहि
बसी गौरा
.
विरह-आग पे पिचकारी की
पड़ी धार, बुझ गै शोला
शिव के मन मांहि
बसी गौरा

.

navgeet: sanjiv

नवगीत
संजीव
.
दहकते पलाश
फिर पहाड़ों पर.
.
हुलस रहा फागुन
बौराया है
बौराया अमुआ
इतराया है
मदिराया महुआ
खिल झाड़ों पर
.
विजया को घोंटता
कबीरा है
विजया के भाल पर
अबीरा है
ढोलक दे थपकियाँ 
किवाड़ों पर
.
नखरैली पिचकारी
छिप जाती
हाथ में गुलाल के
नहीं आती
पसरे निर्लज्ज हँस 
निवाड़ों पर  

*

शनिवार, 21 फ़रवरी 2015

navgeet: sanjiv

नवगीत
संजीव
.
मैं नहीं नव
गीत लिखता
   उजासों की
   हुलासों की
   निवासों की
   सुवासों की
   खवासों की
   मिदासों की
   मिठासों की
   खटासों की
   कयासों की
   प्रयासों की
कथा लिखता
व्यथा लिखता
मैं नहीं नव
गीत लिखता
.
   उतारों की
   चढ़ावों की
   पड़ावों की
   उठावों की
   अलावों की
   गलावों की
   स्वभावों की
   निभावों की
   प्रभावों की
   अभावों की
हार लिखता
जीत लिखता
मैं नहीं नव
गीत लिखता
.
   चाहतों की
   राहतों की
   कोशिशों की
   आहटों की
   पूर्णिमा की
   ‘मावसों की
   फागुनों की
   सावनों की
   मंडियों की
   मन्दिरों की
रीत लिखता
प्रीत लिखता
मैं नहीं नव
गीत लिखता

*